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सोमवार, 18 दिसंबर 2017

भाजपा जीत तो गई और जीत जीत ही होती

गुजरात के परिणाम पर ध्यान दिया जाय तो उस पर अशोक गहलोत की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है ,लेकिन यकीन मानिए काँग्रेस की बढ़ी सीटों का श्रेय अशोक जी को कदापि नहीं मिलेगा . काँग्रेस में श्रेय सिर्फ गाँधी परिवार को ही मिल सकता है और हार का ठीकरा हमेशा दूसरों के सर ही फूटता है .
भाजपा जीत तो गई और जीत जीत ही होती है लेकिन इस जीत के हार में चिंताओं के कांटे भी पिरोए हुए हैं .कुछ तो मोदी जी का चमत्कार गुजरात को बचा लाया और कुछ सहारा मौखिक बवासीर से ग्रस्त काँग्रेस नेताओं ने दे डाला वरना इस बार भाजपा को शर्म का सामना करना पड़ सकता था .
यह भी स्पष्ट हो रहा है कि मात्र विकास के बल पर ही वोट प्राप्त नहीं हो सकते इस के लिए जातियों को भी मैनेज करना होता है ,अपने परम्परागत वोटर्स की आस्थाओं को भी सहलाना पड़ता है और उन के साथ खड़े होना भी दिखाना होता है .अपनी छबि को बदलने का प्रयत्न नुकसान पहुँचा सकता है भाजपा को यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि भाजपा को लोग उस की हिन्दुत्ववादी नीतियों के कारण पसन्द करते हैं . हिन्दुत्व की पटरी से किंचित् भी इधर उधर होने का संकेत जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती .
काँग्रेस ने सॉफ्ट हिन्दुत्व का जो ढोंग किया उस से भी उस को कुछ लाभ हुआ इस परिवर्तन को इस दृष्टि से देखा जाना चाहिए कि यदि हिन्दू समाज एकजुटता दिखाए तो काँग्रेस हिन्दुत्व की तरफ झुकने को विवश होगी इस में कोई सन्देह नहीं . यह भी हिन्दुत्व की जीत है .
गुजरात में अब जो भी सरकार बने उसे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों का अनुसरण करना होगा तब ही 2019 की राह आसान हो पाएगी अन्यथा आगे की राह काफ़ी काँटों भरी प्रतीत हो रही है .
अब बात आती है हिन्दू समाज की तो मुझे तो निराशा ही हो रही है . गुजराती अपना गला काटने ही जा रहे थे .यह तो भला हो मणिशंकर के घर की बैठक का जिस में पाकिस्तानियों को ' ब्रह्म भोज ' कराने की बात लीक हो गई और गुजराती हिन्दू थोड़े संभल गए वरना सरदार वल्लभ भाई पटेल के गुजरात में अहमद पटेल का परचम लहराता और फिर गुजराती हिन्दुओं के कस बल जम कर ढीले किये जाते .ढोंगियों के तिलक लगाने और वक्ती तौर पर मन्दिरों के दौरे करने से प्रभावित होने वाला हिन्दू समाज अब भी राजनैतिक रूप से इतना परिपक्व नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए .

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