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शनिवार, 21 सितंबर 2013

आंखों के सभी रोगों में (दृष्टिदुर्बलता)

आंखों के सभी रोगों में (दृष्टिदुर्बलता)

लक्षण *: इस रोग में रोगी को आंखों से सब कुछ धुंधला दिखाई देता है तथा उसे आंखों से अजीब-अजीब सी चीजें दिखाई देती हैं जोकि वास्तव में होती ही नहीं है जैसे मक्खी-मच्छर तथा मकड़ी के जाले आदि दिखाई पड़ना, गोलाकार वस्तु दिखाई पड़ना, अलग-अलग प्रकार की रोशनी और आंखों के सामने सभी वस्तुएं धुंधली (बादल से ढकी हुई) दिखना शुरुआती लक्षण हैं। रोग के और ज्यादा बढ़ने पर रोगी दूर की चीजों को पास और पास की चीजों को दूर देखता है। आंखों की रोशनी कम हो जाती है और रोगी सुई में धागे को पिरोता है तो उसे सुई का छेद ही नहीं दिखाई देता है। ये नज़र के कमजोर होने के सामान्य लक्षण हैं।

आंखों के सभी रोगों में विभिन्न औषधियों का उपयोग:-
1..शहद .
शहद : ..लगभग 7 से 14 मिलीलीटर बकुल के पौधे के रस को शहद के साथ लेने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। . . .धान का रस लगभग 10 से 15 मिलीलीटर को 5 से 10 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लेना चाहिए। . . .त्रिफला चूर्ण का चूर्ण 4-5 ग्राम लेकर 15 से 25 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से आंखों की रोशनी में वृद्धि होती है। . . .लगभग 12 से 24 ग्राम त्रिफला घृत, त्रिफला और यष्टीमधु मूल चूर्ण के साथ शहद में मिलाकर दिन में 2 बार लेना चाहिए। . . .15 से 30 मिलीलीटर मेशश्रृंगी फल का काढ़ा 5 से 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार लेना चाहिए। .
2.घी
.घी. .आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए गाय का ताजा घी और मिश्री मिलाकर खाएं। घी खाना भी आंखों के लिए लाभकारी होता है। . . .गाय के ताजे घी में देशी खांड और कालीमिर्च को रोजाना सुबह खाली पेट 1-2 चम्मच सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है। . . .लगभग 15 से 30 मिलीलीटर त्रिफला का काढ़ा 5 से 10 ग्राम घी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से आंखों के रोगों में आराम मिलता है। .
3.पुनर्नवा .. .
.पुनर्नवा :. .पुनर्नवा की जड़ को घी में डालकर अंजन (काजल) बनाकर आंखों में दिन में 2 बार लगाने से लाभ होता है।.
4.राई .. ..राई :. .आंख की पलकों पर फुन्सी होने पर राई के चूर्ण को घी में मिलाकर लेप करने से जल्द राहत मिलती है।.
5.मेंहदी
..मेंहदी . .10 ग्राम जीरा और 10 ग्राम मेंहदी दोनों को बराबर मात्रा में कूटकर रात में गुलाब जल में भिगो दें, इसे सुबह के समय छानकर स्वच्छ शीशी में रख लें और एक ग्राम भूनी हुई फिटकरी को बारीक पीसकर मिला लें। इसे थोड़ी मात्रा में आंखों में डालने से आंखों की ललाई दूर होती है। . . .मेहंदी के हरे पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें, रात्रि में इसकी टिकिया को आंखों पर बांधकर सोने से आंखों की पीड़ा और लालिमा ठीक हो जाती है। .
6.चमेली
.चमेली : .आंखों को बंद करके उसके ऊपर चमेली के फूलों को पीसकर लेप करने से आंखों के दर्द में आराम मिलता है।.
7.मक्खन .
.मक्खन :. . .गाय के दूध का मक्खन आंखों पर लगाने से आंखों की जलन दूर होती है। . . .यदि खुरासानी का दूध या भिलावा आंख में पड़ गया हो तो गाय के दूध के मक्खन को आंख में काजल की तरह लगाना लाभकारी होता है।
8.मकोय .
मकोय :.पिल्ल रोग (आंखों का चौंधियाना) वालों की आंखों को ढककर, आंखों को इसके घी चुपड़े फलों की धूनी देने से कीड़े बाहर निकल आते हैं।
9.सेंधानमक .
सेंधानमक :.सेंधानमक, हर्र, फिटकरी और अफीम को मिलाकर उसका लेप आंख के बाहर चारों ओर लगाने से लाभ होता है।.
10.रीठा .
रीठा :.सरल अभिष्यंद (मोतियाबिंद) में रीठे के फल को पानी में उबालकर इस पानी को पलकों के नीचे रखने से लाभ होता है।.
11.आक (मदार) .
आक (मदार) :. .पिसी हुई आक की जड़ की सूखी छाल 1 ग्राम को 20 मिलीलीटर गुलाबजल में 5 मिनट तक रखकर छान लें। इसके बाद इसे बूंद-बूंद करके आंखों में डालने से (3 या 5 बूंद से अधिक न डालें) आंखों की लाली, भारीपन, दर्द, कीचड़ की अधिकता और खुजली दूर हो जाती है। . .> आक की जड़ की छाल को जलाकर कोयला कर लें और इसे थोड़े पानी में घिसकर नेत्रों के चारों ओर लगाने से पलकों की सूजन आदि मिटती है। . .यदि बाईं आंख में तेज दर्द हो तो दाहिने पैर के नाखूनों को तथा यदि दाई आंख में तेज दर्द हो तो बांये पैर के नाखूनों को आक के दूध से गीला करना चाहिए। नोट : आक का दूध आंख में भूलकर भी नहीं लगाना चाहिए। इसका दूध आंखों में पड़ जाने से आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है।
12.धतूरा .
धतूरा :.धतूरे के ताजे पत्तों का रस आंखों पर लेप करने से ललाई फट जाती है तथा सूजन और जलन समाप्त हो जाती है।
13..जीरा .
जीरा :.जीरे को प्रतिदिन खाने से गर्मी दूर होती है और आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
14.दूध .
दूध :. .आंखों के अंदर तिनका या कोई अन्य चीज गिर जाए तथा वह निकल न रही हो तो आंखों में दूध की 3 बूंदे डालें। दूध की चिकनाहट से आंखों में पड़ी चीज आंख से बाहर निकल जाएगी। . .गाय के दूध में रूई को भिगोकर उस पर फिटकरी का चूर्ण आंखों पर बांधने से आंखों का दर्द ठीक होता है। . .आंखों में चोट लगी हो, आंखें जल गई हों, मिर्च-मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो, दर्द होता हो तो रूई के फाहे को दूध में भिगोकर आंखों पर रखने से आराम मिलता है। इसके साथ ही दो बूंद दूध आंखों में डालने से भी लाभ होता है।
15.मेथी .
मेथी :.मेथी के दानों को अच्छी तरह धो लें फिर इसे पीसकर आंखों के नीचे लेप कर लें। ऐसा करने से आंखों के आसपास का कालापन दूर हो जाता है।.
16.गेहूं
.गेहूं :.गेहूं के 100 ग्राम आटे में 100 ग्राम देशी साबुत चने का आटा मिला दें फिर स्वाद के अनुसार उसमें नमक और जीरा मिला दें। इस प्रकार के आटे से बनी रोटी तो अधिक स्वादिष्ट होती है। इसके सेवन से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है। रतौंधी में इससे बहुत ही लाभ होता है।
17.अडूसा (वासा) .
अडूसा (वासा) :.इसके दो-चार फूलों को गर्म कर आंखों पर बांधने से आंख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है.
18.गिलोय .
गिलोय :. .लगभग 10 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1-1 ग्राम शहद और सेंधानमक को मिलाकर खूब अच्छी तरह से गर्म करके आंखों में लगाने से तिमिर, पिल्ल (चौंधियाना), बवासीर, खुजली, लिंगनाश एवं शुक्ल तथा कृष्ण पटल गत आदि सारे आंखों के रोग दूर हो जाते हैं। . .गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बनाकर इसे पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
19.इमली .
इमली :.इमली के हरे पत्तों और एरण्ड के पत्तों को आंच में गर्म करें। इसके बाद उसे कपड़छन करके रस को निकालकर उसमें फूली हुई फिटकरी और चने के एक दाने के बराबर अफीम तांबे के बर्तन में घोंटे और उसमें कपड़ा भिगोकर आंखों में रखें। इससे आंखों के दर्द में लाभ होता है।
20.गोरखमुंडी .
गोरखमुंडी :. .हर 2 साल अप्रैल के महीने में 4-5 मुंडी के ताजे फल को दांत से चबाकर पानी के घूंट के साथ पी लें। इससे मनुष्य की आंख की तंदुरुस्ती और रोशनी हमेशा कायम रहती है।
21.गुलाबजल .
गुलाबजल :.गुलाबजल डालने से आंखों की रोशनी बढ़ती है तथा आंखें ठीक रहती हैं। आंखों पर गुलाबजल के छीटें मारने से या रूई का फोया गुलाबजल में भिगोकर आंखों पर रखने से आंखों के दर्द में लाभ होता है। आंखों की लाली और सूजन कम होती है। आंखों के रोग दूर होते हैं। आंखों के दर्द और जलन में तुरंत आराम मिलता है।
23.गुलाब .
गुलाब :.काले सुरमे के साथ ताजे गुलाब के फूलों के रस को आंखों में डालने से आंखों की जलन कम हो जाती है और आंखों की रोशनी भी बढ़ जाती है।
24.गूलर .
गूलर :.गूलर के दूध को आंखों पर लेप करने से आंखों का दर्द दूर होता है।
25.नींबू .
नींबू :. .नींबू के रस को लोहे की खरल में, लोहे के दस्ते से तब तक घोंटे जब तक कि रस काला न पड़ जाये, इसके बाद इस रस को आंखों के आसपास पतला-पतला लेप करने से आंखों की पीड़ा मिट जाती है। . .नींबू के रस में अफीम को मिलाकर लोहे के तवे पर पीसकर लेप करना चाहिए। . .कटे हुए नींबू के आधे भाग को लोहे के जंग पर रगड़कर पीले कपड़े में पोटली बनाकर आंखों पर घुमाने से आंखों की खुजली तथा लाली नष्ट हो जाती है। . .लौंग, कालीमिर्च और हरे कांच की चूड़ी को नींबू के रस व पानी के साथ बारीक पीसकर अंजन (काजल) करने से फूली और जाला में लाभ मिलता है।
26.शतावर .
शतावर : .लगभग 15 से 25 ग्राम शतावरी से सिद्ध किया 100-200 मिलीलीटर दूध अदरक के रस के साथ दिन में 2 बार देना चाहिए।
27.शीशम
शीशम : .शीशम के पत्तों के रस को शहद में मिलाकर इसकी बूंदे आंखों में डालने से आंखों का दर्द ठीक होता है।
.28.ब्राह्मी .
ब्राह्मी : . .3 से 6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को घी में भूनकर सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार लेना चाहिए। . .3-6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों का चूर्ण भोजन के साथ दिन में सुबह 1 बार लें। .
29.भांगरा :
.भांगरा ::. .भांगरा के पत्तों का महीन चूर्ण 10 ग्राम, शहद 3 ग्राम, गाय का घी 3 ग्राम, रोजाना सोते समय रात में 40 दिनों तक सेवन करने से दृष्टिमांद्य (आंखों की रोशनी का कम होना) आदि सभी प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ मिलता है। . .भांगरा के पत्तों का रस 2 बूंद सूर्योदय से 1 घंटे के अंदर या सूर्यास्त से 1 घंटे से पूर्व आंखों में डालते रहने से आंख की फूली आदि नेत्र रोग शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। . .भांगरा के 2 लीटर रस में, मुलेठी का चूर्ण 50 ग्राम, तिल का तेल 500 मिलीलीटर और गाय का दूध 2 लीटर मिलाकर धीमी आग पर पकायें, तेल शेष रहने पर इसे छानकर रख लें। इसे आंखों में लगाने से तथा नाक के द्वारा लेने से नेत्र शीघ्र ही अच्छे होते हैं। इससे खोई हुई आंखों की रोशनी वापस लौट आती है।. .भांगरा के पत्तों की पुल्टिश बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों का दर्द नष्ट होता है। .
30.नीम
.नीम : . .जिस आंख में दर्द हो उसके दूसरी ओर के कान में नीम के कोमल पत्तों का रस गर्म करके 2-2 बूंद टपकाने से आंख और कान का दर्द कम हो जाता है। . .नीम के पत्तों और लोध्र को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस पोटली को पानी में भीगने दें। बाद में इस पानी को आंखों में डालने से आंखों की सूजन कम होती है। . .नीम के पत्तों और सोंठ को पीसकर थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर गर्म कर लें और रात के समय एक कपडे की पट्टी रखकर 2 से 3 दिन आंखों पर बांधने से आंखों के ऊपर की सूजन के साथ दर्द और भीतरी खुजली समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि रोगी को शीतल पानी और शीतवायु से आंखों को बचाना चाहिए।. .500 ग्राम नीम के पत्तों को 2 मिट्टी के बर्तनों के बीच कण्डों की आग में रख दें। शीतल होने पर अंदर की राख का 100 मिलीलीटर नींबू के रस में मिलाकर सूखा लें। इसका अजंन (काजल) लगाने से आंखों के रोगों में लाभ मिलता है। . .नीम के कोमल पत्तों का रस थोड़ा-सा गुनगुना करके जिस आंख में दर्द हो उसकी दूसरी ओर के कान में डालें। यदि दोनों आंखों में दर्द हो तो दोनों कानों में डाल दें। . .50 ग्राम नीम के पत्तों को पानी के साथ बारीक पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पका लें। जब यह जलकर काली हो जाए तब उसे उसी तेल में घोटकर उसमें 500 ग्राम कपूर तथा 500 ग्राम कलमीशोरा मिला लें। इसके बाद इसे अच्छी तरह से घोटकर कांच की शीशी में भर लें, रात को आंखों में काजल करने तथा सुबह त्रिफला को पानी के साथ सेवन करने से आंखों की जलन, लालिमा, जाला और धुन्ध आदि दूर हो जाते हैं तथा रोशनी बढ़ जाती है। . .नीम की कोपलें 20 पीस, जस्ता भस्म 20 ग्राम, लौंग के 6 पीस, छोटी इलायची के 6 पीस और मिश्री 20 ग्राम को एकत्रित करके खूब बारीक करके सुर्मा बनाकर थोड़ा-थोड़ा सुबह-शाम लगाने से आंखों से धुंधला दिखाई देना ठीक होता है। . .10 ग्राम साफ रूई पर 20 नीम के सूखे पत्तों को बिछाकर एक ग्राम कपूर का चूर्ण छिड़ककर रूई को लपेटकर बत्ती बना लें। इस बत्ती को 10 ग्राम गाय के घी में भिगोकर इसका काजल बनाकर, रात को लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। . .नीम के पत्तों के रस को गाढ़ा कर अंजन (काजल) के रूप में लगाते रहने से आंखों की खुजली, बरौनी (आंखों की पलकों के बाल) के झड़ने में लाभ होता है। . .नीम के ताजे पत्ते पीसकर, निचोड़कर इसे पलकों पर लगाने से पलकों के बाल झड़ना बंद हो जाते हैं। .
31.अनन्तमूल .
अनन्तमूल :. .अनन्तमूल की जड़ को बासी पानी में घिसकर नेत्रों में लगाने से या इसके पत्तों की राख कपड़े में छानकर शहद के साथ आंखों में लगाने से आंख की फूली कट जाती है। . .अनन्तमूल के ताजे मुलायम पत्तों को तोड़ने से जो दूध निकलता है उसमें शहद को मिलाकर आंखों में लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है। . .अनन्तमूल से बने काढ़े को आंखों में डालने से या काढ़े में शहद को मिलाकर लगाने से नेत्र रोगों में लाभ होता है। .
32.सौंफ .
सौंफ :. .सौंफ और मिश्री को थोड़ा सा लेकर पीसकर मिला लें। इसे एक बड़ा चम्मच भर सुबह-शाम पानी के साथ फांकने से धीरे-धीरे आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है। इसको कम से कम 60 दिन लगातार सेवन करना चाहिए। . .भोजन के पश्चात एक चम्मच सौंफ खाने से पाचनशक्ति और नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) बढ़ती है तथा पेशाब खुलकर आता है। . .रात्रि को सोते समय आधा चम्मच पिसे हुए सौंफ के चूर्ण में 1 चम्मच चीनी मिलाकर दूध के साथ लेने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। .
33.लता करंज
.लता करंज :. .करंज के बीजों के चूर्ण को पलाश के फलों के रस में 21 दिनों तक रखने के बाद सुखा लें और इसकी सलाईयां बना लें। इन सलाईयों को पानी में घिसकर आंखों में लगायें। इससे आंखों का फूलना बंद हो जाता है। . .पित्त नेत्र रोग में (जब पलक लाल और रोम रहित हो जाये) लता करंज के 1 से 2 ग्राम बीजों की गिरी और तुलसी व चमेली की कलियां बराबर ले करके सबको मिलाकर कूट लें। इस कूट को इससे 8 गुने पानी में पकावें। थोड़ा पानी रह जाने पर छानकर पुन: दोबारा पकाकर गाढ़ा कर लें। इसके बाद इस काढे़ को पलकों पर लगाते रहने से पित्त नेत्र रोग में लाभ होता है।.
34.लोध्र .
लोध्र :.लोध्र का लेप बनाकर आंखें बंद करके ऊपर से लगायें और एक घंटा बाद उसे साफ कर लें। इससे आंखों का रोग दूर होता है।
.35.अनार .
अनार :. .अनार के पेड़ के पत्तों को पीसकर उसकी लुग्दी बनाकर आंखे बंद करके उस पर यह लुग्दी बनाकर रखने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। . .अनार के 5-6 पत्तों को पानी में पीसकर दिन में 2 बार लेप करने तथा पत्तों को पानी में भिगोकर उसकी पोटली बनाकर आंखों पर फेरने से आंखों के दर्द में लाभ होता है। . .अनार के 8-10 ताजे पत्तों का रस किसी चीनी मिट्टी के बर्तन में कपड़े से छानकर रख दें और सूख जाने पर इसे सुबह-शाम किसी तिल्ली या सलाई द्वारा आंखों में लगायें, इससे खुजली, आंखों से पानी बहना, पलकों की खराबी आदि रोग दूर होते हैं। .
36.लौंग
.लौंग :.आंखों में दाने निकल आने पर लौंग को घिसकर लगाने से दाने बैठ जाते हैं।.
37.नारियल .
नारियल :.नारियल की सूखी गिरी 25 ग्राम और शक्कर (चीनी) 60 ग्राम को मिलाकर रोजाना 1 सप्ताह तक खाने से लाभ पहुंचता है। .
38.सिरस .
सिरस :. .सिरस के पत्तों के रस का अंजन (काजल) करने से आंखों का दर्द समाप्त हो जाता है। . .रतौंधी के अंदर सिरस के पत्तों का काढ़ा पिलाने से और इसके स्वरस का अंजन करने से लाभ होता है। . .सिरस के पत्तों के रस में कपड़ा भिगोकर सुखा लें। इसे 3 बार भिगोयें और सुखायें। फिर कपड़े की बत्ती बनाकर चमेली के तेल में जलाकर सुखा लें। इसके बाद इसे काजल के समान आंखों में लगाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। .
39.पानी .
पानी :. .जब आंख लाल हो, गर्मी बढ़ गई हो, आंख में सूजन हो तो बार-बार ठंडा पानी या गुलाबजल या बर्फ को कपड़े में रखकर आंखों के ऊपर फेरना चाहिए। इस प्रकार के ठंडे प्रयोग से आंख की छोटी धमनियों व शिराओं में संकोचन (सिकुड़ना) उत्पन्न होकर गर्म, प्रदाह (जलन) आदि ठीक हो जाते हैं। शोथ (सूजन) में ठंडे पानी से सिंकाई करने से सूजन जल्दी कम हो जाती है। यदि पीव (पस) पैदा हो गई तो ठंडे पानी की सिंकाई ज्यादा नहीं करनी चाहिए। . .आंख की भौंहों व आंख के चारों ओर दर्द होने पर विवर प्रदाह (जलन) होती है। जिस ओर की आंख में दर्द हो, उस ओर की नाक के नथुने से भगौने में उबलते पानी की भाप को नाक से अंदर लेना चाहिए। जैसे दायीं ओर की आंख पर दर्द हो तो दायें नथुने से भाप अंदर खींचे और दोनों आंखों में दर्द हो तो दोनों नथुनों (नाक के छेदों में) से भाप अंदर खींचें तो आराम होगा। . .कपड़े को 5 बार मोड़कर 2 इंच की गोल गद्दी बना लें फिर उसे पानी में भिगोकर ठंडा कर लें तथा पलक बंद करके अदल-बदल कर पलकों पर रखें। बर्फ न होने पर ठंडे पानी से सिंकाई करें। .
40.पलास .
पलास :.पलास की ताजी जड़ का एक बूंद रस आंखों में डालने से आंख की झांई, खील, फूली मोतियाबिंद और रतौंधी (रात में न दिखना) आदि सभी तरह के आंखों के रोग खत्म हो जाते हैं।.41.तेजपात .तेजपात :.तेजपत्ते को पीसकर आंख में लगाने से आंख का जाला और धुंध मिट जाती है। आंख में होने वाला नाखूना रोग भी इसके प्रयोग से कट जाता है।.
42.तिल .
तिल :.तिल के फूलों पर ठंडी ऋतु में पड़ी ओस की बूंदों को मलमल के कपड़े या किसी और प्रकार से उठाकर शीशी में भरकर रख लें। इन ओस के कणों को आंख में टपकाते रहने से आंखों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।.
43.त्रिफला .
त्रिफला :.त्रिफला को शाम को पानी में डालकर भिगो दें। सुबह उठकर छान लें और इसी पानी से आंखों को धोने से हर प्रकार की आंखों की बीमारियां मिट जाती हैं।.
44.बेर .
बेर :. .आंखों से पानी बहने पर बेर की गुठली घिसकर लगाना चाहिए इससे लाभ होता है। . .बेर के बीजों को पानी में घिसकर दिन में 2 बार लगभग 1-2 महीने तक लगाने से आंखों से पानी बहना बंद होता है, इससे आराम मिलता है।

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

चेहरे की देखभाल

हम सभी चाहते हैं कि हमारी त्‍चचा बिल्‍कुल साफ और चिकनी हो। लेकिन यह केवल एक सपने की तरह बन कर रह जाता है क्‍योंकि हम चाह कर भी अपने चेहरे की देखभाल उतनी नहीं कर पाते जितनी हमें वास्‍तव में करनी चाहिये।

चेहरे पर अगर डार्क स्‍पॉट पडे़ हों तो आपका सारा लुक खराब लगने लगता है। बस ऐसा मन करता है कि कहीं मत जाओ और अपने आपको कमरे में बंद कर लो।

लेकिन अगर चेहरे पर लगातार मुंहासे निकल रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि चेहरे पर डार्क स्‍पॉट भी पडे़गे। इन डार्क स्‍पॉट को अगर प्राकृतिक रूप से सही करना हो तो आपको कुछ तरीके आजमाने होगें। इसके लिये आप नींबू, ऐलो वेरा, दूध, शहद या फिर चंदन पाउडर का प्रयोग कर सकती हैं। मुंहासो को ठीक करने वाले मसाले ये सभी सामग्रियां आपके घर में आराम से मिल जाएंगी।

इसके अलावा और भी कई तरीके हैं जो कि बिना पैसों के है, तो आइये जानते हैं क्‍या हैं वे तरीके जो मिटा सकते हैं चेहरे पर पड़े डार्क स्‍पॉट को।

1. एलो वेरा जैल लगाने से त्‍वचा पर पड़े गहरे चकत्‍ते धीरे धीरे हल्‍के पड़ने लगते हैं और इनसे मुंहसे भी ठीक हो जाते हैं।

2. लहसुन इसे लगाने से डार्क स्‍पॉट हल्‍के पड़ जाते हैं।

3. ग्रीन टी को चेहरे पर गीला कर के लगाने से चेहरे का रंग साफ हो जाता है।

4. शहद को चंदन पाउडर के साथ मिलाइये और उसमें हल्‍का सा नींबू निचोड़ लीजिये। इस पैक को चेहरे पर लगा कर साफ त्‍चचा पाइये।

5. नींबू का रस न केवल चेहरे से गहरे निशान मिटाता है बल्कि इसको चेहरे पर रगड़ने से चेहरे की रंगत भी बदल जाती है।

6. दूध से अपने चेहरे की मसाज करने पर उसमें नमी समाती है और दाग धब्‍बों का रंग भी हल्‍का पड़ जाता है।

7. प्‍याज के रस को गहरे निशान पर लगाइये और कुछ ही दिनों में देखिये कि गहरे रंग के दाग किस तरह से साफ हो जाते हैं।

8. आलू के पीस को मसल कर उसके रस को चेहरे पर लगाइये।

9. चंदन पाउडर को दही के साथ मिक्‍स कीजिये और उसमें नींबू की चार बूंद डाल लीजिये। इसको लगाने से आपके चेहरे के डार्क स्‍पॉट गायब होने लगेगें।

10. दही और नींबू के रस को एक साथ मिला कर चेहरे पर लगाने से साफ और गोरी रंगत मिलती है।

पालक में पाये जाने वाले गुण

पालक मानव के लिए बेहद उपयोगी है। पालक को आमतौर पर केवल हिमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए गुणकारी सब्जी माना जाता है।

बहुत कम लोग जानते हैं कि पालक में इसके अलावा और भी कई गुण है जिनसे सामान्य लोग अनजान है। तो आइए हम आपको पालक के कुछ ऐसे ही अद्भूत गुणों से अवगत करवाते हैं उसके पश्चात आप जान सकेंगे कि आप पालक क्यों खायें ?
पालक में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व- 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन 2 % ,कार्बोहाइड्रेट 2.9 %, नमी 92 % वसा 0.7 %, रेशा 0.6 % ,खनिज लवन 0.7 % और रेशा 0.6 % होता हैं। पालक में विभिन्न खनिज लवण जैसे कैल्सियम, मैग्नीशियम ,लौह, तथा विटामिन ए, बी, सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाते हैं।
इसके अतिरिक्त यह रेशेयुक्त, जस्तायुक्त होता है।
इन्हीं गुणों के कारण इसे जीवन रक्षक भोजन भी कहा जाता हैं।

पालक में पाये जाने वाले गुण- पालक खाने से हिमोग्लोबिन बढ़ता है। खून की कमी से पीड़ित व्यक्तियों को पालक खाने से काफी फायदा पहुंचता है।

गर्भवती स्त्रियों में फोलिक अम्ल की कमी को दूर करने के लिए पालक का सेवन लाभदायक होता है।
पालक में पाया जाने वाला कैल्शियम बढ़ते बच्चों, बूढ़े व्यक्तियों और गर्भवती स्त्रियों व स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए वह बहुत फायदेमंद है।

इसके नियमित सेवन से याददाश्त भी मजबूत होती है। शरीर बनाएं मजबूत- पालक में मौजूद फ्लेवोनोइड्स एंटीआक्सीडेंट का काम करता हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने के अलावा हृदय संबंधी बीमारियों से लड़ने में भी मददगार होता है।
सलाद में इसके सेवन से पाचनतंत्र मजबूत होता है। इसमें पाया जाने वाला बीटा कैरोटिन और विटामिन सी क्षय होने से बचाता है।

ये शरीर के जोड़ों में होने वाली बीमारी जैसे आर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस की भी संभावना को घटाता है।

आंखों के लिये लाभकारी- पालक आंखो के लिए काफी अच्छी होती है। यह त्वचा को रूखे होने से बचाता है।

बाल गिरने से रोकने के लिए रोज पालक खाना चाहिए। पालक के पेस्ट को चेहरे पर लगाने से चेहरे से झाइयां दूर हो जाती है।

पालक कब न खायें? पालक वायुकारक होती है अतः वर्षा ऋतु में इसका सेवन न करें

सायटिका में लाभदायक पारिजात

पारिजात नाम के वृक्ष को छूने से मिटती है थकान,और मन्नत मांगने से होती है पूरी
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क्या कोई ऐसा भी वृक्ष है,जिसं छूने मात्र से मनुष्य की थकान मिट जाती है। हरिवंश पुराण में ऐसे ही एक वृक्ष का उल्लेख मिलता है,जिसको छूने से देव नर्तकी उर्वषी की थकान मिट जाती थी। पारिजात नाम के इस वृक्ष के फूलो को देव मुनि नारद ने श्री कृश्ण की पत्नी सत्यभामा को दिया था। इन अदभूत फूलों को पाकर सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण से जिद कर बैठी कि परिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए। पारिजात वृक्ष के बारे में श्रीमदभगवत गीता में भी उल्लेख मिलता है। श्रीमदभगवत गीता जिसमें 12 स्कन्ध,350 अध्याय व18000 ष्लोक है ,के दशम स्कन्ध के 59वें अध्याय के 39 वें श्लोक , चोदितो भर्गयोत्पाटय पारिजातं गरूत्मति। आरोप्य सेन्द्रान विबुधान निर्जत्योपानयत पुरम॥ में पारिजात वृक्ष का उल्लेख पारिजातहरण नरकवधों नामक अध्याय में की गई है।

सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए जब श्री कृष्ण ने परिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा तो इन्द्र ने श्री कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पारिजात देने से मना कर दिया। जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने गरूड पर सवार होकर स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और परिजात प्राप्त कर लिया। श्री कृष्ण ने यह पारिजात लाकर सत्यभामा की वाटिका में रोपित कर दिया। जैसा कि श्रीमदभगवत गीता के श्लोक, स्थापित सत्यभामाया गृह उधान उपषोभन । अन्वगु•र्ा्रमरा स्वर्गात तद गन्धासलम्पटा, से भी स्पष्ट है। भगवान श्री कृष्ण ने पारिजात को लगाया तो था सत्यभामा की वाटिका में परन्तु उसके फूल उनकी दूसरी पत्नी रूकमणी की वाटिका में गिरते थे। लेकिन श्री कृष्ण के हमले व पारिजात छीन लेने से रूष्ट हुए इन्द्र ने श्री कृश्ण व पारिजात दोनों को शाप दे दिया था । उन्होन् श्री क्रष्ण को शाप दिया कि इस कृत्य के कारण श्री कृष्ण को पुर्नजन्म यानि भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाएगा। जबकि पारिजात को कभी न फल आने का शाप दिया गया। तभी से कहा जाता है कि पारिजात हमेशा के लिए अपने फल से वंचित हो गया। एक मान्यता यह भी है कि पारिजात नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी ,जिसे भगवान सूर्य से प्यार हो गया था, लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्यार कों स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्म हत्या कर ली थी। जिस स्थान पर पारिजात की कब्र बनी वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है जैसे वह रो रहा हो, लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियां और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने को आतुर दिखाई पडते है। ज्योतिश विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।
धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने में पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। यदि ,ओम नमो मणि़•ाद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम, मन्त्र का जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाए और पूजा के इस नारियल व फूलो को लाल कपडे में लपेटकर घर के पूजा धर में स्थापित किया जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती है। यह पूजा साल के पांच मुहर्त होली,दीवाली,ग्रहण,रवि पुष्प तथा गुरू पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम है। यहां यह भी बता दे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते है,जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते है। यानि वृक्ष से फूल तोड़ने की पूरी तरह मनाही है।

परिजात वृक्ष की प्रजाति भारत में नहीं पाई जाती, लेकिन भारत में एक मात्र पारिजात वृक्ष आज भी उ.प्र. के बाराबंकी जनपद अंतर्गत रामनगर क्ष्ोत्र के गांव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने व 45 फीट उंचाई के इस वृक्ष की ज्यादातर शाखाएं भूमि की ओर मुड़ जाती है और धरती को छुते ही सूख जाती है।

एक साल में सिर्फ एक बार जून माह में सफेद व पीले रंग के फूलो से सुसज्जित होने वाला यह वृक्ष न सिर्फ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर लगता है। आयु की दृष्टि से एक हजार से पांच हजार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं। जिसकी दुनियाभर में सिर्फ 5 प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें से एक डिजाहाट है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है। एक मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी । जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। कहा जाता है जब पांडव पुत्र माता कुन्ती के साथ अज्ञातवास पर थे तब उन्होने ही सत्यभामा की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गांव में रोपित कर दिया होगा। तभी से परिजात गांव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है। देशभर से श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के लिए और मनौती मांगने के लिए परिजात वृक्ष की पूजा अर्चना करते है। पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। पारिजात बावासीर रोग निदान के लिए रामबाण औषधी है। पारिजात के एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बावासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का पेस्ट बनाकर गुदा पर लगाने से बावासीर के रोगी को बडी राहत मिलती है। पारिजात के फूल हदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलो के रस का सेवन किया जाए तो हदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सुखी खासी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते है। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को अगर 5 काली मिर्च के साथ महिलाएं सेवन करे तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जंहा हेयर टानिक का काम करते है तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है। इस दृश्टि से पारिजात अपनेआपमें एक संपूर्ण औषधी भी है।

इस वृक्ष के ऐतिहासिक महत्व व दुर्लभता को देखते हुए जंहा परिजात वृक्ष को सरकार ने संरक्षित वृक्ष घोषित किया हुआ है। वहीं देहरादून के राष्ट्रीय वन अनुसंधान संस्थान की पहल पर पारिजात वृक्ष के आस पास छायादार वृक्षों को हटवाकर पारिजात वृक्ष की सुरक्षा की गई। इस वृक्ष की एक विषेशता यह भी है कि इस वृक्ष की कलम नहीं लगती ,इसी कारण यह वृक्ष दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में आता है। भारत सरकार ने पारिजात वृक्ष पर डाक टिकट भी जारी किया। ताकि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पारिजात वृक्ष की पहचान बन सके।

सायटिका में लाभदायक पारिजात
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हरसिंगार जिसे पारिजात भी कहते हैं, एक सुन्दर वृक्ष होता है, जिस पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है।

परिचय : यह 10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है और देशभर में खास तौर पर बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित और सुन्दर होते हैं जो रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पारिजात, शेफालिका। हिन्दी- हरसिंगार, परजा, पारिजात। मराठी- पारिजातक। गुजराती- हरशणगार। बंगाली- शेफालिका, शिउली। तेलुगू- पारिजातमु, पगडमल्लै। तमिल- पवलमल्लिकै, मज्जपु। मलयालम - पारिजातकोय, पविझमल्लि। कन्नड़- पारिजात। उर्दू- गुलजाफरी। इंग्लिश- नाइट जेस्मिन। लैटिन- निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस।

गुण : यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है।

रासायनिक संघटन : इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1% होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16% पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1%), मैनिटाल (1.3%), एक राल (1.2%), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।

उपयोग : इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है।

गृध्रसी (सायटिका) : हरसिंगार के ढाई सौ ग्राम पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी लगभग 700 मिली बचे तब उतारकर ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें। इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज सुबह-शाम एक कप मात्रा में इसे पिएँ।

ऐसी चार बोतलें पीने तक सायटिका रोग जड़ से चला जाता है। किसी-किसी को जल्दी फायदा होता है फिर भी पूरी तरह चार बोतल पी लेना अच्छा होता है। इस प्रयोग में एक बात का खयाल रखें कि वसन्त ऋतु में ये पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः यह प्रयोग वसन्त ऋतु में लाभ नहीं करता।

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