जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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शनिवार, 16 मार्च 2013
प्रेम के प्रकार
प्रेम के प्रकार
१. सात्विक
इस प्रेम में केवल देना ही देना स्वभाव बन जाता है
उसका सुख, उसकी अनुकूलता ,उसके लिए सब कुछ
भक्ति यद्यपि त्रिगुणातीत है लेकीन इसे भी भक्ति या शुद्ध प्रेम कह सकते है
२. राजसिक
इस प्रेम में लेना व देना दोनों चलते है
मैने तुमको इतना प्रेम किया - बदले में तुमने मुझे क्या दिया ?
बस यह दिया ? यही सिला दिया मेरे प्यार का ?
३. तामसिक
प्रेम के कारण जान देने या लेने को उतारू हो जाना
जेसे कि आतंक वादी
उसे भी कुछ न कुछ प्रेम हो जाता है की वह उसके लिए
दुसरे की जान लेने और अपनी जान देने को तैयार रहता है
सर्वोत्तम : प्रेम - भक्ति
और इन तीनों से परे श्री कृष्ण की अनुकुलतामयी
स्वसुख गंध लेश शून्य जो क्रिया है -वह है भक्ति
सेल फोन के अति उपयोग से होनेवाली हानिया और उससे बचने के उपाय:
सेल फोन के अति उपयोग से होनेवाली हानिया और उससे बचने के उपाय:
__________________________ __________________________
१. हो सके तो सन्देश भेजकर ही बात करे:
> सन्देश से वार्तालाप करने से फोन आपके मस्तिष्क से दूर रहेगा जिस से रेडिएसन का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
२. सेल फोन का उपयोग कम करे:
> विश्व स्वास्थ संस्था(who) के अनुसार अगर दिन के ३० मिनट के दर से दस वर्ष तक बाते की जाए तो ब्रेन केंसर की संभावना सबसे अधिक रहती है।
३. बात लम्बी चलनेवाली हो तो सेल फोन से बारी बारी दाए-बाए कान से बात करे:
> सेल फोन के ज्यादा उपयोग से श्रवन इन्द्रिय को हानि पहुच सकती है और 'टिनिटस' नामका रोग हो सकता है की जिसमे रिंग-टोन का आवाज़ कान में गूंजता रहता है।
४. सिग्नल न मिलने की स्थिति में सेल फोन का उपयोग न करे:
> सिग्नल पाने के लिए सेल फ़ोन अपनेआप पावर आउट-पुट बढ़ा देता है।
५. चलती गाड़ी में सेल फोन का प्रयोग न करे:
> एक टावर से दुसरे टावर के प्रभाव में आते ही सेल फोन पावर आउट-पुट बढ़ा देता है जिससे विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र में रेडिएसन बढ़ जाता है।
६. बात करते समय हो सके उतना सेल फोन को कान से दूर रखे:
> फोन कान से सिर्फ ५से.मी दूर रखने से रेडिएसन की मात्रा में ७५% जितनी कमी होती है।
७. सामान्य इअर-फोन का प्रयोग न करे:
> इअर-फोन खुद टावर के माइक्रोवेव प्राप्त करते है जो सीधे कान में जाते है.इससे रेडिएसन की मात्रा ३००% बढ़ जाती है।
८. एयर-ट्यूब इअर-फोन का प्रयोग करे:
> एयर-ट्यूब इअर फोन में वाहक धातु न होने के कारन वह रेडिएसन प्राप्त नहीं करता है।
९. चाइनिस फोन का प्रयोग न करे:
> सबसे ज्यादा रेडिएसन चाइनिस फोन से होता है.इसमे SAR(स्पेसिफिक अएब्सोप्सर्न रेट) के अंक गल़त लिखे हुवे पाए गए है।
जय हिन्द जय भारत
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१. हो सके तो सन्देश भेजकर ही बात करे:
> सन्देश से वार्तालाप करने से फोन आपके मस्तिष्क से दूर रहेगा जिस से रेडिएसन का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
२. सेल फोन का उपयोग कम करे:
> विश्व स्वास्थ संस्था(who) के अनुसार अगर दिन के ३० मिनट के दर से दस वर्ष तक बाते की जाए तो ब्रेन केंसर की संभावना सबसे अधिक रहती है।
३. बात लम्बी चलनेवाली हो तो सेल फोन से बारी बारी दाए-बाए कान से बात करे:
> सेल फोन के ज्यादा उपयोग से श्रवन इन्द्रिय को हानि पहुच सकती है और 'टिनिटस' नामका रोग हो सकता है की जिसमे रिंग-टोन का आवाज़ कान में गूंजता रहता है।
४. सिग्नल न मिलने की स्थिति में सेल फोन का उपयोग न करे:
> सिग्नल पाने के लिए सेल फ़ोन अपनेआप पावर आउट-पुट बढ़ा देता है।
५. चलती गाड़ी में सेल फोन का प्रयोग न करे:
> एक टावर से दुसरे टावर के प्रभाव में आते ही सेल फोन पावर आउट-पुट बढ़ा देता है जिससे विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र में रेडिएसन बढ़ जाता है।
६. बात करते समय हो सके उतना सेल फोन को कान से दूर रखे:
> फोन कान से सिर्फ ५से.मी दूर रखने से रेडिएसन की मात्रा में ७५% जितनी कमी होती है।
७. सामान्य इअर-फोन का प्रयोग न करे:
> इअर-फोन खुद टावर के माइक्रोवेव प्राप्त करते है जो सीधे कान में जाते है.इससे रेडिएसन की मात्रा ३००% बढ़ जाती है।
८. एयर-ट्यूब इअर-फोन का प्रयोग करे:
> एयर-ट्यूब इअर फोन में वाहक धातु न होने के कारन वह रेडिएसन प्राप्त नहीं करता है।
९. चाइनिस फोन का प्रयोग न करे:
> सबसे ज्यादा रेडिएसन चाइनिस फोन से होता है.इसमे SAR(स्पेसिफिक अएब्सोप्सर्न रेट) के अंक गल़त लिखे हुवे पाए गए है।
जय हिन्द जय भारत
गुरुवार, 14 मार्च 2013
क्यों करते हैं नमस्कार ..? नमस्कार से लाभ :-
क्यों करते हैं नमस्कार ..? नमस्कार से लाभ :- जय सिया राम
भारतीय धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब हम किसी को प्रणाम करते हैं, तो हम
अवश्य ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं।
मनु ने तो प्रणाम करने के कई लाभ गिनाए हैं।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपि सेविन:, तस्य चत्वारि वर्धन्ते, आयु: विद्या यशो बलं।
अर्थात-प्रणाम करने वाले और बुजुर्गों की सेवा करने वाले व्यक्ति की आयु,
विद्या, यश और बल चार चीजें अपने आप बढ़ जाती हैं। यह समाज की विडंबना ही
है कि बहुत से लोग प्रणाम करने की बात तो दूर, प्रणाम का जवाब देने से भी
कतराते हैं। इस बात को एक शेर में बहुत ही अच्छे ढंग से कहा गया है।
इस सन्दर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने तो गजब का आदर्श प्रस्तुत किया है।
सीय राममय सब जग जानी, करउं प्रनाम जोरि जुग पानी।
बन्दउं सन्त असज्जन चरना, दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।
मतलब यह कि वह सभी को प्रणाम करने का सन्देश देते हैं। उनके अनुसार
सम्पूर्ण संसार में भगवान व्याप्त है, इसलिए सभी को प्रणाम किया जाना
चाहिए। उन्होंने तो सन्त और असज्जन सभी की वन्दना की है।
यही नहीं,
श्रीरामचरित मानस में तो दुश्मन को भी प्रणाम करने का उदाहरण है। हनुमान जी
को सुरसा निगल जाना चाहती है, फिर भी हनुमान जी ने उसे प्रणाम किया। चौपाई
है-
बदन पैठि पुनि बाहर आवा, मांगी बिदा ताहि सिर नावा। एक बात और,
किसी को प्रणाम न करने से अनजाने में ही सही, उसका अपमान हो जाता है।
शकुन्तला ने दुर्बासा ऋषि को प्रणाम नहीं किया, तो उन्होंने क्रोधित हो कर
शकुन्तला को श्राप दे डाला।
दरअसल, प्रणाम कोई साधारण आचार या व्यवहार
नहीं है। इसमें बहुत बड़ा विज्ञान छिपा है। साधारण तौर पर उसका अर्थ है,
हृदय से प्रस्तुत हूं।
प्रणाम करने में प्राय: भगवान के नाम का
उच्चारण किया जाता है, जिसका अलग ही पुण्य होता है। बहुत से मामलों में तो
प्रणाम भी बाहरी तौर पर किया जाता है और हृदय को उससे दूर ही रखा जाता है।
शायद इसी सन्दर्भ में कहावत प्रचलित हुई-मुख पर राम बगल में छूरी। इस तरह
का प्रणाम करने से अच्छा है न ही किया जाए। प्रणाम एक ऐसी व्यवस्था है, जो
समाज को प्रेम के सूत्र में बांध कर रखती है। इसके महत्व को समझा जाए, तो
समाज से कटुता अवश्य दूर होगी। ऐसी मान्यता है कि यदि आप किसी साधक को
प्रणाम करते हैं, तो उसकी साधना का फल आपको बिना कोई साधना किए मिल जाता
है। प्रणाम करने से अहंकार भी तिरोहित होता है। अहंकार के तिरोहित होने से
परमार्थ की दिशा में कदम आगे बढ़ता है। प्रणाम को निष्काम कर्म के रूप में
लिया जाना चाहिए। वेदों में ईश्वर को प्रणाम करने की व्यवस्था है, जिसे
प्रार्थना कहा गया है। यह कोई याचना नहीं, निष्काम कर्म ही है, जो परमार्थ
के लिए प्रमुख साधन है। श्रीरामचरित मानस में कहा गया है, हरि व्यापक
सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होइ मैं जाना। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है,
जो प्रेम के वशीभूत हो कर प्रकट हो जाता है। इसलिए चेतन ही नहीं, जड़
वस्तुओं को भी प्रणाम किया जाए, तो वह ईश्वर को ही प्रणाम है, क्योंकि कोई
ऐसी जगह नहीं है, जहां ईश्वर नहीं है।
एक बात और, प्रणाम सद्भाव से ही
किया जाना चाहिए, भले ही वह मानसिक क्यों न हो। शास्त्रों में इसके भी
उदाहरण मिलते हैं। श्रीरामचरित मानस का सन्दर्भ लें, तो स्वयंबर के मौके पर
श्रीराम ने अपने गुरु को मन में ही प्रणाम किया था।
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा, अति लाघव उठाइ धनु लीन्हा।
अर्थात-उन्होंने मन-ही-मन गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुश उठा
लिया। इस प्रकार प्रणाम के रहस्य को समझ कर उसे जीवन में लागू किया जाए,
तो अनेक रहस्यपूर्ण अनुभव होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं।
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