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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

जानिए : श्री राम सेतु....

रामसेतु तथा राम के युग की प्रामाणिकता
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हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्‍‌न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे है।

श्रीराम की जन्म तिथि
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महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।

जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।

श्रीराम के वनवास की तिथि
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वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।

खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।

अन्य महत्वपूर्ण तिथियां
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किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।


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समय रहते जागे माहेश्वरी समाज.........

पूरे भारतवर्ष व नेपाल में हमारे परिवारों की संख्या 174558 है l सरकार व अपने नियमानुसार एक परिवार की सदस्य संख्या 4 मानते है, तो हम 698232 हुए l यदि गणना की शुद्ध संख्या सामने नहीं आई तो ऐसा भी मान लें तो भी ज्यादा से ज्यादा 7-8 लाख होंगे हम l भारतवर्ष की 120 करोड़ की आबादी वाले देश मै हम अब 12 से 7-8 लाख पर आ गए है l देश की आबादी बढ़ रही है, हम घट रहे हैl ऐसे मै हमें भी सावधान होना होगा, अभी समय है, विचार करें व अपने समाज के अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर चिंतन करें, अन्यथा आने वाले 100 वर्षो मै हमारा अस्तित्व खतरे मै पड़ जायेगा l

हमारे पूर्वज राजस्थान से लोटा-डोरी लेकर निकले थे, किन्तु जहाँ भी गए, धेर्यशील बन कठिन परिस्थियों मै भी मेहनत लगन व कर्तब्यनिष्ठ बन दूध में शक्कर की तरह मिल गए व हर प्रान्त में अपने अस्तित्व को बनाया व सर्वोपरि बने स्वयं ने भी अर्थाजन किया व स्थानीय लोगो को भी रोजगार दिलवाया l उनके अन्नदाता बने l हम शिछित भी है, संपन्न भी है, लक्ष्मी की कृपा है हम पर, क्योकि हमारे आचरण मै सुचिता है, खान-पान मै शुद्धता है, सात्विकता है, अध्यात्म में व धर्म मै हमारी आस्था है, सामाजिक व पारिवारिक सुसंस्कार व ईश्वर भक्ति के प्रति समर्पित व श्रद्धालु है l हमारे बुजुर्गो ने मोटा खाया, मोटा पहना, मेहनत की, धन कमाया व परोपकार में लगाया l आज हम किसी भी धर्म स्थान पर चले जाये, माहेश्वरियो के द्वारा बनायीं हुई धर्मशाला, मन्दिर, भोजनालय आदि मिलेंगे, जो हमारे बुजुर्गों के परोपकारी स्वभाव व हमारी आध्यात्मिक शक्ति सुसंस्कारिता के परिचायक है l
अमेरिका के एक सर्वे के अनुसार माहेश्वरी विश्व के दुसरे नंबर की श्रेष्ठ जाती है l व्यापारी व औद्योगिक गुणों मै भी हमारी कोई बराबरी वाला नहीं l ईमानदारी, मेहनत, लगन व कर्तब्यनिष्ठा कूट-कूट कर भरी है हममे l आपराधिक छेत्र से दूर है हम l इसलिए राष्ट्र मै अपनी विशेष पहचान बनी हुई है l पर कभी सोचा हमने कि :-
01. हमारे 30% बच्चे देश के बाहर जा रहे है ?
02. हमारी बच्चियां उच्च शिच्छा प्राप्त करने के दरम्यान अंतर्जातीय विवाह कर रही है ?
अ) एक लड़की के अंतर्जातीय विवाह से एक परिवार खत्म हो जाता है l
ब) एक लड़की के अंतर्जातीय विवाह से हमारी संस्कृति व हमारे जीन्स की श्रेष्ठता मै कमी आ जाती है l
स) उच्च शिछित बच्चे-बच्चियां बड़ी-बड़ी नौकरी मै लगे हुए है l लड़कियां अपने व्यक्तित्व विकास में (बच्चो को) परिवार बढाने मै बाधक समझती है l
द) कुछ दम्पति एक बच्चा पैदा कर के अपने परिवार की इति श्री समझ लेते है l
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ऐसे मै हम क्या करें ?????
क्या मानव की श्रेष्ठ जातियों को बचाने के लिए हमें कोई प्रयास नहीं करने चाहिए ? पारसी जो विश्व मै प्रथम स्थान पर आते है, सुना है एक लाख से भी कम की संख्या पर आ गए है l
अब उनका समाज भी बालकों को पालने व पढ़ाने की जिम्मेदारी ले कर संख्या बढाने का आहवान कर रहा है l
अब हम क्या करें ? समाज की श्रेष्ठता के कारणों पर सर्वे करवायें l हम अपनी श्रेष्ठ गुणवत्ता के महत्व को नई पीढ़ी की साइंटिफिक तरीके से समझाये l
03. इंडिया टुडे के एक सर्वे के अनुसार भारतवर्ष मै सभी जातियों मै सबसे अधिक शिछित माहेश्वरी जाती है, जो 98.5% शिछित है l इसी तरह विशेषज्ञों से हमारी जाती की गुणवत्ता का सर्वे करवाया जाये व युवा वर्ग मै उनके महत्व को समझाया जाये l समाज की घटती संख्या का प्रचार-प्रसार किया जाये l
04. जीन्स की परंपरा, संस्कार-संस्कृति की श्रेष्ठता का क्या महत्व है l इसका प्रूफ सहित विष्लेषण करवाया जाये, उसका प्रचार-प्रसार किया जाये l बचपन से बच्चों मै जातीय प्रेम की भावना भरी जाये l युवाओ को प्रोत्साहित किया जाये l
05. जातीय श्रेष्ठता को नव पीढ़ी के सामने रखे l लेखों, चर्चा, परिचर्चा के द्वारा युवा पीढ़ी को समाज की और आकर्षित किया जाये l
06. सम्पन्नता को जरुरत से ज्यादा महत्व न दे l
07. धन के अनावश्यक प्रदर्शन पर रोक लगाये l
08. चुनाव व मंच को अनर्गल अधिक महत्व न दे l
09. सामाजिक संगठन चिंतनशील संगठन बने l
10. युवा पीढ़ी को समाज के मंच पर स्थान दे व सभाओ मै उनकी उपस्थिति को महत्वपूर्ण निरुपित कर बालकों को अपने धर्म के प्रति आकर्षित करें l हमें धर्मान्धता मै तो नहीं जाना, लेकिन जाती व देश पर गर्व करना तो सीखना तो जरुरी है l

हम अद्यमी समाज है, व्यापारी समाज जाही, उद्योग और व्यापार हमारे रग-रग मै भरा है l हमारे युवा नौकरी की ऑर आकर्षित हो कर अपने स्वाभाविक गुण और स्वास्थ्य, दोनों को ही नष्ट कर रहे है l नौकरी हमें स्वाभिमानपूर्ण गुणों से हटा कर पराश्रित कर रही है l पुराने ज़माने मै नौकरी निक्रिस्ट काम माना जाता था l
"उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान "
लेकिन विदेशी कम्पनियां बड़े-बड़े पैकेज की ओर आकर्षित कर हमरे युवको को विदेश भेज रही है l हमारे युवको से रात-दिन काम करवाती है, उनका पारिवारिक, सामाजिक जीवन खत्म सा होता जा रहा है l उनमे स्नेह, अपनापन, संवेदनाएं, प्यार, सुख-दुःख बाँटने के लिए समय नहीं ? अब युवा पीढ़ी को समझना होगा l आज की पीढ़ी तर्क प्रधान है, हमारे कहने भर से नहीं मानेगी l उन्हें प्रमाण देकर समझाना होगा l सर्वे के द्वारा साछ्य व प्रमाण एकत्रित कर युवाओ के समछ तथ्य रखने होंगे l
इन सबके लिए सामाजिक मंचो को एक दिशा में एक लछ्य बनाकर संगठित होकर चलना होगा l एक विचारधारा में बंधकर समाज व सामाजिक विचारधारा को बचाने की ओर आगे बढ़ना होगा नहीं तो --
*हमारे बड़े-बड़े उद्योगों का क्या होगा ?
*हमारे बड़े-बड़े माहेश्वरी भवनों का क्या होगा ?
*हमारे बड़े-बड़े ट्रस्टो का क्या होगा ?
*हमारी 125 साल पुराणी महासभा ?
*हमारे श्रंखलाबध्द सामाजिक संगठनो का क्या होगा ?
*हमारी महिला संगठन व युवा संगठन ?
*सम्पन्नता संस्कारिता का क्या होगा ?
*जिसके लिए आज मेहनत कर रहे है, कल अनाम बन जायेंगे l इन सबका क्या भविष्य होगा ?
आज हमें संकल्प लेना होगा l "आवो मिलकर साथ चले"
समाज की चिंता रखें, चिंतन करें l युवा पीढ़ी का आहवान करें l मानव जीवन का लछ्य सिर्फ धनार्जन व व्यक्तिगत सुख ही नहीं है, बल्कि राष्ट्र हित व समाज हित सर्वोपरि है l हम सर्वश्रेष्ठ है, अतः आईये हम सर्वश्रेष्ठ प्रति की ओर अग्रसर होवें l
मै श्याम सुन्दर चांडक सभी प्रान्तों की 'महासभा', 'जिलासभा' व संगठनो से अनुरोध करता हूँ की उपरोक्त बातो पर गौर करके उचित आयोजन किये जाये ताकि आने वाला समय 'नवयुवको' का मार्ग 'पथ-प्रदर्शित' करता रहे l जय महेश.....जय माहेश्वरी l

एक नजर इस पर भी....

1947 में
हिंदू - 33 करोड (94%)
मुस्लिम - 3 करोड (5%)
अन्य - 1 करोड (1% )

2008 में
हिंदू – 82 करोड (75%) 61 साल में 249% वृद्धि दर @ 4.07% प्रति वर्ष
मुस्लिम - 25 करोड (23%) 61 साल में 833% वृद्धि दर @13.7% प्रति वर्ष
अन्य (ईसाई) - 3 करोड (2%)

2035 में स्थिति होगी:
मुस्लिम - 92.5 करोड (46.8%)
हिंदू - 90.2 करोड (45.6 %) वह भी तब जबकि एक व्यक्ति ने भी धर्म परिवर्तन नहीं किया हो
अन्य - 7.6 करोड (7.6% )

2040 से सभी हिंदू समारोह को बंद कर दिया जाएगा

2050 में स्थिति होगी:
मुस्लिम - 189.62 करोड (64%) भारत इस्लामी देश घोषित किया जाएगा
हिंदू - 95.7 करोड (32.3%)
अन्य -10.7 करोड (3.6%)




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बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार.......


बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार.......

बजरंग बाण के बारे में कुछ विचार प्रचलित है कि इसका प्रयोग तभी करना चाहिए जब आप को और कोई भी उपाय नहीं समझ नहीं आ रहा हो और आप दुखों की पराकाष्ठा पार कर चुके हो...... क्योंकि इसमे श्री राम की सौगंध लगती है हनुमानजी को... .... क्या इसमे कुछ तथ्य है....????


एक वीतरागी सन्त महाराज ने बताया था कि बजरंग बाण के पाठ से कार्यसिद्धि तो हो जाती है परन्तु राम जी की दुह
ाई से हनुमान जी महाराज बहुत व्यथित होते हैँ, इसलिये इस पाठ को नहीँ करना चाहिये ।
सच्चा सेवक वही है जो अपने स्वामी को सँकोच में न डाले ।

सीता राम चरित अति पावन l मधुर सरस अरु अति मनभावन | |
जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ।।
नाना भाँति राम अवतारा । रामायन सत कोटि अपारा ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।

बजरंग बाण :-
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग.....

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।
जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।
गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
बजरंग बाण ध्यान.....

श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

*****बोल बजरंग बली की जय*****



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प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं

एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।”
शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया।
... औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा।
संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।”
“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।
उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”
लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा।
औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?”
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं

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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

भगवान शिव ने पार्वति के इच्छा करने पर भी पार्वती को लंका नहीं दी | क्यों ?


भगवान शिव ने पार्वति के इच्छा करने पर भी पार्वती को लंका नहीं दी | क्यों ?
माँ पार्वती ने भव्य स्वर्ण महल में रहने के लिए महादेव से कहा | महादेव ने मना कर दिया तो पार्वती जिद पर आ गयी | महादेव ने पार्वती को सत प्रेमज्ञान देने के लिए स्वर्ण लंका बनाई तथा नए घर का पूजन कर्मकंडी ब्राहमण रावन से करवाया | रावन ने दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया शिव ने लंका अपने भक्त और ब्राह्मन देव को पूजन की दक्षिणा में लंका दे दि | शिव के पास जाकर शिव(कल्याण/सनातन) को मांगने के बजाय लंका(पतन/आधुतन) को मांग  बैठा | रावन उस स्वर्णिम लंका को पाकर अभिमानी और घमंडी  होता गया | आत्म ज्ञान को ढक अज्ञान का धुवा छाने लगा | अपने मान के घमंड(अहम) में अपनी बहन सूर्पनखा की बात का सत्य बिना जाने अन्याय युक्त हो अज्ञानता वश शिव के आराद्य श्री राम की भार्या सीता का हरण कर बैठा | वो माँ महा माया (लक्ष्मी) उसके पुरे आधुतन(विदेशी-राक्षस संस्कृति और उस अधर्म) सहित कुल अहम् के नाश का कारण बनी और पार्वती शिव सनातन बने रह गए | पार्वती (काली/महा शक्ति) को लंका में सीता (सतधर्म) की सेवा(रक्षi) करने का मोका मिला | 
रावन का प्रेम वेलन की तरह टाइन व्यक्तित्व से हट कर भोतिक पदार्थ में चला गया, जो उनके कुल प्रेम के नाश का कारण बना | अत: वो प्रेम न रह कर पतन कारक मोह, मद, घमंड बन गया |
माँ पार्वती को शिव ने स्वयं (आत्म- परमात्म) प्रेम में रखा | यदि लंका पार्वती को देते तो पार्वती और शिव में घमंड आ जाता तथा पार्वती भी रावन की तरह शिव-पति धर्म से विमुख हो भोतिक मोह, इर्ष्या, मद, अज्ञान को प्राप्त हो परमात्मीय और सत गुण खो देती | प्रेम का व्यक्ति भाव न रह कर वास्तु-पद भाव हो जाता | जो उनके सत प्रेम का नाश कर असत उत्पन करता | अत: परम शक्ति भटके तो शिव(कल्याण) धर्म सनातन जाग्रत कर सत(श्रेष्ठता) को दिलाते है और पार्वती सदा शिव को सनातन शक्ति प्रदान कर शव से शिव बनाती है | इसलिए हम भी अपने राम-शिव की तरह इस वेलनटाइन (राक्षसधर्म/अधर्म/विदेशी संस्कृति/भौतिक अर्थात झूठेप्रेम ) को पसंद नहीं करते | बल्कि सनातन धर्म ज्ञान(अमर कथा) देकर शिव ने पार्वति को अमर कर दिया , सभी की  अजर-अमर माता बना दिया 

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