कभी प्रसिद्ध इतिहासविद् अतुल रावत की किताब पढ़ियेगा ।
जिसमें बताया है कि
16000 रानियों की चिता की राख से अल्लाउद्दीन ने
"सवा चौहत्तर मन सोना"
(एक मन = 37.3242 किग्रा ) लूटा था।
यह जूता है उनके मुँह पर जो इस विषय पर भंसाली जैसे बॉलीवुड भाँडो के लिये सहानुभूति रखते हैं अल्लाउद्दीन की मरघटी मोहब्बत का आखिर यही अर्थशास्त्र है!!
अतुल रावत का कथन पढ़िए –
"भारतीय सन्दर्भ में लोक परंपरा किस प्रकार इतिहास को संरक्षित किये रहती है यह पद्मिनी की महान गाथा से स्पष्ट है"।
जौहर की ज्वाला शांत होने के बाद अलाउद्दीन ने उस विशाल चिता को भी नहीं छोड़ा।
सभी राजपूतानियाँ पूरा श्रृंगार करके चिता पर आरूढ़ हुई थीं। अलाउद्दीन ने चिता की राख से "सवा चौहत्तर मन सोना" लूटा था।
हिन्दू समाज ने राजपूतानियों के उस महान बलिदान की स्मृति बनाये रखने के लिए एक लोक परंपरा आरम्भ की जो अब से पचास -साठ वर्ष पूर्व तक चलती रही – हिन्दू अपने पत्रों पर "सवा चौहत्तर का अंक" अंकित किया करते थे।
इसका आशय यह था कि जिसको पत्र लिखा गया है उसके अलावा यदि कोई अन्य व्यक्ति इस पत्र को खोले तो उसे वही पाप लगे जो पाप पद्मिनी की चिता से सवा चौहत्तर मन सोना लूटने पर अल्लाउद्दीन को लगा था।
लोक इतिहास संरक्षण का यह अनूठा तरीका था। इसीलिए यह इतिहास दो पीढ़ी पहले तक तो बचा रहा।
ये हमारा दुर्भाग्य है कि वर्तमान पीढ़ी विकृत इतिहास और अल्प इतिहास ही पढ़ पायी है, इन्हें अपनी ठसक से नीचे उतरकर खुद को पहचानने की फुर्सत ही नहीं!
वास्तविक से दूर सपनों में जीने की आदि युवा पीढ़ी इस संरक्षण के योग्य बची ही नहीं हैं जो महारानी पद्मिनी को रज मात्र भी समझ पाये
🙏
जौहर कुंड चित्तौड़गढ़
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