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मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

दीपावली पर पटाखे बैन षड्यंत्र की कहानी

दीपावली पर पटाखे बैन षड्यंत्र की कहानी..

पंच मक्कार(मीडिया, मार्क्सवादी, मिचनरी, मुलाना, मैकाले) किस तरह से सुनियोजित कार्य करते है आप इस लेख के माध्यम से जान पाएंगे. किस तरह इकोसिस्टम बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है वो आप जान पाएंगे. वे किस तरह 10, 20 साल की योजना बनाकर स्टेप बाई स्टेप नरेटिव सेट कर शनैःशनैः वार कर किले को ढहा देते है ये आप जानेंगे. जिसमें वे आपको ही अपनी सेना बनाकर अपना कार्य करते है और आपको पता भी नही चलता.

पटाखो पर बैन की कहानी 2001 से शुरू होती है. जब एक याचिका में SC ने सुझाव दिया कि पटाखे केवल शाम 6 से 10 बजे तक मात्र चार घण्टे के लिए फोड़े जाए. साथ ही इसको लेकर जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में बच्चों को बताया जाए. ये केवल एक सुझाव वाला निर्णय था ना कि पटाखे फोड़ने पर आपराधिक निर्णय. ध्यान रहे सुझाव केवल दीपावली पर ही था क्रिसमस और हैप्पी न्यूएर पर नही. ये एक प्रकार का लिटमस टेस्ट था.

लिटमस टेस्ट सफल रहा क्योंकि हिंदुओ ने कोई विरोध नही किया हालांकि सुझाव किसी ने नही माना लेकिन उसका विरोध भी नही किया. इससे इकोसिस्टम को बल मिला और 2005 में एक और याचिका लगी. जिसमें कोर्ट द्वारा इसबार पटाखो को ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर आपराधिक कृत्य बनवा दिया गया अर्थात रात 10 बजे के बाद पटाखे फोड़ना आपराधिक कृत्य हो सकता है. चूंकि उसवक्त पटाखो को लेकर कोई कानून नही था अतः पटाखो को विस्फोटक अधिनियम में डाला गया ताकि यह आपराधिक कृत्य बनाया जा सके. तत्कालीन केंद्र सरकार(2004-2009) का मौन समर्थन रहा.

हिंदुओ ने तो भी विरोध नही किया. उधर स्कूलों के माध्यम से लगातार बच्चों के अंदर दीपावली के पटाखों से प्रदूषण ज्ञान दिया जाने लगा. बच्चे भी एक नरेटिव है. दीपावली पर पटाखे बच्चों का ही आकर्षण है. अतः उन्हें ही टार्गेट किया गया. आपको याद हो तो 2005 से स्कूलों में अचानक से पटाखा ज्ञान शुरू हो गया था. बच्चे खुद बोलने लगें पटाखे मत फोड़िये प्रदूषण होता है.

2010 में NGT की स्थापना हुई. जिसे प्रदूषण पर्यावरण ग्रीनरी के नाम पर केवल नारंगी त्यौहार दिखाई दिए. दीपावली, अमरनाथ यात्रा पर ज्ञान और फैसले देने वाला ngt क्रिसमस नए साल पर सदैव मौन रहा.

असली खेल 2016 से शुरू हुआ. अब इस खेल में लाल घोड़े(लेफ्ट) हरे टिड्डों(m) और सफेद बगुलों(मिचनरी) के साथ नारंगी भी शामिल हो गए. जी हाँ सही पढ़ा आपने नारंगी भी शामिल हो गए.

पूर्व नारंगी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने तत्कालीन दिल्ली उपराज्यपाल को चिट्ठी लिखकर दीपावली पर पटाखे बैन की अपील की लेकिन LG ने ठुकरा दी. तब 2017 में तीन NGO एक साथ SC पहुंचे जिसमें से एक ngo "आवाज" था जिसकी कर्ताधर्ता "sumaira abdulali थी. जहां तीनो ngo ने दीपावली के पटाखो को ध्वनि और वायु प्रदूषण के लिए खतरनाक बताते हुए तत्काल प्रभाव से बैन करने की मांग की. जिसमे तीनो ngo की "आवाज" से आवाज मिलाई "केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" ने. ध्यान रहे केंद्र और केजरीवाल सरकार दोनो ने SC में पटाखे बैन याचिका का विरोध नही किया. परिणामस्वरूप SC ने पहला बड़ा निर्णय देते हुए दिल्ली में पटाखो की बिक्री पर रोक लगा दी.

लेकिन हिंदुओ ने तब भी कोई विरोध नही किया बल्कि प्रदूषण के नाम पर समर्थन किया. क्योंकि तब हिन्दू "जागरूक" हो चुके थे. उन्हें लगने लगा दिल्ली प्रदूषण का एकमात्र कारण दीपावली के पटाखे है.

लिटमस टेस्ट में सफल होने के बाद पंचमक्कार 2018 में पुनः कोर्ट पहुंच गए. इसबार पटाखे फोड़ने पर ही बैन लगवा दिया गया. लेकिन झुन झुने के रूप में ग्रीन पटाखे पकड़ा दिए. ये दूसरा लिटमस टेस्ट था.

इसबार छिटपुट विरोध हुआ लेकिन तथाकथित जागरूक हिन्दू जो आप ही थे आप ही इकोसिस्टम की सेना बनकर पटाखे बैन करने के समर्थन में उतर गए और विरोध करने वालो को गंवार, अनपढ़, जाहिल, पिछड़ी सोच ना जाने क्या क्या कहकर आपने ही उनकी आवाज को दबा दिया और आपको पता ही नही चला.

धीरे धीरे खेल मीडिया से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंच गया. जहां दीपावली के एनवक्त पहले अचानक से प्रकट होकर क्रिकेटर/बॉलीबुड कलाकार क्रेकर ज्ञान देने लगे. मीडिया में लम्बी लम्बी डिबेट्स कर ब्रेनवॉश किया गया कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गई है. जिसका एकमात्र कारण दीपावली पर जलने वाले पटाखे है. जिन्हें यदि बैन नही किया गया तो दीपावली के अगले दिन सब सांस से घुटकर मर जायेंगे.

2020 में तीसरा लिटमस टेस्ट किया गया और पटाखे बैन दिल्ली से बाहर निकलकर पूरे देश मे लागू किये गए. जिसमें एक और ngo जुड़ा. जिसने नवम्बर 2020 में याचिका लगाई पटाखे बैन पर. उस ngo का नाम था indian social responsibility network..

यदि आप और गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि ये एक नारंगी ngo है. जिसमे नारंगी राज्यसभा सांसद से लेकर वर्तमान नारंगी अध्यक्ष जी की श्रीमती भी है. नतीजा ये रहा कि दिल्ली सहित पूरे देश मे पटाखे 2 घण्टे के अतिरिक्त बैन हो गए और उल्लंघन करने पर पूरे देश मे जगह जगह कार्रवाइयां हुई. इस बैन में सभी ने बराबर की भूमिका निभाई.

लेकिन चूंकि उद्देश्य कुछ और ही था ?? अतः 2 घण्टे की ग्रीन पटाखो की छूट भी चुभ रही थी. इसबार उसे भी खत्म कर दिया गया. पंचमक्कारो द्वारा कुतर्क दिया गया कि भगवान राम के समय पटाखे नही थे. ये जानते हुए भी कि जरूरी नही है परम्पराए मूल से निकले. परम्पराए बाद में जुड़कर सदियों से चलकर त्योहार का मूल हिस्सा बन जाती है जैसे क्रिसमस में क्रिसमस ट्री और अजान में लाउडस्पीकर जो मूल समय मे नही थे. लेकिन वहां कोई कुतर्क नही करता.

यही है वामपंथ की ताकत जो आपका ब्रेनबाश कर आपको जाम्बी बना देती है. जहां आप जिस डाली पर बैठे हो उसे ही काटकर(अपने ही मूल्यों को समाप्त कर) गर्व महसूस करते है.

यही है नरेटिव की ताकत जहां दीपावली का प्रदूषण चुनावी मुद्दा बन गया. जबकि पटाखे प्रदूषण के मुख्य कारकों में top 10 में भी नही है(IIT रिसर्च). लेकिन हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए दीपावली पटाखे बैन के समर्थन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगी. ध्यान रहे मुद्दा केवल दीपावली के पटाखे बने क्रिसमस और नए साल के नही.

यही पँचमक्कारो की ताकत है. हालत ये है कि अब राजस्थान/दिल्ली जैसे राज्य बिना कोर्ट के आदेश के बिना मंथन बिना बैठक दीपावली पर खुद ही पटाखे बैन करने लगे है. जैसे कोई धारा 144 जैसा रूटीन आदेश हो. लेकिन ये राज्य क्रिसमस न्यूएर पर चुप रहते है. ये हालत तब है जब राजस्थान में प्रदूषण मुद्दा नही है. आज दीपावली पर पटाखे बैन करना और ज्ञान देना फैशन हो गया.

निश्चित रूप से प्रदूषण चिंता का विषय है लेकिन उसका एकमात्र मुख्य कारण पटाखे नहीं है अतः पटाखे बैन की नौटंकी छोड़कर NGO, सरकारें, विपक्ष और कोर्ट द्वारा प्रदूषण के मुख्य कारकों को बैन करना होगा.

पूर्वांचली बधाई के पात्र है जिन्होंने छठ पूजा नरेटिव बनने से पहले भारी विरोध कर कम से कम इस वर्ष पर्व बचा लिया वरना अगला टार्गेट छठपूजा ही था. ध्यान रहे कोई आपके साथ नही खड़ा होगा जबतक आप स्वयं अपने साथ नही खड़े है.

दीपावली से उसका मुख्य आकर्षण पटाखा खत्म करने के लिए, बच्चों के हाथों से फुलझड़ी छिनने के लिए सब जिम्मेदार है. पंचमक्कार से लेकर नारंगी भी और आप स्वयं भी क्योंकि आप मौन रहे. पंचमक्कार नरेटिव ने होली से रंग, दीपावली से पटाखे, दशहरे से रामलीला, जन्माष्टमी से दही हांडी छीन ली या छिनने के कगार पर है..

सब मिले हुए है....

#नोट: इसमें छिब्बल की कहानी शामिल नही है उसपर बहुत लिखा जा चुका है. यहां मूल जड़ बताने का प्रयास किया गया है. लेख को छोटा रखने के लिए केवल मुख्य तथ्यों को संक्षेप में रखा गया है. कुछ विषय छूट गए होंगे या तथ्यों में कुछ अंतर हो सकता है इसके लिए लेखक क्षमाप्रार्थी है. यहाँ लेख का मुख्य उद्देश्य केवल आपको नरेटिव और इस खेल से परिचित करवाना है ना कि किसी पर दोषारोपण. 

स्त्रोत: ISD
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