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रविवार, 6 फ़रवरी 2022

भारत के वो महान रसायनज्ञ जो किसी भी धातु को सोने में बदल देते थे

भारत के वो महान रसायनज्ञ जो किसी भी धातु को सोने में बदल देते थे

भारत दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। यह पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देेश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है।

नागार्जुन भारत के धातुकर्मी एवं रसशास्त्री (alchemist) थे।इनका जन्म महाकौशल मे हुआ था जिसकी राजधानी श्रीपुर था जिसे वर्तमान मे छत्तीसगढ कहते है तथा श्रीपुर को सिरपुर कहते है जो की महासमुन्द जिले मे आता है।श्रीपुर प्राचीन काल मे वैभव की नगरी कहलाती थी अभी के समय वहा उत्खनन मे प्राचीन बौद्ध विहार होने के साक्ष्य मिले है। विदर्भ और महकौसल की सीमा एक दूसरे के साथ मिलती थी इनका जन्म 50ईपू से 120 ई तक माना जाता है चीनी यात्री ह्वेनसाग कुछ दुरी पर स्थित तुरतुरिया जाने का प्रामाण मिलता है।

चीनी और तिब्बती साहित्य के अनुसार वे 'वैदेह देश' (विदर्भ) में जन्मे थे और पास के सतवाहन वंश द्वारा शासित क्षेत्र में चले गये थे। इसके अलावा इतिहास में महायान सम्प्रदाय के दार्शनिक नागार्जुन तथा रसशास्त्री नागार्जुन में भी भ्रम की स्थिति बनी रहती है। महाराष्ट्र के नागलवाडी ग्राम में उनकी प्रयोगशाला होने के प्रमाण मिले हैं। कुछ प्रमाणों के अनुसार वे 'अमरता' की प्राप्ति की खोज करने में लगे हुए थे और उन्हें पारा तथा लोहा के निष्कर्षण का ज्ञान था। द्वितीयक साहित्य में भी रसशास्त्री नागार्जुन के बारे में बहुत ही भ्रम की स्थिति है। पहले माना जाता था कि रसरत्नाकर नामक प्रसिद्ध रसशास्त्रीय ग्रन्थ उनकी ही रचना है किन्तु १९८४ के एक अध्ययन में पता चला कि रसरत्नाकर की पाण्डुलिपि में एक अन्य रचनाकार (नित्यानन्द सिद्ध) का नाम आया है।

इस संदर्भ में सर्वप्रथम 'नागार्जुन' का ही नाम आता है। यह महान गुणों के धनी थे जो विभिन्न धातुओं को सोने में बदलने की विधि जानते थे और उसका सफलतापूर्वक प्रदर्शन भी किया था ।

सोना बनाने का रहस्य

कहते हैं कि इनका जन्म द्वितीय शताब्दी में हुआ था और गुजरात के सोमनाथ के निकट देहक नामक किले में हुआ था । नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना करी जिसमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेंद्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध है ।

उन्होंने कई असाध्य रोगों को खत्म करने की कई औषधियां भी प्राप्त करी। प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किऐ।

उन्होंने विस्तार से पारे को शुद्ध करना और औषधीय प्रयोग की विधियां बताई। पारे के प्रयोग न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायु बनाने में प्रयोग किया जाता था।

इस तरह हमारा प्राचीन भारत बहुत ही श्रेष्ठ था जहां पर अनेकों अनेक महान वैज्ञानिक पैदा हुए और इस धरा को समृद्धशाली बनाया।

सोना बनाने का रहस्य

https://sanwariyaa.blogspot.com/2015/02/blog-post_5.html

आइय़े फ़िर से सोना बनायें ।
https://sanwariyaa.blogspot.com/2015/02/blog-post_41.html






कौन से संवेष्टन (पैकेजिंग) डिजाइन धोखा देते हैं?

 

कौन से संवेष्टन (पैकेजिंग) डिजाइन धोखा देते हैं?

1) इस बालों की क्रीम की डिब्बी के नीचे से ढक्कन हटाया तो 50% खाली निकली।

2) जो हिस्सा बंद पैकेट से दिखता है, सिर्फ उसी में मछली डाली है।

3) एयरपॉड के नाम पर पुराने हेडफोन चेप दिए।

4) नीचे से इतनी खाली शीशी कि पाँचों उंगलियां उसमें समां जाती हैं।

5) इसे तो इंडिया में आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। सोचो कितना काला माल बनाया होगा गार्नियर ने लगातार धोका देकर।

6)

7) बड़ी डिब्बी में 150 गोलियां, छोटी डिब्बी में 250 गोलियां।

8) "इस पेन को बनाने में बहुत कम प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया है"

9) "होम मेड" है और छोटे अक्षरों में "फैक्ट्री" लिखा है।

10) आधा डिब्बा खाली।

मत चूको चौहान वसन्त पंचमी का शौर्य

 मत चूको चौहान

वसन्त पंचमी का शौर्य

चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण!
ता उपर सुल्तान है, चूको मत चौहान!!

वसंत पंचमी का दिन हमें "हिन्दशिरोमणि पृथ्वीराज चौहान" की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल  अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं।

पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई।

चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं।

इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।

पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया।

चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।

इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया

‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूको मत चौहान।।’’

अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।

इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का
आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे।

इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया।

गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को
कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये।

"आत्मबलिदान की यह घटना भी 1192 ई. वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।"

ये गौरवगाथा अपने बच्चों को अवश्य सुनाए

बसन्त पंचमी हकीकत राय की बलिदान कहानी

 13 वर्ष का एक हिन्दू बालक फारसी पढ़ने मदरसे जाया करता था। एक दिन मदरसे खेलते समय उसके मुस्लिम सहपाठियों ने हिन्दुओं की आराध्या माँ दुर्गा का बारम्बार उपहास किया। हिन्दू बालक के प्रतिवाद करने पर यह बात और अधिक बढ़ी तो उस हिन्दू बालक ने तर्क दिया कि ऐसी ही बदजुबानी यदि मुस्लिमों के पैगम्बर की बेटी फातिमा के बारे में की जाए तो कैसा लगेगा?



17वीं सदी, मुगलों का शासन और जनसँख्या में मुस्लिमों की बहुलता होना इस प्रतिप्रश्न को इस्लाम पर हमला सिद्ध करने के लिए पर्याप्त अनुकूल परिस्थितियाँ थीं। बात मदरसे के उस्ताद से होती हुई शहर काजी तक पहुँची। हिन्दू बालक को दोषी पाया ही जाना था, दोषी पाया गया। चिरपरिचित दो विकल्प देने की उदारता दिखाई गई

१. इस्लाम कुबूल करो और जीवित रहो....अथवा
२. सिर कलम होगा

हिन्दू परिवार में हाहाकार मच गया, कहा जाता है कि पुत्रमोह में माँ-बाप कमजोर पड़े भी कि मुसलमान बनकर ही सही किन्तु जीवित तो रहोगे पर 13 वर्ष का वह बालक धर्म से नहीं डिगा।

उस हिन्दू बालक का नाम था #हकीकत_राय।

1734 में इस्लाम की तौहीन के इल्जाम में 13 वर्षीय हकीकत राय का सिर कलम कर दिया गया और इस प्रकार इस्लाम की शान बरकरार रखी गई।

वो दिन जब वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ, बसन्त पंचमी का ही दिन था। वह कुशाग्र बुद्धि का था और पारिवारिक संस्कारों के चलते अपने धर्म को लेकर सजग भी था।

अविभाजित भारत के लाहौर में बसन्त पंचमी के दिन वीर हकीकत राय की याद में एक मेला लगा करता था, विभाजन के बाद भारत के पंजाब में कई स्थानों पर अब भी वीर बालक को याद किया जाता है। एक बात और, एक कॉलोनी या बसावट हकीकत नगर के नाम से लगभग हर उस शहर में मिलेगी जिसमें पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोग अधिक संख्या में बसे थे और अपने इतिहास को याद रखने का यह उनका एक अनकहा प्रयास था।

वर्तमान के एक स्थापित सेक्यूलर पत्रकार शिरोमणि ने अपने कार्यक्रम में पूछा था, "क्या हो जाएगा यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे? कम से कम इंसानियत तो जिंदा रहेगी न?"

यह उदाहरण उसको उत्तर के रूप में दिया जा सकता था किंतु जिन्हें आँखों के सामने के प्रशांत पुजारी और रामालिंगम नहीं दिखते, उन्हें तीन सौ वर्ष पहले का हकीकत राय कैसे दिखता?

आज के कथित सेक्यूलर वही हैं जो अपने ऐन्द्रिक स्वादों और भौतिक स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए स्वधर्म, निज अराध्यों, स्वजनों का अपमान करते हुए धरती का बोझ बने रहने को ही इंसानियत का जिंदा रहना मानते हैं।

कुछ दिनों पहले हमारे एक मित्र बहुत व्यथित थे कि हकीकत राय को लोग भूल गए, मैंने कह दिया कि न भूला हूँ और न भूलने दूँगा। बसन्त पंचमी आती है तो मैं चाहे एक को ही याद दिला पाऊँ किन्तु वीर हकीकत राय के बलिदान को याद अवश्य करता हूँ और ऐसा मैं अकेला नहीं हूँ। मुझे भी आश्चर्य हुआ था जब यूट्यूब पर हकीकत राय पर बनी हरियाणवी रागिनी और फिल्में भी दिखीं।

आप सबको बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायेँ। आज के दिन आप किसी एक को भी हकीकत राय की कहानी सुना पाएं तो यह उस वीर बालक को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रसाद के रूप में वैज्ञानिक औषधी


 प्रसाद के रूप में वैज्ञानिक औषधी :--

* मिश्री + नारियल + मोदक = ज्ञान -  बुद्धिवर्धक‌
(गणपती बप्पा का प्रसाद)

* गुड़ + चना + मूंगफली  = शक्तिवर्धक*्‌
(श्री हनुमानजी का प्रसाद)
 
* तिल + गुड़ = कैल्शियम, (मैग्नीशियम, आयरन + जिंक + सेलेनियम)
ह्रदयरोग के लिए फायदेमंद और ठंड के मौसम में शरीर को गर्म रखने के लिए उपयोगी ! सेलेनियम - कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने में मदद करता है !
सुर्य देव का प्रसाद संक्रान्ति पर्व।

* गोंद के लड्डू या राजगिरा के लड्डू।
गुड-देसी घी आटे का लड्डू, मूंगफली की चिक्की या भीगे हुए चने, चना, पापकाँन,  मक्का के फूले, ज्वार के  फूले।

यदि हम ऐसे कई पदार्थों के मिश्रण केमीकल कंम्पोजिशन को देखे तो, वे शरीर के लिए फायदेमंद होंगे...

* हमें केवल त्यौहारों को मनाने के लिए सिखाया जाता है, इसके पीछे का विज्ञान, उस वातावरण में उसी वातावरण का ही भोजन क्यों खाते हैं ? यह सिखाया नहीं जा रहा है।

* हमारे वैज्ञानिक दृष्टा पूर्वज   
Born Vita, PediaSure, काम्प्लेन तो नहीं पीते थे ना ?
तो क्या वह कमजोर, शक्तिहीन थे ?
अरे, हमारा एक हिन्दू योद्धा अकेले ही लड़ता था  50-50 दुश्मनों से...

बल्कि हर तीज त्योहार को देख लीजिए कि उस मौसम और ऋतु के अनुसार ही देवी देवताओं में भोग लगाकर स्वयं परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करते थे।

* स्वदेशी खाओ, ताकत बढ़ाओ...।।

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