यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

भगवान शिव की कृपा भक्ति

:: भगवान शिव की कृपा भक्ति ::

 
वैसे तो भगवान शिव की शक्ति, महिमा और दयालुता की बहुत-सी कहानियाँ प्रचलित हैं। लेकिन एक बड़ी विचित्र एवं रोचक कथा इस संबंध में आती है। जो आज भी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के अन्तर्गत रसड़ा तहसील में, खैराडीह में एवं आसपास के इलाकों में बहुत अर्से से जानी जाती है। सावन के महीने में एक नवविवाहिता दुल्हन को विदाई कराकर कहार डोली में बिठाकर चले जा रहे थे। खैराडीह के नजदीक एक शिव मंदिर के पास पहुँचने पर बड़े जोर से बारिश होने लगी।

हारों ने डोली वहीं पर उतार कर मंदिर में रख दी और खुद बरामदे में बैठ गए। दुल्हन अन्दर शिवलिंग के पास एक कोने में लाज एवं संकोच में दुबकी बैठी थी। अचानक उसके पेट में मरोड़ उठने लगा। लेकिन पेट दर्द बर्दाश्त न कर सकने के कारण दुल्हन ने वहीं पर शौच कर दिया।

परम भगत भयहारी तथा अपने भक्तों की मान-मर्यादा की रक्षा करने वाले भगवान शिव ने तत्काल उस मलमूत्र को सोने एवं हीरे में बदल दिया। धीरे-धीरे यह बात आस-पास के इलाकों भी फैल गई।

अब लोग जबर्दस्ती अपनी बहुओं को ले जाकर उस शिव मंदिर में शौच कराने लगे। तब भगवान शिव के कोप से वह समस्त गाँव ही सिरे से उलट गया व पूरा गाँव उस उलटी हुई धरती के नीचे दब कर एक टीला या देहाती शब्दों में डीह बन गया। और आज भी बहुत दूरी में, कई कोस में फैला हुआ वह टीला 'खैराडीह' के नाम से प्रसिद्ध है।


पौराणिक कथाओं एवं जनश्रुतियों में जो कहावतें सुनने को मिलती हैं। उससे यह स्पष्ट है कि धन सम्पदा एवं लक्ष्मी प्राप्ति में शिव पूजा के समान अन्य कोई उपाय नहीं है। जटाधारी भुजगपतिहारी चिताभस्मलेपी गंगाधर भगवान भोलेनाथ अपने तीसरे नेत्र की भीषण वेधनक्षमता वाली उग्र ज्वालामयी नेत्र ज्योति से ब्रह्माण्ड के पार तक के दृश्य को समग्र रूप से देख पाने में समर्थ है।

कंठ में हलाहल होने के कारण अन्दर से विकल किन्तु समस्त जगत को सुख-शान्ति प्रदान करने हेतु अति सूक्ष्म तथा विकट कारणों का भी निवारण कर देते हैं। आवश्यकता मात्र भगवान साम्बसदाशिव की शरण में जाने की है। वह भी विश्वास के साथ।

सदा छप्पन भोग एवं सोने-चाँदी से भगवान शिव की पूजा करने वाले राजा छविकृति भगवान शनि के प्रकोप से नष्ट हो गए। कारण यह था कि उन्होंने भगवान शिव की पूजा- श्रद्धा एवं विश्वास के साथ नहीं बल्कि अपनी वाहवाही, दिखावे के लिए ही किया था।

किन्तु क्रम से विधिपूर्वक हल्दी, चन्दन, बेलपत्र, धतूरा, पुष्प एवं जल चढ़ाने वाली प्रभावती के डर से शनि देव को तब तक वृष राशि में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं पड़ी। जब तक उसकी राशि का स्वामी शुक्र मीन राशि में गुरु के साथ और चन्द्रमा उसकी राशि में प्रवेश नहीं कर गया। तब तक शनि देव को इंतजार करना पड़ गया।

राजा छविकृति ने केवल उचित क्रम से ही पदार्थों को शिव लिंग पर चढ़ाया था। 'रुद्रनिधान' में क्रम निम्न प्रकार बताया गया है। इसी क्रम में पदार्थों को शिवलिंग पर चढ़ाने का विधान है।

'नीरसचन्दनबिल्वपत्रेत्रगंधानुलेपनं। हरिद्राखण्डं पुष्पार्पणमभिषेक गोरसेन च। अगरतगरकर्पूरादिक मध्वान्नं फल पयार्पणं। तदान्ते जलार्पणं तत्रान्ते च नीराजनम्‌। अपराधाय क्षमायाचना तत्प्रसादांगीयताम्‌। हर हर शिव ननादयित्वा हर कृपा खलु लब्धयेत्‌।'

किन्तु देखने में आया है कि प्रायः लोग पदार्थों को चढ़ाने का क्रम नहीं जानते हैं। तथा कुछ लोग हल्दी के बाद चन्दन तथा कुछ दही चढ़ाकर सिन्दूर चढ़ाने लगते हैं। वैसे तो भगवान शिव की चाहे जैसे पूजा करें, उन्हें शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। किन्तु क्या सब्जी खाकर, दाल पीकर, तब चावल में रोटी मसल कर खा सकते हैं? या चावल खाकर, हाथ मुँह धोकर फिर सब्जी और चटनी खायी जाती है? कितना रुचिकर खाना होगा? या फिर कितना सुन्दर उसका पाचन शरीर में होगा?

उसी प्रकार पूजा के पदार्थों को चढ़ाने का एक निश्चित क्रम बताया गया है। उस क्रम से न चढाने पर प्रेम एवं विश्वास का फल भले भगवान शिव दे दें। किन्तु पूजा का कोई फल प्राप्त नहीं होता है। भगवान शिव सभी का कल्याण करें।

बाल कृष्ण अपनी बाल लीलाओ से सब का मन मोह लेते है

एक बार बालक श्रीकृष्ण अपनें सखाओं संग खेल रहे थे. श्रीदामा, बलराम तथा मनसुखा आदि उनके साथ रसमयी क्रीड़ा का आनन्द ले रहे थे. इस खेल में एक बालक दूसरे के हाथ में ताली मारकर भागता और दूसरा उसे पकड़ने का प्रयास करता था. बलदाऊ को लगा कही कान्हा को चोट न लग जाये. इसीलिए उन्होनें कान्हा को समझाया- मोहन तुम मत भागो. अभी तुम छोटे हो, तुम्हारे पैरों में चोट लग जायेगी.

मोहन मासूमियत से बोले- दाऊ ! मेरा शरीर बहुत बलशाली है. मुझे दौड़ना भी आता है. इसीलिये मुझे अपने साथियों संग खेलने दो. मेरी जोड़ी श्रीदामा हैं. वह मेरे हाथ में ताली मारकर भागेगा और मैं उसे पकडूँगा.

श्रीदामा ने कहा - 'नहीं', तुम मेरे हाथ में ताली मारकर भागो. मैं तुम्हें पकड़ता हूँ. इस प्रकार कान्हा श्रीदामा के हाथ में ताली मारकर भागे और श्रीदामा उन्हें पकड़ने के लिये उनके पीछे-पीछे दौड़ा. थोड़ी दूर जाकर ही उसने श्याम को पकड़ लिया.

नटखट कान्हा बोले - मैं तो जानबूझ खड़ा हो गया हूँ. तुम मुझे क्यों छूते हो. ऐसा कहकर कान्हा अपनी बात को सही साबित करने के लिये, लगे श्रीदामा से झगड़ने. श्रीदामा भी क्रोधित होकर झगड़ने लगे कृष्ण से.

श्री दामा जी बोले- पहले तो तुम जोश में आकर दौड़ने खड़े हो गये और जब हार गये तो झगड़ा करने लगे. यह सब दृश्य बलदाऊ देख रहे थे.

वह दोनों के झगड़े के बीच ही बोलने लगे- श्रीदामा ! इसके तो न माता हैं ना पिता ही. नन्दबाबा और यशोदा मैया ने इसे कही से मोल लिया है. यह हार जीत तनिक भी नही समझता. स्वयं हारकर सखाओं से झगड़ पड़ता है. ऐसा कहकर, उन्होंने कन्हैया को ड़ांटकर घर भेज दिया.

कान्हा रोते हुये घर पहुँचे. उन्हें रोता देख मैया यशोदा कान्हा को गोद मे ले, रोने का कारण पूछने लगी.
मईया - लाला ! क्या बात है रो क्यों रहे हो ?
कान्हा ने रोते हुये कहा- मैया ! दाऊ ने आज मुझे बहुत ही चिढ़ाया. वे कहते हैं तू मोल लिया हुआ है, यशोदा मैया ने भला तुझे कब जन्म दिया. मैया मैं क्या करुँ, इसे क्रोध के मारे खेलने नही जाता. दाऊ ने मुझसे कहा कि बता तेरी माता कौन है? तेरे पिता कौन हैं? नन्द बाबा तो गौरे हैं और यशोदा मईया भी गोरी हैं. फ़िर तू सांवला कैसे हो गया? ग्वाल बाल भी मेरी चुटकी लेते हैं और मुस्कुराते हैं. तुमने भी केवल मुझे ही मारना सीखा है, दाऊ दादा को तो कभी डाँटती भी नहीं.
मैया ने कन्हैया के आँसू पोछते हुये कहा- मेरे प्यारे कान्हा. बलराम तो चुगलखोर है, वह जन्म से ही धूर्त है. तू तो मेरा दुलारा लाल है. काला कहकर दाऊ तुम्हें इसलिये चिढ़ाता है क्योंकि तुम्हारा शरीर तो इन्द्र-नीलमणि से भी सुन्दर है, भला दाऊ तुम्हारी बराबरी क्या करेगा. मेरे लाल, मेरे कान्हा. मैं गायों की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं ही तुम्हारी माता हूँ और तुम ही मेरे पुत्र हो. इस तरह से बाल कृष्ण अपनी बाल लीलाओ से सब का मन मोह लेते है

function disabled

Old Post from Sanwariya