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बुधवार, 6 सितंबर 2023

जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।

  चारधाम की यात्रा🌹



पता नही किसने ये पोस्ट लिखा है आपके आंसू आ जाएंगे । पूरी पोस्ट की एक लाइन एक भाई ने अपनी बहनों से कहा  चार धाम की यात्रा का समय आ गया है .., जरूर पढ़ें ...

"मेरी छोटी बुआ...!"
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा मुंबई वाली बुआ जी की राखी के कूरियर का इन्तेज़ार रहता था.
कितना बड़ा पार्सल भेजती थी बुआ जी.
तरह-तरह के विदेशी ब्रांड वाले चॉकलेट,गेम्स, मेरे लिए कलर फूल ड्रेस , मम्मी के लिए साड़ी, पापाजी के लिए कोई ब्रांडेड शर्ट.
इस बार भी बहुत सारा सामान भेजा था उन्होंने.
इंदौर और  जोधपुर वाली दोनों बुआ जी ने  भी रंग बिरंगी राखीयों के साथ बहुत सारे गिफ्टस भेजे थे.
बस बाड़मेर वाली जया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी
पांच राखियाँ, कागज के टुकड़े में लपेटे हुए रोली चावल और पचास का एक नोट.*
मम्मी ने चारों बुआ जी के पैकेट डायनिंग टेबल पर रख दिए थे ताकि पापा ऑफिस से लौटकर एक नजर  अपनी बहनों की भेजी राखियां और तोहफे देख लें...
पापा रोज की तरह आते ही टी टेबल पर लंच बॉक्स का थैला और  लैपटॉप  की  बैग रखकर सोफ़े पर पसर गए थे.
"चारो दीदी की राखियाँ आ गयी है...
मम्मी ने  पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी...
"जया का लिफाफा दिखाना जरा...
पापा जया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तेज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे....
जया बुआ सारे भाई बहनो में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था.
विवाह के तुरंत बाद  देवर ने सारा व्यापार हड़प कर घर से बेदखल कर दिया था.
तबसे फ़ूफा जी की मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे .
बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी.
इकलौते बेटे श्याम को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं...
जया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे...
'गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से जया के घर बाड़मेर उसे बगैर बताए जाएंगे...
"जया दीदी के घर..!!
मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी...
आप को पता  है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है...
हम तीन लोगों का नास्ता-खाना भी जया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी.
पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने जया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है...
रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली पैसेंजर से हम सब बाड़मेर पहुँच गए थे.
बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं....
बुआ उम्र  में सबसे छोटी थी पर तंग हाली और रोज की चिंता फिक्र ने उसे सबसे उम्रदराज बना दिया था....
एकदम  पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं...
बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का  कोई ज़वाब  नहीं  था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था.
बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी  कुछ क्षण देखे जा  रहे थे...
पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी.

हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी.

उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या प्रतिक्रिया दे.

अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था...

वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है...

बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था....

पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है...

अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था...

 हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे.....

एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे...

पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था.....

"भैया भाभी मन्नू तुम सब अचानक आज ?

सब ठीक है न...?

बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था...

'आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का..

तो बस आ गए हम सब...

पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था.....

"भाभी आओ न अंदर....

 मैं चाय नास्ता लेकर आती हूं...

जया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था

"जया तुम बस बैठो मेरे पास. चाय नास्ता गायत्री देख लेगी."

हमलोग बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे......

मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी...

उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं....

बुआ जी का बेटा श्याम दोड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था.

राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए....

शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था

नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था.

न जाने कितने सालों बाद आज जया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था....

धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर....

पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था....

बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी

मिठाई का डब्बा रख लिया था

जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को रुकने को कहा

सभी आश्चर्यचकित  थे...

" दस मिनट  रुक जाओ तुम्हारी दूसरी बहनें भी बस पहुँचने वाली है. "

पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो सभी पापा को देखते रह गए....

तभी बाहर दरवाजे पर गाड़ियां के हॉर्न की आवाज सुनकर बुआ ,मम्मी और फ़ूफ़ा जी दोड़ कर बाहर आए तो तीनों बुआ का पूरा परिवार सामने था....

जया बुआ का घर मेहमानों से खचाखच भर गया था.

नीलम बुआ बताने लगी कि कुछ समय पहले उन्होंने पापा को कहा था कि क्यों न  सब मिलकर चारो धाम की यात्रा पर निकलते है...

बस पापा ने उस दिन तीनों बहनो को फोन किया कि अब चार धाम की यात्रा का समय आ गया है..

पापा की बात पर तीनों बुआ सहमत थी और सबने तय किया था कि इस बार जया के घर सब जमा होंगे और थोड़े थोड़े पैसे मिलाकर उसकी सहायता करेंगे.

जया बुआ तो बस एकटक अपनी बहनों और भाई के परिवार को देखे जा रहीं थीं....

कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज सबने उसे...

सारी बहनो से वो गले मिलती जा रहीं थीं...

सबने पापा को राखी बांधी....

ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार था सबके लिए...

रात एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया....

फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी....

अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं.

वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी.

बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे...

जया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी..

 मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था
बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो  पापा घबरा गए थे...

सारे लोग जाग गए पर जया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी....

पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी ..

पता नही कितने दिनों से बीमार थीं....

और आज तक किसी से कही भी नही थीं...

आज सबसे मिलने का ही आशा लिये जिन्दा थीं शायद...!!

अपनों का ध्यान रखें।

जो "समर्थ" है वो अपने असमर्थ रिश्तेदारों एवं मित्रों की समय पर "सहायता" अवश्य करें।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌸सोच बदलेंगे तो जग बदलेगा।🌸

होनी बहुत बलवान है - एक पौराणिक कथा


 होनी बहुत बलवान है
आज एक पौराणिक कथा
अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उन के लड़के जनमेजय राजा बने।

एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे। बातों ही बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से वेदव्यास जी से कहा.. कि,"जहां आप समर्थ थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य कुलगुरू कृपाचार्य जी, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे.....फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए और देखते-देखते अपार जन-धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता"।

अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द सुन कर भी, व्यास जी शांत रहे।

 उन्होंने कहा," पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतनी सामर्थ्य थी कि वे युद्ध को रोक सकते थे।

जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला,"मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता है,  मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए...मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता"।

व्यास जी ने कहा,"पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन...."।

कुछ वर्ष बाद तू काले घोड़े पर बैठकर  शिकार करने जाएगा दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचेगा...वहां  तुम्हें एक सुंदर स्त्री मिलेगी.. जिसे तू महलों में लाएगा, और उससे विवाह करेगा। मैं तुम को मना करूँगा कि ये सब मत करना लेकिन फिर भी तुम यह सब करोगे। इस के बाद उस  लड़की के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा..। मैं तुम को आज ही चेता कर रहा हूं कि उस यज्ञ को तुम वृद्ध ब्राह्मणो से कराना.. लेकिन, वह यज्ञ तुम युवा  ब्राह्मणो से कराओगे.... और..

जनमेजय ने  हंसते हुए व्यासजी की बात काटते हुए कहा कि,"मै आज के बाद काले घोड़े पर ही नही बैठूंगा..तो ये सब घटनाऐ घटित ही नही होगी।

व्यासजी ने कहा कि,"ये सब होगा..और अभी आगे की सुन...,"उस यज्ञ मे एक ऐसी घटना घटित होगी....कि तुम ,उस रानी के कहने पर उन युवा ब्राह्मणों को प्राण दंड दोगे, जिससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा...और..तुझे कुष्ठ रोग होगा..  और वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सको तो रोक लो"।

वेदव्यास जी की बात सुनकर जन्मेजय ने एहतियात वश शिकार पर जाना ही छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया तो उसे शिकार पर जाने की बलवती इच्छा हुई। उस ने  सोचा कि काला घोड़ा नहीं लूंगा.. पर उस दिन उसे अस्तबल में काला घोड़ा ही मिला। तब उस ने सोचा कि..मैं दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर गया और समुद्र तट पर पहुंचा वहां पर उसने एक सुंदर स्त्री को देखा, और उस पर मोहित हुआ। जन्मेजय ने सोचा कि इसे लेकर  महल मे तो जाउंगा....लेकिन शादी नहीं करूंगा।
परंतु, उसे महलों में लाने के बाद, उसके प्यार में पड़कर उस से विवाह भी कर लिया। फिर रानी के कहने से जन्मेजय द्वारा यज्ञ भी किया गया। उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण ही, रक्खे गए।
किसी बात पर युवा ब्राह्मण...रानी पर हंसने लगे। रानी क्रोधित हो गई ,और रानी के कहने पर राजा जन्मेजय ने उन्हें प्राण दंड की सजा दे दी..,  फलस्वरुप  उसे कोढ हो गया।

अब  जन्मेजय घबरा गया.और तुरंत  व्यास जी के पास पहुंचा...और उनसे जीवन बचाने के लिए प्रार्थना करने लगा।

वेदव्यास जी ने कहा कि,"एक अंतिम अवसर तेरे प्राण बचाने का और देता हूं......., मैं तुझे महाभारत में हुई घटना का श्रवण कराऊंगा जिसे तुझे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सुनना है..., इससे तेरा कोढ् मिटता जाएगा।
परंतु यदि किसी भी प्रसंग पर तूने अविश्वास किया.., तो मैं महाभारत का प्रसंग रोक दूंगा..,और  फिर मैं भी तेरा जीवन नहीं बचा पाऊंगा...,याद रखना अब तेरे पास यह अंतिम अवसर है।

अब तक जन्मेजय को व्यासजी की बातों पर पूरा विश्वास हो चुका था, इसलिए वह पूरी श्रद्धा और विश्वास से कथा श्रवण करने लगा।

व्यासजी ने कथा आरम्भ करी और जब भीम के बल  के वे प्रसंग सुनाऐ ....,जिसमें भीम ने हाथियों को सूंडों से पकड़कर उन्हें अंतरिक्ष में उछाला...,वे हाथी आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं....,तब जन्मेजय अपने आप को रोक नहीं पाया,और बोल उठा कि ये कैसे संभव  हो सकता है। मैं नहीं मानता।

व्यास जी ने महाभारत का प्रसंग रोक दिया....और कहा..कि,"पुत्र मैंने तुझे कितना समझाया...कि अविश्वास मत करना...परंतु तुम अपने स्वभाव को  नियंत्रित नहीं कर पाए। क्योंकि यह होनी द्वारा निश्चित था"।

फिर व्यास जी ने अपनी मंत्र शक्ति से आवाहन किया..और वे हाथी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति में आकर नीचे गिरने लगे.....तब व्यास जी ने कहा, यह मेरी बात का प्रमाण है"।

जितनी मात्रा में जन्मेजय ने श्रद्धा विश्वास से कथा श्रवण की,
उतनी मात्रा में  वह उस कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ परंतु एक बिंदु रह गया और  वही उसकी मृत्यु का कारण बना।

सार :-
 पहले बनती है तकदीरे फिर बनते हैं शरीर।
कर्म हमारे हाथ मे है...लेकिन उस का फल हमारे हाथों में नहीं  है।

गीता के 11 वें अध्याय के 33 वे श्लोक मैं श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं,"उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो केवल निमित्त बना है।



होनी को टाला नहीं जा सकता लेकिन नेक कर्म व ईश्वर नाम जाप से होनी के प्रभाव को कम किया जा सकता है अर्थार्थ रोग आएंगे परंतु पीड़ा नहीं होगी।

अगर आपको श्रीमदभागवत गीता का यह प्रसंग अच्छा लगा हो तो आप दो और लोगों को जरूर शेयर करें आपको पुण्य मिलेगा लाभ के भागीदार बनेंगे , 💐जय श्री राम 💐रोशनलाल वैष्णव*🙏🏻🙏🏻

समस्या का समाधान

 समस्या का समाधान🌷🌷

एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था।
एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा !”
पिताजी तैयार हो गए।
दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे-धीरे दौड़ना शुरू किया।
कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए।

“क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या?”, लड़का मुस्कुराते हुए बोला।
“नहीं-नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।”, पिताजी बोले।
लड़का बोला, “अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…”, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।

पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।

लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये,” क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो?”
“मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है !”, लड़का बोला और दौड़ता रहा।
कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए।
चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते-रुकते चीखा, “पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता !”
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था।

वे झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने समझाया,” बेटे, मैंने आपसे कहा था ना पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।”
“मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !”,बेटा बोला।

“ ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है।


दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या को अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है। तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। “ पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
दोस्तों हमारा जीवन ऐसी तमाम कंकडों से भरा हुआ है l

शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे-धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है l

समस्याओं को तभी पकडिये जब वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।

🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!


हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्

तुम नजर में हो

 ।। तुम नजर में हो ।।



एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी,  मैं उठकर आया दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है...

मैंने कहा:- "जी कहिए.."
तो बोला:- "अच्छा जी,  आज.. जी कहिये
रोज़ तो  एक ही गुहार लगाते थे ,
प्रभु सुनिए, प्रभु सुनिये.....आज, जी कहिये वाह..!

मैंने आँख मसलते हुए कहा:-
माफ कीजीये भाई साहब!
मैंने पहचाना नही आपको

तो कहने लगे:- भाई साहब नही, मैं वो हूँ जिसने तुम्हे साहेब बनाया है
अरे ईश्वर हूँ... ईश्वर
तुम हमेशा कहते थे, नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते, लो आ गया..!
अब आज पूरा दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा

मैंने चिढ़ते हुए कहा:- ये क्या मजाक है!!!
अरे मजाक नही है, सच है, सिर्फ तुम्हे ही नज़र आऊंगा
तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पायेगा मुझे

कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी...
ये अकेला ख़ड़ा खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ... चाय तैयार है, चल आजा अंदर...

अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था..
मैं जाकर सोफे पे बैठा ही था, तो बगल में वो आकर बैठ गए
चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पिया

गुस्से से चिल्लाया:- यार... ये चीनी कम नही डाल सकते हो क्या आप

इतना कहते है, ध्यान आया अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नही आयेगा कोई अपनी माँ पे गुस्सा करे

अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि भाई "तुम नज़र मे हो आज" ज़रा ध्यान से
बस फिर में जहाँ जहाँ वो मेरे पीछे पीछे पूरे घर मे
थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही में बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढा दिए..

मैंने कहा:- प्रभु यहाँ तो बख्श दो!!
खैर नहाकर, तैयार होकर मे पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु को रिझाया क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी..
फिर आफिस के लिए घर से निकला, अपनी कार मे बैठा, तो देखा बगल   वाली सीट पे महाशय पहले ही बैठे हुए है सफर शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया "तुम नज़र मे हो" ।

कार को साइड मे रोका, फ़ोन पे बात की और बात करते करते कहने ही वाला था कि "इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे" पर ये  तो गलत था, पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया "आप आ जाइये आपका काम हो  जाएगा आज"

फिर उस दिन आफिस मे ना स्टाफ पे गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 100-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन  सारी गालियाँ "कोई बात नही ITS OK"
मे तब्दील हो गयी..
वो पहला दिन था जब
क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूठ
ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नही बने

शाम को आफिस से निकला,
कार मे बैठा तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया
"प्रभु सीट बेल्ट लगालो, कुछ नियम तो आप भी निभाओ...
उनके चेहरे पे संतोष भरी मुस्कान थी

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घर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला
"प्रभु पहले आप लीजिये"

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा
भोजन के बाद माँ बोली:- "पहली बार खाने में कोई कमी नही निकाली आज तूने, क्या बात है सूरज पश्चिम से निकला क्या आज"

मैंने कहाँ "माँ आज सूर्योदय मन मे हुआ है...
"रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद मे कोई कमी नही होती
थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पे अपना सिर रखा तो उन्होंने प्यार से सिर पे हाथ फिराया और कहा:-
"आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नही है"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठा:
"कब तक सोएगा, जाग जा अब"
*माँ की आवाज़ थी *
सपना था शायद, हाँ सपना ही था
पर नीँद से जगा गया
अब समझ आ गया उसका इशारा

"तुम नज़र मे हो"

🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है
जिसका मन मस्त है
उसके पास समस्त है!!



हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्

कैसे मनाएं जन्माष्टमी का त्यौहार

कैसे मनाएं जन्माष्टमी का त्यौहार
हम सब के प्‍यारे नटखट नंदलाल, राधा के श्‍याम और भक्‍तों के भगवान श्रीकृष्‍ण के जन्‍मदिन की तैयारियां पूरे देश में चल रही हैं।  भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्‍म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को हुआ था। हालांकि इस बार कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं।

इस बार जन्‍माष्‍टमी दो दिन पड़ रही है क्‍योंकि यह त्‍योहार 6 सितंबर और 7 सितंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा। वहीं, वैष्‍णव कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी 7 सितंबर को है। अब सवाल उठता है कि व्रत किस दिन रखें? जवाब है 6 सितंबर यानी कि पहले दिन वाली जन्माष्टमी मंदिरों और ब्राह्मणों के घर पर मनाई जाती है। 7 सितंबर यानी कि दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाते हैं।

जन्‍माष्‍टमी का महत्‍व
श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्‍व है। यह हिन्‍दुओं के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु ने श्रीकृष्‍ण के रूप में आठवां अवतार लिया था। देश के सभी राज्‍य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं। इस दिन क्‍या बच्‍चे क्‍या बूढ़े सभी अपने आराध्‍य के जन्‍म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्‍ण की महिमा का गुणगान करते हैं। दिन भर घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते रहते हैं। वहीं, मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं और स्‍कूलों में श्रीकृष्‍ण लीला का मंचन होता है।


जो भक्‍त जन्‍माष्‍टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्‍माष्‍टमी के दिन सुबह स्‍नान करने के बाद भक्‍त व्रत का संकल्‍प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्‍टमी तिथि के खत्‍म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं। कृष्‍ण की पूजा नीशीत काल यानी कि आधी रात को की जाती है।

जन्‍माष्‍टमी की पूजा विधि
कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें 16 चरण शामिल हैं-

ध्‍यान- सबसे पहले भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्‍यान करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ध्‍यानात् ध्‍यानम् समर्पयामि।।

आवाह्न- इसके बाद हाथ जोड़कर श्रीकृष्‍ण का आवाह्न करें।

आसन- अब श्रीकृष्‍ण को आसन देते हुए श्री कृष्ण का ध्यान करें।

पाद्य- आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के पांव धोने के लिए उन्‍हें पंचपात्र से जल समर्पित करें।

अर्घ्‍य- अब श्रीकृष्‍ण को इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए अर्घ्‍य दें।

आचमन- अब श्रीकृष्‍ण को आचमन के लिए जल अर्पित करें।

स्‍नान- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्‍य पात्र में रखकर स्‍नान कराएं। सबसे पहले पानी से स्‍नान कराएं और उसके बाद दूध, दही, मक्‍खन, घी और शहद से स्‍नान कराएं। अंत में साफ पानी से एक बार और स्‍नान कराएं।

वस्‍त्र- अब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्‍त्र पहनाएं. फिर उन्‍हें पालने में रखें और इस मन्त्र का जाप करें- शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।
देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।

यज्ञोपवीत- इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें।

चंदन: अब श्रीकृष्‍ण को चंदन अर्पित करते हुए।

गंध: इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्रीकृष्‍ण को धूप-अगरबत्ती दिखाएं।

दीपक: अब श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को घी का दीपक दिखाएं।

नैवैद्य: अब श्रीकृष्‍ण को भागे लगाते हुए।

ताम्‍बूल: अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्‍ण को समर्पित करें।

दक्षिणा: अब अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार श्रीकृष्‍ण को दक्षिणा या भेंट दें।

कृ्ष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रसाद के लिये धनिये की पंजीरी

कृ्ष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर प्रसाद के लिये पारंपरिक रूप से धनिये की पंजीरी (Dhania Panjiri) और धनिया की बर्फी बनाई जाती है. धनिया बर्फी पिसे हुए धनिया में नारियल पाउडर, मावा या फूले हुये रामदाना - राजगिरा मिला कर बनाई जाती है. आप इस जन्माष्टमी पर नारियल का पाग और मिगी का पाग तो बना ही रहे होंगे, प्रसाद के लिये धनिया बर्फी भी बना डालिये.
आवश्यक सामग्री - Ingredients for Dhania Barfi

    धनियां पाउडर - 1 कप
    नारियल चूरा - 1 कप
    चीनी - 1 कप
    खरबूजे के बीज - 1/4 कप
    छोटी इलाइची - 4
    देशी घी - 2 टेबल स्पून

विधि: 
पैन में घी डालकर गरम कीजिये, धनियां पाउडर डालिये और मीडियम फ्लेम पर 3-4 मिनिट, खुशबू आने तक भून लीजिये. भुना हुआ धनियां पाउडर प्याली में निकाल कर रख लीजिये.

पैन में नारियल चूरा डालकर 1 मिनिट चलाते हुये भून लीजिये. भुना नारियल पाउडर प्याली में निकालिये.
 अब खरबूजे के बीज पैन में डालिये और लगातार चलाते हुये बीज फूलने तक भून लीजिये (खरबूजे के बीज भूनते समय उचटकर कढ़ाई से निकल कर बाहर आ रहे हों तो ऊपर से हाथ से पकड़ कर प्लेट ढककर रखें और कलछी से चलाते हुये बीज भूने, ये बहुत जल्दी भून जाते हैं). भुने बीज प्याले में निकाल लीजिये.

इलाइची को छील कर पाउडर बना लीजिये.
पैन में चीनी और आधा कप से थोड़ा कम पानी डालिये, चीनी घुलने के बाद चाशनी को और 2 मिनिट और पका लीजिये, चाशनी में भुना धनियां पाउडर, नारियल चूरा, इलाइची पाउडर और बीज डालकर मिलाइये और मिलाते हुये तब तक पका लीजिये जब तक कि मिश्रण जमने वाली कनिसिसटेन्सी पर न पहुंच जाय. चैक करने के लिये चम्मच से जरा सा मिश्रण प्याली में डालिये ठंडा होने पर उंगली और अंगूठे से चिपका कर देखिये, आप महसूस कर लेंगे कि वह जम जायेगा, अगर लगे कि गीला है, तो 1-2 मिनिट और पका लीजिये.
किसी प्लेट या ट्रे में घी लगाकर चिकना कीजिये, मिश्रण को प्लेट में एक जैसा फैला दिजिये. बर्फी जमने के बाद बर्फी को अपने मन पसन्द आकार में काट कर तैयार कर लीजिये.

धनिये की बर्फी तैयार है, कृष्णा को प्रसाद चढ़ाने के बाद सभी को प्रसाद दीजिये और आप भी खाइये. धनिये की बर्फी को 15 दिन तक फ्रिज से बाहर रख कर खाया जा सकता है
#janmashtami

मंगलवार, 5 सितंबर 2023

वे जानवर जिन्हें अधिकतर लोगों ने पहले कभी नहीं देखा?

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1.
रेविन ट्रैपडोर स्पाइडर: इसमें शिकारी आक्रमण को रोकने के लिए पीठ पर पैटर्न जैसी एक अनोखी नक्काशीदार चट्टान होती है।

2. एक्सोल्ट उर्फ ​​मैक्सिकन सैलामैंडर को मैक्सिकन वॉकिंग फिश भी कहा जाता है। यह एक उभयचर है। मनुष्यों के लिए धन्यवाद और जल प्रदूषण की मात्रा जो हम पैदा कर रहे हैं, यह प्यारा प्राणी लगभग विलुप्त होने के किनारे पर है।

3. अटलांटिक स्केल वर्म उर्फ ​​गोल्डन वर्म: यह अजीब अजीब दिखने वाला कीड़ा लगभग 20 सेमी लंबा होता है। यह अंटार्कटिक महासागर में 500+ मीटर की गहराई पर पाया जाता है और यह मांसाहारी है!

4. चीनी स्नब नोज्ड बंदर, एक और अद्भुत पशु प्रजाति, जो लुप्त होने की कगार पर है।

5. साइगा एंटेलोप: एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय मृग, जो मूल रूप से यूरेशियन स्टेपी क्षेत्र के एक विशाल क्षेत्र में बसा हुआ था। Saiga मृग का सींग पारंपरिक चीनी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। सींगों की मांग ने चीन में आबादी का सफाया कर दिया है।

6. एंगलर फिश एक गहरे समुद्री जीव हैं। इस मछली के सिर (एस्का या इलिसियम) से एक मांसल विकास एक लालच के रूप में कार्य करता है।

7. मगरमच्छ तड़क कछुए को पृथ्वी पर मौजूद सभी जानवरों में से एक सबसे शक्तिशाली जबड़ा वाला जीव है। यह अन्य कछुओं को भी खाता है!

8. ब्लू ड्रैगन: यह जीव नीले समुद्री स्लग की एक प्रजाति है। आप इसे महासागरों के गर्म पानी में पाया जाता हैं, इसके पेट में गैस से भरी थैली होती है।

9. ब्राह्मण मोथ कमला: एक ज्यादातर निशाचर कीट का कैटरपिलर, यह भारत के उत्तर, भूटान, म्यांमार, चीन, ताइवान और जापान में पाया जाता है।

10. प्राइमेट प्रजाति तमिरिन: ब्राजील के अमेज़ॅन रेनफॉरेस्ट में एक प्रतिबंधित क्षेत्र में पाई जाने वाली एक लुप्तप्राय प्राइमेट प्रजाति तमिरिन पाई गई। इमली सर्वभक्षी है और इसके प्राकृतिक आवास के विनाश के कारण, प्रजाति खतरे में है।

11. नग्न गोल चूहा: इस दुर्लभ चूहे की प्रजाति में इसकी त्वचा में दर्द संवेदनशीलता की कमी होती है, और इसमें चयापचय और श्वसन दर बहुत कम होती है। नग्न गोल-चूहा इसकी दीर्घायु और कैंसर और ऑक्सीजन की कमी के प्रतिरोध के लिए भी उल्लेखनीय है।

12. इंडियन बुल फ्रॉग। शांत नीले गाल यह संभोग के लिए महिला मेंढकों को आकर्षित करने के लिए उपयोग करता है!

13. गहरे समुद्र में पायी जाने वाली मुकुट जेलीफ़िश की प्रजाति अटोला वायविल्ली जेलिफ़िश। जब हमला किया जाता है, तो यह फ्लैश की एक श्रृंखला लॉन्च करेगा, जिसका कार्य शिकारियों को आकर्षित करता है।

14. Atretochoana उर्फ ​​पेनिस स्नेक, 81 सेमी की लंबाई के साथ सबसे बड़ा ज्ञात सीसिलियन। सेसिलियन आमतौर पर शिकारी होते हैं, जो छोटी मछलियों, कीड़े और अन्य जलीय अकशेरुकीय पर भोजन करते हैं। उनके पास खराब दृष्टि है और मुख्य रूप से गंध के बावजूद नेविगेट करते हैं।

हम इंसान पक्षियों, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को कैसे नष्ट कर रहे हैं।

 मुझे बस एहसास हुआ कि हम इंसान पक्षियों, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को कैसे नष्ट कर रहे हैं। प्लास्टिक ग्रह को नष्ट कर देता है। नीचे दिए गए चित्रों को देखकर आप जान जाएंगे कि हमने इस धरती पर अब तक क्या किया है।

चेतावनी: विचलित छवियों।

इन मासूम प्राणियों को नहीं पता कि प्लास्टिक के आवरण से कैसे छुटकारा पाया जाए।

एक प्लास्टिक कवर में हमेशा के लिए अटक गयी ये मछली। सदैव।

यह दुख की बात है।

अगर किसी ने डस्टबिन का इस्तेमाल किया होता, तो ये जीव खुश होते।

यह बेहद दर्दनाक रहा होगा।

तो इन सभी चित्रों के रूप में।

हमने धरती के साथ ही नीचे गहरे समुन्द्र तक को प्रदूषित किया/कर रहे है।

पेन कैप जितना सिंपल है लेकिन उससे होने वाले नुकसान बहुत घातक साबित हो सकते है।

क्या आप जनरहे है की यहाँ क्या हुआ है।

इंसान को पानी की बोतल को कुचलने और कचरे में फेंकने में कितना समय लगेगा?

मैं जानता हूं कि हम प्लास्टिक का इस्तेमाल तब तक बंद नहीं करेंगे जब तक कड़ा कानून लागू नहीं होगा या ये व्यावहारिक नहीं होगा। लेकिन हम उस प्लास्टिक को बिल्कुल कूड़ेदान में फेंक सकते हैं जो हमने ठीक से इस्तेमाल किया था।

मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप प्लास्टिक का उचित तरीके से निपटान करें। प्लास्टिक की छोटी सी टोपी जिसे आप समुद्र में फेंकते हैं, किसी के जीवन को हमेशा के लिए बर्बाद कर सकती है।

कृपया प्लास्टिक का निपटान करें। कम से कम हम ऐसा करना का आज से ही शुरुआत तो कर ही सकते है।

अगर एक बिल्ली अपने आप को साफ कर सकती है, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते।

धन्यवाद

महाभारत के कर्ण पिछले जन्म में कौन थे?

महाभारत के कर्ण पिछले जन्म में कौन थे?

कर्ण के पूर्वजन्‍म की कथा के अनुसार दंबोधव नाम के एक असुर ने सूर्य देव की कठिन तपस्या कर उनसे यह वरदान हासिल कर लिया था कि उसे हजार कवच हासिल होंगे। इतना ही नहीं इन कवचों पर केवल वही व्यक्ति प्रहार कर सकता था, जिसने करीब हजार सालों तक तप किया हो। दंबोधव की इच्छा यहीं पूरी नहीं हुई। उसने सूर्य देव से यह भी वर मांगा कि जो भी उसके कवच को भेदने का प्रयास करे, उसकी उसी क्षण मृत्यु हो जाए। सूर्यदेव ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही दंबोधव ने चारों ओर कोहराम मचा दिया जिससे दुखी होकर प्रजापति दक्ष की पुत्री मूर्ति ने असुर दंबोधव के संहार का वरदान मांगा। तब भगवान विष्‍णु के वरदान से मूर्ति को विवाह पश्‍चात् भगवान विष्‍णु के रूप में दो बालक नर-नारायण हुए।

नर और नारायण के संयुक्त प्रयास से सहस्त्र कवच का अंत हुआ। 999 कवच के संहार के बाद जब केवल एक कवच शेष रह गया तब दंबोधर अपने प्राणों की रक्षा के लिए सूर्यदेव की शरण में चला गया। नर और नारायण, दोनों सूर्य लोक पहुंचे और सूर्य देव से असुर को वापस करने की मांग की। लेकिन सूर्यदेव ने दंबोधव का बचाव किया जिससे नर-नारायण ने रूष्‍ट होकर सूर्यदेव के साथ-साथ दंबोधव को भी श्राप दिया कि अगले जन्म में दोनों को ही अपनी करनी का दंड भोगना पड़ेगा।

द्वापर युग में सूर्यदेव के वरदान से ही असुर दंबोधव ने कर्ण के रूप में जन्‍म लिया। अत: कर्ण ने उसी रक्षा कवच के साथ जन्‍म लिया जो दंबोधर के पास शेष बचा था।

तो इस तरह कर्ण ने अपने पर्वजन्‍मों का फल द्वापर युग में भोगा।

महाभारत के कर्ण केवल शूरवीर या दानी ही नहीं थे अपितु कृतज्ञता, मित्रता, सौहार्द, त्याग और तपस्या का प्रतिमान भी थे। वे ज्ञानी, दूरदर्शी, पुरुषार्थी और नीतिज्ञ भी थे और धर्मतत्व समझते थे। वे दृढ़ निश्‍चयी और अपराजेय भी थे। सचमुच कर्ण का व्यक्तित्व रहस्यमय है। उनके व्यक्तित्व के हजारों रंग हैं, लेकिन एक जगह उन्होंने झूठ का सहारा लिया और अपने व्यक्तित्व में काले रंग को भी स्थान दे दिया। कर्ण कुंती के सबसे बड़े पुत्र थे और कुंती के अन्य 5 पुत्र उनके भाई थे।

कौन्तेयस्त्वं न राधेयो न तवाधिरथः पिता।
सूर्यजस्त्वं महाबाहो विदितो नारदान्मया।।- (भीष्म पर्व 30वां अध्याय)

कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। महाराज कुंतिभोज से कुंती के पिता शूरसेन की मित्रता थी। कुंतिभोज को कोई संतान नहीं थी अत: उन्होंने शूरसेन से कुंती को गोद मांग लिया। कुंतिभोज के यहां रहने के कारण ही कुंती का नाम 'कुंती' पड़ा। हालांकि पहले इनका नाम पृथा था। कुंती (पृथा) का विवाह राजा पांडु से हुआ था।

राजा शूरसेन की पुत्री कुंती अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करती थी। एक बार वहां ऋषि दुर्वासा भी पधारे। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कहा, 'पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूं अतः तुझे एक ऐसा मंत्र देता हूं जिसके प्रयोग से तू जिस देवता का स्मरण करेगी वह तत्काल तेरे समक्ष प्रकट होकर तेरी मनोकामना पूर्ण करेगा।' इस तरह कुंती को वह मंत्र मिल गया।

जब कुंती ने मंत्र की जांच करना चाही...

कुंती तब कुमारी ही थी : एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न इस मंत्र की जांच कर ली जाए। कहीं यह यूं ही तो नहीं? तब उन्होंने एकांत में बैठकर उस मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव का स्मरण किया। उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हो गए। कुंती हैरान-परेशान अब क्या करें?

सूर्यदेव ने कहा, 'देवी! मुझे बताओ कि तुम मुझसे किस वस्तु की अभिलाषा करती हो। मैं तुम्हारी अभिलाषा अवश्य पूर्ण करूंगा।' इस पर कुंती ने कहा, 'हे देव! मुझे आपसे किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं है। मैंने मंत्र की सत्यता परखने के लिए जाप किया था।'

कुंती के इन वचनों को सुनकर सूर्यदेव बोले, 'हे कुंती! मेरा आना व्यर्थ नहीं जा सकता। मैं तुम्हें एक अत्यंत पराक्रमी तथा दानशील पुत्र देता हूं।' इतना कहकर सूर्यदेव अंतर्ध्यान हो गए।

तब लज्जावश माता कुंती ने क्या किया...

जब कुंती हो गई गर्भवती, तब लज्जावश यह बात वह किसी से नहीं कह सकी और उसने यह छिपाकर रखा। समय आने पर उसके गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। कुंती ने उसे एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया।

फिर क्या हुआ उस बालक का...

वह बालक गंगा में बहता हुआ एक किनारे से जा लगा। उस किनारे पर ही धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने अश्व को जल पिला रहा था। उसकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी। अधिरथ ने उस बालक को उठा लिया और अपने घर ले गया। अधिरथ निःसंतान था। अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था। राधा ने उस बालक का अपने पुत्र के समान पालन किया। उस बालक के कान बहुत ही सुन्दर थे इसलिए उसका नाम कर्ण रखा गया। इस सूत दंपति ने ही कर्ण का पालन-पोषण किया था इसलिए कर्ण को 'सूतपुत्र' कहा जाता था तथा राधा ने उस पाला था इसलिए उसे 'राधेय' भी कहा जाता था।

कर्ण का पालन-पोषण चम्पा नगरी (वर्तमान बिहार राज्य के भागलपुर जिले में), जो गंगा के किनारे एक व्यापारिक केंद्र था, में सूत परिवार में हुआ था। इनके पालक पिता अधिरथ थे और माता राधादेवी थी। पिता रथ संचालन करते थे।

सूत पुत्र होने का अर्थ क्या...

क्षत्रियाद्विप्र कन्यायां सूतो भवति जातितः।
वैश्‍यान्मागध वैदेहो राजविप्राड.गना सुतौ।। -
10वें अध्याय का 11वां श्‍लोक

मनु स्मृति से हमें ज्ञात होता है कि 'सूत' शब्द का प्रयोग उन संतानों के लिए होता था, जो ब्राह्मण कन्या से क्षत्रिय पिता द्वारा उत्पन्न हों। लेकिन कर्ण तो सूत्र पुत्र नहीं, सूर्यदेव के पु‍त्र थे । इस सूत को कालांतर में बिगाड़कर शूद्र कहा जाने लगा। अंतत: शूद्र कौन, इसका भी अर्थ बदला जाने लगा।

कर्ण को शस्त्र विद्या की शिक्षा द्रोणाचार्य ने ही दी थी। कर्ण द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी सीखना चाहता था लेकिन द्रोण को कर्ण की उत्पत्ति के संबंध में कुछ मालूम नहीं था इसलिए उन्होंने कर्ण को ब्रह्मास्त्र की शिक्षा नहीं दी।

तब कर्ण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किससे सीखा...

परशुराम और कर्ण : तब कर्ण ने परशुराम की शरण ली और उनसे झूठ बोला कि मैं ब्राह्मण हूं। (ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म ज्ञान को जानने वाला) परशुराम ने उन्हें ब्राह्मण पुत्र समझकर ब्रह्मास्त्र के प्रयोग की शिक्षा दे दी। परशुराम का प्रण था कि में सिर्फ ब्राह्मणों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दूंगा। परशुराम ने कर्ण को अन्य कई अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी और कर्ण पूर्ण रूप से अस्त्र-शस्त्र विद्या में पारंगत हो गए।

फिर एक दिन जंगल में कहीं जाते हुए परशुरामजी को थकान महसूस हुई, उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ी देर सोना चाहते हैं। कर्ण ने उनका सिर अपनी गोद में रख लिया। परशुराम गहरी नींद में सो गए। तभी कहीं से एक कीड़ा आया और वह कर्ण की जांघ पर डंक मारने लगा। कर्ण की जांघ पर घाव हो गया। लेकिन परशुराम की नींद खुल जाने के भय से वह चुपचाप बैठा रहा, घाव से खून बहने लगा।

बहते खून ने जब परशुराम को छुआ तो उनकी नींद खुल गई। उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुमने उस कीड़े को हटाया क्यों नहीं? कर्ण ने कहा कि आपकी नींद टूटने का डर था इसलिए। परशुराम ने कहा किसी ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती है। तुम जरूर कोई क्षत्रिय हो। सच-सच बताओ। तब कर्ण ने सच बता दिया।

क्रोधित परशुराम ने कर्ण को उसी समय शाप दिया कि तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। महाभारत के युद्ध में हुआ भी यही इस अमोघास्त्र का प्रयोग उसने दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था। इसके प्रयोग से भीम पुत्र घटोत्कच मारा गया था।


महाभारत में कर्ण का पालन-पोषण किसने किया था?

अक्सर मैंने देखा है कि जो कर्ण प्रशंसक उसके नीची जाति का होने के कारण हुए अपमान का रोना रोते हैं वो उसे सूतपुत्र या अधिरथ पुत्र नहीं बल्कि सूर्य पुत्र या पांडव कहलवाना चाहते हैं। वो दोगले लोग उस पिता और उस जाति के नाम से उसे पुकारने में शर्म महसूस करते हैं जिस जाति के पिता ने राधानन्दन कर्ण को अपने बड़े पुत्र के समान प्यार किया था और जिस पिता ने उसके सभी संस्कारों को करवाया था।

खैर अब हम उन लोगों का कुछ नहीं कर सकते लेकिन असल रूप में देखा जाये तो जिस जाति का होने को वो अधिरथ पुत्र कर्ण का अपमान समझते हैं वह जाति कोई नीची जाति नहीं बल्कि उस समय की तीसरी सबसे बड़ी जाति थी सूतपुत्र कर्ण एक ऐसी जाति की संतान था जो कि क्षत्रिय पिता और ब्राह्मण माता के कारण सूत कहलाती थी ये लोग क्षत्रियों के बंधु थे जो कि क्षत्रियों से थोड़े नीचे लेकिन वैश्य समाज से उपर के होते थे ये मुख्यत: सारथी(जो कि कोई छोटा मोटा पद नहीं होता था), योद्धा, कथावाचक आदि आदि होते थे कई सूत राजा भी हुए थे विराट नगर के राजा का सेनापति कीचक भी एक सूत ही था जिसके आगे वहां का राजा भी कुछ नहीं बोलता था खुद कर्ण के पिता अधिरथ भी कोई छोटे मोटे खानदान के नहीं थे वो अंग राज्य के शाही खानदान से थे वहीं खानदान जिसमें दशरथ जी के मित्र राजा रोमपाद हुए थे जिन्हें दशरथ जी ने अपनी कन्या शान्ता को गोद दिया था। सामान्य दृष्टिकोण के विपरित अधिरथ कोई गरीब सारथी नहीं था बल्कि धृतराष्ट्र का मित्र और सारथी था उसके यहां सेवक आदि सब थे और पूरी तरह समृद्ध परिवार भी था लेकिन उन्हें और उनकी पत्नी राधा को पुत्र सुख प्राप्त नहीं था जो कि कर्ण को प्राप्त करके पूरा हुआ था कर्ण के बाद में उनके खुद के भी पुत्र हुए थे लेकिन उन्होंने हमेशा कर्ण को अपने बड़े पुत्र की तरह ही प्यार और सम्मान दिया था उन्होंने ही ब्राह्मणों के द्वारा उसके सभी संस्कारों को पूरा करवाया था यहां तक कि अपनी ही जाति की उत्तम कन्याओं से उसका विवाह संस्कार भी किया था।


महाभारत में कर्ण को कुल कितने श्राप मिलें और क्यों?

1- पृथ्वी माता का शाप - एक बार कर्ण कहीं जा रहा था, तभी रास्ते में एक कन्या मिली जो घी के जमीन पर गिर जाने के कारण रो रही थी। कर्ण ने जब कारण पूंछा तो उसने बताया की अगर घी लेकर घर नहीं गई तो मेरी सौतेली मां पिटाई करेगी। इस बात पर कर््ण को दया आ गई। जहां घी गिरा था वहां की मिट्टी को मुट्ठी में भर कर निचोड़ कर घी निकालने लग। इस बात से पृथ्वी माता को कष्ट हुआ और उन्होंने शाप दिया कि " जीवन के निर्णायक युद्ध में वह भी उसके रथ को पकड़ लेंगी"

2- गुरु का शाप- परशुराम का प्रण था कि वह शस्त्र विद्या का ज्ञान केवल क्षत्रियों को नहीं देंगे। लेकिन कर्ण ने झूठ बोलकर उनसे अस्त्र शस्त्र का ज्ञान लिया, बाद में भेद खुलने पर उसके गुरु ने शाप दिया कि " जब तुम्हें इन सब विद्या की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तभी तुम इसे भूल जाओगे"।

3- ब्राह्मण का शाप- शब्दभेदी बाण का अभ्यास करते समय , कर्ण ने एक गाय को मार डाला , वह गाय एक ब्राह्मण की थी ब्राह्मण ने शाप दिया कि " युद्ध के बीच में तुम भी ऐसे मारे जाओगे।


"सूर्यपुत्र कर्ण" नामक एक वाहियात सीरियल में "शाम्भव अस्त्र" की रचना होगी जिसके बारे में स्वयं भगवान शिव को भी पता नहीं होगा।

 

चित्र स्रोत: गूगल

जी हाँ, इस अद्भुत अस्त्र का वर्णन शिव महापुराण में किया गया है। उसमें ये स्पष्ट लिखा गया है कि श्वेत वराह कल्प के सातवें मन्वंतर के 28 वे कलियुग के वर्ष 1978 में सिद्धार्थ तिवारी नामक एक अनपढ़ और जाहिल व्यक्ति पैदा होगा जो "सूर्यपुत्र कर्ण" नामक एक वाहियात सीरियल बनाएगा। उसी सीरियल में "शाम्भव अस्त्र" की रचना होगी जिसके बारे में स्वयं भगवान शिव को भी पता नहीं होगा।

मैं जब से कोरा से जुड़ा हूँ तब से असंख्य बार लोगों से हाथ जोड़ कर यही कहता आ रहा हूँ कि ईश्वर के लिए आज कल के इन बकवास सीरियलों से जितना हो सके दूर रहे और अपने बच्चों को तो बिलकुल दूर रखें। ऐसी घटिया सीरियल देख कर आने वाली पीढ़ी सत्य असत्य को भूल कर ऐसी ही बकवास करने लगेगी इसमें कोई संदेह नहीं है। सरकार को चुनाव और वोट से फुर्सत नहीं है इसीलिए वे इस विषय में कुछ करेंगे, ये सोचना ही मूर्खता है। तो कृपया स्वयं का बचाव स्वयं ही करें।

आपके प्रश्न का उत्तर ये है कि इस प्रकार के किसी भी अस्त्र का विवरण किसी भी पुराण या उप-पुराण में नहीं दिया गया है। ये सब सिर्फ इन धनपिशाच निर्माता निर्देशकों के बीमार दिमाग की उपज है।

रामायण और महभारत जैसे महाकाव्यों में हर व्यक्ति का अपना कोई सबसे पसंदीदा पात्र अवश्य होता है। मेरा भी है। हर कोई चाहता है कि उस पात्र की कमियों को छिपाया जाये और गुणों को उजागर किया जाये। पर समस्या तब आती है जब व्यक्ति अपने उस के महिमामंडन में हर सीमा पार कर देता है। कहा जाता है कि अति सदैव हानि ही करती है, आज कल भी यही हो रहा है। और गंभीर बात ये है कि हर सीरियल में यही हो रहा है।

महाभारत में वैसे भी महर्षि वेदव्यास ने कर्ण को एक महान योद्धा के रूप में चित्रित किया है। फिर आप क्यों उसे अपनी ओर से भगवान बनाने पर तुले हुए हैं? महाभारत पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि जितने दिव्यास्त्र अर्जुन के पास थे, किसी भी अन्य योद्धा के पास नहीं थे। कर्ण के पास निःसंदेह दिव्यास्त्र थे पर महास्त्र के रूप में उनके पास केवल ब्रह्मास्त्र था। उस पर भी श्राप के कारण वो उसे सही समय पर उपयोग में नहीं ला सकते थे। जबकि अर्जुन के पास ब्रह्मास्त्र और पाशुपतास्त्र दोनों महास्त्र थे और उन्हें उनका पूरा ज्ञान था। ये बात अलग है कि उन्हें पाशुपतास्त्र उपयोग में लाने की कभी आवशयकता ही नहीं पड़ी।

इन लोगों की बकवास देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे कर्ण ने युद्ध में परास्त होकर अर्जुन और पांडव सेना पर कोई उपकार कर दिया हो। भाई जब उनके पास शाम्भव अस्त्र नामक कुछ था जो पाशुपतास्त्र को भी निरस्त्र कर सकता था (मुझे लिखते हुए भी हंसी आ रही है) तो उन्होंने युद्ध में उसका उपयोग क्यों नहीं किया? उसे भूल जाने का श्राप थोड़े ही मिला था उन्हें? जब वो इस अस्त्र का उपयोग कर इंद्र देव को विवश कर सकते थे (सीरियल के अनुसार) तो उनके अंश अर्जुन को क्यों नहीं? सत्य ये है कि ऐसा कुछ था ही नहीं तो उपयोग कहाँ से करते।

इंद्र देव को तो ये सीरियल वाले खैर ऐसे दिखाते हैं जैसे कि दुनिया भर की सारी बुराई उनमें ही है और कोई छोटा मोटा योद्धा भी उन्हें परास्त कर देगा। मतलब जिसका भी महिमामंडन करवाना हो तो उससे इंद्र देव को परास्त करवा दो, किस्सा ही ख़तम। ऋग्वेद पढ़िए तो पता चलेगा कि इंद्र कौन हैं, उनकी शक्ति कितनी है और उनका क्या महत्त्व है।

अर्जुन को तो छोड़िये, भीम और यहाँ तक कि सात्यिकी ने भी कर्ण को पराजित किया था। और तो और पांचाल युद्ध में द्रुपद ने भी कर्ण को परास्त किया था। जब गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया था तब वे दुःशासन के साथ रणक्षेत्र से पलायन कर गए। तब ये अस्त्र कहाँ था? कर्ण निःसंदेह एक महान योद्धा थे, उन्हें वही रहने दें, देवता ना बनाये उन्हें।

कर्ण के बेसिरपैर के महिमांडन का श्रेय मराठी लेखक शिवजी सावंत के प्रसिद्ध उपन्यास मृत्युंजय को जाता है। उन्होंने झूठ का एक ऐसा द्वार खोल दिया जिससे आज महारथी कर्ण जैसे बकवास सीरियल निकल कर आ रहे हैं। पढ़ना है तो रामधारी सिंह दिनकर जी की रश्मिरथी पढ़ें। वो भी कर्ण के जीवन पर ही है पर कितनी संतुलित रचना है।

तो फिर से करबद्ध प्रार्थना है कि आज कल के इन बकवास धार्मिक सीरियलों से दूर रहें। ये तो सुधरने से रहे, तो क्यों नहीं हम स्वयं को ही सुधार लें। गीता प्रेस से ग्रन्थ खरीदें और उसे पढ़ें, सही जानकारी मिलेगी। यदि देखना ही हो तो रामानंद सागर जी का रामायण और बी आर चोपड़ा जी का महाभारत देखें। उनमें भी थोड़ी बहुत अशुद्धियाँ हैं लेकिन आज कल के वाहियात सीरियलों के आगे तो वे ईश्वर का आशीर्वाद ही हैं।

जाते जाते इस चित्र पर भी दृष्टि डाल लीजिये जिसे मैंने जान बूझ कर गूगल से खोज कर डाला है ताकि आप लोगों को पता चले कि आज कल की पीढ़ी पैसे कमाने के लिए किस हद तक गिर सकती है। इनसे बच कर रहें।

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