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रविवार, 19 मई 2024

कोई पदचाप की आहट है..?* (जरा ध्यान से सुनिए..) रामानंद काबरा

*कोई पदचाप की आहट है..?*
  (जरा ध्यान से सुनिए..)
 *कल में अपने किसी स्टील* की शीट बनाने वाले मित्र के पास बैठा था,मैंने पूछा तनावड़ा वाली फेक्टरी कैसे चल रही है,उसने कहा बन्द कर दी यार, स्टाफ नही है। मारुति कम्पनी के शो रूम मालिक का रोज फोन आता है,15 से 50 हज़ार सैलेरी वाले 40 कर्मचारियों की जरूरत है,आपके ध्यान में हो तो बताना। एक दिन हमारे घर के पास अरोड़ा नमकीन वाले के यंहा प्याज़ की कचोरी लेने गया, काफी दिनों से नही मिलने की बात भी की,तो बोला बन्द कर दिया साब,स्टाफ नही है।मेरी फेक्टरी में नल टपकने की समस्या पर मैनेजर से शिकायत की,यह 10 दिन से ठीक क्यों नही हो रही है,वो बोला साब 10 प्लम्बर से बात हो गई ,सभी आज कल आज कल कर रहे है?
होली के बाद 15 दिन तक वापस फैक्टरियां इसलिए चालू नही होती कि स्टाफ UP/ BIHAR वाले गांव गए हुवे है,अभी आये नही। में सोचता हूं, जिस तरह UP ग्रो कर रहा है,वँहा से लोग आना बंद होगये तो क्या होगा?फसल कटाई के टाइम किसानों को 1000/1500 रुपये प्रतिदिन खर्च करने पर कर्मचारी नही मिलता।4 महिलाओं को इखट्ठी देख ले,उनके बीच मे काम वाली बाई  की समस्या को लेकर चर्चा जरूर होगी। आधुनिक समय मे मध्यम वर्गीय परिवारों में बहु बेटी के डिलीवरी के समय केयर टेकर चाहिए, या घर मे कोई बुजुर्ग बीमार है,उसके पास कोई सेवा के लिए चाहिए तो वो मिलना मुश्किल..किसी बयूरो के माध्यम से आप बुलाओ तो पहले 40 हजार वो एक कर्मचारी रखने का कमीशन लेता है,फिर 25 हज़ार मासिक में कर्मचारी भेजेगा,जिसको खाने पीने रहने की सुविधा आपको देनी है।
यह लिस्ट बहुत लंबी है।आप निश्चिन्त ही समझ गए होंगे,में क्या कहना चाहता हु।विपक्षी पार्टियां कितनी भी चिल्ला ले,बेरोजगारी/महंगाई देश की बड़ी समस्या है..पर यह धरातल पर नही है।
पूर्व में स्वीडन जैसे देशों की हालत इसलिए खराब होंगयीं की वँहा की सरकार अपने नागरिकों को आश्वस्त करती है कि आपके जन्म से लेकर मृतुय तक कि जिम्मेवारी हमारी है।बीमारी या शिक्षा का सारा भार सरकार उठाएगी ।वँहा जैसे कर्म अप्रासंगिक हो गया।वेनेजुएला या श्रीलंका इसलिए बर्बाद हो गया।हर चीज़ मुफ्त..
पंजाब दिल्ली  में  गुरुद्वारों मेंमुफ्त लंगर की व्यवस्था के चलते, निठले खाने पीने वालो की किसी को कमी नही थी,फिर एक ऐसी सरकार इसलिए सता में आगयी उसने अन्य सुविधा फ्री देने की घोषणा कर दी।
आज स्वीडन में किसी भी पश्चमी देशों से सबसे ज्यादा टैक्स दर है।सबसे ज्यादा बाल अपराधी वँहा है?इसलिए कि युवा खून को दिशा नहि मिलेगी तो..वो ऊर्जा कंही तो लगेगी।नशीली दवाओं की सबसे बड़ी मंडी वो हो गयी।स्वीडन क्यों,क्या हमारे दिल्ली पंजाब के युवा नशीली दवाओं के सबसे ज्यादा शिकार नही है?और हर रोज हर प्रान्त में आजकल ड्रग्स नशीली दवाएं पकड़े जाने के समाचार रोज पढ़ते है..यह किस ओर इशारे कर रहे है।आज स्वीडन में तलाक की दर  सबसे ज्यादा है,ओर चर्चो में भीड़ ही नही..लोगो ने अपने यीशु मसीह के यंहा जाना बंद कर दिया..बोले सब मुफ्त में मिल रहा है न?अब उस परमपिता से क्या मांगना शेष है?
मंदिरों के हालात अपने भी देख ले..धर्म सभाओं में युवाओ की उपस्थिति देख ले..?
एक बड़ा खतरनाक परिदृश्य आंखों के सामने है..बच्चियों को ज्यादा पढ़ा लिया..तो आज पति के साथ सामंजस्य की समस्या खड़ी होने लगी?उनके ख्वाब-जीवन शैली में आधुनिकता ओर उपभोगवाद आ गया ..तो परिवार वाले परेशान की सभी बच्चियों के लिए अमीर,साधन संपन्न दूल्हा कन्हा से लाये?ओर हर अभिभावक डरा हुआ है,गांव में लड़कों के रिश्ते नही आने.. से वो शहर भाग रहा है। वार्षिक आमदनी की यथा स्थिति किसी को पता नही,व्यापार,घर ,गाड़ी आसान किस्तों में लोन पर उपलब्ध है। लेकिन घर का मुख्या जानता है,वो अंदर कितना खोखला है। ऊपर से बच्चे.. बहुएं..देखा देखी में उपभोक्ता वाद के शिकार हो गए।कर्म की महत्ता समाप्त हो गयी..पर्तिस्पर्धा इस बात की है कि आपके कितने  घरेलू कर्मचारी काम करते है। 
*ऊपर से नेता लोग घर के हर सदस्य को टकाटक टकाटक 8500/उनकी सरकार बन गयी तो देने का वादा कर रहे है*।और यदि शिकार इन शिकारियों के जाल में फँस गया तो..?जितने भी शिकारी है,अपने लक्ष्य का शिकार ऐसे ही करते है..मुफ्त की आदत डालकर।यह जितने आपने कुबड़े देखे होंगे,वो इसलिए नही होते की काम ज्यादा करते है,वो इसलिए होते है कि काम नही करते। कुबड़े बनाना उनका लक्ष्य है। नशेड़ी बनाना उनके आगे के व्यापार का बड़ा आधार है। ब्रांडेड ब्रांडेड का जो हौव्वा खड़ा किया जा रहा है,यह भी आपकी कमजोर मानसिकता पर प्रहार है।
आज भी फ्री ,मुफ्त में कई कोई आपको दे रहा है,तो आप समझ लीजिए कि आप किसी बड़ी मुसीबत को दावत देकर आ रहे है। शादियों में दहेज में जो लड़की के अलावा रिश्तेदारों को गिफ्ट दी जारही है ,वो एक रिश्वत ही है।सासु जी को  ननद बाई सा का रोज जितने बड़े गिफ्ट भेजे जारहे है,उसके पीछे अपनी बेटी की सुविधा और सुरक्षा खरीदी जाने का भाव है।आप उसे कुछ नही कहोगे। अब नई दुल्हन के जिम्मे घर पर कोई काम नही..आप दिन भर क्या करोगे? कैसे समय पास होगा??? सामाजिक संरचना छींन भिन्न हो रही है।घरों से शांति गायब है। प्यार कागजी/व्हाट्सअप पर ओर दिखावटी हो गया है। तभी तो लोग कहते,आजकल दीपावली पर कोई घर ही नही आता।1kg मिठाई खर्च नही होती।सारे रिश्तो की मिठास गायब हो गयी है। बहुत परिश्रमी मज़ाक का पात्र बन गया है।ओर इन सब बातों का एक ही इलाज है। 
 *हमारे घरों में पुनः श्रम प्रतिष्ठित हो।ज्यादा से ज्यादा कार्य,जो हम कर सकते थे,करे।बच्चो को कठिन परिश्रम,अनुशाशन का पाठ पढ़ाये। उपभोक्ता वाद को निरुत्साहित करे।  रिश्तो में समय दे।उनको पोषित करे।किसी की मदद करे।सेवा का भाव हो। ओर यह सब करने से हम किसी भी बाहरी संकट से अपनें परिवार को बचा लेंगे। कोई बहेलिया अपना जाल हमारे घर और बच्चो के इर्द गिर्द नही फैला पायेगा।यह हमको केवल  युवाओ से अपेक्षा नही करनी है,हम संव्य को कर एक उदाहरण पेश करना है*।

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