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बुधवार, 31 जनवरी 2024

अजवायन खाने के फायदे और नुकसान


अजवायन खाने के फायदे और नुकसान ....


1 अजवायन का परिचय.....

 अजवाइन खाने से सीने की जलन में लाभ

 अजवाइन के सेवन से पाचनतंत्र विकार से राहत 

अजवाइन के इस्तेमाल से हाजमा होता है बेहतर 

एसिडिटी की परेशानी में अजवाइन का इस्तेमाल 

 अजवाइन के उपयोग से उल्टी-दस्त पर रोक 

अजवाइन के प्रयोग से पेट दर्द से राहत 

मासिक धर्म की रुकावट में अजवाइन से फायदा 

सर्दी-जुकाम में अजवाइन का उपयोग लाभदायक 

खांसी और बुखार में अजवाइन से फायदा 

पेट में कीड़े होने पर अजवाइन का उपयोग

 अजवाइन के इस्तेमाल से शिशुओं को पेट दर्द से मिले राहत 

बच्चे बिस्तर पर पेशाब करते हैं तो करें अजवाइन का प्रयोग

 बच्चों के पेट में कीड़े हैं तो कराएं अजवाइन का सेवन 

 कान दर्द से राहत के लिए 
अजवाइन का उपयोग

 प्रसव (डिलिवरी) के बाद अजवाइन के उपयोग से फायदा 

डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए अजवाइन का प्रयोग 

शरीर के दर्द में अजवाइन के लेप से मिले राहत 

नपुंसकता, शीघ्रपतन और शुक्राणु की कमी में अजवाइन से लाभ 

दाद, फुन्सी, खुजली आदि चर्म-रोगों में अजवाइन से लाभ 

पित्ती उछलने (त्वचा पर लाल रंग के दाने वाला रोग) पर अजवाइन का इस्तेमाल 

 पेशाब संबंधी परेशानियों में अजवाइन से लाभ 

बुखार उतारने के लिए अजवाइन का उपयोग 

मलेरिया बुखार में अजवाइन के इस्तेमाल से लाभ 

 शराब पीने की आदत छुड़ाने में अजवाइन मददगार 

अजवाइन के सेवन से हैजा से मिले राहत 

चोट लगने पर करें अजवाइन का इस्तेमाल 

पैरों में कांटा चुभने पर अजवाइन का प्रयोग 

बवासीर में फायदेमंद अजवाइन

 किडनी (गुर्दे) की दर्द की समस्या में अजवाइन का सेवन

कीटों के काटने पर अजवाइन का प्रयोग फायदेमंद 

जूं (लीख) निकालने में अजवाइन का प्रयोग फायदेमंद 

अजवायन का परिचय ....

आप अजवाइन के उपयोग के बारे में जरूर जानते होंगे, क्योंकि हर घर में रोज अजवाइन इस्तेमाल में लाई जाती है। आमतौर पर लोग अजवाइन को केवल खाना पकाते समय मसाले के रुप में ही उपयोग में लाते हैं, क्योंकि लोगों को यह नहीं पता कि अजवाइन एक बहुत ही उपयोगी औषधि भी है। कहने का मतलब यह है कि अजवाइन खाने के फायदे एक नहीं, बल्कि कई सारे हैं।

अजवाइन के बारे में एक आम कहावत है कि अकेली अजवाइन ही सैकड़ों प्रकार के अन्न को हजम करने में सहायता करती है। इसके साथ-साथ अजवाइन खाने के फायदे के रुप में यह भी बताया गया है, कि इससे कई बीमारियां भी ठीक की जा सकती हैं। 

अधिकांश लोगों को अजवाइन से होने वाले फायदे की जानकारी ही नहीं होती। इसलिए वे अजवाइन का भरपूर लाभ नहीं ले पाते हैं। आइए आपको बताते हैं कि अजवाइन कितनी गुणकारी होती है।

अजवायन क्या है?...

अजवाइन मुख्यतः तीन प्रकार की होती है:-

अजवाइन

जंगली अजवाइन

खुरासानी अजवाइन।

यह एक बीज है, जो मसाला एवं औषधि के रूप में इस्तेमाल की जाती है। कई तरह की बीमारियों को ठीक करने में अजवाइन बहुत फायदेमंद साबित होती है। हमारे देश में हजारों सालों से अजवाइन का प्रयोग मसाले के साथ-साथ एक औषधि के रुप में किया जा रहा है। मसाला, चूर्ण, काढ़ा और रस के रूप में भी अजवाइन खाने के फायदे मिल जाते हैं।

अन्य भाषाओं में अजवायन के नाम ....

अजवाइन देश के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नाम से जानी जाती है। अजवाइन को हिंदी में अजवाइन, अजवाइन, अजमायन, अजवाइन, जबायन, या अजवां, या फिर अजोवां के नाम से भी जानते हैंं। इसी तरह अन्य भाषाओं में अजवाइन को इन नामों से बुलाते हैंः-

अजवायन के फायदे ...

अजवाइन किस-किस बीमारी को ठीक करने में मदद पहुुंचाती है, यह जानने, और इसका पूरा लाभ लेने के लिए आपको अजवाइन के इस्तेमाल और अजवाइन की खुराक के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, जो ये हैंः-

अजवाइन खाने से सीने की जलन में लाभ.... 

सदियों से दादी-नानी के घरेलू नुस्ख़ों में एसिडिटी, पेट में जलन आदि समस्याओं के लिए अजवाइन का प्रयोग किया जाता रहा है।

अधिक तीखा भोजन करने के बाद छाती में जलन की परेशानी हो जाती है। ऐसे में 1 ग्राम अजवाइन, और बादाम की 1 गिरी को खूब चबा-चबा कर, या पीस कर खाएं। इससे फायदा होता है।

अगर कोई पेट संबंधी रोगों से परेशान रहता है, तो उसे 1 भाग अजवाइन, आधा भाग काली मिर्च, और सेंधा नमक को मिलाकर पीस लेना है। इसे गुनगुने जल के साथ, 1-2 ग्राम की मात्रा में लेना है। सुबह-शाम सेवन करने से पेट संबंधी रोग ठीक होते हैं।

अजवाइन के सेवन से पाचनतंत्र विकार से राहत....

अगर किसी को पाचन शक्ति को बेहतर बनाना है तो अजवाइन के औषधीय गुणों से लाभ उठाने की ज़रूरत है।

अगर किसी व्यक्ति का पाचनतंत्र सही नहीं रहता हो, तो उसे 80 ग्राम अजवाइन, 40 ग्राम सेंधा नमक, 40 ग्राम काली मिर्च, 40 ग्राम काला नमक, 500 मिग्रा यवक्षार लेना चाहिए। इन्हें 10 मिली कच्चे पपीते के दूध (पापेन) में महीन पीस लेना है। इसे कांच के बर्तन में भर लें, और 1 ली नींबू का रस इसमें डालकर धूप में रख दें। इसे बीच-बीच में हिलाते रहें। 1 महीने बाद जब यह बिल्कुल सूख जाए, तो सूखे चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में जल के साथ सेवन करें। इससे पाचन-शक्ति स्वस्थ होती है, तथा अपच, अमाशय संबंधी रोग, और बार-बार दस्त होने की बीमारी में लाभ होता है। अजवाइन के गुण सिर्फ पाचन में ही नहीं दूसरे बीमारियों में भी फायदेमंद होता है।

1 ग्राम अजवाइन को इन्द्रायण के फलों में भरकर रख दें, जब यह सूख जाए तब बारीक पीस लें। इसमें अपनी इच्छानुसार काला नमक मिलाकर रख लें। इसे गर्म जल से सेवन करें। इसके प्रयोग से पेट संबंधित सभी विकारों से आराम मिलता है।

1.5 लीटर जल को आग पर रखें। जब पानी पूरी तरह उबलकर 1.25 लीटर रह जाय, तब नीचे उतार लें। इसमें आधा किलोग्राम पिसी हुई अजवाइन डालकर ढक्कन बंद कर दें। जब यह ठंडा हो जाय तो छानकर बोतल में भर कर रख लें। इसे 50-50 मिली दिन में 3 बार सेवन करें। इसके प्रयोग से पेट के पाचन-तंत्र संबंधी विकार ठीक होते हैं।

1 किलोग्राम अजवाइन में, 1 लीटर नींबू का रस और पांचों नमक 50-50 ग्राम लें। इन्हें कांच के बरतन में भरकर रख दें। इसे दिन में धूप में रख दिया करें। जब रस पूरी तरह सूख जाय तब दिन में दो बार 1-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे पेट सम्बन्धी बीमारियां ठीक होती हैं।

अजवाइन के इस्तेमाल से हाजमा होता है बेहतर...


अजवाइन के गुण हजम शक्ति बढ़ाने में बहुत मदद करती है। बस इसको सेवन करने का सही मात्रा और तरीका पता होना ज़रूरी होता है।

जिस भी व्यक्ति को दूध ठीक से ना पचता हो, उसे दूध पीने के बाद थोड़ी अजवाइन खा लेनी चाहिए।

यदि गेहूं का आटा, मिठाई आदि ना पचता हो तो उसमें अजवाइन के चूर्ण को मिलाकर खाने से फायदा होता है।

पाचन-क्रिया खराब हो गई हो, तो 25 मिली अजवाइन के काढ़ा को दिन में 3 बार पिलाने से लाभ होता है।

एसिडिटी की परेशानी में अजवाइन का इस्तेमाल 
एसिडिटी के परेशानी से राहत पाने के लिए अजवाइन के फायदे का सही तरह से उपयोग करना ज़रूरी होता है।

अक्सर बाहर का कुछ उल्टा-सीधा खा लेने पर खट्टी डकारें, और पेट में गुड़गुड़ाहट जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इसके लिए आप 250 ग्राम अजवाइन को 1 लीटर गौमूत्र में भिगोकर रख लें। इसे 7 दिन तक छाया में सुखा लें। इसे 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे जलोदर, खट्टी डकारें आना, पेट दर्द, पेट में गुड़गुड़ाहट आदि रोगों में लाभ होता है।

अजवाइन को बारीक पीसकर, उसमें थोड़ी मात्रा में हींग मिला लें। इसका लेप बना लें। इसे पेट पर लगाने से पेट के फूलने, और पेट की गैस आदि परेशानियों में तुरंत लाभ होता है।

वचा, सोंठ, काली मिर्च तथा पिप्पली से काढ़ा बना लें। इस चूर्ण को खाने से पेट की गैस की समस्या ठीक होती है।

समान मात्रा में अजवाइन, सेंधा नमक, सौवर्चल नमक, यवक्षार, हींग, और सूखे आंवला लें। इनका चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को 2-3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें। इससे डकार की परेशानी ठीक होती है।

अजवाइन के उपयोग से उल्टी-दस्त पर रोक....

उल्टी और दस्त से परेशान हैं, तो दिव्यधारा की 3-4 बूंदे, बतासे या गुनगुने जल में डालकर लें। अगर एक बार में फायदा ना हो, तो थोड़ी-थोड़ी देर में 2-3 बार दे सकते हैं।

3 ग्राम अजवाइन, और 500 मिग्रा नमक को ताजे पानी के साथ सेवन करें। इससे दस्त में तुरन्त लाभ होता है। अगर एक बार में आराम ना हो, तो अजवाइन के इस पानी को 15-15 मिनट के अन्तर पर 2-3 बार लें।

अजवाइन के प्रयोग से पेट दर्द से राहत ...



अजवाइन, सेंधा नमक, हरड़. और सोंठ के चूर्ण को बराबर-बराबर मात्रा में मिला लें। इस चूर्ण को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे पेट का दर्द ठीक होता है।

पेट में मरोड़े या दर्द की स्थिति में, 3-4 बूंद दिव्यधारा को बतासे में डालकर देने से तुरन्त लाभ होता है।

मासिक धर्म की रुकावट में .....

अजवाइन से फायदा 
अजवाइन, मासिक धर्म रुकावट जैसी परेशानी में भी असरदार होता है। आप 10 ग्राम अजवाइन, और 50 ग्राम पुराने गुड़ को 400 मिली जल में पका लें। इसे सुबह-शाम सेवन करें। इससे गर्भाशय की गंदगी साफ होती है, और मासिक धर्म संबंधी विकार भी ठीक होते हैं।
इसी तरह 3 ग्राम अजवाइन के चूर्ण को गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे भी मासिक धर्म में लाभ होता है।

सर्दी-जुकाम में अजवाइन का उपयोग लाभदायक ....

सर्दी-जुकाम को ठीक करने के लिए 200 से 250 ग्राम अजवाइन को मलमल के कपड़े में बांध लें। इसे पोटली बनाकर तवे पर गर्म कर लें। इसे सूंघें। इससे सर्दी-जुकाम में आराम मिलता है।

केवल अजवाइन का काढ़ा बनाकर पीने से सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।

2-3 ग्राम अजवाइन के चूर्ण को गुनगुने पानी या दूध के साथ पिएं। इसे दिन में दो-तीन बार सेवन करना है। इससे जुकाम, खांसी तथा सिर दर्द में लाभ होता है।

इसके अलावा आप 1 ग्राम अजवाइन, 1 ग्राम सोंठ, तथा 2 नग लौंग को 200 मिली पानी में पकाएं। जब पानी एक चौथाई (¼) बच जाए तो पानी को छानकर पिएं। इससे जुकाम व सर्दी में लाभ होता है।

कफ वाली खांसी हो, और कफ अधिक निकलता हो, या फिर बार-बार खांसी आती हो तो, 125 मिग्रा अजवाइन के रस में 2 ग्राम घी, और 5 ग्राम शहद मिला लें। इसे दिन में 3 बार खाएं। इससे कफ वाली खांसी में लाभ होता है।

इसी तरह 2 ग्राम मुलेठी और 1 ग्राम चित्रक-जड़ का काढ़ा बना लें। इसमें 1 ग्राम अजवाइन मिलाकर रात में सेवन करें। इससे खांसी में लाभ होता है।

5 ग्राम अजवाइन को 250 मिली पानी में पकाएं। जब पानी आधा हो जाए, तो इसे छानकर नमक मिला लें। इसे रात को सोते समय पिएं। इससे खांसी में लाभ मिलता है।

खांसी और बुखार में अजवाइन से फायदा...


अगर आप खांसी और बुखार से पीड़ित हैं, तो इन रोगों को ठीक करने के लिए अजवाइन का उपयोग 
कर सकते हैं। इसके लिए आपको ये तरीका आजमाना हैः-

2 ग्राम अजवाइन तथा आधा ग्राम छोटी पिप्पली का काढ़ा बना लें। इसे 5 से 10 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे खांसी-बुखार ठीक होते हैं।

अगर खांसी पुरानी हो गई हो, और पीला (दुर्गन्धमय) कफ निकल रहा हो। इसके साथ ही पाचन-क्रिया मन्द पड़ गई हो, तो 25 मिली अजवाइन का काढ़ा बना लें। इसे दिन में 3 बार लेने से लाभ होता है।

पुदीना का रस या 10 ग्राम पुदीना के फूल के साथ 10 ग्राम अजवाइन का रस लें। इसे 10 ग्राम देसी कपूर के साथ एक साफ शीशी में डालकर अच्छे से बंद कर लें। इसे धूप में रखें। कुछ देर बाद तीनों चीजें मिलकर एक दवा का रूप ले लेगी। यह दवा अनेक बीमारियों में काम आती है। यह सर्दी-जुकाम, कफ, सिर दर्द आदि रोगों में बहुत फायदेमंद होता है। इसी औषधि में थोड़ा बदलाव किया जाता है, तो यह दिव्यधारा नाम की औषधि बन जाती है।

सर्दी-जुकाम होने पर 3-4 बूंद दिव्यधारा, रुमाल में डालकर सूंघें। इसके अलावा, आप दिव्यधारा की 4-5 बूंद को गर्म पानी में डालकर भांप के रूप में भी ले सकते हैं। इससे लाभ होता है।

पेट में कीड़े होने पर अजवाइन का उपयोग...

अजवाइन के 3 ग्राम महीन चूर्ण को दिन में दो बार छाछ के साथ सेवन करें। इससे आंत के हानिकारक कीड़े खत्म हो जाते हैं।
अजवाइन के 2 ग्राम चूर्ण को काला नमक के साथ सुबह-सुबह सेवन करें। इससे अपच, गठिया, पेट के कीड़ों के कारण होने वाली पेट की बीमारियां जैसे- पेट फूलना, तथा पेट दर्द, पाचन-तंत्र की कमजोरी, एसिडिटी आदि ठीक होती हैं।

अजवाइन के इस्तेमाल से शिशुओं को पेट दर्द से मिले राहत ...

कई बार छोटे बच्चों को पेट में दर्द जैसी परेशानी हो जाती है। इस परेशानी में बारीक साफ कपड़े के अन्दर अजवाइन को रख लें। इसे शिशु के मुंह में चटाएं। इससे शिशु के पेट का दर्द तुरन्त ठीक हो जाता है।

बच्चे बिस्तर पर पेशाब करते हैं तो करें अजवाइन का प्रयोग....

जो बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं, उन्हें रात में 500 मिग्रा अजवाइन खिलाएं। इससे फायदा हो सकता है।

बच्चों के पेट में कीड़े हैं तो कराएं अजवाइन का सेवन...

अक्सर ऐसा देखा जाता है कि छोटे बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं। इसके कारण बच्चों को पेट संबंधी कई तरह की परेशानियों हो जाती हैं। इस बीमारी में अजवाइन के 500 मिग्रा चूर्ण लें, और इतना ही काला नमक मिला लें। इसे रात के समय गुनगुने जल के साथ सेवन कराएं। इससे आराम मिलता है।

कान दर्द से राहत के लिए..

अजवाइन का उपयोग
अगर कोई कान के दर्द से परेशान रहता है, तो उसे 10 ग्राम अजवाइन को 50 मिली तिल के तेल में पका लेना है। इसे छानकर रख लेना है। इस तेल को गुनगुना कर, 2-2 बूंद कान में डालें। इससे कान का दर्द ठीक होता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर लें।

प्रसव (डिलिवरी) के बाद अजवाइन के उपयोग से फायदा....

प्रसव के बाद प्रायः महिलाओं को शरीर में दर्द की शिकायत होती है। इस स्थिति में महिलाओं को भूख भी कम लगती है। ऐसे में महिलाओं को हल्का भोजन करने को कहा जाता है, ताकि अन्न का पाचन सही से हो पाए। प्रसव के बाद बहुत सालों से, अजवाइन को दवा के रूप में महिलाएं प्रयोग करती आ रही हैं। महिलाओं को अजवाइन का सेवन करने से ना सिर्फ गर्भाशय संबंधी विकारों से राहत मिलती है, बल्कि प्रसव के बाद की पीड़ा से भी आराम मिलता है।

महिलाओं को अजवाइन का लड्डू, या लड्डू जैसा चूर्ण बना लेना है। भोजन के बाद 2 ग्राम इस चूर्ण का सेवन करना है। इससे आंतों के हानिकारक कीड़े खत्म होते हैं, और रोगों से बचाव होता है।

डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए अजवाइन का प्रयोग ...

अजवाइन के इस्तेमाल से अनेक लाभ होते हैं, इन्हीं में से एक है मधुमेह (डायबिटीज) को नियंत्रित करने में मदद करना। इसके लिए 3 ग्राम अजवाइन को 10 मिली तिल के तेल के साथ दिन में सेवन करें। आपको दिन में तीन बार सेवन करना है।

शरीर के दर्द में अजवाइन के लेप से मिले राहत....…

शरीर में दर्द है तो अजवाइन को पानी में पीसकर, लेप के रूप में लगाएं। दर्द वाले अंग को धीरे-धीरे सेक लें।। इससे लाभ होगा।

अजवाइन को आग पर डाल कर, उसके धुएं से सेकाई करने पर भी शरीर का दर्द दूर होता है।

नपुंसकता, शीघ्रपतन और शुक्राणु की कमी में अजवाइन से लाभ ....

3 ग्राम अजवाइन में 10 मिली सफेद प्याज का रस, तथा 10 ग्राम शक्कर मिला लें। इसे दिन में तीन बार सेवन करें। 21 दिन में पूरा लाभ होता है। इस प्रयोग से नपुंसकता, शीघ्रपतन की समस्या, और शुक्राणु की कमी में लाभ होता है।

दाद, फुन्सी, खुजली आदि चर्म-रोगों में अजवाइन से लाभ ....

अजवाइन का गाढ़ा लेप करने से दाद, खुजली, संक्रमण वाले घाव में लाभ होता है। अजवाइन को उबलते हुए जल में डाल दें। इसके घुल जाने के बाद छान लें। इसे ठंडा करके घावों को धोएं। इससे दाद, फुन्सी, गीली खुजली आदि चर्म रोगों में लाभ होता है।

पित्ती उछलने (त्वचा पर लाल रंग के दाने वाला रोग) पर अजवाइन का इस्तेमाल ....

50 ग्राम अजवाइन को 50 ग्राम गुड़ के साथ अच्छी प्रकार कूट लें। इसकी 1-1 ग्राम की गोली बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लें। इससे एक सप्ताह में ही शरीर पर फैली हुई पित्ती (शीत पित्त) दूर हो जाएगी। इसके सेवन से बार-बार पेशाब आने की बीमारी में भी लाभ होता है।

पेशाब संबंधी परेशानियों में अजवाइन से लाभ.....

अगर किसी को पेशाब संबंधी समस्या रहती है, तो उसे 2 से 4 ग्राम अजवाइन को गर्म पानी के साथ लेना चाहिए। इससे पेशाब संबंधी परेशानी ठीक होती है।

बुखार उतारने के लिए अजवाइन का उपयोग...

जो कोई अपच की वजह से बुखार से पीड़ित है, तो उसे रात में 10 ग्राम अजवाइन को 125 मिली जल में भिगो देना है। इसको मसलने के बाद छानकर पीना है। सुबह-शाम पीने से बुखार उतर जाता है।
इंफ्लुएंजा (शीतज्वर) में 2 ग्राम अजवाइन सुबह-शाम खिलाएं। इससे फायदा होता है।
अगर बुखार में पसीना अधिक निकल रहा है, तो 100 से 200 ग्राम अजवाइन को भून लें। इसे महीन पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे फायदा होता है।

मलेरिया बुखार में अजवाइन के इस्तेमाल से लाभ ....

मलेरिया बुखार हो तो रात में 10 ग्राम अजवाइन को, 100 मिली जल में भिगों दें। सुबह पानी (benefits of ajwain water) गुनगुना कर जरा-सा नमक डालकर, कुछ दिन तक सेवन करें।

शराब पीने की आदत छुड़ाने में अजवाइन मददगार.....

जब शराब पीने की इच्छा हो, और रोका ना जा सके, तो 10-10 ग्राम अजवाइन को दिन में 2-3 बार चबाएं। इससे शराब पीने की इच्छा में कमी आती है।
आधा किलो अजवाइन को 4 लीटर पानी में पकाएं। जब पानी आधा से भी कम रह जाए तो छानकर शीशी में भरकर रख लें। जो शराब छोड़ना चाहते हैं, वे लोग इस काढ़ा को भोजन से पहले 1 कप पिएं। यह बहुत ही अधिक फायदेमद होता है।


अजवाइन के सेवन से हैजा से मिले राहत....

हैजा में अमृतधारा की 4-5 बूंद विशेष रूप से गुणकारी मानी जाती है। दिव्यधारा को हैजे की शुरुआती अवस्था में देने से तुरन्त लाभ होता है। एक बार में आराम ना हो तो 15-15 मिनट के अन्तर से 2-3 बार दे सकते हैं।

चोट लगने पर करें अजवाइन का इस्तेमाल....

किसी भी प्रकार की चोट लगी हो तो कपड़े का दो तह बना लें। इसकी पोटली बना लें, और 50 ग्राम अजवाइन को इसमें रखकर गर्म कर लें। इसे चोट लगने वाले स्थान (1 घंटे तक) पर रखें। इससे आराम मिलता है। चोट को ठीक करने के लिए अजवाइन की सेकाई एक रामबाण औषदि है।

सुजाक में लाभप्रद अजवाइन का प्रयोग .....

अजवाइन के तेल की 3 बूंद को 5 ग्राम शक्कर में मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करें। इससे सुजाक में लाभ होता है।

पैरों में कांटा चुभने पर अजवाइन का प्रयोग....

अगर पैर में कांटा चुभ गया है, तो पिघले हुए गुड़ में 10 ग्राम पिसी हुई अजवाइन मिला लें। इसे थोड़ा गर्म करके कांटा वाले स्थान पर बांध दें। इससे कांटा अपने आप निकल जाएगा।

बवासीर में फायदेमंद ....

बवासीर में लाभ लेने के लिए अजवाइन में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें। इससे पेट का फूलना, तथा बवासीर में लाभ होता है।

किडनी (गुर्दे) की दर्द की समस्या में अजवाइन का सेवन.....

जिस किसी व्यक्ति को किडनी में दर्द संबंधी परेशानी हो, उसे 3 ग्राम अजवाइन के चूर्ण को सुबह-शाम, गर्म दूध के साथ लेना है। इससे लाभ होता है।

कीटों के काटने पर अजवाइन का प्रयोग फायदेमंद .....

बिच्छू, ततैया, भंवरी, मधुमक्खी जैसे जहरीले कीटों के काटने पर भी दिव्यधारा को लगाने से आराम मिलता है। अजवाइन के पत्तों (a को पीसकर भी लगाने से लाभ होता है।

जूं (लीख) निकालने में अजवाइन का प्रयोग ....

अगर आप भी जुओं की समस्या से परेशान हैं तो अजवाइन के गुण से उसका उपचार कर सकते हैं। इसके लिए 10 ग्राम अजवाइन के चूर्ण में 5 ग्राम फिटकरी मिलाएं, और इसे दही या छाछ में मिलाकर बालों में लगाएं। इससे लीखें तथा जूं मर जाती हैं।


▪️अजवायन का सेवन कैसे करें?..

अगर आप बीमारी में लाभ पाने के लिए अजवाइन का औषधीय प्रयोग करना चाहते हैं, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक से जानकारी जरूर लें।

अजवायन के नुकसान...

 अजवाइन के इतने फायदे हैं, तो कुछ स्थिति में अजवाइन के नुकसान होने की भी संभावना रहती है, जो ये हैंः-

हमेशा ताजी अजवाइन को ही उपयोग में लाना चाहिए, क्योंकि पुरानी हो जाने पर इसका तैलीय अंश खत्म हो जाता। तैलीय अंश के खत्म होने से इसका पूरा फायदा नहीं मिलता।

काढ़ा के स्थान पर, रस का प्रयोग करना बेहतर होता है।

अजवाइन का अधिक सेवन करने से सिद दर्द की शिकायत हो सकती है।

इसलिए अजवाइन के नुकसान या दुष्प्रभाव से बचने के लिए, सेवन से पहले किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

भारत में अजवाइन के पौधों की खेती मुख्यतः राजस्थान, पंजाब तथा गुजरात में की जाती है। यह मूलतः मिश्र, ईरान तथा अफगानिस्तान में प्राप्त होती है।

अर्जुन छाल हृदय रोग,कोलेस्ट्रोल एवं हाई ब्लड प्रेशर रामबाण अन्य रोगो मे भी क्या काम करती जाने

*अर्जुन छाल हृदय रोग,कोलेस्ट्रोल एवं हाई ब्लड प्रेशर रामबाण अन्य रोगो मे भी क्या काम करती जाने*

*अर्जुन छाल के औषधीय गुण धर्म* 
इसका रस कैशैला होता है।अर्जुन की तासीर ठंडी होती है अर्थात यह शीत वीर्य होती है। गुणों में लघू  होती है। यह हृदय विकारों में फायदेमंद एवं पित एवं कफ का शमन करने वाली होती है। रक्तविकार एवं प्रमेह में भी इसके औषधीय गुण लाभदायी होते है।

अर्जुन को सिर्फ हृदय के विकारों में ही लाभदायक नहीं माना जाता बल्कि अलग – अलग औषध योगों के साथ इसका उपयोग करने से बहुत से विकारों में फायदेमंद साबित होता है।

*जाने विभिन्न रोगों में अर्जुन छाल के फायदे*
 निम्न रोगों में अर्जुन का उपयोग किया जाता है।यहाँ हमने विभिन्न रोगों में अर्जुन छाल के उपयोग बताएं है।

*पितशमन एवं रक्तपित में अर्जुन छाल का उपयोग*

अर्जुन कफ एवं पितशामक होता है एवं अम्लपित में भी लाभप्रद होता है।
रक्तपित की समस्या में अर्जुन की छाल का काढ़ा बना कर सुबह के कप पिने से रक्तपित की समस्या में फायदा मिलता है। 
अम्लपित एवं पितशमन के लिए 1 ग्राम अर्जुन छाल चूर्ण में समान मात्रा में लाल चन्दन का चूर्ण मिलाकर इसमें शहद मिला लें।इस मिश्रण को चावल के मांड के साथ प्रयोग करने से जल्द ही बढे हुए पित का शमन हो जाता है एवं अम्लपित की समस्या भी जाती रहती है।

*हृदय रोगों में अर्जुन छाल का प्रयोग!*

हृदय विकारों में 30 ग्राम अर्जुन चूर्ण ले एवं इसके साथ 3 ग्राम जहरमोहरा और 30 ग्राम मिश्री मिलाकर इमामदस्ते में अच्छे से खरल करले। इस तैयार चूर्ण में से 1 ग्राम सुबह एवं शाम गुनगुने दूध के साथ सेवन करें।जल्द ही हृदय से सम्बंधित सभी विकार दूर हो जायेंगे । नित्य एक ग्राम की मात्रा में अर्जुन चूर्ण का इस्तेमाल दूध के साथ सुबह एवं शाम करने से हृदय विकार ठीक होने लगते है।

*अगर हृदय की धड़कन तेज हो और साथ में पीड़ा या घबराहट हो तो!* 
अर्जुन छाल की खीर बना कर सेवन करें। इसकी खीर बनाने के लिए एक भाग अर्जुन छाल (10 ग्राम) , 8 गुना दूध (80 ग्राम) एवं 32 गुना जल (320 ग्राम) लेकर इनको मिलाकर उबालें।जब सारा पानी उड़ जाये एवं सिर्फ दूध बचे तब इसे छान कर रोगी को दिन में दो बार सेवन करवाएं ।ये सभी विकार जल्द ही दूर हो जायेंगे।

हृदय की कमजोरी में अर्जुन छाल के चूर्ण के साथ गाय का घी एवं मिश्री मिलाकर सेवन करवाएं। हृदय को बल मिलेगा।

*अन्य रोगों में अर्जुन छाल के स्वास्थ्य उपयोग या फायदे!*

थूक के साथ अगर खून आता हो तो अर्जुन चूर्ण को अडूसे के पतों के रस में सात बार अच्छे से घोट कर, इस चूर्ण के साथ शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
दस्त के साथ खून आता हो तो छाल को बकरी के दूध में पीसकर थोडा शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
रक्त अशुद्धि के कारण त्वचा विकारों में मंजिष्ठ के चूर्ण के साथ अर्जुन का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से रक्त की अशुद्धि मिटती है एवं त्वचा कांतिमय बनती है।
पेट के विकारों में अर्जुन छाल के चूर्ण के साथ बंगेरनमूल की छाल का चूर्ण मिलाकर सेवन करवाने से उदर विकार में लाभ मिलता है।
श्वेत प्रदर एवं रक्त प्रदर की समस्याओं में नित्य 2 ग्राम चूर्ण का गरम पानी के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
मुंह में छाले हो गए हो तो 5 ग्राम चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर मुख में रखने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।
अर्जुन के पतों का रस निकाल कर कान में डालने से कर्णशूल (कान दर्द) में आराम मिलता है।
अर्जुन की छाल कोलेस्ट्रोल में उपयोगी।
बढे हुए कोलेस्ट्रोल एवं हाई ब्लड प्रेशर में अर्जुन के पेड़ की छाल बेहद फायदेमंद होती है। बढे हुए कोलेस्ट्रोल को कम करने के लिए नियमित इसकी छाल का काढ़ा बनाकर प्रयोग में लाने से जल्द ही कोलेस्ट्रोल कम होने लगता है। काढ़ा बनाने के लिए 5 ग्राम अर्जुन छाल को 1 गिलास पानी में उबालें एवं जब आधा पानी बचे तब इसे आंच से उतर कर ठंडा करले। इस काढ़े में मिश्री मिलाकर सेवन किया जा सकता है।

*अर्जुन की चाय एवं काढ़ा कैसे बनाये ?*

इसकी छाल की चाय बनाने के लिए अधिक जुगत की आवश्यकता नहीं होती है। चाय बनाने के लिए घर में बनती हुई चाय में 5 ग्राम की मात्रा में इसका चूर्ण डाल दें और अच्छे से उबाल लें ।बस अर्जुन छाल की चाय तैयार है। इस चाय के सेवन से भी हृदय की रूकावट खुलने लगती है।

काढ़ा बनाने के लिए एक गिलास पानी में 5 – 7 ग्राम अर्जुन छाल को यवकूट करके डालदें। इस पानी को आग पर तब तक उबालें जब तक पानी एक चौथाई न बचे। एक चौथाई पानी बचने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करले एवं छान कर उपयोग करें।

*अर्जुन की छाल का प्रयोग कैसे करें *

*इसके चूर्ण का इस्तेमाल सुबह*  
शाम 2 से 3 ग्राम की मात्रा में किया जा सकता है। अगर चूर्ण का सेवन करने में परेशानी हो तो साथ में सामान मात्रा में मिश्री मिलकर सेवन किया जा सकता है ।
अर्जुन छाल के काढ़े का उपयोग विभिन्न रोगों में अलग – अलग मात्रा में किया जा सकता है।
सामान्यत: काढ़े का उपयोग 10 से 15 मिली. मिश्री के साथ किया जा सकता है।
अर्जुन छाल की चाय का सेवन एक कप तक की मात्रा में किया जा सकता है!

*क्या अर्जुन छाल के कोई साइड इफ्फेक्ट्स होते है* 

अगर सिमित एवं निर्देशित मात्रा में सेवन किया जाए तो अर्जुन छाल के कोई नुकसान सामने नहीं आते। 
गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियाँ भी इसका सेवन अपने चिकित्सक के निर्देशानुसार कर सकती है। 
इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होते। 
किसी भी आयुर्वेदिक औषधि को उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो ये किसी भी रूप में नुकसान दाई नहीं होती। 
अति करना हर जगह नुकसान दायक होता है। अत: हमेशां औषधि का उपयोग निर्देशित मात्रा में करना चाहिए। 

हर दिन दीपावली* (हां!संभव है!!)

*हर दिन दीपावली*
    (हां!संभव है!!)
  *युद्ध मे रत सैनिकों* को अगले पल का पता नही होता कि वो सुरक्षित क्षेत्र में है या दुश्मनों की घेराबंदी में आ गए है..युद्ध मे केवल सैन्य कौशल और वीरता से ही मैदान  में फतह हासिल नही की जासकती ..एक एक पल के रणनीतिक दांव पेंच भी बड़े निर्णायक होते है। पल पल का तनाव,खतरा,लम्बे समय तक पड़ाव,अपने परिवार के बारे में चिंता ..उन्हको कमजोर न कर दे कभी घबरा कर वो न्यूरोटिक ना हो जाये?ऐसे पलो में उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अलग से मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की टीम सलाह ओर क्रिया से उनको प्रोत्साहित ही नही रखा जाता अपितु जज्बा बुलन्द रहे ,उनको  *व्यस्त रखो की दवा* देते है।
इन न्यूरोटिक संभावित लोगो को हर मिनट किसी न किसी गतिविधि में लिप्त रखा जाता है।जिनमे आमतौर पर बाहरी गतिविधियां होती है। मछली पकड़ना, शिकार करना, गोल्फ/फुटबाल खेलना,तस्वीरे लेना,बागबानी करना,डांस करना इत्तियादी इत्तियादी.. 
इसे ऑक्यूपेशनल थेरेपी भी कहते है।ओर इन सब का परिणाम है,सेनाएं युद्ध लड़ती है और जीतती है।
हम अपने जीवन के आसपास के वातावरण को देखते है तो बुजर्गो या हमारी संस्कृति द्वारा जो जीवन मे हमे उत्सव/त्योंहार दिए गए है,वो सब एक ऐसी क्रिया है,जो हमे आंनद ओर उत्साह से सरोबार कर देती है। घर को रंगना, कलर से खेलना,रोशनी करना,मिलने जाना,गले मिलना, मिठाई बनाना,बांटना,नए कपड़े पहनना,बधाइयां देना, गरबा में नाचना..यह सब एक थेरपी है।जो हमे सजिन्दा रखती है।
लेकिन दिन प्रतिदिन हम आजकल इनमे ज्यादा उत्साह नही दिखाते,उदासीनता सी आगयी है,वो उत्साह नही रहता.. होली पर रंगों से खेलना, गेर में जाना,फाग गाना..या दीपावली पर रामा शामा पर एक एक घर मिलने जाना..बन्द हो गया है।लोग शिकायत करते है,आजकल दीपावली में एक किलो मिठाई नही खर्च होती?घर कोई आता ही नही?उनसे मेरा हमैशा यह छोटा सा सवाल रहता है,आप आने वाले का इंतजार ही क्यों करते हो?आप क्यों नही चले जाते।
यदि वैसे देखा जाए तो,उस जमाने से ज्यादा व्यक्तिक जिम्मेदारियों,परिणामो का तनाव, वातावरण से सामंजस्य की मांग अब पहले से ज्यादा है..ओर ऐसे में हमने अपने उत्साह के स्रोत,प्रसन्नता ओर खुशी के पल,अपनो से मिलने का आनंद खो दिया तो हम शीघ्र तनाव के शिकार हो जाएंगे।  इससे हमारी उत्पादकता,हमारा मोटिवेशन प्रभावित होगा। दूसरी तरफ तनाव शरीर रक्त में कुछ रसायन छोड़ कर प्रतिक्रिया देंगे।हम बेवजह अपने हाथों अपने लिए परेशानियों ओर तकलीफों के नए द्वार खोल लेंगे।
*इसलिए,आइये!हम बेसब्री से आने वाले त्योंहार ही नही,प्रसन्नता खुशी,उत्सव के किसी पल को जाया करने  के बजाय उसे अपनी उपस्थित से दो गुणित कर दे*।में तो कह रहा हु, हम त्योंहार का ही क्यों इंतजार करें.. आज से ही सेर पर जाए,प्रकति के साथ वक्त बिताए,किसी दूरस्थ मित्र को काल लगाए,बागबानी करे, अच्छी  पुस्तक पढ़े,संगीत का आनंद ले,कोई कॉमेडी मूवी देखे, सुगन्धित मोमबत्ती जलाए, चॉय या कॉफी अपने हाथों से बनाकर पिये- पिलाये,आज घर के किसी काम मे अपनी पत्नी की सहभागिता निभाये..कोई रिश्तेदार परिचित बीमार है,आज मिलकर आये..
*फिर देखिए!चमत्कार*!!
*आप खुद बोल पड़ेंगे,जिंदगी फिर मुस्कुरा उठी*।
*रामानंद काबरा*
9414070142

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

गर्भगृह में प्रवेश करते ही मूर्ति की बदल गई आभा, रामलला को बनते देखने रोज आते थे ‘हनुमान जी’, रोका तो बंदर पीटने लगे दरवाजे: अरुण योगीराज ने बताए अचंभित करने वाले अनुभव

गर्भगृह में प्रवेश करते ही मूर्ति की बदल गई आभा, रामलला को बनते देखने रोज आते थे ‘हनुमान जी’, रोका तो बंदर पीटने लगे दरवाजे: अरुण योगीराज ने बताए अचंभित करने वाले अनुभव
*अविश्वसनीय!!! प्राण प्रतिष्ठा होते ही रामलला के चेहरे/आंखों के भाव बदल गए. जब मैंने इसे बनाया था तो रामलला ऐसे नहीं दिखते थे! यह मेरा काम नहीं है। यह दैवीय हस्तक्षेप है :- अरुण योगीराज।*


अयोध्या में विराजमान रामलला की मूर्ति देश के मशहूर मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है। वही पहले शख्स हैं जिन्होंने रामलला के विग्रह को तैयार होने के बाद सबसे पहले देखा। ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनसे कई तरह के सवाल हो रहे हैं। उनसे उनका अनुभव पूछा जा रहा है। इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने अपने इंटरव्यूज में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।

अरुण योगीराज ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा कि ये कार्य उन्होंने खुद नहीं किया भगवान ने उनसे करवाया है। वह कहते हैं कि जब वो रामलला की मूर्ति को गढ़ रहे थे तो रोज उस मूर्ति से बात करते थे। वह कहा करते थे, “प्रभु बाकी लोगों से पहले मुझे दर्शन दे दो।” योगीराज की मानें तो जब मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो उन्हें लगा ही नहीं कि वो मूर्ति उनके द्वारा बनाई गई है। उसके हाव-भाव बदल चुके थे। इस बारे में उन्होंने लोगों से कहा भी कि उन्हें नहीं विश्वास हो रहा मूर्ति उनके द्वारा बनाई गई है। उन्होंने माना कि अगर वो कोशिश भी करें तो दोबारा इस तरह का विग्रह कभी नहीं बना सकते।

उन्होंने कहा, “जब मैंने मूर्ति बनाई तब वो अलग थी। गर्भगृह में जाने के बाद और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वो अलग हो गई। मैंने 10 दिन गर्भगृह में बिताए। एक दिन जब मैं बैठा था मुझे अंदर से लगा ये तो मेरा काम है ही नहीं। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया। अंदर जाते ही उनकी आभा बदल गई। मैं उसे अब दोबारा नहीं बना सकता। जहाँ तक छोटे-छोटे विग्रह बनाने की बात है वो बाद में सोचूँगा।”

रामलला की मूर्ति पर इंटरव्यू देते समय अरुण योगीराज नंगे पाँव बैठे दिखे। उन्होंने कहा कि राम को दुनिया को दिखाने से पहले खुद मानना था कि मूरत में राम हैं। वह बोले, “मैं दुनिया को दिखाने से पहले उनके दर्शन करना चाहता था। मैं उन्हें कहता था-दर्शन दे दीजिए प्रभु। तो, भगवान मेरी जानकारी जुटाने में खुद मदद कर रहे थे। कभी दीपावली के वक्त कोई जानकारी मिल गई। कुछ तस्वीरें मुझे वो मिल गईं जो 400 साल पुरानी थीं। हनुमान जी भी हमारे दरवाजे पर आते थे गेट खटखटाते थे, सब देखते थे, फिर चले जाते थे।”

अपने अद्भुत अनुभवों को बताते हुए उन्होंने कहा, “मूर्ति बनाने के दौरान हर रोज एक बंदर शाम में 4 से 5 बजे के बीच उस जगह आता था, वो सब देखकर चला जाता था। ठंड में हम दरवाजे बंद करने लगे। जब उसने ऐसा देखा तो वो तेज की दरवाजा खोलता अंदर आता, देखता और चला जाता। शायद उनका भी देखने का मन होता होगा।”

योगीराज से जब पूछा गया कि क्या उन्हें सपने भी आते थे कुछ, तो उन्होंने कहा कि वो पिछले 7 महीनों से ढंग से सो ही नहीं पाए हैं। इसलिए वो इस पर कुछ नहीं कह सकते। उनके जहन में हमेशा था कि जो वो कर रहे हैं वो देश को पसंद आना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी विश्वकर्मा समुदाय सदियों से यही काम करता आया है। उनके स्थानीय क्षेत्र में कहावत भी चलती है- ‘भगवान के स्पर्श से पत्थर फूल बन गए और शिल्प के स्पर्श से पत्थर भगवान बन गए।’

इतना सराहनीय कार्य करने के बाद भी अरुण इस रामलला के विग्रह के लिए सारा श्रेय खुद नहीं लेते। वो कहते हैं कि भगवान ने उनसे ये करवाया है। वरना वो मूर्ति कैसे गढ़ पाते।

उन्होंने एक अन्य इंटरव्यू में कहा कि उन लोगों ने रामलला को पत्थर से मूरत में देखने के लिए 6 माह तक इंतजार किया। उन्होंने बताया कि उनकी बनाई राम मूर्ति 51 इंच की है। ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों की गणित थी इतनी इंच की मूर्ति हुई तो राम नवमी वाले दिन सूर्य की किरण भगवान राम के मस्तक पर सीधे पड़ेंगी। इस इंटरव्यू में भी उन्होंने यही बताया कि वो अपने असिस्टेंट्स के जाने के बाद भगवान के विग्रह के पास अकेले बैठते थे और यही प्रार्थना करते थे कि प्रभु दूसरों से पहले उन्हें दरश देना।

जय श्री राम 🙏🚩

बुधवार, 24 जनवरी 2024

भक्त और भगवानरोचक कथा : जब भगवान राम ने भक्त के लिए बनाई रसोई

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भक्त और भगवान

रोचक कथा : जब भगवान राम ने भक्त के लिए बनाई रसोई
बहुत साल पहले की बात है। एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था आनंद। दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता। घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो। वह घर. से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं।
उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है। गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं, गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं?
लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं
गुरुजी : कोई काम नहीं करना है बस पूजा करना होगी
आनंद : ठीक है वह तो मैं कर लूंगा ...
अब आनंद महाराज आश्रम में रहने लगे। ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु मक्ति में भजन गाते रहो।
महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं। उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या
गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है तुम्हारा भी उपवास है ।
उसने कहा नहीं अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो .... हम नहीं कर सकते उपवास... हमें तो भूख लगती है आपने पहले क्यों नहीं बताया?
गुरुजी ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं बनाएगा तुम खुद बना लो।
मरता क्या न करता
गया रसोई में, गुरुजी फिर आए ''देखो अगर तुम खाना बना लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई।
ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी, सब्जी लेकर आंनद महाराज चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है।
लगा भजन गाने
आओ मेरे राम जी , भोग लगाओ जी
प्रभु राम आइए, श्रीराम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए...
कोई ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे। भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात तो आएंगे नहीं ।
पर गुरुजी की बात मानना जरूरी है। फिर उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं। मैंने रूखा सूखा बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इसलिए नहीं आ रहे हैं.... तो सुनो प्रभुआज वहां भी कुछ नहीं बना है, सबको एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खालो...
श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। भक्त असमंजस में। गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं। चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला देते हैं।
बोला प्रभु मैं भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले बता देना कि कितने जन आ रहे हो, और हां थोड़ा जल्दी आ जाना। राम जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए। प्रसाद ग्रहण कर के चले गए। अगली एकादशी तक यह भोला मानस सब भूल गया। उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे।
फिर एकादशी आई। गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं। गुरुजी मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है। ठीक है ले जा और अनाज लेजा।
अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया। फिर गुहार लगाई
प्रभु राम आइए, सीताराम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए..
`प्रभु की महिमा भी निराली है। भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है। इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए। भक्त को चक्कर आ गए। यह क्या हुआ। एक का भोजन बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया। लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा। सबको भोजन लगाया और बैठे-बैठे देखता रहा। अनजाने ही उसकी भी एकादशी हो गई।
फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं? इस बार अनाज ज्यादा देना। गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा जाकर। भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए देदो और छुपकर उसे देखने चल पड़े।
इस बार आनंद ने सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं। पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं।
फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए...
सारा राम दरबार मौजूद... इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही नहीं है। भक्त ठहरा भोला भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया, प्रभु ने पूछा क्यों? बोला, मुझे मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और खुद ही खा लो....
राम जी मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से... लक्ष्मण जी बोले क्या करें प्रभु...
प्रभु बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी। चलो लग जाओ काम से। लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं। भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा। माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि-मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे। इधर गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है। पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया?
बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ.....
गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा भक्त ने माथा पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है |
प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं?
प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता।
बोला : क्यों , वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप?
प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं दिख सकता.. आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे, गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सबकुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई।
🙏 🌺राधे राधे🌺 🙏

श्री राम चरित मानस के सिद्ध मन्त्र रूपी चौपाइया

श्री राम चरित मानस  के सिद्ध मन्त्र रूपी चौपाइया

विश्व में जितने भी खतरनाक से खतरनाक हथियार बन जाए उसे रामबाण से ही संबोधन करते है जितनी भी कारगर दवाई बने उस भी रामबाण के द्वारा ही संबोधन कर तुलना करते है फिर क्यों नहीं राम बाण रूपी चौपाई का ध्यान करते जीवन की प्रत्येक समस्या के समाधान हेतु इन चौपाइयो को मन्त्र का रूप मां कर सफलता अर्जित करें.श्री राम चरित मानस में पूज्य गोस्वामी तुलसी दास जी प्रभु राम को ही अपना सर्वस्व माना फलस्वरूप उनके द्वारा लिखी प्रत्येक चौपाई भी मंत्र का प्रतीक है.

मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।
अष्टांग हवन सामग्री
१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।
जानने की बातें-
जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ बोल देना चाहिये।
प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।

सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”

२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”

३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”

४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”

५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”

६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”

७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”

८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”

९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”

१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”

११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”

१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”

१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”

१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”

१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”

१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”

१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’

१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”

१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”

२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।

२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”

२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”

२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”

२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”

२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”

२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”

२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”

२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”

२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”

३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”

३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।

३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥

३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”

३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”

३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥

३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”

३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥

४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”

४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”

४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”

४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”

४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”

४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”

४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”

४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”

४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”

४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”

५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”

५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”

भगवान श्री राम आप सभी की मनोकामना शीघ्र से शीघ्र पूरी करें ऐसा मेरा विश्वास है.

सोमवार, 22 जनवरी 2024

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?
मंदिर निर्माण का श्रेय जिसे है मिल रहा है..उनकी बल्ले बल्ले हैं… जिन्हें नही मिल रहा मुंह फुलाये पड़े हैं और अड़ंगे लगाने का अथक प्रयास कर रहे हैं, उनकी एक ही तमन्ना है…कैसे भी प्राण प्रतिष्ठा टल जाए…
चलिए बनाने का श्रेय लेने सभी सामने आ रहे हैं…पर इसे न बनाने देने का का श्रेय भला कौन लेना चाहेगा…? स्वीकार भले ही कोई न करे, पर भारत जानता है कि पर्दे के सामने और पीछे से अड़ंगे लगाने में कौन सक्रिय रहा है..!

हालांकि 1992 के बाद से खुलेआम मंदिर का विरोध करने वालों की संख्या कम होती गयी और 2019 तक ऐसी स्थिति बन गयी थी कि कोई भी मंदिर के विरोध में मुंह सिर्फ किंतु परन्तु के साथ ही खोलता था।

पर एक ऐसा शख्स जो आजीवन मंदिर बनने के विरोध में खड़ा रहा, उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं..

आगे का लेख Mann Jee भाई का लिखा हुआ है-

हिन्दुस्थान की आज़ादी को मात्र २ वर्ष हुए थे कि दिसंबर १९४९ में अयोध्या जी में रामलला प्रकट भये। इस घटना का विवरण अनेक जगह मिलता है - ये भी पढ़ने को मिलता है कि किस प्रकार चच्चा नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री गोबिंद बल्लभ पंत और गृह मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को निर्देश दिए थे कि ये मूर्तियां वहां रहने ना पाए। किन्तु इस असल राजनैतिक उथल पुथल के पीछे एक कांग्रेसी नेता का हाथ था।

२२ दिसंबर १९४९ को जब ये सब घटनाक्रम शुरू हुआ तो फैज़ाबाद कांग्रेस कमिटी के गांधीवादी नेता श्री अक्षय ब्रह्मचारी ने घटनास्थल जा दौरा किया और भगवा "आ तक " की खूब भर्त्स्ना की।

ब्रह्मचारी ने खुद वहां के कारसेवको से हाथापाई की - ऊपर उच्च कमान को चिठियाँ लिखी - चच्चा नेहरू को उलाहना दिया कि क्या नेहरू आदर्शवाद में ये सब सम्प्रय्दिकता देखने को मिलेगी। जब ब्रह्मचारी को कोई सफलता ना मिली तो वो गाँधी बाबा की भांति आमरण अनशन पर बैठे। शास्त्री जी के कहने पर चार दिन बाद अपना अनशन तोडा। किन्तु ब्रह्मचारी जी असल गांधीवादी थे। २६ जनवरी १९५० को जब देश का संविधान लांच हुआ तो ब्रह्मचारी ने फिर आमरण अनशन छेड़ा - कारण - बाबरी से वो मूर्तियां हटाओ। इस बार अनशन पूरे ३२ दिन चला। संसद में बाकायदा चर्चा हुई कि क्या गाँधी बाबा के असल चेले को ऐसे मरने छोड़ दिया जाएगा। खैर - ब्रह्मचारी ने खुद ही अपना उपवास तोडा।

अपना शेष जीवन अक्षय ब्रह्मचारी ने इसी लड़ाई में लगाया - लाख कोशिश की कि राम मंदिर ना बनने पाए। इतनी पक्की जान थे ब्रह्मचारी जी कि २०१० में अल्लाह को प्यारे हुए। मरते दम इन्होने शास्त्री जी को कोसा था कि उनके चलते पहला अनशन तोडना पड़ा ना तो नौबत इतनी ना आती।

अक्षय ब्रह्मचारी जी एक सच्चे गाँधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता थे जिनका रक्त आज भी कांग्रेस में बह रहा है।
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