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गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

गोमती चक्र की उपयोगिता

 गोमती चक्र की उपयोगिता 

बहुत उपयोगी प्रश्न पूछा है , गोमती चक्र की उपयोगिता क्या है ?

सोया भाग्य जगा देते हैं , गोमती चक्र

शनिवार को लोहा ( कार , ट्रेक्टर या और कोई वाहन ) खरीद लेते हैं , एक दो अपवाद छोड़कर ,इस दिन खरीदा हुआ लोहा कभी वफ़ा नहीं देता । शनिवार को यदि घर की नीवं रखते हैं , वो घर शुभ फलदायी होता है। शुक्रवार को यदि झाड़ू ख़रीदकर लाते हैं ,तो समझो लक्ष्मी माता घर ले आये। ये कुछ उदहारण जो हमारे जीवन पर बहुत असर डालते हैं। शुभ समय ,शुभ दिन , शुभ मुहूर्त पर चीजें खरीदना ,हमारे जीवन पर बहुत असर डालती हैं।

कुछ चीजें हैं , जिनको घर लाने में किसी शुभ समय ,शुभ दिन , शुभ मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं , और उनको कभी भी खरीदो हमेशा वफ़ा ही देती हैं। जैसे गोमती चक्र , नाम आपने सुना होगा , लेकिन इसका प्रभाव और चमत्कार नहीं देखा होगा।

जिस घर में गोमती चक्र हो , वैवाहिक जीवन सफल और सुखी रहता है,कोई हारी बीमारी नहीं होती ,दुकान व्यापार सही चलता है, घर के सभी सदस्य व्यापार ,नौकरी ,पढाई में उन्नति करते हैं ,ग्रह कलेश नहीं होता । फालतू के खर्चे और कर्जा नहीं होता।

गोमती चक्र अभिमंत्रित कैसे करें? ये भी कई लोगों का सवाल है

तो बता दें , माता गोमती नदी के गोमती चक्र और माता नर्मदा नदी से निकलने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग अभिमंत्रित नहीं करने होते। इनको घर पर पूजा के स्थान पर रख कर साधारण पूजा कीजिए ,अपार शुभ फल देंगे।

तांत्रिक क्रियाओं में इसका बहुत उपयोग किया जाता है। जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है।गोमती चक्र कम कीमत वाला ऐसा पत्थर है। जो गोमती नदी में मिलता है।

गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं। पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट से सम्बंधित कई रोग दूर हो जाते हैं।

धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने नियमित " श्री नम:" का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं। उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी।

गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं। माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है , हमेशा पैसा हाथ में रहता है। कर्जा नहीं होता ,आय के स्त्रोत बने रहते हैं ,आय के नए साधन बनते हैं।

इनकी बहुत ही खास बात ये है की ,ये सर्वसुलभ हैं , आसानी से खरीदे जा सकते हैं। आप ऑनलाइन ले सकते हो ,किसी भी पूजा पाठ की दूकान से ले सकते हो। और ये कम खर्च में बहुत सस्ते मिल जाते हैं।


16000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने "सवा चौहत्तर मन सोना" (एक मन = 37.3242 किग्रा ) लूटा था।

 कभी प्रसिद्ध इतिहासविद् अतुल रावत की किताब पढ़ियेगा ।

जिसमें बताया है कि

16000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने

"सवा चौहत्तर मन सोना"

(एक मन = 37.3242 किग्रा ) लूटा था।

यह जूता है उनके मुँह पर जो इस विषय पर भंसाली जैसे बॉलीवुड भाँडो के लिये सहानुभूति रखते हैं अल्लाउद्दीन की मरघटी मोहब्बत का आखिर यही अर्थशास्त्र है!!

अतुल रावत का कथन पढ़िए –

"भारतीय सन्दर्भ में लोक परंपरा किस प्रकार इतिहास को संरक्षित किये रहती है यह पद्मिनी की महान गाथा से स्पष्ट है"।

जौहर की ज्वाला शांत होने के बाद अलाउद्दीन ने उस विशाल चिता को भी नहीं छोड़ा।

सभी राजपूतानियाँ पूरा श्रृंगार करके चिता पर आरूढ़ हुई थीं। अलाउद्दीन ने चिता की राख से "सवा चौहत्तर मन सोना" लूटा था।

हिन्दू समाज ने राजपूतानियों के उस महान बलिदान की स्मृति बनाये रखने के लिए एक लोक परंपरा आरम्भ की जो अब से पचास -साठ वर्ष पूर्व तक चलती रही – हिन्दू अपने पत्रों पर "सवा चौहत्तर का अंक" अंकित किया करते थे।

इसका आशय यह था कि जिसको पत्र लिखा गया है उसके अलावा यदि कोई अन्य व्यक्ति इस पत्र को खोले तो उसे वही पाप लगे जो पाप पद्मिनी की चिता से सवा चौहत्तर मन सोना लूटने पर अल्लाउद्दीन को लगा था।

लोक इतिहास संरक्षण का यह अनूठा तरीका था। इसीलिए यह इतिहास दो पीढ़ी पहले तक तो बचा रहा।

ये हमारा दुर्भाग्य है कि वर्तमान पीढ़ी विकृत इतिहास और अल्प इतिहास ही पढ़ पायी है, इन्हें अपनी ठसक से नीचे उतरकर खुद को पहचानने की फुर्सत ही नहीं!

वास्तविक से दूर सपनों में जीने की आदि युवा पीढ़ी इस संरक्षण के योग्य बची ही नहीं हैं जो महारानी पद्मिनी को रज मात्र भी समझ पाये

🙏

जौहर कुंड चित्तौड़गढ़

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घर पर बनायें कफ सिरप.

घर पर बनायें कफ सिरप....

ठंड के मौसम ने हलकी हलकी दस्तक देनी शुरू कर दी है ! इस मौसम में सेहत का खास ध्यान रखना पड़ता है,क्योकि इस मौसम में सर्दी-जुकाम, खांसी, गले की खराश आदि समस्याएँ होने का खतरा बना रहता है ! बहुत लोग सर्दी जुकाम हो जाने पर एंटी एंटीबायोटिक्स दवाओं का सेवन करते है लेकिन ये आपकी सेहत पर बहुत बुरा असर डालती है, इसलिए इन दवाओं को लेने से अच्छा है की आप घर पर सर्दी-जुकाम को ठीक करने के लिए आयुर्वेदिक सिरप का इस्तेमाल करे !आप इसे घर पर ही बना सकते है !

आवश्यक सामग्री....

10-12 तुलसी के पत्ते,
3-4 लौंग,
2 चम्मच शहद ,
चुटकीभर सेंधा नमक ,
सोंठ और दालचीनी पाउडर,
2-3 काली मिर्च

बनाने का तरीका ....

कफ सिरप बनाने के लिए सबसे पहले तुलसी के थोड़े से पत्तो को लेकर धो ले,अब इसमें लौंग, सेंधा नमक, काली मिर्च, सोंठ और दालचीनी पाउडर मिला दे,अब इन सभी को एक साथ मिलाकर अच्छे से पीस लें ! अब गैस पर एक बर्तन में एक गिलास पानी डालकर चढ़ा दे,जब ये पानी उबलने लगे तो इसमें तुलसी के पेस्ट डाल दे ।जब पानी उबलते उबलते आधा रह जाएं तो इसे आंच से उतार ले ! जब ये पानी ठंडा हो जाये तो इसमें शहद मिला दे ! सिरप तैयार है।

 अब इसे एक कांच की शीशी में भरकर रख लें ! 

सर्दी-जुकाम, गले में खराश होने पर इसका सेवन करें।

सुखी खांसी (Dry cough) का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार.....

जुकाम के या बुखार के बाद प्रायः सूखी खांसी होती है जिसमे बहुत खांसने पर भी कुछ नही निकलता। खांसते खांसते हालत खराब हो जाती है।

सूखी खांसी, जिसमें बलगम तो नहीं आता लेकिन गले में दर्द, खराश से लेकर जलन तक हो सकती है. कई बार खांसते खांसते व्यक्ति की पसलियां भी दुखने लग जाती हैं। सूखी खांसी आसानी से ठीक नहीं हो पाती, इसलिए इसमें व्यक्ति को काफी परेशानी हो जाती है।

क्या न करें.....

शहद, अदरक, तुलसी आदि का प्रयोग न करें। ये कफ सुखाती हैं।

 एंटीबायोटिक का प्रयोग केवल चिकित्सक के कहने पर करें।

 विज्ञापन वाले खांसी सिरप न लें। भोजन में खट्टी चीजें न खाएं।

 दही लस्सी न लें। 

भोजन गर्म ही लें। 

भोजन के 30 मिनट बाद तक पानी न पिएं। 

आयुर्वेदिक औषधि....

 चन्द्रामृत रस....

खांसी गीली है या सूखी। नई है या पुरानी। बड़े को है या बच्चे को। जुकाम के साथ है या बुखार के साथ। सोचने की आवश्यकता नही है। यह कभी असफल नहीं होती। सभी प्रकार की खांसी में सफल।

प्रयोग विधि.....

2 गोली 3 बार गुनगुने पानी से।

वासावलेह.....

 यह ग्रेन्यूल्स और चटनी की तरह मिलता है। ग्रेन्यूल्स ही लें। चटनी का स्वाद खराब है।

वैद्यनाथ का वासावलेह ग्रेन्यूल्स के रूप में मिलता है। नई पुरानी खाँसी व अस्थमा में बहुत प्रभावशाली है। कफ के साथ खून आता हो। वृद्धावस्था की खांसी में अधिक प्रभावी है। 

प्रयोग विधि.....

1 चम्मच 2 समय गुनगुने पानी से लें। अधिक लाभ के लिए इसके साथ 2 गोली चन्द्रामृत रस भी लें।

द्राक्षासव....

 पुरानी खांसी जो बार बार लौट आती हो, जिसमे खांसी के साथ खून आता हो। वजन घट गया हो। भूख न लगती हो। कब्ज हो। आंखों के आगे तारे से टूटे। चलते समय जल्दी थकान व सांस फूले। धूल मिट्टी में जाते ही खांसी हो जाए। बार बार जल्दी जल्दी खांसी जुकाम व इंफेक्शन हो तो यह लाभदायक है। लम्बे समय लेने से ही लाभ होगा। तत्काल लाभ नही होगा।

प्रयोग विधि.....

2 से 4 चम्मच 2 समय।
 बराबर पानी मिलाकर। 
भोजन के 30 मिनट बाद। जिन्हें एसिडिटी है वह न लें।

घरेलू प्रयोग....

सुखी खांसी के लिए....

हल्दी पाउडर 4 चम्मच। 
देशी घी 1 चम्मच।
नमक आधा चम्मच।

तीनो को तवे या कड़ाही में मिलाकर इतना पकाएं कि हल्दी का रंग लाल काला सा हो जाएं। इसे ठण्डा करके शीशी में रख लें।

छोटे बच्चे को 1 ग्राम बड़े को 2 ग्राम गुनगुने पानी से दें।

सोमवार, 18 दिसंबर 2023

इच्छापूर्ति

🌹🌹🌹 *इच्छापूर्ति*🌹🌹🌹

एक घने जंगल में एक इच्छा पूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर कोई भी इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी। यह बात बहुत कम लोग जानते थे क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था।

एक बार संयोग से एक थका हुआ व्यापारी उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गयी।

जागते ही उसे बहुत भूख लगी, उसने आस पास देखकर सोचा- 'काश कुछ खाने को मिल जाए!' तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई।

व्यापारी ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..

काश कुछ पीने को मिल जाए.. तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए अनेक शरबत आ गए। शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा-  कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ। हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा न ही सुना.. 

जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया।

इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे  वह आपको अवश्य मिलेगी।

अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं... क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं।

इंसान ज्यादातर समय सोचता है- कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ.. और वह बीमार हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है - मेरी किस्मत ही खराब है .. और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..!

इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है..! इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए।

विचार जादूगर की तरह होते है, जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..! इसलिये सदा सकारात्मक सोचिए.।

*बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है, जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। पूरा संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*


*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*

रविवार, 17 दिसंबर 2023

पुराणों के अनुसार कौन सी ४ वनस्पति संजीवनी बूटी मानी जाती है?

 

शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या याद थी जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे। इस विद्या को सीखने के लिए गुरु बृहस्पति ने अपने एक शिष्य को शुक्राचार्य का शिष्य बनने के लिए भेजा। उसने यह विद्या सीख ली थी लेकिन शुक्राचार्य और उनके दैत्यों को इसका जब पता चला तो उन्होंने उसका वध कर दिया।

रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ आदि के भयंकर अस्त्र प्रयोग से समूची राम सेना मरणासन्न हो गई थी, तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर 4 वनस्पतियां लाएं : मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया।

इन 4 वनस्पतियों में से मृत संजीवनी (या सिर्फ संजीवनी कहें) सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है! इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर 2 पौधों को चिह्नित किया है।

उन्होंने सबसे पहले तो भारतभर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो। उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने ‘संजीवनी’ या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। नतीजा? खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए। जब विभिन्न भाषाओं में इन शब्दों के उपयोग की तुलना की गई, तो मात्र 6 प्रजातियां शेष रह गईं।

इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो ‘संजीवनी’ या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है।

अब शेष बची 2 वनस्पतियां : अब शोधकर्ताओं ने सोचा कि वे कौन-से मापदंड रहे होंगे जिनका उपयोग रामायण काल के चिकित्सक औषधीय तत्व के रूप में करते होंगे। प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सक इस सिद्धांत पर अमल करते थे कि जिस पौधे की बनावट प्रभावित अंग या शरीर के समान हो, वह उससे संबंधित रोग का उपचार कर सकता है।

सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या ‘मृत’ पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही ‘पुनर्जीवित’ हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?

सच्चे वैज्ञानिकों की भांति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी।

एक अन्य खोज : भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के ऊपरी इलाके में एक अनोखे पौधे की खोज की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है।

यह खोज सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रामायण की कहानी में लक्ष्मण की जान बचाने वाली जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया गया है, वह हमें मिल गई है? रोडिओला नाम की यह बूटी ठंडे और ऊंचे वातावरण में मिलती है। लद्दाख में स्थानीय लोग इसे सोलो के नाम से जानते हैं।

अब तक रोडिओला के उपयोगों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। स्थानीय लोग इसके पत्तों का उपयोग सब्जी के रूप में करते आए हैं। लेह स्थित डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई एल्टिट्यूड इस पौधे के चिकित्सकीय उपयोगों की खोज कर रहा है। यह सियाचिन जैसी कठिन परिस्थितियों में तैनात सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।

इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी

 इसे सेव कर सुरक्षित कर लें,

याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी :-

1. रोगी के रोग की चिकित्सा करने वाले निकृष्ट , रोग के कारणों की चिकित्सा करने वाले औसत और रोग-मुक्त रखने वाले श्रेष्ठ चिकित्सक होते हैं ।

2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।

3. हाई वी पी में - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।

4. लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।

5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।

6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं ।

7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।

8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।

9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।

10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।

11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी ।

12. जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।

13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।

14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।

15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।

16. अस्थमा , मधुमेह , कैसर* से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।

17. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।

18. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।

19. पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।

20. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।

21. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का *स्वर* चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।

22. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।

23. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।

24. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।

25. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।

26. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से *पित्त* बढ़ता है ।

27. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।

28. वात के असर में नींद कम आती है ।

29. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।

30. कफ के असर में पढाई कम होती है ।

31. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।

33. आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।

34. शाम को वात -नाशक चीजें खानी चाहिए ।

35. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए।

36. सोते समय* रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।

37. व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।

38. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।

39. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।

40. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।

41. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।

42. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,

43. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।

44. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।

45. छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।

46. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।

47. मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।

48. सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।

49. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।

50. भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।

धीरे धीरे अब लगने लगा है कि यह समाधान कम और समस्या ज्यादा है। social media

सोशल मीडिया को लेकर गाहे बगाहे मेरे मन में एक छवि बनती है जो गैंग्स ऑफ वासेपुर के एक डायलॉग की याद दिलाती है "ये क्या बवंडर बना दिए हो बे"। धीरे धीरे अब लगने लगा है कि यह समाधान कम और समस्या ज्यादा है। यह समस्या संतुलन के अभाव के कारण है। बहुत कुछ है जो बहुत अच्छा है। इसने एक सशक्त मंच दिया है जिससे कई सितारे बने हैं। लेकिन इसने चिंतन को कुंद भी किया है। 
अभी हाल में यूट्यूब के गुरुओं का दौर है। अनेक आचार्य हैं। अनेक सर हैं। मोटिवेशनल स्पीकरों का सैलाब आया हुआ है। बिजनेस मॉडल किलो के भाव बिक रहे हैं। हर दूसरा आदमी बिजनेस के ज्ञान की गंगा बहा रहा है। बिजनेस कोच सूट पहन कर टाई बांधे ऐसे घूम रहे हैं कि लगता है कि ये लोगों को पकड़ पकड़ कर करोड़पति बना देंगे। एक सज्जन तो अपनी बात ही यहां से शुरू करते हैं कि आप करोड़पति क्यों नहीं हो। एक हैं जो पूरे ब्रह्मांड को बाउंस बैक करवा रहे हैं वहीं एक ज्ञानी मोटिवेशन के इतने इंजेक्शन लगा रहे हैं कि आदमी परसाई की भाषा में कहूं तो बारूद सुखाने लगता है कि बस अब सुबह उठ कर चाय पीते ही क्रांति लानी है। MLM की एक अलग ही दुनिया है। MLM के बाद अब कोर्स बेचे जा रहे हैं। छोटे शहरों के बच्चे जो इंटरनेट पर सक्रिय हैं और जिनका पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठ गया है उनको यह सस्ता ग्लैमर खूब लुभाता है। एक आइकॉन है जो इनको अपनी सुरक्षा का बोध करवाता है। अपने हीन होने का भाव मन में भरता है और फिर अपने कोर्स को सभी समस्याओं के समाधान के तौर पर पेश करता है। मोटिवेशन एक छद्म प्रेरणा का भाव देता है। वो प्रेरणा जो दिशाहीन है। वो प्रेरणा जिसका उद्देश्य सिर्फ "फील गुड" है।  वो प्रेरणा जो उनको सेल्समैन बनने के लिए प्रेरित करती है। मोटिवेशन का अतिरेक हो गया है अभी। दिशाहीन मोटिवेशन आत्मावलोकन के द्वार को बंद करती है। 
मेरा प्रश्न यह है कि इतनी निराशा कहां से आती है कि इतने मोटिवेशनल स्पीकर ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। MLM अब एफिलिएट मार्केटिंग के रूप में प्रस्तुत होता है और मोटिवेशन में आकंठ डूबा युवा व्यवस्था, समाज को गरियाते हुए लग जाता है अपना फंसा हुआ पैसा निकालने में दूसरे को टोपी पहनाने में। मैं व्यक्तिगत रूप से हर प्रकार के व्यवसाय का प्रशंसक हूं। लेकिन अब MBA चाय वाले अपनी छवि के नाम पर घटिया व्यवसाय का मॉडल स्व-प्रेरित युवाओं को बेच कर उनके भविष्य को बर्बाद कर देते हैं तो प्रश्न पैदा होता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कहां खड़ी कि उसके प्रति इस कदर मोहभंग हो गया है। 

मुझे इस देश में शिक्षा की स्थिति पर चिंता है और यह लंबे समय से रही है। मेरा मानना है कि यह संपूर्ण व्यवस्था कचरा है। यह जीवन के उद्देश्य को पहचान करवाने में सर्वथा असफल रही है। इसका एक मात्र उद्देश्य आजीविका के लिए कौशल देना रहा है और उसमें भी यह नितांत असफल रही है। लिहाजा यह मोहभंग हो गया है। और इस क्षोभ से उपजते निर्वात को भरने के लिए दसियों लोग हैं जो आचार्य, कोच, गुरु के रूप में प्रकट हुए हैं। 

हमारी युवा पीढ़ी की हालत यह है कि वो XL शीट में पेज सेट अप करके प्रिंट नहीं निकाल पा रही है। उसे प्रेरणा की नहीं फीडबैक की जरूरत है। स्वयं में निवेश की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है कि किसमें निवेश किया जाना है। मोटिवेशन का हाई डोज यथार्थ को समझने में बाधक है। मेरे पेशेवर गुरु ने मुझे मोटिवेशन कभी नहीं दिया। चुभने वाले शॉट दिए। दोस्ती पक्की रही लेकिन एक कल्पना लोक का निर्माण कभी नहीं होने दिया। 
यूट्यूब के शॉर्ट्स पर जिंदा, दशकों से अद्यतन के अभाव से जूझती पाठ्य पुस्तक मंडल की पुस्तकों से शिक्षित यह पीढ़ी, जिसे शिक्षा ने न रोजगार दिया न दृष्टि को वैकल्पिक गुरु न तलाशे तो क्या करे। 

प्रश्न तो कई दिनों से है लेकिन उत्तर नहीं है। 
जय सियाराम।

ठाकुर जी किसी का उधार नहीं रखते { सत्य घटना }

*ठाकुर जी किसी का उधार नहीं रखते*
*{ सत्य घटना }*
एक बार की बात है, वृन्दावन में एक संत रहा करते थे. उनका नाम था कल्याण. बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे..
एक बार उनके पास एक सेठ आया. अब था तो सेठ, लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था. उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था..

अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये...
उन संत ने कहा, देखो अगर मैं कोई उपाय जानता तो तुम्हे अवश्य बता देता, मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही, जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकु. 
ये मेरे बस में नही है, हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी, इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया..

अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ, ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले..
*तुझे जो कुछ मांगना है जो कुछ कहना है इनसे कह दे ये सबकी कामनाओ को पूर्ण कर देते है..*
अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा... दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया....
कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया, फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा बिहारी जी का धन्यवाद करता..
फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया, वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही...
लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था, तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है..
तो उसने उसे कुछ पैसे दिए, 750 रुपये और कहा कि ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना..
अब बात तो बहुत पुरानी है ये, अब वो भक्त जब वृन्दावन आया तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया..
लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया, लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही, थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे बन गई कोई बात नही...
लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही, अब इधर मंदिर बंद हुआ तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए...
अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है...
उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा, तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है..

तुम उस भक्त को ये रुपया लौटा देना, ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए..
अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की....
अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया, तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आयेंगे....
जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया कि ये बात तो मैं ही जानता था, और तो मैने किसी को बताई भी नही..

सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा, मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है..
ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा, और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला.. 
*तो भक्तो ऐसे है हमारे बिहारी जी, ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते...*
जो एक बार इनकी शरण ले लेता है, फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

गाते समय बार-बार गला बैठ जाता है, क्या करें?

गाते समय बार-बार गला बैठ जाता है, क्या करें?



आपको अपनी गायन तकनीक बदलने की जरूरत है शायद। गला बार बार बैठना ये दर्शाता है कि आप गाते समय गले पर ज्यादा जोर दे रहे हैं जबकि आपको गाते समय नाभि पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए संगीत की भाषा में इसे कहते हैं पेट से गाना वास्तव में इसका अर्थ होता है गहरी सांस के साथ गाना ।शायद आपने अपने प्रारंभिक अभ्यास ठीक से नहीं किए या सीधे गाना गाना ही शुरू कर दिए हैं तो बेहतर होगा कि सबसे पहले किसी संगीत के गुरु से आधारभूत जो अभ्यास होते हैं उनको सीखिए और उनका नियमित अभ्यास करिए और इसके अलावा आपको अपनी जो गायन की रेंज है उसे भी समझना होगा। बहुत बार आप कोई गाना सुनते हैं जो कि ऊपर के स्वर में गाया गया है सुनकर अच्छा लगता है बहुत जल्दी उसे गाने का प्रयास करने लगते हैं जबकि आपको हमेशा अपनी जो आपकी सामान्य आपके गले का विस्तार है उसके अंतर्गत ही गाना चाहिए कम से कम शुरू में प्रारंभिक वर्षों में इसका बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है फिर धीरे-धीरे कुछ वर्षों में अभ्यास करते करते आप अलग-अलग स्केल पर भी गा सकेंगे और अभ्यास करते समय सबसे जरूरी है नियमित अभ्यास प्रतिदिन दूसरी चीज की अपने विश्राम का भी ध्यान दीजिए ।कई बार हल्का गुनगुना पानी पीने से समस्या कम हो जाती है लेकिन तकनीक बहुत महत्वपूर्ण है। ज्यादा जल्दी बाजी ना करें क्योंकि गले को सही से तैयार होने में थोड़ा समय लगता है आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकते हैं कि सुबह और शाम दोनो वक्त अभ्यास करिए लेकिन गले को बाकी समय पर विश्राम दीजिए।

नाभी से गाने पर ध्यान दीजिए।

थोड़ा आसन प्राणायाम करिए।

भोजन पर ध्यान दीजिए।

विश्राम पर ध्यान दीजिए।

अपना अभ्यास धीरे धीरे बढ़ायें।

गाते समय गाला बैठ जाने के शरीरिक और मानसिक दोनों तरह के कारण हो सकते हैं।

शारीरिक कारण-

•अपनी क्षमता से अधिक ऊंचे स्वर में गाना

• गला खराब होना

•टॉन्सिल्स की समस्या

•टी.बी. / गले में गिल्टी/अन्य कोई बीमारी

•कान के अंदर कोई समस्या

•गले की नसों का कमज़ोर होना

•अंदरूनी रूप से शारीरिक कमज़ोरी

•लंबी बीमारी

• खाना खाने के बाद तुरंत गाना

•ठंडी व खट्टी वस्तुओं का अत्यधिक सेवन

•काफी देर तक गाने के बाद तुरंत ठंडा पानी पी लेना।

मानसिक कारण—

•आत्मविश्वास कम होना

•भीड़ का भय

•खुद को नकार दिए जाने का डर

•ध्यान केंद्रित न कर पाना

• भूलने की समस्या

•तनाव

•चिंता

•जानकारी व रियाज़ की कमी

•खुद को कमतर समझना

•दब्बू प्रवृत्ति

•बेमन से गाना

• अपनी क्षमता से अधिक करने की कोशिश का असफल हो जाना

•आलोचना न सहन कर पाना

•मूड अच्छा न होना

ऐसे अन्य कई कारण हो सकते है। परंतु यदि आप ठान लें तो इन सब कारणों पर विजय पाई जा सकती है।धीरे धीरे स्तिथियां क़ाबू में आने लगती है तो आपका आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है और गाते समय आपका गला नहीं बैठता।

अकेले में गा कर अपनी आवाज़ को रिकॉर्ड करके उसका विश्लेषण करना ,कमियां ढूढ़ना, और उन्हें दुरुस्त कर के गाने की प्रक्रिया सुधार की ओर ले जाती है।

आलोचना को स्वस्थ रूप से ग्रहण करते हुए खुद में सुधार करने को अपनी आदत बनाएं।जहां कहीं भी मौका मिले उसे सीखें न कि कॉपी करें।

गाना गाने के लिए अपने गले को कैसे ठीक करें?
गीत गाने के लिए मन में दृढ़ता और धैर्य का होना जरूरी है | अपने स्वरों को मीठा बनाने के लिए हर रोज कम से कम 1 घंटा वक्त दें यानि बिना नागा रियाज़ करें | स्वरों की लोच पर ध्यान दें | गाना आपके दिल की गहराइयों से निकले और उसमें ऐसी कशिश हो कि सुनने वाला आपके गाने का लोहा मान ले |

आवाज को मीठा बनाने के लिए लौंग, मुलहठी, काली मिर्च, अदरक, मीठी सौंफ इनमें से कोई एक चीज मिश्री के साथ चूसें | इससे गले में रुकावट डालने वाला कफ साफ हो जाता है और गला भी मीठा हो जाता है | पंसारियों के पास एक जड़ मिलती है, जिसे वरा या वर्रे कहा जाता है | इसका नाम वचा भी है | १ रत्ती शहद के साथ दिन में सिर्फ एक बार चाटें | 40 दिन में आपकी आवाज कोयल की तरह मीठी हो जाएगी | तली चीजें, आचार आदि खट्टा, दही, लाल मिर्च न खाएं |

बैठा गला ठीक करने के घरेलू उपाय | 
Sore Throat Home Remedies 

नमक का पानी 
बैठे गले की दिक्कत को दूर करने में नमक का पानी (Salt Water) बेहद असरदार होता है. नमक के पानी से गरारा करने पर गला साफ होता है, इंफ्लेमेशन कम होती है और मुंह में जमा बैक्टीरिया निकल जाता है. गले में अगर बलगम जमी होती है तो उसे दूर करने में भी नमक का पानी फायदा दिखाता है. 

अदरक की चाय 
छोटे टुकड़ों में अदरक (Ginger) को काटिए और एक कप पानी में उबालकर पी लीजिए. इसमें स्वाद के लिए हल्का शहद भी डाला जा सकता है. इससे बैठा गला ठीक होने लगता है और सूजन से भी राहत मिल जाती है. 


अदरक और नींबू का रस 
अदरक और नींबू के रस के साथ सेवन से गले को आराम मिलता है. आपको 2 से 3 चम्मच अदरक का जूस और बराबर मात्रा में ही नींबू का रस साथ लेकर मिलाना है. इस मिश्रित रस को पीने पर गले की दिक्कतें दूर होती हैं. दिन में 2 बार इस नुस्खे को आजमाया जा सकता है. 

लहसुन और शहद 
लहसुन सूजन को कम करने में असर दिखाता है. गला सूज गया है या फिर गला बैठने (Gala Baithne) के साथ-साथ गले में दर्द है तो लहसुन को हल्का भूनकर शहद के साथ खाया जा सकता है. लहसुन को सादा भी भूनकर खा सकते हैं.  

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है।

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जिन लोगों की संविधान में रुचि है, उनके लिए यह खासतौर से महत्वपूर्ण है। इससे इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा कि क्या भविष्य में कोई सरकार जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को दोबारा ला सकती है?

पहले यह समझते हैं कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म कैसे किया। जो काम सत्तर वर्षों से नहीं हो सका और पहले की कोई सरकार नहीं कर सकी, वह कैसे हुआ?

इसी से गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति और संविधान की उनकी गहरी समझ का पता चलता है।

पांच अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने CO 272 जारी किया। यह एक राष्ट्रपतीय आदेश जिसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 367 को संशोधित किया गया। इसमें यह कहा गया कि अनुच्छेद 370(3) में वर्णित संविधान सभा की जगह इसे विधानसभा कहा जाएगा। इससे अनुच्छेद 370 को ही हमेशा के लिए दफन करने का रास्ता खुल गया।

राष्ट्रपति के इस आदेश के कुछ ही घंटों के भीतर राज्य सभा ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 370 अब अमल में नहीं रहेगा। राज्य सभा ऐसा इसलिए कर सकी क्योंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था इसलिए विधानसभा की शक्ति राज्यपाल में अंतर्निहित थी और संसद राज्यपाल की ओर से कानून बना सकती थी। अगले ही दिन राष्ट्रपति ने CO 273 जारी किया जिसके माध्यम से अनुच्छेद 370 पर अमल न करने की राज्य सभा की सिफारिश को लागू कर दिया गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हट गई।

आज सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले पर मुहर लगा दी।

क्या कोई सरकार इसे दोबारा लागू कर सकती है?

किसी भी सरकार के लिए इसे दोबारा अमल में लाना असंभव होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज CO 273 को वैध माना है। इसलिए अनुच्छेद 370(3) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जिससे 370 अमल में  आ सके।

अगर 370(3) होता तो भविष्य में कोई सरकार पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर सकती थी। अब अगर कोई सरकार ऐसा करना चाहे तो उसे उसे अनुच्छेद 368 के रास्ते जाना होगा जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और पचास प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए जो कि असंंभव लगता है।

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