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मंगलवार, 5 सितंबर 2023

हम इंसान पक्षियों, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को कैसे नष्ट कर रहे हैं।

 मुझे बस एहसास हुआ कि हम इंसान पक्षियों, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को कैसे नष्ट कर रहे हैं। प्लास्टिक ग्रह को नष्ट कर देता है। नीचे दिए गए चित्रों को देखकर आप जान जाएंगे कि हमने इस धरती पर अब तक क्या किया है।

चेतावनी: विचलित छवियों।

इन मासूम प्राणियों को नहीं पता कि प्लास्टिक के आवरण से कैसे छुटकारा पाया जाए।

एक प्लास्टिक कवर में हमेशा के लिए अटक गयी ये मछली। सदैव।

यह दुख की बात है।

अगर किसी ने डस्टबिन का इस्तेमाल किया होता, तो ये जीव खुश होते।

यह बेहद दर्दनाक रहा होगा।

तो इन सभी चित्रों के रूप में।

हमने धरती के साथ ही नीचे गहरे समुन्द्र तक को प्रदूषित किया/कर रहे है।

पेन कैप जितना सिंपल है लेकिन उससे होने वाले नुकसान बहुत घातक साबित हो सकते है।

क्या आप जनरहे है की यहाँ क्या हुआ है।

इंसान को पानी की बोतल को कुचलने और कचरे में फेंकने में कितना समय लगेगा?

मैं जानता हूं कि हम प्लास्टिक का इस्तेमाल तब तक बंद नहीं करेंगे जब तक कड़ा कानून लागू नहीं होगा या ये व्यावहारिक नहीं होगा। लेकिन हम उस प्लास्टिक को बिल्कुल कूड़ेदान में फेंक सकते हैं जो हमने ठीक से इस्तेमाल किया था।

मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप प्लास्टिक का उचित तरीके से निपटान करें। प्लास्टिक की छोटी सी टोपी जिसे आप समुद्र में फेंकते हैं, किसी के जीवन को हमेशा के लिए बर्बाद कर सकती है।

कृपया प्लास्टिक का निपटान करें। कम से कम हम ऐसा करना का आज से ही शुरुआत तो कर ही सकते है।

अगर एक बिल्ली अपने आप को साफ कर सकती है, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते।

धन्यवाद

महाभारत के कर्ण पिछले जन्म में कौन थे?

महाभारत के कर्ण पिछले जन्म में कौन थे?

कर्ण के पूर्वजन्‍म की कथा के अनुसार दंबोधव नाम के एक असुर ने सूर्य देव की कठिन तपस्या कर उनसे यह वरदान हासिल कर लिया था कि उसे हजार कवच हासिल होंगे। इतना ही नहीं इन कवचों पर केवल वही व्यक्ति प्रहार कर सकता था, जिसने करीब हजार सालों तक तप किया हो। दंबोधव की इच्छा यहीं पूरी नहीं हुई। उसने सूर्य देव से यह भी वर मांगा कि जो भी उसके कवच को भेदने का प्रयास करे, उसकी उसी क्षण मृत्यु हो जाए। सूर्यदेव ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही दंबोधव ने चारों ओर कोहराम मचा दिया जिससे दुखी होकर प्रजापति दक्ष की पुत्री मूर्ति ने असुर दंबोधव के संहार का वरदान मांगा। तब भगवान विष्‍णु के वरदान से मूर्ति को विवाह पश्‍चात् भगवान विष्‍णु के रूप में दो बालक नर-नारायण हुए।

नर और नारायण के संयुक्त प्रयास से सहस्त्र कवच का अंत हुआ। 999 कवच के संहार के बाद जब केवल एक कवच शेष रह गया तब दंबोधर अपने प्राणों की रक्षा के लिए सूर्यदेव की शरण में चला गया। नर और नारायण, दोनों सूर्य लोक पहुंचे और सूर्य देव से असुर को वापस करने की मांग की। लेकिन सूर्यदेव ने दंबोधव का बचाव किया जिससे नर-नारायण ने रूष्‍ट होकर सूर्यदेव के साथ-साथ दंबोधव को भी श्राप दिया कि अगले जन्म में दोनों को ही अपनी करनी का दंड भोगना पड़ेगा।

द्वापर युग में सूर्यदेव के वरदान से ही असुर दंबोधव ने कर्ण के रूप में जन्‍म लिया। अत: कर्ण ने उसी रक्षा कवच के साथ जन्‍म लिया जो दंबोधर के पास शेष बचा था।

तो इस तरह कर्ण ने अपने पर्वजन्‍मों का फल द्वापर युग में भोगा।

महाभारत के कर्ण केवल शूरवीर या दानी ही नहीं थे अपितु कृतज्ञता, मित्रता, सौहार्द, त्याग और तपस्या का प्रतिमान भी थे। वे ज्ञानी, दूरदर्शी, पुरुषार्थी और नीतिज्ञ भी थे और धर्मतत्व समझते थे। वे दृढ़ निश्‍चयी और अपराजेय भी थे। सचमुच कर्ण का व्यक्तित्व रहस्यमय है। उनके व्यक्तित्व के हजारों रंग हैं, लेकिन एक जगह उन्होंने झूठ का सहारा लिया और अपने व्यक्तित्व में काले रंग को भी स्थान दे दिया। कर्ण कुंती के सबसे बड़े पुत्र थे और कुंती के अन्य 5 पुत्र उनके भाई थे।

कौन्तेयस्त्वं न राधेयो न तवाधिरथः पिता।
सूर्यजस्त्वं महाबाहो विदितो नारदान्मया।।- (भीष्म पर्व 30वां अध्याय)

कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। महाराज कुंतिभोज से कुंती के पिता शूरसेन की मित्रता थी। कुंतिभोज को कोई संतान नहीं थी अत: उन्होंने शूरसेन से कुंती को गोद मांग लिया। कुंतिभोज के यहां रहने के कारण ही कुंती का नाम 'कुंती' पड़ा। हालांकि पहले इनका नाम पृथा था। कुंती (पृथा) का विवाह राजा पांडु से हुआ था।

राजा शूरसेन की पुत्री कुंती अपने महल में आए महात्माओं की सेवा करती थी। एक बार वहां ऋषि दुर्वासा भी पधारे। कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कहा, 'पुत्री! मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुआ हूं अतः तुझे एक ऐसा मंत्र देता हूं जिसके प्रयोग से तू जिस देवता का स्मरण करेगी वह तत्काल तेरे समक्ष प्रकट होकर तेरी मनोकामना पूर्ण करेगा।' इस तरह कुंती को वह मंत्र मिल गया।

जब कुंती ने मंत्र की जांच करना चाही...

कुंती तब कुमारी ही थी : एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न इस मंत्र की जांच कर ली जाए। कहीं यह यूं ही तो नहीं? तब उन्होंने एकांत में बैठकर उस मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव का स्मरण किया। उसी क्षण सूर्यदेव प्रकट हो गए। कुंती हैरान-परेशान अब क्या करें?

सूर्यदेव ने कहा, 'देवी! मुझे बताओ कि तुम मुझसे किस वस्तु की अभिलाषा करती हो। मैं तुम्हारी अभिलाषा अवश्य पूर्ण करूंगा।' इस पर कुंती ने कहा, 'हे देव! मुझे आपसे किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं है। मैंने मंत्र की सत्यता परखने के लिए जाप किया था।'

कुंती के इन वचनों को सुनकर सूर्यदेव बोले, 'हे कुंती! मेरा आना व्यर्थ नहीं जा सकता। मैं तुम्हें एक अत्यंत पराक्रमी तथा दानशील पुत्र देता हूं।' इतना कहकर सूर्यदेव अंतर्ध्यान हो गए।

तब लज्जावश माता कुंती ने क्या किया...

जब कुंती हो गई गर्भवती, तब लज्जावश यह बात वह किसी से नहीं कह सकी और उसने यह छिपाकर रखा। समय आने पर उसके गर्भ से कवच-कुंडल धारण किए हुए एक पुत्र उत्पन्न हुआ। कुंती ने उसे एक मंजूषा में रखकर रात्रि को गंगा में बहा दिया।

फिर क्या हुआ उस बालक का...

वह बालक गंगा में बहता हुआ एक किनारे से जा लगा। उस किनारे पर ही धृतराष्ट्र का सारथी अधिरथ अपने अश्व को जल पिला रहा था। उसकी दृष्टि मंजूषा में रखे इस शिशु पर पड़ी। अधिरथ ने उस बालक को उठा लिया और अपने घर ले गया। अधिरथ निःसंतान था। अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था। राधा ने उस बालक का अपने पुत्र के समान पालन किया। उस बालक के कान बहुत ही सुन्दर थे इसलिए उसका नाम कर्ण रखा गया। इस सूत दंपति ने ही कर्ण का पालन-पोषण किया था इसलिए कर्ण को 'सूतपुत्र' कहा जाता था तथा राधा ने उस पाला था इसलिए उसे 'राधेय' भी कहा जाता था।

कर्ण का पालन-पोषण चम्पा नगरी (वर्तमान बिहार राज्य के भागलपुर जिले में), जो गंगा के किनारे एक व्यापारिक केंद्र था, में सूत परिवार में हुआ था। इनके पालक पिता अधिरथ थे और माता राधादेवी थी। पिता रथ संचालन करते थे।

सूत पुत्र होने का अर्थ क्या...

क्षत्रियाद्विप्र कन्यायां सूतो भवति जातितः।
वैश्‍यान्मागध वैदेहो राजविप्राड.गना सुतौ।। -
10वें अध्याय का 11वां श्‍लोक

मनु स्मृति से हमें ज्ञात होता है कि 'सूत' शब्द का प्रयोग उन संतानों के लिए होता था, जो ब्राह्मण कन्या से क्षत्रिय पिता द्वारा उत्पन्न हों। लेकिन कर्ण तो सूत्र पुत्र नहीं, सूर्यदेव के पु‍त्र थे । इस सूत को कालांतर में बिगाड़कर शूद्र कहा जाने लगा। अंतत: शूद्र कौन, इसका भी अर्थ बदला जाने लगा।

कर्ण को शस्त्र विद्या की शिक्षा द्रोणाचार्य ने ही दी थी। कर्ण द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी सीखना चाहता था लेकिन द्रोण को कर्ण की उत्पत्ति के संबंध में कुछ मालूम नहीं था इसलिए उन्होंने कर्ण को ब्रह्मास्त्र की शिक्षा नहीं दी।

तब कर्ण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किससे सीखा...

परशुराम और कर्ण : तब कर्ण ने परशुराम की शरण ली और उनसे झूठ बोला कि मैं ब्राह्मण हूं। (ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म ज्ञान को जानने वाला) परशुराम ने उन्हें ब्राह्मण पुत्र समझकर ब्रह्मास्त्र के प्रयोग की शिक्षा दे दी। परशुराम का प्रण था कि में सिर्फ ब्राह्मणों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दूंगा। परशुराम ने कर्ण को अन्य कई अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी और कर्ण पूर्ण रूप से अस्त्र-शस्त्र विद्या में पारंगत हो गए।

फिर एक दिन जंगल में कहीं जाते हुए परशुरामजी को थकान महसूस हुई, उन्होंने कर्ण से कहा कि वे थोड़ी देर सोना चाहते हैं। कर्ण ने उनका सिर अपनी गोद में रख लिया। परशुराम गहरी नींद में सो गए। तभी कहीं से एक कीड़ा आया और वह कर्ण की जांघ पर डंक मारने लगा। कर्ण की जांघ पर घाव हो गया। लेकिन परशुराम की नींद खुल जाने के भय से वह चुपचाप बैठा रहा, घाव से खून बहने लगा।

बहते खून ने जब परशुराम को छुआ तो उनकी नींद खुल गई। उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुमने उस कीड़े को हटाया क्यों नहीं? कर्ण ने कहा कि आपकी नींद टूटने का डर था इसलिए। परशुराम ने कहा किसी ब्राह्मण में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती है। तुम जरूर कोई क्षत्रिय हो। सच-सच बताओ। तब कर्ण ने सच बता दिया।

क्रोधित परशुराम ने कर्ण को उसी समय शाप दिया कि तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। महाभारत के युद्ध में हुआ भी यही इस अमोघास्त्र का प्रयोग उसने दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था। इसके प्रयोग से भीम पुत्र घटोत्कच मारा गया था।


महाभारत में कर्ण का पालन-पोषण किसने किया था?

अक्सर मैंने देखा है कि जो कर्ण प्रशंसक उसके नीची जाति का होने के कारण हुए अपमान का रोना रोते हैं वो उसे सूतपुत्र या अधिरथ पुत्र नहीं बल्कि सूर्य पुत्र या पांडव कहलवाना चाहते हैं। वो दोगले लोग उस पिता और उस जाति के नाम से उसे पुकारने में शर्म महसूस करते हैं जिस जाति के पिता ने राधानन्दन कर्ण को अपने बड़े पुत्र के समान प्यार किया था और जिस पिता ने उसके सभी संस्कारों को करवाया था।

खैर अब हम उन लोगों का कुछ नहीं कर सकते लेकिन असल रूप में देखा जाये तो जिस जाति का होने को वो अधिरथ पुत्र कर्ण का अपमान समझते हैं वह जाति कोई नीची जाति नहीं बल्कि उस समय की तीसरी सबसे बड़ी जाति थी सूतपुत्र कर्ण एक ऐसी जाति की संतान था जो कि क्षत्रिय पिता और ब्राह्मण माता के कारण सूत कहलाती थी ये लोग क्षत्रियों के बंधु थे जो कि क्षत्रियों से थोड़े नीचे लेकिन वैश्य समाज से उपर के होते थे ये मुख्यत: सारथी(जो कि कोई छोटा मोटा पद नहीं होता था), योद्धा, कथावाचक आदि आदि होते थे कई सूत राजा भी हुए थे विराट नगर के राजा का सेनापति कीचक भी एक सूत ही था जिसके आगे वहां का राजा भी कुछ नहीं बोलता था खुद कर्ण के पिता अधिरथ भी कोई छोटे मोटे खानदान के नहीं थे वो अंग राज्य के शाही खानदान से थे वहीं खानदान जिसमें दशरथ जी के मित्र राजा रोमपाद हुए थे जिन्हें दशरथ जी ने अपनी कन्या शान्ता को गोद दिया था। सामान्य दृष्टिकोण के विपरित अधिरथ कोई गरीब सारथी नहीं था बल्कि धृतराष्ट्र का मित्र और सारथी था उसके यहां सेवक आदि सब थे और पूरी तरह समृद्ध परिवार भी था लेकिन उन्हें और उनकी पत्नी राधा को पुत्र सुख प्राप्त नहीं था जो कि कर्ण को प्राप्त करके पूरा हुआ था कर्ण के बाद में उनके खुद के भी पुत्र हुए थे लेकिन उन्होंने हमेशा कर्ण को अपने बड़े पुत्र की तरह ही प्यार और सम्मान दिया था उन्होंने ही ब्राह्मणों के द्वारा उसके सभी संस्कारों को पूरा करवाया था यहां तक कि अपनी ही जाति की उत्तम कन्याओं से उसका विवाह संस्कार भी किया था।


महाभारत में कर्ण को कुल कितने श्राप मिलें और क्यों?

1- पृथ्वी माता का शाप - एक बार कर्ण कहीं जा रहा था, तभी रास्ते में एक कन्या मिली जो घी के जमीन पर गिर जाने के कारण रो रही थी। कर्ण ने जब कारण पूंछा तो उसने बताया की अगर घी लेकर घर नहीं गई तो मेरी सौतेली मां पिटाई करेगी। इस बात पर कर््ण को दया आ गई। जहां घी गिरा था वहां की मिट्टी को मुट्ठी में भर कर निचोड़ कर घी निकालने लग। इस बात से पृथ्वी माता को कष्ट हुआ और उन्होंने शाप दिया कि " जीवन के निर्णायक युद्ध में वह भी उसके रथ को पकड़ लेंगी"

2- गुरु का शाप- परशुराम का प्रण था कि वह शस्त्र विद्या का ज्ञान केवल क्षत्रियों को नहीं देंगे। लेकिन कर्ण ने झूठ बोलकर उनसे अस्त्र शस्त्र का ज्ञान लिया, बाद में भेद खुलने पर उसके गुरु ने शाप दिया कि " जब तुम्हें इन सब विद्या की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तभी तुम इसे भूल जाओगे"।

3- ब्राह्मण का शाप- शब्दभेदी बाण का अभ्यास करते समय , कर्ण ने एक गाय को मार डाला , वह गाय एक ब्राह्मण की थी ब्राह्मण ने शाप दिया कि " युद्ध के बीच में तुम भी ऐसे मारे जाओगे।


"सूर्यपुत्र कर्ण" नामक एक वाहियात सीरियल में "शाम्भव अस्त्र" की रचना होगी जिसके बारे में स्वयं भगवान शिव को भी पता नहीं होगा।

 

चित्र स्रोत: गूगल

जी हाँ, इस अद्भुत अस्त्र का वर्णन शिव महापुराण में किया गया है। उसमें ये स्पष्ट लिखा गया है कि श्वेत वराह कल्प के सातवें मन्वंतर के 28 वे कलियुग के वर्ष 1978 में सिद्धार्थ तिवारी नामक एक अनपढ़ और जाहिल व्यक्ति पैदा होगा जो "सूर्यपुत्र कर्ण" नामक एक वाहियात सीरियल बनाएगा। उसी सीरियल में "शाम्भव अस्त्र" की रचना होगी जिसके बारे में स्वयं भगवान शिव को भी पता नहीं होगा।

मैं जब से कोरा से जुड़ा हूँ तब से असंख्य बार लोगों से हाथ जोड़ कर यही कहता आ रहा हूँ कि ईश्वर के लिए आज कल के इन बकवास सीरियलों से जितना हो सके दूर रहे और अपने बच्चों को तो बिलकुल दूर रखें। ऐसी घटिया सीरियल देख कर आने वाली पीढ़ी सत्य असत्य को भूल कर ऐसी ही बकवास करने लगेगी इसमें कोई संदेह नहीं है। सरकार को चुनाव और वोट से फुर्सत नहीं है इसीलिए वे इस विषय में कुछ करेंगे, ये सोचना ही मूर्खता है। तो कृपया स्वयं का बचाव स्वयं ही करें।

आपके प्रश्न का उत्तर ये है कि इस प्रकार के किसी भी अस्त्र का विवरण किसी भी पुराण या उप-पुराण में नहीं दिया गया है। ये सब सिर्फ इन धनपिशाच निर्माता निर्देशकों के बीमार दिमाग की उपज है।

रामायण और महभारत जैसे महाकाव्यों में हर व्यक्ति का अपना कोई सबसे पसंदीदा पात्र अवश्य होता है। मेरा भी है। हर कोई चाहता है कि उस पात्र की कमियों को छिपाया जाये और गुणों को उजागर किया जाये। पर समस्या तब आती है जब व्यक्ति अपने उस के महिमामंडन में हर सीमा पार कर देता है। कहा जाता है कि अति सदैव हानि ही करती है, आज कल भी यही हो रहा है। और गंभीर बात ये है कि हर सीरियल में यही हो रहा है।

महाभारत में वैसे भी महर्षि वेदव्यास ने कर्ण को एक महान योद्धा के रूप में चित्रित किया है। फिर आप क्यों उसे अपनी ओर से भगवान बनाने पर तुले हुए हैं? महाभारत पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि जितने दिव्यास्त्र अर्जुन के पास थे, किसी भी अन्य योद्धा के पास नहीं थे। कर्ण के पास निःसंदेह दिव्यास्त्र थे पर महास्त्र के रूप में उनके पास केवल ब्रह्मास्त्र था। उस पर भी श्राप के कारण वो उसे सही समय पर उपयोग में नहीं ला सकते थे। जबकि अर्जुन के पास ब्रह्मास्त्र और पाशुपतास्त्र दोनों महास्त्र थे और उन्हें उनका पूरा ज्ञान था। ये बात अलग है कि उन्हें पाशुपतास्त्र उपयोग में लाने की कभी आवशयकता ही नहीं पड़ी।

इन लोगों की बकवास देखता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे कर्ण ने युद्ध में परास्त होकर अर्जुन और पांडव सेना पर कोई उपकार कर दिया हो। भाई जब उनके पास शाम्भव अस्त्र नामक कुछ था जो पाशुपतास्त्र को भी निरस्त्र कर सकता था (मुझे लिखते हुए भी हंसी आ रही है) तो उन्होंने युद्ध में उसका उपयोग क्यों नहीं किया? उसे भूल जाने का श्राप थोड़े ही मिला था उन्हें? जब वो इस अस्त्र का उपयोग कर इंद्र देव को विवश कर सकते थे (सीरियल के अनुसार) तो उनके अंश अर्जुन को क्यों नहीं? सत्य ये है कि ऐसा कुछ था ही नहीं तो उपयोग कहाँ से करते।

इंद्र देव को तो ये सीरियल वाले खैर ऐसे दिखाते हैं जैसे कि दुनिया भर की सारी बुराई उनमें ही है और कोई छोटा मोटा योद्धा भी उन्हें परास्त कर देगा। मतलब जिसका भी महिमामंडन करवाना हो तो उससे इंद्र देव को परास्त करवा दो, किस्सा ही ख़तम। ऋग्वेद पढ़िए तो पता चलेगा कि इंद्र कौन हैं, उनकी शक्ति कितनी है और उनका क्या महत्त्व है।

अर्जुन को तो छोड़िये, भीम और यहाँ तक कि सात्यिकी ने भी कर्ण को पराजित किया था। और तो और पांचाल युद्ध में द्रुपद ने भी कर्ण को परास्त किया था। जब गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया था तब वे दुःशासन के साथ रणक्षेत्र से पलायन कर गए। तब ये अस्त्र कहाँ था? कर्ण निःसंदेह एक महान योद्धा थे, उन्हें वही रहने दें, देवता ना बनाये उन्हें।

कर्ण के बेसिरपैर के महिमांडन का श्रेय मराठी लेखक शिवजी सावंत के प्रसिद्ध उपन्यास मृत्युंजय को जाता है। उन्होंने झूठ का एक ऐसा द्वार खोल दिया जिससे आज महारथी कर्ण जैसे बकवास सीरियल निकल कर आ रहे हैं। पढ़ना है तो रामधारी सिंह दिनकर जी की रश्मिरथी पढ़ें। वो भी कर्ण के जीवन पर ही है पर कितनी संतुलित रचना है।

तो फिर से करबद्ध प्रार्थना है कि आज कल के इन बकवास धार्मिक सीरियलों से दूर रहें। ये तो सुधरने से रहे, तो क्यों नहीं हम स्वयं को ही सुधार लें। गीता प्रेस से ग्रन्थ खरीदें और उसे पढ़ें, सही जानकारी मिलेगी। यदि देखना ही हो तो रामानंद सागर जी का रामायण और बी आर चोपड़ा जी का महाभारत देखें। उनमें भी थोड़ी बहुत अशुद्धियाँ हैं लेकिन आज कल के वाहियात सीरियलों के आगे तो वे ईश्वर का आशीर्वाद ही हैं।

जाते जाते इस चित्र पर भी दृष्टि डाल लीजिये जिसे मैंने जान बूझ कर गूगल से खोज कर डाला है ताकि आप लोगों को पता चले कि आज कल की पीढ़ी पैसे कमाने के लिए किस हद तक गिर सकती है। इनसे बच कर रहें।

आखिर त्योहारों के पास ही स्कूलों की परीक्षा क्यों रखी जा रही है - रक्षाबंधन लील गए, दशहरा और दीवाली में लगा दी सेंध,

 आखिर त्योहारों के पास ही स्कूलों की परीक्षा क्यों रखी जा रही है


कभी आपने सोचा है आखिर ये स्कूलों की परीक्षा

♦️दिवाली के एक दिन पहले तक या दिवाली के दो दिन बाद,
♦️होली के दो दिन आगे पीछे
♦️जन्माष्टमी के दिन या एक दो दिन आगे पीछे
♦️रामनवमी के एक दो दिन आगे पीछे
ही होती है......

जब हर साल दिसंबर क्रिसमस पर विंटर विकेशन लगा दिया जाता है....

और
अब तो फरवरी में पेपर करा कर मार्च में ईस्टर से पहले छुट्टियां ही होने लगी है

याद करिए ईद पर कभी कोई पेपर पड़ा हो स्कूलों का

क्या यह सोची समझी साजिश नही लग रही ताकि बच्चो को त्योहारों से दूर रखा जाए



शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों की छुट्टियों में कटौती कर दी है। अब से दिसम्बर तक विभिन्न पर्व त्योहारों पर स्कूलों में 23 छुट्टियां थी, जिसे घटाकर 11 कर दिया गया है। इसे लेकर शिक्षकों में काफी नाराजगी है। शिक्षक हत्थे से उखड़े हुए हैं। खासकर नियोजित शिक्षकों का कहना है कि एक मात्र उन्हें छुट्टी ही दिखती थी कि वे लोग अपना अटका हुआ काम कर लेते थे। इससे अच्छा है कि रात्रि में भी विद्यालय में उनकी ड्यूटी लगा दी जाए। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के निर्देश पर प्रारंभिक से उच्च विद्यालयों तक की छुट्टियों में कटौती करने का आदेश जारी किया गया है। इसके तहत दुर्गा पूजा के पहले स्कूलों में छह दिनों की छुट्टी थी, जिसे अब घटाकर रविवार जोड़कर तीन दिनों का कर दिया गया है।


स्कूलों की छुट्टी में कटौती

इसी तरह दिवाली, चित्रगुप्त पूजा, भैया दूज और छठ पूजा का 13 से 21 नवंबर तक छुट्टी घोषित की गई थी। अब इसमें कटौती करते हुए मात्र चार दिन कर दिया गया है। विभाग ने हालांकि यह कहा है कि यदि किसी जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी विशेष परिस्थिति में अवकाश घोषित करना चाहेंगे, तो पूर्व अनुमति लेकर अवकाश घोषित कर सकते हैं। विभाग के इस आदेश पर पूर्णानंद मिश्र ने ऐसी चुटीली कविता लिखी है। जिसे पढ़कर आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे। पूर्णानंद ने कविता को पूरी तरह हंसी और तंज से भरपुर लिखा है। जो भी पढ़ रहा है वो इस कविता का कायल हो जा रहा है। पूर्णानंद ने कविता का शीर्षक रखा है 'अब क्या खाईएगा शकरकंद'। आगे उन्होंने क्या लिखा है उसे हम आपको हूबहू पढ़वाते हैं।

सब कुछ तो खा गए महाराज,
अब क्या खाईयेगा? शकरकंद,
एक छुट्टी ही तो बची थी हमारे पास,
उसको भी कर दिए बंद।
पद, प्रतिष्ठा खा गए,
खा गए मान -सम्मान,
पेट का दांत भी बाहर करके,
दिखाएंगे श्रीमान।
रक्षाबंधन लील गए,
दशहरा और दीवाली में लगा दी सेंध,
शिक्षक नेता बजा रहे हैं,
खाली बाल्टी का पेंद।

राजनीतिक बयानबाजी तेज

केके पाठक और शिक्षा विभाग के इस आदेश के बाद बिहार में राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। इस आदेश के बाद केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय के सांसद गिरिराज सिंह ने अपने एक्स हैंडल से पोस्ट करते हुए लिखा कि शिक्षा विभाग, बिहार सरकार द्वारा दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पूजा की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं। कल संभव है कि बिहार में शरिया लागू कर दी जाये और हिंदू त्योहार मनाने पर रोक लग जाये। जपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉ. निखिल आनंद ने कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार को पीएफआई का चारागाह पहले ही बना दिया है। अब जितने भी हिंदू सनातन धर्म के पर्व- त्योहार हैं, उन अवसर पर मिलने वाली छुट्टियों को रद्द किया जा रहा है और कटौती की जा रही है। उन्होंने कहा कि बिहार सिर्फ अपराध और आतंक का अड्डा ही नहीं बनता जा रहा है, बल्कि नीतीश कुमार की मुस्लिम परस्ती और पाकिस्तान परस्ती का खामियाजा बिहार का आम नागरिक और हिंदू सनातन धर्म के मानने वाले लोग भुगतने जा रहे हैं।

धीरे-धीरे एक एक शब्द पढियेगा, हर एक वाक्य में कितना दम है ।*

*धीरे-धीरे एक एक शब्द पढियेगा, हर एक वाक्य में कितना दम है ।* 

*"आंसू" जता देते है, "दर्द" कैसा है?*
*"बेरूखी" बता देती है, "हमदर्द" कैसा है?*

*"घमण्ड" बता देता है, "पैसा" कितना है?*
 *"संस्कार" बता देते है, "परिवार" कैसा है?*

*"बोली" बता देती है, "इंसान" कैसा है?*
*"बहस" बता देती है, "ज्ञान" कैसा है?*

*"ठोकर" बता देती है, "ध्यान" कैसा है?*
*"नजरें" बता देती है, "सूरत" कैसी है?*

*"स्पर्श" बता देता है, "नीयत" कैसी है?*
 *और "वक़्त" बता देता है, "रिश्ता" कैसा समाज में बदलाव क्यों नहीं आता क्योंकि गरीब मैं हिम्मत नहीं मध्यम को फुर्सत नहीं और अमीर को जरूरत नहीं
           
*सुबह की "चाय" और बड़ों की "राय"*
     समय-समय पर लेते रहना चाहिए.....
       *पानी के बिना, नदी बेकार है*
     अतिथि के बिना, आँगन बेकार है।*
  *प्रेम न हो तो, सगे-सम्बन्धी बेकार है।*
       पैसा न हो तो, पाकेट बेकार है।
           *और जीवन में गुरु न हो*
               तो जीवन बेकार है।
                इसलिए जीवन में 
                  *"गुरु"जरुरी है।*
                  *"गुरुर" नही"*
 
    
*जीवन में किसी को रुलाकर*
    *हवन भी करवाओगे तो*
       *कोई फायदा नहीं*
🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼
 *और अगर रोज किसी एक*
*आदमी को भी हँसा दिया तो*
             *मेरे दोस्त*
     *आपको अगरबत्ती भी*
   *जलाने की जरुरत नहीं*
🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸
       *कर्म ही असली भाग्य है*

 धीरे धीरे पढिये पसंद आएगा...

1👌मुसीबत में अगर मदद मांगो तो सोच कर मागना क्योंकि मुसीबत थोड़ी देर की होती है और एहसान जिंदगी भर का.....

2👌कल एक इन्सान रोटी मांगकर ले गया और करोड़ों कि दुआयें दे गया, पता ही नहीँ चला की, गरीब वो था की मैं.... 

3👌जिस घाव से खून नहीं निकलता, समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है..

4👌बचपन भी कमाल का था खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर, आँख बिस्तर पर ही खुलती थी...

5👌खोए हुए हम खुद हैं, और ढूंढते भगवान को हैं...

6👌अहंकार दिखा के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है कि माफ़ी मांगकर वो रिश्ता निभाया जाये....

7👌जिन्दगी तेरी भी अजब परिभाषा है.. सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है...

8👌खुशीयाँ तकदीर में होनी चाहिये, तस्वीर मे तो हर कोई मुस्कुराता है...

9👌ज़िंदगी भी वीडियो गेम सी हो गयी है एक लेवल क्रॉस करो तो अगला लेवल और मुश्किल आ जाता हैं.....

10👌इतनी चाहत तो लाखों रुपये पाने की भी नही होती, जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है.......

11👌हमेशा छोटी छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करो, क्योंकि इन्सान पहाड़ो से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है..

मनुष्य का अपना क्या है ?
जन्म :- दुसरो ने दिया
नाम :- दुसरो ने रखा
शिक्षा :- दुसरो ने दी
रोजगार :- दुसरो ने दिया और
शमशान :- दुसरे ले जाएंगे
तो व्यर्थ में घमंड किस बात पर करते है लोग 👏

दिल को छुआ हो अपने best friend को जरुर शेयर करे मे हू तो मुझे भी शेयर करे सकते हैं 😊

अनमोल वचन:

रिश्तों को अति मजबूत बनाने के लिए केवल एक दूसरे पर विश्वास करना सीखिये...शक तो सारी दुनिया करती है...!

🇲🇰 ओम शान्ति 🇲🇰

*"परिवार"का हाथ पकड़ कर चलिये; लोगों के "पैर" पकड़ने की नौबत नहीं आएगी;*
*परिवार के प्रति जब तक मन में"खोंट" और दिल में "पाप" है; तब तक सारे"मंत्र" और "जाप" बेकार है;।*
*जीवन एक यात्रा है; रो कर जीने से बहुत लम्बी लगेगी; और हंस कर जीने पर कब पूरी हो जाएगी; पता भी नहीं चलेगा;।*
*"ईश्वर" से शिकायत क्यों है; ईश्वर ने पेट भरने की जिम्मेदारी ली है; पेटियां भरने की नहीं;*
*ह्रदय कैसे चल रहा है;, यह डाक्टर बता देंगे; परन्तु ह्रदय में क्या चल रहा है; यह तो स्वयं को ही देखना है;...!!*
🌹🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹*एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों**
 इसका क्या कारण है ?
**धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं,किन्तु सबके रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद भिन्न होते हैं ..।** 
**ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र**
जातक सब अपना
 **किया, दिया, लिया**
ही पाते हैं..
यही है जीवन...
"गलत पासवर्ड से एक छोटा सा मोबाइल नही खुलता..
तो सोचिये ..
**गलत कर्मो से जन्नत के दरवाजे कैसे खुलेंगे**
 ☝ यह कहानी आप अपने सभी जानने वाले को जरूर पोस्ट कर क्योंकि अगर 100 में से 10 ने भी ये कुछ बाते अपना ली तो बड़ा पूण्य होगा 🔔🕉🔔🙏

गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है, हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी....
1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।

2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे, गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।

4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

6. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।

7. गौ माता कि एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।

8. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।

9. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।

10. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है , उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।

11. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।

12. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।

13. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।

14. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।

15. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे।

16. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।

17. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।

18. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।

19. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है । 

20. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है 

21. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है, हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं

22. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा

23. गौ माता सर्व सुखों की दाता है 

हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं..

जय गौमाता, जय श्रीकृष्ण, जय गोविंदा ✨🙏💖🕉️

शनिवार, 2 सितंबर 2023

जब दीपावली भगवान राम के १४ वर्षो के वनवास से अयोध्या लौटने के उतसाह में मनाई जाती है, तो दीपावली पर "लक्ष्मी पूजन" क्यों होता है ? श्री राम की पूजा क्यों नही?"

बात उन दिनों की है जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्र थे!
दशहरा बीत चुका था, दीपावली समीप थी, तभी एक दिन कुछ युवक-युवतियों की NGO टाइप टोली हमारे कॉलेज में आई!


उन्होंने छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे; किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया!

उन्होंने पूछा, "जब दीपावली भगवान राम के १४ वर्षो के वनवास से अयोध्या लौटने के उतसाह में मनाई जाती है, तो दीपावली पर "लक्ष्मी पूजन" क्यों होता है ? श्री राम की पूजा क्यों नही?"

प्रश्न पर सन्नाटा छा गया, क्यों कि उस समय कोई सोशियल मीडिया तो था नहीं, स्मार्ट फोन भी नहीं थे! किसी को कुछ नहीं पता! तब, सन्नाटा चीरते हुए, हममें से ही एक हाथ, प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा!

हमने बताया कि "दीपावली उत्सव दो युग "सतयुग" और "त्रेता युग" से जुड़ा हुआ है!"

"सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी! इसलिए "लक्ष्मी पूजन" होता है!

भगवान श्री राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे! तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था! इसलिए इसका नाम दीपावली है!

इसलिए इस पर्व के दो नाम हैं, "लक्ष्मी पूजन" जो सतयुग से जुड़ा है, और दूजा "दीपावली" जो त्रेता युग, प्रभु श्री राम और दीपो से जुड़ा है!*

*हमारे उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा, क्यों कि किसी को भी उत्तर नहीं पता था! यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नहीं!* 

*खैर कुछ देर बीद। सभीने खूब तालियां बजाई!*

*उसके बाद, एक  समाचारपत्र ने हमारा साक्षात्कार (इंटरव्यू) भी किया!* 

*उस समय समाचारपत्र का साक्षात्कार करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी!*

*बाद में पता चला, कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार "लिबरर्ल्स" (वामपंथियों) की थी, जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मस्तिष्क में यह बात डाल रही थी, कि "लक्ष्मी पूजन" का औचित्य क्या है, जब दीपावली श्री राम से जुड़ी है?" कुल मिलाकर वह छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी!* 

*लेकिन हमारे उत्तर के बाद, वह टोली गायब हो गई!*

*एक और प्रश्न भी था, कि लक्ष्मी और। श्री गणेश का आपस में क्या रिश्ता है?*

*और दीपावली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?* 

*सही उत्तर है :*

*लक्ष्मी जी जब सागर मन्थन में मिलीं, और भगवान विष्णु से विवाह किया, तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया! तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया!*

*कुबेर कुछ कंजूस वृति के थे! वे धन बाँटते नहीं थे, सवयं धन के भंडारी बन कर बैठ गए!*

*माता लक्ष्मी परेशान हो गई! उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी!*

*उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई! भगवान विष्णु ने उन्हें कहा, कि "तुम मैनेजर बदल लो!"*

*माँ लक्ष्मी बोली, "यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं! उन्हें बुरा लगेगा!"*

*तब भगवान विष्णु ने उन्हें श्री गणेश जी की दीर्घ और विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी!* 

*माँ लक्ष्मी ने श्री गणेश जी को "धन का डिस्ट्रीब्यूटर" बनने को कहा!*

*श्री गणेश जी ठहरे महा बुद्धिमान! वे बोले, "माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना! कोई किंतु, परन्तु नहीं! माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी!*

*अब श्री गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे!*

*कुबेर भंडारी ही बनकर रह गए! श्री गणेश जी पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए!*
 
*गणेश जी की दरियादिली देख, माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्री गणेश को आशीर्वाद दिया, कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें!*

*दीपावली आती है कार्तिक अमावस्या को! भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं! वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद, देव उठावनी एकादशी को!*

*माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में, तो वे सँग ले आती हैं श्री गणेश जी को! इसलिए दीपावली को लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है!*
🙏🌹🙏
(यह कैसी विडंबना है, कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नहीं है? औऱ जो वर्णन है, वह अधूरा है!)

*इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों, अपनी अगली पीढी को बतायें और दूसरों के साथ साझा करना ना भूलें !

चारणों का उद्भवन कैसे और कब हुआ,

 चारण एक जाति है को सिंध, राजस्थान और गुजरात में निवास करती है।







राजस्थान की एक जाति-विशेष, जिस के महापुरुषो ने अनेक रजवाडो के राजदरबारों में अपने ओजपूर्ण काव्य के द्वारा राज्य की रक्षा के लिए राजा और सेना की भुजाओं में फौलाद भरने का काम किया करते थे,और खुद युद्वभुमी मे विरता दीखा कर नीडर होकर क्षत्रियधर्म नीभाते थे । युद्ध-विषयक काव्य-लेखन,कवित्व शक्ति,और युद्धभुमी मे विरता दीखाने से बहोत से रजवाडो मे ईन्हे बडी बडी जागीरे और दरबार मे सन्मानीय स्थान प्राप्त हुआ। ये अर्वाचीन काल से युद्ध आदी वीषयो मे नीपुण रहे है,अपीतु चारण क्षत्रिय वर्णस्थ माने जाते है।ईन्हे जागीरदार और ठाकुर कहा जाता है।



चारणों का उद्भवन कैसे और कब हुआ, वे इस देश में कैसे फैले और उनका मूल रूप क्या था, आदि प्रश्नों के संबंध में प्रामाणिक सामग्री का अभाव है परंतु जो कुछ भी सामग्री है, उसके अनुसार विचार करने पर उस संबंध में अनेक तथ्य उपलब्ध होते हैं।



चारणों की उत्पत्ति दैवी कही गई है। ये पहले मृत्युलोक के पुरुष न होकर स्वर्ग के देवताओं में से थे (श्रीमद्भावद्गीता 3। 10। 27-28)। सृष्टिनिर्माण के विभिन्न सृजनों से चारण भी एक उत्पाद्य तत्व रहे हैं। भागवत के टीकाकार श्रीधर ने इनका विभाजन विबुधा, पितृ, असुर, गंधर्व, भूत-प्रेत-पिशाच, सिद्धचारण, विद्याधर और किंनर किंपुरुष आदि आठ सृष्टियां के अंतर्गत किया है। ब्रह्मा ने चारणों का कार्य देवताओं की स्तुति करना निर्धारित किया। मत्स्य पुराण (249.35) में चारणों का उल्लेख स्तुतिवाचकों के रूप में है। चारणों ने सुमेर छोड़कर आर्यावर्त के हिमालय प्रदेश को अपना तपक्षेत्र बनाया, इस प्रसंग में उनकी भेंट अनेक देवताओं और महापुरुषां से हुई। इसके कई प्रसंग प्राप्त होते हैं। वाल्मीकि रामायण- (बाल. 17.9, 75.18 अरण्य. 54.10 सुंदर. 55.29 उत्तर. 4.4) महाभारत - (आदि. 1202.1, 126.111 वन 82.5 उद्योग. 123.4.5 भीष्म. 20। 16 द्रोण. 124.10 शांति. 192.7-8) तथा ब्रह्मपुराण-(36.66) में तपस्वी चारणों के प्रसंग मिल जाते हैं। ब्रह्मपुराण का प्रसंग तो स्पष्ट करता है कि चारणों को भूमि पर बसानेवाले महाराज पृथु थे। उन्होंने चारणों को तैलंग देश का शासक बनाया और ईन्होने तैलंग देश पर राज कीया। यहीं से चारण सब जगह फैले। महाभारत के बाद भारत में कई स्थानों पर चारण वंश नष्ट हो गया। केवल राजस्थान, गुजरात, कच्छ तथा मालवे में बच रहे। इस प्रकार महाराज पृथु ने देवता चारणों को मानुष चारण बना दिया। यही नहीं जैन धर्म सूत्रग्रंथ (महावीर स्वामी कृत पन्नवणा सूत्र) में मनुष्य चारण का प्रसंग मिलता है।



चारणों का निवास क्षेत्र एवं सामाजिकता

इन प्रसंगों द्वारा चारणों की प्राचीनता उनका कार्य तथा उनका सम्मान और पवित्र कर्तव्य स्पष्ट होता है। कर्नल टाड ने लिखा है : इन क्षेत्रों में चारण मान्य जाति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 1901 के जनगणना विवरण में कैप्टन बेनरमेन ने चारणों के लिये लिखा है:

चारण पवित्र और बहुत पुरानी जाति मानी जाती है। इसका वर्णन रामायण और महाभारत में है। ये और राजपूत एक शरीर के दो अंग हैं। ये अपनी उत्पत्ति देवताओं से होने का दावा करते हैं। राजपूत इनसे सदैव सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हैं। ये बड़े विश्वासपात्र समझे जाते हैं। इनका दर्जा ऊँचा है। ये अक्सर बारहट के नाम से पुकारे जाते हैं।

मारवाड़ में रहनेवाले चारण मारू तथा कच्छ के काछेला कहलाते हैं। उपर्युक्त उद्धरणों के अनुसार चारण जाति देवता जाति थी, पवित्र थी, जिसको सुमेर से हिमालय पर और हिमालय से भारत में लाने का श्रेय महाराज पृथु को है। यहीं से ये सब राजाओं के यहाँ फैल गए। चारण भारत में पृथु के समय से ही प्रतिष्ठित रहे हैं। ईस बात के प्रमाण हमे वेद और पुराणो मे देखने को मीलते है।

#चारण #जाति का #इतिहास #charan #jati ka #itihas #gadhvi #deviputra #karni #mata


सोमवार, 28 अगस्त 2023

अपने घर की पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ।


जामुन की लकड़ी 

अपने घर की पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ।
आपको जामुन की लकड़ी को घर लाना है अच्छी तरह साफ सफाई कर कर पानी की टंकी में डाल देना है। इसके बाद आपको फिर पानी की टंकी की साफ सफाई की जरूरत नहीं पड़ेगी।

*नाव की तली में जामुन की लकड़ी क्यों लगाते हैं, जबकि वह तो बहुत कमजोर होती है:-*

भारत की विभिन्न नदियों में चलने वाली नाव की तली में जामुन की लकड़ी लगाई जाती है।
जो जामुन पेट के रोगियों के लिए एक घरेलू आयुर्वेदिक औषधि है, जिसकी लकड़ी से दांतो को कीटाणु रहित और मजबूत बनाने वाली दातुन बनती है, उसी जामुन की लकड़ी को नाव की निचली सतह पर लगाया जाता है। वह भी तब जबकि जामुन की लकड़ी बहुत कमजोर होती है। मोटी से मोटी लकड़ी को हाथ से तोड़ा जा सकता है।
*नदियों का पानी पीने योग्य कैसे बना रहता है:-*
बहुत कम लोग जानते हैं कि जामुन की लकड़ी एक चमत्कारी लकड़ी है। यह पानी के अंदर रहते हुए सड़कर खराब नहीं होती बल्कि इसमें एक चमत्कारी गुण होता है। यदि इसे पानी में डूबा दिया जाए तो यह पानी का शुद्धिकरण करती है और पानी में कचरा जमा होने से रोकती है।
कितना आश्चर्यजनक है कि हम जिन पूर्वजों को अनपढ़ मानते हैं उन्होंने नदियों को स्वच्छ बनाए रखने और नाव को मजबूत बनाए रखने का कितना असरकारी समाधान निकाला।

*बावड़ी की तलहटी में 700 साल बाद भी जामुन की लकड़ी खराब नहीं हुई:-*
जामुन की लकड़ी के चमत्कारी परिणामों का प्रमाण हाल ही में मिला है। *देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन की बावड़ी की जब सफाई की गई तो उसकी तलहटी में जामुन की लकड़ी का एक स्ट्रक्चर मिला है। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख श्री केएन श्रीवास्तव ने बताया कि जामुन की लकड़ी के स्ट्रक्चर के ऊपर पूरी बावड़ी बनाई गई थी। शायद इसीलिए 700 साल बाद तक इस बावड़ी का पानी मीठा है और किसी भी प्रकार के कचरे और गंदगी के कारण बावड़ी के वाटर सोर्स बंद नहीं हुए। जबकि 700 साल तक इसकी किसी ने सफाई नहीं की थी।*

*आपके घर में जामुन की लकड़ी का उपयोग:-*
यदि आप अपनी छत पर पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी डाल देते हैं तो आप के पानी में कभी काई नहीं जमेगी।
700 साल तक पानी का शुद्धिकरण होता रहेगा। आपके पानी में एक्स्ट्रा मिनरल्स मिलेंगे और उसका टीडीएस बैलेंस रहेगा।
यानी कि जामुन हमारे खून को साफ करने के साथ-साथ नदी के पानी को भी साफ करता है और प्रकृति को भी साफ रखता है।
*कृपया हमेशा याद रखिएगा कि दुनियाभर के तमाम राजे रजवाड़े और वर्तमान में अरबपति रईस जो अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंता करते हैं, जामुन की लकड़ी के बने गिलास में पानी पीते हैं।*

😀☘️☘️😀

ये आंवले का वृत्ताकार छल्ला हमारे प्राचीन पूर्वजों द्वारा सौंपी गई समृद्ध विरासत का हिस्सा है। आंवले से बने अंगूठी के आकार के इस को जो आंवले की लकड़ी से बनी होती है को कुएं के सबसे निचले हिस्से में 2 या 4 डुबाते हैं...

क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार आंवले की लकड़ी उत्कृष्ट जल शोधक है। ये कुएं के पानी को मीठा भी बनाता है। अब कुएं विलुप्त हो रहे हैं तो शायद यह विधा भी खत्म हो जाए। पर आवले की लकड़ी के इन गुणों को ग्रहण करना या समझना आवश्यक है प्रकृति के प्राकृतिक रूप को अंगीकार करने के लिए....

हमारा भारत सबसे प्यारा भारत । जय हिंद 🚩

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