पालक मानव के लिए बेहद उपयोगी है। पालक को आमतौर पर केवल हिमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए गुणकारी सब्जी माना जाता है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि पालक में इसके अलावा और भी कई गुण है जिनसे
सामान्य लोग अनजान है। तो आइए हम आपको पालक के कुछ ऐसे ही अद्भूत गुणों से
अवगत करवाते हैं उसके पश्चात आप जान सकेंगे कि आप पालक क्यों खायें ?
पालक में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व- 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन
2 % ,कार्बोहाइड्रेट 2.9 %, नमी 92 % वसा 0.7 %, रेशा 0.6 % ,खनिज लवन 0.7
% और रेशा 0.6 % होता हैं। पालक में विभिन्न खनिज लवण जैसे कैल्सियम,
मैग्नीशियम ,लौह, तथा विटामिन ए, बी, सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाते
हैं।
इसके अतिरिक्त यह रेशेयुक्त, जस्तायुक्त होता है।
इन्हीं गुणों के कारण इसे जीवन रक्षक भोजन भी कहा जाता हैं।
पालक में पाये जाने वाले गुण- पालक खाने से हिमोग्लोबिन बढ़ता है। खून की
कमी से पीड़ित व्यक्तियों को पालक खाने से काफी फायदा पहुंचता है।
गर्भवती स्त्रियों में फोलिक अम्ल की कमी को दूर करने के लिए पालक का सेवन लाभदायक होता है।
पालक में पाया जाने वाला कैल्शियम बढ़ते बच्चों, बूढ़े व्यक्तियों और
गर्भवती स्त्रियों व स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए वह बहुत फायदेमंद
है।
इसके नियमित सेवन से याददाश्त भी मजबूत होती है। शरीर बनाएं
मजबूत- पालक में मौजूद फ्लेवोनोइड्स एंटीआक्सीडेंट का काम करता हैं जो रोग
प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने के अलावा हृदय संबंधी बीमारियों से लड़ने
में भी मददगार होता है।
सलाद में इसके सेवन से पाचनतंत्र मजबूत होता है। इसमें पाया जाने वाला बीटा कैरोटिन और विटामिन सी क्षय होने से बचाता है।
ये शरीर के जोड़ों में होने वाली बीमारी जैसे आर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस की भी संभावना को घटाता है।
आंखों के लिये लाभकारी- पालक आंखो के लिए काफी अच्छी होती है। यह त्वचा को रूखे होने से बचाता है।
बाल गिरने से रोकने के लिए रोज पालक खाना चाहिए। पालक के पेस्ट को चेहरे पर लगाने से चेहरे से झाइयां दूर हो जाती है।
पालक कब न खायें? पालक वायुकारक होती है अतः वर्षा ऋतु में इसका सेवन न करें
पारिजात नाम के वृक्ष को छूने से मिटती है थकान,और मन्नत मांगने से होती है पूरी
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क्या कोई ऐसा भी वृक्ष है,जिसं छूने मात्र से मनुष्य की थकान मिट जाती है।
हरिवंश पुराण में ऐसे ही एक वृक्ष का उल्लेख मिलता है,जिसको छूने से देव
नर्तकी उर्वषी की थकान मिट जाती थी। पारिजात नाम के इस वृक्ष के फूलो को
देव मुनि नारद ने श्री कृश्ण की पत्नी सत्यभामा को दिया था। इन अदभूत फूलों
को पाकर सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण से जिद कर बैठी कि परिजात वृक्ष को
स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए। पारिजात वृक्ष के बारे में
श्रीमदभगवत गीता में भी उल्लेख मिलता है। श्रीमदभगवत गीता जिसमें 12
स्कन्ध,350 अध्याय व18000 ष्लोक है ,के दशम स्कन्ध के 59वें अध्याय के 39
वें श्लोक , चोदितो भर्गयोत्पाटय पारिजातं गरूत्मति। आरोप्य सेन्द्रान
विबुधान निर्जत्योपानयत पुरम॥ में पारिजात वृक्ष का उल्लेख पारिजातहरण
नरकवधों नामक अध्याय में की गई है।
सत्यभामा की जिद पूरी करने के
लिए जब श्री कृष्ण ने परिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक
भेजा तो इन्द्र ने श्री कृष्ण के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पारिजात देने
से मना कर दिया। जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने गरूड पर सवार होकर स्वर्ग लोक
पर आक्रमण कर दिया और परिजात प्राप्त कर लिया। श्री कृष्ण ने यह पारिजात
लाकर सत्यभामा की वाटिका में रोपित कर दिया। जैसा कि श्रीमदभगवत गीता के
श्लोक, स्थापित सत्यभामाया गृह उधान उपषोभन । अन्वगु•र्ा्रमरा स्वर्गात तद
गन्धासलम्पटा, से भी स्पष्ट है। भगवान श्री कृष्ण ने पारिजात को लगाया तो
था सत्यभामा की वाटिका में परन्तु उसके फूल उनकी दूसरी पत्नी रूकमणी की
वाटिका में गिरते थे। लेकिन श्री कृष्ण के हमले व पारिजात छीन लेने से
रूष्ट हुए इन्द्र ने श्री कृश्ण व पारिजात दोनों को शाप दे दिया था ।
उन्होन् श्री क्रष्ण को शाप दिया कि इस कृत्य के कारण श्री कृष्ण को
पुर्नजन्म यानि भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाएगा। जबकि पारिजात
को कभी न फल आने का शाप दिया गया। तभी से कहा जाता है कि पारिजात हमेशा के
लिए अपने फल से वंचित हो गया। एक मान्यता यह भी है कि पारिजात नाम की एक
राजकुमारी हुआ करती थी ,जिसे भगवान सूर्य से प्यार हो गया था, लेकिन अथक
प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्यार कों स्वीकार नहीं किया,
जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्म हत्या कर ली थी। जिस स्थान पर
पारिजात की कब्र बनी वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण
पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है जैसे वह रो रहा हो, लेकिन
सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियां और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने
को आतुर दिखाई पडते है। ज्योतिश विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व
बताया गया है।
धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने में पारिजात वृक्ष
का उपयोग किया जाता है। यदि ,ओम नमो मणि़•ाद्राय आयुध धराय मम
लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम, मन्त्र का
जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाए और पूजा के
इस नारियल व फूलो को लाल कपडे में लपेटकर घर के पूजा धर में स्थापित किया
जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती है। यह पूजा
साल के पांच मुहर्त होली,दीवाली,ग्रहण,रवि पुष्प तथा गुरू पुष्प नक्षत्र
में की जाए तो उत्तम है। यहां यह भी बता दे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल
उपयोग में लाए जाते है,जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते है। यानि वृक्ष से फूल
तोड़ने की पूरी तरह मनाही है।
परिजात वृक्ष की प्रजाति भारत में
नहीं पाई जाती, लेकिन भारत में एक मात्र पारिजात वृक्ष आज भी उ.प्र. के
बाराबंकी जनपद अंतर्गत रामनगर क्ष्ोत्र के गांव बोरोलिया में मौजूद है।
लगभग 50 फीट तने व 45 फीट उंचाई के इस वृक्ष की ज्यादातर शाखाएं भूमि की ओर
मुड़ जाती है और धरती को छुते ही सूख जाती है।
एक साल में सिर्फ
एक बार जून माह में सफेद व पीले रंग के फूलो से सुसज्जित होने वाला यह
वृक्ष न सिर्फ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर लगता है। आयु
की दृष्टि से एक हजार से पांच हजार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को
वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं। जिसकी दुनियाभर में सिर्फ 5
प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें से एक डिजाहाट है। पारिजात वृक्ष इसी
डिजाहाट प्रजाति का है। एक मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति
समुन्द्र मंथन से हुई थी । जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था।
कहा जाता है जब पांडव पुत्र माता कुन्ती के साथ अज्ञातवास पर थे तब उन्होने
ही सत्यभामा की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गांव में रोपित कर
दिया होगा। तभी से परिजात गांव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है। देशभर से
श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के लिए और मनौती मांगने के लिए परिजात वृक्ष की
पूजा अर्चना करते है। पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। पारिजात
बावासीर रोग निदान के लिए रामबाण औषधी है। पारिजात के एक बीज का सेवन
प्रतिदिन किया जाये तो बावासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का
पेस्ट बनाकर गुदा पर लगाने से बावासीर के रोगी को बडी राहत मिलती है।
पारिजात के फूल हदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह
पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलो के रस का सेवन किया जाए
तो हदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस
कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सुखी खासी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात
की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते है।
पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर
इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को अगर 5 काली मिर्च के साथ
महिलाएं सेवन करे तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात
के बीज जंहा हेयर टानिक का काम करते है तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक
बुखार को ठीक कर देता है। इस दृश्टि से पारिजात अपनेआपमें एक संपूर्ण औषधी
भी है।
इस वृक्ष के ऐतिहासिक महत्व व दुर्लभता को देखते हुए जंहा
परिजात वृक्ष को सरकार ने संरक्षित वृक्ष घोषित किया हुआ है। वहीं देहरादून
के राष्ट्रीय वन अनुसंधान संस्थान की पहल पर पारिजात वृक्ष के आस पास
छायादार वृक्षों को हटवाकर पारिजात वृक्ष की सुरक्षा की गई। इस वृक्ष की एक
विषेशता यह भी है कि इस वृक्ष की कलम नहीं लगती ,इसी कारण यह वृक्ष दुर्लभ
वृक्ष की श्रेणी में आता है। भारत सरकार ने पारिजात वृक्ष पर डाक टिकट भी
जारी किया। ताकि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पारिजात वृक्ष की पहचान बन सके।
सायटिका में लाभदायक पारिजात
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हरसिंगार जिसे पारिजात भी कहते हैं, एक सुन्दर वृक्ष होता है, जिस पर
सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के
रूप में किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है।
परिचय : यह
10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है और देशभर में
खास तौर पर बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय
की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित और
सुन्दर होते हैं जो रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पारिजात, शेफालिका। हिन्दी- हरसिंगार,
परजा, पारिजात। मराठी- पारिजातक। गुजराती- हरशणगार। बंगाली- शेफालिका,
शिउली। तेलुगू- पारिजातमु, पगडमल्लै। तमिल- पवलमल्लिकै, मज्जपु। मलयालम -
पारिजातकोय, पविझमल्लि। कन्नड़- पारिजात। उर्दू- गुलजाफरी। इंग्लिश- नाइट
जेस्मिन। लैटिन- निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस।
गुण : यह हलका,
रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक,
उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण
है।
रासायनिक संघटन : इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन
पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1%
होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से
12-16% पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड,
मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1%), मैनिटाल (1.3%), एक राल (1.2%), कुछ
उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो
क्षाराभ होते हैं।
उपयोग : इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से
उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग
को दूर करने में किया जाता है।
गृध्रसी (सायटिका) : हरसिंगार के
ढाई सौ ग्राम पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी लगभग 700
मिली बचे तब उतारकर ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर
घोंटकर इस पानी में घोल दें। इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज
सुबह-शाम एक कप मात्रा में इसे पिएँ।
ऐसी चार बोतलें पीने तक
सायटिका रोग जड़ से चला जाता है। किसी-किसी को जल्दी फायदा होता है फिर भी
पूरी तरह चार बोतल पी लेना अच्छा होता है। इस प्रयोग में एक बात का खयाल
रखें कि वसन्त ऋतु में ये पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः यह प्रयोग वसन्त ऋतु
में लाभ नहीं करता।
अपामार्ग (अघाडा)----
बचपन में गौरी गणपति की पूजा के समय अक्सर माँ इसके पत्ते लाने भेजती थी
और हम इसे ढूंढ नहीं पाते थे , पर अब इसके गुण जान लिए तो इसे बागीचों में
बारिश के बाद उगता देख कर पहचान गए .
अपां दोषान् मार्जयति संशोधयति इति अपामार्गः । अर्थात् जो दोषों का संशोधन करे, उसे अपामार्ग कहते हैं ।
गणेश पूजा , हरतालिका पूजा , मंगला गौरी पूजा आदि में पत्र पूजा में अपामार्ग के पत्ते और कई तरह के पत्ते
इसलिए इस्तेमाल होते है ताकि हम इन आयुर्वेदिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़
पौधों की पहचान भूले नहीं और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग कर सके .वर्षा के
साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प
फलों से शोभित होती है । ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में परिपक्व होकर फलों के
साथ ही क्षुप भी शुष्क हो जाता है । इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा
बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं ।
शरद ऋतु के अंत
में पंचांग का संग्रह करके छाया में सुखाकर बन्द पात्रों में रखते हैं ।
बीज तथा मूल के पौधे के सूखने पर संग्रहीत करते हैं । इन्हें एक वर्ष तक
प्रयुक्त किया जा सकता है ।
इसे अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा भी कहा जाता है .
- इसकी दातून करने से दांत १०० वर्ष तक मज़बूत रहते है . इसके पत्ते चबाने
से दांत दर्द में राहत मिलती है और कैविटी भी धीरे धीरे भर जाती है .
- इसके बीजों का चूर्ण सूंघने से आधा सीसी में लाभ होता है . इससे
मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है और वहां के कीड़े भी झड जाते है .
- इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है .
- इसकी जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है . प्रसव के बाद इसे हटा देना चाहिए .
- ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है .
- गर्भ धारण के लिए इसकी १० ग्राम पत्तियाँ या जड़ को गाय के दूध के साथ ४
दिन सुबह ,दोपहर और शाम में ले . यह प्रयोग अधिकतर तीन बार करे .
- इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है .
- अपामार्ग क्षार या इसकी जड़ श्वास में बहुत लाभ दायक है .
- इसकी जड़ के रस को तेल में पका ले . यह तेल कान के रोग जैसे बहरापन , पानी आना आदि के लिए लाभकारी है .
- इसकी जड़ का रस आँखों के रोग जैसे फूली , लालिमा , जलन आदि लिए अच्छा होता है .
- इसके बीज चावल की तरह दीखते है , इन्हें तंडुल कहते है . यदि स्वस्थ
व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है . पर इसकी
खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर
पाते .
- जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे
स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की
मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द
में आराम मिलता है। इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर
पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी
हो तो शीघ्र ही उतर जाती है.
रोजाना तुलसी के 5 पत्ते खाने के अनोखे फायदे :--
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बारिश के मौसम में रोजाना तुलसी के 5 पत्ते खाने के
अनोखे फायदे
तुलसी एक ऐसा पौधा है जो कई तरह के अद्भुत औषधिय गुणों से भरपूर है।
हिन्दू धर्म में तुलसी को इसके अनगिनत औषधीय गुणों के कारण पूज्य माना गया
है।
यही कारण है कि हिन्दू धर्म में तुलसी से जुड़ी अनेक धार्मिक
मान्यताएं है और हिन्दू धर्म में तुलसी को घर में लगाना अनिवार्य माना गया
है। आज हम बात कर रहे हैं
तुलसी के कुछ ऐसे ही गुणों के बारे में.... -
मासिक धर्म के दौरान कमर में दर्द हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
इसके अलावा तुलसी के पत्ते चबाने से भी मासिक धर्म नियमित रहता है।
- बारिश के मौसम में रोजाना तुलसी के पांच पत्ते खाने से
मौसमी बुखार व जुकाम जैसी समस्याएं दूर रहती है।
तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण
दूर हो जाता है। मुंह के छाले दूर होते हैं व दांत भी स्वस्थ रहते हैं।
- सुबह पानी के साथ तुलसी की पत्तियां निगलने से
कई प्रकार की बीमारियां व संक्रामक रोग नहीं होते हैं।
दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में
रोजाना तुलसी खाने व तुलसी के अर्क को प्रभावित
जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
- तुलसी की जड़ का काढ़ा ज्वर (बुखार) नाशक होता है।
तुलसी, अदरक और मुलैठी को घोटकर शहद के साथ लेने
से सर्दी के बुखार में आराम होता है।