यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

This man was programmed for success but he was not trained , how to handle failure.

गड़बड़ कहाँ हुई 

एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया. वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया. 

अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा. 5 बेडरूम का घर  उसके पास. शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई .

एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।

लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली. What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई. 

ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में. उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong?‘ जानने के लिए study किया .

पहले कारण क्या था , suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी. बहुत दिन खाली बैठे रहे. नौकरियां ढूंढते रहे. फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी. कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं. साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...

इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए.

अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं. पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया. ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से. गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए. फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को,12 th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी. अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets. 
.
कमबख्त ये दुनिया , बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे. वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है. और सवाल ,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है. कोई डेट sheet नहीं.
.
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था. एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया. आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया. उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह. अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा. किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे. बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है. Mom, there is a jungle out there.
.
*इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये*.।

बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देना जरूरी है  ,हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता, और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।माता पिता सफल जीवन के लिए तितिक्षा की शिक्षा अवश्य दें ।

जानें क्या है सप्तधान्यांकुर अर्क (शक्तिवर्द्धक दवा – टॉनिक) और इसे तैयार करने की विधि

जानें क्या है सप्तधान्यांकुर अर्क (शक्तिवर्द्धक दवा – टॉनिक) और इसे तैयार करने की विधि


इसके उपयोग करने से दानों, फल-फलियों, फूलों, सब्जियों पर बहुत अच्छी चमक आती है। आकार, वजन और स्वाद भी बढ़ता है।

बनाने के लिए आवश्यक सामग्री

* तिल 100 ग्राम, मूँग के दाने 100 ग्राम, उड़द के दाने 100 ग्राम, लोबिया के दाने 100 ग्राम, मोठ/मटकी/मसूर के दाने 100 ग्राम, गेहूँ के दाने 100 ग्राम, देसी चने के दाने 100 ग्राम, पानी 200 लीटर, गौ-मूत्र 10 लीटर।

बनाने की विधि

* एक छोटी कटोरी में तिल (प्राथमिकता काले तिल को) लेकर उसमें पानी उपयुक्त मात्रा में डाल कर डुबाएं और घर में रख दें।

* अगले दिन सुबह एक थोड़ी बड़ी कटोरी में मूँग, उड़द, लोबिया, मोठ/मटकी/मसूर, गेहूँ, देसी चना के दानों को डालकर मिलाएं एवं उपयुक्त मात्रा में पानी डालकर भिगोएं एवं घर में रखें। 24 घण्टे बाद इन अंकुरित बीजों को पानी से निकाल कर कपड़े की पोटली में बाँध कर टाँग दें।

* एक सेंटीमीटर अंकुर निकलने पर उपरोक्त सातों प्रकार के बीजों की सिलबट्टे पर चटनी बनाएं। सभी प्रकार के बीजों के अलग हुए पानी को सम्भालकर रख लें।

* अब 200 लीटर पानी में बीजों से अलग हुए पानी व चटनी और गौ-मूत्र को एक ड्रम में डालकर लकड़ी की डण्डी से अच्छे से मिलाकर कपड़े से छान कर 48 घण्टे के अन्दर इस प्रकार छिड़काव करें।

* फसल के दाने जब  दूग्धावस्था में हों।

* फल-फलियाँ बाल्यावस्था में हों।

* फूलों में कली बनने के समय।

* सब्जियों में कटाई के 5 दिन पूर्व छिड़काव करें।

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2021

दीपावली पर पटाखे बैन षड्यंत्र की कहानी

दीपावली पर पटाखे बैन षड्यंत्र की कहानी..

पंच मक्कार(मीडिया, मार्क्सवादी, मिचनरी, मुलाना, मैकाले) किस तरह से सुनियोजित कार्य करते है आप इस लेख के माध्यम से जान पाएंगे. किस तरह इकोसिस्टम बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है वो आप जान पाएंगे. वे किस तरह 10, 20 साल की योजना बनाकर स्टेप बाई स्टेप नरेटिव सेट कर शनैःशनैः वार कर किले को ढहा देते है ये आप जानेंगे. जिसमें वे आपको ही अपनी सेना बनाकर अपना कार्य करते है और आपको पता भी नही चलता.

पटाखो पर बैन की कहानी 2001 से शुरू होती है. जब एक याचिका में SC ने सुझाव दिया कि पटाखे केवल शाम 6 से 10 बजे तक मात्र चार घण्टे के लिए फोड़े जाए. साथ ही इसको लेकर जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में बच्चों को बताया जाए. ये केवल एक सुझाव वाला निर्णय था ना कि पटाखे फोड़ने पर आपराधिक निर्णय. ध्यान रहे सुझाव केवल दीपावली पर ही था क्रिसमस और हैप्पी न्यूएर पर नही. ये एक प्रकार का लिटमस टेस्ट था.

लिटमस टेस्ट सफल रहा क्योंकि हिंदुओ ने कोई विरोध नही किया हालांकि सुझाव किसी ने नही माना लेकिन उसका विरोध भी नही किया. इससे इकोसिस्टम को बल मिला और 2005 में एक और याचिका लगी. जिसमें कोर्ट द्वारा इसबार पटाखो को ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर आपराधिक कृत्य बनवा दिया गया अर्थात रात 10 बजे के बाद पटाखे फोड़ना आपराधिक कृत्य हो सकता है. चूंकि उसवक्त पटाखो को लेकर कोई कानून नही था अतः पटाखो को विस्फोटक अधिनियम में डाला गया ताकि यह आपराधिक कृत्य बनाया जा सके. तत्कालीन केंद्र सरकार(2004-2009) का मौन समर्थन रहा.

हिंदुओ ने तो भी विरोध नही किया. उधर स्कूलों के माध्यम से लगातार बच्चों के अंदर दीपावली के पटाखों से प्रदूषण ज्ञान दिया जाने लगा. बच्चे भी एक नरेटिव है. दीपावली पर पटाखे बच्चों का ही आकर्षण है. अतः उन्हें ही टार्गेट किया गया. आपको याद हो तो 2005 से स्कूलों में अचानक से पटाखा ज्ञान शुरू हो गया था. बच्चे खुद बोलने लगें पटाखे मत फोड़िये प्रदूषण होता है.

2010 में NGT की स्थापना हुई. जिसे प्रदूषण पर्यावरण ग्रीनरी के नाम पर केवल नारंगी त्यौहार दिखाई दिए. दीपावली, अमरनाथ यात्रा पर ज्ञान और फैसले देने वाला ngt क्रिसमस नए साल पर सदैव मौन रहा.

असली खेल 2016 से शुरू हुआ. अब इस खेल में लाल घोड़े(लेफ्ट) हरे टिड्डों(m) और सफेद बगुलों(मिचनरी) के साथ नारंगी भी शामिल हो गए. जी हाँ सही पढ़ा आपने नारंगी भी शामिल हो गए.

पूर्व नारंगी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने तत्कालीन दिल्ली उपराज्यपाल को चिट्ठी लिखकर दीपावली पर पटाखे बैन की अपील की लेकिन LG ने ठुकरा दी. तब 2017 में तीन NGO एक साथ SC पहुंचे जिसमें से एक ngo "आवाज" था जिसकी कर्ताधर्ता "sumaira abdulali थी. जहां तीनो ngo ने दीपावली के पटाखो को ध्वनि और वायु प्रदूषण के लिए खतरनाक बताते हुए तत्काल प्रभाव से बैन करने की मांग की. जिसमे तीनो ngo की "आवाज" से आवाज मिलाई "केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" ने. ध्यान रहे केंद्र और केजरीवाल सरकार दोनो ने SC में पटाखे बैन याचिका का विरोध नही किया. परिणामस्वरूप SC ने पहला बड़ा निर्णय देते हुए दिल्ली में पटाखो की बिक्री पर रोक लगा दी.

लेकिन हिंदुओ ने तब भी कोई विरोध नही किया बल्कि प्रदूषण के नाम पर समर्थन किया. क्योंकि तब हिन्दू "जागरूक" हो चुके थे. उन्हें लगने लगा दिल्ली प्रदूषण का एकमात्र कारण दीपावली के पटाखे है.

लिटमस टेस्ट में सफल होने के बाद पंचमक्कार 2018 में पुनः कोर्ट पहुंच गए. इसबार पटाखे फोड़ने पर ही बैन लगवा दिया गया. लेकिन झुन झुने के रूप में ग्रीन पटाखे पकड़ा दिए. ये दूसरा लिटमस टेस्ट था.

इसबार छिटपुट विरोध हुआ लेकिन तथाकथित जागरूक हिन्दू जो आप ही थे आप ही इकोसिस्टम की सेना बनकर पटाखे बैन करने के समर्थन में उतर गए और विरोध करने वालो को गंवार, अनपढ़, जाहिल, पिछड़ी सोच ना जाने क्या क्या कहकर आपने ही उनकी आवाज को दबा दिया और आपको पता ही नही चला.

धीरे धीरे खेल मीडिया से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंच गया. जहां दीपावली के एनवक्त पहले अचानक से प्रकट होकर क्रिकेटर/बॉलीबुड कलाकार क्रेकर ज्ञान देने लगे. मीडिया में लम्बी लम्बी डिबेट्स कर ब्रेनवॉश किया गया कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गई है. जिसका एकमात्र कारण दीपावली पर जलने वाले पटाखे है. जिन्हें यदि बैन नही किया गया तो दीपावली के अगले दिन सब सांस से घुटकर मर जायेंगे.

2020 में तीसरा लिटमस टेस्ट किया गया और पटाखे बैन दिल्ली से बाहर निकलकर पूरे देश मे लागू किये गए. जिसमें एक और ngo जुड़ा. जिसने नवम्बर 2020 में याचिका लगाई पटाखे बैन पर. उस ngo का नाम था indian social responsibility network..

यदि आप और गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि ये एक नारंगी ngo है. जिसमे नारंगी राज्यसभा सांसद से लेकर वर्तमान नारंगी अध्यक्ष जी की श्रीमती भी है. नतीजा ये रहा कि दिल्ली सहित पूरे देश मे पटाखे 2 घण्टे के अतिरिक्त बैन हो गए और उल्लंघन करने पर पूरे देश मे जगह जगह कार्रवाइयां हुई. इस बैन में सभी ने बराबर की भूमिका निभाई.

लेकिन चूंकि उद्देश्य कुछ और ही था ?? अतः 2 घण्टे की ग्रीन पटाखो की छूट भी चुभ रही थी. इसबार उसे भी खत्म कर दिया गया. पंचमक्कारो द्वारा कुतर्क दिया गया कि भगवान राम के समय पटाखे नही थे. ये जानते हुए भी कि जरूरी नही है परम्पराए मूल से निकले. परम्पराए बाद में जुड़कर सदियों से चलकर त्योहार का मूल हिस्सा बन जाती है जैसे क्रिसमस में क्रिसमस ट्री और अजान में लाउडस्पीकर जो मूल समय मे नही थे. लेकिन वहां कोई कुतर्क नही करता.

यही है वामपंथ की ताकत जो आपका ब्रेनबाश कर आपको जाम्बी बना देती है. जहां आप जिस डाली पर बैठे हो उसे ही काटकर(अपने ही मूल्यों को समाप्त कर) गर्व महसूस करते है.

यही है नरेटिव की ताकत जहां दीपावली का प्रदूषण चुनावी मुद्दा बन गया. जबकि पटाखे प्रदूषण के मुख्य कारकों में top 10 में भी नही है(IIT रिसर्च). लेकिन हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए दीपावली पटाखे बैन के समर्थन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगी. ध्यान रहे मुद्दा केवल दीपावली के पटाखे बने क्रिसमस और नए साल के नही.

यही पँचमक्कारो की ताकत है. हालत ये है कि अब राजस्थान/दिल्ली जैसे राज्य बिना कोर्ट के आदेश के बिना मंथन बिना बैठक दीपावली पर खुद ही पटाखे बैन करने लगे है. जैसे कोई धारा 144 जैसा रूटीन आदेश हो. लेकिन ये राज्य क्रिसमस न्यूएर पर चुप रहते है. ये हालत तब है जब राजस्थान में प्रदूषण मुद्दा नही है. आज दीपावली पर पटाखे बैन करना और ज्ञान देना फैशन हो गया.

निश्चित रूप से प्रदूषण चिंता का विषय है लेकिन उसका एकमात्र मुख्य कारण पटाखे नहीं है अतः पटाखे बैन की नौटंकी छोड़कर NGO, सरकारें, विपक्ष और कोर्ट द्वारा प्रदूषण के मुख्य कारकों को बैन करना होगा.

पूर्वांचली बधाई के पात्र है जिन्होंने छठ पूजा नरेटिव बनने से पहले भारी विरोध कर कम से कम इस वर्ष पर्व बचा लिया वरना अगला टार्गेट छठपूजा ही था. ध्यान रहे कोई आपके साथ नही खड़ा होगा जबतक आप स्वयं अपने साथ नही खड़े है.

दीपावली से उसका मुख्य आकर्षण पटाखा खत्म करने के लिए, बच्चों के हाथों से फुलझड़ी छिनने के लिए सब जिम्मेदार है. पंचमक्कार से लेकर नारंगी भी और आप स्वयं भी क्योंकि आप मौन रहे. पंचमक्कार नरेटिव ने होली से रंग, दीपावली से पटाखे, दशहरे से रामलीला, जन्माष्टमी से दही हांडी छीन ली या छिनने के कगार पर है..

सब मिले हुए है....

#नोट: इसमें छिब्बल की कहानी शामिल नही है उसपर बहुत लिखा जा चुका है. यहां मूल जड़ बताने का प्रयास किया गया है. लेख को छोटा रखने के लिए केवल मुख्य तथ्यों को संक्षेप में रखा गया है. कुछ विषय छूट गए होंगे या तथ्यों में कुछ अंतर हो सकता है इसके लिए लेखक क्षमाप्रार्थी है. यहाँ लेख का मुख्य उद्देश्य केवल आपको नरेटिव और इस खेल से परिचित करवाना है ना कि किसी पर दोषारोपण. 

स्त्रोत: ISD
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

कमर में दर्द के घरेलू उपाय

 

कमर में दर्द के घरेलू उपाय निम्न है-

  • कमर दर्द में आराम पाने के लिए एक चम्मच शहद में दालचीनी पाउडर डालकर दिन में 2 बार खाएं।
  • कमर दर्द के लिए गर्म बोतल से सिकाई करना बहुत फायदेमंद होता है। ऐसे में गर्म पानी की बोतल से कमर की सिकाई करें।
  • अगर दर्द सर्दी के कारण हो रहा है तो इसके लिए सूखी अंजीर,एक सूखी खुबानी और सूखे आलूबुखारे को रात में चबाकर खाएं।
  • अगर कमर दर्द के कारण आपको उठने-बैठने में दिक्क्त हो रही है तो ऐसे में आप सरसों के तेल को गर्म करके दर्द वाली जगह पर मलें। इससे दर्द में काफी आराम मिलता है।

योग करें। योग करने से हड्डियों में लचिलापन बना रहता है जिससे दर्द नहीं होता है।

इस वर्ष दिवाली की रात को लक्ष्मी जी हमारे घर आती है बच्चो के लिए कुछ धन और खिलौने छोड़कर जाएंगी

 *जयश्रीराम*🚩




जिस तरह पूरे विश्व में बच्चो में ये विश्वास पैदा किया गया कि क्रिसमस पर सांता क्लॉज आएगा और उपहार देगा।(भारतीय बच्चे भी अछूते नहीं रहे)।
उसी तरह हम सब मिलकर हमारे  घरों में ये विश्वास दिलाने का अभियान चलाए कि *दिवाली की रात को लक्ष्मी जी हमारे घर आती है*...  *और हमको समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाती है*. .

अतः,  *इस वर्ष से बच्चो को ये बताया जाए समझाया जाए कि लक्ष्मी जी दिवाली की रात को हमारे घर आएंगी और उनके लिए कुछ धन और खिलौने छोड़कर जाएंगी*।।
और जब वह सुबह  उठे, तो  उन्हे अपने बिस्तर के निकट लक्ष्मी जी द्वारा छोड़े गए धन और खिलौने मिलें ।
यकीन मानिए उनके उत्साह और प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहेगा.


*हमारे पुराण, हमारी कथाएं, हमारी आस्था पूरे विश्व में अनूठी है, रंगो से भरपूर हमारे विश्वास की डोर से बंधी है । हमारी संस्कृति जैसी किसी की भी नही है* ।



www.sanwariyaa.blogspot.com

शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

काले जादू को कैसे खत्म कर सकते हैं?

 


काले जादू निवारण के उपाय

बुरी शक्ति से बचने के लिए नीचे कुछ सरल उपाय दिए गए हैं जिनको करने से आप खुद को व अपने परिवार को इस बुरी शक्ति के प्रभाव से बचा सकते हैं|

पीली सरसो और गाय का गोबर

पीली सरसों, गुग्गुल, कपूर और गाय के घी से धूप को तैयार कर लें| आपको एक गाय के गोबर से बना उपला लेना होगा और इसे जलाना होगा| साथ ही तैयार धूप को इसमें डालना होगा| इसके बाद घर के हर कोने में इसकी धूप को फैला लें| आपको इसका प्रयोग 21 दिन तक लगातार करना होगा| तभी घर से सारी नकारात्मक शक्तियां धीरे-धीरे दूर हो जाएगी|

घर का मंदिर, और चांदी की कटोरी का उपयोग

माना जाता है कि रात का भोजन करने के बाद घर में जो मंदिर है वहां पर एक चांदी की कटोरी को रख लें| इस कटोरी में आपको लौंग और कपूर को डालकर जलाना होगा| इस प्रयोग को करने से हर तरह के संकटों से आपको मुक्ति मिल जाएगी| ऐसा करने से घर में किसी भी प्रकार कि नकारात्मक शक्ति का होना प्रवेश बाधित हो जाता है|

साबुत उड़द, कोयले और काले काले कपड़े का उपयोग

जिस भी व्यक्ति पर प्रेतबाधा हो उसके लिए ये उपाय करना चाहिए| एक किलो साबुत उड़द लें और इसे सवा किलो कोयले में मिला लें| इसके बाद इसे सवा मीटर की काले कपड़े में बांधकर प्रभावित व्यक्ति के सिर से सात बार उसारें और फिर इस पोटली को नदी में बहा दें|

धतूरे के पौधे का उपयोग

सबसे आखिर में एक धतूरे के पौधे को आप जड़ से ही उखाड़ ले और इसे उलटा करके जमीन में गाढ़ दें| इस उपाय को करने से घर में सुख शांति बनी रहेगी और किसी भी तरह की प्रेत बाधा से बचाव होता रहेगा|

ऐसा ज्ञान जो एक दिन आपके जीवन को बचा सकता है?

 

1. यदि आप बलात्कार के कगार पर हैं, तो उसके अंडकोष को जितना हो सके जोर से मारें और देखें कि वह कैसे नीचे गिरेगा और यदि वे समूह में हैं, तो इस बहादुर स्टंट को न करें बल्कि उन्हें बताएं कि आपको एचआईवी है।

2. बाईस्टैंडर प्रभाव। यदि आप इस परिणाम से अनजान हैं, तो इसके बारे में जानने से आपकी जान बच सकती है। बाईस्टैंडर प्रभाव दर्शकों के बीच दोष के फैलाव को दर्शाता है। जब कोई डकैती या लड़ाई के किनारे खड़ा होता है, तो वे हस्तक्षेप नहीं करेंगे क्योंकि वे दूसरों की सहायता करने की आशा करते हैं।

जब आप लड़ाई में हों, लूटे जा रहे हों, या इससे भी बदतर हो, तो दूसरों से आपकी मदद की उम्मीद न करें। वे इससे बचना चाहेंगे। इसके बजाय, उन्हें आंखों में देखें, उनकी मदद मांगें, विशेष रूप से उन्हें निर्देशित करें। यह किसी और की मदद करने में सक्षम होने की भावना को हटा देता है जैसा आपने उनसे विशेष रूप से पूछा था।

3. चाकू के घाव से चीजों को हटाने से खून की कमी अधिक होती है, जिससे पीड़ित के मरने की संभावना बढ़ जाती है। उस वस्तु को अकेला छोड़ देना चाहिए। इससे छुटकारा पाने की कोशिश मत करो।

4. प्लेन से उतरने से पहले अपनी लाइफ जैकेट को फुलाएं नहीं। आपातकालीन जल लैंडिंग के मामले में, अपने फुलाए हुए जीवन जैकेट के साथ तैयार रहना एक अच्छा विचार नहीं है। कई एविएशन सेफ्टी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ऐसा करने से आपके लिए हालात और खराब ही होंगे।

यह इस तथ्य के कारण है कि जैसे ही विमान डूबना शुरू होता है, केबिन के अंदर का पानी आपको छत तक धकेल देगा। आप वहां से सहायता के बिना आगे बढ़ने में सक्षम नहीं होंगे। इसलिए अपनी लाइफ जैकेट पहनें और विमान से बाहर निकलने के बाद ही इसे फुलाएं।

5. जानें कि अपने खुद के टायर कैसे बदलें और सुनिश्चित करें कि आप एक पूर्ण आकार के अतिरिक्त और आपके लिए आवश्यक सभी टूल्स से लैस हैं।

6. किसी को बताएं कि आप कहां होंगे - जब आप अकेले रहते हैं या यहां तक ​​कि जब आप रात के लिए बाहर जाते हैं, तो एक दोस्त को बताएं कि आप कहां होंगे।

यह मुश्किल से आपकी ओर से कोई प्रयास करता है, और अगर कुछ गलत हो जाता है या आप सुबह वापस नहीं आते हैं, तो किसी को पता चल जाएगा कि कहां से शुरू करना है अगर उन्हें आपकी तलाश करनी है।

7. अपनी जेब में हाथ डालकर सीढ़ियों से नीचे न उतरें। आपको अपने सिर की रक्षा करने या अपने गिरने को रोकने के लिए अपने हाथों की आवश्यकता है।

8. ज्यादातर गलतियां इसलिए होती हैं क्योंकि हम तेज होना चाहते हैं। हम दूसरी जगहों पर जाना चाहते हैं, जल्दी में हैं और भाग खड़े हुए हैं। ऐसे ही बहुत हादसे होते हैं। कोई जल्दी में है और पर्याप्त ध्यान नहीं देता है।

9. यदि आप रेगिस्तान, या किसी निर्जन क्षेत्र में खो गए हैं, तो आपके पाए जाने की संभावना को बढ़ाने के लिए आप जो महत्वपूर्ण चीज ले सकते हैं वह एक छोटा परावर्तक दर्पण है।

जब भी कोई विमान ऊपर की ओर उड़ता है तो आप उसकी ओर प्रकाश को प्रतिबिंबित कर सकते हैं और आपके मिलने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। यह गंभीरता से आपके साथ अधिक पानी ले जाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

10. जब आपको लगे कि आप जल्दी में हैं तो इसे याद रखें: 5 मिनट की देरी से आपकी जान बच सकती है। क्या उन 5 मिनट को बचाना वाकई इसके लायक है? कभी-कभी ऐसा हो सकता है, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो एक गहरी सांस लें और धीमी गति से चलें।

11. उस डूबती गाड़ी से बाहर निकलना। यह महत्वपूर्ण है कि आप जितनी जल्दी हो सके एक दरवाजा खोल दें, इससे पहले कि पानी का दबाव असंभव बना दे।

यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो एक खिड़की तोड़ दें। यदि इनमें से कोई भी विफल हो जाता है तो शांत रहें और कार में पानी के बहने की प्रतीक्षा करें। एक बार पर्याप्त आने पर दबाव बराबर हो जाएगा और दरवाजा खुल जाना चाहिए।

12. अगर आप पानी में गिर जाते हैं, तो घबराएं नहीं। आपको तैरने में सक्षम होने की आवश्यकता नहीं है; आपको बस तैरना है। अपनी सांस रोककर रखें और अपने आप को सतह पर आने दें।

13. हमेशा। मेरा मतलब हमेशा, अपनी आंत की प्रवृत्ति को सुनो। वे आपके पहले संकट कॉल सिग्नल हैं। उन्होंने मुझे कभी असफल नहीं किया, मेरा मतलब है।

एक दिलचस्प ऑप्टिकल भ्रम.. सुपर इल्यूजन ब्रदर्स। केवल एक व्यक्ति चल रहा है!

 

एक दिलचस्प ऑप्टिकल भ्रम..

सुपर इल्यूजन ब्रदर्स। केवल एक व्यक्ति चल रहा है!

ऊटों को जिंदा साँप क्यों खिलाया जाता है?


 

ऊंट अक्सर रेगिस्तानी इलाकों में पाए जाते हैं जैसे कि अरब के देशों में या फिर अफ्रीकी रेगिस्तान में! वहीं भारत के भी कई हिस्सों जैसे राजस्थान में भी ऊँट को सामान ले जाने या लाने के लिए पाला जाता है क्योंकि रेगिस्तानी इलाको में लोगो को दूर सफर के लिए जाना पड़ता है जिस वजह से वो ऊँट को पालते हैं।

और यह बात बिल्कुल सही है कि एक वक्त आता है जबकी इनको को सांप खिलाया जाता है कारण क्या है नीचे जानिए ।

ऊँट को खिलाया जाता है जहरीला सांप !

ऊँट को एक ऐसी अजीबोगरीब बीमारी भी हो जाती है जबकि इस बीमारी में इस जानवर के शरीर में एक जहर बनने लगता है इसका सही वक्त पर अगर इलाज ना किया जाए तो इस जानवर की मौत हो जाती है। इस बीमारी से बचाने के लिए वहां के लोग ऊंट को जहरीला सांप खिला देते हैं ।

सांप के जहर के असर से पहले तो ऊंट बीमार हो जाते हैं और कुछ दिनों तक खाना पीना हर चीज छोड़ देता है और जैसे ही सांप के जहर का असर खत्म होता है तो ऊंट को बहुत जबरदस्त भूख और प्यास लगती है । जिसके बाद यह रेगिस्तानी जानवर कई 100 लीटर पानी पी जाता है लेकिन फिर भी इन की प्यास नहीं बुझती और यह हर बार पानी पीता है जिसके कुछ ही दिनों के बाद बीमारी पूरी तरह से खत्म हो जाती है। जिसके बाद यह एकदम से तंदुरुस्त हो जाते हैं।

क्या साँपो को भी खुद ही खा जाते हैं ऊँट ?

जी हां इस बीमारी के कारण ऊंट कभी-कभी खुद ही सांप को खा जाते हैं और आपको बता दें कि ऊंट जब जहरीले सांपों को खाता है तो उस वक्त उसकी आंखों से आंसू निकलते हैं. ऊंट के मालिक उनकी आंखों से निकलने वाले आंसुओं को इकट्ठा कर लेते हैं आपको जानकर हैरानी होगी कि इन आंसुओं की बहुत अधिक कीमत होती है क्योंकि उनका इस्तेमाल सांपों के जहर का एंटीडोट तैयार करने में किया जाता है ।

वैसे ऊंट एक बहुत ही उपयोगी और निराला जीव है । इसका दूध बहुत कीमती होता है और यह बहुत दिनों तक बिना पानी पिए जीवित रह सकता है ।

चित्र गूगल से साभार

स्रोत : जानिये ऊँटो के बारे में 10 ऐसे तथ्य.... जो 99% लोग नहीं जानते

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

जहाँ-जहाँ हिन्दू घटा, वहाँ-वहाँ देश बंटा...! #भारत_विभाजन...


 #भारत_विभाजन...
जहाँ-जहाँ हिन्दू घटा, वहाँ-वहाँ देश बंटा...!

मात्र 150 साल में भारत का विभाजन 9 टुकड़ों में हुआ, 2500 वर्षों में 24वां टुकड़ा पाकिस्तान और 25वां टुकड़ा बंग्लादेश हुआ।

संसार में जब से भी इतिहास लिखने की शुरुवात हुई , तब से आज तक में लिखे गए सभी इतिहासों में दुनिया की सबसे पुराना इतिहास की पुस्तक यदि कोई है तो वह पुराण ही है I सिर्फ एकमात्र पुराण ही है ! सृष्टि निर्माण के प्रारंभ से  तथा  महाभारत काल से पूर्व और बाद में भी यदि उन्नत मानव जीवन को धारण करने वाला कोई दुनिया का हिस्सा,द्वीप था तो वह केवल जम्बूद्वीप ही था ,जिसे आज का एशिया महाद्वीप कहते है|इसी का प्रारम्भिक अतिप्राचीन इतिहास अनेकानेक पुराण है|
            सभी जानते है कि असुर और दानवी प्रकृतियाँ अपने कठोर श्रम एवं पुरुषार्थ से अतुल्य शक्ति एवं सामर्थ्य अर्जित करती है | उस शक्ति , सामर्थ्य का अक्षय स्रोत्र भय, उत्पीडन, विनाश व शोषण होता है|उनका ज्ञान विज्ञानं भी उनके द्वारा किये जा रहे विनाश और संहार को रोक नहीं पाता है|वे दुसरे कि कृति,यश को नकारते है|यहाँ तक कि वे दुसरे के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते है| उसका शोषण ,उत्पीडन करते है|यहाँ तक कि अपने स्वार्थ अव अस्तित्व की रक्षा हेतु उसका सदैव के लिए नामोनिशान भी मिटा देते है | विनाश कर देते है|वे अपनी श्रेष्ठता को ही सर्वोच्च मानते है। दुसरे की श्रेष्ठता को नकारा घोषित कर देते है| कुछ ऐसा ही कमोवेश अमेरिका और यूरोप का इतिहास और प्रकृति रही है और है भी| एक समय ऐसा भी आता है कि इस अत्याचार ,दमन उत्पीडन का अंत इन आसुरी शक्तियों के विनाश व अंत के साथ निश्चित ही होता है| इस समय की कभी कभी लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है | वह समय प्रारंभ हो चूका है ,वह समय आ गया है |
              आज आवश्यकता है , जम्बूद्वीप , चाहे उसे जिस नाम से कहे कोई अंतर नहीं अपने अतीत व इतिहास से प्रेरणा प्राप्त करे , अपने भूले , ध्यान रहे जो बिखरा नहीं है , को पढ़े ,उस अतीत से उर्जा प्राप्त करे , वर्तमान की सारी कटुताओं को सुलझाकर विस्मृत कर ले । एक नई एकता , दृढ़ता, शांति  व संकल्प के साथ एक नए वातावरण में  एक नए युग का , एक नए विश्व का निर्माण करे , जो विश्व को इस संक्रांति, संक्रमण की बेला में मार्गदर्शन दे सके, एक नई दिशा दे सके| पर स्मरण रहे यह जबाब देही जम्बूद्वीप की है , विश्व से अपेक्षा न करे । अपेक्षा सद्समाज , सद्व्यक्ति, सद्चरित्र से की जाती है  |धूर्त, कुटिल, अत्यधिक चतुर-चालाक , क्रूर , शोषक, तथा उत्पीड़क से नहीं की जाती है,जो आज का अमेरिका व यूरपो है |
         एक नई दृढ़ता, एकता, संकल्प के साथ सुख- शांति के वातावरण में एक नए विश्व को दिशा देने की चिरप्रतीक्षित बेला में एक जबाबदेही के साथ ......................
    वह जम्बूद्वीप ..........

**यस्य विश्वे हिमवन्तो महित्वा !
समुद्रे यस्य रसाभिदाहः  !
इमाश्च में प्रदिशो यस्यबाहू |
कस्मैदेवाय हविषाविधेयं !
अत्रापि भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने |
यतो हि कर्म्भूरेषा ह्यातोंया भोगभुमयाह |


सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।

नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)



सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, ब्रह्मदेश(बर्मा/म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया। यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए।
प्राय: #पाकिस्तान व #बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं।
शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है......सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है।
सम्पूर्ण पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम #जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा #इन्दूसरोवरम् जिसे आज #हिन्दमहासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में #हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊँची चोटी #सागरमाथा, #गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने #एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदलने का कूटनीतिक षड्यंत्र रचा।
हम पृथ्वी पर जिस भू-भाग अर्थात् राष्ट्र के निवासी हैं उस भू-भाग का वर्णन अग्नि, वायु एवं विष्णु पुराण में लगभग समानार्थी श्लोक के रूप में है :-

उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र संतति।।

अर्थात् हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो भू-भाग है उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारती या भारतीय के नाम से पहचानते हैं। बृहस्पति आगम में इसके लिए निम्न श्लोक उपलब्ध है :-

हिमालयं समारम्भ्य यावद् इन्दु सरोवरम।
तं देव निर्मित देशं, हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।

अर्थात् जब हम अपने देश (राष्ट्र) का विचार करते हैं तब अपने समाज में प्रचलित एक परम्परा रही है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य पर संकल्प पढ़ा अर्थात् लिया जाता है। संकल्प स्वयं में महत्वपूर्ण संकेत करता है। संकल्प में काल की गणना एवं भूखण्ड का विस्तृत वर्णन करते हुए, संकल्प कर्ता कौन है ? इसकी पहचान अंकित करने की परम्परा है। उसके अनुसार संकल्प में भू-खण्ड की चर्चा करते हुए बोलते (दोहराते) हैं कि जम्बूद्वीपे (एशिया) भरतखण्डे (भारतवर्ष) यही शब्द प्रयोग होता है। सम्पूर्ण साहित्य में हमारे राष्ट्र की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर का वर्णन है, परन्तु पूर्व व पश्चिम का स्पष्ट वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों अर्थात् एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है।
जब विश्व (पृथ्वी) का मानचित्र आँखों के सामने आता है तो पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि विश्व के भूगोल ग्रन्थों के अनुसार हिमालय के मध्य स्थल #कैलाशमानसरोवर से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इण्डोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश अर्थात् #आर्यानप्रदेश हिमालय के अंतिम छोर हैं। हिमालय 5000 पर्वत शृंखलाओं तथा 6000 नदियों को अपने भीतर समेटे हुए इसी प्रकार से विश्व के सभी भूगोल ग्रन्थ (एटलस) के अनुसार जब हम श्रीलंका (सिंहलद्वीप अथवा सिलोन) या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर प्रस्थान करेंगे या दृष्टि (नजर) डालेंगे तो हिन्द (इन्दु) महासागर इण्डोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिन्दुओं के पश्चात् ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है।

इस प्रकार से हिमालय, हिन्द महासागर, आर्यान (ईरान) व इण्डोनेशिया के बीच के सम्पूर्ण भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्तान कहा जाता है।

प्राचीन भारत की चर्चा अभी तक की, परन्तु जब वर्तमान से 3000 वर्ष पूर्व तक के भारत की चर्चा करते हैं तब यह ध्यान में आता है कि पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रांत यूनानी (रोमन ग्रीक) यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज आदि आए, इन सबका विश्व के सभी इतिहासकारों ने वर्णन किया। परन्तु सभी पुस्तकों में यह प्राप्त होता है कि आक्रान्ताओं ने भारतवर्ष पर, हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया है। सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, (म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया।

यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए। प्राय: पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है। सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके पश्चात् सन 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। आगे लेख में सातों विभाजन कब और क्यों किए गए इसका संक्षिप्त वर्णन है।
सन् 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग कि.मी. था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग कि.मी. है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग कि.मी. बनता है।

भारतीयों द्वारा सन् 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए स्वतन्त्रता संग्राम (जिसे अंग्रेज ने गदर या बगावत कहा) से पूर्व एवं पश्चात् के परिदृश्य पर नजर दौडायेंगे तो ध्यान में आएगा कि ई. सन् 1800 अथवा उससे पूर्व के विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय देश नहीं थे। इनमें स्वतन्त्र राजसत्ताएं थीं, परन्तु सांस्कृतिक रूप में ये सभी भारतवर्ष के रूप में एक थे और एक-दूसरे के देश में आवागमन (व्यापार, तीर्थ दर्शन, रिश्ते, पर्यटन आदि) पूर्ण रूप से बे-रोकटोक था। इन राज्यों के विद्वान् व लेखकों ने जो भी लिखा वह विदेशी यात्रियों ने लिखा ऐसा नहीं माना जाता है। इन सभी राज्यों की भाषाएं व बोलियों में अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परम्पराएं भी समान हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ सम्प्रदाय में विविधताएं होते हुए भी एकता के दर्शन होते थे और होते हैं। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत इतर यानि विदेशी पंथ (मजहब-रिलीजन) आये तब अनेक संकट व सम्भ्रम निर्माण करने के प्रयास हुए।

सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्व-मार्क्स द्वारा अर्थ प्रधान परन्तु आक्रामक व हिंसक विचार के रूप में मार्क्सवाद जिसे लेनिनवाद, माओवाद, साम्यवाद, कम्यूनिज्म शब्दों से भी पहचाना जाता है, यह अपने पांव अनेक देशों में पसार चुका था। वर्तमान रूस व चीन जो अपने चारों ओर के अनेक छोटे-बडे राज्यों को अपने में समाहित कर चुके थे या कर रहे थे, वे कम्यूनिज्म के सबसे बडे व शक्तिशाली देश पहचाने जाते हैं। ये दोनों रूस और चीन विस्तारवादी, साम्राज्यवादी, मानसिकता वाले ही देश हैं। अंग्रेज का भी उस समय लगभग आधी दुनिया पर राज्य माना जाता था और उसकी साम्राज्यवादी, विस्तारवादी, हिंसक व कुटिलता स्पष्ट रूप से सामने थी।

#अफगानिस्तान :- सन् 1834 में प्रकिया प्रारम्भ हुई और 26 मई, 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात् पठान भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से अलग हो गए तथा दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियन्त्रण किसका हो ?

अफगानिस्तान (#उपगणस्तान) शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहाँ, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
नेपाल :- मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य का सुगठन कर चुके थे। स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में जहां आन्तरिक तनाव था, वहीं अंग्रेजी नियन्त्रण से कुछ में घोर बेचैनी भी थी। महाराजा त्रिभुवन सिंह ने 1953 में भारतीय सरकार को निवेदन किया था कि आप नेपाल को अन्य राज्यों की तरह भारत में मिलाएं। परन्तु सन 1955 में रूस द्वारा दो बार वीटो का उपयोग कर यह कहने के बावजूद कि नेपाल तो भारत का ही अंग है, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरूने पुरजोर वकालत कर नेपाल को स्वतन्त्र देश के रूप में यू.एन.ओ. में मान्यता दिलवाई। आज भी नेपाल व भारतीय एक-दूसरे के देश में विदेशी नहीं हैं और यह भी सत्य है कि नेपाल को वर्तमान भारत के साथ ही सन् 1947 में ही स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।

#भूटान :- सन 1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियन्त्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना प्रारम्भ किया। ये क्षेत्र(राज्य) भी स्वतन्त्रता सेनानियों एवं समय-समय पर हिन्दुस्तान के उत्तर दक्षिण व पश्चिम के भारतीय सिपाहियों व समाज के नाना प्रकार के विदेशी हमलावरों से युद्धों में पराजित होने पर शरणस्थली के रूप में काम आते थे। दूसरा ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक वे क्षेत्र खनिज व वनस्पति की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। तीसरा यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय (हिन्दू) धारा से अलग कर मतान्तरित किया जा सकेगा। हम जानते हैं कि सन 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नये आयामों की रचना कर डाली थी। सुदूर हिमालयवासियों में ईसाईयत जोर पकड़ रही थी।

#तिब्बत :- सन 1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीनी साम्राज्यवादी सरकार व भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा जमाए अंग्रेज शासकों के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय सदैव से ज्ञान-विज्ञान के शोध व चिन्तन का केंद्र रहा है। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला। अंग्रेज ईसाईयत हिमालय में कैसे अपने पांव जमायेगी, यह सोच रहा था परन्तु समय ने कुछ ऐसी करवट ली कि प्रथम व द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अंग्रेज को एशिया और विशेष रूप से भारत छोड़कर जाना पड़ा। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने समय की नाजकता को पहचानने में भूल कर दी और इसी कारण तिब्बत को सन 1949 से 1959 के बीच चीन हड़पने में सफल हो गया। पंचशील समझौते की समाप्ति के साथ ही अक्टूबर सन 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर हजारों वर्ग कि.मी. अक्साई चीन (लद्दाख यानि जम्मू-कश्मीर) व अरुणाचल आदि को कब्जे में कर लिया। तिब्बत को चीन का भू-भाग मानने का निर्णय पं. नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री) की भारी ऐतिहासिक भूल हुई। आज भी तिब्बत को चीन का भू-भाग मानना और चीन पर तिब्बत की निर्वासित सरकार से बात कर मामले को सुलझाने हेतु दबाव न डालना बड़ी कमजोरी व भूल है। नवम्बर 1962 में भारत के दोनों सदनों के संसद सदस्यों ने एकजुट होकर चीन से एक-एक इंच जमीन खाली करवाने का संकल्प लिया। आश्चर्य है भारतीय नेतृत्व (सभी दल) उस संकल्प को शायद भूल ही बैठा है। हिमालय परिवार नाम के आन्दोलन ने उस दिवस को मनाना प्रारम्भ किया है ताकि जनता नेताओं द्वारा लिए गए संकल्प को याद करवाएं।
श्रीलंका व म्यांमार :- अंग्रेज प्रथम महायुद्ध (1914 से 1919) जीतने में सफल तो हुए परन्तु भारतीय सैनिक शक्ति के आधार पर। धीरे-धीरे स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु क्रान्तिकारियों के रूप में भयानक ज्वाला अंग्रेज को भस्म करने लगी थी। सत्याग्रह, स्वदेशी के मार्ग से आम जनता अंग्रेज के कुशासन के विरुद्ध खडी हो रही थी। द्वितीय महायुद्ध के बादल भी मण्डराने लगे थे। सन् 1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ सकता है। उनकी अपनी स्थलीय शक्ति मजबूत नहीं है और न ही वे दूर से नभ व थल से वर्चस्व को बना सकते हैं। इसलिए जल मार्ग पर उनका कब्जा होना चाहिए तथा जल के किनारों पर भी उनके हितैषी राज्य होने चाहिए। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतन्त्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1965 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। ये दोनों देश इन्हीं वर्षों को अपना स्वतन्त्रता दिवस मानते हैं। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।

पाकिस्तान, बांग्लादेश व #मालद्वीप :- 1905 का लॉर्ड कर्जन का बंग-भंग का खेल 1911 में बुरी तरह से विफल हो गया। परन्तु इस हिन्दु मुस्लिम एकता को तोड़ने हेतु अंग्रेज ने आगा खां के नेतृत्व में सन 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना कर मुस्लिम कौम का बीज बोया। पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश जनजातीय जीवन को ईसाई के रूप में मतान्तरित किया जा रहा था। ईसाई बने भारतीयों को स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्णत: अलग रखा गया। पूरे भारत में एक भी ईसाई सम्मेलन में स्वतन्त्रता के पक्ष में प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। दूसरी ओर मुसलमान तुम एक अलग कौम हो, का बीज बोते हुए सन् 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग खड़ी कर देश को नफरत की आग में झोंक दिया। अंग्रेजीयत के दो एजेण्ट क्रमश: पं. नेहरू व मो. अली जिन्ना दोनों ही घोर महत्वाकांक्षी व जिद्दी (कट्टर) स्वभाव के थे।अंग्रेजों ने इन दोनों का उपयोग गुलाम भारत के विभाजन हेतु किया। द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेज बुरी तरह से आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से इंग्लैण्ड में तथा अन्य देशों में टूट चुके थे। उन्हें लगता था कि अब वापस जाना ही पड़ेगा और अंग्रेजी साम्राज्य में कभी न अस्त होने वाला सूर्य अब अस्त भी हुआ करेगा। सम्पूर्ण भारत देशभक्ति के स्वरों के साथ सड़क पर आ चुका था। संघ, सुभाष, सेना व समाज सब अपने-अपने ढंग से स्वतन्त्रता की अलख जगा रहे थे। सन 1948 तक प्रतीक्षा न करते हुए 3 जून, 1947 को अंग्रेज अधीन भारत के विभाजन व स्वतन्त्रता की घोषणा औपचारिक रूप से कर दी गयी। यहां यह बात ध्यान में रखने वाली है कि उस समय भी भारत की 562 ऐसी छोटी-बड़ी रियासतें (राज्य) थीं, जो अंग्रेज के अधीन नहीं थीं। इनमें से सात ने आज के पाकिस्तान में तथा 555 ने जम्मू-कश्मीर सहित आज के भारत में विलय किया। भयानक रक्तपात व जनसंख्या की अदला-बदली के बीच 14, 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में पश्चिम एवं पूर्व पाकिस्तान बनाकर अंग्रेज ने भारत का 7वां विभाजन कर डाला। आज ये दो भाग पाकिस्तान व बांग्लादेश के नाम से जाने जाते हैं। भारत के दक्षिण में सुदूर समुद्र में मालद्वीप (छोटे-छोटे टापुओं का समूह) सन 1947 में स्वतन्त्र देश बन गया, जिसकी चर्चा व जानकारी होना अत्यन्त महत्वपूर्ण व उपयोगी है। यह बिना किसी आन्दोलन व मांग के हुआ है।

भारत का वर्तमान परिदृश्य :- सन 1947 के पश्चात् फेंच के कब्जे से पाण्डिचेरी, पुर्तगीज के कब्जे से गोवा देव- दमन तथा अमेरिका के कब्जें में जाते हुए सिक्किम को मुक्त करवाया है। आज पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिंधी, बाल्टीस्थानी (गिलगित मिलाकर), कश्मीरी मुजफ्फरावादी व मुहाजिर नाम से इस्लामाबाद (लाहौर) से आजादी के आन्दोलन चल रहे हैं। पाकिस्तान की 60 प्रतिशत से अधिक जमीन तथा 30 प्रतिशत से अधिक जनता पाकिस्तान से ही आजादी चाहती है। बांग्लादेश में बढ़ती जनसंख्या का विस्फोट, चटग्राम आजादी आन्दोलन उसे जर्जर कर रहा है। शिया-सुन्नी फसाद, अहमदिया व वोहरा (खोजा-मल्कि) पर होते जुल्म मजहबी टकराव को बोल रहे हैं। हिन्दुओं की सुरक्षा तो खतरे में ही है। विश्वभर का एक भी मुस्लिम देश इन दोनों देशों के मुसलमानों से थोडी भी सहानुभूति नहीं रखता। अगर सहानुभूति होती तो क्या इन देशों के 3 करोड़ से अधिक मुस्लिम (विशेष रूप से बांग्लादेशीय) दर-दर भटकते। ये मुस्लिम देश अपने किसी भी सम्मेलन में इनकी मदद हेतु आपस में कुछ-कुछ लाख बांटकर सम्मानपूर्वक बसा सकने का निर्णय ले सकते थे। परन्तु कोई भी मुस्लिम देश आजतक बांग्लादेशी मुसलमान की मदद में आगे नहीं आया। इन घुसपैठियों के कारण भारतीय मुसलमान अधिकाधिक गरीब व पिछड़ते जा रहा है क्योंकि इनके विकास की योजनाओं पर खर्च होने वाले धन व नौकरियों पर ही तो घुसपैठियों का कब्जा होता जा रहा है। मानवतावादी वेष को धारण कराने वाले देशों में से भी कोई आगे नहीं आया कि इन घुसपैठियों यानि दरबदर होते नागरिकों को अपने यहां बसाता या अन्य किसी प्रकार की सहायता देता। इन दर-बदर होते नागरिकों के आई.एस.आई. के एजेण्ट बनकर काम करने के कारण ही भारत के करोडों मुस्लिमों को भी सन्देह के घेरे में खड़ा कर दिया है। आतंकवाद व माओवाद लगभग 200 के समूहों के रूप में भारत व भारतीयों को डस रहे हैं। लाखों उजड़ चुके हैं, हजारों विकलांग हैं और हजारों ही मारे जा चुके हैं। विदेशी ताकतें हथियार, प्रशिक्षण व जेहादी, मानसिकता देकर उन प्रदेश के लोगों के द्वारा वहां के ही लोगों को मरवा कर उन्हीं प्रदेशों को बर्बाद करवा रही हैं। इस विदेशी षड्यन्त्र को भी समझना आवश्यक है।


Artist called Thomas Ziebarth of Germany after travelling India made this beautiful painting. He named this as "OM India"


सांस्कृतिक व आर्थिक समूह की रचना आवश्यक :- आवश्यकता है वर्तमान भारत व पड़ोसी भारतखण्डी देशों को एकजुट होकर शक्तिशाली बन खुशहाली अर्थात विकास के मार्ग में चलने की। इसलिए अंग्रेज अर्थात् ईसाईयत द्वारा रचे गये षड्यन्त्र को ये सभी देश (राज्य) समझें और साझा व्यापार व एक करन्सी निर्माण कर नए होते इस क्षेत्र के युग का सूत्रपात करें। इन देशों 10 का समूह बनाने से प्रत्येक देश का भय का वातावरण समाप्त हो जायेगा तथा प्रत्येक देश का प्रतिवर्ष के सैंकड़ों-हजारों-करोड़ों रुपयेरक्षा व्यय के रूप में बचेंगे जो कि विकास पर खर्च किए जा सकेंगे। इससे सभी सुरक्षित रहेंगे व विकसित होंगे।





function disabled

Old Post from Sanwariya