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रविवार, 12 अगस्त 2012

भारत को ‘इंडिया’ में बदलने के कुप्रयास अब तीव्रता के साथ सफल हो रहे हैं।

भारत को बदलने के षडयंत्र

हमारे देश में नये त्योहारों को लाया जा रहा है। टीचर्स डे, फादर डे, फ्रेंड्स डे, मदर डे आदि डे बनाने की एक शृंखला बनायी जा रही है। कोई पता नहीं कि कहां से इनका निर्धारण व संचालन होता है, तिथियां निश्चित की जाती हैं

पहले लुप्त हुये देवनागरी अंक

भारत को ‘इंडिया’ में बदलने के कुप्रयास अब तीव्रता के साथ सफल हो रहे हैं। इस बदलने के क्रम में मात्र संस्कृति ही निशाने पर नहीं है, बल्कि हमारी भाषा, त्योहार, खान-पान, पहनावा, सोच, पारिवारिक संबंध भी हैं। भारत जब स्वतंत्र हुआ, तभी से इन षडयंत्रों का आरम्भ होना प्रारम्भ हो गया था। भारत की राजनीति में षडयंत्र कैसे-कैसे चलते हैं, इसकी कल्पना करना कठिन तो अवश्य है लेकिन असंभव नहीं है। मैंने स्वतंत्रता से पूर्व की ऐसी कई पत्र-पत्रिकाएं देखी हैं जो हिन्दी पढ़ने के लिये रोमन लिपि में थीं। जब भारत के संविधान के बनने का समय आया, तब भी रोमन लिपि की लाबी इतनी शक्तिशाली थी कि राजभाषा में अंक मात्र देवनागरी में न होकर मात्र रोमन लिपि में ही लिखे जायें, यह प्रावधान संविधान में दर्ज करवाने में सफल हो गयी।
अब देवनागरी लिपि की बारी
आज देवनागरी के अंकों को लिखना तो दूर, आम लोग तो इसे बोल भी नहीं पाते। पहले सप्ताह के दिन और देसी मास के नामों का हिन्दी में प्रचलन था, पर अब बोलने पर विशेष रूप में नव पीढ़ी के लिये इन्हें समझना तक कठिन है। पत्र लिखने की परंपरा समाप्त हो रही है, अब इसका स्थान एसएमएस और ई-मेल ने ले लिया है। विश्व के सभी देशों में एसएमएस और ई-मेल के लिये वहां की राष्ट्रभाषा का प्रयोग होता है, लेकिन हमारे देश में अभी तक मोबाइल फोन के लिये सूचना और संचार मंत्रालय ने देवनागरी भाषा का मानकीकरण नहीं किया, जिसे अनिवार्य रूप से सभी मोबाइल कंपनियों को लागू करने के लिये कहा जाये। इस कार्य में हो रही देरी का परिणाम यह है कि लोगों को विवश होकर रोमन लिपि में ही अपनी भाषा के संदेश भेजने पड़ते हैं, जिन्हें पढ़ना कठिन होता है। इंटरनेट पर अभी तक सरकारी नोटिफिकेशन के निकलने के पश्चात 20 वर्ष हो गये, पर ऐसा देवनागरी संस्करण नहीं बना पाये, जबकि देवनागरी लिपि के माध्यम से भारतीय भाषाओं को ही नहीं, बल्कि श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार (पूर्व का बर्मा), इंडोनेशिया, मलेशिया देशों की लिपि को भी देवनागरी पर आधारित होने के कारण जोड़ा जा सकता है, जिससे एक भाषा से दूसरी भाषा का भाषांतरण होना सहज और सरल हो जायेगा। लेकिन पिछले 20 वर्षों में एक नई पीढ़ी अंग्रेजी न जानने के बावजूद भी रोमन लिपि में संदेश भेजने में अभ्यस्त हो चुकी है। धीरे-धीरे देवनागरी लिपि उनके लिए लिखना एकदम असंभव और पढ़ना कठिन हो जायेगा। मान लिया जाये कि अगर यही क्रम बना रहा तो देवनागरी लिपि भी देवनागरी के अंकों की भांति हमारे देश से सदैव के लिये विदा हो जायेगी।

त्योहार/भारतीय अस्मिता भी निशाने पर
अब धीरे-धीरे भारतीय त्योहारों को समाप्त किया जा रहा है और उनके स्थान पर नये-नये अंग्रेजी त्योहारों को लाया जा रहा है। यही स्थिति हमारी वेशभूषा की है। पहले पुरुषों ने पैंट/पतलून और कमीज पहननी आरंभ की, लेकिन भारतीय नारी ने अपनी भारतीयता गौरवमयी ढंग से बना कर रखी। अब जिस वेशभूषा को पहन कर घर के पुरुष भी शर्म महसूस करते हैं, घर की लड़कियां विद्यालयों और महाविद्यालयों में रूटीन में पहन कर जाती हैं कि देखने वाले की ही नजर शर्म से झुक जाये। शालीनता, शर्म और लाज जैसे शब्द सभ्य समाज के गुण हैं। ‘मदर इंडिया’ फिल्म का एक गाना था- ‘संसार में लाज ही नारी का धर्म है, जिन्दा है जो वो इज्जत से मरेगा।’ अब सुनने को मिलता है- ‘सैक्सी-सैक्सी मुझे लोग कहें….।’ जैसे कि वो बाजार में कोई बिकने वाली वस्तु हो। इसी तरह फास्ट-फूड लोगों के शरीर में विष घोल रहा है। लोग इसे समझ भी रहे हैं, लेकिन मार्केटिंग की आंधी में अपने को इससे बचा नहीं पा रहे हैं।
हमारे देश में नये त्योहारों को लाया जा रहा है। टीचर्स डे, फादर डे, प्रफेंड्स डे, मदर डे आदि डे बनाने की एक शृंखला बनायी जा रही है। कोई पता नहीं कि कहां से इनका निर्धारण व संचालन होता है, तिथियां निश्चित की जाती हैं। मीडिया में तुरन्त इन डे-त्योहारों का धुआंधार प्रचार किया जाता है और देखते-देखते युवा पीढ़ी पर ये पश्चिम प्रेरित त्योहार छा जाते हैं। भारतीय त्योहारों में जो पवित्रता होती है, वह इन त्योहारों में नहीं दिखती।
वास्तव में तर्कों और कुतर्कों की कमी नहीं है। कहा जाता है कि यह आधुनिकता है। क्या पश्चिम की नकल करने को आधुनिकता कहा जाना उचित है? अगर आधुनिकता दिन-ब-दिन विकसित हो रहे आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती है तो उसे अपनाने में कोई कठिनाई नहीं है। पर यहां तो इस पश्चिमी आधुनिकता से एड्स जैसे रोग समाज में पनप रहे हैं।

आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर
हमारी भाषा में हमारी संस्कृति छिपी है। आज से 40 वर्ष पूर्व योग जानने वाले लोग कितने थे? संस्कृत ने विश्व को योग, प्राणायाम और आयुर्वेद दिये। इसी कड़ी में नाड़ी विज्ञान भी है। मात्र नाड़ी की चाल से किसी भी रोग व शरीर की दशा को बिना किसी एक्सरे या स्कैन के बिना समय खोये जाना जा सकता है। हमारे त्योहार मौसम, जलवायु और सामाजिक आश्यकताओं को पूरा करते हैं। सामाजिक समरसता को पैदा करते हैं। हां, समय के अनुसार उसमें परिवर्तन भी किये जा रहे हैं जो उसे आधुनिक बनाते हैं। जीवन शैली को आधुनिक बनाने का अर्थ यह नहीं है कि पश्चिम की आंख बंद करके नकल की जाये। आज पश्चिमी देशों की गली-गली में भारतीय जीवन पध्दति को अपनाया जा रहा है। न्यूयार्क स्कायर की सड़कों पर योग हो रहा है। पश्चिम भारत के विज्ञान को अपना रहा है और हम उसका सड़ा-गला खाने में भी नहीं हिचकचा रहे हैं।
आशा की किरण
इस षडयंत्र में भारत का मीडिया मार्केट के दलालों के साथ बुरी तरह से मिला हुआ है व उनके पैरोकार भारत की राजनीति में जगह-जगह पर देखे जा सकते हैं। फिर भी आशा की एक किरण है- जिस प्रकार पश्चिम ने अपने पैदा किये हुये भस्मासुर को समझा है और उससे निपट भी रहा है, शायद निकट भविष्य में हमारे देश के जनमानस को भी यह भस्मासुर समझ में आये।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

ये है बाबा रामदेव जी के बड़े भाई

ये है बाबा रामदेव जी के बड़े भाई के परिवार की सिर्फ कुछ महिने पुरानी तस्वीर देख सकते हैँ आज भी वो उसी स्थिति मे जहाँ पहले थे

अब उनके लिये जो कहते हैँ बाबा रामदेव ठग है

पिछले दिनों खबर आयी कि मुकेश अम्बानी अपने 5000 करोड़ के घर में शिफ्ट नही हो रहे कुछ वास्तु दोष रह गया है शायद  कमबख्त 5000 करोड़ रुपया खर्च के भी दोष रह गया 27 मंजिला घर बनवाया है
6 लोगों के रहने के लिए 168 कारें खड़ी हो सकती हैं 8 मंजिलें तो पार्किंग के  लिए है  कई सारे Swimming Pool
है Helipad है ऐसे लोगों को हमारे यहाँ धन पशु कहा जाता है  एक और धन पशु है दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नेता कँवर सिंह तंवर हाल ही में उन्होंने अपने बेटे की शादी की सुनते है की 10 दिन तक समारोह चला 18000
मेहमान थे लड़की वालों ने अपने रिश्तेदारों को BMW दे के विदा किया  दामाद को हेलिकोप्टर दिया दहेज़ मे
लड़के की हजामत बनाने वाले नाइ को ही ढाई लाख का गिफ्ट दिया सुनते है की 100 करोड़ से ज्यादा खर्च हो गया एक शादी मे पूरी दुनिया मे इस शादी के चर्चे रहे  RECEPTION मे सोनिया गांधी  शाहरूख खान और ऐश्वर्य राय जैसी हस्तियाँ पहुंची थी  रईस लोग आहें  भर रहे थे काश हम भी अपनी बिटिया ऐसे ही ब्याह पाते 
 
इन ख़बरों को पढ़ के याद  आया सोने की चिड़िया है हिन्दुस्तान पिछले  दिनो अपने दिग्गी राजा यांनी किमध्य प्रदेश की राघो गढ़ रियासत के राजा  अपने  दिग्विजय सिंह जी फरमा रहे थे की A , B , C ,  तीन टीमें थी RSS की , सो एक , यानी राम देव को तो कुचल दिया और बाकी को देख  लेंगे और ये तो वो हमेशा से बोलते आये हैं की बाबा नहीं ठग है चोर है  बिजनेस करता है हाथ पैर बाँध के नदीमें फेंक  देना चाहिए और न जाने क्या क्या . इसके  अलावा हमारा मीडिया भी अक्सर उनसे ये पूछता है हाय  इतनी सारी दौलत इतनाआआआआआ          सारा रुपया है आपके  पास इतनी सारी दवाईयाँ बेचते हैं  आप इतने बड़े बिजनेस मैन है , बड़ी गाडी में चलते हैं चार्टर प्लेन में उड़ते  हैं वगैरा वगैरा अब इतने दौलत मंद  आदमी इतने बड़े रईस से ईर्ष्या होना तो स्वाभाविक है  अब  चूँकि मैं पातंजलि योग पीठ से  जुड़ा हूँ वहाँ महीनों रहा हूँ वहाँ की एक एक चीज़ को गौर से बड़े नज़दीक से देखा है एक बात तो मैं  भी मानता हूँ बाबा है वाकई रईस इसमें कोई  शक नहीं लोग कहते हैं की आज से मात्र 18 साल पहले बाबा हरिद्वार की गलियों में  साइकिल पे चलता था बात सही है सुनते हैं  की एक बार बाबा ने एक पंसारी से हज़ार रु  की जड़ी बूटिया उधार मांगी थी और उसने  मना कर दिया था वही बाबा आज 1100 करोड़ का मालिक हो गया  फ़कीर था रईस हो गया बड़े नज़दीक से देखा है मैंने
बाबा को मीडिया को रईस दिखता होगा बाबा पर आज भी सचमुच फ़कीर  है  वो अलग बात है की बाबा ने मात्र 5-7 सालों में एक साम्राज्य खड़ा कर दिया है पर किसके लिए एक किस्सा सुनाता हूँ देश के  एक TOP BOXING COACH अपने 30 स्टुडेंट्स को ले कर पतंजलि आना चाहते थे योग  सीखने 6 दिन का शिविर लगाना चाहते थे उन्होंने मुझसे संपर्क  किया वो पूछने लगे क्या खर्च  आएगा मैंने कहा कुछ ख़ास नहीं 3 दिन यहाँ धर्मशाला में फ्री में रहने को मिलेगा बाकी तीन दिन का 50 रु के हिसाब से एक Bed का दे देना और बाकी भोजन पानी तो फ्री मिलता ही है तीनों समय सो उन्होंने हाँ भर दी मैं इस सम्बन्ध में आचार्य बाल कृष्ण जी से मिला पूरी बात बतायी वो बोले क्या बात करते हो राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी धर्मशाला में  रुकेंगे नहीं Residential Blocks में AC Rooms में रुकवाओ खिलाड़ी हैं इसलिए अलग से भोजन की विशेष व्यस्था करवाओ दूध घी मक्खन पनीर फल फ्रूट हर चीज़ की व्यस्था करो लाने के लिए  स्टेशन पे बस भेजो वो तीस खिलाड़ी 7 दिन वहाँ योग पीठ में रुके योगसीखा सबके Medical Chekup हुए एकदम फ्री आज योग पीठ में सैकड़ों हज़ारों लोग पूरे देश से आते है योग सीखने और इलाज कराने धर्मशाला है  वहाँ 3 दिन तक फ्री रुकने  की व्यस्था इसके बाद 50 रु Bed (ठलुए मुफ्त खोरों को रोकने के लिए) दिन रात फ्री लंगर चलता है इतना बड़ा आयुर्वेदिक
अस्पताल है फ्री सेवा जो लोग धर्मशाला में नहीं रुकना चाहते उनके लिए 150  से ले के 400 रु Bed तक की Cooler और AC रूम में सुविधा इसके अलावा जो दवाईयाँ वहाँ आश्रम में मिलतीं हैं उनकी कीमत बाज़ार में बिकने वाली अन्य ब्रांड्स से 75 % तक कम हैं यानी बेहद सस्ती इसके अलावा बाबा के सैकड़ों सेवा प्रकल्प चल रहे हैं कितने ही गुरुकुल आज बाबा के अनुदान और मदद से चल रहे हैं लाखों योग कक्षाएं पूरे देश में फ्री चल रही है

आज बाबा ने योग को घर घर पहुंचा दिया है परन्तु सारी संपत्ति ट्रस्ट की है जिसमे बाबा के अलावा उनके परिवार का एक भी सदस्य नहीं है उनके परिवार का एक भी कोई बैंक  खाता नहीं है उनके एक भाई वही हरिद्वार में काम देखते हैं और वेतन पाते हैं एक बड़े भाई गाँव में खेती करते हैं सुनते हैं  की पुट्टपर्ति में साईं बाबा के निजी कक्ष से 7 करोड़ रुपया और 35  किलो सोना मिला था बाबा के निजीकक्ष में गया हूँ मैं वहाँ 7 रु नहीं मिलेंगे चटाई बिछा के सोते हैं जमीन पे NON AC रूम में दो जोड़ी कपडे है खुद धोते हैं उबली हुई सब्जी और एक गिलास दूध यही भोजन है  बाबा कहते हैं मेरा क्या है सब आपका है आपके लिए है आपके पैसे से बना है  बाबा कौ कौन सी बिटिया ब्याहनी है जिसके 18000 बारातियों को पकवान खिलाने हैं दहेज़ में BMW
देनी हैअलबत्ता उन मुक्केबाज लड़कियों को देख के बोले ये मेरी बेटियाँ हैं इन्हें  ओलम्पिक के लिए तैयार करो कोई चिंता मत करना मैं हूँ ना एक फ़कीर ने हम आम हिन्दुस्तानियों के लिए  इतना कुछ बना दिया योग सिखा दिया पर मीडिया और नेता मुकेश अम्बानी और कँवर सिंह तंवर सारीखों का गुणगान करते है तलवे चाटते हैं बाबा को ठग और चोर बताते हैं ऐसे हैं हमारे परम पूजनीय स्वमी रामदेव जी जो देश के  लिए इतना कुछ कर रहे हैं आज इसलिए हम स्वामी जी के साथ हैं-भारत स्वाभिमान के एक सदस्य के शब्दोँ मेँ

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