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सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीपावली की रात इन 7 स्थानों पर दीपक लगाना न भूलें...

दीपावली की रात इन 7 स्थानों पर दीपक लगाना न भूलें...

दीपावली की रात महादेवी लक्ष्मी को मनाने का सबसे अच्छा समय रहता है। शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि दीपावली की रात में कुछ विशेष स्थानों पर दीपक लगाने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यहां जानिए दिवाली की रात को कहां-कहां दीपक लगाना चाहिए। जिससे आपकी पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।
शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि
दीपावली रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। अत: इस रात को देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं।

1. धन प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।
2. घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक बुझना नहीं चाहिए।
3. हमारे घर के आसपास वाले चौराहे पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने पर पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।
4. घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
5.किसी बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय वृक्ष है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।
6. घर के आसपास जो भी मंदिर हो वहां रात के समय दीपक अवश्य लगाएं।
7.पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक अवश्य लगाकर आएं। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएंगी।::::::

श्री हनुमान का यह रूप है – पंचमुखी हनुमान।


श्री हनुमान का यह रूप है – पंचमुखी हनुमान।

मान्यता के अनुशार पंचमुखीहनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुवा हैं। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं।
पंचमुखीहनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं। रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
रामायण के अनुसार श्री हनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊ‌र्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं।
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं। जिसकी प्रभा करोडों सूर्यो के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं। जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं।
हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है। इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। है।
हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है। जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
श्री हनुमान का ऊ‌र्ध्वमुख घोडे के समान हैं। हनुमानजी का यह स्वरुप ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर प्रकट हुआ था। मान्यता है कि हयग्रीवदैत्य का संहार करने के लिए वे अवतरित हुए। कष्ट में पडे भक्तों को वे शरण देते हैं। ऐसे पांच मुंह वाले रुद्र कहलाने वाले हनुमान बडे कृपालु और दयालु हैं।
हनुमतमहाकाव्य में पंचमुखीहनुमान के बारे में एक कथा हैं।
एक बार पांच मुंह वाला एक भयानक राक्षस प्रकट हुआ। उसने तपस्या करके ब्रह्माजीसे वरदान पाया कि मेरे रूप जैसा ही कोई व्यक्ति मुझे मार सके। ऐसा वरदान प्राप्त करके वह समग्र लोक में भयंकर उत्पात मचाने लगा। सभी देवताओं ने भगवान से इस कष्ट से छुटकारा मिलने की प्रार्थना की। तब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने वानर, नरसिंह, गरुड, अश्व और शूकर का पंचमुख स्वरूप धारण किया। इस लिये एसी मान्यता है कि पंचमुखीहनुमान की पूजा-अर्चना से सभी देवताओं की उपासना के समान फल मिलता है। हनुमान के पांचों मुखों में तीन-तीन सुंदर आंखें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक तीनों तापों को छुडाने वाली हैं। ये मनुष्य के सभी विकारों को दूर करने वाले माने जाते हैं।
भक्त को शत्रुओं का नाश करने वाले हनुमानजी का हमेशा स्मरण करना चाहिए।
विद्वानो के मत से पंचमुखी हनुमानजी की उपासना से जाने-अनजाने किए गए सभी बुरे कर्म एवं चिंतन के दोषों से मुक्ति प्रदान करने वाला हैं।
पांच मुख वाले हनुमानजी की प्रतिमा धार्मिक और तंत्र शास्त्रों में भी बहुत ही चमत्कारिक फलदायी मानी गई है

आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.

एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.

फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.

“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? “ और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.

“ क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक बार फिर हाथ उठने शुरू हो गए.

“ दोस्तों , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.

जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.

कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”

"साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" ने मिलकर फेसबुक के मध्यम से दिया अनाथ बच्चो को सहारा



"साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" ने मिलकर फेसबुक के मध्यम से दिया अनाथ बच्चो को सहारा

"साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" के संचालकों द्वारा दीवाली मनाने के लिए पटाखो मे खर्च किए जाने वाले पैसे को ग़रीबो ओर जरुरत्मन्दो के लिए ज़रूरी सामान व मिठाइया वितरित कर मनाने की नई परंपरा शुरू करने का अभियान चलाया जा रहा है इसी दौरान फ़ेसबुक के रमेश शारदा द्वारा "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" के संचालकों को पिता के कैंसरग्रस्त होने के बाद छोटे भाई-बहनों सहित परिवार को पालने के लिए भीख मांगने को विवश हुई बारह साल की अंजलि की खबर फ़ेसबुक पर बताया जिसमे पहले से ही इस कार्य के लिए एक हुए "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" के संचालकों ने खबर के आधार पर पढ़ी तो स्वाति जैसलमेरिया व कैलाश लढा ने पता लगाकर उसकी मदद करने करने लिए स्वाती जैसलमेरिया ने स्वयं जाकर अंजलि के परिवार को सांत्वना दी ओर तत्काल राशन की सामग्री/कपड़े/ स्कूल बेग/ स्कूल ड्रेस आदि ले जाकर उसे सहारा देने के लिए जिला कलेक्टर से मिलकर उसे आर्थिक सहयता दिलवाने को कहा तथा फ़ेसबुक पर लोगो से अपील की | उसी दिन स्वाती जी ने स्वयं अंजलि ओर उसकी बहिन को लेजाकर पास के ही प्राइवेट स्कूल मे शुल्क जमा करवाकर उसकी शिक्षा का प्रबंध भी कर दिया|
अंजलि के सिर पर अब पिता का साया तो नहीं रहा लेकिन देश-विदेश से सैकड़ों हाथ उसकी मदद के लिए आगे आए हैं।देश के कई हिस्सों से अंजलि को शिक्षा व आर्थिक मदद पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया मदद मिलने से अब अंजलि के चेहरे पर खुशी के साथ इस बात का सुकून है कि उसके परिवार का बेहतर पालन हो सकेगा।
"साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" ग्रूप का प्रथम प्रयास सफल हुआ

इसके साथ ही "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" के संचालक स्वाति जैसलमेरिया, कैलाश लढा, सोनू लढा, राज मालपानि, निलेश मंत्री, अमित चंद्रकांत कालांत्री व ने मिलकर दीवाली मनाने के लिए पटाखो मे खर्च किए जाने वाले पैसे को ग़रीबो ओर जरुरत्मन्दो के लिए ज़रूरी सामान व मिठाइया वितरित कर मनाने की नई परंपरा की शुरुआत जोधपुर से की|
जिसमे सोशल मीडिया फ़ेसबुक पर "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" सभी लोगो ने समर्थन किया ओर देश के कई हिस्सो से लोगो ने इस कार्य के लिए अपना सहयोग करने हेतु "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" को अलग अलग शहरों मे सहयोग राशि भिजवाई, इससे "साँवरिया" व "स्वाति नक्षत्र" ने जोधपुर के स्वाति जैसलमेरिया, कैलाश लढा, सोनू लढा व पवन मेवाड़ा, विक्रम तोषणीवाल ने, आंध्रप्रदेश मे श्री राज मालपानि ने, नासिक मे निलेश मंत्री व अमित चंद्रकांत कालांत्री ने सभी जगहो पर ग़रीबो मे सर्दी के कपड़े, शॉल व मिठाई वितरित की| इससे प्रेरित होकर सभी लोगो ने इस प्रदूषणमुक्त दीवाली का अपने अपने शहरो मे भी इसी प्रकार आयोजन किया ओर भविष्य मे इसी प्रकार त्योहार मनाने का निश्चय किया




भीलवाड़ा के श्री रामनारायण जी लढा के पुत्र और साँवरिया के संचालक श्री कैलाश लढा ने बताया कि "साँवरिया" के अनुसार यदि भारत का हर सक्षम व्यक्ति अपने बिना जरुरत की वस्तु/कपडे/किताबे और अपनी धार्मिक कार्यों के लिए की गयी बचत आदि से सिर्फ एक गरीब असहाय व्यक्ति की सहायतार्थ देना शुरू करे तो भारत से गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी और असमानता को गायब होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा | आज भी देश में ३० करोड़ से ज्यादा भाई बहिन भूखे सोते हैं अतः भारत के उच्च परिवारों की जन्मदिन/विवाह समारोह एवं कार्यक्रमों में बचे हुए भोजन पानी जो फेंक दिया जाता है यदि वही भोजन उसी क्षेत्र मैं भूखे सोने वाले गरीब और असहाय व्यक्तियों तक पहुंचा दिया जाये तो आपकी खुशिया दुगुनी हो जाएगी और आपके इस प्रयास से देश में भुखमरी से मरने वाले लोगो की असीम दुआए आपको मिलेगी तथा देश में भुखमरी के कारण होने वाली लूटपाट/ चोरी/ डकेती जैसी घटनाएँ कम होकर देश में भाईचारे की भावना फिर से पनपने लगेगी और एक दिन एसा भी आएगा जब देश में कोई भी भूखा नहीं सोयेगा |








रविवार, 11 नवंबर 2012

धनतेरस के दिन नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा की शुरआत कब और कैसे हुई,

धनतेरस के दिन नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। यही कारण होगा कि लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।
आने वाली पीढ़ियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें, इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुड़ी कोई न कोई लोककथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुड़ी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही-सुनी जा रही है।
पढ़ें- इस दीवाली खरीदें ‘चांदी के नोट’
पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम ‘पीयूषपाणि धन्वन्तरि’ विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को यम के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है- एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवाई, इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया किवह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आया तो वह आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई। अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धनसे ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया” इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।
धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं।
बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणोंके अलावा वाहन, मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यमवर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति-रिवाजों से जुड़ा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोगअपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।

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