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बुधवार, 23 अगस्त 2023

देश की सरकार और मीडिया को अपने इशारों पर इस तरह नचाता रहा है महेश भट्ट…

 

देश की सरकार और मीडिया को अपने इशारों पर इस तरह नचाता रहा है महेश भट्ट…

26 नवंबर 2008 को मुम्बई पर देश के इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ था। पकिस्तान से आए आतंकवादियों ने इस हमले में पुलिस और नौसेना के 17 जवानों समेत 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इस आतंकी हमले का सबसे महत्त्वपूर्ण मास्टर माइंड पाकिस्तान मूल का अमेरिकी नागरिक डेविड हेडली था। उस हमले के डेढ़ दो साल पहले से वो मुम्बई में लम्बे समय तक रहा था। डेविड हेडली ने ही उन स्थानों का चयन किया था जहां पर हमले हुए थे। उस हमले का पूरा ब्लूप्रिंट हेडली द्वारा की गयी रेकी के आधार पर ही तैयार किया गया था। विशेषकर ताज होटल में कुछ दिन ठहर कर उसने अंदर का पूरा नक्शा बनाकर लश्कर ए तैयबा को दिया था।

2009 में अमेरिकी एजेंसियों की हिरासत में पूछताछ में कुछ आतंकियों द्वारा दी गयी जानकारियों के कारण अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने डेविड हेडली की निगरानी शुरू कर दी थी और अंततः 9 अक्टूबर 2009 को शिकागो इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। पूछताछ में उसने कई अन्य आतंकी हमलों के साथ ही साथ मुम्बई हमले में अपनी भूमिका का खुलासा भी कर दिया था।

अमेरिकी एजेंसियों के समक्ष डेविड हेडली के उस खुलासे के बाद भारतीय एजेंसियां भी चौंक गयी थीं और उन्होंने मुम्बई में डेविड हेडली की उपस्थिति के सबूत खोजने शुरू किए थे। उनकी यह खोज बहुत जल्दी एक व्यक्ति पर जाकर रुक गयी थी। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि फिल्म निर्माता महेश भट्ट का बेटा राहुल भट्ट था।

प्रारम्भिक जांच में ही साफ हो गया था कि मुम्बई में रहने के लिए डेविड हेडली को घर राहुल भट्ट ने ही दिलवाया था। डेविड हेडली को मुम्बई के महत्त्वपूर्ण स्थानों तक लेकर राहुल भट्ट ही गया था। डेविड हेडली को फिल्मी पार्टियों में लेकर राहुल भट्ट ही जाता था। होटलों और क्लबों में डेविड हेडली के साथ राहुल भट्ट शामें गुजारता था।

पकिस्तान में बैठे लश्कर ए तैयबा के आतंकी आकाओं से ईमेल के जरिए बात करते रहे डेविड हेडली की ईमेल की जांच से पता चला था कि उन वार्ताओं में कई बार राहुल भट्ट का जिक्र भी हुआ था। उन वार्ताओं से यह भी स्पष्ट हुआ था कि पकिस्तान में बैठे लश्कर ए तैयबा के आतंकी आका भी राहुल भट्ट के नाम से भलीभांति परिचित थे। ऐसे सबूत मिलते ही एजेंसियों ने राहुल भट्ट पर शिकंजा कस दिया था। लेकिन यहीं महेश भट्ट का खेल शुरू हुआ था। उसने किसी छोटे मोटे कांग्रेसी नेता के बजाय सीधे देश के प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर धमकाया था कि जांच एजेंसियां जिस तरह मेरे बेटे के साथ बर्ताव कर रहीं हैं, वह मेरे साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। एजेंसियां मेरे बेटे से सम्बन्धित खबरें जिस तरह लीक कर रहीं हैं उसे तत्काल रोका जाए।

मित्रों आपको आश्चर्य होगा यह जानकर कि महेश भट्ट की इस चिट्ठी के जवाब में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तत्काल जांच एजेंसियों द्वारा राहुल भट्ट से की जा रही पूछताछ की प्रक्रिया में हस्तक्षेप सीधा किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निजी सचिव जयदीप सरकार ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरफ से बाकायदा चिट्ठी लिखकर महेश भट्ट को सूचित किया था कि गृहमंत्री चिदंबरम को इस मामले का संज्ञान खुद लेने का आदेश दे दिया गया है। इसके बाद राहुल भट्ट एक दिन भी हिरासत में नहीं लिया गया। मीडिया में यह जमकर प्रचारित किया गया कि राहुल भट्ट को जांच एजेंसियों ने नहीं खोजा था बल्कि उसने स्वयं ही जांच एजेंसियों के पास जाकर उनको डेविड हेडली के बारे में जानकारी दी थी। NDTV पर उसका बहुत लम्बा इंटरव्यू कई दिन तक दिखाया गया था। बरखा दत्त ने राहुल भट्ट को भोलाभाला निर्दोष सिद्ध करने वाली रिपोर्टों की झड़ी लगा दी थी। किसी भी मीडिया हाऊस ने राहुल भट्ट पर बरसी इस सरकारी कृपा की खाल नहीं खींची थी। परिणामस्वरुप पूछताछ की लीपापोती के बाद राहुल भट्ट को उसी यूपीए सरकार की उसी NIA ने निर्दोष बताकर क्लीन चिट दे दी थी, जिस यूपीए सरकार की उसी NIA ने बिना एक भी सबूत के भारतीय सेना के कर्मठ अधिकारी कर्नल पुरोहित को आंतकवादी बता कर 6 वर्ष तक जेल में बंद कर के भयानक यातनाएं दीं थीं।

क्योंकि पोस्ट लम्बी हो रही है इसलिए एक उदाहरण देकर बात समाप्त कर रहा हूं कि राहुल भट्ट ने जांच एजेंसियों से बताया था कि मोक्ष नाम के जिस जिम में मैं ट्रेनर था उसी जिम का मेम्बर बनकर जब डेविड हेडली आया था तब उसे ट्रेनिंग देने के दौरान उससे मेरी जान पहचान हो गयी थी। लेकिन राहुल भट्ट की यह सफाई सामने आते ही उस मोक्ष जिम की मालिक कम्पनी प्रीतिश नंदी कम्युनिकेशन लिमिटेड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बॉबी घोष ने 20 नवम्बर 2009 को बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के राहुल भट्ट की सफाई की धज्जियां उड़ा दी थीं। उन्होंने कहा था कि डेविड हेडली अक्टूबर 2006 से अक्टूबर 2007 तक हमारे जिम का मेम्बर था, कभी कभी जिम में आता था। जबकि राहुल भट्ट ने हमारे जिम में अगस्त 2001 से मई 2002 तक ट्रेनर के रूप में काम किया था। इसलिए राहुल भट्ट द्वारा डेविड हेडली को हमारे जिम में ट्रेनिंग देने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।

आपको अपनी कल्पना के घोड़े बहुत तेजी से बहुत ज्यादा दूर दौड़ाने की आवश्यकता नहीं है। केवल इतना सोचिए कि महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट की जगह कोई और होता तो उससे कैसे क्या और कितनी पूछताछ होती…?

आपको यह जानकर और ताज्जुब होगा कि यही महेश भट्ट अक्टूबर 2010 में दिग्विजय सिंह के साथ उस किताब का विमोचन कर रहा था… जिसका नाम था 26/11 RSS की साजिश। हत्या या आत्महत्या की खतरनाक पहेली में उलझी सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु से सम्बन्धित गम्भीर सवालों के घेरे में घिरी रिया चक्रवर्ती का बंबइय्या गॉडफादर महेश भट्ट भी धीरे धीरे उन सवालों के घेरे में आता दिखायी दे रहा था।

ऐसा शायद इसलिए हो रहा है क्योंकि देश की सरकार और देश बहुत बदल चुका है। अब सूचनाओं के लिए वो डेढ़ दो दर्जन न्यूजचैनलों और 3-4 दर्जन अखबारों का गुलाम नहीं है। सोशल मीडिया का ब्रह्मास्त्र उसके हाथ में है। 2009 में देश के पास यदि ये ब्रह्मास्त्र होता तो राहुल भट्ट आज मुम्बई में ऐशो आराम की जिन्दगी गुजारने के बजाय शायद मुम्बई की जेल में अपने दिन गिन रहा होता।

मच्छ मणि क्या होता है?यह किस काम मे आता है और कहा मिलेगा

 

रामायण में हनुमान जी के एक पुत्र मकरध्वज की कथा का वर्णन है.

मकरध्वज का जन्म राहु काल में हुआ था। मकरध्वज एक मछली के गर्भ से पैदा हुआ था जो न केवल एक मछली थी बल्कि वह एक मां भी थी। इस मछली ने अपने बेटे मकरध्वज की राहु से रक्षा के लिए अपने सिर से मच्छ मणि पत्थर निकाल कर अपने पुत्र को सौंप दिया था।

मच्छ मणि कोई साधारण रत्न नहीं है बल्कि यह बहुत ही दुर्लभ मणि है. इसे पहनने वाले व्यक्ति को जीवन के हर प्रकार के तनाव से मुक्ति मिलती है और उसका जीवन खुशहाल बनता है. यह राहु बाधा निवारण के लिए अचूक उपाय है. मछलियों के अंदर कई रंग के पत्थर बनते हैं जो बेशुमार धन और देवताओं का आशीर्वाद देते हैं.मच्छ मणि मछली की आंख की तरह होती है. इस मणि के प्रभाव से काला जादू बेअसर होता है धन एवं स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

मच्छ मणि को धारण करने से आपके जीवन में प्यार और सम्मान आएगा. मच्छ मणि एक आंतरिक प्रकाश, आध्यात्मिक प्रभाव और स्मरण शक्ति के साथ आपके जीवन को प्रकाशमान करता है.

जादू-टोना, बुरी नजर और प्रेत बाधा से भी मच्छ मणि रक्षा करती है. व्यापार में घाटा हो रहा है तो मच्छ मणि आपको नुकसान से बचा सकती है. वास्तु दोष के निवारण के लिए मच्छ मणि पहन सकते हैं. किडनी या पेट से संबंधित कोई रोग है तो मच्छ मणि जरूर पहनें. सौभाग्य, व्यापार में वृद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा, व्यक्तित्व में सुधार, आकर्षण, अंतर्ज्ञान, यौन शक्ति में वृद्धि और ईर्ष्या को दूर करने में भी लाभदायक पायी गयी है.

भगवान विष्णु ने भी मत्स्य यानि मछली का अवतार लिया था और इस कारण से भी मछली से संबंधित वस्तुओं को बहुत शुभ माना गया है. यह मच्छ मणि सौभाग्य, व्यापार में वृद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा, व्यक्तित्व में सुधार, आकर्षण, अंतर्ज्ञान, यौन शक्ति में वृद्धि और ईर्ष्या को दूर करने में भी लाभदायक पायी गयी है.

जादू-टोना, बुरी नजर और प्रेत बाधा से भी मच्छ मणि रक्षा करती है.

यदि आपके व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है तो मच्छ मणि आपको लाखों के नुकसान से बचा सकती है.

घर या ऑफिस में वास्तु दोष के निवारण के लिए मच्छ मणि पहन सकते हैं.

हमेशा बीमार रहते हैं या आपको किडनी या पेट से संबंधित कोई रोग है तो मच्छ मणि जरूर पहनें.

कुंडली में कालसर्प दोष, केमद्रुम दोष, ग्रहण दोष, गुरु चांडाल दोष की वजह से व्यक्ति को अपने जीवन में कष्टों का सामना करना पड़ता है। यह मच्छ मणि आपके कष्टों को दूर कर सकती है.

मच्छ मणि को पहनने से शत्रु से रक्षा होती है और दिमाग तेज होता है धन से जुड़ी हुई समस्या भी जल्द ही खतम हो जाती है मच्छ मणि को पहनने राहु की अंतरदशा और महादशा में राहत मिलती है मच्छ मणि को राहु का प्रिय रत्न भी माना जाता है इस तरह से मच्छ मणि को पहनने के बहुत से फायदे है.

मच्छ मणि एक राहु का रत्न है जिसे धारण करने से राहु से जुड़ी हुई सभी समस्या में राहत मिलती है तो मच्छ मणि को कैसे धारण करना चाहिए?

सर्वप्रथम एक कटोरी ले और फिर उसमे गंगाजल डाले अब आपको उस कटोरी में राहु के रत्न मच्छ मणि को रखे अब आपको राहु के इस मंत्र का 1100 बार जाप करना है मंत्र इस प्रकार से है “ॐ रां राहवे नम:”

इस मंत्र का जाप करने के बाद आपकों मच्छ मणि में फूक मारनी है इससे यह और अधिक प्रभावशाली हो जाती है अब यह पूरी तरह से सिद्ध है अब आप इसे धारण कर सकते हैं.

रही बात इसके मिलने की तो आजकल सब कुछ अमेजन पर आनलाइन मिल जाता है आप वंहा से इसे ले सकते हैं.

सोमवार, 21 अगस्त 2023

देवी-देवता की पूजा करने पर गरीब आदमी गरीब ही रहता है पर यक्ष-यक्षिणी की साधना करने पर गरीब शीघ्र ही अमीर कैसे हो जाता है?


इस ब्रह्मांड में कई तरह के लोक हैं, इन लोकों में अलग अलग तरह की प्रजातियों का निवास है। कुछ लोक पृथ्वी से नजदीक हैं कुछ दूर।

यक्ष, किन्नर, गंधर्व, पिशाच, प्रेत , अप्सरा इत्यादि शक्तियां देवताओं से निम्न शक्ति वाली हैं। ये पृथ्वी लोक से नजदीक रहती हैं। मान्यता है नजदीकी लोक में स्थित शक्तियों को प्रसन्न करना आसान है क्योंकि इनतक हमारी मानसिक तरंगें जल्दी पहुंचती हैं।

यक्ष और यक्षिणी की साधना- यक्ष एक ऐसी प्रजाति है जो कि रहस्यमयी और मायवी है। 64 प्रकार के यक्षों की प्रजाति पाई जाती है। इनमें से एक कुबेर नाम के यक्ष सुप्रसिद्ध हैं जो कि देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं और अकूत धन संपदाओं के स्वामी भी हैं।

इस तरह यक्षणियां भगवान शिव और माता पार्वती की सेवा में लगी रहती हैं। ये चुड़ैल और पिशाचों से अलग हैं और साधक द्वारा सिद्ध की जाती हैं। इन्हें सिद्ध करने वालों को मद्य, मांस, मत्स्य को नैवेद्य और प्रसाद के रूप में लेना पड़ सकता है। ऐसी ही आठ यक्षणियों को सिद्ध करने का विधान है ।

सुर सुन्दरी यक्षिणी

मनोहारिणी यक्षिणी

कनकावती यक्षिणी

कामेश्वरी यक्षिणी

रतिप्रिया यक्षिणी

पद्मिनी यक्षिणी

नटी यक्षिणी

अनुरागिणी यक्षिणी

उपरोक्त यक्षणियों को माह भर के भीतर प्रसन्न करके काम निकाला जा सकता है। इनको सिद्ध करने की विधि यहां नहीं बताएंगे।

देवी-देवताओं को प्रसन्न करना मुश्किल क्यों है-

देवी देवता उच्च कोटि की ताकतवर शक्तियां हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से संसार को चलाने की जिम्मेदारी इन्ही पर है। ये मनुष्य की पूजा पाठ पर जल्दी ध्यान नहीं देतीं। क्योंकि इनतक हमारी प्रार्थना या तरंगें पहुंच ही नहीं पातीं। इनसे निम्न लोक में रहने वाली शक्तियां हमारे निवेदन को रोक लेती हैं।

उदाहरण- अगर आप मुख्यमंत्री के पास कोई शिकायत या निवेदन लेकर जाना चाहें तो उनके नीचे काम करने वाले तुरंत अड़ंगा लगा देंगे। ठीक उसी तरह वहां भी चलता है।

इसी तरह अगर आप नारायण को प्रसन्न करने हेतु भक्ति करना शुरू करेंगे तो ये शक्तियां आपको तमाम तरह के प्रलोभन देकर आपको मायाजाल में उलझा देंगे ।

नोट- कलयुग के शुरुआती दिनों में इन विद्याओं का जमकर दुरुपयोग किया जाने लगा था। क्योंकि आधुनिक काल का मनुष्य अपने मतलब के लिए जाना जाता है। इसलिए ये साधनाएं श्रापित हो चुकी हैं । यह समय कर्म पर आधारित है । इसलिए इन सब चक्कर में पड़ कर अमूल्य जीवन ना बर्बाद करें। वैसे भी जो जिसकी पूजा करता है वह मरने के बाद उन्हीं के पास जाता है।

अक्षय की नयी फ़िल्म ओ एम जी 2 कैसी है?

 

फाइनली गरद 2 के बाद आज ओ माई गॉड २ फिल्म भी देख ली।

समीक्षा -

फिल्म की शुरुआत होती है कांति शाह बने पंकज त्रिपाठी से जो भगवान शिव का महाभक्त है और बचपन से मंदिर जाता है।।।

उसके एक बेटा विवेक और एक बेटी और पत्नी है।।।

लड़का मार्डन स्कूल में पढ़ाई करता है एक दिन स्कूल के एक फंक्शन में एक लड़की यह कहकर विवेक के साथ डांस करने से मना कर देती है क्योंकि वो शर्मीला है जबकि उसके दोस्त विवेक को उसका गुप्त अंग छोटा होने का कारण बताकर अपमान करते हैं।।

इस अपमान से पीड़ित पंकज का बेटा विवेक कभी डाक्टर के पास गुप्त अंग बड़ा करने की दवा लेता है, कभी हस्तमैथुन करता है तभी कोई उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल देता है जहां उसकी समाज में बदनामी होती है और पिता पंकज उर्फ कांति शाह की।।। एक दिन कांति शाह भगवान शिव की पूजा करता है तभी शिव बने अक्षय कुमार आ जाते हैं भक्त की मदद करने

तब कांति शाह सेक्स एजुकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए कोर्ट जाता है और सभी स्कूलों, और डाक्टर और शामिल लोगों को कोर्ट में पेश करते हैं तब वही सब होता है जैसे ओमाई गाड फिल्म में परेश रावल करता है वहीं यहां कांति शाह करते हैं कोर्ट केस और विजय।।।। इस विजय में भगवान शिव बने अक्षय कुमार साथ देते हैं और सेक्स एजुकेशन का पाठ्यक्रम स्कूल और कालेज में शामिल करते हैं।।।।

साधारण सी कहानी और ताना बाना बुना कर एक टाइमपास और सामाजिक संदेश के लिए फिल्म बनी है।।।।। हलाकि गरद 2 की तुलना में कम व्यवसाय कर रही है पर देखने लायक है।।।

फिल्म में अक्षय कुमार एक फकीर बनकर आते हैं और पंकज से मिलते हैं।।।

फिल्म में कुछ कामेडी, कुछ सस्पेंस और हां रामायण सीरियल में भगवान राम बने अरूण गोविल जी भी है जो विलेन के किरदार में हैं।।।।

फिल्म को 5 मे से 4 रेटिंग।।।।

अंग्रजों की क्रूरता की सच्चाई क्या थी, जिसे अक्सर दबा दिया जाता था ?

 

अंग्रेजों की क्रूरता और अत्याचार पर यदि गहन अध्ययन किया जाय तो वर्तमान के ISIS जैसे खूंखार आतंकी संगठन भी क्रूरता के मामले में पीछे रह जाते है। कम ही लोग जानते होंगे, फतेहपुर में इमली के पेड़ पर अंग्रेजों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था।

उस वक्त अंग्रेजो के सैन्य अधिकारियों को मुकदमा करने और फांसी देने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था, जिसका वह मनमाना उपयोग करते थे। इसीलिए उनका प्रत्येक सैनिक बादशाह की तरह जीवन जीता था।

वो सैनिक, मासूम गरीब लोग जो आवाज नही उठा सकते थे, उनका शोषण करते थे। महिलाओं का बलात्कार कर उनके गुप्तांग पर बंदूक की बैरल रख कर फायर कर दिया जाता था।

निम्नवर्गीय पुरुषों को सूली पर चढ़ा दिया जाता था तथा बड़े चेहरों या क्रांतिकारीयों को सार्वजनिक रूप से फांसी चढ़ाया जाता था ताकि चिंगारी न भड़के और लोगों में डर कायम रहे।

कर्नल नील जो बहुत ही क्रूर अधिकारी हुआ करता था, उसकी पर्सनल डायरी में लिखा था कि ऐसा कोई दिन नही गया जब उसने भारतीय महिला को सेक्स के लिए मजबूर न किया हो। उसे बच्चों की चीख पुकार पसंद थी। अर्थात अंग्रेज बच्चो पर भी समान रूप से अत्याचार करते थे।

किसान जो भुगतान नहीं कर पाते थे उन्हें कील जड़े चमड़े के कोडे से पीटा जाता था। वसूली के नाम पर उनकी बहन बेटियों को निर्वस्त्र करके नग्न मार्च कराया जाता था और उनके स्तनों को चिमटे से खींचा जाता था तथा अमानवीय और क्रूर तरीके से उनका बलात्कार किया जाता था।

अंग्रेजों द्वारा बड़े शहरों में 350 से अधिक वैश्यवृत्ति के लिए कोठे बनाए गए और मजबूर भारतीय बहन बेटियों को सेक्स स्लेव बनाया गया। महिलाओं पर किए गए अत्याचारों को भारत में ब्रिटिश प्रत्यारोपित राजनेताओं और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने बड़ी चालाकी से कब्र में डाल दिया।

यह इमली का पेड़ तथा स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी तहसील की मुगल रोड पर स्थित है। लोगों का मानना है कि नरसंहार के बाद इस पेड़ का विकास बन्द हो गया। इमली के इस पेड़ को बावनी पेड़ भी बोला जाता है।

हुआ ये था कि, अंग्रेजो की मनमानी से तंग आकर जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग जल गई। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। उन्होंने महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज अधिकारी और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वो दोनो एक घर में महिला का बलात्कार कर रहे थे।

जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया और कर्नल पावेल को मार दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने एक क्रूर और नीछ कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी।

हमारे देश का दुर्भाग्य यह रहा है कि यहां वीरों से अधिक देशद्रोही पनपते रहे हैं। 28 अप्रैल 1858 जब जोधासिंह अटैया खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें बीच राह में बंदी बनाकर उनके इक्यावन साथीयों के साथ वहीं इमली के पेड़ पर उन्हे फांसी लटका दिया।

लेकिन वामपंथियों ने इतिहास की इतनी बड़ी घटना को गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा। खैर ! अंग्रेजो द्वारा मुनादी करा दी गई कि..

जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे ।

लगभग 2 माह पश्चात महाराजा भवानी सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया। इस घटना के बाद चिंगारी भड़की तब जनरल वलाक को प्रोवोस्ट मास्टर नियुक्त करना पड़ा।

शुरुआती दौर में अंग्रेजों के कृत्य वास्तव में बेहद घिनौने थे। लोगों को डराकर लाखों अमानवीय घटनाओं पर पर्दा डाल दिया जाता था, जिसमें बलात्कार, चोरी और हत्याएं आम थी। अंग्रेजों के कानून उनकी ताकत थे और भारतीयों की मुसीबत।

भारतीय राष्ट्रवाद को दबाने लिए अंग्रेजों ने महाराष्ट् नागपुर के एक छोटा से कस्बे (चिमूर) में 100 से अधिक महिलाओं के गहने लूटकर उनका बलात्कार किया। उन्होंने गर्भवती महिलाओं कों भी नही बक्शा।

भारत आने से लेकर तथा आजादी तक अंग्रेजों के अत्याचारों के लाखों किस्से और कड़वी सच्चाइयां है, जिन्हे एकसाथ लिख पाना असंभव है। इन सच्चाइयों को डर और भ्रष्टाचार के नीचे दफन कर दिया जाता था।

अंग्रेजों ने भारत के राजा महाराजाओं को भ्रष्ट करके ही भारत को गुलाम बनाया। उसके बाद उन्होने योजनाबद्ध तरीके से भ्रष्टाचार को अपना प्रभावी हथियार बना लिया। यही भ्रष्टाचार हमारे राजनेताओं को विरासत मे मिला है।

(चित्र स्रोत गूगल)

औरंगजेब को लगा अब तो मराठों को पराजित करना अत्यंत आसान होगा।

 

सन 1680 में औरंगजेब को समझ आ चुका था कि #शिवाजी को रोकने उसे स्वयं ही दक्खन जाना होगा। पांच लाख की विशाल फौज लेकर वह दक्खन की ओर निकला और उसके वहां पहुंचने के पहले ही छत्रपति की मृत्यु हो गई।

औरंगजेब को लगा अब तो मराठों को पराजित करना अत्यंत आसान होगा।

परन्तु छत्रपति सम्भाजी ने 1689 तक उसे जीतने नहीं दिया। अपने सगे साले की दगाबाजी की वजह से छत्रपति सम्भाजी पकड़े गए और औरंगजेब ने अत्यन्त क्रूर और वीभत्स तरीके से उनकी हत्या करवा दी।

अब छत्रपति बने राजाराम मात्र 20 वर्ष के थे और औरंगजेब के अनुभव के सामने कच्चे थे। एकबार फिर उसे दक्खन अपनी मुट्ठी में नज़र आने लगा था।

यहीं से इतिहास यह बताता है कि छत्रपति शिवाजी ने किस आक्रामक संस्कृति की नींव डाली थी। हताश हो कर हथियार डालने के बजाय संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव के नेतृत्व में राजाराम को छत्रपति बना कर संघर्ष जारी रहा।

सन 1700 में छत्रपति राजाराम भी मारे गए।

अब उनके दो साल के पुत्र को छत्रपति मान कर उनकी विधवा ताराबाई, जो कि छत्रपति शिवाजी के सेनापति हंबीराव मोहिते की बेटी थी, आगे आई और प्रखर संघर्ष जारी रहा। समय पड़ने पर ताराबाई स्वयं भी युद्ध के मैदान में उतरी।

संताजी और धनाजी ने मुगल सम्राट की नींद हराम कर दी।

कभी सेना के पिछले हिस्से पर, कभी उनकी रसद पर तो कभी उनके साथ चलने वाले तोपखाने के गोला बारूद पर हमले कर मराठों ने मुगलों को बेजार कर दिया। सब लोग इस खौफ में ही रहते थे कि कब मराठे किस दिशा से आएंगे और कितना नुकसान कर जायेंगे।

एक बार संताजी और उनके दो हजार सैनिकों ने सर्जिकल स्ट्राइक की तर्ज पर रात में औरंगजेब की छावनी पर हमला बोल दिया और औरंगजेब के निजी तंबू की रस्सियां काट दी। तंबू के अंदर के सभी लोग मारे गए। परन्तु संयोग से उस रात औरंगजेब अपने तंबू में नहीं था इसलिए बच गया।

27 साल मुगलों का सम्राट, महाराष्ट्र के जंगलों में छावनियां लगा कर भटकता रहा। रोज यह भय लेकर सोना पड़ता था कि मराठों का आक्रमण न हो जाए।

27 साल कुछ हजार मराठे लाखों मुगलों से लोहा भी ले रहे थे और उन्हें नाकों चने भी चबवा रहे थे। 27 वर्ष सम्राट अपनी राजधानी से दूर था। लाखों रुपए सेना के इस अभियान पर खर्च हो रहे थे। मुगलिया राज दिवालिया हो रहा था। अन्तत: सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हो गई। 27 वर्षों के सतत युद्ध और संघर्ष के बाद भी मराठों ने घुटने नहीं टेके। छत्रपति के दिए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हजारों मराठे बलिदान हो गए लेकिन उन्होंने घुटने नही टेके।

यह इतिहास भी कहां पढ़ाया गया है?

कितने लोग है जिन्हें ताराबाई, संताजी और धनाजी के नाम भी मालूम है, पराक्रम तो छोड़ ही दीजिए?


सबसे अच्छी फिल्म कोनसी ह ?

 


मेरी नज़र में सबसे अच्छी फिल्म तो यह है जिस पर मैंने पहले भी पोस्ट लिखी है।।। ला एबिडिग सिटीजन 2009

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक एंजीनियर से इनसे।

इसके परिवार में एक बेटी और पत्नी है। सुबह का समय था नाश्ता परिवार के साथ खा रहे थें तभी अचानक तीन लोगों बंदूक के साथ एंजीनियर के घर में घुसकर चोरी करते हैं और एंजीनियर के परिवार को बंधक बना लेते हैं ।।

उन चोरों में से ये डारबी

एंजीनियर की पत्नी के साथ दुष्कर्म करके एंजीनियर की आंख के सामने उसकी छोटी बेटी को मारकर इजीनियर को भी मांर देता है पर इंजीनियर बच जाता है।।। अब इंजीनियर दोषी को फांसी दिलाने कोर्ट जाता है

इंजीनियर एक प्रसिद्ध वकील को बुलाता है 🙏 इनको

एंजीनियर का वकील कोर्ट की लेट लतीफी और अपने रूतबे यानी कभी ना हारने वाले वकील की इमेज सही करने के लिए ब्लाताकारी दोषी डार्बी से और इंजीनियरिंग से समझौता कर लेता है और डारबी सरकारी गवाह बनकर कुछ दिन सजा पाकर फिर छूट जाता है जिस पर इंजीनियर सरकारी सिस्टम और कानून से चिढ़ जाता है और बदला लेने की ठानता है

अब इंजीनियर किस तरह अपनी बेटी के कातिलों को मारता है सबसे पहले डार्बी को मारता है इस तरह 👇👇👇 टूकडों टूकडों में

फिर पुलिस पकड़ लेती है इंजीनियर को।।।

पर फिर भी इंजीनियर जेल में रहकर भी सभी खूनी और सरकारी सिस्टम पर बैठे बुरे लोगों को भी मारता है इस तरह 👇

यहां तक कि वकील और जज को भी मार देता है।।।।

इस फिल्म का आखिरी सीन जबरदस्त है जब इंजीनियर का वकील इंजीनियर को मारने के लिए उसके जेल में बम फिट कर देता है जो इंजीनियर ने खुद वकील को मारने के लिए लगाया था और इंजीनियरि से पुछता है कया लोगों को मारना बंद नहीं करोगे तब इंजीनियर कहता है जब तक सिस्टम सही नहीं हो जाता तब तक मारूंगा तभी वकील चालाकी से इंजीनियर को जेल में बंद कर देता है जिसमें बम फिट है और आखिर में वकील चालाकी से इंजीनियर को खत्म कर देता है इस तरह

इस फिल्म में इमोशनल ड्रामा सस्पेंस थ्रिलर, सामाजिक संदेश, सबकुछ है।।

इस फिल्म को परिवार के साथ देखें या अकेले।। यह फिल्म mkvmoviespoint vegamovies वेबसाइट पर हिन्दी में उपलब्ध है।।।

ससुराल का हैंडपंप उखड़ना कहाॅं की संस्कृति सभ्यता हैं ? जैसा की सन्नी देओल की फिल्म "" गदर "" में दिखाया गया है ? बताइए ? 🤔 🤔

 

ये एक बहुत ही गंभीर,जघन्य एवं अत्यंत ही निंदनीय कृत्य है।

कहीं का भी हैंडपंप उखाड़ना किसी भी दृष्टि से एक प्रशंसनीय कार्य नहीं माना जायेगा,खासतौर से जब ये ससुराल का हो तो और भी ज्यादा सुरक्षा बरतनी चाहिए।

उस पर से जब ससुराल पहले ही इतनी समस्याओं से जूझ रहा हो तो कौनसा ऐसा समझदार जमाई होगा जो वहां जाए, लोगों को मारे पीटे और उनका हैंडपंप भी उखाड़ लाए।

जब से सनी पाजी ने उस गांव का हैंडपंप उखाड़ा है वहां के लोगों को नहाने-धोने के लाले पड़ गए हैं;इतने लाले की वहां के सारे लाले दी जान 2001 के बाद से नहाए ही नहीं है..धोई भी नहीं..!

और तो और वो हैंडपंप कोई सामान्य हैंडपंप नहीं था। वो एक दुर्लभ हैंडपंप था।

वहां की सरकार ने ये बोलकर वो हैंडपंप लगाया था की उनके कजिन मुलुक की तरह एक दिन उस हैंडपंप से तेल निकलेगा जिसे बेचकर वो और भी बड़ी सेना बनाएंगे, आतंकवादी पालेंगे और काश्मीर हासिल कर लेंगे।

लेकिन जबसे पाजी ने मुआ हैंडपंप उखाड़ा है सरकार की नाक में दम हो गया। अब वो सरकार अपनी सेना को पाले, पूरी दुनियां से लिए उधार का ब्याज चुकता करे, कटोरा लेकर नया उधार मांगने जाए,आतंकवादियों का पेट पाले, नए नए हथियार खरीदे, दस रुपए के थुरतरे खरीदे की कमबख्त इन लोगों के लिए नया हैंडपंप लगाए।

वैसे ये मामला शुरू कैसे हुआ?

हुआ यूं की अशरफ अली ने तारा से जोश जोश में बोल दिया की "तू हमारा क्या उखाड़ लेगा?"

अपने कबीले के नेता को ऐसा बोलते देख पच्चीस तीस चमचे भी तारा को मारने दौड़े। अब उन्हें क्या पता की वो ढाई किलो के हाथ वाले सनी पाजी से पंगा ले रहे हैं;जो किसी को भी पेलने से पहले कोई तारीख नहीं देते। तत्काल प्रभाव से पेल देते हैं।

बस यहां भी यही हुआ,सनी पाजी ने हैंडपंप उखाड़ा और जो भी सामने आया: लेफ्ट राइट सेंटर पेल दिया गया।

हालांकि ये बात 22 वर्ष पुरानी है। लेकिन हाल ही में तारा सिंह जब फिर से उस गांव से गुज़रा तो उसे प्यास लगी।

वो जैसे ही सामने लगे हैंडपंप के पास गया तो उस गांव में भगदड़ मच गई। लोग वहां से ऐसे गायब हुए जैसे उस देश के प्रधानमंत्री गायब हो जाते हैं।

ख़ैर…हम इस कृत्य की निंदा करते हैं। अपने ससुराल का हैंडपंप उखाड़ना भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप बिलकुल नहीं है।

इस कृत्य की अत्यंत ही कड़ी निंदा…!

अभी अभी व्हाट्सएप से प्राप्त सूचना के अनुसार 15 जून को अंतरराष्ट्रीय हैंडपंप दिवस घोषित किया जा चुका है।

15 जून इसलिए क्योंकि इसी दिन पहली बार 2001 में तारा ने वहां हैंडपंप उखाड़ा था।

चीन भी इस याद में अपने देश में एक 420 फीट ऊंची हैंडपंप की प्रतिमा लगाने वाला है। सुना है की गदर 3 से लगा के गदर 36 तक तारा सिंह चीन ही जाने वाले हैं। चीन ने उन्हें चैलेंज किया है की ये 420 फीट ऊंचा हैंडपंप उखाड़ के दिखाओ तो माने!

देखते हैं आगे क्या होता है?

रविवार, 20 अगस्त 2023

शेर थे पेशवा बाजीराव जिन्होंने 5 बार हैदराबाद के निज़ाम को हराया था*

Story:
*हैदराबाद का चूहा है ओवैसी... शेर थे पेशवा बाजीराव जिन्होंने 5 बार हैदराबाद के निज़ाम को हराया था* 

पेशवा बाजीराव की जन्म जयंती पर विशेष लेख 

- दूसरा विश्व युद्ध लड़ने वाले बड़े-बड़े जनरल पेशवा बाजीराव से प्रेरणा लेते थे और हमारे देश के बच्चों को स्कूली किताबों में बाजीराव का बा भी नहीं पढ़ाया जाता है 

- ब्रिटिश फ़ील्ड मार्शल बर्नार्ड मॉन्टगॉमेरी ने जर्मनी के All Time War Hero... पूरा उत्तर अफ्रीकी महाद्वीप फतेह करने वाले... एडॉल्फ हिटलर के सबसे बड़े सेनापति... Field Marshal इरविन रोमल को हराया था... 

- ब्रिटेन को सबसे बडी जीत दिलाने वाले जनरल मॉन्टगॉमेरी पेशवा बाजीराव से प्रेरणा लेते थे । मॉन्टगॉमेरी ने अपनी किताब A Concise History of Warfare में लिखा है कि हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ पेशवा बाजीराव का पालखेड़ अभियान स्ट्रेटेजिक मोबिलिटी का मास्टर पीस उदाहरण है आइए इस युद्ध के बारे में आपको बताते हैं 

- साल 1727 में मराठों के राजा छत्रपति शाहू जी महाराज ने अपने प्रधानमंत्री पेशवा बाजीराव को हैदराबाद के निज़ाम... निज़ाम उल मुल्क पर हमले का आदेश दिया 

- 27 अगस्त 1727 को पेशवा बाजीराव ने अपने 15 हजार घुड़सवारों के साथ निज़ाम के खिलाफ अभियान शुरू किया 

- निज़ाम के पास बहुत बड़ी सेना थी... उसके पास 40 हज़ार सेना के अलावा एक बहुत बड़ा तोपख़ाना भी था 

- पेशवा बाजीराव के विश्वस्त सेनापति थे... मल्हार राव होल्कर और राणों जी शिंदे । दोनों पाँच-पाँच हजार के घुड़सवार दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे 

- दूसरी तरफ निज़ाम के दो सबसे बड़े जनरल थे... तुर्क ताज खान और ऐबज खान 

- जैसे ही हैदराबाद के निज़ाम को ये जानकारी मिली कि पेशवा बाजीराव हमला करने वाले हैं । निज़ाम ने बड़ी चतुराई दिखाई और ये सोचा कि क्यों ना सीधे पेशवा बाजीराव के गृहनगर पुणे पर ही कब्जा कर लिया जाए । 

- हमले की खबर मिलते वक्त निज़ाम अपने स्ट्रॉन्ग होल्ड औरंगाबाद जा रहा था लेकिन अब उसने फ़ौरन पुणे की ओर कूच किया... रास्ते में 45 जगहों पर कब्जा जमाते हुए निज़ाम ने पुणे पर कब्जा कर लिया . 

- ये खबर बाजीराव को मिली लेकिन वो ज़रा भी विचलित नहीं हुए । युद्ध तो अभी शुरू हुआ था । सितंबर 1727 में पेशवा बाजीराव और उनकी सेना ने निज़ाम के स्ट्रॉन्ग होल्ड जालना और सिंधखेड़ पर कब्जा कर लिया । 

- 5 नवंबर को पेशवा बाजीराव ने निज़ाम के बड़े सेनापति एबज खान को हरा दिया । इसके बाद पेशवा बाजीराव ने निज़ाम के stronghold बीदर, माहुर, मंगरूर और खानदेश को भी अपने क़ब्ज़े में ले लिया 

- निज़ाम को हैरान करते हुए जनवरी 1728 में पेशवा बाजीराव ने गुजरात पर भी हमला कर दिया 

- पेशवा ने अपनी बिजली के जैसी गति से दुश्मन को हैरान कर दिया । पेशवा की सेना में दो घुड़सवारों के पास तीन घोड़े होते थे । इसी वजह से उनकी सेना की स्पीड काफी ज्यादा होती थी 

- निज़ाम को लगा कि पेशवा गुजरात गया लेकिन पेशवा बाजीराव ने दोबारा पलटवार करते हुए निज़ाम के सबसे बड़े स्ट्रॉन्गहोल्ड बुरहानपुर पर भी हमला कर दिया । बुरहानपुर में निज़ाम की सेना हैरान रह गई कि जो पेशवा अभी गुजरात में था अचानक बुरहानपुर कहां से आ धमका । 

- अब बुरहानपुर गँवा देने के बाद हैदराबाद के निज़ाम की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई । निज़ाम अपना किला बचाने के लिए फ़ौरन औरंगाबाद की तरफ भागा कि कहीं औरंगाबाद भी ना हाथ से निकल जाए ।  

- पेशवा बाजीराव की स्ट्रेटेजी एकदम सही साबित हुई । उनको पता था कि बुरहानपुर गँवाने के बाद निज़ाम सीधा औरंगाबाद की तरफ भागेगा । 

- अब पेशवा ने अपनी सबसे बड़ी रणनीति तैयार की । पेशवा बाजीराव ने निज़ाम को पालखेड़ की पहाड़ियों में फँसाने की योजना बनाई । 

- इसकी वजह ये थी कि निज़ाम के पास बहुत शक्तिशाली तोपख़ाना था । ये तोपख़ाना पहाड़ियों पर बेकार हो जाता । जबकि निज़ाम ये चाहता था कि पेशवा बाजीराव से औरंगाबाद के मैदान में जंग लड़ी जाए ताकी तोपों से मराठों को भून दिया जाए । समझने वाली बात ये है कि पेशवा बाजीराव के पास तोपख़ाना नहीं था वो सिर्फ घुड़सवारों से ही युद्ध कर रहे थे । 

- निज़ाम को पालखेड़ की पहाड़ियों में फँसाने के लिए पेशवा बाजीराव के भाई चिमना जी अप्पा ने पहले ही पुरंदर के किले पर पहरा सख्त कर दिया था । आखिरकार निज़ाम को औरंगाबाद जाने के लिए गोदावरी नदी को पार करना पड़ा 

- और वहीं औरंगाबाद से करीब 20 मील दूर पालखेड़ के पहाड़ी इलाक़े में निज़ाम की पूरी सेना बुरी तरह फँस गई । ना खाना... ना पानी... निज़ाम की पूरी फौज तड़प तड़प कर मरने लगी । बाहर निकलने के सारे रास्ते पेशवा बाजीराव ने बंद कर दिए थे । ऐसी जबरदस्त घेराबंदी थी ।

*(मेरे कई मित्रों ने मेरा लेख व्हाट्सएप पर पाने के लिए मुझे इस नंबर 8527524513 पर मिस्ड कॉल तो किया है लेकिन मेरा ये नंबर दिलीप पांडे के नाम से सेव नहीं किया है इसीलिए उनको मेरे लेख नहीं मिल रहे हैं अगर वो मिस्ड कॉल के बाद नंबर भी सेव कर लेंगे तो उनको मेरे लेख जरूर मिलेंगे !)* 

- पेशवा बाजीराव ने छत्रपति शाहू जी महाराज को पत्र लिखा... निज़ाम की सेना और मेरे बीच सिर्फ 4 मील का फ़ासला है... निज़ाम दाने दाने का मोहताज है और जान बख्शने की फ़रियाद कर रहा है । बताएं... निज़ाम के साथ क्या सलूक किया जाए ? मार दिया जाए या संधि करके छोड़ दिया जाए । 

- निज़ाम ने पेशवा के चरणों में झुक झुक कर अपनी जान की भीख माँगी । आखिर...शाहू जी ने निज़ाम की जान बख्श देने का आदेश दिया । पेशवा बाजीराव ने पहले निज़ाम की फौज का पूरा सरेंडर करवाया और इसके बाद उनकी जान बख्श दी । 

- लेकिन अब आप इस बात पर विचार कीजिए कि अगर पेशवा बाजीराव ने निज़ाम का कत्ल कर दिया होता तो क्या हैदराबाद में आज योगी जी को ये कहना पड़ता कि हम हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर कर देंगे ? क्या हैदराबाद से कोई देश के खिलाफ इतना विषवमन कर पाता ?  सोचिएगा इस पर... 

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