जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
यह ब्लॉग खोजें
मंगलवार, 11 दिसंबर 2012
सोमवार, 10 दिसंबर 2012
क्या हम भारतीय है ?
जय श्री कृष्णा,
क्या हम भारतीय है ?
कोई कहता है मैं ब्राह्मण, मैं पंजाबी, मैं बंगाली, मैं मराठी, पर क्या आज तक किसी ने ये कहा मे भारतीय हूँ
सबको अपनी पड़ी है अंग्रेज़ो द्वारा थोपे गये नाम इंडियन को आज तक ढो रहे है अंग्रेज़ो ने भारत के हर क्षेत्र मे अंदर और बाहर अपनी छाप लगा रखी है जिसे हम लोग किसी ना किसी रूप मे प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल कर रहे है
हमे अब इस मानसिक गुलामी को छोड़ना होगा,
१. जैसे टाई का जो की अंग्रेज़ो की क्रॉस का प्रतीक है आज तक बिना सोचे समझे लगा रहे है ओर आज वो क्रॉस हमारी भारतीय मुद्रा मे भी सिक्को के पीछे दिखाई दे रहा है ,
२. लोवेस्ट जीन्स - जो की बहुत ही घटिया मानसिकता के कामुक वहशी संस्क्रती की उपज है जो आज युवा पीढ़ी बिना इसका इतिहास जाने अपनाने लगी है
३. धर्मांतरण - लोग बिना सोचे समझे फेशन के चक्कर मे अपनी परंपराओं की वैज्ञानिकता को बिना समझे आधुनिकता की आड़ मे मॉर्डन बनने के साथ ही अपने धर्म से विमुख हो रहे है
४. अंग्रेज़ो द्वारा थोपा गया शब्द इंडिया(गुलाम) आज तक हर जगह प्रयोग कर रहे है अँग्रेज़ी बोलना अपनी शान समझते है
क्या हमे इस तरह की गुलामी से बाहर नही निकलना चाहिए, सरकार ओर उसमे बैठे स्वार्थी लोगो को इन सब बातों से कोई मतलब नही, उनकी जेब भरने के लिए यदि जनता को मौत के मूह मे भी भेजना पड़े तो उन्हे कोई फ़र्क नही पड़ता | इसलिए आज देश को खोखला करने वाली इतनी बाहरी कंपनिया भारत मे अपना अस्तित्व बना चुकी है
महँगाई ओर भ्रष्टाचार से आज सिर्फ़ ओर सिर्फ़ ग़रीब ओर निम्न वर्ग ही त्रस्त है क्योंकि
उच्च वर्ग को कोई फ़र्क नही पड़ता
मध्यम वर्ग के पास समय नही है
ओर निम्न वर्ग कुछ कर नही सकता
तो समस्या ज्यों की त्यों है
क्यों ना इस समस्या का एक एक करके समाधान किया जाए
सबसे पहले हमे अपने नाम के साथ थोपे गये इंडियन शब्द से छुटकारा पाना होगा
इसके लिए आज से ही सभी अपनी हर सोशियल वेबसाइट की प्रोफाइल मे ओर जहाँ भी पता लिखे वहाँ इंडिया की जगह भारत लिखना शुरू कीजिए
जेसे भीलवाड़ा, (राजस्थान) भारत
इससे आने वाले समय मे इस कलंक से तो मुक्ति मिल जाएगी
बाकी की समस्याओं के लिए आप लोग इस बारे मे अपनी राय दीजिए ताकि एक ठोस समाधान सामने आएगा
आपका सहयोग इस आंदोलन मे एक एक इंट का काम करेगा
धन्यवाद
कैलाशचंद्र (साँवरिया)
क्या हम भारतीय है ?
कोई कहता है मैं ब्राह्मण, मैं पंजाबी, मैं बंगाली, मैं मराठी, पर क्या आज तक किसी ने ये कहा मे भारतीय हूँ
सबको अपनी पड़ी है अंग्रेज़ो द्वारा थोपे गये नाम इंडियन को आज तक ढो रहे है अंग्रेज़ो ने भारत के हर क्षेत्र मे अंदर और बाहर अपनी छाप लगा रखी है जिसे हम लोग किसी ना किसी रूप मे प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल कर रहे है
हमे अब इस मानसिक गुलामी को छोड़ना होगा,
१. जैसे टाई का जो की अंग्रेज़ो की क्रॉस का प्रतीक है आज तक बिना सोचे समझे लगा रहे है ओर आज वो क्रॉस हमारी भारतीय मुद्रा मे भी सिक्को के पीछे दिखाई दे रहा है ,
२. लोवेस्ट जीन्स - जो की बहुत ही घटिया मानसिकता के कामुक वहशी संस्क्रती की उपज है जो आज युवा पीढ़ी बिना इसका इतिहास जाने अपनाने लगी है
३. धर्मांतरण - लोग बिना सोचे समझे फेशन के चक्कर मे अपनी परंपराओं की वैज्ञानिकता को बिना समझे आधुनिकता की आड़ मे मॉर्डन बनने के साथ ही अपने धर्म से विमुख हो रहे है
४. अंग्रेज़ो द्वारा थोपा गया शब्द इंडिया(गुलाम) आज तक हर जगह प्रयोग कर रहे है अँग्रेज़ी बोलना अपनी शान समझते है
क्या हमे इस तरह की गुलामी से बाहर नही निकलना चाहिए, सरकार ओर उसमे बैठे स्वार्थी लोगो को इन सब बातों से कोई मतलब नही, उनकी जेब भरने के लिए यदि जनता को मौत के मूह मे भी भेजना पड़े तो उन्हे कोई फ़र्क नही पड़ता | इसलिए आज देश को खोखला करने वाली इतनी बाहरी कंपनिया भारत मे अपना अस्तित्व बना चुकी है
महँगाई ओर भ्रष्टाचार से आज सिर्फ़ ओर सिर्फ़ ग़रीब ओर निम्न वर्ग ही त्रस्त है क्योंकि
उच्च वर्ग को कोई फ़र्क नही पड़ता
मध्यम वर्ग के पास समय नही है
ओर निम्न वर्ग कुछ कर नही सकता
तो समस्या ज्यों की त्यों है
क्यों ना इस समस्या का एक एक करके समाधान किया जाए
सबसे पहले हमे अपने नाम के साथ थोपे गये इंडियन शब्द से छुटकारा पाना होगा
इसके लिए आज से ही सभी अपनी हर सोशियल वेबसाइट की प्रोफाइल मे ओर जहाँ भी पता लिखे वहाँ इंडिया की जगह भारत लिखना शुरू कीजिए
जेसे भीलवाड़ा, (राजस्थान) भारत
इससे आने वाले समय मे इस कलंक से तो मुक्ति मिल जाएगी
बाकी की समस्याओं के लिए आप लोग इस बारे मे अपनी राय दीजिए ताकि एक ठोस समाधान सामने आएगा
आपका सहयोग इस आंदोलन मे एक एक इंट का काम करेगा
धन्यवाद
कैलाशचंद्र (साँवरिया)
रविवार, 9 दिसंबर 2012
एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे संसार की सारी मोटरों का संचालन किया जा सकता है।
एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर 'पी' लिख कर रखता था। वह अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा 'पी' लिख दिया करता था। घर पर भी उसने जगह- जगह पर 'पी' लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह किसी को कुछ नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया। हाई स्कूल केबाद वह कॉलेज में दाखिल हुआ। वहांभी 'पी' लिखने का उसका वह क्रम चालू रहा। कुछ
दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते रहे, पर कोई उसके रहस्य को नहीं समझ
सका। आखिर में सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही 'पी साहब' रख दिया। पर
वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन लगाता था, अत: एमए में
फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल
गई। प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में आया तो छात्रों को अपने'पी'
लिखने का रहस्य बताया, बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का
प्रिंसिपल बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने 'पी' लिखा हुआ रखता
था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया।
क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ 'पिल्टा' कोलेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल
था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे
अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर
कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था? उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया।
नाविक आगेचले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की
सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार
समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने
निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को
तैयार हो गए। और 12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के
तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं
से घबराकर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर
पाता। हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर
कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक
एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
संसारकी सारी मोटरों का संचालन किया जासकता है। परंतु वह बिखरी हुई
अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने
की आवश्यकता है। इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें
शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठा करके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्ति को बिखेर देने
से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट
हो जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक
नारा दिया था, 'करो या मरो।' इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटना होगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसी रक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया। इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मन से दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्पशक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरे क्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है कि हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है
मेरे
बहुत सारे जागरूक और विद्वान मित्र मेरे"हिन्दू"शब्द के उपयोग करने पर
अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं और कहते हैं कि"हिन्दू"एक विदेशी नाम है...
परन्तु मैं उनके इस बात से कभी भी सहमत नहीं होता हूँ... क्योंकि..... ....
हिंदू शब्द भारतीय विद्वानों केअनुसार कम से कम 4000 वर्ष पुराना है। शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी शताब्दी में रचित है , में एक मन्त्र आता है.............
"हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:"
अर्थात........ हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है।
इसी प्रकार अदभुत कोष में भी एक मन्त्र आता है.........................
हिंदू शब्द भारतीय विद्वानों केअनुसार कम से कम 4000 वर्ष पुराना है। शब्द कल्पद्रुम : जो कि लगभग दूसरी शताब्दी में रचित है , में एक मन्त्र आता है.............
"हीनं दुष्यति इतिहिंदू जाती विशेष:"
अर्थात........ हीन कर्म का त्याग करने वाले को हिंदू कहते है।
इसी प्रकार अदभुत कोष में भी एक मन्त्र आता है.........................
"हिंदू: हिन्दुश्च प्रसिद्धौ दुशतानाम च विघर्षने"।
अर्थात.......... हिंदू और हिंदु दोनों शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है।
इतना ही नहीं...... वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी) में भी मन्त्र है,.......................... .
हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:। वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्।"
अर्थात........ जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।
ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है,........................... .....
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं। तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
अर्थात....... हिमालय पर्वत से लेकर इंदु (हिंद) महासागर तक देवपुरुषों द्बारा निर्मित इस क्षेत्र को हिन्दुस्थान कहते है।
और तो और.... पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ में भी लिखा है कि,
"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"।
अर्थात...... व्यास नामक एक ब्राह्मण हिंद से आया जिसके बराबर कोई अक्लमंद नही था।
इस्लाम के पिगम्बर मुहम्मद से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है,........................... .
"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥
अर्थात............ हे हिंद की पुन्य भूमि ! तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझेचुना है।
१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन लिखते हैं .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं ।
महाकवि चन्द्र बरदाई ने भी लिखा है ....................
जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम ।
सिर्फ इतना ही नहीं...... इन जैसे हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है कि हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है
इसलिये कहता हूँ गर्व से कहो हम हिन्दू हैँ।
Sabhar
डा. सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
अर्थात.......... हिंदू और हिंदु दोनों शब्द दुष्टों को नष्ट करने वाले अर्थ में प्रसिद्द है।
इतना ही नहीं...... वृद्ध स्म्रति (छठी शताब्दी) में भी मन्त्र है,..........................
हिंसया दूयते यश्च सदाचरण तत्पर:। वेद्.........हिंदु मुख शब्द भाक्।"
अर्थात........ जो सदाचारी वैदिक मार्ग पर चलने वाला, हिंसा से दुख मानने वाला है, वह हिंदु है।
ब्रहस्पति आगम (समय ज्ञात नही) में श्लोक है,...........................
"हिमालय समारभ्य यवाद इंदु सरोवं। तं देव निर्वितं देशम हिंदुस्थानम प्रच्क्षेत ।
अर्थात....... हिमालय पर्वत से लेकर इंदु (हिंद) महासागर तक देवपुरुषों द्बारा निर्मित इस क्षेत्र को हिन्दुस्थान कहते है।
और तो और.... पारसी समाज के एक अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ में भी लिखा है कि,
"अक्नुम बिरह्मने व्यास नाम आज हिंद आमद बस दाना कि काल चुना नस्त"।
अर्थात...... व्यास नामक एक ब्राह्मण हिंद से आया जिसके बराबर कोई अक्लमंद नही था।
इस्लाम के पिगम्बर मुहम्मद से भी १७०० वर्ष पुर्व लबि बिन अख्ताब बिना तुर्फा नाम के एक कवि अरब में पैदा हुए। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ में लिखा है,...........................
"अया मुबार्केल अरज यू शैये नोहा मिलन हिन्दे। व अरादाक्ल्लाह मन्योंज्जेल जिकर्तुं॥
अर्थात............ हे हिंद की पुन्य भूमि ! तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझेचुना है।
१० वीं शताब्दी के महाकवि वेन लिखते हैं .....अटल नगर अजमेर,अटल हिंदव अस्थानं ।
महाकवि चन्द्र बरदाई ने भी लिखा है ....................
जब हिंदू दल जोर छुए छूती मेरे धार भ्रम ।
सिर्फ इतना ही नहीं...... इन जैसे हजारो तथ्य चीख-चीख कर कहते है कि हिंदू शब्द हजारों-हजारों वर्ष पुराना है
इसलिये कहता हूँ गर्व से कहो हम हिन्दू हैँ।
Sabhar
डा. सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ!
दिखावे पर मत जाओ अपनी अकल लगाओ!
चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ!
जानिए चीनी का प्रयोग कैसे हानिकारक है और गुड़ किस प्रकार लाभदायक है! पढ़िए और SHARE करे!
1- चीनी मिलें हमेशा घाटे में रहती हैं। चीनी बनाना एक मँहगी प्रक्रिया है और हजारों करोड़ की सब्सिडी और चीनी के ऊँचे दामों के बावजूद किसानों को छह छह महीनों तक उनके उत्पादन का मूल्य नहीं मिलता है!
2-चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होता है वहीं गुड़ के उत्पादन से भारत के तीन लाख से कहीं अधिक गाँवों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।
3- चीनी के प्रयोग से डायबिटीज, हाइपोग्लाइसेमिया जैसे घातक रोग होते हैं!
4-चीनी चूँकि कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए यह सीधे रक्त में मिलकर उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जिससे हर्ट अटेक का खतरा बढ़ जाता है!
5-चीनी का प्रयोग आपको मानसिक रूप से भी बीमार बनाता है। यहाँ पढ़ें www.macrobiotics.co.uk/sugar.htm
6-गुड़ में फाइबर और अन्य पौष्टिक तत्व बहुत अधिक होते हैं जो शरीर के बहुत ही लाभदायक है!
7-गुड़ में लौह तत्व और अन्य खनिज तत्व भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं!
8- गुड़ भोजन के पाचन में अति सहायक है। खाने के बाद कम से कम बीस ग्राम गुड़ अवश्य खाएँ। आपको कभी बीमारी नहीं होगी!
9-च्युइँगगम और कैँडी खाने से दाँत खराब होते हैं!
10-गुड़ के निर्माण की प्रक्रिया आसान है और सस्ती है जिससे देश को हजारों करोड़ रुपए का लाभ होगा और किसान सशक्त बनेगा!
जय हिंद! जय भारतवर्ष!! =
चीनी, कैँडी और च्युइँगगम का प्रयोग बंद करो और यदि मीठा खाना ही है तो गुड़ खाओ!
जानिए चीनी का प्रयोग कैसे हानिकारक है और गुड़ किस प्रकार लाभदायक है! पढ़िए और SHARE करे!
1- चीनी मिलें हमेशा घाटे में रहती हैं। चीनी बनाना एक मँहगी प्रक्रिया है और हजारों करोड़ की सब्सिडी और चीनी के ऊँचे दामों के बावजूद किसानों को छह छह महीनों तक उनके उत्पादन का मूल्य नहीं मिलता है!
2-चीनी के उत्पादन से रोजगार कम होता है वहीं गुड़ के उत्पादन से भारत के तीन लाख से कहीं अधिक गाँवों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।
3- चीनी के प्रयोग से डायबिटीज, हाइपोग्लाइसेमिया जैसे घातक रोग होते हैं!
4-चीनी चूँकि कार्बोहाइड्रेट होता है इसलिए यह सीधे रक्त में मिलकर उच्च रक्तचाप जैसी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जिससे हर्ट अटेक का खतरा बढ़ जाता है!
5-चीनी का प्रयोग आपको मानसिक रूप से भी बीमार बनाता है। यहाँ पढ़ें www.macrobiotics.co.uk/sugar.htm
6-गुड़ में फाइबर और अन्य पौष्टिक तत्व बहुत अधिक होते हैं जो शरीर के बहुत ही लाभदायक है!
7-गुड़ में लौह तत्व और अन्य खनिज तत्व भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं!
8- गुड़ भोजन के पाचन में अति सहायक है। खाने के बाद कम से कम बीस ग्राम गुड़ अवश्य खाएँ। आपको कभी बीमारी नहीं होगी!
9-च्युइँगगम और कैँडी खाने से दाँत खराब होते हैं!
10-गुड़ के निर्माण की प्रक्रिया आसान है और सस्ती है जिससे देश को हजारों करोड़ रुपए का लाभ होगा और किसान सशक्त बनेगा!
जय हिंद! जय भारतवर्ष!! =
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
function disabled
Old Post from Sanwariya
- ► 2023 (420)
- ► 2022 (477)
- ► 2021 (536)
- ► 2020 (341)
- ► 2019 (179)
- ► 2018 (220)
- ► 2012 (671)