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रविवार, 1 जनवरी 2023

1 जनवरी से अपनी टीम में बहुत बड़ा परिवर्तन होंगा। सर्दी का मौसम है गलत तो बढ़ ही रही है *जलन* भी बढ़ने वाली है😄

*हम गुर्जर सम्राट मिहिरभोज को गुर्जर सम्राट मिहिरभोज न कहे तो क्या कहे⁉️*

*हमारे कहने का कारण भी जान लीजिए👇*

हम केवल हिंदू हिंदू करते रह जाते है और कुछ अराजक तत्व गद्दारों के षड्यंत्रों में फसकर उन्हे अपनी जाति का बता देते है और वास्तविक जाति वाले लोगो को गालियां देते है। अब तो महापुरुषो को तो छोड़िए अब तो भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री देवनारायण पर भी विवाद होने लग गया है।

वो अराजक तत्व हम हिंदुओ के गुर्जर, जाट, यादव/अहीर, मराठा जैसे क्षत्रिय समाजों और ब्राह्मणों तथा भीलों, आदिवासियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए है उन्हे लगता है जितने भी शासक, सेनापति और योद्धा हुए वो उनकी ही एक से है उन्हे यह गलतफहमी इसलिए है क्योंकि वो मानते है कि क्षत्रिय केवल एक जाति है एक जाति के लोग ही क्षत्रिय होते है और सभी शासक, सेनापति और योद्धा क्षत्रिय होने के नाते उनकी जाति के ही है।
*पहले ही अंग्रेजो ने सबका इतिहास मिटाया फिर कांग्रेस और वामपंथियो ने मिटाया और इतिहास में आक्रांताओं चाहे वो मुगल हो या अंग्रेज हो उनको तथा उनसे समझौते/संधि करने वाले राजे रजवाड़ों/छोटे मोटे शासकों को ही महान बताया फिर रही सही कसर आरक्षण वाली व्यवस्था ने पूरी करदी।*

इधर हम और आप जैसे लोग हिंदू हिन्दू करके बड़े मुश्किल से एक एक व्यक्ति को हिंदुत्व से जोड़ते है और वो गद्दार लोग(वामपंथी) हम हिंदुओ के कुछ असाजिक तत्वों को मध्यम बनाकर एक ही झटके में हमारे हिंदू समाज के बड़े बड़े वर्गो को हिंदुत्व से दूर कर देते है उन्हे अलग मत/पंथ/समुदाय बना देते है या फिर वामपंथ की ओर धकेल देते है जैसे की..






🛑👉सिख जैन बौद्ध को हिंदुओ से दूर किया गया जबकि यह सब भी तो हिंदू ही थे और है।

🛑👉इसी तरह कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग करने का प्रयास किया गया था

🛑👉दलितों पिछड़ों को अलग करने का प्रयास तो जगजाहिर है(जय मिम भीम वाला षड्यंत्र)

🛑👉इसी तरह UP में यादवों को हिंदुत्व से दूर करके मुस्लिम यादव गठबंधन बनाने का प्रयास किया कुछ हद तक वो सफल भी हुए

*उदाहरण बहुत है पर हमे हिंदुओ के सभी मत पंथ जातियों समुदायो को सनातन धर्म से हिंदुत्व से जोड़े रखने के लिए सबका सम्मान करना होंगा केवल हिंदू हिंदू करने से काम नहीं चलेगा*

*हिंदुओ को तोड़ने वाले षड्यंत्रों को रोकने ले लिए हमे हिंदुओ के सभी मत पंथ जाति समुदायों में हुए महापुरुषो, योद्धाओं, संतो का भी सम्मान करना पडेंगा ताकि वो जाति समाज उनसे प्रेरणा लेकर हिंदुत्व से जुड़ी रहे क्योंकि जितने भी महापुरुष हुए चाहे वो किसी भी जाति से हो उन्होंने पूरे देश धर्म के लिए योगदान दिया है। सभी जाति समाज वर्ग उनसे प्रेरणा लेंगे तो वो भी पूरे देश और धर्म का भला सोचेंगे और धर्म राष्ट्रहित में कार्य करेंगे और गद्दार उन्हे हिंदुत्व से दूर नहीं कर पाएंगा*

हम यह बात आपको राणा पूंजा भील के उदाहरण से समझाते है👇

हम राणा पूंजा भील को राणा पूंजा भील न कहकर उन्हे *राणा पूंजा हिंदू* कहेंगे तो हम और आप हिंदू हिंदू करते रह जायेगे और कोई अन्य जाति का अराजक तत्व गद्दारों के षड्यंत्र में फसकर पूंजा भील को अपनी जाति का बताएगा जिससे भीलों की भावनाए तो आहत होंगी ही साथ ही फिर विवाद होंगा और विवाद के डर से सोसल मीडिया पर अपने आपको कट्टर हिंदू कहने वाले लोग चुप हो जायेगे और भील अकेले कहते रह जाएंगे पूंजा भील थे भील थे और कुछ लोग तो भीलों को ही जातिवादी घोषित कर देंगे की चुप रहो हिंदू बोलो फिर इस स्थिति का लाभ उठाने गद्दार वामपंथी और जिहादी आते है भीलों को भड़काने की देखो तुम अपने अपने आपको हिंदू कहते हो हिंदू हिंदू करते हो अब तुम्हारा साथ देने कौन हिंदू आया

*अब आप सोचिए जब भीलों का इतिहास चोरी हो जायेगा तो वो नाराज तो होंगे ही साथ ही जो जागरूक दूरदर्शी भील है उन्हे भी अपने अन्य भील भाईयो को धर्म से हिंदुत्व से जोड़े रखने के लिए भील महापुरुषों की आवश्यकता पड़ेंगी की देखो ये आपके पूर्वज इतने महान है आप इनके वंशज है इनसे प्रेरणा लो पर भीलों के पास कुछ नहीं रहेगा ही नही सब चोरी कर लिया जाएगा एम तो वो हिंदुत्व से दूर होंगे की नहीं?*

और यदि उनका इतिहास चोरी नहीं होंगा तो वो भील भी उन महापुरूषों की तरह अपने धर्म और राष्ट्र के लिए तत्पर होंगे वामपंथियों के जिहादियों के बहकावे में नहीं आयेगे।

*अब आप सोचिए आपको कुछ लोगो के नाराज होने के कारण या आपको उनसे डर लगता है इस कारण आप राणा पूंजा भील को भील नहीं बोलेंगे तो हिंदू समाज का बहुत बड़ा हिस्सा भील आदिवासी समाज हिंदुओ से दूर होंगा की नहीं* कुछ लोगो के चक्कर में देश को बहुत बड़ी आबादी हम हिंदुओ से दूर होंगी की नही⁉️

*महापुरुष हर जाति/समाज में होते है हमे उन सबका सम्मान करना चाहिए किसी जाति विशेष से ईर्ष्या के चलते उनके धर्म और राष्ट्र के लिए किए गए योगदान को न भूले।*

*भारत के दुश्मन हम हिंदुओ को जातियों बाटकर करके तोड़ने में लगे हुए है किंतु हमे हर जाति के महापुरुषों जिनका योगदान धर्म और राष्ट्र के लिए था उनका सम्मान करना और हिंदुओ की सभी जातियों वर्गो मत पंथों को हिंदुत्व की मुख्य धारा में जोड़े रखना।*


*PM अटल जी हो उत्तराखंड के CM रावत जी हो या केंद्र के बड़े बड़े मंत्री गुर्जर नाम से मूर्ति का पहले अनावरण कर चुके है..*

*pm मोदी जी भी ग्रेटर नोडया में गुर्जर गैलरी का उद्घाटन कर चुके है जिसमे सम्राट की मूर्ति भी है उन्हे किसी के नाराज होने की चिंता नहीं फिर आपको क्यों?*

*क्या ये pm cm मंत्री अपनी अपनी जातियों का गुणगान कर रहे थे⁉️* उत्तर है नहीं उनका उद्देश्य था सबको जोड़ना सभी जातियों का सम्मान करना इसलिए वो दलित हो आदिवासी हो या कोई अन्य वर्ग हो सबका सम्मान करते है।

*मिहिरभोज के शासन काल के सिक्को में भी गुर्जर ही लिखा था जो आज जयपुर संग्रहालय में स्थित है.. शिलालेखों और ताम्रपत्रो में भी यही है* और वोही हमने वोही लिख दिया तो आपको आपत्ति हो रही है अपने तो कोई छेड़छाड़ नहीं की जैसा था वैसा ही लिखा

पर क्या है कुछ लोग अभी भी मानसिक रूप से गुलाम है.. उन्हे मुगल याद रहे मुगलों से रिश्ते बनाने वाले याद रहे, सत्ता में बने रहने के लिए अंग्रेजो से संधिया करने वाले भी याद रहे 

पर जिन गुर्जर शासको ने सदियों से कट्टर इस्लामिक की आंधी से भारत को बचाया और सत्ता से बाहर होने के बाद भी जिन गुर्जरों ने धर्म और राष्ट्र रक्षा के लिए आजादी तक संघर्ष किया उन्हे भूल गए।

कल सनातन धर्म रक्षक महान गुर्जर सम्राट मिहिरभोज जिन्हे विष्णु भगवान के आदिवराह की उपाधि मिली जिनको अरब इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु मानते थे यदि वो न होते तो 12वी सदी से पहले ही भारत पर इस्लाम का कब्जा हो जाता हो सकता था हम आज होते ही नही या आज जिस तरह सेक्युलर लोग मुगलों की मजारों पर जाते है वो अरबो की मजारों पर भी जा रहे होते पर 36 लाख की विशाल सेना वाले शक्तिशाली सम्राट जिन्होंने भारत को सुरक्षित रखा धर्म की रक्षा की उनकी जयंती थी। पर कई लोगो ने उनकी जयंती पर उन्हें याद करना भी उचित नहीं समझा केवल वो गुर्जर थे इसलिए क्या आप गुर्जरों को हिंदू नहीं मानते।

आप गुर्जर को गुर्जर कहने वालो को टोकते हो पर गुर्जर को दूसरी जाति का बताने वाले और गुर्जरों को गालियां देने वालो को क्यों नहीं रोकते

एक ओर उदाहरण👇
*गुर्जर* सम्राट मिहिरभोज
सरदार वल्लभ भाई *पटेल*
नरेंद्र *मोदी*
राणा पूंजा *भील*
क्या *गुर्जर, पटेल, मोदी, भील* हिंदू नही है..
नाम में भी आप लोग जाती खोज लेते हो यदि ऐसा है तो पहले pm अटल जी ने गुर्जर सम्राट की जो मूर्ति अक्षरधाम मंदिर में है उसमे से गुर्जर मिटा दो, pm मोदी ने नोएडा में गुर्जर गैलरी का उद्घाटन किया था उसमे से गुर्जर मिटा दो। शीला लेखों में से गुर्जर मिटा दो

जो जिस नाम से जाना जाता है हम उसे उसी नाम से लिखते है न की इस तरह लिखे की *पूंजा हिंदू, नरेंद्र हिंदू, सरदार हिंदू, हिंदू मिहिरभोज*


*हमे अब बहस नहीं चाहिए आप सहमत न हो तो left लेलो नहीं तो यदि अब भी किसी ने बहस की तो हम remove करेंगे हमे कार्य करना है न की बहस में उलझे रहना*
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आजकल के सोसल मीडिया के कट्टर *शेर*

यह बात नहीं समझ सकते क्योंकि भोटी(मंदबुद्धि) बुद्धि वाले लोग केवल दो बाते जानते है *पहली👉 हिंदू हिंदू करते रहो* *दूसरी👉 जेहादी मुल्लो के विरुद्ध बोलते रहो गालियां देते रहो*

इन दो के अलावा यदि कोई हिंदू संगठन या कोई हिंदू कार्यकर्ता या कोई भी व्यक्ति कुछ काम करता है तो यह कट्टर शेर उसकी टांग खींचते है उसे हिंदू विरोधी घोषित कर देते है।

*अब इन मूर्खो को कौन समझाए हिंदू हिंदू करने जय श्री राम भारत माता की जय बोलने से और जेहादी मुल्लो को गालियां देने से न ही हिंदू एकजुट होता न ही जेहादी मुल्लो पर नकेल कसती है।*

सबको साथ लेकर चलने के लिए सबको जोड़ने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है

*👆उपर्युक्त हमारे तीनो संदेश ध्यान से पढ़िए और समझिए*

आप लोग हमारा विरोध करके कुछ हासिल नहीं कर सकते, न आप हमे रोक सकते है, हमारी विचारधारा और कार्य सदैव स्पष्ट रहा है जो करते है डंके की चौट पर करते है। आप हमारे जिस कार्य से सहमत हो साथ दे न हो तो कोई बात नहीं🙏 पर आप विरोध करेंगे तो हम आपको हमारे मार्ग में बाधा समझेंगे और जो हमारे साथ वर्षो से काम कर रहे है उन्हे पता है विश्व में जितने भी व्यक्ति है सब हमारे विरोध हो जाए तो भी हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम वोही करेंगे जो हमे करना चाहिए।

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*विशेष:- कल 1 जनवरी से अपनी टीम में बहुत बड़ा परिवर्तन होंगा। हम इसके बारे में विस्तार से आज रात सोने से पहले या कल सुबह बता देंगे🙏*
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सर्दी का मौसम है गलत तो बढ़ ही रही है *जलन* भी बढ़ने वाली है😄

इतने वर्षो से हम व्यवस्था में उलझे हुए थे अब नेरेटीव की रणभूमि में उतरेंगे। जेहादियों वामपंथियों और मतांतरण करने वाली धूर्त ईसाई मिशनरी गैंग को तो पीड़ा होंगी ही साथ में आस्तीन के कीड़े मकोड़े भी तिलमिलाए हमारे मार्ग में बाधा बनने का प्रयास करेंगे किंतु हम इन्हे कुचलते हुए आगे बढ़ते रहेंगे।

*हाथी चलेंगा तो कुत्ते तो भोकेंगे ही

*1 जनवरी से अपनी टीम में बहुत बड़ा परिवर्तन होंगा*

आपको जानकर आश्चर्य होंगा हम प्रतिदिन 10 घंटे का समय केवल टीम की व्यवस्था को देते है(नए लोगो को जोड़ने समझाने और टीम के विस्तार और नए बने रिक्त कार्यभारो की पूर्ति के लिए नए संचालकों, नए व्यवस्थापकों की पूर्ति में लगे रहते है,,, किसने सूची बनाई किसने नहीं बनाई,,, सूची गलत है तो उसमे सुधार करने,,, कौन संचालक/व्यवस्थापक सक्रिय है कौन नहीं है नहीं है तो क्यों नहीं है कब तक सक्रिय होंगा,,, व्यवस्थापको और संचालको को सक्रिय रखने में ही लगे रहते है।)

*इस कारण हम जन जागरूकता अभियान को और हमारे उद्देश्य को डायरेक्ट समय नहीं दे पाते,,, नया ट्वीट किए भी बहुत दिन हो गए*

*👆व्यवस्था में ही उलझे रहना डायरेक्ट उद्देश्य पर काम न कर पाने की समस्या का समाधान हमने खोज लिया है🔮*

हम पिछले दो वर्षो से हम इस समस्या से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे थे की कब टीम की व्यवस्था सुदृढ़ हो कब टीम को योग्य मुख्य व्यवस्थापक, व्यवस्थापक और संचालक मिले और टीम संगठन की तरह काम करे। यानी टीम रूपी यह व्यवस्था हम पर निर्भर न रहे। बल्कि एक सिस्टम की तरह काम करे... *और आज वो सिस्टम पूरी तरह से तैयार हो चुका है।*

*वर्षो की मेहनत का फल अब मिला है.. अब टीम के 9 सक्रिय व्यवस्थापक तैयार है प्रतिदिन प्रस्तुत सूची बनाने का कार्य कर रहे है। इसी तरह लगभग 70 संचालक सक्रिय है(व्यवस्था तो पूरे 100 की हो चुकी है टीम में अभी 100 संचालक नियुक्त है पर अभी लगभग 30 सुस्त है इनको शीघ्र सक्रिय कर देंगे नहीं होंगे तो कार्यमुक्त करके नए नियुक्त करेंगे)*

अब टीम मुश्किल समय से बाहर निकल चुकी है,,, अगले दो महीने तक नई नियुक्तिया नहीं करेंगे जो संचालक और व्यवस्थापक है जैसे भी है उन्हे ही सक्रिय रखकर कार्य करवाने का प्रयास किया जाएगा फिर दो महीनो बाद असक्रिय अयोग्य लोगो को कार्यमुक्त कर दिया जाएगा तथा इन दो महीनो में भी जो लोग कार्यभार छोड़ेंगे या व्यवस्थापकों द्वारा असक्रियता के कारण जिन संचालकों को कार्यमुक्त किया जायेगा तो कई कार्यभार रिक्त होंगे जिनकी पूर्ति दो महीने बाद ही की जायेगी

*हमारा अनुमान है दो महीने में लगभग 30 संचालक और 3 व्यवस्थापक के कार्यभार रिक्त हो जायेगे*

क्योंकि वर्तमान संचालक किसी न किसी कारण कार्यभार छोड़ेंगे या कार्यमुक्त किए जायेगे। इसी तरह तीन चार व्यवस्थापक भी समय अभाव के कारण कार्य छोड़ेंगे या कार्य संपन्नकर्ताओं की संख्या न बढ़ा पाने के चलते उन्हें कार्यमुक्त करके नए मित्रो को अवसर देंगे।

*और दो महीने बाद एक ही झटके में रिक्त कार्यभारो के लिए नए संचालक और व्यवस्थापक नियुक्त कर दिए जायेगे*

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1 जनवरी से हम डायरेक्ट टीम के उद्देश्य पर काम करना शुरू कर देंगे
*(उदाहरण:- इतने वर्षो से हम तलवार, बंदूक, टॉप, मिसाइल बनाने में लगे थे अब 1 जनवरी से से चलायेंगे)* 

*यानी टीम की "व्यवस्था* और *नेतृत्व" का संपूर्ण कार्य मुख्य व्यवस्थापक विकास प्रताप सिंह जी का होंगा।*

1 जनवरी से हम केवल व केवल टीम के उद्देश्य यानी डायरेक्ट जन जागरूकता अभियान और नेरेटिव सेट करने(सोसल मीडिया पर भारत और सनातन धर्म, संस्कृति के लिए सकारात्मक वातावरण निर्मित करने की दिशा में कार्य करेंगे,,, अब दैनिक कार्य वाले ट्वीट्स के माध्यम से भी समसामयिक जवलंत(ताजा) मुद्दे उठाए जायेगे।

इसके अलावा हम अन्य राष्ट्रवादी मित्रों/संगठनों/संस्थाओं इत्यादि से मिलकर प्रत्येक सप्ताह कम से कम 1 हैशटैग ट्रेंड अभियान करने का प्रयास करेंगे हमारा ध्यान इस तरह के मुद्दो पर विशेष रूप से होंगा जैसे की भारतीय सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार, NRC, समान नागरिकता कानून, जनसंख्या नियंत्रण, आर्टिकल 30a की समाप्ति, POK COK, और धर्म और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का प्रदाफास

हमने केसरिया राष्ट्रवादी टीम(KRT) नाम से जो *fb, इंस्टाग्राम, टेलीग्राम, koo* पर भी जो पेज चैनल इत्यादि बना रखे है उनमें भी सक्रिय रहेंगे उनमें भी पोस्ट की जायेगी

*कुल मिलाकर हमारा पूरा ध्यान धर्म और राष्ट्रहित में अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने में होंगा। आचार्य चाणक्य और असंख्य महापुरुषों, योद्धाओं, क्रांतिकारियों, बलिदानियों का अखंड भारत का सपना हम पूरा करके रहेंगे। यह हमारा सपना नहीं संकल्प है।* ऐसा अखंड भारत जिसमे टुकड़े टुकड़े हुआ भारत फिर से जुड़े अखंड हो, जिसमे कोई गरीब न हो, कोई पिछड़ा न रहे, भारत न केवल विश्वगुरु बने बल्कि सबसे शक्तिशाली हो सोने की चिड़िया हो।


गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?

एक बार भौतिक विज्ञान की कक्षा में शिक्षक ने विद्यार्थियों से पूछा:- कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?




एक छात्र ने उठकर उत्तर दिया:- सर, कार को रोकने के लिए

एक अन्य छात्र ने उत्तर दिया:-कार की गति को कम करने और नियंत्रित करने के लिए
 
एक अन्य ने कहा:- टक्कर से बचने के लिए

जल्द ही,जवाब दोहराए जाने लगे, इसलिए शिक्षक ने स्वयं प्रश्न का उत्तर देने का निर्णय लिया... 

चेहरे पर एक मुस्कान के साथ उन्होंने कहा:-मैं आप सभी की सराहना करता हूं कि आप इस सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि मेरा मानना ​​​​है कि यह सब व्यक्तिगत धारणा का विषय है। पर मैं इसे इस तरह से देखता हूं:-कार में ब्रेक, हमें इसे और तेज चलाने में सक्षम बनाते हैं.....

कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया! इस जवाब की किसी ने कल्पना नहीं की थी
 
शिक्षक ने बात जारी रखते हुए कहा:-एक पल के लिए,मान लेते हैं कि हमारी कार में कोई ब्रेक नहीं है। अब हम अपनी कार को कितनी तेज चलाने के लिए तैयार होंगे ?

आगे उन्होंने कहा:- ये ब्रेक ही हैं जिनके कारण हम कार को तेजी से चलाने की हिम्मत करते हैं और अपने गंतव्य तक पहुंच सकते हैं.... 

कक्षा के सभी छात्र सोच में पड़ गए। उन्होंने पहले कभी इस तरह से "ब्रेक" के बारे में नहीं सोचा था।

आइए विचार करें!
जीवन में हमारे सामने कई ऐसे ब्रेक आते हैं जो हमें निराश करते हैं। हमारे माता-पिता, शिक्षक,शुभचिंतक और हमारे मित्र हमारी प्रगति की दिशा या जीवन में निर्णय के बारे में हमसे पूछते हैं... 

हम उनके प्रश्नों तथा जीवन की कठिन स्थितियों को "ब्रेक" के रूप में देखते हैं जो हमारी गति को बाधित करते हैं..., 

लेकिन कैसा हो.....अगर हम उन्हें अपने समर्थक या उत्प्रेरक के रूप में देखें
 
ऐसे उपकरण के रूप में जो हमें जोखिम लेने में सक्षम बनाते हैं,साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि हम अपनी रक्षा कर सकें..... 

क्योंकि कभी-कभी हमें रुकना पड़ता है। यहां तक कि एक कदम पीछे भी हटना पड़ता है ताकि हम एक लंबी छलांग लगा सकें.... 

ऐसे सवालों और परिस्थितियों (समय-समय पर ब्रेक) के कारण ही हम आज जहॉं हैं, वहां पहुँचने में कामयाब रहे हैं.... 

जीवन में इन "ब्रेक" के बिना हम फिसल सकते थे,दिशा खो सकते थे या एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो सकते थे.... 

"ब्रेक"
 हमें वापस पीछे धकेलने या हमें बांधने के लिए नहीं होते बल्कि वे हमें पहले की तुलना में तेजी से आगे बढ़ने में सहायक होते हैं ताकि हम अपने गंतव्य तक शीघ्र और सुरक्षित पहुंच सकें.... 

क्या हम अपने जीवन में 'ब्रेक' के लिए आभारी हैं । या हम उन्हें केवल अपने काम में बाधा के रूप में देखते हैं ?

जब हम जीवन में कठिन परिस्थितियों से गुजरते हैं तो पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरते हैं...?

जो भी हो कुछ भी करने के लिए शुरुवात जरूरी होता है आप भी सही समय पर और सही मुहूर्त से शुरुवात करे !!

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

क्या बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड के पीछे राजनैतिक कारण हैं ?

 

उन लोगों के लिए जो सोचते हैं कि बहिष्कार के पीछे बीजेपी है:

  • देखिए, अगर 100 रुपये टिकट की कीमत पर 1 करोड़ लोग फिल्म देखने जाते हैं, तो फिल्म 100 करोड़ रुपये कमाती है।
  • अब भारत की 18 साल से ऊपर की आबादी 95 करोड़ है!
  • अब, 2019 के चुनावों के अनुसार, भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग 37 प्रतिशत था।
  • 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 60 प्रतिशत लोग बचे हैं, साथ ही किशोर भी हैं जिनके लिए टिकट अनिवार्य है।
  • अब बीजेपी के ये सारे वोटर भले ही फिल्म का बहिष्कार कर रहे हों, लेकिन फिल्म को सुपरहिट करने वाले भी काफी से ज्यादा लोग बचे हैं!

मैं जो समझाने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि बहिष्कार सभी पार्टी लाइनों में है! अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा वाले लोग बॉलीवुड का बहिष्कार कर रहे हैं।

यह कोई रहस्य नहीं है कि एक विशेष समुदाय कभी बीजेपी को वोट नहीं देता है, वह समुदाय अब लगभग 30-35 प्रतिशत है! यहां तक ​​कि अगर इस समुदाय के 1 करोड़ लोग भी एक फिल्म देखने जाते हैं, तो यह 100 करोड़ रुपये कमा सकती है। फिर फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं?

इसलिए, मुझे नहीं लगता कि बॉलीवुड के बहिष्कार के पीछे कोई राजनीतिक कारण है। यदि यह राजनीतिक बहिष्कार होता तो मुझे नहीं लगता कि यह सफल होता।

अगर इस प्रकार पोलिटिकल पार्टियां फ़िल्में हिट या फ्लॉप करा पातीं तो न नरेंद्र मोदी जी के ऊपर बानी फिल्म फ्लॉप होती न राहुल गाँधी के !

एकता कपूर जिस तरह के एडल्ट वेब सीरीज बनाती है तो क्या उनकी मानसिकता भी ऐसी ही है?

 

मैंने कहीं पढ़ा था , कि एकता कपूर छोटी उम्र में ही अपने ड्राइवर के साथ भाग गई थी ,

अगर ये सच है तो आप ही सोच लीजिये उनकी सोच और परवरिश कैसी होगी ?

बाकी उनके किये काम से पता चलता है।

टीवी पर जो गंद मचा हुआ है आजकल वो सब इसी के देन है ।

एक पत्नी के 4 -6 पति ,

एक पति की 4 -5 पत्नियां ,

दादी बनने वाली की शादी ,

और सास और बहु एक समय में गर्भवती ,

घर के बच्चों का भी कहीं ना कहीं चक्कर वो भी स्कूल वाली ऐज में ,

घर में हमेशा कलेश होना ,

घर के मर्द सारा दिन कुर्ता पायजामा / 3 पीस सूट पहन के घर में बैठे रहते हैं।

सारा घर कोई न कोई षड़यंत्र करता रहता है ,

दुखियारी माँ / बहु / बेटी

बेचारा बाप / बेटा/ भाई

तो ऐसी है एकता कपूर

क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?

 क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?

यदि आप सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या(?) से दुखी है

यदि आप सोनू निगम जैसे प्रतिभाशाली गायकों के करियर खतम करने से दुखी है

यदि आप सनी देओल बॉबी देओल विवेक ओबेरॉय अभय देओल विद्युत जामवाल जैसे कई प्रतिभाशाली लेकिन राष्ट्रवादी नायकों के कैरियर को तबाह करने से दुखी है

यदि आप कंगना राणावत जैसी राष्ट्रवादी अभिनेत्री को परेशान करने से दुखी है

तो आपको उस पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड को तबाह करने के लिए और राष्ट्रवादी सिनेमा को मजबूत करने के लिए बिना तर्क वितर्क के इस फिल्म पठान का बॉयकॉट करना ही पड़ेगा!! यही लोकतांत्रिक विरोध है और लोकतांत्रिक तरीका है भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत करने का।

आज सिर्फ चुनावों में वोटिंग से सरकार नहीं बनती है । सिर्फ सरकार और सेना देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती है जनता को भी अंदरूनी राष्ट्रविरोधी शक्तियों को लोकतांत्रिक तरीके से कमजोर करने में पूरा सहयोग देना होगा।

हर वेब सीरीज और फिल्म में पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड कुछ ना कुछ एजेंडा घुसा ही देता है देश को कमजोर करने का या युवाओं को दिग्भ्रमित करके नशे या कु–संस्कृति की तरफ ले जाने का।

तुनिषा आत्महत्या हो , श्रद्धा वाकर हत्याकांड हो या उर्मि वैष्णव या शांतिदेवी हत्याकांड हो उसकी शुरुआत बॉलीवुड की बनाई संस्कृति से ही होती है । जिसमें लड़कियों के दिमाग में भरा जाता है कि किसी भी मनुष्य से शादी करो सब एक हैं। लेकिन पर्दे की पीछे की बातों को बॉलीवुड ने कभी नहीं दिखाया। कभी नहीं बताया की किसी संस्कृति में लड़की से छुटकारा पाने का उपाय तलाक या मायके भेजना है । और किसी संस्कृति में पत्नी से छुटकारा पाने का उपाय हत्या करके शव के टुकड़े करना है।

भारत पर हमले हमेशा कई तरीके से हुए हैं।

अप्रत्यक्ष हमले कविताओं, कहानियों , पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, धार्मिक सभाओं, फिल्मों धारावाहिकों वेब सीरीज के माध्यम से ज्यादा हुए हैं।

आज सोशल मीडिया पर बॉलीवुड और राष्ट्रविरोधी शक्तियां मुखर हैं जो सिर्फ मनोरंजन के नाम पर मजाक मजाक में आपके और बच्चो के दिमाग में कचरा भर रहे हैं। हमको पता ही नहीं पड़ रहा है कि अनजाने में हमारे दिमाग में क्या भर दिया गया है।

आप अंदर ही अंदर करोड़ो लोगों को आसानी से पहले संस्कृति से दूर करो , फिर धर्मनिरपेक्षता सहिष्णुता के नाम पर भीरू कायर बना दो, राष्ट्रवाद से दूर कर दो।

लाल बहादुर शास्त्री जी के एक आव्हान पर अमीर गरीब सबने अपना सहयोग दिया था सेना को।

आज कितने लोगों वैसा करेंगे??

उल्टे सेना के मरने पर हारने पर देश में तालियां बजाने वालों की फौज खड़ी हो गई है।

सोचिए !! तर्क , निष्पक्षता और बुद्धिजीवी का चोला उतार कर फेंकिए और शतरंजी चालों को समझने में निपुण बनिए।

वरना आपको पता भी नहीं पड़ेगा और आप खुद अनजाने में अपने देश को तोड़ देंगे संस्कृति को नष्ट कर देंगे।

फन मनोरंजन आवश्यक है जीवन में लेकिन जरूरी नहीं की उसके नाम पर हम किसी भी व्यक्ति को अपने दिमाग में कचरा भरने दें!

कुछ लोग 300 या 500 लोगों के रोजगार की खातिर मूवी देखने की बात कर रहे हैं तो ऐसे में आपको साल में आने वाली सभी 800–900 फिल्में देखनी चाहिए।

पठान तो मूवी राइट्स सैटेलाइट राइट्स म्यूजिक राइट से अपना खर्च निकाल लेगी।

शाहरुख और दीपिका के पास पैसे की कोई कमी नहीं है वो इन 500 लोगों के लिए अपना मेहनताना छोड़ सकते हैं।


ऐसे जीव जिनकी कभी मृत्यु ही नहीं होती

ऐसे जीव जिनकी कभी मृत्यु ही नहीं होती

हाइड्रा

इसे आप बहुत सिरों वाला जीव समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड़ा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड़ा में विकसित हो जाता है। देखने में यह आपको ऑक्टोपस जैसा लग सकता है। लेकिन पूर्णतः इसका अंत नहीं होता है।

टार्डीग्रेड

पानी में रहने वाला आठ पैरों और 4 एमएम लंबा जीव 30 वर्षों तक बिना, खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष में भी जिंदा रहने की क्षमता है। यह लगभग माइनस 272 डिग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है। वहीं, करीब 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है।

प्लेनरियन फ्लेटवर्म

यह प्राणी अमर है। आप इसके लगभग दो सौ टुकड़े कर दें, तो भी हर टुकड़े से एक जीव बन जाएगा। यहीं नहीं, इसके सिर और नर्वस सिस्टम को भी टुकड़ों में काट दें, तो भी यह फिर से बनने लगता है। इसके सेल्स डेड भी हो जाते हैं तो भी ये नए जीवों को अपने आप से निर्माण कर सकता है।

लम्बी लंगफिश

कहा जाता है कि यह मछली पांच साल तक बिना कुछ खाए पीये जीवित रह सकती है। विशेषकर अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर- होती है, तब अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।

जेलफिश

यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।

अलास्कन वुड फ्रॉग

यह मेढक भी अमर है। अलास्का में जब तापमान माइनस 20 डिग्री गिर जाता है, तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह शीतनिद्रा में सो जाता है। तब यह लगभग 80 प्रतिशत तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। हृदय की धड़कन भी बंद हो जाती है। डॉक्टरी भाषा में यह मर चुका होता है, लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके हृदय में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका हृदय फिर से धड़कने लगता है। इसे फ्रोजन फोग भी कहते हैं।

संघ क्यों चुप है ??

*संघ क्यों चुप है ??*

_आज मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित किन्तु पक्के कर्मकांडी हिन्दू महानुभाव भी साथ हो लिये। देश- विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही। तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे।मैं चुप हो उनकी सुन रहा था। तभी अचानक बोले "वहां इन स्थानों पर हिन्दू परेशान है। आखिर संघ क्यों चुप है - इस मामले में आखिर संघ कर क्या रहा है?"_

*अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा। मैने कहा "संघ क्या है?"* 
*बोले "हिन्दुओं का संगठन।"* 

मैं बोला "तो आप हिन्दू हैं?" 
वह बोले "कैसा प्रश्न है यह आपका? मैं कट्टर सनातन हिन्दू हूं।" 

तब मैने कहा तो क्या आप जुडे हैं संघ से?" 
वह बोले.. "नहीं तो" 

तब मैने पूछा "आपका बेटा, पोता, नाती या परिवारजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या?"  
तब बोले "नहीं कोई नहीं। बेटा नौकरी पर है, फुर्सत नहीं मिलती उसे। पोता नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं। रिश्तेदार बडे व्यवसायी हैं। उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती।" 

_मैने कहा - इसका मतलब यह हुआ कि संघ आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोडकर शेष अन्य हिन्दुओं का संगठन है?_
_वह चिढकर बोले "आज क्या हुआ है आपको? कैसी बात कर रहे हो आप? अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है। देश में 90% लोग ऐसे हैं  जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा?"_ 

मैने फिर कहा "तो मतलब आपके हिसाब से संघ से केवल 10% हिन्दू लोग ही जुड़े हैं।" 

*वह बोले "जी नहीं साहब, मेरे वार्ड में रहते सारे हिन्दू ही है। कुल 10000 की जनसंख्या है वार्ड में हिन्दुओं की। पर सुबह सुबह देखता हूं बस रोज तो उसमें से भी केवल 10-15 लोग ही नजर आते हैं संघ की शाखा में। बाकी कभी उत्सव त्योहार पर ही नजर आते हैं।"*

मैने पूछ लिया कि कभी जाकर मिले उनसे?  
बोले "नहीं.." 

मैंने पूछा कभी उनकी कोई मदद की?" 
बोले "नहीं"

मैं "कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की?" 
बोले "नहीं" 

मैं "तो फिर आप की संघ से यह सारी अपेक्षा क्यों ?

*मैं भी तो खीज गया था अन्दर से आखिर बोल ही पड़ा "तो ठेका लिया है संघ ने आप जैसे हिन्दुओं का? क्या वह संघ के सारे लोग बेरोजगार हैं? उनके पास अपना काम नहीं है,या उनका अपना कोई परिवार नहीं हैं क्या? आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें, बस। और वह अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकांकी, आत्मकेंद्रित हिन्दुओं की भी चिन्ता करें ?*

 यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?

 क्योंकि वह भारतमाता की जय बोलते हैं, देश से प्यार करते हैं, वन्देमातरम कहते हैं? 

क्या यह करना गुनाह है उनका? इसलिये उन से आप यह जजिया वसूलना चाहते हैं?जो आप सभी समर्थ होकर भी नहीं करना चाहते वह सब कुछ वह करें। वही कश्मीर, कैराना व बंगाल तथा आप जैसों की चिन्ता करें? देश व समाज की हर तरह की आपदा व संकटों में वही अपना श्रम या धन व जीवन तक बलिदान करें? उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ? क्यों वही अपना घर परिवार सब छोडकर केवल आप जैसों के लिये ही जियें ?

*कभी सोचा है कि जब वह आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो, उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोड़ो।* 

तब आप उनको निठल्ला, फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो-और इतना ही नहीं उन्हैं साम्प्रदायिक कह कर गाली देते हो। अपने को सेक्यूलर मानकर अपनी शेखी बघारते हो।केवल अपने घर-परिवार, व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो।

*अगर वह हिन्दू संगठन वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे हिन्दू ही हैं। तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता ? बस जरा यह तो स्पष्ट करें। कि क्या वही हिन्दू हैं आप हिन्दू नहीं है?*

स्मरण करो, भगतसिंह को फांसी केवल इसलिये हुई थी एव॔ आजाद को भी इसीलिये अकेले लड़कर मौत को गले लगाना पडा था क्योंकि अगर यह आप जैसे शेष 90% हिन्दू हमें क्या करना कहकर सोये हुये ना होते, यह आप जैसे 90% हिन्दू आत्मकेन्द्रित हो हमें क्या फर्क पड़ता है कहकर ना जी रहे होते। उनके समर्थन में खुलकर आये होते तो उनको फांसी देने या मार सकने जितनी हिम्मत या औकात तब भी अग्रेजों में नहीं थी। अगर तब यह 90 % हिन्दू आपकी तरह तमाशा ना देखते, कभी इक्ठ्ठे होकर केवल एक बार अयोध्या पहुंच कर  जय श्रीराम का नारा लगा देते तो मंदिर कब का बन गया होता।
अगर हिंदूओ मे जरा सी भी शर्म होती तो मात्र कुछ करोड़ गद्दार वंदेमातरम,भारत माता की जय का विरोध करने की हिम्मत नही कर पाते।

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मंगलवार, 20 दिसंबर 2022

साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं। यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:

 

साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं।

यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:

"एक साइकिल चालक देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक आपदा है:

वे कार नहीं खरीदते हैं और खरीदने के लिए पैसे उधार नहीं लेते हैं।

वे बीमा पॉलिसियों के लिए भुगतान नहीं करते हैं।

वे ईंधन नहीं खरीदते हैं, आवश्यक रखरखाव और मरम्मत के लिए भुगतान नहीं करते हैं।

वे सशुल्क पार्किंग का उपयोग नहीं करते हैं।

न ही गंभीर दुर्घटना का कारण बनता है।

उन्हें बहु-लेन राजमार्गों की आवश्यकता नहीं है।

वे मोटे नहीं होते।

स्वस्थ लोगों की न तो जरूरत है और न ही अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी।

वे दवा नहीं खरीदते हैं। वे अस्पतालों या डॉक्टरों के पास नहीं जाते हैं।

देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कुछ भी नहीं जोड़ा जाता है।

इसके विपरीत, हर नया मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां कम से कम 30 नौकरियां पैदा करता है: 10 हृदय रोग विशेषज्ञ, 10 दंत चिकित्सक, 10 आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ, और जाहिर है, जो लोग रेस्तरां में ही काम करते हैं।

सावधानी से चुनें:

साइकिल चालक या मैकडॉनल्ड्स?

यह विचार करने योग्य है।

चलना और भी अच्छा है। पैदल चलने वाले तो साइकिल भी नहीं खरीदते।

तस्वीर गूगल

धन्यवाद 🥰

रिसोर्ट मे शादियां ! नई सामाजिक बीमारी

 📌 रिसोर्ट मे शादियां !
      नई सामाजिक बीमारी  

कौन जिम्मेदार !
क्या निवारण सम्भव है
================
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा करी

समाज प्रमुख चिल्ला चिल्ला कर थक गए
चिंतन करने वाले अभी भी चिंतन में लगे हैं
 किस तरह समाज को राह दिखाई जाए
किस तरह समाज को दिखावे के दंश से मुक्त किया जाए

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं
और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की



सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है

शादी के 2 दिन पूर्व ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि


सिर्फ कार वाले मेहमान ही  रिसेप्शन हॉल में आए
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है

किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है
इस आमंत्रण में अपनापने की भावना खत्म हो चुकी है


सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है

लेडीज संगीत कहने को तो महिलाओं के लिए ही होता है
परंतु इसमें भी डिनर की व्यवस्था
रिसेप्शन की तरह ही इतनी भारी-भरकम होती है कि
एक आम व्यक्ति अपने दो बच्चों की शादी का रिसेप्शन कर ले
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं
दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका हे
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं
और यही अमीरीयत का दंभ
उनके व्यवहार से भी झलकता है
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता
 वे अपना अधिकांश समय  करीबियों से मिलने के बजाय अपने कमरो में ही गुजार देते हैं
रिसेप्शन हाल की पार्किंग और बाहर खड़ी गाड़ियों से अंदाजा लग जाता हे कि अंदर व्यवस्था कितनी आलीशान होगी

मुख्य स्वागत द्वार पर
नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें
हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर
सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं
मखमल के कालीनो पर चल कर आगे बढ़ते हैं
सुगंधित धुअे के मदहोश करने वाले गुब्बार स्पर्श करते हैं
ऐसा लगता है किसी पांच सितारा मधुशाला या नवाबी मुजरे मे पहुंच रहे हो

अंदर एंट्री गेट पर आदम कद  स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं



इच्छा होती है सिनेमाघरों की तरह कुछ खुले पैसे स्क्रीन की तरफ उछाल दे
क्योंकि इस तरह की शादिया,  एंटरटेनमेंट स्पाट ज्यादा लगती हैं
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
स्क्रीन पर पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर
पास में लगा मंच
जहां नव दंपत्ति लाइव
गल - बगियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने
परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं


मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ था
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता
 क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है

लेख को ज्यादा लंबा नहीं करूंगा
रिसेप्शन में क्या-क्या
वेराइटीया  थी
बताना बेकार हे
क्योंकि वहा इतना कुछ होता है
उसमें किए गए खर्चे से
गरीब परिवार की 25 - 30 कन्याओं का विवाह हो सकता है
रिसोर्ट में होने वाले एक शादी समारोह का कम से कम 25 से 30 लाख खर्च आता है

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है
ओर ये किसी की सुनने या मानने वाले नहीं होते हे
हम कितने ही सामाजिक नियम बना ले, कितनी ही आचार संहिता बना ले
परंतु कुछ हल नहीं निकलने वाला
समाज में पैदा होने वाली
हर सामाजिक बुराई इन्हीं लोगों की देन है
इन लोगो के परिवार मे हमारी संस्कृति का कोई अंश बचा ही नहीं है
और यह लोग अब अपनी बुराइयां
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को देना चाहते हैं

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है
आपका पैसा है , आपने कमाया है
आपके घर खुशी का अवसर है   खुशियां मनाएं
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही
कर्ज लेकर
अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है
और आप कितना ही बेहतर करें
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे
और लिफाफा दे कर
आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे
मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें
लोगों की झुठी तारीफ से ज्यादा
आपके अपने परिवार की इज्जत और सम्मान अधिक महत्वपूर्ण होता है

आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के , स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को
अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

अभी समाज ने कुछ समय पहले प्री वेडिंग सूट को प्रतिबंधित किया था? कितने लोग मान रहे है?समाज कम व्यंजनों की बात करता है?कोई सुनता है क्या?जगह जगह अच्छी बातें बिखरी पड़ी है,अच्छे उदाहरण आंखों के सामने है?अच्छी पहल करते हमने देखा है,कोई नज़र डालता है क्या? बारहवी गंगा प्रसादी की बात 100 साल से समाज कर रहा है,क्या नही हो रही है ?भगवान स्वरूप रामसुख दास जी महाराज पुरजोर शब्दो मे बोल कर गए,परिवार नियोजन मत करो, कोई एक भी सुनता है क्या? सब को पता है,अच्छे सवास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है,10 पर्तिशत भी करते है क्या?
इसलिए बेहतर यह रहता है,जो ठीक नही है,जो समाज के लिए अनुकरणीय नही है,जिसके दुष्परिणाम ज्यादा है..हम किसी का इंतजार नही करे, कोई कहे?
बस जब भी अवसर आये, हम पहल करें।इस दुनिया मे अकेले चलने का साहस बहुत कम लोगो मे है।सब भीड़ का हिस्सा बन जाते है। पर पहल करने में जिस जिगर की जरूरत है,वो नही है। बस..हम फिर गेंद इस पाले से उस पाले में डालते रहते है।
  ।। जय महेश।।

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह

 

वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि जो भी कार्य शेष है, जल्दी जल्दी निपटा लें क्योंकि वृश्चिक राशि पर 17 जनवरी 2023 से शनि की ढैया लगने वाली है।

चित्र में दिखाई देने वाला बिच्छू वृश्चिक राशि का प्रतीक चिन्ह है।

अभी जन्मपत्री में जो भी गए स्थिति है अथवा ग्रह दशा आपकी चल रही है (अलग-अलग वृश्चिक राशि वालों की ग्रह स्थिति एवं ग्रह दशा अलग-अलग है) उससे भी ज्यादा समय संघर्ष वाला आने वाला है यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।

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