*हर दिन दीपावली*
(हां!संभव है!!)
*युद्ध मे रत सैनिकों* को अगले पल का पता नही होता कि वो सुरक्षित क्षेत्र में है या दुश्मनों की घेराबंदी में आ गए है..युद्ध मे केवल सैन्य कौशल और वीरता से ही मैदान में फतह हासिल नही की जासकती ..एक एक पल के रणनीतिक दांव पेंच भी बड़े निर्णायक होते है। पल पल का तनाव,खतरा,लम्बे समय तक पड़ाव,अपने परिवार के बारे में चिंता ..उन्हको कमजोर न कर दे कभी घबरा कर वो न्यूरोटिक ना हो जाये?ऐसे पलो में उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अलग से मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की टीम सलाह ओर क्रिया से उनको प्रोत्साहित ही नही रखा जाता अपितु जज्बा बुलन्द रहे ,उनको *व्यस्त रखो की दवा* देते है।
इन न्यूरोटिक संभावित लोगो को हर मिनट किसी न किसी गतिविधि में लिप्त रखा जाता है।जिनमे आमतौर पर बाहरी गतिविधियां होती है। मछली पकड़ना, शिकार करना, गोल्फ/फुटबाल खेलना,तस्वीरे लेना,बागबानी करना,डांस करना इत्तियादी इत्तियादी..
इसे ऑक्यूपेशनल थेरेपी भी कहते है।ओर इन सब का परिणाम है,सेनाएं युद्ध लड़ती है और जीतती है।
हम अपने जीवन के आसपास के वातावरण को देखते है तो बुजर्गो या हमारी संस्कृति द्वारा जो जीवन मे हमे उत्सव/त्योंहार दिए गए है,वो सब एक ऐसी क्रिया है,जो हमे आंनद ओर उत्साह से सरोबार कर देती है। घर को रंगना, कलर से खेलना,रोशनी करना,मिलने जाना,गले मिलना, मिठाई बनाना,बांटना,नए कपड़े पहनना,बधाइयां देना, गरबा में नाचना..यह सब एक थेरपी है।जो हमे सजिन्दा रखती है।
लेकिन दिन प्रतिदिन हम आजकल इनमे ज्यादा उत्साह नही दिखाते,उदासीनता सी आगयी है,वो उत्साह नही रहता.. होली पर रंगों से खेलना, गेर में जाना,फाग गाना..या दीपावली पर रामा शामा पर एक एक घर मिलने जाना..बन्द हो गया है।लोग शिकायत करते है,आजकल दीपावली में एक किलो मिठाई नही खर्च होती?घर कोई आता ही नही?उनसे मेरा हमैशा यह छोटा सा सवाल रहता है,आप आने वाले का इंतजार ही क्यों करते हो?आप क्यों नही चले जाते।
यदि वैसे देखा जाए तो,उस जमाने से ज्यादा व्यक्तिक जिम्मेदारियों,परिणामो का तनाव, वातावरण से सामंजस्य की मांग अब पहले से ज्यादा है..ओर ऐसे में हमने अपने उत्साह के स्रोत,प्रसन्नता ओर खुशी के पल,अपनो से मिलने का आनंद खो दिया तो हम शीघ्र तनाव के शिकार हो जाएंगे। इससे हमारी उत्पादकता,हमारा मोटिवेशन प्रभावित होगा। दूसरी तरफ तनाव शरीर रक्त में कुछ रसायन छोड़ कर प्रतिक्रिया देंगे।हम बेवजह अपने हाथों अपने लिए परेशानियों ओर तकलीफों के नए द्वार खोल लेंगे।
*इसलिए,आइये!हम बेसब्री से आने वाले त्योंहार ही नही,प्रसन्नता खुशी,उत्सव के किसी पल को जाया करने के बजाय उसे अपनी उपस्थित से दो गुणित कर दे*।में तो कह रहा हु, हम त्योंहार का ही क्यों इंतजार करें.. आज से ही सेर पर जाए,प्रकति के साथ वक्त बिताए,किसी दूरस्थ मित्र को काल लगाए,बागबानी करे, अच्छी पुस्तक पढ़े,संगीत का आनंद ले,कोई कॉमेडी मूवी देखे, सुगन्धित मोमबत्ती जलाए, चॉय या कॉफी अपने हाथों से बनाकर पिये- पिलाये,आज घर के किसी काम मे अपनी पत्नी की सहभागिता निभाये..कोई रिश्तेदार परिचित बीमार है,आज मिलकर आये..
*फिर देखिए!चमत्कार*!!
*आप खुद बोल पड़ेंगे,जिंदगी फिर मुस्कुरा उठी*।
*रामानंद काबरा*
9414070142
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