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सोमवार, 5 जुलाई 2021

योगिनी एकादशी : 05 जुलाई


 🌹 योगिनी एकादशी : 05 जुलाई


🌹 युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।
 
🌹 भगवान श्रीकृष्ण बोले : नृपश्रेष्ठ ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है ।
 
🌹 अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं । उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था । हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था । वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था । एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका । इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे । उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की । जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : ‘यक्षों ! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है ?’
 
🌹 यक्षों ने कहा: राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है । यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया । वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया । उसे देखकर कुबेर बोले : ‘ओ पापी ! अरे दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा ।’
 
🌹 कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया । कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई । तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया । वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ । पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ?’
 
🌹 यक्ष बोला : मुने ! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ । मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था । एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया । मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये ।
 
🌹 मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ । तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा ।
 
🌹 भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया । उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया ।
 
🌹 नृपश्रेष्ठ ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है । ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है । इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

🌹 व्रत खोलने की विधि :   द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए । ‘मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए

सन् 1947 में 3.5 हजार शराबखानो को सरकार का लाइसेंस.....!!


"हर भारतीय के लिए चुनौती "

सन् 1836 में लार्ड मैकाले अपने पिता को लिखे एक पत्र में कहता है:
"अगर हम इसी प्रकार अंग्रेजी नीतिया चलाते रहे और भारत इसे अपनाता रहा तो आने वाले कुछ सालों में 1 दिन ऐसा आएगा की यहाँ कोई सच्चा भारतीय नहीं बचेगा.....!!"
(सच्चे भारतीय से मतलब......चरित्र में ऊँचा, नैतिकता में ऊँचा, धार्मिक विचारों वाला, धर्मं के रस्ते पर चलने वाला)
भारत को जय करने के लिए, चरित्र गिराने के लिए, अंग्रेजो ने 1758 में कलकत्ता में पहला शराबखाना खोला, जहाँ पहले साल वहाँ सिर्फ अंग्रेज जाते थे। आज पूरा भारत जाता है।
सन् 1947 में 3.5 हजार शराबखानो को सरकार का लाइसेंस.....!!

सन् 2009-10 में लगभग 25,400 दुकानों को मौत का व्यापार करने की इजाजत।

चरित्र से निर्बल बनाने के लिए सन् 1760 में भारत में पहला वेश्याघर कलकत्ता में सोनागाछी में अंग्रेजों ने खोला और लगभग 200 स्त्रियों को जबरदस्ती इस काम में लगाया गया।

अंग्रेजों के जाने के बाद जहाँ इनकी संख्या में कमी होनी चाहिए थी वहीं इनकी संख्या में दिन दुनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है !!

आज हमारे सामने पैसा चुनौती नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन चुनौती है।
इसकी रक्षा और इसको वापस लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए !!!

ईसाईयों द्वारा अपने ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""हमारे" हिन्दू धर्म से चोरी किया गया है


क्या आप जानते हैं कि.... ईसाईयों द्वारा अपने ईश्वर के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द ""हमारे" हिन्दू धर्म से चोरी किया गया है....

और, GOD शब्द और कुछ नहीं... बल्कि, हमारे अराध्य त्रिदेव का ""अंग्रेजी एवं छोटा रूप"" है...!

दरअसल बात कुछ ऐसी है कि..... जब हमारा सनातन धर्म पूरे विश्व में विजय पताका फहरा रहा था...... और, हमारे यहाँ रेशमी वस्त्र बनाये एवं पहने जा रहे थे..... उस समय तक..... पश्चिमी और आज के आधुनिक कहे जाने वाले देशों के लोग....... जंगलों में नंग-धडंग रहा करते थे....... !
जब हमारे हिंदुस्तान के व्यापारियों ने ... व्यापार के सिलसिले में.... देशों की सीमाओं को लांघना शुरू किया ....... तब उन पश्चिमी लोगों को समाज की स्थापना और ईश्वर के बारे में पता चला....!

भारत के उन्नत समाज .... और, सर्वांगीण विकास को देख कर उनकी आँखें फटी रह गई....!

खोजबीन करने पर उन्हें ये मालूम चला कि..... भारत (हिन्दुओं) के इस उन्नत समाज और सर्वंगीन विकास का प्रमुख आधार उनका ""भगवान पर अटूट श्रद्धा और भक्ति"" है...!

ये राज की बात पता चलते ही .... पश्चिमी देशों के लोगों ने भी...... हमारे हिंदुस्तान के भगवान को आधार बना कर........ उन्होंने अपना एक नया ही भगवान खड़ा कर लिया (जिस प्रकार मुहम्मद ने इस्लाम को खड़ा किया).

इसके लिए उन्होंने ... जीजस अर्थात ...... ईशा मसीह की प्रेरणा ...... भगवान श्री कृष्ण से ली.......( क्योंकि भगवान राम की कॉपी करने पर उन्हें भी नया रावण और नए लंका का निर्माण करना पड़ जाता ... जो कि काफी दुश्कर कार्य होता)

शायद आपने कभी गौर नहीं किया है कि..... ईशा मसीह और भगवान कृष्ण में कितनी समानता है....!

1 . भगवान कृष्ण की ही तरह..... ईशा मसीह का भी....... जन्म रात में बताया गया है....!
2 . भगवान कृष्ण की ही तरह .... ईशा मसीह भी .......... भेड़ बकरियां चराया करते थे....!
3 . भगवान कृष्ण की ही तरह..... ईशा मसीह को भी...... दूसरी माँ ने पाला....!
4 . भगवान कृष्ण की ही तरह... ईशा मसीह के कथन को भी... बाईबल कहा गया...(भगवान कृष्ण के कथन को श्रीभगवत गीता कहा गया है)
5 . हमारे हिन्दू धर्म की ही तरह.... बाईबल में भी दुनिया में प्रलय ..... जलमग्न होकर होना.... बताया गया है...!

अब उन्होंने नया भगवान तो बना लिया ..... लेकिन उन्हें संबोधित करने का तरीका भी उन्हें नहीं आता था.....और, ईश्वर के लिए उतना लम्बा-चौड़ा परिचय लोगों के समझ से परे जाने लगा ..!

जिस कारण.... उन्होंने एक बार फिर.... हमारे हिन्दू धर्म की मुंह ताकना शुरू किया ..... और, यहाँ उन्हें उनका जबाब मिल गया..!

हमारे हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देवता हैं.....
१. रचयिता... अर्थात ....... ब्रह्मा ..!
२. पालनकर्ता .. अर्थात .. विष्णु ...! और ,
३. संहार कर्ता .. अर्थात ..... शिव...!

उन्होंने.... हमारी इस विचारधारा को ... पूरी तरह जस के तस कॉपी कर लिया....... और, उन्होंने अंग्रेजी में अपने ईश्वर को GOD बुलाना शुरू किया..!

GOD अर्थात....

G : Generator ..... (सृष्टि Generate करने वाला........अर्थात........ रचयिता )
O : Operator ...... ( सृष्टि को Operate करने वाला .... अर्थात ... पालनकर्ता )
D : Destroyer...... ( सृष्टि को destroy करने वाला ..... अर्थात... संहार कर्ता..)

सिर्फ इतना ही नहीं.... बल्कि, हमारे ""कृष्णनीति"' को वे ..... अपनी सभ्यता के हिसाब से ""क्रिस्चैनिटी"" ..... बुलाने लगे.... !

इन प्रमाणों से बात एक दम शीशे की तरह साफ है कि..... दुनिया में "हिन्दू सनातन धर्म" को छोड़ कर बाकी सारे धर्म या तो चोरी कर बनाये गए है..... या फिर... उनकी सिर्फ मान्यता है....!

हमारा हिन्दू सनातन धर्म ही ...... ""सभी धर्मों की जननी है"" और, ....... ""अनादि.... अनंत... निरंतर""..... है...!

जय महाकाल...!!!

कभी सोचा है लार्ड (अँग्रेज़ी शब्द) और भगवान (हिन्दी शब्द) में क्या अंतर है…?


कभी सोचा है लार्ड (अँग्रेज़ी शब्द) और भगवान (हिन्दी शब्द) में क्या अंतर है…?
कभी सोचा है आखिर अग्रेजों ने हिन्दू धर्म के देवताओं के नाम के आगे भगवान के बाजय लार्ड अँग्रेज़ी शब्द (Lord English Word) को प्रयोग क्यों किया…?

हिन्दी शब्द भगवान का अर्थ:
भ – भूमि,
ग- गगन,
व- वायु,
आ- अग्नि,
न-नीर

मैकाले की संस्कार विहीन शिक्षापद्दती देश के विकास में बाधक है। शिक्षा व्यवस्था में संस्कारों का अभाव तथा इतिहास को तोड़-
मरोड़कर पेश करने के कारण ही देश का युवा अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से विमुख होकर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को विवश है।

अंग्रेज़ चले गये पर उनके मानसपुत्रों की कमी नहीं है। भारत में, भारतीय संसद के सभी सदस्यों के लिए, चाहे वे लोकसभा के सदस्य हों या राज्यसभा के, सांसद शब्द का प्रयोग किया जाता है।

यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन), हाउस ऑफ़ लार्ड्स के सदस्य ‘लार्ड्स ऑफ़ पार्लियामेंट’ कहे जाते हैं। इंग्लैंड सरकार की ओर से लॉर्ड एक उपाधि है ॥ लॉर्ड की उपाधि प्राप्त India के वाइसरॉय एवं गवर्नर जनरल ::::::

• लॉर्ड विलियम बैन्टिक, India के गवर्नर जनरल
(1833–1858)
• लॉर्ड ऑकलैंड
• लॉर्ड ऐलनबरो
• लॉर्ड डलहौज़ी
• लॉर्ड कैनिंग, India के वाइसरॉय एवं गवर्नर-
जनरल (1858–1947)
• लॉर्ड कैनिंग
• लॉर्ड मेयो
• लॉर्ड नैपियर
• लॉर्ड नॉर्थब्रूक
• लॉर्ड लिट्टन
• लॉर्ड रिप्पन
• लॉर्ड डफरिन
• लॉर्ड लैंस्डाउन
• लॉर्ड कर्जन
• लॉर्ड ऐम्प्थिल
• लॉर्ड मिंटो
• लॉर्ड हार्डिंग
• लॉर्ड चेम्स्फोर्ड
• लॉर्ड रीडिंग
• लॉर्ड इर्विन
• लॉर्ड विलिंग्डन
• लॉर्ड माउंटबैटन
इनको अभी भी हमारे इतिहास में लॉर्ड नाम से ही पढ़ाया जाता है।

और लॉर्ड शब्द का इस्तेमाल देवताओं के नाम आगे भी किया जाता है।
• लार्ड कृष्णा (Lord Krishna)
• लार्ड रामा (Lord Rama)
• लार्ड गणेशा (Lord Ganesha)
• लार्ड शिवा (Lord Shiva)
• लार्ड ब्रह्मा (Lord Brahma)
• लार्ड विष्णु (Lord Vishnu)
अब क्या देवताओं के नाम के आगे लॉर्ड लगाना न्यायोचित है…??

जहाँ एक ओर भारतीय संस्कृति का पूरे विश्व मैं बोल बाला था और इसके लिए भारत की पूरी दुनिया मैं एक अलग पहचान है,
वहीँ कुछ गैर ज़िम्मेदार लोग इस संस्कृति को धूमिल करने पर तुले हुए हैं:
जागो भारतीय जागो !! जय हिन्द, जय भारत !

क्या होता है लाख, जिसके उद्यम से कमाए आप भी लाख, महिलाओं के लिए खास, रोजगार देगा बिंदास


 क्या होता है लाख, जिसके उद्यम से कमाए आप भी लाख, महिलाओं के लिए खास, रोजगार देगा बिंदास_


लाख, या लाह संस्कृत के ' लाक्षा ' शब्द से व्युत्पन्न समझा जाता है। संभवत: लाखों कीड़ों से उत्पन्न होने के कारण इसका नाम लाक्षा पड़ा था।

लाख एक प्राकृतिक राल है बाकी सब राल कृत्रिम हैं। इसी कारण इसे 'प्रकृत का वरदान' कहते हैं। लाख के कीट अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं तथा अपने शरीर से लाख उत्पन्न करके हमें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक भाषा में लाख को 'लेसिफर लाखा' कहा जाता है। 'लाख' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'लक्ष' शब्द से हुई है, संभवतः इसका कारण मादा कोष से अनगिनत (अर्थात् लक्ष) शिशु कीड़ों का निकलना है। लगभग 34 हजार लाख के कीड़े एक किग्रा. रंगीन लाख तथा 14 हजार 4 सौ लाख के कीड़े एक किग्रा. कुसुमी लाख पैदा करते हैं

लाख एक बहुपयोगी राल है, जो एक सूक्ष्म कीट का दैहिक स्राव है। लाख के उत्पादन करने के लिए पोषक वृक्षों जैसे कुसूम,पलास व बेर अथवा झाड़ीदार पौधों जैसे भालिया की आवश्यकता पड़ती है। हमारे देश में पैदा होने वाली लाख का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा झारखण्ड राज्य से प्राप्त होता है। छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल, अन्य प्रमुख लाख उत्पादन राज्य हैं। महाराष्ट्र, उड़ीसा मध्यप्रदेश और असम के कुछ क्षेत्रों में भी लाख की खेती की जाती है।

*लाख से कौन-कौन सी चीज़े बनाई जाती है तथा लाख कौन-कौन से देशों में इस्तेमाल होता है?*
वैसे तो लाख के उपयोग बहुत से है लेकिन लाख से चौरी बनाना, चूड़ियाँ बनाना, लाख की सजावटी वस्तुए पेन , हार, डिब्बे, डिबिया, झुमकी या और गहने बनाना, मोहर लगाने की लाख यानी सीलिंग वैक्स तथा कुछ विशेष प्रकार की दवाइयां बनाने तथा लकड़ी व मिट्टी के बर्तनों पर लेप के लिए वार्निश बनाना इत्यादि ऐसे कई उपयोग हैं। चीन में चमड़ा बनाने के काम मे भी लाख का उपयोग किया जा रहा है। लाख का उद्योग राजस्थान में बहुतायत से किया जाता है। लाख नेपाल, बांग्लादेश, चीन , पाकिस्तान श्रीलंका सहित अनेक देशों में निर्यात की जा रही है।

*लाख का उत्पादन और पूंजी*
लाख की खेती करना बहुत आसान है। यदि आपके पास वृक्ष हैं तो बहुत कम पैसों से ही शुरू किया जा सकता है। इसी प्रकार लाख आधारित कुटीर उद्योग लगाने के लिए भी अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं पड़ती।

*लाख से आमदनी और रोजगार*
लाख की खेती से होने वाली आय, पोषक वृक्षों की संख्या और उनके प्रकार पर निर्भर करती है। दुसरे शब्दों में यदि आपके पास पलास के 100 पोषक वृक्ष उपलब्ध हैं तो लगभग 12000 रूपए सालाना की आय ली जा सकती है। इसी पारकर 100 बेर के वृक्षों से 20,000 रूपए की वार्षिक आमदनी तथा 100 कुसूम के वृक्षों से एक लाख रूपए से भी ज्यादा आमदनी हो सकती है। साथ ही साथ उपलब्ध वृक्षों प्रकारानूसार प्रतिवर्ष 40 से 228 श्रम दिवसों का सृजन भी होता है। यदि लाख प्रसंस्करण और उद्योग में मिलने वाले अवसर भी जोडें तों यह संख्या की और अधिक हो जाएगी। लाख आधारित उद्योगों में सालाना लगभग दस लाख श्रम दिवस सृजित होते हैं।

*लाख की कृषि*
लाख की खेती इतनी आसान है। वृक्षों को कलम करना, फसल काटना तथा कीटनाशक दवा का छिड़काव करना, वे सब कार्य जिसमें बारीकी, धैर्य, तल्लीनता और समय की आश्यकता होती है, जैसे बण्डल बनाना, लाख छीलना इत्यादि महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा अच्छे ढंग से करती है। 

*लाख उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी*
लाख की खेती में की जाने वाली प्रक्रियाओं में सबसे पहले वृक्षों की काट-छांट करनी होती है। चूंकि इसके लिए वृक्षों पर चढ़ना पड़ता है इसलिए यह कार्य ज्यादातर पुरूष करते हैं। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में तो महिलाएँ इतनी कुशल हैं कि वे स्वयं भी पेड़ों पर चढ़ जाती हैं।परन्तु कीट संचारण के लिए बिहनलाख के बंडल बनाना, इन्हें नाईलान जाली की थैली में भरना, फूंकी लाख को छीलना इत्यादि कार्य महिलाएँ करती है। इसी प्रकार फसल कटाई के बाद लाख लगी डालियों को इकट्ठा करने, अच्छे बीहनलाख को चुनना तथा फिर टहनी से लाख को छुड़ाने का काम भी महिलाओं द्वारा ही किया प्रतिशत काम महिलाएं ही करती हैं या कर सकती हैं।

*लाख प्रसंस्करण उद्योग में महिलाओं की भूमिका*
लाख की फसल होने के उपरांत कारख़ानों में इसका शुद्धिकरण किया जाता है। इसके लिए छिली हुई लाख की धुलाई के पश्चात चौरी को सुखाना, सूप से साफ करना, छलनी से छानना तथा चपड़े के टुकड़े कर उसका भण्डारण जैसे कार्य महिलाओं द्वारा ही किये जाते हैं। इन कामों को महिलाएं, पुरूषों के मुकाबले बेहतर ढंग से कर सकती हैं। महिलाएँ चाहें तो बेहतर आमदनी की लिये गांवों में ही लाख आधारित कुटीर उद्योग भी लगा सकती हैं।

*लाख की खेती के लिए प्रशिक्षण*
लाख की खेती करने या उद्योग लगाने से पहले यदि प्रशिक्षण ले लिया जाए तो इस कार्य को अच्छे ढंग से किया जा सकता है। भारतीय लाख अनूसंधान संस्थान में प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था है। 

*लाख उद्योग के लिए संपर्क*
लाख की खेती करने अथवा लाख आधारित उद्योग लगाने या प्रशिक्षण संबंधी और अधिक जानकारी के लिए नामकुम स्थित भारतीय लाख अनूसंधान संस्थान से सम्पर्क करें। 

भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान
(पूर्व भारतीय लाख अनुसंधान संस्थान)
नामकुम, रांची - 834 010
http://ilri.ernet.in/~hindi/aboutus.html

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