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रविवार, 17 मार्च 2013

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार

अनेक रोगों का मूल कारण: विरुद्ध आहार

जो पदार्थ रस-रक्तादी धातुओं के विरुद्ध गुणधर्मवाले व वात-पित्त-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करनेवाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है | इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरुद्ध, कुछ संस्कारविरुद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा, स्वभाव आदि से विरुद्ध होते हैं | जैसे-दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि सभी दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शककंद, आलू, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय प्रदार्थ संयोगविरुध हैं | दूध व इनका सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए | इनके बीच कम-से-कम २ घंटे का अंतर अवश्य रखें | ऐसे ही दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद; शहद के साथ गुड़; घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए |
शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक हैं | गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है | दही व शहद को गर्म करने से वे विकृत बन जाते हैं |
दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीकृत प्रदार्थ (जैसे-डोसा, इडली, खमण) स्वभाव से ही विरुद्ध हैं अर्थात इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है | रासायनिक खाद व इंजेकशन द्वारा उगाये गये आनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं |
हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उषण ऋतुओं में उषण पदार्थं व दही का सेवन कालविरुद्ध है | मरुभूमि में रुक्ष, उषण, तीक्षण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने-ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है |
अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है |
अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे-ओवन में बना व फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे-फिर्ज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरुद्ध है |
मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है |
जो आहार मनोनुकूल न हो वह ह्रदयविरुद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता |
इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अषटोमहागद अथार्त आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन होती हैं | विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है |
अत: देश, काल, उम्र, प्रकृति, संस्कार, मात्रा आदि का विचार तथा पथ्य-अपथ्य का विवेक करके नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें | अज्ञानवश विरुद्ध आहार के सेवन से हानि हो गयी हो तो वमन-विरेचनादी पंचकर्म से शारीर की शुद्धी एंव अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए | आपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़-मूल से नहीं निकालते | अपना संयम और नि:सवार्थ एंव जानकार वैध की देख-रेख में किया गया पंचकर्म विशेष लाभ देता है | इससे रोग तो मिटते ही हैं, १०-१४ वर्ष आयुष्य भी बढ़ सकता है |
सबका हित चाहनेवाले पूज्य बापूजी हमें सावधान करते हैं: " नासमझी के कारण कुछ लोग दूध में सोडा या कोल्डड्रिंक डालकर पीते हैं | यह स्वाद की गुलामी आगे चलकर उन्हें कितनी भारी पड़ती है, इसका वर्णन करके विस्तार करने की जगह यहाँ नहीं है | विरुद्ध आहार कितनी बिमारियों का जनक है, उन्हें पता नहीं |
खीर के साथ नमकवाला भोजन, खिचड़ी के साथ आइसक्रीम, मिल्कशेक - ये सब विरुद्ध आहार हैं | इनसे पाशचात्य जगत के बाल, युवा, वृद्ध सभी बहुत सारी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं | अत: हे बुद्धिमानो ! खट्टे-खारे के साथ भूलकर भी दूध की चीज न खायें- न खिलायें | "

ऋतु-परिवर्तन विशेष
शीत व उष्ण ऋतुओं के बीच में आनेवाली वसंत ऋतु में न अति शीत, न अति उष्ण पदार्थों का सेवन करना चाहिए | सर्दियों के मेवे, पाक, दही, खजूर, नारियल, गुड आदि छोड़कर अब ज्वार की धानी, भुने चने, पुराने जों, मूँग, तिल का तेल, परवल, सूरन, सहिजन, सूआ, बथुआ, मेथी, कोमल बैंगन, ताजी नरम मूली तथा अदरक का सेवन करना चाहिए |
सुबह अनुकूल हो ऐसी किसी प्रकार का व्यायाम जरुर करें | वसंत में प्रकुपित होनेवाला कफ इससे पिघलता है | प्रणायाम विशेषत: सूर्यभेदी प्रणायाम (बायाँ नथुना बंद करके दाहिने से गहरा श्वास लेकर एक मिनट रोक दें फिर बायें से छोडें) व सूर्यनमस्कार कफ के शमन का उत्तम उपाय है | इन दिनों दिन में सोना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है |
कफजन्य रोगों में कफ सुखाने के लिए दवाइयों का उपयोग न करें | खानपान में उचित परिवर्तन, प्रणायाम, उपवास, तुलसी-पत्र व गोमूत्र के सेवन एवं सूर्येस्नान से कफ का शमन होता है |

पित्ताशय की पथरी ( गॉल ब्लैडर स्टोंस ) का आयुर्वेदिक उपचार

पित्ताशय की पथरी ( गॉल ब्लैडर स्टोंस ) का आयुर्वेदिक उपचार

- कपालभाती प्राणायाम करे .

- गाजर और ककड़ी का १०-१०० मि.ली . रस मिलाकर दिन में दो बार पिए .

- 50 मि. ली. निम्बू का रस खाली पेट ले .

- सूरजमुखी या ओलिव आयल ३० मि. ली . खाली पेट ले . इसके ऊपर तुरंत १२० मि. ली . अंगूर या निम्बू का रस ले .

- खूब नाशपाती खाए .

- खूब विटामिन सी ले .

- एक बार में अधिक भोजन ना करे .
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पथ्य - जौ, मूंग की छिलके वाली दाल, चावल, परवल, तुरई, लौकी, करेला, मौसमी, अनार, आंवला, मुनक्का ग्वारपाठा, जैतून का तेल आदि। भोजन सादा बिना घी-तेल वाला तथा आसानी से पचने वाला करें और योगाभ्यास करें।

- अपथ्य मांसाहार शराब, आदि नशीले पदार्थों का सेवन, उड़द, गेहूं, पनीर, दूध की मिठाईयां नमकीन, तीखे-मसालेदार तले हुए, खट्टे, खमीर उठाकर बनाएं गये खाद्य पदार्थ जैसे इडली-डोसा ढोकला आदि। अधिक चर्बी, मसाले एवं प्रोटीन के सेवन से यकृत व प्लीहा के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है और फलस्वरूप रक्त की शुद्धि नहीं हो पाती।

- पाचन में भारी, खासकर तली हुई और अम्ल बढ़ाने वाली चीजों सतावर का रस और दूध, बराबर मात्रा में मिलाकर प्रातःकाल पीने से बहुत दिन की पथरी भी नष्ट होकर निकल जाती है। इसका उपयोग 30 दिन तक करें।

- अदरक, जवाखार, हरड़ और दारू हल्दी चूर्ण को बराबर मात्रा में पीस लें फिर इसे दही या लस्सी के साथ पिएं। इससे भयंकर पथरी भी नष्ट हो जाती है।

- पेठें के रस में हींग और 5 ग्राम अजवाइन मिलाकर पीने से पथरी रोग नष्ट होता है।

- आमले के नरम पत्ते के 10 ग्राम स्वरस में 10 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से भयंकर पथरी रोग नष्ट हो जाता है।

- हल्दी की जड़ में मिलाकर तुषोदक के साथ पीने से बहुत पुरानी शर्करा पथरी नष्ट हो जाती है।

- दो तोला अंगूर के पत्ते को 250 ग्राम पानी में उबाले। जब पानी आधा रह जाए, तो उसमें दो तोले मिश्री मिलाकर पिए। पथरी और मूत्र के सभी रोग नष्ट हो जाएंगे।

- 20 ग्राम प्याज के रस में मिश्री 15 दिन तक सुबह पीने से पथरी निकल जाती है।

- 20 ग्राम मूली के रस में 1 ग्राम जवाखार मिला कर सुबह-शाम पीने से पथरी नष्ट हो जाती है। चैलाई का साग खाने से पथरी नष्ट होती है।

- पथरी के रोगियों को नियमित रूप से कुछ अधिक पानी पीना चाहिए। विशेषकर गर्मियों के मौसम में कम से कम 4 लीटर पानी प्रतिदिन पीने से पथरी में लाभ होता है।भारी भोजन के सेवन से परहेज रखें और भूख के बिना भोजन न करें तो पथरी से होने का डर नहीं रहता।

आयुर्वेद की उपयोगि कुछ बाते आप सभी के लिए .

आयुर्वेद की उपयोगि कुछ बाते आप सभी के लिए .
कोई भी आज आयुर्वेद की उपयोगिता से मुख नहीं मोड़ सकता हैं आज लोगों का रुझान इस ओर बढ़ता जा रहा हैं चिकित्सा की हर पद्धति के फायदे ओर नुक्सान हैं ओर यह भी बात ध्यान रखने योग्य हैं की हर पद्धति अपने विशेग्य के हाँथ में श्रेष्ठ होतीहैं .
सदगुरुदेव जी ने अ पनी पुस्तक "मूलाधार से सहस्रार तक में". आयुर्वेद के विभिन्न कल्प जड़ी बूटियों ओर अन्य विषय पर मन्त्र के माध्यम से विषद चर्चा की हैं .हमें इस ओर भी उतना ध्यान देना चाहिए जितना की हंम साधना पक्ष के ओर देते हैं . जीवन में संतुलित ता जरुरिहैन यदिशरित का एक भाग मजबूत हो तथा दूसरा भाग कमजोर हो तो वह स्वास्थ्य नहीं कह जायेगा . तंत्र क्षेत्र में रूचि ठीक हैं पर इस विज्ञानं के प्रतिभी अपना लगाव रखना चाहिए ही.
आप कहेगे की इसका तंत्र से क्या सम्बन्ध :
यदि कोई भी व्यक्ति जो कर्ण पिशाचनी जैसी साधना करना चाहता हैं तो वह यदि ग्वारपाठा के रस को अपने पैरों के तलिए में लग कर साधनकरने बैठे तो साधन काल के दौरान होने वाले भयंकर द्रश्यों में कमी आ जाती हैं "( इस तरह के अन्य प्रयोग हम किसी अगले पोस्ट में आपकेसामने रखंगे )
दूसरा उदहारण ले किसी को कुष्ठ तोग या सफ़ेद दाग हो गया हो वह ग्वारपाठा के गुदे को निकल कर बिछा ले उस पर नंगे पैर उस पर तबतक चलता रहे जबतक की उसका मुख का स्वाद कड़वा न हो जाये . प्रतिदिन नए गुदे के साथ यह प्रक्रिया करे आशातीत लाभ मिलेगा . जहाँ तंत्रअआपके जीवन कप अर्थ ओर उच्चता दे सकता हैं तो आयुर्वेद इस जीवन को सुदर ओर मजबूत निरोगी शरीर दे सकता हैं ,इसलिए हमें सब पर एकसंतुलित दृष्टी रखना होगी .
कुछ बाते आप सभी के लिए ..
1. यदि एक या दो चुटकी गुग्गल को पानी या दूध के साथ दिन में दो बार लिया जाये तो शरीर में यदि कोई हड्डी टु टी हो तो जल्द लाभ मिलताहैं .
2. १ या २ ग्राम हल्दी लो भुन्नकर चूर्ण बना कर दिन में चार बार ले तो काली खांसी जल्दी से ठीक होती हैं.
3. यदि आपने केले ज्यादा खा लिए हो तो आप एक या दो इलायची जरुर खां ले पाचन में आराम होगा.
4. यदि प्याज का रस रात को सोते समय बालों में लगा ले ओर प्रातः काल उठ कर बाल धोले तो केशो के अ समय गिरने से छुटकारा पायाजा सकता हैं .
5. यदि नीबू के रस को लहसुन के रस के साथ मिलकर बालों में लगाये तो जू की तकलीफ समाप्त हो जाती हैं .
6. दो लौंग के साथ एक दो तुलसी की पत्ती को चाय बनाते समय मिला लिया जाये तो जुकाम में लाभ होता हैं .
7. यदि आमले का मुरब्बा सुबह खाली पेट खाया जाये तो यह याद दश्त बढ़ने में उपयोगी होता हैं .
आज के लिए बस इतना ही

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