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मंगलवार, 15 जनवरी 2013

मक्खन के हनुमान

मक्खन के हनुमान
मक्खन के हनुमान के रूप में मौजूद है जलगांव में ऐतिहासिक हनुमान मंदिर

जलगांव शहरसे लगभग १५ किलोमीटर की दूरी पर रिधूर गांवमें हनुमानजी का ऐतिहासिक मंदिर देशभरमें अपने चमत्कार के रूपमे जाना जाता है।
रिधूर गांवके अवचित हनुमान मंदिर के रूपमे पेहचाने जानेवाले हनुमानजीके इस पुरातन मंदिर की यह विशेषता है की मंदिर मे आठ फु ट उची हनुमानजी
की मूर्ती किसी पाषाण या धातू से नही बनाई गयी । इस पुरातन मंदिर की ऐतिहासिक विशेषता ये है की आठ फुट उचे हनुमानजीको मख्खन व सिंदूरसे मूर्ती के रूपमे ढाला गया है। खास बात ये है की जलगांव जिलेकी ४५ डिग्री सेल्सीयस वाली गर्मीमे भी इस मूर्तीपर पिघलनेका कोइ परिणाम नही होता। जलगांव तहसीलके इस चम्तकारी देवस्थान को देखनेके लिए देशभरसे श्रध्दालूओका आगमन होता है। तापी नदी के किनारे बसे इस अवचित हनुमान मंदिर को स्थानिय मराठी भाषामे लोण्याचा मारोती के रुपमे उल्लेखीत किया जाता है। लगभग ९ हेक्टरके परिसर मे अवचित हनुमान मंदिर को सुशोभित किया गया है। मंदिर के निकटही एकादशी के मंदिर की भी स्थापना की गयी है।
अवचत हनुमान मंदिर के उपर श्रीराम, लक्ष्मण, व सीताजी का मंदिर भी बनाया गया है। इसके पीछेकी भावनाए है की हनुमानजी व्दारा राम, लक्ष्मण सीता को अपने कंधेपर बिठा रखा है।
अवचित हनुमान मंदिर के जिर्णोध्दार के समय बताये जाता है की एक श्रध्दालू २० फुट की उचाईसे निचे गिरगया ओैर बजरंग बलीके आर्शीवाद से उसे खरोच तक नही आयी।
मंदिर की विशेषताये बताते हुऐ जानकारी दि गयी की प्रति वर्ष हनुमान जयंती के अवसर पर मूर्तीको मख्खन व सिंदूर का लेप चढाते हुए भजन किर्तन , भंडारा आदी किया जाता है।
तदोप्रान्त हनुमान जयंतीके दिवस मूर्ती का साज सिंगार करते हुए पूजन किया जाता है। इस सारे अनुष्ठान को मंदिर के पूज्य माधवदास स्वामी व मतोश्री कौषल्यामाता व्दारा
पूर्ण किया जाता है।

गुरु मंत्र

गुरूजी ने अपने सर्वप्रिय शिष्य को गुरु मंत्र देते हुए कहा - " शिष्य इसे गोपनीय रखना, क्योंकि यह मन्त्र लोक मंगल और परमपद प्राप्ति की संजीवनी है। इसके पाठ से लोक-परलोक दोनों संवर जायेंगे। "


एक दिन गुरूजी ने देखा उनका वही सर्व प्रिय शिष्य उनके दिए गुरु मंत्र का अन्य विद्यार्थियों के साथ सामूहिक पाठ कर रहा था।यह देख गुरूजी ने क्रोधित हो कर कहा -
" यह क्या अनर्थ कर दिया ? गोपनीय मंत्र को उजागर करके तुमने पाप किया है। तुम नरक के भागी बनोगे। "

" ठीक है, लेकिन जिन्होंने इस मंत्र का पाठ किया है, उनका क्या होगा गुरुदेव, क्या वह सब भी नरक के भागी होंगे ? " शिष्य ने विनम्रता पूर्वक पूछा.
" नहीं वत्स, वे सब निसंदेह परमपद के अधिकारी होंगे। " गुरूजी ने बताया .
" गुरूजी, यदि मेरे कारण इतने व्यक्तियों को मोक्ष प्राप्त होगा, तब मुझे सहस्त्रों वर्ष तक नर्क में रहना सहर्ष स्वीकार है।" शिष्य ने प्रसन्नता पूर्वक कहा .

" मुझे तुम पर गर्व है वत्स। यदि तुम्हारे मन में ऐसी भावना है, तब तुम तो मोक्ष प्राप्ति के सर्वोच्च अधिकारी हो। " गुरूजी ने आनंद निमग्न होते हुए कहा।

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