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शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

Diwali


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Rakhi


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yadain bachpan ki ......................

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Eye Opener


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गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

सोच मे कितना अंतर ?

स्वामी विवेकानंद/प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह: दोनो की सोच मे कितना अंतर ?
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स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण दिया था और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 8 जुलाई 2005 को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने पर व्याख्यान दिया था ।

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म सम्मेलन में अपने भाषण दिया था । भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानेद को कहा जाय, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने सदियों की गुलामी में जकड़े भारतवासी को मुक्ति का रास्ता सुझाया। जन-जन के मन में भारतीय होने के गर्व का बोध कराया।

स्वामी विवेकानंद ने मानव समाज को अन्याय, शोषण और कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने का साहस प्रदान किया और पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में दिशाभ्रमित भारतीय नौजवानों के मन-मस्तिष्क में स्वदेश-प्रेम एवं हिन्दुत्व-जीवन दर्शन के प्रति अगाध विश्वास पैदा किया। अपनी विद्वतापूर्ण एवं तर्क आधारित भाषण से दुनिया भर के बुध्दिजीवियों के बीच भारत के प्रति एक जिज्ञासा पैदा की।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 8 जुलाई 2005 को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा था कि अंग्रेजों ने हमें सभ्यता सिखाई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजों के पक्ष में दिए गए बयान की भारत में कड़े शब्दों में चौतरफा निंदा हुई थी।

हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों ने हमें सभ्यता सिखाई। क्या अंग्रेजों के यहां आने से पहले हम असभ्य थे?

स्वामी विवेकानंद में जीवन के उच्च आदर्शों के उदाहरण मिलते हैं जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंग्रेजों के पक्ष में दिए गए व्याख्यान/बयान छोटी सोच को दर्शाता है । वैसे, देखा जाए तो यह पूरा मामला सोच के अंतर को ही दिखाता है।

भारतीय नवजागरण का अग्रदूत और भारत के युवाओ के पथ प्रदर्शक, महान दार्शनिक व चिंतक स्वामी विवेकानंद जी को शत्-शत् नमन जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

तो वो है माँ का प्यार

एक जवान बेटा अपनी बुढी माँ के पास बेठा था...!!
उसकी माँ ने एक पेड के ऊपर बैठे पक्षीकी तरफ इशारा करके पुछा: बेटा..! वो क्या है..?
बेटा: माँ वो कौवा है..
...
एक बार फिर माँ पुछा: बेटा वो क्या है...??
बेटा: माँ वो कौवा है कौवा..!
एक बार फिर माँ ने पुछा: बेटा वो क्या है...???
बेटा गुस्सा होकर: माँ तु बुढी हो गई हो...!
अब तुम्हारे दिमाग को जंग लग गया है..!
तुम पागल हो गई हो..
मैनेँ कितनी बार बोला की वो कौवा है..!!
फिर भी तुम पुछती जा रही हो..??

माँ की आँखो से आँसु निकल आये..!!!
फिर माँ ने आँसु पोछकर भारी आवाज मेँ
बोली: बेटा..! जब तु छोटा था ना तो,
तुने मुझे 30 बार पुछा कि माँ वो क्या है...?
तो मैनेँ तीस बार तेरा सर चुमकर कहा बेटा वो कौवा है
कौवा है..कौवा है...!!!

मित्रों, दुनिया मेँ सबसे मीठा कोई है तो वो है माँ का प्यार और सबसे कडवा माँ के आँसु इस बात का हमेशा ध्यान रखना....!!!

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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

14 फ़रवरी 1931

14 फ़रवरी 1931 आज ही के दिन लाहौर में शहीदे आजम भगत सिहं,सुखदेव,राजगुरु को वहां अदालत में फाँसी सज़ा सुनाई गई ।और 37 दिन बाद 23 मार्च 1931 उनको फाँसी पर चढ़ा दिया गया ।
भारत माता के ये 3 पुत्र जो भरी जवानी भारत माता की रक्षा के लिये फाँसी चढ़ गए ।। उनकी शहादत को पुरे भारत की और से शत शत नमन ।।


मानसिक गुलाम और ईसाईयत की और खीचें जा रहे लोग । और लोगो को गुमराह करने  वाला मीडिया ,ये बोलीवुड,और सरकारे आपको कभी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आने देगीं । आपका केवल शरीर ही भारतीय रह जाए और आत्मा पुरी अग्रेजो जैसी
हो जाए इसलिए वो आपको को ऐसी बात क़भी नहीं बतायेगें ज़ो आपमें देशभगती पैदा कर दे ।। इसलिए आज सारा दिन वो वैलनटाईन डे के ही गुण गायेगें ।


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जागो भारतीय जागो !!

हिंदी अति सरल और मीठी भाषा हैं l कुछ लोगों की अंग्रेजी मानसिकता जो रहते हिंदुस्तान में हॆं,लेकिन स्वतंत्रता के इतने साल बाद भी मानसिक रुप से अभी भी अंग्रेजी के गुलाम हॆं ।वेशर्म इतने कि अपनी इस गुलाम मानस्किता पर अभी भी उन्हें नाज हॆ ।

सच तो यह है कि हिन्दी भारत की आत्मा, श्रद्धा, आस्था, निष्ठा, संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी हुई है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ।

जापान, चीन, रूस जैसे विकसित देशों ने अपनी भाषा को महत्त्व दिया है और निरन्तर प्रगतिमान हैं। तभी तो देश के बाहर भी हिंदी ने अपना स्थान बना सकने में सफलता हासिल किया है l नेपाल , मोरिशोस, यहाँ तक चाइना और रसिया में भी हिंदी अच्छी तरह बोली और पढ़ी जाती है l यह अलग बात हैं कि अपने ही कुछ लोग है जो अपनी ही भाषा की इज्जत नहीं करते l

दुर्भाग्य है इस भारत का कि प्रो. एम.एम. जोशी के शोध ग्रन्थ के बाद भौतिक विज्ञान में एक भी दरजेदार शोधग्रंथ हिन्दी में नहीं प्रकाशित हुआ। जबकि हास्यास्पद बाद तो यह है कि अब संस्कृत के शोधग्रंथ भी देश के सैकड़ों विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में प्रस्तुत हो रहे है।

जागो भारतीय जागो !! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!


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कैसे मनायें 'मातृ-पितृ पूजन दिवस'?

कैसे मनायें 'मातृ-पितृ पूजन दिवस'? * माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बैठायें । * बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें । * तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प अर्पण करें तथा फूलमाला पहनायें । * माता-पिता भी बच्चे-बच्चियों के माथे पर तिलक करें एवं सिर पर पुष्प रखें । फिर अपने गले की फूलमाला बच्चों को पहनायें । * बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवं गुरु में ईश्वरीय भाव जगाते हुए उनकी सेवा करने का दृढ संकल्प करें । * बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता के एवं माता-पिता बच्चों के सिर पर अक्षत एवं पुष्पों की वर्षा करें । * तत्पश्चात् बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करें । * चित्र-अनुसार बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता को झुककर विधिवत् प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतान को प्रेम से सहलायें । संतान अपने माता-पिता के गले लगे । बेटे-बेटियाँ माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों में ईश्वरीय अंश देखें । * इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें : "मैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा/करूँगी । मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जानेवाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी ।" * इस समय माता-पिता अपने बच्चों पर स्नेहमय आशीष बरसायें एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इस प्रकार शुभ संकल्प करें : "तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो । तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरु की भक्ति से महक उठे । तुम्हारे कार्यों में कुशलता आये । तुम त्रिलोचन बनो - तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो । तुम पुरुषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे ।" * बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को 'मधुर प्रसाद' खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें । * बालक गणेशजी की पृथ्वी परिक्रमा, भक्त पुंडलिक की मातृ-पितृ भक्ति, श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति - इन कथाओं का पठन करें अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनाये और अन्य लोग श्रवण करें । * माता-पिता 'बाल संस्कार', 'दिव्य प्रेरणा-प्रकाश', 'तू गुलाब होकर महक', 'मधुर व्यवहार' - इन पुस्तकों को अपनी क्षमतानुरूप बाँटें-बँटवायें तथा प्रतिदिन थोडा-थोडा स्वयं पढने का व बच्चों से पढाने का संकल्प लें ।
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वेलेंनटाईंन डे ( १४ फ़रवरी )

वेलेंनटाईंन डे ( १४ फ़रवरी ) हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है , मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया की आखिर साल के ३६५ दिनों में सिर्फ एक दिन ही प्यार करने का क्या तुक है , और बाकी के ३६४ दिन किस लिए बनाये गए हैं , क्या रोने और कलपने के लिए.....????? प्रेम के कई रूप हैं, विभिन्न रिश्ते के साथ विभिन्न नाम। सत्य, निष्ठा, आस्था, भरोसा सब है, लेकिन लादा गया समझौता नहीं है प्रेम। प्यार एक रूहानी रिश्ता है, मगर आज के ज्यादातर लड़के-लड़कियों ने जिस्मानी रिश्ते को प्यार की संज्ञा देकर राख से पवित्र रिश्ते को अपवित्र कर दिया। प्यार में अहसास का होना लाजमी है, जब तक अहसास है तब तक प्यार है, नहीं तो प्यार केवल जिस्मानी रिश्ते तक सीमित होकर दम तोड़ देगा। भारत में वेलेंटाइन डे केवल प्रेमियों के साथ प्यार का इजहार शब्द से जुड़ा हुआ है। प्यार शब्द इस देश में केवल लगता है मोहब्बत से ही है जबकि प्यार की विभिन परिभाषाएँ हैं। इसे केवल प्रेमियों के साथ अधिक क्यों जोड़ रखा हैं....? बिना प्रेम के तो जीवन ही बेकार और नीरस हो जायेगा . इस लिए भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ जीवन का सार ही प्रेम हो , वंहा साल के ३६५ दिनों में से सिर्फ एक दिन १४ फ़रवरी को प्रेम दिवस का नाम देना सिवाय अन्धानुकरण के अलावा और कुछ नहीं है. इस लिए पूरे साल , हर पल प्रेम , स्नेह को एक दूसरे से साझा कीजिये , और भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने माता , पिता , भाई बहन और बजुर्गों को प्यार दीजिये और लीजिये . प्यार का मतलब सिर्फ प्रेमी – प्रेमिका के बीच का प्यार नहीं है , इसे सर्वंगीण और समग्र रूप से देखे जाने की ज़रूरत है ________ "प्रेमदिवस मनाओ, अपने माता-पिता का सम्मान करो और माता-पिता बच्चों को स्नेह करें" "करोगे न बेटे ऐसा..............?????" सुन री राधा प्यारी इस राह को तो बस तू, जान से प्यारी______________ मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है कागज की हवेली है , बारिश का ज़माना है क्या शर्त -ए -मोहब्बत है , क्या शर्त -ए -ज़माना है आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है कश्ती भी पुरानी है , तूफ़ान भी आना है समझे या न समझे वो अंदाज़ -ए -मोहब्बत का भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाना है भोली सी अदा , कोई फिर इश्क की जिद पर है फिर आग का दरिया है और डूब ही जाना है ये इश्क नहीं आसां , इतना तो समझ लीजिये एक आग का दरिया है , और डूब के जाना है __________________
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