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शनिवार, 16 मार्च 2024
घर से भागी हुई बेटियों का पिता हो या ससुराल से भागी पत्नी का पति...इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है,
मंगलवार, 5 मार्च 2024
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने यह मस्जिद जैसी गुंबद वाली एक संरचना आपको देखने को मिलेगी
जब आप औरंगाबाद के पास दौलताबाद से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस भव्य ज्योतिर्लिंग जिसे घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है यहां जाएंगे तब ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने यह मस्जिद जैसी गुंबद वाली एक संरचना आपको देखने को मिलेगी
जब मैंने इस संरचना के बारे में वहां के एक स्थानीय इतिहासकार से पूछा तब उन्होंने बताया कि जब औरंगजेब ने दक्षिण यानी डक्कन पर विजय प्राप्त किया और औरंगाबाद शहर का नाम जो जिसे उस वक्त खिरकी कहा जाता था अपने नाम पर औरंगाबाद रखा और यहां पर अपना एक सूबेदार नियुक्त किया तो पहले औरंगजेब ने इस ज्योतिर्लिंग को तोड़ने का आदेश जारी किया
लेकिन वह सूबेदार समझता था कि यदि इस प्राचीन ज्योतिर्लिंग को तोड़ा गया तब मराठे और भड़क जाएंगे मराठों को आम जनता का और सहयोग मिलेगा और डेक्कन की राह इतनी आसान नहीं होगी
तब औरंगजेब ने कहा कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं से तुम पैसे वसूलो
और फिर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के ठीक दरवाजे पर यह जो गुंबद जैसी संरचना है यहां पर औरंगजेब द्वारा नियुक्त एक मुगल अधिकारी बैठता था जो यहां दर्शन के लिए आने वाले हिंदू श्रद्धालुओं से 1.50 आना फीस या जजिया कर लेता था उसके बाद उन्हें ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने जाने देता था
धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने हमें इतिहास की हमें इतिहास की खासकर दरिंदे मुगलों के इतिहास की बहुत सी बातें नहीं बताई हैं
1911 में ब्रिटेन के महाराजा और महारानी भारत आए थे और दिल्ली में एक विशाल दरबार लगा था जिसे दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है
1911 में ब्रिटेन के महाराजा और महारानी भारत आए थे और दिल्ली में एक विशाल दरबार लगा था जिसे दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है
इस दिल्ली दरबार में भारत के तमाम रियासतों के राजा नबाब और कुछ बड़े लोगों ने ब्रिटेन के राजा के आगे झुक कर उनके तरफ वफादार रहने की शपथ खाई थी
यह तीन फोटो है
पहली फोटो में हैदराबाद का निजाम ब्रिटेन के राजा के आगे झुक कर वफादारी की कसम खा रहा है दूसरी फोटो में उस जमाने के जाने-माने वकील मोतीलाल नेहरू अंग्रेजी वेशभूषा में गए थे और उन्होंने भी ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादारी की कसम खाई और तीसरी फोटो में भोपाल की महिला नवाब है उन्होंने भी ब्रिटिश साम्राज्य की वफादारी की कसम खाई
इसी तरह के रामपुर के नवाब अवध के नवाब बरेली के नवाब, बहावलपुर जो अब पाकिस्तान में है वहां के नवाब लरकाना के नवाब सहित तमाम मुस्लिम नवाबों ने अंग्रेजों के सामने झुक कर वफादारी की कसम खाई
लेकिन कोई इन्हें गद्दार नहीं कहता
भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे तो वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिख जाएंगी।
भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे तो वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिख जाएंगी।
यह गाड़ियां पूरी तरह से सड़ जाती हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत को हर साल इससे लगभग 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है।
ब्रिटिश पार्लियामेंट में 1872 में ब्रिटिश एविडेंस एक्ट 1872 पारित किया था। इसके अनुसार अपराधी के पास बरामद सारी चीजें एविडेंस के तौर पर पेश की जाएंगी। उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा और अदालत में पेश किया जाएगा।
1872 में साइकिल का भी आविष्कार नहीं हुआ था। फिर जब यही कानून ब्रिटिश सरकार ने भारत पर लागू कर दिया तो यह भारतीय एविडेंस एक्ट 1872 बन गया।
यानी कि कोई अपराधी यदि पकड़ा जाता है तो वो जिस गाड़ी में होगा उस गाड़ी को भी एविडेंस बना लिया जाता है। किसी गाड़ी में अपराध हुआ है तो उसे भी एविडेंस एक्ट के तहत जप्त कर लिया जाता है। या फिर दो गाड़ियों का एक्सीडेंट हुआ है तब दोनों गाड़ियों को एविडेंस एक्ट में जप्त कर लिया जाता है।
मुझे आश्चर्य होता है कि सरकारी वाहनों को इनसे मुक्त क्यों रखा गया है ? अगर ट्रेन में अपराध होता है तो मैंने आज तक नहीं देखा कि पुलिस पूरी ट्रेन को जप्त कर के थाने में खड़ी की हो या किसी सरकारी बस में कोई अपराध हुआ हो या सरकारी बस या विमान में कोई मुजरिम पकड़ा गया हो तो पुलिस ने एविडेंस एक्ट के तहत सरकारी बस या विमान को उठाकर थाने में रखा हो ?
जितने भी वाहन पकड़े जाते हैं, यह जब तक केस का फाइनल फैसला नहीं आ जाता तब तक थाने में पड़े रहते हैं। गर्मी बारिश सब झेलते हैं।
और आपको तो पता ही है कि भारत में 50 से 60 साल मुकदमे की सुनवाई में लग जाते हैं। तब तक यह वाहन पूरी तरह से सड़ जाते हैं। जब केस का निपटारा होता है तब यह वाहन कबाड़ तो छोड़िए, सड़कर खाद बन चुके होते हैं।
मोदी जी ने एक बार कहा था कि हमने ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे बहुत से कानूनों में बदलाव किया है,,, लेकिन अब इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में भी बदलाव करने की जरूरत है।
सोचिए कि एक वाहन बनाने में कितने घंटे की मजदूरी कितनी पावर कितना कच्चा माल लगा होगा,, और वह सब कुछ सड़ जाता है किसी के काम नहीं आता।
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