यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

कुदरत कुछ उधार नहीं रखती.. नदी ने पुल पर फेंक दिया सारा कचरा

भारी बारिश से निचले और पहाड़ी इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं। कहीं चट्टान टूटकर गिर रही हैं तो कहीं सड़क धंस रही हैं। जी हां, सोशल मीडिया पर तबाही के तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें एक वीडियो ऐसा है जिसे देखकर लोग बोल रहे हैं- कुदरत कुछ उधार नहीं रखती। यह वीडियो लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। इसमें एक पुल तमाम प्लास्टिक की बोतलों और अन्य मलबे से ढका नजर आ रहा है। यह मलबा बाढ़ के पानी के कारण ब्रिज पर इकट्ठा हो गया। जैसे ही IFS अधिकारी ने इस क्लिप को ट्विटर पर पोस्ट किया तो मामला वायरल हो गया, और यूजर्स इस मुद्दे पर अपनी राय रखने लगें।

यह वीडियो 11 जुलाई को 'भारतीय वन सेवा' (IFS) अधिकारी परवीन कासवान ने पोस्ट किया। उन्होंने कैप्शन में लिखा- प्रकृति -1, मनुष्य - 0। नदी ने सारा कचरा वापस हम पर फेंक दिया। फॉरवर्ड वीडियो। इस वायरल क्लिप में प्लास्टिक वेस्ट और मलबे से भरा एक पुल दिख रहा है। ऐसा लग रहा है कि बाढ़ के कारण नदी का सारा कचरा पुल पर इकट्ठा हो गया। अधिकारी के इस ट्वीट को खबर लिखे जाने तक 1 मिलियन व्यूज और 20 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं। साथ ही, तमाम यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी। एक यूजर ने लिखा- तेरा तुझ को अर्पण... वाले अंदाज में गंदगी वापिस लौटा दी। दूसरे ने लिखा - कुदरत कुछ उधार नहीं रखती है। वैसे इस पूरे मामले पर आपका क्या कहना है? कमेंट में बताइए।

 चप्पलें, प्लास्टिक की खाली बोतलें, पन्नी, खाने-पीने के सामान के खाली पैकेट, कपड़े, लकड़ी के टुकड़े और भी बहुत कुछ... नदी ने हमें हमारा सामान वापस कर दिया है। जी हां, आईएफएस अधिकारी प्रवीण कासवान ने एक वीडियो शेयर किया है जो हिमाचल प्रदेश बाढ़ का माना जा रहा है। वीडियो एक पुल का है जो कूड़े-कचरे से भरा दिखता है। 29 सेकेंड का वीडियो देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे नाराज उफनाई नदी ने पुल के ऊपर तक हिलोरें मारकर हम इंसानों का फैलाया कचरा हमें वापस कर दिया है। लाखों लोग इस वीडियो को देख चुके हैं। कुछ कचरा तो घर के अवशेष लगते हैं। इस वीडियो को जिसने रिकॉर्ड किया, वह कहता है, 'ओह भाई साहब, मौत अगर देखनी हो तो यहां देखो

मैदानी लोग सिर्फ मौज के लिए जाते हैं पहाड़
पुल के नीचे नदी के पानी का शोर डराने वाला होता है। आजकल पहाड़ी राज्यों में ट्रेंड्स बनता जा रहा है कि आसपास के मैदानी इलाकों के लोग टूरिज्म के नाम पर बेरोकटोक गंदगी फैलाते हैं। दरअसल पहाड़ हो या जंगल, वहां के स्थानीय निवासियों को उसकी अहमियत ज्यादा पता होती है। शहर से गए लोग सिर्फ आनंद के लिए वहां पहुंचते हैं। पर्यटन अपनी जगह है लेकिन इसके नाम पर संसाधनों के साथ खिलवाड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती है। यह वीडियो यही संदेश दे रहा है|

नदी कूड़ा लेकर चलने को मजबूर
कई लोगों ने इस वीडियो को देखने के बाद लिखा, प्रकृति-1 और इंसान- 0 ही रिजल्ट आखिर में होता है। भीम ने लिखा, 'तेरा तुझको अर्पण... वाले अंदाज में गंदगी वापस लौटा दी।' अजय सिंह ने अफसोस जताते हुए कहा कि मुझे हैरानी हो रही है कि नदी अपने साथ कितना कूड़ा लेकर चलने को मजबूर होती है। एक यूजर ने लिखा कि ये कई किलो है। मंजूनाथ ने ट्विटर पर लिखा कि हर बार बाढ़ के बाद ऐसा नजारा देखने को मिलता है फिर भी कुछ नहीं बदलता है। हम कूड़े का ठीक तरह से निपटारा नहीं करते। लिज मैथ्यू ने कहा कि सबक सीखने के लिए हमें और कितनी आपदा की जरूरत है?

हिमाचल में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के चलते अलग-अलग राज्यों के सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं। वहां दुर्घटनाओं में 31 लोगों की मौत हुई है। 1300 सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है और 40 बड़े पुलों को नुकसान पहुंचा है। कुल्लू के सैंज इलाके में ही 40 दुकानें और 30 मकान बह गए। सरकारी स्कूलों को 15 जुलाई तक बंद रखा गया है।

सुदूर उड़ीसा के जगन्नाथपुरी धाम में आज भी ठाकुर जी को सर्वप्रथम मारवाड़ की करमा बाई का भोग लगता है।



 विचित्र किन्तु सत्य
🌿🌿🌿🌿🌿
*सुदूर उड़ीसा के जगन्नाथपुरी धाम में आज भी ठाकुर जी को सर्वप्रथम मारवाड़ की करमा बाई का भोग लगता है।


मारवाड़ प्रांत का एक जिला है नागौर। नागौर जिले में एक छोटा सा शहर है ..... मकराना

यूएन ने मकराना के मार्बल को विश्व की ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है .... ये क्वालिटी है यहां के मार्बल की ।

लेकिन क्या मकराना की पहचान सिर्फ वहां का मार्बल है ?? ....

जी नहीं ....

मारवाड़ का एक सुप्रसिद्ध भजन है ....

थाळी भरकर ल्याई रै खीचड़ो ऊपर घी री बाटकी ....
जिमों म्हारा श्याम धणी जिमावै करमा बेटी जाट की ....
माता-पिता म्हारा तीर्थ गया नै जाणै कद बै आवैला ....
जिमों म्हारा श्याम धणी थानै जिमावै करमा बेटी जाट की ....

मकराणा तहसील में एक गांव है “कालवा” .... कालूराम जी डूडी (जाट) के नाम पे इस गांव का नामकरण हुआ है “कालवा” ....

कालवा में एक जीवणराम जी डूडी (जाट) हुए थे भगवान कृष्ण के भक्त .... जीवणराम जी की काफी मन्नतों के बाद भगवान के आशीर्वाद से उनकी पत्नी रत्नी देवी की कोख से वर्ष 1615 AD में एक पुत्री का जन्म हुआ नाम रखा .... *         ”करमा बाई”*

करमा का लालन-पालन बाल्यकाल से ही धार्मिक परिवेश में हुआ .... माता पिता दोनों भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे घर में ठाकुर जी की मूर्ति थी जिसमें रोज़ भोग लगता भजन-कीर्तन होता था....

करमा जब 13 वर्ष की हुई तब उसके माता-पिता कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए समीप ही पुष्कर जी गए .... करमा को साथ इसलिए नहीं ले गए कि घर की देखभाल, गाय भैंस को दुहना निरना कौन करेगा .... रोज़ प्रातः ठाकुर जी के भोग लगाने की ज़िम्मेदारी भी करमा को दी गयी ....

अगले दिन प्रातः नन्हीं करमा बाईसा ने ठाकुर जी को भोग लगाने हेतु खीचड़ा बनाया (बाजरे से बना मारवाड़ का एक शानदार व्यंजन) .... और उसमें खूब सारा गुड़ व घी डाल के ठाकुर जी के आगे भोग हेतु रखा ....

करमा;- ल्यो ठाकुर जी आप भोग लगाओ तब तक म्हें घर रो काम करूँ ....

करमा घर का काम करने लगी व बीच बीच में आ के चेक करने लगी कि ठाकुर जी ने भोग लगाया या नहीं .... लेकिन खीचड़ा जस का तस पड़ा रहा दोपहर हो गयी ....

करमा को लगा खीचड़े में कोई कमी रह गयी होगी वो बार बार खीचड़े में घी व गुड़ डालने लगी ....

दोपहर को करमा बाईसा ने व्याकुलता से कहा ठाकुर जी भोग लगा ल्यो नहीं तो म्हे भी आज भूखी रहूं लां ....

शाम हो गयी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया इधर नन्हीं करमा भूख से व्याकुल होने लगी और बार बार ठाकुर जी की मनुहार करने लगी भोग लगाने को ....

नन्हीं करमा की अरदास सुन के ”ठाकुर जी की मूर्ति से साक्षात भगवान श्री-कृष्ण(ठाकुर जी) प्रकट हुए” और बोले .... करमा तूँ म्हारे परदो तो करयो ही नहीं म्हें भोग क्यां लगातो ?? ....

करमा;- ओह्ह इत्ती सी बात तो थे (आप) मन्ने तड़के ही बोल देता भगवान ....

करमा अपनी लुंकड़ी (ओढ़नी) की ओट (परदा) करती है और हाथ से पंखा झिलाती है .... करमा की लुंकड़ी की ओट में ठाकुर जी खीचड़ा खा के अंतर्ध्यान हो जाते हैं ....

करमा का ये नित्यक्रम बन गया ....

रोज़ सुबह करमा खीचड़ा बना के ठाकुर जी को बुलाती .... ठाकुर जी प्रकट होते व करमा की ओढ़नी की ओट में बैठ के खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते ....

माता-पिता जब पुष्कर जी से तीर्थ कर के वापस आते हैं तो देखते हैं गुड़ का भरा मटका खाली होने के कगार पे है .... पूछताछ में करमा कहती है .... म्हें नहीं खायो गुड़ ओ गुड़ तो म्हारा ठाकुर जी खायो ....

माता-पिता सोचते हैं करमा ही ने गुड़ खाया है अब झूठ बोल रही है ....

अगले दिन सुबह करमा फिर खीचड़ा बना के ठाकुर जी का आह्वान करती है तो ठाकुर जी प्रकट हो के खीचड़े का भोग लगाते हैं ....

माता-पिता यह दृश्य देखते ही आवाक रह जाते हैं ....

देखते ही देखते करमा की ख्याति सम्पूर्ण मारवाड़ व राजस्थान में फैल गयी ....

जगन्नाथपुरी के पुजारियों को जब मालूम चला कि मारवाड़ के नागौर में मकराणा के कालवा गांव में रोज़ ठाकुर जी पधार के करमा के हाथ से खीचड़ा जीमते हैं तो वो करमा को पूरी बुला लेते हैं ....

करमा अब जगन्नाथपुरी में खीचड़ा बना के ठाकुर जी के भोग लगाने लगी .... ठाकुर जी पधारते व करमा की लुंकड़ी की ओट में खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते ....

बाद करमा बाईसा का शरीर जगन्नाथपुरी में ही  मोक्ष ब्रहमलीन हो गया।

(1) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी को नित्य 6 भोग लगते हैं .... इसमें ठाकुर जी को तड़के प्रथम भोग करमा रसोई में बना खीचड़ा आज भी रोज़ लगता है ....

(2) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी के मंदिर में कुल 7 मूर्तियां लगी है .... 5 मूर्तियां ठाकुर जी के परिवार की है .... 1 मूर्ति सुदर्शन चक्र की है .... 1 मूर्ति करमा बाईसा की है।

(3) जगन्नाथपुरी रथयात्रा में रथ में ठाकुर जी की मूर्ति के समीप करमा बाईसा की मूर्ति विद्यमान रहती है .... बिना करमा बाईसा की मूर्ति रथ में रखे रथ अपनी जगह से हिलता भी नहीं है ....

मारवाड़ या यूं कहें राजस्थान के कोने कोने में ऐसी अनेक विभूतियां है जिनके बारे में आमजन अनभिज्ञ है। हमें उन्हें पढ़ना होगा। हमें उन्हें जानना होगा ।
जय श्रीकृष्ण

function disabled

Old Post from Sanwariya