अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जिन लोगों की संविधान में रुचि है, उनके लिए यह खासतौर से महत्वपूर्ण है। इससे इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा कि क्या भविष्य में कोई सरकार जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को दोबारा ला सकती है?
पहले यह समझते हैं कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म कैसे किया। जो काम सत्तर वर्षों से नहीं हो सका और पहले की कोई सरकार नहीं कर सकी, वह कैसे हुआ?
इसी से गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति और संविधान की उनकी गहरी समझ का पता चलता है।
पांच अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने CO 272 जारी किया। यह एक राष्ट्रपतीय आदेश जिसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 367 को संशोधित किया गया। इसमें यह कहा गया कि अनुच्छेद 370(3) में वर्णित संविधान सभा की जगह इसे विधानसभा कहा जाएगा। इससे अनुच्छेद 370 को ही हमेशा के लिए दफन करने का रास्ता खुल गया।
राष्ट्रपति के इस आदेश के कुछ ही घंटों के भीतर राज्य सभा ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 370 अब अमल में नहीं रहेगा। राज्य सभा ऐसा इसलिए कर सकी क्योंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था इसलिए विधानसभा की शक्ति राज्यपाल में अंतर्निहित थी और संसद राज्यपाल की ओर से कानून बना सकती थी। अगले ही दिन राष्ट्रपति ने CO 273 जारी किया जिसके माध्यम से अनुच्छेद 370 पर अमल न करने की राज्य सभा की सिफारिश को लागू कर दिया गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हट गई।
आज सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले पर मुहर लगा दी।
क्या कोई सरकार इसे दोबारा लागू कर सकती है?
किसी भी सरकार के लिए इसे दोबारा अमल में लाना असंभव होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज CO 273 को वैध माना है। इसलिए अनुच्छेद 370(3) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जिससे 370 अमल में आ सके।
अगर 370(3) होता तो भविष्य में कोई सरकार पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर सकती थी। अब अगर कोई सरकार ऐसा करना चाहे तो उसे उसे अनुच्छेद 368 के रास्ते जाना होगा जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और पचास प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए जो कि असंंभव लगता है।
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