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शनिवार, 21 जनवरी 2023

मौनी अमावस्या *पित्र श्राद्ध एवं तर्पण करने का विशेष पर्व*




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*मौनी अमावस्या 

*पित्र श्राद्ध एवं तर्पण करने का विशेष पर्व*
*शनिश्चरी अमावस्या होने की वजह से गो ग्रास का विशेष महत्व*
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*निमि ने शुरू की श्राद्ध की परंपरा*
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*महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।*

*पितरों को हो गया था अजीर्ण रोग*
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*श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण (भोजन न पचना) रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे कहा कि- श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया है, इससे हमें कष्ट हो रहा है, आप हमारा कल्याण कीजिए।*
*देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले- मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हैं, ये ही आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव बोले- देवताओं और पितरों। अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवता व पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता है।*

*पहले पिता को देना चाहिए पिंड*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️*पुराणों के अनुसार, अग्नि में हवन.करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है*
*उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते।*
 *श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं। सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है। प्रत्येक पिंड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए।*

*कुल के पितरों को करें तृप्त*
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*रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन तैयार करने में नहीं लगाना चाहिए। तर्पण करते समय पिता-पितामह आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। किसी नदी के किनारे पहुंचने पर पितरों का पिंडदान और तर्पण अवश्य करना चाहिए। पहले अपने कुल के पितरों को जल से तृप्त करने के पश्चात मित्रों और संबंधियों को जलांजलि देनी चाहिए। चितकबरे बैलों से जुती हुई गाड़ी में बैठकर नदी पार करते समय बैलों की पूंछ से पितरों का तर्पण करना चाहिए क्योंकि पितर वैसे तर्पण की अभिलाषा रखते हैं।*

*अमावस्या पर जरूर करना चाहिए श्राद्ध*
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*नाव से नदी पार करने वालों को भी पितरों का तर्पण करना चाहिए। जो तर्पण के महत्व को जानते हैं, वे नाव में बैठने पर एकाग्रचित्त हो अवश्य ही पितरों का जलदान करते हैं। कृष्णपक्ष में जब महीने का आधा समय बीत जाए, उस दिन अर्थात अमावस्या तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।*

*इसलिए रखना चाहिए पितरों को प्रसन्न*
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*पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं। मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिंडदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं।*

*ऐसे करना चाहिए पिंडदान*
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*महाभारत के अनुसार, श्राद्ध में जो तीन पिंडों का विधान है, उनमें से पहला जल में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध का विधान है। जो इसका पालन करता है उसके पितर सदा प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं और उसका दिया हुआ दान अक्षय होता है।*

*1👉 पहला पिंड जो पानी के भीतर चला जाता है, वह चंद्रमा को तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं।*

*2👉 इसी प्रकार पत्नी गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।*

*3👉 तीसरा पिंड अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।*
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शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

कौन सी चीजें फिल्मों में अक्सर गलत तरीके से दिखाई जाती हैं? - मौत।

 

मौत।

1998 में, इस प्रसिद्ध फिल्म "कुछ कुछ होता है" ने टीना (रानी मुखर्जी) को परफेक्ट आई शैडो के साथ मरते हुए दिखाया, उसके शरीर में दर्द के शून्य लक्षण, राहुल से बात करना, उसे गले लगाना और हग करते हुए मरना। इस दृश्य में, वह शायद मर चुकी है। डॉक्टर शायद बाहर थे, इस अति भावुक दृश्य पर रोते हुए, उन्होंने उसे मरने की अनुमति दी।

रोमांटिक बकवास।

असली मौत विकट बदसूरत है, ज्यादातर मामलों में, आपके अंदर बहुत से पाइप हैं। इस तरह के परिदृश्य में वास्तविक मौत मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण होती है। मुझपर भरोसा करें, ऐसी हालत में मरीज के चेहरे को देखना दर्दनाक होता है

लेकिन यह 1998 की फिल्म थी। अभी का क्या?

आइए देखते हैं कि 2016 में आई फिल्म “सनम तेरी कसम” में एक ब्लड कैंसर के मरीज की मौत कैसे हुई?

दृश्य 1: वह मर रही है। डॉक्टर ने ऐसा कहा। लेकिन वह बोल रही है।

दृश्य 2: अभी भी बात कर रहे हैं। कोई डॉक्टर नहीं, कोई वेंटिलेशन नहीं, कोई ऑक्सीजन नहीं, सही मेकअप, पूरी तरह से किए गए बाल। बस उसके हाथ में कुछ यादृच्छिक आईवी-चैनल।

दृश्य 3 अरे नहीं! वह मर चुकी है, ऐसे ही।

प्रिय बॉलीवुड, मौत की महिमा दिखना बंद करो । कैंसर से मौत, बहु अंग विफलता बदसूरत है, दर्दनाक है। जब मेरे निकट एक की मृत्यु हो गई, तो उसका पूरा शरीर सूज गया था, उसकी आँखों से खून टपकने लगा था, उसके बाल पूर्ववत थे और वेंटिलेशन चैनल के कारण उसका होंठ फट गया था।

जब मुझे पता था कि एक अन्य व्यक्ति मल्टी ऑर्गन फेल्योर से मर गया है, तो वह खुद की तरह कुछ नहीं देख रहा था। वह वास्तव में मर चुकी थी, उससे बहुत पहले वह मृत और मृत लग रही थी।

मौत कोई खूबसूरत चीज नहीं है।

यह बात बदसूरत मौत दिखाने और दर्शकों को डराने के बारे में नहीं है। बात इसे वास्तविक बनाने की है। कम से कम, एक व्यक्ति को बात करने, गले लगाने और उसी तरह मरने के लिए न दिखाएं। यह अवास्तविक उम्मीद पैदा करता है और जब बदसूरत मौत आती है, तो यह अनुचित लगता है, अंतिम अलविदा कहने में सक्षम नहीं होना। लेकिन अधिकांश वास्तविक जीवन के मामलों में, जो कि अंतिम टाटा अलविदा नहीं होता है

रोमांटिक आदान-प्रदान के बिना मौत। मौत का असली दर्द दिखाओ, उसकी कुरूपता नहीं।

गोरोचन क्या है? यह कहाँ मिलता है? क्या इसका प्रयोग तंत्र विद्या में वशीकरण के लिए किया जाता है?

 

तांत्रिक ग्रंथों में अक्सर एक वस्तु का नाम कई जगह पढ़ने-सुनने को मिलता है। वह वस्तु है गोरोचन। क्या आप जानते हैं यह गोरोचन है क्या? और इसकी इतनी चर्चा क्यों होती है? यह किस काम आता है? आइए आज जानते हैं गोरोचन के बारे में। गोरोचन दरअसल एक ऐसी सिद्ध वस्तु है जिसका उपयोग अनेक कर्मों में किया जाता है। धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि, जमीन में गड़े धन का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रयोग वशीकरण में किया जाता है। इसका तिलक करने से तीव्र वशीकरण और आकर्षण प्राप्त होता है।

कैसे करते हैं गोरोचन का उपयोग

गोरोचन को बाजार से लाकर सीधे प्रयोग नहीं किया जाता है। इसे सिद्ध करना होता है, तभी यह अपना असर दिखा पाता है। गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में सिद्ध किया जाता है। जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन नहाकर अपने पूजा स्थान में बैठकर सोना या चांदी की कटोरी, डिबिया या छोटे पात्र में गोराचन रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद दो मंत्रों का एक-एक माला जाप करना होता है। ये मंत्र हैं :

  • ऊं शांति शांत: सर्वारिष्टनाशिनि स्वाहा:
  • ऊं श्रीं श्रीयै नम:
    • गोरोचन के अनेक उपयोग हैं जिनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित उपयोग वशीकरण का है। यदि आप अपने आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करना चाहते हैं। आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्रभावित रहें। आपकी बात सुनें। आप किसी स्त्री या पुरुष को अपने वशीभूत करना चाहते हैं तो गोरोचन के साथ सिंदूर और केसर को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चांदी की डिबिया में भरकर रख लें। प्रतिदिन सूर्योदय के समय इसका तिलक करने से आपके वशीकरण प्रभाव में जबर्दस्त तरीके से वृद्धि होगी। हर व्यक्ति आपकी बात मानने लगेगा।
    • आर्थिक स्थिति सुधारने और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए गोरोचन को एक चांदी की डिबिया में भरकर अपने पूजा स्थान में रखें और रोज देवी-देवताओं की तरह इसकी भी पूजा करें। इससे घर में बरकत आने लगती है। घर में यदि कोई वास्तु दोष है तो वह दूर हो जाता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
    • घर में कोई सदस्य बीमार है तो रविवार या मंगलवार के दिन एक छोटा चम्मक गुलाब जल में थोड़ा सा गोरोचन मिलाकर उस व्यक्ति को पिला दें। गोरोचन का तिलक प्रतिदिन बीमार व्यक्ति को लगाएं तो जल्द ही वह स्वस्थ होने लगेगा।
    • मिर्गी या हिस्टीरिया के मरीज को गुलाबजल में थोड़ा गोराचन घिसकर तीन दिन तक पिलाने से रोग में आराम मिलता है। लेकिन यह प्रयोग किसी जानकार की देखरेख में ही करें।
    • समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में पंचोपचार पूजन कर चांदी या तांबे के ताबीज में भरकर अपने गले में धारण कर लें। इससे कार्यों में आने वाली बाधाएं समाप्त होंगी और सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
    • गोरोचन की स्याही बनाकर इससे भोजपत्र पर मोरपंख की कलम से सिद्ध बीसा यंत्र लिखकर पंचोपचार पूजन करके चांदी के ताबीज में बांधकर अपने पास रखें। इससे आर्थिक संकट दूर हो जाता है।
    • कुछ तांत्रिक लोग गोरोचन का प्रयोग जमीन में गड़ा धन पता करने के लिए भी करते हैं। इसके लिए अमावस्या की रात्रि में निर्जन स्थान पर गोरोचन को विशेष साधना के जरिए सिद्ध किया जाता है। फिर विशेष पद्धति से इसका काजल बनाया जाता है। जो व्यक्ति उस काजल को अपनी आंख में लगाता है उसमें जमीन में दबा धन पता करने की शक्ति आ जाती है।
    • केले में गोरोचन मिलाकर लेप बनाएं और इसे मस्तक पर लगाने से आकर्षण शक्ति प्राप्त होती है।
  • गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है।
  • स्रोत गूगल, जवाब पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏

क्या भगवान कार्तिकेय और अय्यप्पा एक ही हैं?

 

दोनो अलग हैँ ।

कार्तिकेय "शिव और शक्ति" के पुत्र हैँ और अय्यप्पा "शिव और मोहिनी" के । मोहिनी भगवान विष्णु का स्त्री अवतार है। मोहिनी समुद्र मंथन के बाद अमृत बाँट रहीँ थी । अय्यप्पा या अय्यपन को हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। यहाँ पर हरि विष्णु और हर शिव हैँ।

अय्यप्पा बाघिन की सवारी करते दिखाए जाते है इसलिए अकसर साथ मेँ अन्य बाघ शावक या बच्चे भी होते हैँ। नन्हे शावकोँ के कारण पता चल जाता है कि बाघिन है।

कार्तिकेय का दक्षिण भारतीय नाम मुरुगन या आरुमुगम ( आरु मुखम या षडमुख) हैँ। कार्तिकेय मोर की सवारी करते दिखाए जाते हैँ । इनके छह मुख भी दिखाए जाते हैँ या कभी कभी एक मुख वाले भी बना दिए जाते हैँ । आरुमुगम तमिळ राज्य के रक्षक देव माने जाते हैँ।


अय्यप्पा की लोकप्रियता उत्तर भारत मेँ कम है। इसलिए इनकी कथा की जानकारी कम ही है।

पांडलम राज्य के राजा पांडियन के कोई संतान नहीँ थी । एक बार उनको जंगल मेँ एक शिशु मिला । राजा इस शिशु को लेकर ऋषियोँ के पास गए। ऋषियोँ ने उन्हे इसको अपने पुत्र की तरह पालने का आदेश दिया और बताया कि जब शिशु बारह वर्ष का हो जाएगा तो शिशु कौन है इसकी जानकारी राजा को होगी । इसके बाद राजपरिवार ने इस शिशु का नाम मणिकण्ठ रखकर उसका पालन किया ।

इसके कुछ समय बाद राजा रानी को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई । जब मणिकण्ठ 12 वर्ष का हुआ तो राजा ने उसे उत्तराधिकारी घोषित करने का निर्णय लिया । इस समय तक राजा का पुत्र भी किशोर होने को था लेकिन राजा की दृष्टि मेँ वह उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीँ था। एक मंत्री ने रानी के कान भर दिए और उस समझा दिया कि राजा और रानी का वास्तविक पुत्र ही उत्तराधिकारी होना चाहिए । अयोग्य पुत्र मंत्री की बाते मानता था और उसके राजा होने पर मंत्री को अपनी मनमानी करने का अवसर मिलता । इस योजना मेँ रानी ने बीमार होने का बहाना बनाया । प्रायोजित वैद्य ने बीमारी का इलाज बाघिन के दूध को बताया। रानी ने पुत्र मणिकण्ठ को आदेश दे दिया कि वह बाघिन का दूध लेकर आए। मणिकण्ठ ने इसको सहर्ष स्वीकार किया । कुछ समय बाद मणिकण्ठ बाघिन की सवारी करते हुए उसके शावकोँ और झुण्ड के साथ राजमहल लौटे ।

राजा को उनकी दिव्यता का अहसास हुआ और उनके लिए मंदिर बनाने की घोषणा की । इसके बाद मणिकण्ठ ने अपने अय्यपन (शिव मोहिनी पुत्र) रूप को प्रकट किया । अय्यपन ने एक तीर छोडा जो वहाँ से करीब तीस किलोमीटर दूर जाकर गिरा । वहीँ पर अय्यपन का मंदिर बनाया गया। चित्रोँ मेँ अय्यपन वन से लौटते समय बाघिन की सवारी करते हुए दिखाए जाते हैँ। चित्रोँ मेँ अय्यप्पा के हाथ मेँ धनुष और तीर भी दिखाया जाता है। अय्यपन की कथा पुराणोँ मेँ न होने के कारण इस कथा पर मतभेद भी है।


इनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर शबरीमाला (सबरिमलय) है। अय्यपन के मंदिरोँ मेँ अय्यपन एक किशोर योगी की अवस्था मेँ होते है। जीवन के उस काल मेँ जब उन्होने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ था ।मंदिर मेँ स्थापित देव को एक जीवित देव की तरह माना जाता है और उनके साथ उसी प्रकार का आचरण किया जाता है जैसा उन्हे पसंद था या । जो भी व्रत उन्होने लिए थे उनका सम्मान होता है । इसलिए इनके मंदिरो मेँ महिलाओँ का प्रवेश वर्जित होता है। यह वर्जन अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत के कारण है न कि स्त्रियोँ के साथ किसी प्रकार के भेदभाव के कारण ।

अय्यपन मेँ विश्वास करने वाले समाज की स्त्रियाँ तो इनके मंदिर मेँ जाकर इनका व्रत भंग नहीँ करना चाहती लेकिन एक्टिविस्ट को इसी मंदिर मेँ जाना है। उन्हे पूजा अर्चन के लिए भारत के लाखोँ मंदिरोँ मेँ से कोई भी नहीँ भाया। स्त्रियोँ के अधिकार पर बेकार का बवाल खडा कर दिया। हर मनाही प्रतिबंध नहीँ होती । स्त्रियोँ को पुरुष शौचालय मेँ जाने की भी मनाही है तो क्या ये भेदभाव हो गया ? यह मात्र एक सामाजिक सुविधा है। नारी को समान अधिकारोँ की आवश्यकता है और उनके लिए लडना भी चाहिए । लेकिन उन अधिकारोँ के लिए लडना चाहिए जिनसे जीवन पर अच्छे प्रभाव पडते होँ बेकार के हंगामेँ खडे करके क्या मिलने वाला है।

यदि स्त्री होने के कारण प्रतिबंध होता तो भारत के सभी मंदिरोँ मेँ होता लेकिन भारत मेँ घरोँ के आस पास के मंदिरोँ मेँ तो स्त्रियाँ ही अधिक जाती हैँ । लोग इतने आधुनिक हो गए कि न सोचना न समझना अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत भंग करने के पीछे पड गए ।

यदि महाभारत के भीष्म के मंदिर होते तो वहाँ भी स्त्रियोँ का जाना वर्जित ही होता । हनुमान के मंदिरोँ मेँ भी बहुत सी स्त्रियाँ नहीँ जाती हैँ। लेकिन हनुमान के मंदिर बहुत सारे हैँ इसलिए अनुशासन रख पाना कठिन है। जिन्हे जानकारी नहीँ होती चली भी जाती हैँ। राम मंदिर मेँ हनुमान की मूर्ती हो तो उसमेँ कोई वर्जन नहीँ होता।


इस विषय पर भी अनेक प्रश्न और अनेक विचार हो सकते हैँ कि ब्रह्मचर्य व्रत रखने वाले को स्त्रियोँ से दूरी की आवश्यकता है?

व्यक्ति के सामाजिक जीवन की बात जाए तो उसके दो पक्ष होते हैँ है एक तो व्यक्ति का अपना चरित्र और एक समाज मेँ छवि । समाज एक और ढोँगियोँ पर विश्वास कर लेता है तो वही समाज उज्ज्वल से उज्ज्वल चरित्र पर भी प्रश्न लगा देता है।

उत्तर रामायण (जिसको बाद मेँ जोडा हुआ माना जाता है) की कथा मेँ सीता पर भी इस समाज नेँ लांछ्न लगाया था । इसलिए लोक दृष्टिकोण मेँ लोग अतिरिक्त सावधानी भी रखते हैँ । यदि किसी स्त्री से सम्पर्क ही नहीँ है तो ब्रह्मचर्य पर कोई प्रश्न नहीँ है।

यदि देव इस समय होते तो क्या वे स्वयम् भी यह वर्जन रखते ? यह तो कहा नहीँ जा सकता है लेकिन अब तो विषय उनके भक्तोँ की आस्था का अधिक है।

अगस्त्य संहिता में विद्युत के बारे में सटीक जानकारी

 

निश्चित ही बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।

[1]

महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

- अगस्त्य संहिता

अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।

जैसे कि आप जानते है सन 1800 में पहला बैट्री आविष्कार किये Alessandro Volta ने।

पर क्या आप जानते है उससे भी पहले के लोग भी बैट्री के प्रयोग करते थे। क्या आप पारसी बैट्री या बागदादी बैट्री का नाम सुने है?

पारसी यज़ीदी लोगो ने बनाया था.

[2]

वहा पारसीया एवं शासनिया वंश का राज था। ये लोग अग्नि के उपासना करते थे और ऋषि अंगिरा(जिन्होंने वेद अनुसार अग्नि का आविष्कार किया) के वंशज थे।

प्राचीन ईराक और इरान में जितने फायर टेम्पल (अग्निदेव मंदिर) था वो सब अरब के इस्लामिक आक्रामक द्वारा या तो तोड़ दिया गया या फिर मस्जिद बना दिया गया ।

पारसी राजा द्वितीय खुसरु को बार बार धमकी भरा खत लिखकर हजरत मोहम्मद ने इस्लाम कुबूल करने को कहा ।उसके बाद बहुतो युद्ध हुया बिश्वके ईतिहास में बड़े युद्ध में इसे भी शामिल किया गया ।

अब अधिकतर यज़ीदी मुस्लिम बन चुके है।

[3]

जो मुस्लिम नही बने वो मुस्लिमो द्वारा कष्ट पंहुचाये जाते है।

इजराइल,इरान और ईराक में थोड़ा वहुत यज़ीदी लोग ही बस टीके हुये है इस लड़ाई में अपनी संस्कृति को वचाने के लिए और इधर भारत भी लड़ाई कर रहा है अपनी संस्कृति को वचाने के लिए।

धन्यवाद।

फुटनोट

[1] VEDIC Science

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