यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

काम का महत्व (सुन्दर कथा)

न्यूयॉर्क की एक संकरी गली में हर्बर्ट नाम का एक गरीब बच्चा रहता था।
गरीबी के कारण तेरह वर्ष की उम्र में उसने बर्फ की गाड़ी चलाने का काम
किया। थोड़ा बड़ा होने पर उसे एक प्राइवेट रेलवे कंपनी में रोड़ी लादने
का अस्थायी काम मिला। उसकी मेहनत और लगन को देख उसे पक्की नौकरी पर रख लिया गया और उसे स्लीपरों की देखभाल का काम दिया गया। जहां वह काम करता था, वह एक छोटा स्टेशन था। उसकी सभी लोगों से जान पहचान हो गई।
उसने लोगों से कहा, 'मैं छुट्टी पर भी रहूं अथवा मेरी ड्यूटी न भी हो तब
भी आप लोग मुझे अपनी सहायता के लिए बुला सकते हैं।' इस तरह वह अपने काम के अलावा दूसरे कार्यों में भी मन लगाने लगा। एक बार एक अधिकारी ने कहा, 'हर्बर्ट, तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो। तुम्हें फालतू के काम का कोई पैसा नहीं मिलेगा।' हर्बर्ट ने कहा, 'मैं कोई काम पैसे के लिए नहीं, संतोष के लिए करता हूं। इससे मुझे ज्ञान मिलता है।' एक बार उसकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी।
न्यू यॉर्क की विशाल परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एक परिवहन व्यवस्थापक की जगह खाली थी। उसने भी अप्लाई कर दिया। उसे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू लेने वाले अफसर उस समय अवाक रह गए, जब उन्हें आभास हुआ कि हर्बर्ट की जानकारी तो उनसे भी ज्यादा है। एक अधिकारी ने इस संबंध में पूछा तो हर्बर्ट ने कहा, 'सर, मैंने अपनी जिज्ञासा के कारण इतनी सारी जानकारी प्राप्त की है। मैं हमेशा इस बात के लिए उत्सुक रहा कि कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लूं। मैंने किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कभी कोई बाधा आ ही नहीं सकती।'
कुछ समय बाद हर्बर्ट को न्यूयॉर्क के बेहद भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबसे अच्छी यातायात व्यवस्था कायम करने के लिए पुरस्कृत किया गया।

संसार में दो प्रकार के लोग होते है


कुशल लोग

इस संसार में दो प्रकार के लोग होते है,एक कुशल और दूसरे अकुशल।कुशल कहते है जो बहुत चतुर होते है।।कुशल उसको कहते है जो हाथ नही काट कर सब कुश को उखाड दे। खतरे के काम करे पर उसका कोइ असर न हो उसको कुशल कहते है।जो कुशल लोग है,वो एकमात्र तुमसे ही प्रेम करते है ।।और जो अकुशल लोग होते है,वो पति.पत्नी,सुत आदि से प्रेम करते है । और कुशल लोग सब कुछ छोड़ सिर्फ तुमसे प्रेम करते हैं। सब छोड़ देने का मतलब आसक्ति छोड़ने से है।।स्वात्मनतुम जो आत्मा के स्वामी हो उनसें प्रेम करते है।पति या पत्नी आत्मा के स्वामी नही हो सकते,पति/पत्नी क़ा शरीर अलग और आत्मा अलग है।लेकिन कुशल लोग जानते है कि सबकी आत्मा के स्वामी तो श्रीकृष्ण है,इसलिए कृष्ण से क्यो न प्यार किया जाए।।।कुशल लोग आत्मन और नित्य प्रिय है,ऐसा प्रेम जो कभी न टूटने वाला है।आजकल कोइ जीव किसी का नित्य प्रिय नही हो सकता।सबके गुण स्वभाव अलग अलग है।।सबकी रुची अलग अलग है और सबकी प्रियता अलग अलग है।संसारिक प्रियता क्षणिक होती है। नित्य प्रिय तो भगवान ही है,जोआदि,अन्त,मध्य मे सदा एक रस प्यारे है।
राधे राधे

कुछ महत्वपूर्ण बातें


सावधानीः पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।
पति-पत्नी में झगड़े होते हों, तलाक को नौबत आ जाए अथवा पति-पत्नी में मन नहीं बनता है तो पति अपने सिर के नीचे सिन्दूर रख के सो जाए और पत्नी अपने सिर के नीचे कपूर रख के सो जाए । सुबह उठे तो कपूर की आरती कर डालें और पति सिन्दूर घर में फ़ेंक दें, तो पति-पत्नी का स्वभाव अच्छा हो जायेगा।
- - -
अगर घर में डकार देने वाले, वायु दोष वाले कोई हों तो प्रातः-सायं थोड़ा कपूर जला दिया करें, जिससे वायु का अनुबंध शांत हो जायेगा और वातावरण सुखद व प्रसन्नता वाला बनेगा। वायु दोष घर से निवृत होने लगेगा। लक्ष्मी की चाह वाले लोग भी कपूर जलाएंl
- - -
जिन्हें मानसिक तनाव हो, वो सोते समय अपने सिरहाने के नीचे १ कपूर रख दें और जागने पर उसे जला दें, तो मानसिक तनाव दूर होगा। पानी में गुरुगीता पड़ कर घर में छांट दें।
- - -
कन्या का विवाह नहीं होता या शीघ्र विवाह करना तो तो शिवगीता पुस्तक में पार्वतीजी का चित्र है, उसे एकटक देखें । पार्वतीजी का मंत्र, जिसे सीताजी जपती थीं वो जपें तो अच्छा है अथवा तो गुरुगीता का पाठ करें । स्नान के पानी में १ चुटकी हल्दी मिलाकर स्नान करें तो हाथों में भी जल्दी हल्दी (शादी) लग जाएगी ।
- - -
जय जय गिरिवर राज किशोरी, जय महेश मुख चंद्र चकोरी
गंगा स्नान के लिए रोज हरद्वार तो जा नही सकते, घर में ही गंगा स्नान का पुन्य मिलाने के लिए एक छोटा सा मन्त्र है ..
'ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा'
ये मन्त्र बोलते हुए स्नान करे तो गंगा स्नान का लाभ होगा |
- - -
द्वादशी, अमावस, पूनम और रविवार को तुलसी के पत्ते ना तोडें, बाकी दिन
'ॐ सुप्रभाय नमः, ॐ सुभद्राय नमः'
ये बोलते हुए तुलसी पत्ते तोड़ो तो ये मन्त्र बोलनेवाले का स्वाथ्य/ तबियत ठीक करेगा|
जब भी तुलसी का पत्ता तोड़ो तो सूर्यास्त के बाद नही तोडे और सूर्योदय के पहेले नही तोड़े..
-
घर के इशान कोण में तुलसी और भी शुभ मानी जाती है. इस का लाभ जरुर लें
- - -
अगर आपने किसी कारण से आध्यात्मिक शक्ति खो दी है तो आसन पर बैठकर ह्रदय में अनाहत चक्र का ध्यान करें l ऋषि विश्वामित्र जी को भी इसी प्रयोग से खोई हुई शक्ति पुनः प्राप्त हुई थी l
- - -
बारिश के पानी में स्नान करने से बुदापे में लकवा, संधिवात (जोडों का दर्द) आदि की तकलीफें आती हैं l लेकिन धूप निकलती हो, उस समय वर्षा में स्नान करना अमृत स्नान माना गया हैl
ll हरी ॐ ll

एक अजीब हकीक़त


जय श्री कृष्णा जी
सुप्रभात  अर्थात Good wala morning
विचार  सभी कर्मो के बीज हैं! अतः श्रेष्ठ विचार रखो
 
इंसान भक्ति युक्त होकर हमेशा गीता का एक पाठ भी करता है, तो वो रुद्रलोक्क को प्राप्त होता है,
और वह शिवजी का सेवक बनकर सदा के लिए वैकुण्ठ का निवास करता है
 
एक अजीब हकीक़त -
 
100 रुपये का नोट बहुत ज्यादा लगता है जब "गरीब को देना हो", मगर होटल में बैठे हो तो बहुत कम लगता है
3 मिनट इश्वर को याद करना बहुत मुश्किल है, मगर ३ घंटे कि फिल्म देखना बहुत आसान.
पूरे दिन मेहनत के बाद GYM जाने से नहीं थकता, मगर जब अपने ही माँ-बाप के पैर दबाने हो तो थकावट आ जाती है!
 
ज़िन्दगी सुबह से शाम हुई जाती है, देर एक पल कि पिया यह सांस रुकी जाती है
उनसे मिलना ना हुआ, जिनसे मुझे मिलना था यूं तो मिले खूब मगर यह भी कोई मिलना था,
जिनके वियोग MEIN मेरे प्राणों में जलती ज्वाला है कोई इस जग में उसका पता बताने वाला है !
 


(¨`·.·´¨) ALWAYS `·.¸(¨`·.·´¨) KEEP
(¨`·.·´¨¸.·´ SMILING
`·.¸.·´

\\\|///
\\ - - //
जय श्री कृष्णा 

सांवरिया 

"Jago grahak jago"


Think on That!..

मन करता है

सबको छोड़ने का मन करता है
सबसे कही दूर जाने का मन करता है

न किसी से प्यार करू
न किसी के प्यार के काबिल बनू
न किसी से दिल लगाऊ
न किसी का दिल तोडू
न किसी पे ऐतबार करू
न किसी का इंतज़ार करू

सबसे नाता तोड़ने का मन करता है

न किसी से बात करू, न कोई वादा करू
न कोई वफ़ा की उम्मीद करू,
न किसी से बेवफाई करू
न किसी को अपना कहू
न किसी को यादों में बसाऊं

खुद से प्यार को दूर करने का मन करता है

न कोई दुआ करू न किसी पे यकीन करूँ
न कोई रास्ता ढूँढू न कोई मंजिल
न कोई सपना सजाऊं न कोई इरादे
न रात को नींद का न सुबह उठने का
न खुद से न कोई परायों से

खुद से दूर जाने का मन करता है
दुनिया से अलग होने का मन करता है

न दुःख पे आंसू बहाऊं
न ख़ुशी से झूम उठू
न किसी के मिलने पे मुस्कुराऊं
न किसी के बिछड़ने का शोक मनाऊ
न खुद के लिए रोऊ न किसी और के liye

कही खो जाने का मन करता है
हकीकत से मुह मोड़ने का मन करता है

चाय की लाय



चाय की लाय में आज लाखो लोग जल रहे है



चाय की लाय में आज लाखो लोग जल रहे है
चाय पर चाय पीकर किसी तरह से चल रहे है
दो कप टी न मिले तो जीना बेकार है
सुस्त ऐसे ज्यो बिना पेट्रोल की कार है
चाय की प्याली में आज जिंदगी कैद है
चाय मानव को पी गई इसी बात का खेद है
भीष्म अर्जुन द्रोण जैसी आज है नस्ले कहाँ
सब तरफ मिल जाएगी बन्दर की सी शक्लें यहाँ
नन्हे पप्पू को माँ चाय का आदी बनाती
कुदरत भी क्यों मुर्खता कर माँ की देह में दूध लाती

क्यों नहीं माँ की देह में चाय की धारा बहा दे
चाय के इन पुजारियों को जन्म से ही टी पिलादे





क्या होगा हमारे देश का ?

क्या होगा हमारे देश का ?
आप सोच रहे होंगे की अब तक जो हुआ है आगे भी होता रहेगा
क्यों? सही है ना ?
पढ़कर बड़ा आश्चर्य हो रहा होगा ?

भारत ,
"मेरा भारत",   "सोने की चिड़िया "

एक जमाना था जब भारत "सोने की चिड़िया" कहलाता था
एक एसा भी जमाना था जब भारतीय संस्कृति की विदेशों में पूजा होती थी, अभी भी होती है पर कहीं कहीं, कभी भारत "विश्व गुरु" कहलाता था, अब तो शायद ही किसी को ज्ञात होगा कि देवता भी जिस भूमि पर बार बार जन्म लेने के लिए व्याकुल हुआ करते थे
भारत को हम हमारी "भारत माता" कहते है, हमारे भारत में नारियों का सम्मान माँ के रूप किया जाता है, कहा जाता है कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः"
अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहा देवताओ का निवास होता है
और हाँ भारत को एकता में अखंडता के लिए सदियों से जाना जाता था, यहाँ की भोगोलिक परिस्थितियां भी भारत की एकता में अखंडता की परिचायक है जेसे जहाँ एक और भारत के उत्तर में हिमालय जेसा विशाल पर्वत है तो वहीँ दूसरी और दक्षिण में बहुत बड़ा पठार है इसमें जहाँ एक तरफ थार का रेगिस्तान है वाही दूसरी और हरा भरा गंगा सतलज का मैदान है कहीं पर बहुत सर्दी है कहीं पर बहुत गर्मी भी है, ऋतुएँ, मौसम, आदि की विभिन्न्ताये भारत में व्याप्त है | यहाँ हर ५० किलोमीटर पर भाषा, खान पान, रहन सहन भिन्न भिन्न है उसके बावजूद भारत के सभी लोग एक होकर के रहते है यहाँ हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, एवं और भी कई धर्म के अनुयायी निवास करते हैं फिर भी भारत में एकता में अखंडता जानी जाती है |

लेकिन कुछ लोग जानबुझ कर भारत को बाँट रहे हैं, कुछ लोग भारत की संस्कृति को छोड़ कर विदेशियों का अनुकरण कर रहे है और भारत की छवि को बदनाम कर रहे है, चंद पैसों के लिए अपना ईमान बेचकर भारत माता को छलनी करने का प्रयास कर रहे है, और अपनी इस गलती को कलियुग का प्रभाव का नाम देने से भी नहीं चुकते हैं |

क्या आप जानते हैं जापान की टेक्नोलोजी पुरे संसार में प्रसिद्ध क्यों है ?
क्या आप जानते हैं अमेरिका के द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराने से आज भी वहां लोग लूले लंगड़े बहुतायात में पैदा होते है
फिर भी जापानी मशीनरी पुरे विश्व में प्रसिद्द है, जापान की बुलेट ट्रेन जो विश्व की सबसे तेज गति से चलने वाली गाड़ी का उदाहरण है

जानते है एसा क्यों ?
क्योंकि जापान में देश के साथ कोई गद्दारी नहीं करता वहां सिर्फ देशभक्त ही पैदा होते हैं ,

एक बार जापान में बहुत भरी अकाल पड़ा, और वहा कोई किसान का पूरा परिवार भूख से मर गया तो वहां अकाल राहत के लिए जिस NGO के कुछ अधिकारी देखने के लिए आये कि क्या सच में कोई किसान भूख से मरा है क्या तो उन्होंने पाया कि एक किसान का पूरा परिवार जो कि भूख से मर गया उसके घर में एक बोरी गेहूं पड़ा था तो उन अधिकारीयों ने वहां के निवासियों से पूछा कि जब घर में एक बोरी अनाज पड़ा था तो भूख से मरने कि कहाँ जरुरत थी ? तो लोगो ने जवाब दिया कि वो एक बोरी अनाज पड़ा तो था किन्तु वो तो देश के लिए अलग निकाला हुआ था ताकि बीज बोने के लिए अनाज मिल सके तो इसीलिए वहाँ के लोग चाहे अपनी जान दे देते हैं पर देश के लिए जीते है और देश के लिए मर भी जाते हैं पर देश के साथ गद्दारी नहीं करते |
बस यही कारण है जापान की तरक्की का |



वहां के लोग अपनी बात मनवाने के लिए राष्ट्रीय संपत्ति का कभी नुक्सान नहीं करते,
जबकि यहाँ तो आये दिन लोग सडको पर उतर कर राष्ट्रीय संपत्ति का नुक्सान कर के अपनी देशभक्ति का दिखावा करते हैं
"समझदार के लिए इशारा ही काफी है " शायद आप लोग मेरी बात को समझ रहे होंगे |
मैं ये नहीं कहता कि सभी लोग गद्दार है या सभी लोग एसा करते हैं, पर जुर्म करना, जुर्म होते हुए देखना और जुर्म सहना भी उतना ही बड़ा अपराध है, जितना की जुर्म करना
क्या आप जानते हैं आज पूरा भारत कर्ज में डूबा हुआ है ?
क्या आप जानते हैं पुरे भारत में यदि हर व्यक्ति इमानदारी से अपना टैक्स भर दे तो भारत को किसी भी अन्य देश पर निर्भर रहने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी
भारत का उत्थान भारतियों के ही हाथ में हैं कोई विदेशी नहीं करेगा भारत का उत्थान,
कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम जो कर रहे हो उसे ही ठीक कर लो सब कुछ ठीक हो जायेगा

"सोच बदल दो सितारे अपने आप ही बदल जायेंगे
नजरिया बदल दो नज़ारे अपने आप ही बदल जायेंगे "






मेरा भारत फिर से विश्व गुरु कहलायेगा, दुनिया में फिर से पहले की तरह पूजा जायेगा
हम चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, चाहे सिक्ख हो या इसाई, चाहे राजस्थानी हो या गुजराती, चाहे ब्राह्मण हो या शुद्र, क्षत्रिय हो या वेश्य, पर सबसे पहले हम भारतीय है

I am a proud of INDIAN , गर्व से कहो हम भारतीय है
Vande matram.
जय श्री कृष्णा

आज हमारे बच्चो को कौन संस्कार दे रहा है "माँ, दादीमा या फिर " सिनेमा "


आज हमारे बच्चो को कौन संस्कार दे रहा है "माँ, दादीमा या फिर " सिनेमा "

जय श्री कृष्णा
भारतीय संस्कृति कि विदेशों में पूजा होती है, भारत विश्वगुरु था है और हमेशा रहेगा| पर ये क्या हम लोग तो खुद ही हमारी संस्कृति को भूलते जा रहे है | आज के माता पिता आधुनिकता की होड़ में अपने बच्चो को अपनी संस्कृति का ज्ञान भी नहीं दे रहे बल्कि टी. वी. सिनेमा जेसे गलत साधनों की तरफ प्रेषित कर उनका और देश का भविष्य भी ख़राब कर रहे है
आप सोच रहे होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूँ
मैं सिर्फ यही पूछ रहा हूँ कि आज हमारे बच्चो को कौन संस्कार दे रहा है "माँ, दादीमा या फिर " सिनेमा " आप ही बताइए क्या आप जानते हैं देश कि 100 प्रतिशत जनता में से सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही भारतीय प्राचीन संस्कृति के बारे में जानते हैं और उसके अनुसार जीवन निर्वाह कर रहे है | किन्तु 90 प्रतिशत लोगो को तो पता ही नहीं कि भारतीय संस्कृति कितनी मूल्यवान है

हिन्दुस्तान में हिन्दू संस्कृति में सबसे अच्छी बात है यहाँ के रिश्ते नाते, परंपरा, अतिथि सत्कार कि परंपरा और सबसे अच्छी बात है यहाँ हिन्दू धर्म के "सोलह संस्कार" मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तक कुल सोलह संस्कार होते हैं जेसे गोद भराई, नामकरण संस्कार, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवित संस्कार, विवाह संस्कार एवं अंतिम संस्कार जेसे कई संस्कार मानव जीवन को संयमित एवं संस्कारित बनाते हैं जिससे उन्हें रिश्ते नाते और परंपरा का निर्वाह करते हुए मोक्ष कि प्राप्ति होती है| हिन्दुस्तान में आज भी सिर्फ 10 प्रतिशत लोगो को ही संस्कारों के बारे में पूर्ण ज्ञान हो सकता है जबकि 90 प्रतिशत लोगो को तो सोलह संस्कारों के नाम भी याद नहीं होंगे | वेसे विदेशो मैं तो संस्कृति का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि वहां तो 70 प्रतिशत बच्चो को तो ये भी नहीं पता कि उनके पिता कौन है क्योंकि वहां कि संस्कृति में रिश्ते नाते ज्यादा मायने नहीं रखते | हिन्दुस्तान में तो विवाह एक संस्कार है जो सात जन्मो के बंधन कि तरह मन जाता है जबकि विदेशो में तो शादी का ज्यादा महत्त्व नहीं है ज्यादा से ज्यादा सेक्स का license मात्र बनकर रह गया है अब आप ही सोचिये क्या ये हमारे देश के लिए विचारनीय बात नहीं है जब जन्म से ही माँ बाप आधुनिकता कि होड़ में अपने बच्चो को टी.वी. और सिनेमा से संस्कार दिलाएंगे तो फिर अब यदि आये दिन बलात्कार और हिंसा जेसी घटनाएं होती है, आये दिन अखबार में पढने को मिलता है कि




"बेटे ने माँ कि हत्या करी,
विवाहिता अपने प्रेमी के साथ फरार,
पिता ही करता रहा ३ साल तक बेटी का बलात्कार,
निठारी हत्याकांड,
घर के सबसे विश्वसनीय नोकर ने किया मालिक का खून,

नाजायज संबंधो के कारण पति ने कि पत्नी के हत्या"
इन सब ख़बरों का जिम्मेदार कौन है ??
जिन बच्चो को चड्डी पहनना ठीक से नहीं आता उन्हें सेक्स के बारे में सब कुछ पता है, क्यों ?

युवा वर्ग के कई बिगडेल बच्चे अपने ही घर के ओरतो को बुरी निग़ाहों से देखते हैं क्यों ?

अश्लीलता, असामाजिकता, परंपराविहीन संस्कृति, पाश्चात्य संस्कृति की नक़ल, हिंसा, दहेज़ हत्या, अराजकता आदि का जिम्मेदार कौन है ?

श्रीराम के भाई लक्ष्मण से जब उनकी भाभी के जेवर पहचानने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि भाभी तो माँ सामान है मैंने तो कभी अपनी भाभी जी मुख के दर्शन नहीं किये उनके चरणों में प्रणाम करता हूँ तो केवल उनके नुपुर को पहचान सकता हूँ |

क्या आज श्री राम जेसा पुत्र, सीता मैया जेसी पत्नी, और लक्ष्मण जेसा भाई किसी भी समाज में मिल सकता है ????

नहीं न ??

इन सब बातों पर मनन करने पर एक ही सवाल में इसका उत्तर छिपा है और वो है

"आज हमारे बच्चो को कौन संस्कार दे रहा है "माँ, दादीमा या फिर " सिनेमा ""

अब भी वक़्त है संभल जाओ पाश्चात्य संस्कृति से अगर कुछ ग्रहण करना है तो अच्छाइयां ग्रहण करो | नक़ल मत करो |






अपने बच्चो को दादीमाँ और माँ के संस्कार जरुर दिलवाइए
और वेसे भी जो माँ बाप बचपन में अपने बच्चों को हाथ पकड़ कर मंदिर ले जाते हैं वही बच्चे बुढ़ापे में माँ बाप को तीर्थ यात्रा करवाते हैं
लेकिन जो माँ बाप अपने बच्चों को बचपन में संस्कार देने कि बजाय होस्टल में रखवा देते हैं वही बच्चे बुढ़ापे में अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में दाल देते हैं.

function disabled

Old Post from Sanwariya