जय श्री राम के उद्घोष के साथ अभिवादन करता है हमारा वाल्मीकि समाज ....
रितेश प्रज्ञांश भाई से साभार
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
गुजरात में एक बड़ी फैक्ट्री का निर्माण हो रहा था और उस प्लांट को बनाने के दौरान एक बड़ी समस्या थी.
वो *समस्या ये थी कि एक भारी भरकम मशीन को प्लांट में बने एक गहरे गढ्ढे के तल में बैठाना था लेकिन मशीन का भारी वजन एक चुनौती बन कर उभरा*.
*मशीन साईट पर आ तो गयी पर उसे 30 फीट गहरे गढ्ढे में कैसे उतारा जाये ये एक बड़ी समस्या थी* !! *अगर ठीक से नहीं बैठाया गया तो फाउंडेशन और मशीन दोनों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता*.
आपको बता दे कि ये वो समय था जब *बहुत भारी वजन उठाने वाली क्रेनें हर जगह उपलब्ध नहीं थीं*. जो थीं वो अगर उठा भी लेतीं तो *गहरे गढ्ढे में उतारना उनके बस की बात नहीं थी*.
आखिरकार हार मानकर इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए प्लांट बनाने वाली कम्पनी ने टेंडर निकाला और इस टेंडर का नतीज़ा ये हुआ कि बहुत से लोगो ने इस मशीन को गड्ढे में फिट करने के लिए अपने ऑफर भेजे *उन्होंने सोचा कि कहीं से बड़ी क्रेन मंगवा कर मशीन फिट करवा देंगे*. इस हिसाब से *उन्होंने 10 से 15 लाख रुपये काम पूरा करने के मांगे*. लेकिन उन लोगो के बीच एक *बनिया * था जिसने कंपनी से पूछा कि *अगर मशीन पानी से भीग जाये तो कोई समस्या होगी क्या* ?
इस पर कंपनी ने जबाव दिया कि *मशीन को पानी में भीग जाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता*.
उसके बाद उसने भी टेंडर भर दिया ।
जब सारे ऑफर्स देखे गये तो *उस बनिये ने काम करने के सिर्फ 5 लाख मांगे थे*, जाहिर है मशीन बैठाने का काम उसे मिल गया.
लेकिन *अजीब बात ये थी कि उस बनिये ने ये बताने से मना कर दिया कि वो ये काम कैसे करेगा, बस इतना बोला कि ये काम करने का हुनर और सही टीम उसके पास है*.
उसने कहा – *कम्पनी बस उसे तारीख और समय बताये कि किस दिन ये काम करना है*.
आखिर वो दिन आ ही गया. हर कोई उत्सुक था ये जानने के लिए कि *ये बनिया काम कैसे करेगा* ? उसने तो *साईट पर कोई तैयारी भी नहीं की थी*. तय समय पर कई ट्रक उस साईट पर पहुँचने लगे. *उन सभी ट्रकों पर बर्फ लदी थी, जो उन्होंने गढ्ढे में भरना शुरू कर दिया*.
जब बर्फ से पूरा गढ्ढा भर गया तो उन्होंने *मशीन को खिसकाकर बर्फ की सिल्लियों के ऊपर लगा दिया*.
इसके बाद एक पोर्टेबल वाटर पंप चालू किया गया और गढ्ढे में पाइप डाल दिया जिससे कि पानी बाहर निकाला जा सके. *बर्फ पिघलती गयी, पानी बाहर निकाला जाता रहा, मशीन नीचे जाने लगी*.
4-5 घंटे में ही काम पूरा हो गया और *कुल खर्चा 1 लाख रुपये से भी कम आया*.
*मशीन एकदम अच्छे से फिट हो गयी* और उस *बनिये ने 4 लाख रुपये से अधिक मुनाफा भी कमा लिया*.
वास्तव में बिज़नेस बड़ा ही रोचक विषय है.
*ये एक कला है, जो व्यक्ति की सूझबूझ, चतुराई और व्यवहारिक समझ पर निर्भर करता है*.
*मुश्किल से मुश्किल समस्याओं का भी सरल समाधान खोजना ही एक अच्छे बिजनेसमैन की पहचान है* ,'और ये बनिया ने साबित कर दिया कि बनिये की सोच सबसे अलग और आगे रहती है।
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गुजरात के परिणाम पर ध्यान दिया जाय तो उस पर अशोक गहलोत की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है ,लेकिन यकीन मानिए काँग्रेस की बढ़ी सीटों का श्रेय अशोक जी को कदापि नहीं मिलेगा . काँग्रेस में श्रेय सिर्फ गाँधी परिवार को ही मिल सकता है और हार का ठीकरा हमेशा दूसरों के सर ही फूटता है .
भाजपा जीत तो गई और जीत जीत ही होती है लेकिन इस जीत के हार में चिंताओं के कांटे भी पिरोए हुए हैं .कुछ तो मोदी जी का चमत्कार गुजरात को बचा लाया और कुछ सहारा मौखिक बवासीर से ग्रस्त काँग्रेस नेताओं ने दे डाला वरना इस बार भाजपा को शर्म का सामना करना पड़ सकता था .
यह भी स्पष्ट हो रहा है कि मात्र विकास के बल पर ही वोट प्राप्त नहीं हो सकते इस के लिए जातियों को भी मैनेज करना होता है ,अपने परम्परागत वोटर्स की आस्थाओं को भी सहलाना पड़ता है और उन के साथ खड़े होना भी दिखाना होता है .अपनी छबि को बदलने का प्रयत्न नुकसान पहुँचा सकता है भाजपा को यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि भाजपा को लोग उस की हिन्दुत्ववादी नीतियों के कारण पसन्द करते हैं . हिन्दुत्व की पटरी से किंचित् भी इधर उधर होने का संकेत जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती .
काँग्रेस ने सॉफ्ट हिन्दुत्व का जो ढोंग किया उस से भी उस को कुछ लाभ हुआ इस परिवर्तन को इस दृष्टि से देखा जाना चाहिए कि यदि हिन्दू समाज एकजुटता दिखाए तो काँग्रेस हिन्दुत्व की तरफ झुकने को विवश होगी इस में कोई सन्देह नहीं . यह भी हिन्दुत्व की जीत है .
गुजरात में अब जो भी सरकार बने उसे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों का अनुसरण करना होगा तब ही 2019 की राह आसान हो पाएगी अन्यथा आगे की राह काफ़ी काँटों भरी प्रतीत हो रही है .
अब बात आती है हिन्दू समाज की तो मुझे तो निराशा ही हो रही है . गुजराती अपना गला काटने ही जा रहे थे .यह तो भला हो मणिशंकर के घर की बैठक का जिस में पाकिस्तानियों को ' ब्रह्म भोज ' कराने की बात लीक हो गई और गुजराती हिन्दू थोड़े संभल गए वरना सरदार वल्लभ भाई पटेल के गुजरात में अहमद पटेल का परचम लहराता और फिर गुजराती हिन्दुओं के कस बल जम कर ढीले किये जाते .ढोंगियों के तिलक लगाने और वक्ती तौर पर मन्दिरों के दौरे करने से प्रभावित होने वाला हिन्दू समाज अब भी राजनैतिक रूप से इतना परिपक्व नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए .