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शनिवार, 1 सितंबर 2012

आलू के औषधीय प्रयोग



1.बेरी-बेरी:-बेरी-बेरी का सरलतम् सीधा-सादा अर्थ है-”चल नहीं सकता” इस रोग से जंघागत नाड़ियों में कमजोरी का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर या दबाकर रस निकालें, एक चम्मच की मात्रा के हिसाब से प्रतिदिन चार बार पिलाएं। कच्चे आलू को चबाकर रस निगलने से भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

2.रक्तपित्त :-यह रोग विटामिन “सी” की कमी से होता है। इस रोग की प्रारिम्भक अवस्था में शरीर ए
वं मन की शक्ति कमजोर हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द तथा पीला-सा दिखाई देता है। थोड़े-से परिश्रम से ही सांस फूल जाती है। मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोमकूपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने (खून बहने) लगता है। बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं फिर धड़ की त्वचा पर भी रोमकूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदुरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में-अति किरेटिनता (हाइपर केराटोसिस) हो जाता है। मसूढ़े पहले ही सूजे हुए होते हैं और इनसे खून निकलने लगता है बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों विशेषकर प्रसारक पेशियों से रक्तस्राव होने लगता है और तेज दर्द होता है। हृदय मांस से भी स्राव होकर हृदय शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। हडि्डयों की कमजोरी और पूयस्राव भी बहुधा विटामिन “सी” की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।

3.त्वचा की झुर्रियां:-सर्दी से ठंडी सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलना गुणकारी हैं। नींबू का रस भी इसके लिए समान रूप से उपयोगी है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं।

4.गौरवर्ण, गोरापन:-आलू को पीसकर त्वचा पर मलने से रंग गोरा हो जाता है।

5.आंखों का जाला एवं फूला:-कच्चा आलू साफ-स्वच्छ पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम आंख में काजल की भांति लगाने से पांच से छ: वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला तीन महीने में साफ हो जाता है।

6.मोटापा:-आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है। सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6-7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है।

7.बच्चों का पौष्टिक भोजन:-आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं।

आलू का रस निकालने की विधि :
आलू को ताजे पानी से अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को 1 घंटे तक ढंककर रख दें। जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।"

8.सूजन:-कच्चे आलू को सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलू का हो, उसके लगभग 2 गुना पानी में उसे उबालें। जब मात्र एक भाग पानी शेष रह जाए तो उस पानी से चोट से उत्पन्न सूजन वाले अंग को धोकर सेंकने से लाभ होगा।

नोट : गुर्दे या वृक्क (किडनी) के रोगी भोजन में आलू खाएं। आलू में पोटैशियम की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटैशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है। इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में सन्तुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) यानि चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।"

9.उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर):-इस बीमारी के रोगियों को आलू खाने से रक्तचाप को सामान्य बनाने में अधिक लाभ प्राप्त होता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। (छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है।) और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है।

10.अम्लता (एसीडिटी):-आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। जिन रोगियों के पाचन अंगों में अम्लता की अधिकता है, खट्टी डकारें आती है और वायु (गैस) अधिक बनती है, उनके लिए गरम-गरम राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत ही लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधे समय में पच जाता है। यह पुरानी कब्ज और अन्तड़ियों की दुंर्गध को दूर करता है। आलू में पोटैशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।

11.गुर्दे की पथरी (रीनल स्टोन):-एक या दोनों गुर्दों में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।

12.त्वचा का सौंदर्य:-जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं तथा तेज धूप, लू से त्वचा झुलस गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाने से सौंदर्य में निखार आ जाता है।

13.हृदय की जलन:-*इस रोग में आलू का रस पीएं। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुंह से चबाएं तथा रस पी जाएं और गूदे को थूक दें। आलू का रस पीने से हृदय की जलन दूर होकर तुरन्त ठंडक प्रतीत होती है।
*आलू का रस शहद के साथ पीने से हृदय की जलन मिटती है।"

14.गठिया या जोड़ों का दर्द:-गर्म राख में चार आलू सेंक ले और फिर उनका छिलका उतारकर नमक मिर्च डालकर नित्य खाएं। इस प्रयोग से गठिया ठीक हो जाती है।

15.आमवात:-पैंट, पाजामे या पतलून की दोनों जेबों में लगातार एक छोटा-सा आलू रखें तो यह प्रयोग आमवात से रक्षा करता है। आलू खाने से भी बहुत लाभ होता है।

16.कटि वेदना (कमर दर्द):-कच्चे आलू के गूदे को पीसकर पट्टी में लगाकर कमर पर बांधने से कमर दर्द दूर हो जाता है।

17.विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):-यह एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसमें सूजनयुक्त छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में बुखार भी रहता है। इस रोग में पीड़ित अंग पर आलू को पीसकर लगाने से फुन्सियां ठीक हो जाती हैं और लाभ होता है।

18.सब्ज मोतियाबिंद :-कच्चे आलू को ऊपर से छीलकर साफ पत्थर पर घिस लें और सलाई के सहारे आंखों में लगायें इससे आराम आता है।

19.पेट की गैस बनना:-कच्चे आलू को पीसकर उसका रस पीने से आराम मिलता है।
कच्चे आलू का रस आधा-आधा कप दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है"

20.मुंह का सौंदर्य:-कच्चे आलू का रस निकालकर आंखों के काले घेरों पर लगाने से आंखों के नीचे की त्वचा का कालापन दूर हो जाता है।

21.चोट लगने पर:-चोट लगने पर उस स्थान पर नीले रंग का निशान पड़ जाता है। उस नीली पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगायें।

22.अम्लपित्त (एसिडिटिज़) होने पर:-भुने हुऐ आलू को खाने से अम्लता से पीड़ित रोगी को जल्दी आराम मिलता है क्योंकि आलू की प्रकृति क्षारीय है। इसमें पोटैशियम साल्ट (नमक) होता है जो अम्लता (एसिडिटी) को कम करता है। अम्लता (एसिडिटी) के रोगी को भोजन में रोजाना आलू खाकर अम्लता (एसिडिटी) को दूर कर सकते हैं।

23.शीशा खा लेने पर:-उबला हुआ आलू खा सकते हैं।

24.घाव (व्रण):-आलू को पत्थर पर पीसकर घाव पर लेप करने से जलने से हुए फफोले नहीं होते हैं और दर्द और जलन दूर होती है।
आलू को पीसकर घाव पर लगाने से घाव की जलन दूर हो जाती है।"

25.एलर्जी होने पर:-कच्चे आलू का रस जहां पर एलर्जी हो उस स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

26.बिवाई के फटने पर:-सूखे और फटे हुए हाथों को ठीक करने के लिए आलू को उबाल लें, फिर उसका छिलका हटाकर पीसकर उसमें जैतून का तेल मिलाकर हाथों पर लगायें तथा लगाने के 10 मिनट बाद हाथों को धोने से लाभ होता है।

27.चेहरे की झांई के लिए:-अगर चेहरे पर चेचक या मुंहासों के दाग या झांइयां हो तो कच्चे आलू को पीसकर 3-3 बूंद ग्लिसरीन, सिरका और गुलाब का रस मिलाकर फेस पैक बना लें। इसे रोजाना तीन मिनट तक चेहरे पर अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर लगाने से चेहरे के दाग और झांइयां बहुत ही जल्दी दूर हो जाती हैं।

28.पीलिया का रोग:-आलू या उसके पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पिलाने से पीलिया दूर हो जाता है।

29.दाद के रोग में:-कच्चे आलू का रस पीने से दाद ठीक हो जाता है।

30.हाथों की झुर्रियां:-कच्चे आलू के रस से मालिश करने से हाथों पर झुर्रियां (सिलवटें) नहीं पड़ती हैं।

31.जलने पर:-आलू को बारीक पीसकर शरीर में जले हुए भाग पर मोटा-मोटा सा लेप कर दें जिससे कि जले हुए भाग पर हवा न लगे। ऐसा करने से जलन मिट जाती है और आराम आ जाता है।

32.शारीरिक सौंदर्यता के लिए:-*आलू को पीसकर शरीर पर लेप करने से शरीर की त्वचा चमकदार हो जाती है। उबाले हुए आलू के पानी से शरीर को साफ करने से त्वचा सुन्दर और साफ हो जाती है।
*कच्चे आलू का छिलका हटाकर उसका रस निकालकर चेहरे पर मलें या कपड़े पर लगाकर चेहरे पर रातभर लगा रहने दें। सवेरे उठने पर चेहरा साफ कर लें। चेहरे का रंग गोरा हो जायेगा।"

33.सिर का दर्द:-सिर के दर्द में आलू के बीज खाने से आराम मिलता है।

34.शरीर में सूजन:-*आलू को पानी में उबालकर आलू को पानी से अलग करके इसके पानी से सूजन वाले भाग या अंग की सिकाई करने से सूजन दूर हो जाती है।
*500 ग्राम जल में 250 ग्राम कच्चे आलू को उबालकर सूजन वाले अंग को सेंककर आलू का लेपकर देने से चोट के कारण होने वाली सूजन दूर हो जाती है।"

मोटापे को कम करने के लिए

मोटापे को कम करने के लिए खाने के सम्बंध में कुछ दिशा-निर्देश नीचे दिये गए हैं जो इस प्रकार से हैं-

दिशा-निर्देश

6.00 बजे शहद मिला हुआ एक गिलास नींबू का रस। सुबह

8.00 बजे सुबह एक फल और छाछ

12.00 से 1.00 बजे के बीच - 100 ग्राम कच्चा सलाद, 300 ग्राम सब्जियां, 3 चपाती, 200 ग्राम चावल, दलिया, खिचड़ी, एक दिन छोड़कर दाल, छाछ, सूप।

शाम 4.00- फल का रस, कोई रसीला फल

शाम 7.00 बजे - 2 या तीन तरह के फल और इनमें से प्रत्येक 100 ग्राम की मात्रा में लें। 200 ग्राम सब्जियां भाप में पकी हुई लें। एक बड़ा चम्मच अंकुरित दाल और सूप लें।

पेट के सभी रोग : विभिन्न औषधियों के द्वारा रोग का उपचार :

पेट के सभी रोग

विभिन्न औषधियों के द्वारा रोग का उपचार :

1. फिटकरी : भूनी हुई फिटकरी 10 ग्राम, भूना हुआ सुहागा 10 ग्राम, नौसादर ठीकरी 10 ग्राम, कालानमक 10 ग्राम और भूनी हुई हींग 5 ग्राम को अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। यह 2-2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम भोजन के साथ सेवन करने से पेट का सभी रोग समाप्त होता है।

2. असंगध : 100 ग्राम असंगध को बारीक पीसकर 5-5 ग्राम की मात्रा में देशी घी व चीनी मिलाकर गर्म दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से प्रसूता (डिलीवरी) का दर्द और पेट का दर्द ठीक होता है।

3. त्रिफला : त्रिफला का 100 ग्राम चूर्ण में 65 ग्राम चीनी मिलाकर रख लें और यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पानी के साथ सेवन करें। इसके उपयोग से पेट की सभी बीमारियां समाप्त होती हैं।

4. तुलसी :

* 10 ग्राम तुलसी का रस पीने से पेट की मरोड़ व दर्द ठीक होता है।
* तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त रोग ठीक होता है। तुलसी के पत्तों का 10 ग्राम रस प्रतिदिन पीने से पेट की मरोड़ और कब्ज दूर होती है।
* तुलसी के 4 ताजे पत्ते प्रतिदिन पानी के साथ खाने से पेट की बीमारीयां दूर होती है। इससे हृदय, फेफड़ों, रक्त एवं कैंसर में लाभ मिलता है।

5. जामुन : पेट की बीमारियों में जामुन लाभदायक होता है। जामुन खाने से दस्त का बार-बार आना बंद होता है। यह पेट दर्द, दस्त रोग, अग्निमांद्य आदि में जामुन के रस में सेंधानमक मिलाकर पीना चाहिए।

6. केला :

* किसी भी कारण से उत्पन्न पेट दर्द में केला खाना लाभकारी होता है। केला बच्चे व कमजोर रोगी के लिए पोषक आहार होता है। केले का सेवन से पेट दर्द, आंतों की सूजन और आमाशय का जख्म ठीक होता है।

7. अनार : अधपका अनार खाने से मेदा, तिल्ली, यकृत की कमजोरी, संग्रहणी (पेचिश), दस्त, उल्टी और पेट का दर्द ठीक होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ता है और पेशाब की रुकावट को दूर करता है।

8. गाजर : गाजर खाने या इसका रस पीने से भोजन न पचना, पेट में वायु बनना, ऐंठन, सूजन एवं घाव ठीक होता है। गाजर का रस पीने से पेट में पानी भरना, एपेण्डीसाइटिस, वृहादांत्र शोथ (कोलाइटिस), दस्त की बदबू, मुंह की बदबू और खराश ठीक होती है।

9. मूली : खाना खाते समय मूली की चटनी, अचार और सब्जी या मूली पर नमक, कालीमिर्च का चूर्ण डालकर खाने से पेट के सभी रोग जैसे- पाचनक्रिया का मंदा होना, अरुचि, पुरानी कब्ज और गैस आदि दूर होती है।

10. ग्वारपाठा :

* ग्वारपाठा के गूदे को पेट पर लेप करने से पेट नर्म होकर आंतों में जमा मल ढीला होकर निकल जाता है। इसके सेवन से पेट की गांठे गल जाती हैं।
* 5 चम्मच ग्वारपाठे का ताजा रस, 2 चम्मच शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक होते हैं।

11. चौलाई : चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पेट की बीमारियां समाप्त होती है।

12. बथुआ : बथुआ की सब्जी मौसम के अनुसार खाने से पेट, जिगर एवं तिल्ली का रोग ठीक होता है। इसके सेवन से गैस का बनना, कब्ज, पेट के कीड़े और बवासीर ठीक होती है।

13. मसूर : मसूर की दाल को खाने से पेट की पाचनक्रिया ठीक होती है और कब्ज नहीं बनती।

14. सौंठ :

* पिसी हुई सौंठ एक ग्राम, थोड़ी सी हींग और सेंधानमक पीसकर चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ खाने से पेट का दर्द दूर होता है।
* सौंठ का 1 चम्मच चूर्ण और सेंधानमक को एक गिलास पानी में गर्म करके पीने से पेट की पीड़ा समाप्त होती है।
* सौंठ, हरीतकी, बहेड़ा और आंवला बराबर मात्रा में लेकर पेस्ट बना लें और इसे गाय का घी, तिल का तेल ढाई किलो, दही का पानी ढाई किलो के साथ मिलाकर विधिपूर्वक घी का पाक बना लें। इसके बाद इसे छानकर 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट के सभी रोग दूर होते हैं।

15. अदरक : अदरक के टुकड़े को देशी घी में सेंककर इसमें नमक मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से पेट का दर्द शांत होता है।

16. आक : 10 ग्राम आक की जड़ की छाल कूटकर 400 ग्राम पानी में डालकर काढ़ा बनाएं और जब यह काढ़ा 50 ग्राम बच जाए तो छानकर पीएं। इसका उपयोग पेट के सभी रोग के लिए बेहतर होता है।

17. गिलोय : ताजी गिलोय 18 ग्राम, अजमोद, छोटी पीपल 2-2 ग्राम, नीम की 2 सींकों को पीसकर रात को 250 पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में रख दें और सुबह इसे छानकर सेवन करें। इसका सेवन 15 से 30 दिनों तक करने से पेट के सभी रोग ठीक होते हैं।

18. प्याज :

* प्याज खाने से भूख का न लगना ठीक होता है, जिगर (यकृत), तिल्ली तथा पित्त का रोग ठीक होता है। इसके सेवन से पेट की गैस बाहर निकाल जाती है और जलवायु के बदलाव के कारण होने वाला रोग ठीक होता है।
* प्याज को आग में गर्म करके रस निकाल लें और इस रस में नमक मिलाकर पीएं। इससे अम्लपित्त और पेट का दर्द ठीक होता है।
* नींबू का रस, प्याज का रस और नमक मिलाकर 1-2 चम्मच की मात्रा में पीने से पेट के सभी रोग दूर होते हैं।

19. अकरकरा :

* छोटी पीपल और अकरकरा की जड़ का चूर्ण बराबर मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम भोजन करने के बाद सेवन करने से पेट सम्बंधी सभी समाप्त होते हैं।
* पेट रोग से पीड़ित रोगी को अकरकरा की जड़ का चूर्ण और छोटी पिप्पली का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर आधे चम्मच की मात्रा में भोजन करने के बाद सुबह-शाम करना चाहिए।

20. अमलतास : 4 से 12 वर्ष के बच्चे को यदि पेट में जलन हो रही हो और दस्त बंद हो गया हो तो अमलतास के बीच के भाग को 2-4 मुनक्के के साथ सेवन करना चाहिए।

21. अमरबेल :

* अमरबेल के बीजों को पानी में पीसकर पेट पर लेप करके कपड़े से बांधने से पेट की गैस, डकारें, मरोड़ व दर्द ठीक होता है।
* अमरबेल को उबालकर पेट पर बांधने से डकारें व अपच दूर होता है।
* अमरबेल के आधे किलो रस में एक किलो मिश्री मिलाकर धीमी आग पर पका लें। यह 2 ग्राम की मात्रा में 2 ग्राम पानी मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही गुल्म (वायु का गोला) और पेट का दर्द ठीक होता है।

22. पोदीना : 2 चम्मच पुदीने का रस, 1 चम्मच नींबू का रस और 2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के सभी रोग दूर होते हैं।

23. अनन्नास :

* पके अनन्नास का 10 ग्राम रस, भुनी हुई हींग एक चौथाई ग्राम, अदरक का रस आधा ग्राम और सेंधानमक मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पेट का दर्द और पेट में गैस का गोला बनना ठीक होता है।
* अनन्नास के सेवन से पेट की पीड़ा नश्ट होती है। अनन्नास में जीरा, नमक और चीनी डालकर खाने से अरुचि दूर होती है, तिल्ली की सूजन एवं पीलिया समाप्त होता है।
* अनानास के रस में यवक्षार, पीपल और हल्दी का चूर्ण आधा-आधा ग्राम मिलाकर सेवन करने से प्लीहा (तिल्ली), पेट के रोग रोग ठीक होता है।

24. पपीता : कब्ज, भोजन का न पचना व खूनी बवासीर आदि रोगों में पका हुआ पपीता खाना बेहद लाभकारी होता है।

25. अंगूर :

* 10-20 बीज निकाले हुए मुनक्के को 200 ग्राम दूध में अच्छी तरह उबालकर सेवन करने से दस्त खुलकर आता है।
* 10-20 मुनक्का, 5 अंजीर और सौंफ, सनाय, अमलतास का गूदा व गुलाब का फूल 3-3 ग्राम को मिलाकर काढ़ा बनाकर गुलकन्द मिलाकर पीने से कब्ज और गैस समाप्त होती है।
* रात में सोने से पहले 10-20 मुनक्के को घी में भूनकर सेंधानमक मिलाकर खाने से पेट का रोग ठीक होता है।
* 7 मुनक्का, 5 कालीमिर्च, 10 ग्राम भुना हुआ जीरा, 6 ग्राम सेंधानमक, आधा ग्राम टाटरी को मिलाकर चटनी बनाकर खाने से कब्ज व अरुचि दूर होती है।

26. पंचकोल : पंचकोल को पीसकर 5 ग्राम की मात्रा में एक गिलास छाछ में मिलाकर भोजन करते हुए घूंट-घूंट करके पीने से पेट के सभी रोग समाप्त होते हैं।

27. बबूल : बबूल के पेट के अंदर की छाल का काढ़ा बनाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से जलोदर और अन्य पेट का रोग समाप्त होता है।

28. ताड़ : ताड़ के जटा का एक ग्राम भस्म गुड़ के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उदर रोग नष्ट होता है।

29. अरनी :

* अरनी की 100 ग्राम जड़ को आधा किलो पानी में 15 मिनट तक उबालकर दिन में 2 बार पीने से पाचनशक्ति की कमजोरी दूर होती है।
* अरनी के पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेट का फूलना और पाचनशक्ति की गड़बड़ी दूर होती है। इससे आमाशय का दर्द ठीक होता है।

30. गुलाब : भोजन करने के बाद 2 चम्मच गुलकंद लेने से पेट का रोग समाप्त होता है।

31. सौंफ :

* सौंफ को नींबू के रस में मिलाकर खाना खाने के बाद खाने से भूख का न लगना दूर होता है और मल साफ होता है।
* सौंफ को शहद के साथ मिलाकर हल्के गुनगुने पानी के साथ लेने से वायु के कारण होने वाले रोग ठीक होता है।

अन्य उपचार :

* खाना खाते समय और मल त्याग के समय दाईं नाक से सांस लेना चाहिए और पेशाब करते समय बाईं नाक से सांस लेना चाहिए। इससे कब्ज और पेट की बीमारी नहीं होती है।
* खाना खूब चबा-चबाकर और भूख से कम और नियमित समय पर खाना चाहिए।

नीम :



• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।

शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय

शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय

तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है।

लहसुन : 200 ग्राम लहसुन पीसकर उसमें 60 मिली शहद मिलाकर एक साफ-सुथरी शीशी में भरकर ढक्कन लगाएं और किसी भी अनाज में 31 दिन के लिए रख दें। 31 दिनों के बाद 10 ग्राम की मात्रा में 40 दिनों तक इसको लें। इससे यौन शक्ति बढ़ती है।

जायफल : एक ग्राम जायफल का चूर्ण प्रातः ताजे जल के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही यौन दुर्बलता दूर होती है। दालचीनी : दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है और यौन दुर्बलता दूर होती है।

खजूर : शीतकाल में सुबह दो-तीन खजूर को घी में भूनकर नियमित खाएं, ऊपर से इलायची- शक्कर डालकर उबला हुआ दूध पीजिए। यह उत्तम यौन शक्तिवर्धक है।

गोखरू: का महीन पिसा चूर्ण 3 ग्राम, कतीरा गोंद पिसा हुआ 3 ग्राम और शुद्ध घी दो चम्मच, यह एक खुराक है। घी में दोनों पिसे द्रव्य मिलाकर आग पर रख कर थोड़ा पका लें और चाटकर ऊपर से एक गिलास मीठा गर्म दूध पी लें।

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