सोशल मीडिया को लेकर गाहे बगाहे मेरे मन में एक छवि बनती है जो गैंग्स ऑफ वासेपुर के एक डायलॉग की याद दिलाती है "ये क्या बवंडर बना दिए हो बे"। धीरे धीरे अब लगने लगा है कि यह समाधान कम और समस्या ज्यादा है। यह समस्या संतुलन के अभाव के कारण है। बहुत कुछ है जो बहुत अच्छा है। इसने एक सशक्त मंच दिया है जिससे कई सितारे बने हैं। लेकिन इसने चिंतन को कुंद भी किया है।
अभी हाल में यूट्यूब के गुरुओं का दौर है। अनेक आचार्य हैं। अनेक सर हैं। मोटिवेशनल स्पीकरों का सैलाब आया हुआ है। बिजनेस मॉडल किलो के भाव बिक रहे हैं। हर दूसरा आदमी बिजनेस के ज्ञान की गंगा बहा रहा है। बिजनेस कोच सूट पहन कर टाई बांधे ऐसे घूम रहे हैं कि लगता है कि ये लोगों को पकड़ पकड़ कर करोड़पति बना देंगे। एक सज्जन तो अपनी बात ही यहां से शुरू करते हैं कि आप करोड़पति क्यों नहीं हो। एक हैं जो पूरे ब्रह्मांड को बाउंस बैक करवा रहे हैं वहीं एक ज्ञानी मोटिवेशन के इतने इंजेक्शन लगा रहे हैं कि आदमी परसाई की भाषा में कहूं तो बारूद सुखाने लगता है कि बस अब सुबह उठ कर चाय पीते ही क्रांति लानी है। MLM की एक अलग ही दुनिया है। MLM के बाद अब कोर्स बेचे जा रहे हैं। छोटे शहरों के बच्चे जो इंटरनेट पर सक्रिय हैं और जिनका पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठ गया है उनको यह सस्ता ग्लैमर खूब लुभाता है। एक आइकॉन है जो इनको अपनी सुरक्षा का बोध करवाता है। अपने हीन होने का भाव मन में भरता है और फिर अपने कोर्स को सभी समस्याओं के समाधान के तौर पर पेश करता है। मोटिवेशन एक छद्म प्रेरणा का भाव देता है। वो प्रेरणा जो दिशाहीन है। वो प्रेरणा जिसका उद्देश्य सिर्फ "फील गुड" है। वो प्रेरणा जो उनको सेल्समैन बनने के लिए प्रेरित करती है। मोटिवेशन का अतिरेक हो गया है अभी। दिशाहीन मोटिवेशन आत्मावलोकन के द्वार को बंद करती है।
मेरा प्रश्न यह है कि इतनी निराशा कहां से आती है कि इतने मोटिवेशनल स्पीकर ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। MLM अब एफिलिएट मार्केटिंग के रूप में प्रस्तुत होता है और मोटिवेशन में आकंठ डूबा युवा व्यवस्था, समाज को गरियाते हुए लग जाता है अपना फंसा हुआ पैसा निकालने में दूसरे को टोपी पहनाने में। मैं व्यक्तिगत रूप से हर प्रकार के व्यवसाय का प्रशंसक हूं। लेकिन अब MBA चाय वाले अपनी छवि के नाम पर घटिया व्यवसाय का मॉडल स्व-प्रेरित युवाओं को बेच कर उनके भविष्य को बर्बाद कर देते हैं तो प्रश्न पैदा होता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कहां खड़ी कि उसके प्रति इस कदर मोहभंग हो गया है।
मुझे इस देश में शिक्षा की स्थिति पर चिंता है और यह लंबे समय से रही है। मेरा मानना है कि यह संपूर्ण व्यवस्था कचरा है। यह जीवन के उद्देश्य को पहचान करवाने में सर्वथा असफल रही है। इसका एक मात्र उद्देश्य आजीविका के लिए कौशल देना रहा है और उसमें भी यह नितांत असफल रही है। लिहाजा यह मोहभंग हो गया है। और इस क्षोभ से उपजते निर्वात को भरने के लिए दसियों लोग हैं जो आचार्य, कोच, गुरु के रूप में प्रकट हुए हैं।
हमारी युवा पीढ़ी की हालत यह है कि वो XL शीट में पेज सेट अप करके प्रिंट नहीं निकाल पा रही है। उसे प्रेरणा की नहीं फीडबैक की जरूरत है। स्वयं में निवेश की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है कि किसमें निवेश किया जाना है। मोटिवेशन का हाई डोज यथार्थ को समझने में बाधक है। मेरे पेशेवर गुरु ने मुझे मोटिवेशन कभी नहीं दिया। चुभने वाले शॉट दिए। दोस्ती पक्की रही लेकिन एक कल्पना लोक का निर्माण कभी नहीं होने दिया।
यूट्यूब के शॉर्ट्स पर जिंदा, दशकों से अद्यतन के अभाव से जूझती पाठ्य पुस्तक मंडल की पुस्तकों से शिक्षित यह पीढ़ी, जिसे शिक्षा ने न रोजगार दिया न दृष्टि को वैकल्पिक गुरु न तलाशे तो क्या करे।
प्रश्न तो कई दिनों से है लेकिन उत्तर नहीं है।
जय सियाराम।
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