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शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

क्या आप जानते हैं कि कैसे विकसित हुआ जापान ??

क्या आप जानते हैं कि जापान दूसरे विश्व युद्ध में परमाणु हमले से बर्बाद हो गया था, फिर जापान कैसे वापस निकला ??

क्या जापान ने एफ़डीआई पर ज़ोर दिया था, अमेरिकी/ यूरोप कंपनियों को बुलाया था ?? कैसे विकसित हुआ जापान ??
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जापान में 1950 से 1970 तक स्वदेशी आंदोलन चला। इस आंदोलन का एक ही नारा था: "BE JAPANESE, BUY JAPANESE." ताबूची नाम का एक बड़ा नेता था उसका जापान में उतना ही सम्मान है जितना भारत में गांधी जी का। ताबूची, अमेरीकन कंपनियों के समान को जापान के बाज़ार में कहीं भी देखता था तो भड़क जाता था और कहता था हम जापानियों को अमेरिकी समान खरीदने से तो मर जाना अच्छा है और जापान आज जो है वो उसी का परिणाम है।

जापान को खड़ा करने में न तो विदेशी पूंजी का योगदान है, न तो विदेशी तकनीक का, न ही विदेशी कंपनियों का योगदान है। जापान खड़ा हुआ है अपने संकल्प और आत्मशक्ति से। जापानी लोग कहते हैं की विदेशी पूंजी, विदेशी तकनीक और विदेशी कंपनियों को हम सबसे आखिरी स्तर पर रखते हैं।

स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ! जय हिन्द !!

साभार: ये है हिंदुस्तान मेरी जान

सोमवार, 12 नवंबर 2012

मुंह के छालों को चुटकियों में खत्म कर देगा यह नुस्खा!

मुंह के छालों को चुटकियों में खत्म कर देगा यह नुस्खा!

आंखें, कान, नाक और मुंह ये शरीर के ऐसे अंग हैं जो इंसान की कार्यक्षमता को गहराई से प्रभावित करते हैं। इन चारों में जरा सी भी गड़बड़ होते ही व्यक्ति का सारा काम ही रुक जाता है। मुंह सिर्फ बोलने और खाने के ही काम में नहीं आता बल्कि यह पूरे शरीर से बड़े गहराई से जुड़ा होता है।

मुंह में अगर छाले हो जाएं तो व्यक्ति बहुत परेशान हो जाता है। उसका किस
ी काम में मन नहीं लगता और वह खाने-पीने और बोलने में ही नहीं बल्कि दूसरे अन्य कार्यों में भी कठिनाई और असुविधा महसूस करता है।

यहां हम आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े कुछ ऐसे सरल नुस्खे दे रहे हैं, जो मुंह के छालों में बड़े कारगर और तुरंत राहत पहुंचाने वाले हैं…

सरल प्रयोग:

1. चमेली के पत्ते चबाएं और मुंह में बनने वाली लार थूकते जाएं, छालों में तत्काल आराम मिलेगा।

2. छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर लगाने से तुरंत लाभ होता है। रात के खाने के बाद हरड़ चूसें।

3. दो ग्राम भुने सुहागे का चूर्ण 15 ग्राम ग्लिसरीन में मिलाएं। दिन में तीन बार छालों पर लगाएं। फायदा होगा।

4. मिश्री को बारीक पीस लें। इसमें कपूर मिलाकर जुबान पर बुरकें। इसमें मिश्री आठ भाग एवं कपूर एक भाग रखें।

5. फि टकरी का कुल्ला करें।

6. तुलसी के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक होते हैं।

यह भी ध्यान रखें:

टमाटर अधिक खाने से कभी छाले नहीं होते।

कब्ज को कतई न रहने दें, पेट को साफ रखें।

मसालेदार भोजन से दूर रहें।

विशेष: किसी भी आयुर्वेदिक क्रिया या औषधि को अपनाने से पहले स्वविवेक से काम लें, तथा किसी आयुर्वेद के जानकार चिकित्सक से सलाह लेना सदैव निरापद रहता है। किसी भी असुविधा के लिये वेबसाइट जिम्मेदार नहीं होगी।

इस चमत्कारी दवा से खत्म हो जाएगी भूलने की बीमारी

इस चमत्कारी दवा से खत्म हो जाएगी भूलने की बीमारी

आमतौर पर हम सभी के घरों में किचन में पाई जाने वाली हल्दी अपने आप में किसी डॉक्टर से कम नहीं है। तभी तो आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित ग्रंथों में घरेलू हल्दी को चमत्कारी औषधि का दर्जा दिया गया है। जिस बात को आयुर्वेद में हजारों साल पहले कह दिया था, उसकी सच्चाई और प्रामाणिकता पर आज विज्ञान जगत भी मुहर लगा रहा है।

हल्दी के औषधीय गुणों पर किये जा रहे शोध बताते हैं कि हल्दी में कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है। भारतीय लोग तो हल्दी के फायदों से परिचित हैं ही लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भी साबित कर दिया है कि हल्दी में न केवल कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है, बल्कि डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जिसमें रोगी को मतिभ्रम हो जाता है और वह जरूरी बातें भी भूल जाता है, को भी नियंत्रित करने की क्षमता होती है।

डिमेंशिया में भी अचूक:

हल्दी में पाए जाने वाले रसायन ‘करक्यूमिन’ में रोगहारी शक्ति होती है, जो गठिया और मनोभ्रंश या डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जैसी बीमारियों के इलाज में प्रभावी सिद्ध हो चुकी है।

कैंसर की रोकथाम:

ब्रिटेन के कॉर्क कैंसर रिसर्च सेंटर में किए गए परीक्षण दिखाते हैं कि प्रयोगशाला में जब करक्यूमिन का प्रयोग किया गया तो उसने गले की कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया।

डॉ शैरन मैक्केना और उनके दल ने पाया कि करक्यूमिन ने 24 घंटों के भीतर कैंसर की कोशिकाओं को मारना शुरु कर दिया। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटिश जरनल ऑफ़ कैंसर में प्रकाशित यह खोज कैंसर के नए इलाज विकसित करने में सहायक हो सकती है।

एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है।

जिन्दगी जीने के लिए बहुत ही आवश्यक जानकारी ...
नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है।
• नीम के पेड़ पूरे भारत में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है।
• भारत में एक कहावत प्रचलित
हैं कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। नीम हमारे लिए अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञान में 'आज़ादिरेक्ता- इण्डिका (Azadirecta-indica) अथवा Melia azadirachta कहते है।
गुण
यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मज़बूत रहते हैं।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़ बीमारियों वगैरह से आज़ाद होता है और उस पर कोई कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आज़ाद पेड़ कहा जाता है। [1]भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।[2]
घरेलू उपयोग
नीम के वृक्ष की ठंण्डी छाया गर्मी से राहत देती है तो पत्ते फल-फूल, छाल का उपयोग घरेलू रोगों में किया जाता है, नीम के औषधीय गुणों को घरेलू नुस्खों में उपयोग कर स्वस्थ व निरोगी बना जा सकता है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है, लेकिन इसके फ़ायदे तो अनेक और बहुत प्रभावशाली हैं और उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :--

• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।
नीम के उपयोग से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है, आप सभी से निवेदन है कि आप नीम जैसी औषधि का अपने घर में जरूर प्रयोग करे और देश के विकास में सहयोग दे और स्वस्थ भारत और प्रगतिशील भारत का निर्माण करे और अपने धन को विदेशी कम्पनियों के पास जाने से रोके

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खूब सेकें धूप… नहीं होगी डायबिटीज

खूब सेकें धूप… नहीं होगी डायबिटीज

एक गाना अपने जमाने में बड़ा मशहूर हुआ था। गाने के बोल यह थे- धूप में न निकला करो रूप की रानी, कहीं गोरा रंग काला न पड़ जाए। जमाना बदला, हालात बदले लोगों की सोच और ज्ञान में भी काफी बदलाव आ गया है। इसीलिये तो अगर इसी गाने को फिर से लिखा जाए तो इसके बोल कुछ इस तरह होंगे- धूप में भी निकला करो रूप की रानी…कहीं तुमको डायबिटीज न हो जाए।

आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकि

त्सा पद्धतियों में बहुत पुराने समय से सुबह की ताजा धूप के अनेक फायदों के बारे में बताया जाता रहा है। सूर्योदय की पहली किरणों के साए में घूमना, आसन प्रणायाम करना, ध्यान करना और धूप स्नान करना…आदि कार्यों को योग-आयुर्वेद में तन व मन दोनों के लिये बेहद लाभदायक माना गया है।

एक ताजा रिसर्च के नतीजों ने भी योग-आयुर्वेद में कही गई इन बातों पर वैज्ञानिकता की मुहर लगा दी है। शोध के परिणाम कहते हैं कि धूप की कमी के कारण लाखों लोगों के टाइप-2 डायबिटीज की चपेट में आने का खतरा है। 5 हजार से अधिक लोगों के ब्लड टेस्ट पर आधारित

एक आस्ट्रेलियाई अध्ययन में यह दावा किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों के शरीर में विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा होती है उनके टाइप-2 डायबिटीज का शिकार होने की संभावना काफी कम हो जाती है। क्योंकि टाइप-2 डायबिटीज से लडऩे में सूर्य किरणों यानी धूप से प्रात्प विटामिन डी काफी कारगर होती है।

इसलिये जिसे टाइप-2 डायबिटीज से खुद को हमेशा के लिये बचाकर रखना हो उसे नियमित रूप से सुबह की ताजा धूप का सेवन अवश्य करना चाहिये। डायबिटीज से छुटकारे के अलावा भी सुबह की ताजा धूप कई फायदे पहुंचाती है।

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