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रविवार, 13 जून 2021

वरिष्ठ नागरिकों के लिए केंद्र सरकार का वरदान - चिकित्सा परामर्श पूरी तरह से निःशुल्क

*वरिष्ठ नागरिकों के लिए केंद्र सरकार का वरदान - चिकित्सा परामर्श पूरी तरह से निःशुल्क*
केंद्र सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों और अन्य सभी नागरिकों के लिए एक उत्कृष्ट परामर्श योजना शुरू की है।
बुजुर्ग लोग, विशेष रूप से उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि वाले लोग ओपीडी के लिए अस्पताल नहीं जाते हैं। वे सिर दर्द, शारीरिक दर्द जैसी छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज घर पर ही करवाते हैं और अस्पताल जाने को तैयार नहीं होते।

अब आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से Google Chrome पर परामर्श और उपचार प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान दें:
*1*. रोगी पंजीकरण का चयन करें।

*2*. अपना मोबाइल नंबर टाइप करें। रजिस्ट्रेशन के लिए मोबाइल पर ओटीपी टाइप करें।

*3*. रोगी विवरण और जिला दर्ज करें। अब, आप ऑनलाइन डॉक्टर से जुड़ेंगे। उसके बाद आप वीडियो के माध्यम से अपनी किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। डॉक्टर ऑनलाइन दवा लिखेंगे। आप दवा को मेडिकल फार्मेसी की दुकान में दिखाकर ले सकते हैं।

*यह सेवा पूर्णतः निःशुल्क है।*
                                      
आप इस सेवा का उपयोग रविवार सहित प्रतिदिन सुबह 10.00 बजे से दोपहर 3.00 बजे तक कर सकते हैं।

कृपया इसे अपनी संपर्क सूची में वरिष्ठ नागरिकों को भेजें।

यह है केंद्र सरकार की वेबसाइट:

*https: //www.eSanjeevaniopd.in*

 https://play.google.com/store/apps/details?id=in.hied.esanjeevaniopd


दोस्तों यह वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक शानदार कदम है....
कृपया लाभ उठाएं और इसे उन सभी वरिष्ठ नागरिकों को अग्रेषित करें जिन्हें आप जानते हैं।
🙏🙏

स्वास्तिक एवं मूर्तियो वाली मस्जिद

.स्वास्तिक एवं मूर्तियो वाली मस्जिद 


जो तस्वीरे आप देख रहे है, सरकारी रिकॉर्ड में यह " ढाई दिन का झोपड़ा" नाम की मस्जिद है । 
जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने मात्र ढाई दिन में करवाया , ऐसी कोरी गप्प भी गढ़ रखी है ।।

इस मंदिर प्रांगण को गौर से देखे, क्या इसके पत्थर की सज्जा का कार्य ढाई दिन में हो सकता है ? संभव है की ऐसे महान मंदिरो के निर्माण में 250 वर्ष लग गए हो, ढाई 3 पीढ़ी खपाकर यह मंदिर बना हो, ओर उसे ढाई दिन में तोड़कर नाम रख दिया गया, ढाई दिन का झोपड़ा ...

चौहान राजा विग्रहराज चौहान चतुर्थ ने इस गुरुकुल मंदिर का निर्माण करवाया था । मूर्तियां स्वस्तिक शिलालेख आज तक है ।

कोरी गप्प इतिहास कि पुस्तकों में लिख देने से सत्य नहीं बदलता,हमारी हर कृति मन्दिर स्वत: खुद प्रमाण है 
स्कैनिंग कि भी जरूरत नहीं पड़ेगी।।

हर हर महादेव 🚩
 ✍️💥🚨💥🚨💥🚨🤷🏻‍♂️

गुरुवार, 10 जून 2021

9 जून -बलिदान दिवस - बन्दा बैरागी का बलिदान दिवस

महान बलिदानी- बंदा बैरागी

9 जून/बलिदान-दिवस

आज बन्दा बैरागी का बलिदान दिवस है।

इस लेख के माध्यम से जाने बंदा बैरागी के अमर बलिदान की गाथा।

बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।

बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।

काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?

बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।

बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।

बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये।

बंदा बैरागी जैसे महान वीरों ने हमारे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। खेदजनक बात यह है कि उनकी बलिदान से आज की हमारी युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है कि जिन जिन महापुरुषों से हम प्रेरणा ले सके उनके नाम तक विस्मृत कर दिए जाये। इस लेख को इतना शेयर कीजिये कि भारत का बच्चा बच्चा बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा ले सके।

बुत का अर्थ मूर्ति है।फ़ारसी में यह शब्द बुद्ध का पर्याय है।

बुत का अर्थ मूर्ति है।
फ़ारसी में यह शब्द बुद्ध का पर्याय है।


हमें लगता है कि भारत से निकलकर बौद्ध मत चीन जापान की तरफ फैला जबकि सच्चाई यह है कि भारत के पश्चिम में इसका प्रभाव उससे कई कई गुना था।
बौद्ध धर्म का अरब जगत में बहुत प्रभाव था। वहाँ हरेक जगह बुद्ध की इतनी मूर्तियां थीं कि वहाँ मूर्ति का पर्याय ही बुद्ध बन गया।
जैसे हाल ही में बामियान (अफगानिस्तान में)  बुद्ध की विशाल मूर्तियां थीं जिन्हें तालिबान आतंकवादियों ने तोप से उड़ा दिया।
इस्लाम के उदय और प्रसार में बौद्ध बहुत बड़ी बाधा थे। बौद्धों की मूर्ति पूजा से चिढ़कर ही #बुतशिकन की अवधारणा गढ़ी गई।
बुतपरस्त अर्थात बुद्ध की भक्ति/ आस्था और बुतशिकन अर्थात बुद्ध को तोड़ना या तहस नहस करना।
बाद में इतिहास लेखकों ने चाहे जो गोलमाल लिखा हो लेकिन इस्लाम का हथौड़ा सर्वाधिक बौद्धियों पर ही चला और जमकर मूर्तियां तोड़ी गईं। अच्छा सच्चा मुसलमान बनने की पहली शर्त ही यह हो गई कि वह कितनी मूर्तियां तोड़ता है। यह आज भी जारी है। रेगिस्तान में दबी कई मूर्तियों को अब भी खोजकर तोड़ा जाता है।
भारत में मूर्तिकला की दो शैलियाँ हैं 1.गांधार शैली और 2.मथुरा शैली।
दोनों का ही सम्बन्ध बुद्ध की मूर्तियों से है।
आज नवबौद्ध चर्च और वामपंथियों के प्रभाव में जो बौद्ध-मुस्लिम एकता की बातें करते हैं उन्हें यह तथ्य अवश्य जानना चाहिए कि किसने किसको मारा था।
तथ्य यह भी है कि भारत पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण 712 ईसवी में जो मुहम्मद बिन कासिम ने किया, उससे पहले वे कई हमलों में भयंकर मार खाकर लौट चुके थे और तब वहां के बौद्ध भिक्षुओं ने राजधानी ब्रह्मनाबाद के वे सारे गुप्त रहस्य कासिम को पहले ही बता दिए थे, जिनमें एक गुप्त झरना भी था जिससे राजधानी को पानी की आपूर्ति होती थी। इसके अलावा बहुत सारे मुस्लिम सैनिक दिन के समय बौद्ध भिक्षुओं के वेश में नगर में प्रविष्ट हो चुके थे क्योंकि भिक्षुओं की सर्वत्र निर्बाध एंट्री थी।
इस प्रकार परिवार सहित दाहिरसेन का बलिदान हुआ और नगर जीतने के बाद शेष बचे सभी पुरुषों को, जिनके निचले बाल उग चुके थे उन सबको पंक्ति बनाकर कत्लेआम किया गया और शेष महिलाओं, बच्चों को भेड़ बकरी की तरह हांक कर बगदाद की मंडियों में गुलामों के रूप में बेचा गया। 30हजार से अधिक पुरुषों को मारा गया और दो लाख महिलाओं बच्चों को गुलाम के रूप में बेचा गया।
सिंध में फैले बौद्ध मठों के भिक्षु  वहाँ से उठा लिए गए और बुखारा की मस्जिदों में झाड़ू लगाते हुए पाए गए।
#ks_कुमार

शिखा (चोटी) का वैज्ञानिक महत्त्व

शिखा (चोटी) का वैज्ञानिक महत्त्व 

हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत,छोटी- से- छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती हैं। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याण का त्याग करना हैं। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता है। शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।

'हरिवंश पुराण' में एक कथा आती है हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजासगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया।

प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृति की रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।

डा॰ हाय्वमन कहते है-''मैने कई वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया हैं, यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं, जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं। उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती हैं। सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं। मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ।

"प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं" मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा के लिये ऋषि- मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।

"इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं की "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं। "वास्तव में मानव- शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं।

शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा है मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात् शिरासन्धि सन्निपातो।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सद्यो मरणम्।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त (भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता हैं। यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं (सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)

सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों- कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों- हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों- की शक्ति बढ़ती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी । मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है। अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं।

शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं- 
१ शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्‌बुद्धि, सद्‌विचारादि की प्राप्ति होती हैं।
२ आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।
३ मनुष्य धार्मिक, सात्विक व संयमी बना रहता हैं।
४ लौकिक- पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।
५ सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
६ सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।
७ नेत्रज्योति सुरक्षित रहती हैं।

इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं।

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