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रविवार, 30 दिसंबर 2012

ऋषि कौन हैं

ऋषि कौन हैं

ऋषि पुरातन समय के वे संत हैं जिन्होंने वैदिक रिचाओं की रचना की परन्तु वेद तो अपौरुषेय हैं ,अर्थात मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं हैं , तो ऋषि का अर्थ हुआ वे संत जिन्होनें समाधी में वेद मन्त्रों को सुना हैं , इस प्रकार ऋषि वेदों के दृष्टा हुए ,रचनाकार नहीं


''ऋषिर मंत्र दृष्तार न करतार :''
'' अर्थात ऋषि तो मन्त्रों के दृष्टा हैं ,रचना करने वाले नहीं सनातन धर्म में ऋषियों को सभी संतों ,महात्माओं ,दार्शनिकों में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है

वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं ,बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारंभ के समय चार ऋषियों को देता है जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं इन ऋषियों के नाम हैं ,अग्नि ,वायु ,आदित्य और अंगीरा

1.ऋषि अग्नि ने ऋग्वेद को प्राप्त किया

2.ऋषि वायु ने यजुर्वेद को,

3.ऋषि आदित्य ने सामवेद को और

4.ऋषि अंगीरा ने अथर्ववेद को

इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया कुल 1127 ऋषि हैं

ऋषियों की भिन्न भिन्न उपाधियाँ उनके अध्यात्मिक ऊँचाई के अनुसार होती हैं जैसे उदाहरण के लिए ब्रह्मऋषि को ऋषियों में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है ब्रह्मऋषि वे ऋषि हुआ करते हैं ,जिन्होनें ब्रह्म का अर्थ जान लिया है या ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कर ली है , फिर महाऋषि होते हैं , महा का अर्थ है महान /बड़ा ,फिर राजऋषि हैं , उदाहरण के लिए रजा जनक राजऋषि थे सप्तिशी भी ब्रह्मऋषि हैं , उनमें से प्रमुख हैं वशिष्ठ ,विश्वामित्र ,अत्री ,अगस्त्य आदि
सप्त ऋषियों के अलग अलग नाम इसलिए हमें मिलते हैं क्यूंकि सात ऋषि ब्रह्माण्ड को बारी बारी से कार्यभार को सँभालते हैं ,और ये सभी सप्त ऋषि के श्रेणी में कभी न कभी आये थे l

जय सत्य सनातन धर्म ॐ
जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐॐ

आयुर्वेद के अनुसार गुणकारी हल्दी

इन दिनों मौसम में संक्रमण बढ़ जाता है। रसोई में काम आने वाली हल्दी संक्रमण से बचाव का अच्छा उपाय हो सकती है। यह केवल एक मसाला नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से गुणकारी दवा भी है। सब्जी, दाल हो या फिर कोई और नमकीन व्यंजन।

यहां तक कि कई मिठाइयों में भी हल्दी का प्रयोग किया जाता है। हल्दी लजीज व्यंजनों का स्वाद तो बढ़ाती ही है त्वचा, शरीर और पेट संबंधी कई रोगों में भी काम आती है। हल्दी के पौधे की जड़ से मिलने वाली गांठें ही नहीं, इसके पत्ते भी उपयोगी होते हैं।

गुणकारी हल्दी के अलग-अलग लाभ उठाने के लिए आपको किसी वैद्य या विशेषज्ञ की शरण में जाने की जरूरत नहीं है। अपने घर पर ही छोटे-छोटे प्रयोग कर इसके अलग-अलग लाभ उठाए जा सकते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। खून को साफ करती है।

चाणक्य प्रकांड विद्वान थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अद्भुत शिष्य था।

एक समय की बात है। चाणक्य अपमान भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की खुली गांठ हर पल एहसास कराती कि धनानंद के राज्य को शीघ्राति शीघ्र नष्ट करना है। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसको उन्होंने बचपन से ही मनोयोग पूर्वक तैयार किया था।



अगर चाणक्य प्रकांड विद्वान थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अद्भुत शिष्य था। चाणक्य बदले की आग से इतना भर चुके थे कि उनका विवेक भी कई बार ठीक से काम नहीं करता था।

चंद्रगुप्त ने लगभग पांच हजार घोड़ों की छोटी-सी सेना बना ली थी। सेना लेकर उन्होंने एक दिन भोर के समय ही मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। चाणक्य, धनानंद की सेना और किलेबंदी का ठीक आकलन नहीं कर पाए और दोपहर से पहले ही धनानंद की सेना ने चंद्रगुप्त और उसके सहयोगियों को बुरी तरह मारा और खदेड़ दिया।

चंद्रगुप्त बड़ी मुश्किल से जान बचाने में सफल हुए। चाणक्य भी एक घर में आकर छुप गए। वह रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी।

दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरमा-गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके गरमा-गरम घी भी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था- जल गया, जल गया।

दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमा-गरम खिचड़ी के बीच में अंगुलियां डाल दी थीं।

दादी बोली- 'तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, अरे गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है...।'

चाणक्य बाहर निकल आए और बुढ़िया के पांव छूए और बोले- आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़े हुए हैं।

चाणक्य ने उसके बाद मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए।

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