****** शीतला माता ******
( माघ शुक्ल षष्ठी/ व्रत)
माघ माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी (छठी) तिथि को शीतला षष्ठी का व्रत किया जाता है। माता शीतला का पर्व किसी न किसी रूप में देश के हर कोने में होता है। कोई माघ शुक्ल की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी, कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई श्रावण मास की सप्तमी को शीतला माता का पूजना और व्रत रखता है।
शीतला षष्ठी के दिन किया जाने वाला शीतला माता का व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए होता है। शीताला माता की पूजा आराधना से घर में शान्ति बनी रहती है। इससे दैहिक और मानसिक संताप मिट जाते हैं।
शीतला षष्ठी के दिन यदि कोई महिला संतान सुख की कामना कर पूरे विधि-विधान से शीतला माता का व्रत करती है, तो शीतला माता के आशीर्वाद से वह संतान प्राप्त करती है। ऐसी भी मान्यता है कि जब छोटे बच्चों को दाने निकल आते हैं, तो घर के बड़े-बुजुर्ग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं। शीतला माता को शान्त और प्रसन्न करने के लिए भी इस व्रत को किया जाता है।
इस व्रत में महिला प्रातः काल उठकर ठंडे पानी से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है। रात का रखा बासी भोजन ही करती है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है बल्कि चूल्हे की पूजा की जाती है। माता शीतला को शीतल चीजें पसंद हैं इसलिए उन्हें भी ठंडा भोग ही लगाया जाता है। शीतला माता की विधिवत् पूजा करने के पश्चात शीतला षष्ठी की कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए।
जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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रविवार, 6 फ़रवरी 2022
शीतला माता - माघ शुक्ल षष्ठी/ व्रत
मैं बिल्कुल नहीं कहता के आप किसे वोट दें
प्रासंगिक...
छमा मांगते हुवे कहूंगा कि, राष्ट्र के बड़े राज्य सहित कुल 5 राज्यों में चुनाव है । चुनाव व राजनीति से हम अलगाव नहीं रख सकते । सजग जागरूक मतदाता लोकतंत्र का प्रहरी है, स्वस्थ मतदान हमारे जीवन को असर करता पहलू है ।
जिन लोगों को राजनीतिक विचारधारा की सामग्री से आपत्ति हो, उनसे पूरी विनम्रता से आग्रह कि ये मात्र आपके सोच को परिपक्व करने मात्र का प्रयास भर है - चर्चा मात्र है । मतदान में भागीदारी निभाना भी राष्ट्र आराधना है, लोकतंत्र को जीवित रखने की बेहद जरूरी कड़ी । हाँ, निर्णय हमेशा आपका अपना !!
मैं बिल्कुल नहीं कहता के आप किसे वोट दें....
ये निर्णय पूरी तरह आपका अपना हो !!
अपना भला बुरा आप खुद समझें...
लेकिन .....
◆आपकी दुकान, व्यापार पर कोई गुंडा हफ्ता वसूलने न आये.....
●आपकी बेटी किसी भैंसा पकाने वाले की बेग़म न बने
◆आपकी बहन को कॉलेज के बाहर खड़े रोमियो छेड़े न उसका दुपट्टा न खिंचे
◆आपके बेटे का अपहरण न हो जिसे आप किसी माननीय के जरिये फिरौती दे छुड़ाएं
◆आपके पाई पाई जोड़ खरीदे उस प्लॉट पर कोई कब्ज़ा न जमाये जिसे बेच आप बिटिया के ब्याह का सपना संजोये हैं
◆आपके मकान का कोई किराएदार किसी नेता के सहारे आपको ही बेघर न कर दे....
◆किसी समारोह में आप किसी अनजान अवैध हथियार की गोली से न मरें
◆आपका घर दंगों में न जले
◆आपके बेटे कहीं उन्मादी भीड़ द्वारा बर्बर मौत न मारे जाएं...
वोट देने से पहले इन पहलुओं पर विचार करके वोट दें ।
बाकी जीवन आपका..... वोट आपका....... निर्णय आपका!
महान सनातन योद्धा सम्राट मिहिर भोज.... जिनसे खौफ खाते थे अरब के 8 मुस्लिम खलीफा
महान सनातन योद्धा सम्राट मिहिर भोज.... जिनसे खौफ खाते थे अरब के 8 मुस्लिम खलीफा
- सम्राट मिहिर भोज के राष्ट्रवादी मार्ग पर चले... नमाजवादियों को नहीं... भगवाप्रेमियों को चुनें
- 836 ईस्वी से 885 ईस्वी तक सम्राट मिहिर भोज का शासन रहा... इस कालखंड में बगदाद के अंदर 8 खलीफा आए और गए और हर खलीफा यही ख्वाब देखते देखते अल्लाह को प्यारा हो गया कि महान हिंदू सम्राट मिहिर भोज को किसी तरह हिंदुस्तान की जमीन से हटा दें... लेकिन मां भारती के महान सुपुत्र सम्राट मिहिर भोज का प्रताप इतनी तेजी से फैला कि अफगानिस्तान से लेकर बगदाद तक फैली अरब के खलीफाओं की सत्ता हिल गई... खलीफाओं के खिलाफ ही विद्रोह हो गए
-खौफ के मारे अरब के यात्री सुलेमान ने अपनी किताब सिलसिला-उत-तारिका में लिखा कि सम्राट मिहिरभोज के पास उंटों, घोड़ों और हाथियों की बड़ी विशाल और सर्वश्रेष्ठ सेना है... उनके राज्य में व्यापार सोने और चांदी के सिक्कों से होता है. .. और इनके शासन में चोरों डाकुओं का भय नहीं है
-सम्राट मिहिर भोज के कालखंड में आए अब्बासी 8 खलीफाओं के नाम निम्नलिखित हैं...
1- मौतसिम (833 से 842 ई०)
2- वासिक (842 से 847 ई०)
3- मुतवक्कल (847 से 861 ई०)
4- मुन्तशिर (861 से 862 ई०)
5- मुस्तईन (862 से 866 ई०)
6- मुहताज (866 से 869 ई०)
7- मुहतदी (869 से 870 ई०)
8- मौतमिद (870 से 892 ई०)
- ये 8 खलीफा अपने संपूर्ण शासन काल में महाप्रतापी सम्राट मिहिर भोज से सीधे शत्रुता मानते रहे । 672 ईस्वी में अरब सेनापति मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध की जमीन पर अरब मुसलमानों की जड़ें जमा दी थीं... लेकिन मिहिर भोज सिंध को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले आए
-सिंध के आगे खलीफा के पांव भारत के अंदर नहीं जम पा रहे थे क्योंकि भारत में तब उत्तर भारत के विशाल हिस्से पर सम्राट मिहिर भोज का शासन था
- सम्राट की सेनाओं ने सिंध में कई युद्ध करके अरब की इस्लामी सेनाओं को पछाड़ दिया और सिंध नदी के पश्चिमी क्षेत्रों पर भी अधिकार स्थापित किया
- धौलपुर के सामन्त चन्द्र महासेन चौहान के 842 ई० के एक लेख में ये स्पष्ट किया गया है कि सम्राट मिहिर भोज ने म्लेच्छों को अपने आधीन करके अर्थात उन पर अपना नियन्त्रण स्थापित करके उनसे कर वसूल किया था ।
(नोट- कई मित्रों ने 9990521782 मोबाइल नंबर दिलीप नाम से सेव किया है लेकिन मिस्ड कॉल नहीं की... लेख के लिए मिस्ड कॉल और नंबर सेव... दोनों काम करने होंगे क्योंकि मैं ब्रॉडकास्ट लिस्ट से मैसेज भेजता हूं जिन्होंने नंबर सेव नहीं किया होगा उनको लेख नहीं मिलते होंगे.. जिनको लेख मिलते हैं वो मिस्डकॉल ना करें प्रार्थना)
-उस वक्त तक अफगानिस्तान में हिंदू ब्राह्मण राजाओं का शासन था.. लेकिन तब खलीफाओं ने उनको गुलाम बना लिया था... जब सिंध से मिहिर भोज का प्रताप फैला और अफगान हिंदू राजाओं को सपोर्ट मिला तो अफगान के हिंदू राजा ललिया देव (850-870) ने विद्रोह कर दिया और अरब के खलीफा से मुक्ति हासिल की
- सम्राट मिहिर भोज के सहयोग से निरन्तर हिंदू राजाओं ने अरब आक्रान्ताओं को देश से बाहर खदेड़ दिया
-सम्राट मिहिर भोज विष्णु के अनन्य भक्त थे इसीलिए उन्होने आदिवराह की उपाधि ली थी उनकी तलवार धरती पर बोझ बने अरब मलेच्छों के लिए साक्षात मृत्यु थी
-लेख के माध्यम से मेरी अपील है कि सम्राट मिहिर भोज के आदर्शों पर चलते हुए नमाजवादियों को नहीं राष्ट्रवादियों को चुनें
धन्यवाद
भारत माता की जय
वंदेमातरम
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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022
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