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शनिवार, 21 जनवरी 2023
मौनी अमावस्या *पित्र श्राद्ध एवं तर्पण करने का विशेष पर्व*
शुक्रवार, 20 जनवरी 2023
कौन सी चीजें फिल्मों में अक्सर गलत तरीके से दिखाई जाती हैं? - मौत।
मौत।
1998 में, इस प्रसिद्ध फिल्म "कुछ कुछ होता है" ने टीना (रानी मुखर्जी) को परफेक्ट आई शैडो के साथ मरते हुए दिखाया, उसके शरीर में दर्द के शून्य लक्षण, राहुल से बात करना, उसे गले लगाना और हग करते हुए मरना। इस दृश्य में, वह शायद मर चुकी है। डॉक्टर शायद बाहर थे, इस अति भावुक दृश्य पर रोते हुए, उन्होंने उसे मरने की अनुमति दी।
रोमांटिक बकवास।
असली मौत विकट बदसूरत है, ज्यादातर मामलों में, आपके अंदर बहुत से पाइप हैं। इस तरह के परिदृश्य में वास्तविक मौत मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण होती है। मुझपर भरोसा करें, ऐसी हालत में मरीज के चेहरे को देखना दर्दनाक होता है
लेकिन यह 1998 की फिल्म थी। अभी का क्या?
आइए देखते हैं कि 2016 में आई फिल्म “सनम तेरी कसम” में एक ब्लड कैंसर के मरीज की मौत कैसे हुई?
दृश्य 1: वह मर रही है। डॉक्टर ने ऐसा कहा। लेकिन वह बोल रही है।
दृश्य 2: अभी भी बात कर रहे हैं। कोई डॉक्टर नहीं, कोई वेंटिलेशन नहीं, कोई ऑक्सीजन नहीं, सही मेकअप, पूरी तरह से किए गए बाल। बस उसके हाथ में कुछ यादृच्छिक आईवी-चैनल।
दृश्य 3 अरे नहीं! वह मर चुकी है, ऐसे ही।
प्रिय बॉलीवुड, मौत की महिमा दिखना बंद करो । कैंसर से मौत, बहु अंग विफलता बदसूरत है, दर्दनाक है। जब मेरे निकट एक की मृत्यु हो गई, तो उसका पूरा शरीर सूज गया था, उसकी आँखों से खून टपकने लगा था, उसके बाल पूर्ववत थे और वेंटिलेशन चैनल के कारण उसका होंठ फट गया था।
जब मुझे पता था कि एक अन्य व्यक्ति मल्टी ऑर्गन फेल्योर से मर गया है, तो वह खुद की तरह कुछ नहीं देख रहा था। वह वास्तव में मर चुकी थी, उससे बहुत पहले वह मृत और मृत लग रही थी।
मौत कोई खूबसूरत चीज नहीं है।
यह बात बदसूरत मौत दिखाने और दर्शकों को डराने के बारे में नहीं है। बात इसे वास्तविक बनाने की है। कम से कम, एक व्यक्ति को बात करने, गले लगाने और उसी तरह मरने के लिए न दिखाएं। यह अवास्तविक उम्मीद पैदा करता है और जब बदसूरत मौत आती है, तो यह अनुचित लगता है, अंतिम अलविदा कहने में सक्षम नहीं होना। लेकिन अधिकांश वास्तविक जीवन के मामलों में, जो कि अंतिम टाटा अलविदा नहीं होता है।
रोमांटिक आदान-प्रदान के बिना मौत। मौत का असली दर्द दिखाओ, उसकी कुरूपता नहीं।
गोरोचन क्या है? यह कहाँ मिलता है? क्या इसका प्रयोग तंत्र विद्या में वशीकरण के लिए किया जाता है?
तांत्रिक ग्रंथों में अक्सर एक वस्तु का नाम कई जगह पढ़ने-सुनने को मिलता है। वह वस्तु है गोरोचन। क्या आप जानते हैं यह गोरोचन है क्या? और इसकी इतनी चर्चा क्यों होती है? यह किस काम आता है? आइए आज जानते हैं गोरोचन के बारे में। गोरोचन दरअसल एक ऐसी सिद्ध वस्तु है जिसका उपयोग अनेक कर्मों में किया जाता है। धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि, जमीन में गड़े धन का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रयोग वशीकरण में किया जाता है। इसका तिलक करने से तीव्र वशीकरण और आकर्षण प्राप्त होता है।
कैसे करते हैं गोरोचन का उपयोग
गोरोचन को बाजार से लाकर सीधे प्रयोग नहीं किया जाता है। इसे सिद्ध करना होता है, तभी यह अपना असर दिखा पाता है। गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में सिद्ध किया जाता है। जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन नहाकर अपने पूजा स्थान में बैठकर सोना या चांदी की कटोरी, डिबिया या छोटे पात्र में गोराचन रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद दो मंत्रों का एक-एक माला जाप करना होता है। ये मंत्र हैं :
- ऊं शांति शांत: सर्वारिष्टनाशिनि स्वाहा:
- ऊं श्रीं श्रीयै नम:
- गोरोचन के अनेक उपयोग हैं जिनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित उपयोग वशीकरण का है। यदि आप अपने आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करना चाहते हैं। आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्रभावित रहें। आपकी बात सुनें। आप किसी स्त्री या पुरुष को अपने वशीभूत करना चाहते हैं तो गोरोचन के साथ सिंदूर और केसर को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चांदी की डिबिया में भरकर रख लें। प्रतिदिन सूर्योदय के समय इसका तिलक करने से आपके वशीकरण प्रभाव में जबर्दस्त तरीके से वृद्धि होगी। हर व्यक्ति आपकी बात मानने लगेगा।
- आर्थिक स्थिति सुधारने और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए गोरोचन को एक चांदी की डिबिया में भरकर अपने पूजा स्थान में रखें और रोज देवी-देवताओं की तरह इसकी भी पूजा करें। इससे घर में बरकत आने लगती है। घर में यदि कोई वास्तु दोष है तो वह दूर हो जाता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- घर में कोई सदस्य बीमार है तो रविवार या मंगलवार के दिन एक छोटा चम्मक गुलाब जल में थोड़ा सा गोरोचन मिलाकर उस व्यक्ति को पिला दें। गोरोचन का तिलक प्रतिदिन बीमार व्यक्ति को लगाएं तो जल्द ही वह स्वस्थ होने लगेगा।
- मिर्गी या हिस्टीरिया के मरीज को गुलाबजल में थोड़ा गोराचन घिसकर तीन दिन तक पिलाने से रोग में आराम मिलता है। लेकिन यह प्रयोग किसी जानकार की देखरेख में ही करें।
- समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में पंचोपचार पूजन कर चांदी या तांबे के ताबीज में भरकर अपने गले में धारण कर लें। इससे कार्यों में आने वाली बाधाएं समाप्त होंगी और सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
- गोरोचन की स्याही बनाकर इससे भोजपत्र पर मोरपंख की कलम से सिद्ध बीसा यंत्र लिखकर पंचोपचार पूजन करके चांदी के ताबीज में बांधकर अपने पास रखें। इससे आर्थिक संकट दूर हो जाता है।
- कुछ तांत्रिक लोग गोरोचन का प्रयोग जमीन में गड़ा धन पता करने के लिए भी करते हैं। इसके लिए अमावस्या की रात्रि में निर्जन स्थान पर गोरोचन को विशेष साधना के जरिए सिद्ध किया जाता है। फिर विशेष पद्धति से इसका काजल बनाया जाता है। जो व्यक्ति उस काजल को अपनी आंख में लगाता है उसमें जमीन में दबा धन पता करने की शक्ति आ जाती है।
- केले में गोरोचन मिलाकर लेप बनाएं और इसे मस्तक पर लगाने से आकर्षण शक्ति प्राप्त होती है।
- गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है।
- स्रोत गूगल, जवाब पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏
क्या भगवान कार्तिकेय और अय्यप्पा एक ही हैं?
दोनो अलग हैँ ।
कार्तिकेय "शिव और शक्ति" के पुत्र हैँ और अय्यप्पा "शिव और मोहिनी" के । मोहिनी भगवान विष्णु का स्त्री अवतार है। मोहिनी समुद्र मंथन के बाद अमृत बाँट रहीँ थी । अय्यप्पा या अय्यपन को हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। यहाँ पर हरि विष्णु और हर शिव हैँ।
अय्यप्पा बाघिन की सवारी करते दिखाए जाते है इसलिए अकसर साथ मेँ अन्य बाघ शावक या बच्चे भी होते हैँ। नन्हे शावकोँ के कारण पता चल जाता है कि बाघिन है।
कार्तिकेय का दक्षिण भारतीय नाम मुरुगन या आरुमुगम ( आरु मुखम या षडमुख) हैँ। कार्तिकेय मोर की सवारी करते दिखाए जाते हैँ । इनके छह मुख भी दिखाए जाते हैँ या कभी कभी एक मुख वाले भी बना दिए जाते हैँ । आरुमुगम तमिळ राज्य के रक्षक देव माने जाते हैँ।
अय्यप्पा की लोकप्रियता उत्तर भारत मेँ कम है। इसलिए इनकी कथा की जानकारी कम ही है।
पांडलम राज्य के राजा पांडियन के कोई संतान नहीँ थी । एक बार उनको जंगल मेँ एक शिशु मिला । राजा इस शिशु को लेकर ऋषियोँ के पास गए। ऋषियोँ ने उन्हे इसको अपने पुत्र की तरह पालने का आदेश दिया और बताया कि जब शिशु बारह वर्ष का हो जाएगा तो शिशु कौन है इसकी जानकारी राजा को होगी । इसके बाद राजपरिवार ने इस शिशु का नाम मणिकण्ठ रखकर उसका पालन किया ।
इसके कुछ समय बाद राजा रानी को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई । जब मणिकण्ठ 12 वर्ष का हुआ तो राजा ने उसे उत्तराधिकारी घोषित करने का निर्णय लिया । इस समय तक राजा का पुत्र भी किशोर होने को था लेकिन राजा की दृष्टि मेँ वह उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीँ था। एक मंत्री ने रानी के कान भर दिए और उस समझा दिया कि राजा और रानी का वास्तविक पुत्र ही उत्तराधिकारी होना चाहिए । अयोग्य पुत्र मंत्री की बाते मानता था और उसके राजा होने पर मंत्री को अपनी मनमानी करने का अवसर मिलता । इस योजना मेँ रानी ने बीमार होने का बहाना बनाया । प्रायोजित वैद्य ने बीमारी का इलाज बाघिन के दूध को बताया। रानी ने पुत्र मणिकण्ठ को आदेश दे दिया कि वह बाघिन का दूध लेकर आए। मणिकण्ठ ने इसको सहर्ष स्वीकार किया । कुछ समय बाद मणिकण्ठ बाघिन की सवारी करते हुए उसके शावकोँ और झुण्ड के साथ राजमहल लौटे ।
राजा को उनकी दिव्यता का अहसास हुआ और उनके लिए मंदिर बनाने की घोषणा की । इसके बाद मणिकण्ठ ने अपने अय्यपन (शिव मोहिनी पुत्र) रूप को प्रकट किया । अय्यपन ने एक तीर छोडा जो वहाँ से करीब तीस किलोमीटर दूर जाकर गिरा । वहीँ पर अय्यपन का मंदिर बनाया गया। चित्रोँ मेँ अय्यपन वन से लौटते समय बाघिन की सवारी करते हुए दिखाए जाते हैँ। चित्रोँ मेँ अय्यप्पा के हाथ मेँ धनुष और तीर भी दिखाया जाता है। अय्यपन की कथा पुराणोँ मेँ न होने के कारण इस कथा पर मतभेद भी है।
इनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर शबरीमाला (सबरिमलय) है। अय्यपन के मंदिरोँ मेँ अय्यपन एक किशोर योगी की अवस्था मेँ होते है। जीवन के उस काल मेँ जब उन्होने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ था ।मंदिर मेँ स्थापित देव को एक जीवित देव की तरह माना जाता है और उनके साथ उसी प्रकार का आचरण किया जाता है जैसा उन्हे पसंद था या । जो भी व्रत उन्होने लिए थे उनका सम्मान होता है । इसलिए इनके मंदिरो मेँ महिलाओँ का प्रवेश वर्जित होता है। यह वर्जन अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत के कारण है न कि स्त्रियोँ के साथ किसी प्रकार के भेदभाव के कारण ।
अय्यपन मेँ विश्वास करने वाले समाज की स्त्रियाँ तो इनके मंदिर मेँ जाकर इनका व्रत भंग नहीँ करना चाहती लेकिन एक्टिविस्ट को इसी मंदिर मेँ जाना है। उन्हे पूजा अर्चन के लिए भारत के लाखोँ मंदिरोँ मेँ से कोई भी नहीँ भाया। स्त्रियोँ के अधिकार पर बेकार का बवाल खडा कर दिया। हर मनाही प्रतिबंध नहीँ होती । स्त्रियोँ को पुरुष शौचालय मेँ जाने की भी मनाही है तो क्या ये भेदभाव हो गया ? यह मात्र एक सामाजिक सुविधा है। नारी को समान अधिकारोँ की आवश्यकता है और उनके लिए लडना भी चाहिए । लेकिन उन अधिकारोँ के लिए लडना चाहिए जिनसे जीवन पर अच्छे प्रभाव पडते होँ बेकार के हंगामेँ खडे करके क्या मिलने वाला है।
यदि स्त्री होने के कारण प्रतिबंध होता तो भारत के सभी मंदिरोँ मेँ होता लेकिन भारत मेँ घरोँ के आस पास के मंदिरोँ मेँ तो स्त्रियाँ ही अधिक जाती हैँ । लोग इतने आधुनिक हो गए कि न सोचना न समझना अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत भंग करने के पीछे पड गए ।
यदि महाभारत के भीष्म के मंदिर होते तो वहाँ भी स्त्रियोँ का जाना वर्जित ही होता । हनुमान के मंदिरोँ मेँ भी बहुत सी स्त्रियाँ नहीँ जाती हैँ। लेकिन हनुमान के मंदिर बहुत सारे हैँ इसलिए अनुशासन रख पाना कठिन है। जिन्हे जानकारी नहीँ होती चली भी जाती हैँ। राम मंदिर मेँ हनुमान की मूर्ती हो तो उसमेँ कोई वर्जन नहीँ होता।
इस विषय पर भी अनेक प्रश्न और अनेक विचार हो सकते हैँ कि ब्रह्मचर्य व्रत रखने वाले को स्त्रियोँ से दूरी की आवश्यकता है?
व्यक्ति के सामाजिक जीवन की बात जाए तो उसके दो पक्ष होते हैँ है एक तो व्यक्ति का अपना चरित्र और एक समाज मेँ छवि । समाज एक और ढोँगियोँ पर विश्वास कर लेता है तो वही समाज उज्ज्वल से उज्ज्वल चरित्र पर भी प्रश्न लगा देता है।
उत्तर रामायण (जिसको बाद मेँ जोडा हुआ माना जाता है) की कथा मेँ सीता पर भी इस समाज नेँ लांछ्न लगाया था । इसलिए लोक दृष्टिकोण मेँ लोग अतिरिक्त सावधानी भी रखते हैँ । यदि किसी स्त्री से सम्पर्क ही नहीँ है तो ब्रह्मचर्य पर कोई प्रश्न नहीँ है।
यदि देव इस समय होते तो क्या वे स्वयम् भी यह वर्जन रखते ? यह तो कहा नहीँ जा सकता है लेकिन अब तो विषय उनके भक्तोँ की आस्था का अधिक है।
अगस्त्य संहिता में विद्युत के बारे में सटीक जानकारी
निश्चित ही बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।
महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
- अगस्त्य संहिता
अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।
अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।
जैसे कि आप जानते है सन 1800 में पहला बैट्री आविष्कार किये Alessandro Volta ने।
पर क्या आप जानते है उससे भी पहले के लोग भी बैट्री के प्रयोग करते थे। क्या आप पारसी बैट्री या बागदादी बैट्री का नाम सुने है?
पारसी यज़ीदी लोगो ने बनाया था.
वहा पारसीया एवं शासनिया वंश का राज था। ये लोग अग्नि के उपासना करते थे और ऋषि अंगिरा(जिन्होंने वेद अनुसार अग्नि का आविष्कार किया) के वंशज थे।
प्राचीन ईराक और इरान में जितने फायर टेम्पल (अग्निदेव मंदिर) था वो सब अरब के इस्लामिक आक्रामक द्वारा या तो तोड़ दिया गया या फिर मस्जिद बना दिया गया ।
पारसी राजा द्वितीय खुसरु को बार बार धमकी भरा खत लिखकर हजरत मोहम्मद ने इस्लाम कुबूल करने को कहा ।उसके बाद बहुतो युद्ध हुया बिश्वके ईतिहास में बड़े युद्ध में इसे भी शामिल किया गया ।
अब अधिकतर यज़ीदी मुस्लिम बन चुके है।
जो मुस्लिम नही बने वो मुस्लिमो द्वारा कष्ट पंहुचाये जाते है।
इजराइल,इरान और ईराक में थोड़ा वहुत यज़ीदी लोग ही बस टीके हुये है इस लड़ाई में अपनी संस्कृति को वचाने के लिए और इधर भारत भी लड़ाई कर रहा है अपनी संस्कृति को वचाने के लिए।
धन्यवाद।
फुटनोट
वैज्ञानिक ऋषि मुनि - जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !
जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !
उज्जैन - भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
#भास्कराचार्य -आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
#आचार्य_कणाद –कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
#ऋषि_विश्वामित्र -ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
#ऋषि_भरद्वाज -आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
#गर्गमुनि -गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। महर्षि सुश्रुत -ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे।
#महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन १२५ से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और ३०० तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
#आचार्य_चरक -‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
#पतंजलि -आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
#बौद्धयन -भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
#महर्षि_दधीचि -महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे। ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
#महर्षि_अगस्त्य -वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
#कपिल_मुनि -भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है। इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
#शौनक_ऋषि- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
#ऋषि_वशिष्ठ -वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
#कण्व ऋषि –प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
llजय श्री रामll
कमाई हुई संपति मरने से पहले अधूरी ख्वाहिशों को पूर्ण करने में और आनंद प्राप्त करने में खर्च कर लो और आनन्द के साथ बुढ़ापे की जिंदगी जियो
65 वर्ष की उम्र में एकांकी जीवन जीने वाला एक बुजुर्ग अवसाद (डिप्रेशन) की बीमारी से पीड़ित हो गये . उनको इलाज के
लिए मनोचिकित्सक डॉक्टर के पास ले जाया गया ….
डॉक्टर : आपके बच्चे क्या करते हैं ?
बुजुर्ग : मैने उनकी शादी कर दी , और वो अच्छा कमाते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं . अब मैं पारिवारिक जिम्मेदारियों से पूर्णतया मुक्त हूँ . मेरी पत्नी गुजर चुकी है , और मेरे जीवन में कोई खुशी या आनन्द नहीं है . डॉक्टर : आपकी ऐसी कोई इच्छा जो पूरी नहीं हुई हो . बुजुर्ग : जवानी में मेरी बड़ी ख्वाहिश थी कि मैं एक दिन फाइव स्टार होटल में रहूँ . लेकिन ये इच्छा जिम्मेदारियों के कारण अधूरी ही रह गयी ! डॉक्टर : आपके लगभग कुल पास संपति कितनी है ?
बुजुर्ग : मैं अभी एक फ्लैट में रह रहा हूँ , और एक हजार मीटर का एक प्लॉट है . जिसकी कीमत आज तकरीबन चार करोड़ रुपया है !
डॉक्टर : क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता है कि ये संपति बेचकर मैं मजे की जिंदगी जीऊँ ? अगर मेरी राय मानो तो ये प्लॉट चार करोड़ में बेच कर दो करोड़ की दूसरी संपति खरीद लो , और बाकी के दो करोड़ खर्च करो ! एक फाइव स्टार होटल में , जिसका रोज का भाड़ा सात-आठ हजार रुपया हो उसमें रहने लगो . उसमें आपको स्विमिंग पूल , जिम , विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मिलेंगे , और रोज नए नए लोगों से मुलाकात होगी सो अलग ….हर महीने शहर बदल बदल कर रहो . जितना ज्यादा हो सके , जिंदगी का आनन्द उठाओ . आपको अपने जीवन के प्रति प्रेम पैदा होगा और आप अवसाद (डिप्रेशन) से बाहर आ जाओगे .
बुजुर्ग डॉक्टर की नसीहत मान कर एक फाइव स्टार होटल में आठ हजार रुपए के भाड़े वाला कमरा लिया , और आनन्द से रहने लगे . अब उनकी खुशी का कोई पार न था ! !! 73 वें साल की उम्र में उनका निधन हो गया . तब तक उनकी दो करोड़ वाली संपति की कीमत बढ़ कर चार करोड़ हो गई , जो बच्चों के लिए थी . और जीवन के अंतिम वर्षों में खुल कर खर्च करने के बाद भी उनके पास पचास लाख बचे रह गए . कहने की जरूरत नहीं है कि उनको अवसाद से पूर्णतया मुक्ति मिल गई और साथ में जीने के अनेक बहाने भी मिलते गए .
शिक्षा:-अगर हम जिम्मेदारियों से मुक्त हैं तो कमाई हुई संपति मरने से पहले अधूरी ख्वाहिशों को पूर्ण करने में और आनंद प्राप्त करने में खर्च कर लो और आनन्द के साथ बुढ़ापे की जिंदगी जियो …अगर हम भी कमाए हुए धन का अपने लिए जीते जी उपयोग नहीं करते तो हमारा कमा कमाकर जोड़ना बेकार है ! हमारी द्वारा इच्छाओं को मारकर बचाया गया धन आपके बच्चे जल्दी ही समाप्त कर देंगे , क्यों कि उन्होंने उस धन को कमाने में कोई परिश्रम नहीं किया है ! !! अपना धन जो भोगे वही भाग्यशाली..!!
जय श्रीराम
ब्राह्मणों ने हमें पढ़ने नहीं दिया यह बात बताने वाले महान इतिहासकार हमें यह नहीं बताते कि सन 1835 तक भारत में 700000 गुरुकुल थे इसका पूरा डॉक्यूमेंट Indian house में मिलेगा
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