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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

भारत में गोहत्या का सत्य-इतिहास,

भारत में गोहत्या का सत्य-इतिहास,


विकृत इतिहास पढ़कर हमारी धारणाए भी बधिर हो जाती है! स्वय के लिए अपमान क्या है और सन्मान जनक क्या है इसे जानने का विवेक हम खो बैठते है! पिछले ६५ वर्षों में गाँधी-नेहरु का भारत में सीधा शासन रहा! जिसके दौरान हमे असत्य हिंदु-निंदक इतिहास का विष पिलाया गया! जो सबसे गंदी गाली इस विकृत इतिहास के माध्यम से हमें गाँधी-नेहरुजी ने दी वो ये की भारतवासी १००० वर्ष मुस्लिम शासकों के गुलाम रहे! इस गाली को हमारे देश बंधू पिछले अनेक वर्षों से झेल रहे है! जिसका परिणाम ये हुआ की हम ऐसी गाली खा खा कर हम में आज आत्म ग्लानी (Lack of Self Confidence) की भावना उत्पन्न हुई है! अच्छे बुरे की सुध बुध भी खो बैठे है! ये हिंदु-निंदक नेहरु शासन द्वारा फैलाया गया विष कैसे हमरी सोचने की शक्ति को नष्ट करता है इसका एक जीता जगता उदाहरण हम देखते है!
स्वर्गीय राजीव दीक्षित को कौन नहीं जानता! उनके गौउ रक्षा पर अनेक व्याख्यान हुए है! इस व्याख्यान में जो जानकारी बताई गयी है, दुर्भाग्यवष वो अर्ध सत्य है! श्री. राजीवजी बताते है की भारत में गोहत्या का आरंभ ब्रिटिश शासको द्वारा शुरू हुआ! उससे पहले संपूर्ण भारत में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध था! ब्रिटिश-राज आरंभ होने से पहले मुघल या मुस्लिम सत्ता में गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध था! यह एक आश्चर्यजनक विरोधाभास है! यह एक जीवित इतिहास है की भारत में १०,००० से अधिक भव्य मंदिर इस्लामी शासन काल में ध्वस्त किये गए! इस प्रत्येक मंदिर को तोड़ने से पहले, इस्लामी आक्रामक गाय की हत्या करके मंदिर की पवित्रता भंग करते थे! फिर उन पुजारियों की हत्या करके सारे मंदिर को ध्वस्त करके उस वास्तु का रूपांतर मस्जिद में किया जताता था! श्री.राजीव दीक्षित ने जिस ब्रिटिश प्रमाण पत्रों का संदर्भा दिया है उसमे स्पष्ट लिखा है, की ब्रिटिश सत्ता भारत में आरंभा होने से पहले गोहत्या पर संपूर्ण प्रतिबन्ध था!

यह शत प्रतिशत सत्य है, किन्तु उससे भी बड़ा सत्य यह है की भारत में ब्रिटिश सत्ता आने से पूर्व (इ.स. १८२०), सरे भारत में से मुस्लिम सत्ता लगभग १५० वर्ष पहले नष्ट हो चुकी थी! ब्रिटिश सेनाओको भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए जितने भी भीषण युद्ध लड़ने पड़े वह सरे एक शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य से लड़ने पड़े, यह महत्वपूर्ण बात श्री. राजीवजी कहने में भूल गए! यह पराक्रमी हिन्दू साम्राज्य था छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापन किया गया हिन्दवी स्वराज्य! संपूर्ण उत्तर भारत (इसमें आज का सारा पाकिस्तान और अफगानिस्तान का बहुत बड़ा भाग आता था) मराठा और सीख जैसे हिन्दू साम्राज्यों की सत्ता में था! इन महा पराक्रमी हिन्दू साम्राज्यों के कारण भारत में अंग्रेजो से पहले समृधि और गोहत्या पर संपूर्ण प्रतिबन्ध था! भारतीयों की इस पराक्रमी इतिहास को हमें स्वाभिमानपूर्वक स्वीकारना चाहिए! इन शक्तिशाली हिन्दू शासन के चलते ही भारत में स्त्रियों को वेश्या बनाना अंग्रेज़ आने से पहले नहीं था!
जिस असुरी इच्छा से इस्लामी आक्रमको ने देव, धर्मं, स्त्री और गोमाता का नाश किया वहा भारत के इतिहास का सबसे भयानक कला अध्याय है! यदी छत्रपति शिवाजी ने इस्लामी सत्ता को आवाहन न दिया होता [शिवाजी महाराज की मृत्य के उपरांत मराठा सेनाओ ने १७१८ में दिल्ली जित कर मोगल सत्ता उत्तर भारत से नष्ट कर दी, इतना ही नहीं इस घटना के २ वर्ष उपरांत हिन्दू मराठा सेनापति रघुनाथ राव पेशवा ने लाहोर, पेशवर से अटक (जो अफगानिस्तान का द्वार है) तक का भारत इस्लामी सत्ता से मुक्त करके लाल किल्ले पर भगवा फहराया] तो आज भारत अपनी संस्कृती समेत नष्ट हो चुका होता (कभी ना भुलो ३५० वर्ष पुर्व कवी भुषण की पंक्तिया “काशीहु की कला जाती माथुरा मस्जिद बन जाती न होते शेर शिवाजी तो सुन्नत होती सबकी”)! शुरवीर हिन्दू-सीख महाराजा रंणजित सिंह ने तो काबुल कंधार पर विजय प्राप्त कर ८०० वर्ष की मुस्लिम सत्ता को उखाड फेका!

यदि ये दो पराक्रमी हिन्दू सत्ता न होती तो समस्त भारत में नाम के लिए भी कोई भारतीय / हिन्दू न बचता न कोई गोमाता बचती! इस सत्य का जगता प्रमाण है कवी भूषण की लिखी हुई शिव बावनी!

तेज तमा अंस पर !कान्हा जिमि कंस पर!
त्यों म्लेंच्छ बंस पर! शेर शिवराज है !!
इसका अर्थ है जिस प्रकार भगवन श्री कृष्ण कंस पर आरूढ़ हो कर उसका वध करते है,
उसे प्रकार शेर शिवराज सारे मल्लेच्छ सुल्तानों के वंश का अकेले संहार करते है!



हमें इस ऐतिहासिक सत्य को अब स्वीकारना चाहिए की भारत में हिन्दू सत्ता होने के कारण गोहत्या अंग्रेज आने से पहले भारत में बंद हो चुकी थी! और कसियो को गोरक्षा का प्रमाण पत्र देना अब हमें बंद करना चाहिए!

"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

क्या आप जानते हैं ??
"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

शायद आजादी के इतने साल बाद भी किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि आजादी के बाद बाबा साहिब अंबेडकर का सिर्फ एक सपना आरक्षण भी जो १० साल में पूरा होना था अब तक नहीं कर पाए, बस उसको वोट बेंक का आधार बनाकर रख दिया।
अशोक चिन्ह लेकर वे अशोक की तरह का शासन देने का सपना पाले हुए थे, जिसको हमारे नेताओ
ने पूरा करने की पहल तक नहीं की।

१. अशोक के शासन की तरह से राज्य की सड़कों के दोनों ओर फलदार पेड़ लगाये जाए (पर वृक्षारोपण में बेकार पेड़ लगाये गए जिनका प्रयोग इमारती लकड़ी में भी नहीं होता और
ना किसी प्रकार के पशुओं के चारे में इस्तेमाल होता क्यों ?)
२. अशोक ने अपने राज्य में जगह जगह पर रुकने के सराय बनवाई थी। (और हमारी सरकारों ने उस ओर क्या ध्यान दिया ? सभी को मालूम है कि सरकारी गेस्ट हॉउस किस के लिए हैं और वहां पर क्या होता है ?)
३. अशोक के राज्य में सभी कत्लगाहों को बंद कर दिया था। ( क्योंकि उसके स्थान पर पूर्ति फलो से हो जाती थी, ये तो मुगलों के आने बाद आरम्भ हुए थे जिसको ब्रिटिश के आने बाद भी चालू रखा गया था और आज भी चालू है जिसे बाबा साहिब बंद करना चाहते थे।)
४. अशोक के राज्य में जगह जगह पर शुद्ध पानी के प्याऊ लगवाये गए थे यहाँ तक प्रत्येक गाव में कुएँ खुदवाए गए थे। (आजादी के बाद कुएँ सिर्फ कागजो पर खोदे गए थे) क्यों कुछ गलत है क्या ?

अब अशोक चिन्ह राष्ट्रीय प्रतीक रखकर भारत सरकार ये काम ना करके क्या अशोक चिन्ह का अपमान नहीं कर रही है ? क्या इस चिन्ह को रखने का अधिकार है ? क्या ये हमारा अपमान नहीं है क्या ? क्या ये इस देश के संविधान के निर्माता का जो उन्होंने चिन्ह को अपनाया है उसका अपमान नहीं है ?
यह आप सबको फैसला करना है कि गलती अगर होती है तो उसका सुधार भी होता है, पर कब जब समय निकल जाये तब .....!!

[चाणक्य शर्मा]

जय हिन्द, जय भारत !
वन्दे मातरम्

भारत माता की आजादी का नायक - बालक भगत सिंह

आज से लगभग सौ वर्ष पहले लायपुर जिले के गांव वंगा में एक हिन्दू-सिख कुटुम्ब रहता था।यह कुटुम्ब अपनी देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध था। गांव के लोग इस कुटुम्ब का बड़ा आदर करते थे।
कुटुम्ब में तीन भाई थे— सरदार किशन सिंह जी,सरदार स्वर्ण सिंह जी और सरदार अजीत सिंह जी। भारतविरोधी–हिन् दू विरोधी अंग्रेज सरकार ने तीनों भाईय़ों को देशभक्ति के अपराध में जेल भेजदिया था। इनमें से अजीत सिंह जी को काले पानी की सजा द
ी गई थी।
घर में किशन सिंह जी की मां जी और पत्नी को छोड़कर और कोई नहीं था।
1907 ई. के सितम्बर माह में किशन जी की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया ।
बालक देखने में शुन्दर था हष्टपुष्ट था ।
बालक के जन्म लेने से घर में हर्ष और उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। गाना-बजाना होने लगा। गांव के लोगकिशन सिंह जी की मां जी को बधाईयां देने आने लगे।
जिस समय किशन जी के घर में गाने बजाने का क्रम चल रहा था उसी समय वे जेल से छूटकर आ गये। उनके आने से हर्ष और उत्साह में पंख लग गये। किशन जी की मां की खुशी का तोकहना ही क्या था। मां तो खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। मां जी के मुख से निकल पड़ा “ये लडका तो बड़े भागों वाला है । इसके पैदा होते ही इसके पिता जेल से छूट कर आ गये।”
किशन सिंह जी की मां ने इस बालक कानाम भगत सिंह रखा। यही बालक भगत सिंह वे अमर शहीद भगत सिंह जी हैं,जिन्होंने अपनी देशभक्ति से मातृभूमि का मस्तक ऊँचा करने के लिए सर्वोत्तम वलिदान दिया था।
भगत सिंह का लालन-पालन बड़े प्यारसे हुआ। घर में सब लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे। ये चंचल बालकहमेशा हंसता रहता था।
भगत सिंह ज्यों-ज्यों उमर की सीढ़ियां चढ़ने लगे ,त्यों-त्यों उनकी सुन्दरता निखरने लगी, उनकी चंचलता में पंख लगने लगे। जब वे कुछ और बड़े हुए, तो संगी साथियों के साथ खेलने लगे।
बालक भगत सिंह साथियों को दो दलोंमें बाँट दिया करते थे और बीरता के खेल खेला करते थे।
भगत सिंह का कुटुम्ब बड़ा धार्मिक था। घर में भजन और कीर्तनप्राय प्रतिदिन हुआ करते था। बालक भगत सिंह बड़े प्रेम से भजन और कीर्तन सुना करते थे। उन्होंने सुन करके ही बहुत से गीतयाद कर लिए थे। वे अपने पिता जी कोबड़े प्रेम से गायत्री मन्त्र सुनाया करते थे।
एक दिन भगत सिंह के पिता जी अपने मित्र के घर गये। आनन्द किशोर जी बड़े देशभक्त थे। उन्होंने बालक भगत सिंह से पूछा “तुम कौन सा काम करते हो?”
बालक भगत सिंह ने उतर दिया “मैं बंदूकें बनाता हूं।”
आनन्द किशोर जी ने पुन: दूसरा प्रश्न किया “तुम बन्दूकें क्यों बनाते हो?”
बालक ने सहज भाव से उतर दिया “मैं बन्दूकों से भारत मां को स्वतन्त्र करूँगा”
आनन्द किशोर बालक भगत सिंह के उतर से बड़े प्रसन्न हुए।उन्होंने उनके पिता से कहा “तुम बड़े भाग्यशाली हो। तुम्हारा यह पुत्र अपने साहस और अपनी बीरता से तुम्हारे पूर्बजों का नाम उज्जल करेगा।”
आनन्द किशोर जी की कही हुई बात सत्य सिद्ध हुई। भगत सिंह ने बड़े होकर अपने साहस और वीरता से सिर्फ अपने पूर्बजों का ही नहीं वल्कि सारे देश का मुख उज्जवल किया।
दूसरी वार बालक भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत पर गये। खेत में हल चल रहा था।
बालक भगत सिंह ने अपने पिता से पूछा, “पिता जी ,यह क्या हो रहा है?”
पिता ने उतर दिया,“खेत में हल चला रहा है। खेत की जुताई हो रही है। जुताई के बाद खेत में गेहूं के बीज बोये जायेंगे।”
बालक भगत सिंह ने सहज भाव से कहा, “पिता जी आप पिस्तौलों और बन्दूकों की खेती क्यों नहीं करते, आप गेहूं के बीज न वोकर, बन्दूकों के बीज क्यों नहीं बोते?”
पिता जी आश्चर्यचकित होकर बालक भगत सिंह के मुख की ओर देखने लगे। उन्हें क्या मालूम था कि उनका यह बालक बड़ा होने पर सचमुच बन्दूंकों की खेती करेगा।
सचमुच बन्दूकों और पिस्तौलों के बल पर आक्रमणकारी अंग्रेज लुटेरों के अन्दर दहशत पैदा कर भारत माता की आजादी का नायक बनेगा।

लड़कियां पायल क्यों पहनती हैं?

लड़कियां पायल क्यों पहनती हैं?
छम... छम... छम... पायल की ऐसी आवाज किसी के भी मन बरबस ही लुभा लेती है। जब कोई लड़की पायल पहनकर चलती है तो उससे निकलने वाला मधुर स्वर किसी संगीत से कम प्रतीत नहीं होता। सामान्यत: सभी लड़कियां पायल पहनती हैं। विवाहित महिलाओं के लिए तो यह आवश्यक होता है कि वे पायल पहनें।
महिलाओं के लिए पायल पहनना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं।
पायल महिलाओं के
सोलह श्रंगार में अहम भूमिका निभाती है। पायल पहनने के पीछे यह वजह है कि प्राचीन काल में महिलाओं को पायल एक संकेत मात्र के लिए पहनाई जाती थी। जब घर के सभी सदस्य एक साथ बैठे होते थे तब यदि कोई पायल पहनी स्त्री वहां आती थी तो उसकी छम-छम आवाज से सभी को अंदाजा हो जाता कि कोई महिला उनकी ओर आ रही है। जिससे वे सभी व्यवस्थित रूप से आने वाली महिला का स्वागत कर सके, उसे सम्मान दे सके।
पायल की छम-छम अन्य लोगों के लिए एक इशारा ही है, इसकी आवाज से सभी को यह एहसास हो जाता है कि कोई महिला उनके आसपास है अत: वे शालीन और सभ्य व्यवहार करें। स्त्री के सामने किसी तरह की कोई अभद्रता ना हो जाए। ऐसी सारी बातों को ध्यान में रखते हुए लड़कियों के पायल पहनने की परंपरा लागू की गई। साथ ही पायल की आवाज से घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है और दैवीय शक्तियों सक्रीय रहती है।
पुराने समय में विवाह के बाद पति के घर में बहु के आने के लिए पूरी स्वतंत्रता नहीं रहती थी। साथ ही वह किसी से खुलकर बात नहीं कर पाती थी। ऐसे में जब वह घर में कही आती-जाती तो बिना उसके बताए भी पायल की छम-छम से सभी सदस्य समझ जाते थे कि उनकी बहु वहां आ रही है।
पायल की धातु हमेश पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मजबूती मिलती है। साथ ही पायल पहनने से स्त्रियों का आकर्षण कहीं अधिक बढ़ जाता है।

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