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शनिवार, 10 दिसंबर 2022

पृथ्वी पर ऐसी कौनसी विचित्र प्राकृतिक घटनाएं हैं जिन्हे अभी भी वैज्ञानिकों द्वारा समझाया नहीं जा सकता?

 पृथ्वी पर ऐसी कौनसी विचित्र प्राकृतिक घटनाएं हैं जिन्हे अभी भी वैज्ञानिकों द्वारा समझाया नहीं जा सकता?

एक घटना तो मुझे बहुत ही आश्चर्यचकित कर देती है

डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट या आधुनिक दो-झिरी प्रयोग या द्वि-रेखाछिद्र प्रयोग (double-slit experiment) द्वारा यह प्रदर्शित किया जाता है कि प्रकाश एवं पदार्थ , तरंग एवं कण दोनों के गुण प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा इस प्रयोग से क्वाण्टम यान्त्रिक परिघटना (quantum mechanical phenomena) की प्रायिक प्रकृति (probabilistic nature) भी दिखती है। दो-झिरी वाला एक सरल प्रयोग १८०१ में मूल रूप से थॉमस यंग ने किया था।

एक समतल तरंग से उत्पन्न दो विवर्तन प्रतिरूप (diffraction patterns)

physics का Double Slit Experiment प्रयोग पहली बार 18th century में किया गया. तब से आज तक ये प्रयोग कईयों बार दोहराया जा चुका है. इस प्रयोग से मिलने वाले परिणाम आज भी Scientists के लिए एक गुत्थी है और इसने कई वैज्ञानिक थ्योरी और Quantum Mechanics को भी हिलाकर रखा हुआ है.

– जहाँ एक ओर आस्तिक और आध्यात्मिक लोग इसे भगवान का चमत्कार और उनकी परमसत्ता मानते हैं. वहीँ दूसरी ओर साइंटिस्ट इसे वैज्ञानिक रूप से समझने की कोशिश में लगे हुए हैं. आइये जानते हैं आधुनिक विज्ञान के अस्तित्व को चुनौती देनेवाला Double Slit Experiment क्या है.

DOUBLE SLIT EXPERIMENT क्या है ?

image source : physicsoftheuniverse

– विज्ञान विषय के सभी विद्यार्थियों ने Physics का Double Slit Experiment जरुर किया गया होगा. इस प्रयोग में एक गत्ते या धातु की प्लेट में दो सामानांतर पतले स्लिट (चीरा) बने होते थे. इस स्लिट के एक तरफ Light source होता था और दूसरी तरफ एक पर्दा या बोर्ड होता था. स्लिट से प्रकाश के गुज़रने से पर्दे पर पैटर्न बनते हैं. इन पैटर्न के विश्लेषण से प्रकाश सम्बन्धी नियमों का अध्ययन किया जाता है. यह प्रयोग पहली बार 18वीं सदी के वैज्ञानिक Thomas Young ने किया था, इसलिए यह प्रयोग Thomas Young : Double Slit Experiment कहा जाता है.

डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट का निष्कर्ष रहस्यमयी क्यों है ? WHAT IS LIGHT ? :

प्रकाश हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, पर हम प्रकाश के बारे में ठीक ठीक कुछ भी जानते.

  • प्रकाश क्या है ?
  • यह पार्टिकल (कण) है या वेव (तरंग) ?
  • यह कैसे गति करता है ?
  • क्या प्रकृति अपना यह राज हमसे छुपाकर रखना चाहती है ?

शायद हाँ ! क्योंकि इस प्रयोग के रिजल्ट में यही सामने आया.

– दो स्लिट से प्रकाश के गुजरने पर पर्दे पर दो स्लिट की परछाई नहीं बल्कि कई सारी गहरी- हल्की परछाइयाँ बनती हैं, जिससे लगता है कि प्रकाश एक तरंग है और कण आपस में टकरा कर ढेर सारी परछाइयाँ रहे हैं. वैज्ञानिकों ने सोचा कि अगर एक एक कण छोड़ा जाये तो वो आपस में टकरायेंगे नहीं और केवल दो स्लिट की परछाई बनेगी.

पर ऐसा नहीं हुआ और इस बार भी अलग अलग परछाइयाँ बनी. ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि कण एक सीधी रेखा में चलते हैं. एक एक इलेक्ट्रान बारी-बारी से छोड़ा जा रहा था, इसलिए उनके आपस में टकरा के interference pattern (व्यतिकरण) बनाने की भी सम्भावना नहीं थी. तो फिर आखिर क्या हो रहा था ??

– वैज्ञानिकों ने जब इसका कारण जानने के लिए खास तरह के माइक्रोस्कोपिक कैमरे लगाये तो परिणाम देख के वो दंग रह गये. अब पर्दे पर दोनों स्लिट की केवल दो परछाइयाँ बन रही थी, मतलब प्रकाश पार्टिकल की तरह व्यव्हार करने लगा. पर क्यों ?? क्या एटम या अणु को यह ज्ञात हो गया कि उनपर नजर रखी जा रही है ? यह प्रयोग कई बार अलग अलग जगह दोहराया जा चुका है, पर परिणाम जस के तस हैं. अगर आप के पास इसका जवाब है तो नोबल पुरस्कार आपका इंतज़ार कर रहा है.

image source : slideshare

– हालाँकि इसे Quantum Mechanics के जटिल नियमों से सिद्ध करने के कोशिश की गयी, पर प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री Richard Feynman ने भी कहा – I think I can safely say that nobody understands quantum mechanics ( मै समझता हूँ कि ये बात मैं बड़े आराम से कह सकता हूँ कि क्वांटम मैकेनिक्स की समझ किसी को भी नहीं है).

इस प्रयोग को भलीभांति समझने के लिए आप यह यूट्यूब विडियो देखिये जोकि 70 लाख से भी अधिक बार देखा जा चुका है.

प्रकाश को न समझ पाने की गुत्थी विज्ञान पर कई बड़े सवाल खड़े करती है. मसलन क्या हमारे Science के आधारभूत सिद्धांत ही गलत हैं ? क्या कोई परमसत्ता है जोकि अपने गूढ़ रहस्यों को छुपाकर रखना चाहती है ?. क्या हर कण पर किसी परमसत्ता का नियंत्रण है ? सम्भवत: भविष्य में कभी इसका कारण ठीक ठीक पता चला भी जाए पर फिलहाल Double Slit Experiment का परिणाम भगवान के अस्तित्व का प्रमाण समझना गलत नहीं होगा.

यह मुझे अति रोचक लगता है

पहली बार सामने आईं ‘रामायण’ की 35 साल पुरानी तस्वीरें, 4 फीट ऊंचा था रावण का महल, शूटिंग का चार्ज था ₹ 2000

 

पहली बार सामने आईं ‘रामायण’ की 35 साल पुरानी तस्वीरें, 4 फीट ऊंचा था रावण का महल, शूटिंग का चार्ज था ₹ 2000

भगवान राम, लक्ष्मण और सीता का नाम लेते ही हर किसी के मन में मनमोहक मुस्कुराहट और चमक वाले अरुण गोविल (अरुण गोविल ), सुनील लहरी (सुनील लहरी ) और दीपिका चिखलिया (दीपिका चिखली ) का चेहरा आता है।

लॉकडाउन के दौरान रामायण शो फिर से शुरू हुआ तो उसने TRP के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। बुजुर्ग बताते हैं 32 साल पहले टीवी पर रामायण आती थी तो उस समय सड़के थम जाती थीं। लोग अपने-अपने घरों में रामायण देख रहे होते थे।इसके अलावा हमें रामायण की शूटिंग के दौरान क्लिक किए गए कुछ ऐसे फोटो भी मिले हैं, जो शायद ही आपने पहले देखे हो।

इन तस्वीरों को हमारे साथ शेयर करने वाले शख्स ने बताया कि उनके यहां ये फोटो दादाजी की यादों के तौर पर रखे हुए हैं। आइए जानते हैं रामायण से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

रामायण की शूटिंग गुजरात के उमरगाम (उमरगम ) के वृंदावन स्टूडियो (वृन्दावन स्टूडियो ) में हुई थी। स्टूडियो के तत्कालीन मालिक, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित और दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित स्व. हीराभाई पटेल (हीराभाई पटेल ) ने रामायण की शूटिंग में अहम भूमिका निभाई थी।

वह रामायण, विक्रम बेताल और सिंहासन बत्तीसी के अलावा 300 से अधिक धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मों व सीरियल के आर्ट डायरेक्टर रह चुके हैं।

. कई मामलों में रामानंद सागर उनके पिताजी से सलाह मशवरा करते थे और उसके आधार पर ही आगे की तैयारी की जाती थी। उन्होंने बताया कि रामायण की शूटिंग 1985 से शुरू होकर 5 साल तक चली थी।

उस समय रामायण की शूटिंग के लिए स्टूडियो का किराया शिफ्ट के आधार पर लिया जाता था। 8 घंटे की शिफ्ट के लिए 2000 हजार रुपये किराया था। इसके अलावा कैमरामैन, असिस्टेंट, स्टूडियो असिस्टेंट और डायरेक्टर्स के रुकने के लिए अलग-अलग व्यवस्था थी। रामायण के बाद जय हनुमान सीरियल, जय मां वैष्णों देवी जैसे कई सीरियल की शूटिंग भी यहीं हुई जो भी हिट रहे थे।

विपिन भाई पटेल बताते हैं कि हमारे स्टूडियो में ही सारे दृश्य फिल्माए गए थे। चाहे वो आश्रम का सीन हो, जंगल का सीन हो, युद्ध का सीन हो या समुद्र का सीन हो। सभी को पिताजी ने ही डिजाइन किया था।

विपिन बताते हैं, सेट कैसा दिखना चाहिए इस पर रामानंद सागर, पिताजी और कुछ अन्य लोग पहले चर्चा करते थे। उसके बाद पिताजी पेंटिंग के द्वारा उसे दिखाने की कोशिश करते थे कि वो देखने में कैसा लगेगा या किन रंगों का उसमें प्रयोग होना चाहिए।

सेट बनने के बाद उसे ट्रिक फोटो / वीडियो ग्राफी से बड़ा या छोटा दिखाया जा सकता था। आपने देखा होगा कि रामायण के एक सीन में रावण महल की बालकनी में आकर कुंभकरण से बात करता है। उसमें महल की ऊंचाई काफी दिखाई गई है।

विपिन भाई पटेल बताते हैं यह बात उन दिनों की है जब रामायण का प्रसारण टीवी पर शुरू हो चुका था। राम, लक्ष्मण, सीता के रूप में लोग अरुण गोविल, सुनील लहरी और दीपिका चिखलिया को जानने लगे थे।

इस दौरान 80 साल की एक महिला सेट पर स्थित अरुण गोविल के कमरे में चली गई और उनकी नींद खराब कर दी। जैसे ही वे उठे तो वो जाकर सीधे अरुण गोविल के पैरों में गिर गई। महिला को वहां देखकर अरुण गोविल को गुस्सा आया और उन्होंने ऑफिस में आकर मैनेजमेंट से इस बारे में बात शिकायत की, कि एक महिला ने कमरे में आकर उनकी नींद खराब कर दी है। इस पर पिताजी ने उन्हें समझाया कि ये बूढ़ी महिला आपको भगवान राम मानती है, इसी कारण आपके दर्शन करने के लिए भावुकता वश आ गई। इसके बाद अरुण गोविल का गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने उस बुजुर्ग महिला से बात की।

विपिन भाई पटेल बताते हैं कि रावण का रोल किसे दिया जाए इस पर काफी संशय था। जब रामानंद सागर ने हीराभाई पटेल से पूछा कि रावण का रोल किसे दिया जाए तो उन्होंने अरविंद त्रिवेदी का नाम सुझाया।

इसका कारण यह था कि वह अरविंद त्रिवेदी को विलेन के रोल में एक गुजराती मूवी में देख चुके थे। साथ ही वह थिएटर आर्टिस्ट भी थे। इसके बाद उन्हें बुलाया गया और रामानंद सागर ने उनकी डायलॉग डिलिवरी देखते ही रावण के रोल के लिए फाइनल कर लिया।

अरविंद त्रिवेदी शिव भक्त हैं और वह रोजाना सेट पर आने से पहले शिव आराधना करते थे। रामायण में रामेश्वरम सीन की शूटिंग के बाद एक पंडित जी भोपाल (मध्य प्रदेश) से 2 शिवलिंग लेकर रामानंद सागर को भेंट करने आए थे। इस पर उन्होंने मान लिया कि साक्षात भगवान शिव उनके पास चलकर आए हैं। इसलिए उन्होंने स्टूडियो में और पास के गांव में शिव मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना कराई।

प्राचीन भारत का इतिहास का रहस्य

 

प्राचीन भारत का इतिहास का रहस्य (Mystery of Ancient India)

संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। संस्कृत शब्द का अर्थ है परिपूर्ण भाषा। भाषाओ को लिपियों में लिखने का चलन भारत में ही शुरू हुआ था। प्राचीन समय में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का चलन था। इस दोनों लिपियों से ही दुनियाभर में अन्य लिपियों का जन्म हुआ था। ब्राह्मी लिपि को महान सम्राट अशोक ने धम्मलिपि नाम दिया था। हड़प्पा संस्कृति के लोग भी इसी लिपि का उपयोग करते थे। उस समय में संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।

शोध कर्ताओ के अनुसार ब्राह्मी लिपि से देवनागरी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, बांग्ला लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि निकली है।

जैन पौराणिक कथाओ में बताया गया है कि ऋषभदेव की ब्राह्मी ने लेखन की खोज की। इसलिए उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते है। हिन्दू धर्म में इनको शारदा भी कहते है। प्राचीन दुनिया में कुछ प्रमुख नदिया भी थी। दुनिया की शुरुवात मानव आबादी इन नदियों के पास बसी थी। सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान सभ्यता सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी थी। इसका एक प्रमाण भी मौजूद है। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रन्थ सरस्वती नदी के किनारे बैठ कर लिखा गया था।

मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास दजला और फरात नदी के किनारे पर हुआ था। नील नदी के किनारे मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ था। इसी तरह भारत में भी सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे हुआ था।

प्राचीन भारत की खेल की दुनिया – तरंज और फूटबाल का अविष्कार भारत में हुआ था। प्राचीन भारत बहुत ही सभ्य और समृद्ध देश था। आज के समय के बहुत से अविष्कार प्राचीन काल भारत के निष्कर्षों पर आधारित हैं।

मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने मंदिरो को देख कर हर कोई हैरान हो जाता है। कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चला है कि प्राचीन काल में भी मंदिर और महल बहुत ही भव्य होते थे।

वृंदावन की बात करे। तो आज भी वह एक ऐसा मंदिर है। जो अपने आप खुलता और बंद हो जाता है।मान्यता के अनुसार रात के समय में वह पर कोई भी नहीं होता। लोगो का कहना है। अगर कोई भी व्यक्ति इस परिसर में रुक जाता है। तो वो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

संगीत में सामवेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भी प्राचीन भारत में हुआ था। नृत्य, कला, योग और संगीत से हिन्दू धर्म का गहरा नाता रहा है। प्राचीन भारत में ही वीणा, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का अविष्कार हुआ था।

जानकारी स्त्रोत: इंटरनेट

इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा।

 

एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया,

रास्ते में वे एक सुरंग से गुज़रे, जिसके नीचे से पहले बस ड्राइवर गुज़रता था।

सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाइ।

बस की ऊंचाई भी पांच मीटर थी इसलिए ड्राइवर नहीं रुका। लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ कर बीच में फंस गई, इससे बच्चे भयभीत हो गए।

बस ड्राइवर कहने लगा "हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ?

एक आदमी ने जवाब दिया :

सड़क पक्की हो गई है इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ा दिया गया है।

वहाँ एक भीड़ लग गयी..

एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया।

इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला "टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से गुज़र जाएंगे।

बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और वास्तव में बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए।

घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से हम लोगो के सामने फुले होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा।

    

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

तांबे के बर्तन में रखे पानी का पुरा फायदा उठाने का सही तरीका

 तांबे के बर्तन में रखे पानी का पुरा फायदा उठाने का सही तरीका है की रात्री में सोते समय तांबे के साफ बर्तन में एक लीटर तक पानी रख दें और सुबह उठकर खाली पेट धीरे-धीरे पिएं ।

तांबे के बर्तन में पानी पीने के फायदे

🔷️ तांबे का पानी पाचनतंत्र को मजबूत करता है और बेहतर पाचन में सहायता करता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से अतिरिक्त वसा को कम करने में बेहद मदद मिलती है।

🔷️ तांबे में एंटी-इन्फलेमेटरी गुण होते हैं।जो शरीर में दर्द,सूजन तथा एठन की समस्या नहीं होने देते।

🔷️ आर्थराईटीस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी फायदेमंद होता है।

🔷️ तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह शुद्ध माना जाता है। यह डायरिया,पीलिया,डीसेंट्री और अन्य प्रकार की बिमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर देता है।

🔷️ अमेरिका के कैंसर सोसायटी के अनुसार-तांबा कैंसर की शुरुवात को रोकने में मदद करता है और इसमें कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते हैं।

🔷️ यह दिल को स्वस्थ बनाए रखकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है। इसके अलावा यह हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है। यह वात,पित्त और कफ की समस्या को दुर करने में मदद करता है।

🔷️ तांबा यानी कापर,सिधे तौर पर आपके शरीर में कापर की कमी को पुरा करता है और बिमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सुरक्षा देता है।

🔷️ एनीमिया की समस्या में भी इस बर्तन में रखा पानी पीने से लाभ मिलता है। यह खाने से आयरन को आसानी से सोख लेता है,जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरुरी है।पानी पीने के क्या-क्या फायदे हैं?

🔷️ शरीर की अतिरिक्त सफाई के लिए तांबे का पानी कारगर होता है। इसके अलावा यह लीवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से निपटने में तांबे के बर्तन में रखा पानी लाभप्रद होता है।

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