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बुधवार, 29 नवंबर 2023

मेडिकल माफिया को भगाएं, आंवला अपनाएं।

 जिस दिन आपकी सब्ज़ी और खाने में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आधा मेडिकल माफिया जो आपको दिन-रात लूटता आ रहा है वह भाग जाएगा।

सनातन भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था। इसलिये सनातन हिंदुओ की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं इतनी मजबूत होती थी कि, महाराणा प्रताप का महावज़नी भाला उठा सकतीं थी। आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां कीर्तन करने लगती हैं। जिस मौसम में देशी टमाटर मिलें तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा। आंवला ही एक ऐसा फल है। जिसमें सब तरह के रस होते है। जैसे आंवला, खट्टा भी है, मीठा भी, कड़वा भी है और नमकीन भी। आँवले का सनातन संस्कृति में महत्तम इतना है कि, दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है। आपको करना केवल इतना है कि, साबुत या कटा हुआ आँवला, बिना बच्चों और घर के आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है। अगर आँवला साबुत डाला है तो, सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है। जब आंवला नहीं मिलता तो आँवले को सुखा कर पीस कर इसका प्रयोग उचित है।

मेडिकल माफिया को भगाएं, आंवला अपनाएं।
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आमतौर पर आंवला को इंडियन गूजबेरी (भारतीय करौंदा) कहा जाता है। इन पेड़ों की बेरी को इनके औषधीय गुणों के कारण औषधीय फार्मूलेशन में प्रयुक्त किया जाता है। आंवला के पेड़ पर छोटी बेरीज़ होती हैं जो गोल और पीले-हरे रंग की होती है। इसके कई स्वास्थ्य फ़ायदों के कारण इसे सुपरफूड कहा जाता है। प्राचीन आयुर्वेद में आंवला को खट्टा, नर्स, अमरता और माता जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

आंवला की एक अनोखी स्वाद विशेषता होती है, जिसमे पांच अलग-अलग स्वाद जैसे तीखा, कसैला, मीठा, कड़वा, खट्टा और इसके अलावा अन्य स्वाद भी भरे होते हैं। यह मन और शरीर के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। यही कारण है कि इसे एक दिव्य औषधि ”दिव्यौषदा” के रूप में जाना जाता है। आंवला को संस्कृत में अमालाकी कहा जाता है जिसका अर्थ है जीवन का अमृत।

आंवला की रासायनिक संरचना

आंवला का फल एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी), कैरोटीन का एक अच्छा स्रोत है। इसमें अलग-अलग पॉलीफेनोल्स होते हैं जैसे कि एलेजिक एसिड, गैलिक एसिड, एपिजेनिन, क्वेरसेटिन, ल्यूटोलिन एवं कोरिलागिन। आंवला की लगभग अनुमानित संरचना नीचे दी गई टेबल में दी गई है।

घटकमात्रा (प्रति 100 ग्राम)
कार्बोहाइड्रेट10 ग्राम
प्रोटीन0.80 ग्राम
फ़ैट0.50 ग्राम
कुल कैलोरी44 किलोकैलोरी
फ़ाइबर4.3 ग्राम
मैग्नीशियम10 मिलीग्राम
कैल्शियम25 मिलीग्राम
आयरन0.31 मिलीग्राम
पोटैशियम 198 मिलीग्राम
ज़िंक0.12 मिलीग्राम

आंवला के अन्य नाम

Amla (Gooseberry) ke anya naam

  • संस्कृत में इसे आमलकी, श्रीफला, शीतफला, धात्री, तिष्यफला के नाम से जाना जाता है।
  • हिंदी में इसे आंवला के नाम से जाना जाता है।
  • मराठी में इसे अवला के नाम से जाना जाता है।
  • अंग्रेजी में इसे इंडियन गूज़बेरी के नाम से जाना जाता है।
  • कन्नड़ में इसे नेल्ली के नाम से जाना जाता है।
  • तमिल में इसे नेल्लिकाई के नाम से जाना जाता है।
  • तेलुगु में इसे उशीरी काया के नाम से जाना जाता है।
  • मलयालम में इसे नेल्ली के नाम से जाना जाता है।

आंवला के औषधीय और स्वास्थ्य में फ़ायदे

1: आंवला और हाइपरटेंशन

आंवला विभिन्न एंटीऑक्सिडेंट का अच्छा स्रोत है। यह मानव के तनाव में होने के दौरान शरीर द्वारा निर्मित मुक्त रैडिकल को साफ करने के लिए जाना जाने वाला एक एंटीऑक्सिडेंट गुण है। आंवला में एंटीऑक्सिडेंट के साथ-साथ पोटैशियम भी काफ़ी मात्रा में होता है। इसलिए, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने की पोटैशियम की क्षमता के कारण, ब्लड प्रेशर की समस्याओं से पीड़ित रोगियों के आहार में इसका नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। पोटैशियम द्वारा हाइपरटेंशन के प्रबंधन में शामिल मुख्य मकैनिज़्म ब्लड वेसल्स को फैलाना है, जो ब्लड प्रेशर की संभावनाओं को और कम कर देता है। इस स्थिति में आंवला का जूस पीना असरदार हो सकता है।

2: डायबिटीज़ में आंवला

परंपरागत रूप से, आंवला का उपयोग डायबिटीज़ को नियंत्रित करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। डायबिटीज़ के पीछे का मुख्य कारण तनाव होना है। आंवला विटामिन C का अच्छा स्रोत है। यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है जो मुक्त रेडिकल के बनाव और ऑक्सीडेटिव तनाव के असर को बदलने में मदद करेगा। आंवला के उत्पादों का नियमित सेवन डायबिटीज़ की संभावनाओं को रोक सकता है। अन्य मैकेनिज़्म में, आंवला के रेशे शरीर में अतिरिक्त शुगर को नियमित ब्लड शुगर के स्तर तक अवशोषित करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए आंवला को अपने डायबिटीज़ डाइट प्लान में शामिल करने से डायबिटीज़ के असरदार प्रबंधन में मदद मिल सकती है।

3: आंवला और पाचन तंत्र

आंवला की बेरीज़ में पर्याप्त मात्रा में घुलनशील फाइबर होते हैं। ये फ़ाइबर आंतों की गति को विनियमित करने में भूमिका निभाते हैं, जो खराब बाउअल सिंड्रोम को कम करने में मदद कर सकते है। आंवले में विटामिन C की अधिक मात्रा होने के कारण, यह आवश्यक खनिजों की अच्छी मात्रा को अवशोषित करने में भी मदद करता है। इसलिए यह विभिन्न हेल्थ सप्लीमेंट के साथ तालमेल रखता है।

प्रतिदिन एक आंवला आपके स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव डाल सकता है? इसका सेवन करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति बढ़ते रुझान के साथ, जिन खाद्य पदार्थों को कभी कई उपचारों और दवाओं में आयुर्वेदिक खजाने के रूप में उपयोग किया जाता था, वे अब प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं। ऐसा ही एक हरे रंग का फल है आंवला जिसे इंडियन गूसबेरी के नाम से जाना जाता है। काढ़ा से लेकर अचार और जूस तक, इस सदियों पुराने फल में शक्तिशाली औषधीय गुण हैं जो एक ही समय में तीनों दोषों (कफ/वात/पित्त) को लगभग ठीक कर सकते हैं। यहां कुछ और कारण बताए गए हैं कि क्यों स्वास्थ्य विशेषज्ञ आंवला को दैनिक आहार में शामिल करने का सुझाव देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब आप रोजाना आंवला खाते हैं तो क्या होता

आपको रोजाना आंवला क्यों खाना चाहिए?

संस्कृत में आंवला का अनुवाद अमलकी के रूप में किया जाता है जिसका अर्थ है जीवन का अमृत जो इसके शक्तिशाली गुणों को परिभाषित करता है जो प्रतिरक्षा को बढ़ावा दे सकता है, पाचन, चयापचय और आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है। विटामिन सी, फाइबर और खनिज जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, आंवले में संतरे और अन्य खट्टे फलों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक विटामिन सी होता है, जो मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करता है और कोशिका पुनर्जनन में मदद करता है। रोजाना आंवला खाने से बांझपन, पाचन संबंधी समस्याएं, सर्दी, खांसी और एलर्जी जैसी कई अंतर्निहित बीमारियों के इलाज में मदद मिलती है। इसके अलावा, आंवले में उत्कृष्ट सूजनरोधी, कैंसररोधी गुण होते हैं, इसलिए इस फल को कच्चा या जूस के रूप में खाने से कई स्वास्थ्य समस्याएं स्वाभाविक रूप से ठीक हो सकती हैं


आपको प्रतिदिन कितना आंवला खाना चाहिए और क्यों?

 विशेषज्ञों के अनुसार, एक औसत वयस्क प्रतिदिन लगभग 75-90 मिलीग्राम आंवला खा सकता है। 100 ग्राम आंवले की एक खुराक में लगभग 300 मिलीग्राम विटामिन सी, आहार फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पॉलीफेनोल्स, एल्कलॉइड और फ्लेवोनोइड जैसे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। रोजाना आंवला खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, उम्र से संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन का खतरा कम होता है और विटामिन की उपस्थिति के कारण आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इसके अलावा, इसमें आहार फाइबर और टैनिक जैसे एसिड की उपस्थिति के कारण यह वजन कम करने में मदद करता है। प्रोटीन, जो वसा जलाने, पोषण देने और सूजन को कम करने में मदद करता है। यहां बताया गया है कि आप आंवले को अपनी दिनचर्या में कैसे शामिल कर सकते है

आंवले को दैनिक आहार में कैसे शामिल करें?

आंवले का मीठा, खट्टा, तीखा स्वाद और तीखी सुगंध कुछ लोगों के लिए इसे कच्चा खाना मुश्किल बना देती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इसे कच्चा खाना या जूस के रूप में खाना या सिर्फ धूप में सुखाना इसके लाभों को प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। हरा फल. वास्तव में, आंवले के निर्जलित और धूप में सुखाए गए संस्करण में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है, जो इसे किसी भी समय खाने के लिए एक आदर्श चीज़ बनाता है

 

ये है आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले विश्व के महान भारतीय गणितज्ञ डॉ . वशिष्ठ नारायण सिंह

 

एक बूढ़ा आदमी हाथ में पेंसिल लेकर यूं ही पूरे घर में चक्कर काट रहा था, कभी अख़बार, कभी कॉपी, कभी दीवार, कभी घर की रेलिंग, जहां भी उनका मन करता, वहां कुछ लिखते, कुछ बुदबुदाते हुए।।घर वाले भी उन्हें देखते रहते हैं, कभी आंखों में आंसू तो कभी चेहरे पर मुस्कराहट ओढ़े।

77 साल का 'पगला सा' यह आदमी अपने जवानी में 'वैज्ञानिक जी' के नाम से मशहूर था। मिलिए…... ये है आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले विश्व के महान भारतीय गणितज्ञ डॉ . वशिष्ठ नारायण सिंह जो छात्र के रूप में एक किंवदंती बन चुके है।

लेकिन ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि 47 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह बेहतर इलाज के अभाव में पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं।

इनके बारे में मेरे द्वारा लिखा जाना सूर्य को दीयां दिखाने के समान होगा। लेकिन आपकी जानकारी के लिए उनकी कुछ उपलब्धियों का जिक्र जरूर करना चाहूंगा। जिसके बारे में जानकर विकृत हो जाएगी सारी दुनिया विशेषकर महानतम भारत देश और यह समाज…

  • श्री वशिष्ठ का जन्म 2 अप्रैल 1942 में भारत के बिहार में भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में लाल बहादुर सिंह और लाहसो देवी के यहाँ हुआ था।
  • प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय से प्राप्त की और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाया।
  • श्री वशिष्ठ के लिए पटना विश्वविद्यालय के कानून बदलाव किये। जिसमे श्री वशिष्ठ को B..Sc. के तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के स्थान पर दो वर्षीय पाठ्यक्रम में उपस्थित होने की अनुमति दी गई और पटना साइंस कॉलेज से B. Sc.आनर्स में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
  • श्री वशिष्ठ की इस प्रतिभा को हमारे देश का कोई भी बुद्धजीवी पहचान नही सका बल्कि सात समंदर पार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नज़र उन पर पड़ी और उनकी प्रतिभा को पहचाना। 1965 में श्री वशिष्ठ नारायण अमरीका चले गए। वहाँ उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में मैथमेटिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। 1969 में "द पीस आफ स्पेस थ्योरी" विषयक पर उनके शोध पत्र ने दुनिया मे तहलका मचा दिया और बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें " जीनियसों का जीनियस " कहा।
  • अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA में काम करते हुए विदेशी धरती पर जब श्री वशिष्ठ का मन नही लगा तो, 1971 में देश सेवा का प्रण लिए वतन वापसी की और IIT कानपुर, फिर टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च, बंबई और फिर Indian Statistical Institute, कोलकाता में नौकरी की और 2014 में, उन्हें मधेपुरा में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (बी.एन.एम.यू.) में एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। डॉ० वशिष्ठ के बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक समान था।

बीमारी और सदमा

खुद को कमरे में बंद करके दिन-दिन भर पढ़ते रहना, रात भर जागना डॉ० वशिष्ठ के व्यवहार में शामिल था। वह कुछ दवाइयां भी खाते थे लेकिन वे किस बीमीरी की थीं, इस सवाल को टाल दिया करते थे। उनके इस व्यवहार से उनकी पत्नी जल्द परेशान हो गईं और तलाक़ ले लिया। यह डॉ० वशिष्ठ के लिए बड़ा सदमा था। तक़रीबन यही वह वक्त था जब वह आई.एस.आई. कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी वशिष्ठ परेशान थे क्योंकि कई वरिष्ठ प्रोफ़ेसर्स उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया करते थे और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी।

इसे के चलते 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें 1976 में रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती करवाया गया। सरकार द्वारा इलाज के लिए दी जाने वाली वित्तीय मदद बहुत ही कम होने के कारण उचित इलाज नही हो सका।

श्री वशिष्ठ का परिवार भी शायद अब उनके इलाज को लेकर नाउम्मीद हो चुका है। लेकिन उनके किताबों से भरे बक्से, दीवारों पर श्री वशिष्ठ की लिखी हुई बातें, उनकी लिखी कॉपियां अब उनको भी डराती होंगी। डर इस बात का कि क्या वशिष्ठ बाबू के बाद ये सब रद्दी की तरह बिक जाएगा।

बहुत ही मामूली आदमी का बेटा श्री वशिष्ठ से आखिर क्या गलती हुई कि आज वह इस स्थिति में हैं ? सिर्फ और सिर्फ यही कि देशप्रेम में उन्होंने अमेरिका में न जाने कितने ऑफर ठुकरा दिए और अपनी मातृभूमि की सेवा करने चले आए। लेकिन भारत माता की छाती पर पहले से बैठे सु० ( कु० ) पुत्रों ने उनको पागल बना कर वशिष्ठ पागल की उपाधि से नवाजा। जिस वशिष्ठ का एक जमाना था जिसे गणित में आर्यभट्ट व रामानुजम का विस्तार माना जाता था, वही वशिष्ठ , जिनके चलते पटना विश्वविद्यालय को अपना कानून बदलना पड़ा था । इस चमकीले तारे के खाक बनने की लम्बी दास्तान है। खैर , उन तमाम लोगों को बहुत - बहुत धन्यवाद , जो अपने को अनाम / गुमनाम रखते हुए , डॉ वशिष्ठ के भोजन , पटना में उनके रहने का इंतजाम , दवाई आदि का प्रबंध किए हुए हैं ।

इस देश में एक मिनिस्टर का कुत्ता बीमार पड़ जाए तो डॉक्टरों की लाइन लग जाती है, लेकिन डॉ० वशिष्ठ जैसे सपूतों को इस समाज ने मानसिक रोगी बना दिया। डॉ०वशिष्ठ का क्या गया ? गया तो इस देश - समाज का , जो उनका उपयोग नहीं कर पाया ।

स्रोत: गूगल, विकिपीडिया, बीबीसी

कांग्रेस वामपंथी शिवसेना यानी पूरा विपक्ष यही कामना कर रहा था कि कश मजदूर सुरंग में से बाहर ना निकल सके उनका मौत हो जाए और हम इसे मोदी को बदनाम करने के लिए एक बड़े मुद्दे के तौर पर देश में उठा सकें

 

टनल में फंसे मजदूर बाहर आ गए।

मूर्खों की फौज की छाती पर सांप लोट रहा होगा लेकिन बाकी देश खुशी से झूम रहा है।

अपने आप में अभूतपूर्व रहा है ये रेस्क्यू ऑपरेशन। हर राहतकर्मी को बहुत बधाई उनकी कठोर मेहनत और सफलता के लिए।

केंद्र सरकार और उनकी टीम ने जिस तरह से घोड़े खोल दिए थे गरीब मजदूरों को बचाने के लिए उससे इस देश के हर गरीब को ये मेसेज भी गया है कि उसके भी जान की कीमत है, उसकी भी परवाह करनेवाला पीएम है

वरना इत्तेफाक देखिए कि अभी ही नेटफ्लिक्स पर द रेलवे मेन करके वेबसीरीज़ आ रही है 1984 के भोपाल गैस कांड पर जिसको देखकर समझ आता है कि लोगों को मरता छोड़ देने वाली सरकारें भी देखी हैं इस देश ने। एक भारतीय होने के नाते गर्व से सीना चौड़ा हो गया है देश की इस कामयाबी पर।

कांग्रेस वामपंथी शिवसेना यानी पूरा विपक्ष यही कामना कर रहा था कि कश मजदूर सुरंग में से बाहर ना निकल सके उनका मौत हो जाए और हम इसे मोदी को बदनाम करने के लिए एक बड़े मुद्दे के तौर पर देश में उठा सकें

मजदूरों के निकलने से सबसे बड़ा दुख भारत के विपक्ष को हो रहा है

इनका दुख ये भी था कि मजदूरों को बचाने मोदी जी गेती फावड़ा लेकर सुरंग में क्यों नहीं जा रहे है..

मनमोहन सिंह PM होते तो कब का ही सुरंग में जाकर मजदूरों को निकाल लाते …जिनको निकलने में कई सप्ताह लग गए।

और आज अगर चिच्चा होते, तो मजदूर 16 दिन पहले ही बाहर निकाल लेते, क्योंकि चिच्चा खुदाई में कितने माहिर थे, सारी दुनिया जानती है।

प्राचीन समय में लकड़ी के इस यंत्र से ऋषि-मुनि यज्ञ के लिए करते थे अग्नि उत्पन्न, आज भी होता है इसका उपयोग

 

प्राचीन समय में लकड़ी के इस यंत्र से ऋषि-मुनि यज्ञ के लिए करते थे अग्नि उत्पन्न, आज भी होता है इसका उपयोग


हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं हैं। इनमें से कुछ का पालन आज भी किया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा है यज्ञ। पुरातन काल से ही हमारे ऋषि मुनि जनकल्याण के लिए यज्ञ करते आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि यज्ञ करने से देवता प्रसन्न होते हैं और मनोकामना भी पूरी करते हैं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग और द्वापर युग में राजा-महाराज अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ करते थे। यज्ञ करवाने के लिए सिद्धि मुनियों को बुलवाया जाता था। लेकिन यहां एक बात अचंभित करने वाली है कि उस समय माचिस या ऐसी कोई चीज नहीं होती थी, जिससे कि आग जलाई जा सके तो फिर ऋषि-मुनि किस प्रकार अग्नि प्रज्वलित करते थे। आज हम आपको इससे जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

अरणी मंथन से उत्पन्न की जाती थी अग्नि
शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का। इन दोनों की वृक्षों की लकड़ी से अरणी मंथन काष्ठ बनता है। उसमें अग्रि विद्यमान होती है, ऐसा हमारे शास्त्रों में उल्लेख है। इन लकड़ियों का विशेष प्रकार से उपयोग करने पर अग्नि उत्पन्न की जा सकती है। साथ ही इसके लिए विशेष मंत्र भी बोलकर अग्नि देवता का आवाहन भी किया जाता है।

कैसे करते हैं इसका उपयोग?
अरणी शमी की लकड़ी का एक तख्ता होता है जिसमें एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर पीपल की लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह तेजी से चलाया जाता है। इससे तख्ते में चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, फिर हवा देकर इस आग को बढ़ाया जाता है और यज्ञ में इसका उपयोग किया जाता है। भारत में पुराने समय में हर काम के लिए आग जलाने के लिए यही तरीका अपनाया जाता था। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहा जाता है।

अग्नि देवता का करते हैं आवाहन
अरणी मंथन का उपयोग कर यज्ञ के लिए अग्नि उत्पन्न करना पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीका है, लेकिन इसके साथ-साथ ऋषि-मनि विशेष मंत्रों के माध्यम से अग्नि देवता का आवाहन भी करते थे। ऐसी मान्यता है कि उन मंत्रों से प्रभावित होकर अग्नि देवता स्वयं यज्ञ कुंड में प्रकट होते थे और समिधा आदि को ग्रहण करते हैं।

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