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शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

गुजरात में विदेशी फंडिंग से ऐसे हो रहा है इस्लामिक धर्मान्तरण, जरूर जानें


🚩 *गुजरात में विदेशी फंडिंग से ऐसे हो रहा है इस्लामिक धर्मान्तरण, जरूर जानें*
20 जनवरी 2022
azaadbharat.org

🚩 *गुजरात के भरूच जिले का आमोद तालुका, दांडी मार्ग... जब आप राष्ट्रीय राजमार्ग से आमोद तालुका की ओर दाएँ मुड़ते हैं, जिसकी आबादी लगभग 1 लाख (2011 में) है, तो आपका स्वागत विशाल मस्जिदों के साथ किया जाता है, जो सुन्दर नक्कासी वाली पत्थरों से निर्मित हैं। यहाँ तक ​​कि शहरों में भी इतनी बड़ी मस्जिदें नहीं हैं, जितनी कि लगभग 32% मुसलमानों की आबादी वाले इस छोटे से शहर में हैं। आमोद तालुका जैसी छोटी सी जगह में ढेर सारे मस्जिद हैं।*

🚩 *दमोह के एक गाँव में जहाँ पिछले कुछ वर्षों में वसावा समुदाय के आदिवासियों का बड़े पैमाने पर इस्लाम में धर्मांतरण हुआ था।*

*गाँव के कुछ लोगों से बात की, जिन्हें पैसे, भोजन और नौकरी की पेशकश के वादे पर इस्लाम कबूल करने का लालच दिया गया था। वे खुल गए कि उन्हें कैसे फुसलाया गया और आखिरकार उन्हें क्या बोलने के लिए मजबूर किया गया और इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। चूँकि उनकी जान को खतरा है और उनमें से कुछ पर हमले हुए हैं।*

🚩 *प्रकाश (बदला हुआ नाम) ने 2018 में इस्लाम धर्म अपना लिया और सलमान पटेल बन गए। नवंबर 2021 में उसने 9 लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। आमोद पुलिस ने 15 नवंबर 2021 को गुजरात फ्रीडम फॉर रिलिजन बिल के तहत मामला दर्ज किया था। शिकायत के बाद आरोपित अब्दुल अजीज पटेल (अजीतभाई छगन वसावा), यूसुफ जीवन पटेल (महेंद्र जीवन वसावा), अयूब बरकत पटेल (रमन बरकत वसावा), इब्राहिम पुनाभाई पटेल (जितुभाई पुनाभाई वसावा) जो आमोद तालुका के काकरिया गाँव के ही निवासी हैं उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।*

*16 दिसंबर को भरूच पुलिस ने मामले में छह और आरोपितों को गिरफ्तार किया था। पाटन से याकूब इब्राहिम शंकर, पालेज से रिजवान महबूब पटेल, ठाकोरभाई गिरधरभाई वसावा, आमोद से साजिद मोहम्मद पटेल और यूसुफ पटेल जबकि जंबूसर से अयूब बशीर पटेल को गिरफ्तार किया गया।*

🚩 *कैसे गरीब आदिवासियों को इस्लाम कबूल करने का लालच दिया गया?*

*जब आप कांकरिया गाँव में प्रवेश करते हैं, तो आप देख सकते हैं कि गाँव में केवल एक ही घर है जो गाँव के सरपंच का ‘पक्का घर’ है। प्रकाश ने हमें बताया, “हम यहाँ बहुत गरीब लोग हैं। हम यहाँ के खेतों में काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर पर मुस्लिम जमींदारों का कब्ज़ा है। हमारे लिए 500 रुपए भी बड़ी बात है।”*
*मूल प्राथमिकी में नामजद आरोपितों में से एक ठाकोरभाई गिरधरभाई वसावा दुकान के मालिकों में से एक थे। प्राथमिकी में नामजद आरोपित शब्बीर और समाज बेकरीवाला भी उसके आपूर्तिकर्ता थे। प्रकाश ने कहा कि उन्होंने 2008-09 में वसावा को पहली बार इस्लाम कबूल करने का लालच दिया। इसके बाद, उसने अजीत छगन वसावा (जिसे प्राथमिकी में एक आरोपित के रूप में भी नामित किया गया) को अपने झाँसे में लिया और कुछ महीने बाद उसे इस्लाम में परिवर्तित कर दिया। उनके बाद गाँव के करीब 5-6 लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया।*
*2009 में गाँव से इस्लाम धर्म अपनाने वाला सातवाँ व्यक्ति वह था जो गाँव के मंदिर में भजन और आरती करता था। तभी ग्रामीणों ने विरोध किया। ग्रामीणों ने ठाकोर और अन्य लोगों को या तो हिंदू धर्म में लौटने या गाँव छोड़ने के लिए कहा। इसके बाद सभी 7 लोग गाँव छोड़कर चले गए। यद्यपि ठाकोर ने अपने भले के लिए गाँव छोड़ दिया, बाकी शेष छह गाँव लौट आए और 2009-10 में किसी समय हिंदू धर्म में वापस लौटने का फैसला किया।*
*सिवाय, अजीत वसावा के जो हिंदू धर्म में वापस आ गए थे, अब लोगों को फिर से इस्लाम में परिवर्तित करना शुरू कर दिया है। 2010 से 2018 के बीच 37 आदिवासी परिवारों को इस्लाम में परिवर्तित किया गया और यह सिलसिला 2021 तक एफआईआर दर्ज होने तक चलता रहा। उन्होंने हमें आगे बताया, “जिस गाँव में हम झोपड़ी में रहते हैं और घर जैसी स्थायी संरचना नहीं है, अजीत के घर को इबादत घर में बदल दिया गया था। इसे 16 लाख रुपए की लागत से बनाया गया है। उन्होंने कहा कि इबादत घर का इस्तेमाल नमाज अदा करने और इस्लाम का प्रचार करने के लिए किया जाता था। एक मौलाना, जो मदरसा भी चलाता था, अछोद (पास के एक गाँव) से यहाँ तकरीर देने आता था।”*

🚩 *पैसा, हिंदू देवी-देवताओं का अपमान और ब्रेनवॉश : कैसे आदिवासियों को इस्लाम में परिवर्तित किया गया*

*प्रकाश ने कहा, “यह एक रैकेट था जिसे वे चला रहे थे। वे यह दावा करके विदेश से धन की उगाही करते थे कि वे हमें दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने हमें पैसे देने का वादा किया था यदि हम इस्लाम में परिवर्तित हो जाते हैं। लेकिन अगर वे प्रति व्यक्ति 1 लाख रुपए माँगते हैं, तो वे हमें केवल 500 रुपए से 2,000 रुपए का भुगतान करेंगे। करोड़ों हमारे नाम आए लेकिन वे हम तक कभी नहीं पहुँचे।” उन्होंने आगे कहा कि अजीत दावा करेगा कि पूरा गाँव इस्लाम में परिवर्तित हो गया है और उनके नाम पर पैसे माँगेगा।*
*जब उनसे पूछा गया कि इस्लाम में धर्मांतरण पर उन्हें क्या सिखाया गया, तो प्रकाश ने कहा कि उन्हें नमाज़ पढ़ना सिखाया गया था। साथ ही प्रकाश ने यह भी कहा, “हमें बताया गया कि हिंदू धर्म जैसा कुछ नहीं है। हिंदू कोई धर्म नहीं है क्योंकि हर कोई अलग-अलग देवताओं की पूजा करता है। इतने सारे देवता कैसे हो सकते हैं?”*
*उन्होंने आगे बताया कि वे नियमित रूप से हिंदू देवी-देवताओं को बदनाम करते थे और उनके लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते थे ताकि यह साबित हो सके कि हिंदू धर्म बुरा है और इस्लाम एक सच्चा और शुद्ध धर्म है। प्रकाश ने कहा, “हमें पार्वती और गणेश की कहानी के बारे में बताया गया। कैसे एक बार देवी पार्वती स्नान कर रही थीं और गणेश जी पहरेदारी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेश जी का सिर काट दिया।” वे पूछते, “यह कैसा पिता जो अपने ही बेटे को नहीं पहचानता?" उन्होंने आगे बताया, “गणेश जी के सिर के लिए एक निर्दोष हाथी को मारना क्रूर हरकत थी। अगर भगवान शिव असली देवता होते, तो वह अपने बेटे को जीवित कर देते।”*
*उन्होंने आगे कहा कि कैसे भगवान राम को बदनाम करने के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। हमसे बात करते हुए प्रकाश ने कहा, “उन्होंने हमें बताया कि भगवान राम की पूजा करना अच्छा नहीं है। भगवान राम भगवान नहीं थे, वह एक राजा थे, एक इंसान थे और फिर हम दूसरे इंसान की पूजा क्यों करें? हमें यह भी बताया गया कि कैसे देवताओं को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में अक्सर मक्खियाँ होती हैं। यदि आपके (हिंदू) भगवान इतने शक्तिशाली थे, तो क्या वे मक्खियों को भोजन पर रहने देंगे? अगर वह भगवान मक्खियों को प्रसाद से दूर नहीं भगा सकता, तो वह आपकी रक्षा कैसे करेगा?”*
*साथ ही उसने हमें यह भी कहा, “हमें बताया गया कि गोधरा कांड में, (पीएम) मोदी और (एचएम) शाह ने वास्तव में ट्रेन के अंदर मुसलमानों को जिंदा जला दिया और फिर दावा किया कि हिंदू मारे गए थे। उन्होंने हमें बताया कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थल पर कोई मंदिर नहीं था और यह हमेशा एक मस्जिद रहेगा।”*
*प्रकाश ने यह भी कहा कि उन्हें बताया गया था कि कैसे महिलाओं को परदा में रखा जाना चाहिए और उन्हें बिना बुर्के के बाहर नहीं जाने देना चाहिए। एक चौकाने वाला खुलासा करते हुए प्रकाश ने कहा, “वे हमें जिहादी हमलों के लिए भी प्रशिक्षित करना चाहते थे। उन्होंने हमें आत्मघाती हमलों के लिए प्रेरित किया और हमें बताया कि दीन (धर्म / आस्था) के लिए मरने से हमें जन्नत मिलेगी। हमें बताया गया कि मूर्ति पूजा करने वाले काफिरों (गैर-मुसलमानों) को मारना कोई अपराध नहीं है। ये कट्टरपंथी बातें हमारे मुसलमान होने के कुछ सालों बाद बताई गईं।”*

🚩 *जबरन धर्म परिवर्तन के लिए फंडिंग*

*“आपका पैगाम लंदन पहुँचा दिया है, अच्छा काम हो रहा है (आपका संदेश लंदन को दिया गया है। आप लोग अच्छा काम कर रहे हैं),” धर्मांतरण रैकेट के मुख्य आरोपितों में से एक, हाजी अब्दुल्ला फेफड़ावाला को यह कहते हुए सुना जा सकता है इस वीडियो में जो कुछ समय पहले वायरल हुआ था।*

*🚩वीडियो में फेफड़ावाला कहता है कि वह लंदन से है।उसने आगे कहा, “मुझे आप लोगों के बारे में पता चला कि आपने इस्लाम कबूल कर लिया है। मैं आपसे विशेष रूप से मिलने आया हूँ। मैं लंदन में आपके संदेश को पहुँचाऊँगा कि अल्लाह ने आपको स्वीकार कर लिया है। अब तुम कलमा के अनुसार हमारे भाई हो। हम हर संभव मदद प्रदान करेंगे।” बिना तारीख वाले वीडियो में, उसे यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उसने लंदन में यह संदेश दिया है कि वह आमोद के कांकरिया गाँव में हैं, जहाँ 37 परिवारों ने इस्लाम धर्म अपना लिया था। उन्होंने मदद के लिए ‘अजीत भाई’ का शुक्रिया अदा किया। फिर वह ‘अजीत भाई’ से पूछता है कि क्या उन्हें भोजन, घर या ऐसी किसी वित्तीय सहायता के संबंध में किसी मदद की ज़रूरत है। फिलहाल हाजी फेफड़ावाला के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी है। वह मूल रूप से भरूच के पास नबीपुर का रहने वाला है लेकिन वह फिलहाल लंदन में रहता है।पिछले साल अक्टूबर में, वडोदरा शहर पुलिस के विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने पाया कि शहर स्थित अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम ऑफ इंडियन ओरिजिन (एएफएमआई) ने बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों के विस्थापितों के लिए गाजियाबाद के पास 400 फ्लैटों के निर्माण सहित कई गतिविधियों के लिए हवाला से फंड भेजा था। उस पर भारत-नेपाल सीमा के पास मौलवियों को फंडिंग करने का भी आरोप लगा था।*
*सलाउद्दीन शेख AFMI के ट्रस्टियों में से एक हैं। कुछ साल पहले मुंबई में इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक से प्रभावित होकर शेख ने ट्रस्ट की शुरुआत की थी। उसका नाम उत्तर प्रदेश सामूहिक धर्म परिवर्तन रैकेट में भी सामने आया था, जहाँ उमर गौतम प्रमुख संदिग्धों में से एक है।*
*हाजी फेफड़ावाला पर 2019 में वडोदरा में भड़काऊ भाषण देने का भी आरोप है और वह 2002 के गुजरात दंगों में भी शामिल था, जो गोधरा में एक ट्रेन के जलने के बाद भड़के थे, जहाँ अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था। उसने कहा था कि 2003 में उसने यूके में ट्रस्ट की स्थापना की जहाँ उसने करीब 125 दानदाताओं से संपर्क किया और भारत को डोनेशन के पैसे भेजने शुरू किए। फेफड़ावाला ने कहा था कि पैसा समुदाय को मजबूत करने के लिए एकत्र किया गया था ताकि वह ‘अन्य धर्मों के हमलों के खिलाफ खुद का बचाव’ कर सके। करीब एक घंटे तक फेफड़ावाला गुजरात में ‘समुदाय को मजबूत करने’ की बात करता रहा।*
*उक्त कार्यक्रम में सलाहुद्दीन शेख और उमर गौतम भी शामिल थे, जिन्हें हाल ही में हवाला और धर्म परिवर्तन केस में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ऐसा माना जाता है कि फेफडावाला ने पिछले 18 वर्षों में भारत में मुस्लिम समुदाय को 150 करोड़ रुपए से अधिक का ‘दान’ दिया है।*
*बता दें कि दिसंबर 2021 में, वडोदरा पुलिस द्वारा एक रिपोर्ट भेजे जाने के बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने AFMI ट्रस्ट का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया। ट्रस्ट के सबसे बड़े लाभार्थियों में से दो फेफड़ावाला और मुस्तफा थानावाला के लिए पुलिस ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।*

🚩 *हवाला और टेरर फंडिंग*

*इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, वडोदरा सिटी के सहायक पुलिस आयुक्त ने कहा कि ट्रस्ट के माध्यम से धन का दुरुपयोग विभिन्न इस्लामिक गतिविधियों के लिए किया गया था, जिसमें अवैध धार्मिक रूपांतरण, मस्जिदों का निर्माण, कश्मीर और भारत-नेपाल के पास गतिविधियों के लिए लोगों को पैसे देना शामिल था। फेफड़ावाला और थानावाला ने कथित तौर पर अपने सभी संपर्क सूत्रों को नष्ट कर दिया है और वो सम्मन का भी जवाब नहीं दे रहे हैं। जाँच में आगे पता चला कि सलाउद्दीन शेख ने दो और लोगों के लिए इस्लाम धर्म परिवर्तन के लिए पैसे की व्यवस्था की थी।*
*नवंबर 2021 में, एसआईटी द्वारा दायर एक चार्जशीट से पता चला कि एएफएमआई द्वारा प्राप्त 80 करोड़ रुपए की जाँच की जा रही है, जिसमें से 1.65 करोड़ रुपए एक आईएच कासुवाला ट्रस्ट की मिलीभगत से फर्जी चालान पेश करके निकाले गए। पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि ट्रस्ट ने फरवरी 2020 में दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के साथ-साथ सीएए के विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा देने के लिए भी विदेशी धन का इस्तेमाल किया, जो बाद में हिंसक हो गया था। सलाउद्दीन शेख के साथ भारतीय दावा केंद्र के उमर गौतम पर वर्तमान में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है और वह वर्तमान में उत्तर प्रदेश एटीएस की हिरासत में है।*

🚩 *इस तरह की गतिविधियों को फण्ड देने के प्रमुख तरीकों में से एक है ओवर-इनवॉइसिंग और जीएसटी रिफंड के माध्यम से फंडिंग, ऐसी बातों की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने हमें बताया, “अगर सरकार वास्तव में गंभीर है, तो वे सूरत से हीरे की बिक्री की जाँच करे। हीरे और वस्त्रों के लिए ओवर-इनवॉइसिंग या अंडर-इनवॉइसिंग के जरिए अधिकारियों को धोखा देते हुए भारत को ‘कानूनी रूप से’ पैसा भेजने के बहुत प्रमुख तरीकों में से एक है, जिसका इस्तेमाल किया जाता है और ज्यादातर पैसा दुबई के रास्ते पाकिस्तान से आता है।” उन्होंने कहा कि इस तरह से भेजे जाने वाले ज्यादातर पैसे का इस्तेमाल टेरर फंडिंग के लिए किया जाता है। हमारे सूत्र ने आगे समझाते हुए कहा, “एक व्यक्ति दुबई में व्यक्ति B को 10 रुपए का हीरा बेचता है। वह 1,000 रुपए का इनवॉइस बनाता है और दुबई में 1,000 रुपए का भुगतान करता है। फिर भारत में तुरंत पैसा निकाल लिया जाता है और इस पर बाकायदा करों का भुगतान किया जाता है। यह हवाला का नया कानूनी तरीका है।”*
*उन्होंने आगे कहा कि अक्सर कुछ ट्रस्ट मदरसों को फंडिंग और मुस्लिम समुदाय के गरीब लोगों के उत्थान के नाम पर विदेशों से पैसा लाते हैं, लेकिन फिर उन्हें टेरर फंडिंग में इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही में, सूरत स्थित एक ऐसा ट्रस्ट कोरोनावायरस महामारी के दौरान किए गए अपने ‘अच्छे काम’ के लिए चर्चा में था।*

🚩 *हालाँकि, इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों का कहना है कि ट्रस्ट के संदिग्ध संबंध हैं और डोनेशन उसके लिए एक मुखौटा है। ऐसे ही अन्य संदिग्ध ट्रस्ट भरूच में है जो अस्पताल चलाता है। भरूच में कई प्रमुख अस्पताल भी धर्म परिवर्तन के केंद्र हैं। भरूच में एक सूत्र, जिन्होंने कांकरिया गांव के आदिवासी परिवारों को पुलिस शिकायत दर्ज करने और हिंदू धर्म में वापस लाने में मदद की, उन्होंने हमें यह भी बताया, “महिलाओं को आदिवासी बेल्ट से लाया जाता है और नर्स बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। आखिरकार, उन्हें बेहतर जीवन, पैसा और नौकरी का वादा किया जाता है और इस्लाम में परिवर्तित कर दिया जाता है।”*
*वहीं सूरत के एक सूत्र ने बताया कि इस तरह के मनी लॉन्ड्रिंग में मुस्लिम समुदाय के कुछ प्रमुख वकील, व्यवसायी भी शामिल हैं, लेकिन प्रशासन के ढुलमुल रवैए के कारण ये कानून से बच जाते हैं।*
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1484101341152694274?t=FkEN59jfryzoLhu32Ob6gA&s=19
*नोट: मूल रूप से गुजरात के भरूच से यह ग्राउंड रिपोर्टिंग Opindia अंग्रेजी की संपादक निरवा मेहता ने किया है। उनकी इंग्लिश में इस ग्राउंड रिपोर्ट का हिंदी रूपांतरण रवि अग्रहरि ने किया है।*

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गुरुवार, 20 जनवरी 2022

हिंदुओं के खिलाफ ज़हर फैला रहा है बॉलीवुड

 हिंदुओं के खिलाफ ज़हर फैला रहा है बॉलीवुड,

IIM अहमदाबाद से आयी इस सनसनीखेज रिपोर्ट से सारा देश सन्न

अक्सर कहा जाता है कि बॉलीवुड की फिल्में हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा ज़हर भर रही हैं। इस शिकायत की सच्चाई जानने के लिए अहमदाबाद में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) के एक प्रोफेसर ने एक अध्ययन किया है, जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं। आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने बीते छह दशक की 50 बड़ी फिल्मों की कहानी को अपने अध्ययन में शामिल किया और पाया कि बॉलीवुड एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीते करीब 50 साल से लोगों के दिमाग में यह बात भर रहा है कि हिंदू और सिख दकियानूसी होते हैं।

उनकी धार्मिक परंपराएं बेतुकी होती हैं। मुसलमान हमेशा नेक और उसूलों पर चलने वाले होते हैं। जबकि ईसाई नाम वाली लड़कियां बदचलन होती हैं। हिंदुओं में कथित ऊंची जातियां ही नहीं, पिछड़ी जातियों के लिए भी रवैया नकारात्मक ही है। यह पहली बार है जब बॉलीवुड फिल्मों की कहानियों और उनके असर पर इतने बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है।

ब्राह्मण नेता भ्रष्ट, वैश्य बेइमान कारोबारी!

आईआईएम के इस अध्ययन के अनुसार फिल्मों में 58 फीसदी भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62 फीसदी फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74 फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है। यहां तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

हैरानी इस बात की है कि यह लंबे समय से चल रहा है और अलग-अलग समय की फिल्मों में इस मैसेज को बड़ी सफाई से फिल्मी कहानियों के साथ बुना जाता है। अध्ययन के तहत रैंडम तरीके से 1960 से हर दशक की 50-50 फिल्में चुनी गईं। इनमें ए से लेकर जेड तक हर शब्द की 2 से 3 फिल्में चुनी गईं। ताकि फिल्मों के चुनाव में किसी तरह पूर्वाग्रह न रहे। अध्ययन के नतीजों से साफ झलकता है कि फिल्म इंडस्ट्री किसी एजेंडे पर काम कर रही है।

‘बजंरगी भाईजान’ देखने के बाद अध्ययन

प्रोफेसर धीरज शर्मा कहते हैं कि “मैं बहुत कम फिल्में देखता हूं। लेकिन कुछ दिन पहले किसी के साथ मैंने बजरंगी भाईजान फिल्म देखी। मैं हैरान था कि भारत में बनी इस फिल्म में ज्यादातर भारतीयों को तंग सोच वाला, दकियानूसी और भेदभाव करने वाला दिखाया गया है। जबकि आम तौर पर ज्यादातर पाकिस्तानी खुले दिमाग के और इंसान के बीच में फर्क नहीं करने वाले दिखाए गए हैं।” यही देखकर उन्होंने एक तथ्यात्मक अध्ययन करने का फैसला किया।

वो यह जानना चाहते थे कि फिल्मों के जरिए लोगों के दिमाग में गलत सोच भरने के जो आरोप लगते हैं क्या वाकई वो सही हैं? यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि फिल्में नौजवान लोगों के दिमाग, व्यवहार, भावनाओं और उनके सोचने के तरीके को प्रभावित करती हैं। यह देखा गया है कि फिल्मों की कहानी और चरित्रों के बर्ताव की लोग निजी जीवन में नकल करने की कोशिश करते हैं।

पाकिस्तान और इस्लाम का महिमामंडन

प्रोफेसर धीरज और उनकी टीम ने 20 ऐसी फिल्मों को भी अध्ययन में शामिल किया जो पिछले कुछ साल में पाकिस्तान में भी रिलीज की गईं। उनके अनुसार ‘इनमें से 18 में पाकिस्तानी लोगों को खुले दिल और दिमाग वाला, बहुत सलीके से बात करने वाला और हिम्मतवाला दिखाया गया है। सिर्फ पाकिस्तान की सरकार को इसमें कट्टरपंथी और तंग नजरिए वाला दिखाया जाता है। ऐसे में सवाल आता है कि हर फिल्म भारतीय लोगों को पाकिस्तानियों के मुकाबले कम ओपन-माइंडेड और कट्टरपंथी सोच वाला क्यों दिखा रही है? इतना ही नहीं इन फिल्मों में भारत की सरकार को भी बुरा दिखाया जाता है।

पाकिस्तान में रिलीज़ हुई ज्यादातर फिल्मों में भारतीय अधिकारी अड़ंगेबाजी करने वाले और जनता की भावनाओं को नहीं समझने वाले दिखाए जाते हैं।’ फिल्मों के जरिए इमेज बनाने-बिगाड़ने का ये खेल 1970 के दशक के बाद से तेजी से बढ़ा है। जबकि पिछले एक दशक में यह काम सबसे ज्यादा किया गया है। 1970 के दशक के बाद ही फिल्मों में सलीम-जावेद जैसे लेखकों का असर बढ़ा, जबकि मौजूदा दशक में सलमान, आमिर और शाहरुख जैसे खान हीरो सक्रिय रूप से अपनी फिल्मों में पाकिस्तान और इस्लाम के लिए सहानुभूति पैदा करने वाली बातें डलवा रहे हैं।

बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर

अध्ययन के तहत फिल्मों के असर को जानने के लिए इन्हें 150 स्कूली बच्चों के एक सैंपल को दिखाया गया। प्रोफेसर धीरज शर्मा के अनुसार ’94 प्रतिशत बच्चों ने इन फिल्मों को सच्ची घटना के तौर पर स्वीकार किया।’ यह माना जा सकता है कि फिल्म वाले पाकिस्तान, अरब देशों, यूरोप और अमेरिका में फैले भारतीय और पाकिस्तानी समुदाय को खुश करने की नीयत से ऐसी फिल्में बना रहे हों। लेकिन यह कहां तक उचित है कि इसके लिए हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों को गलत रौशनी में दिखाया जाए? वैसे भी इस्लाम को हिंदी फिल्मों में जिस सकारात्मक रूप से दिखाया जाता है, वास्तविक दुनिया में उनकी इमेज इससे बिल्कुल अलग है। आतंकवाद की ज्यादातर घटनाओं में मुसलमान शामिल होते हैं, लेकिन फिल्मों में ज्यादातर आतंकवादी के तौर पर हिंदुओं को दिखाया जाता है। जैसे कि शाहरुख खान की ‘मैं हूं ना’ में सुनील शेट्टी एक आतंकी संगठन का मुखिया बना है जो नाम से हिंदू है।



सलीम जावेद सबसे बड़े जिहादी?

सलीम-जावेद की लिखी फिल्मों में हिंदू धर्म को अपमानित करने की कोशिश सबसे ज्यादा दिखाई देती है। इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है। पंडित को धूर्त, ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कॉमेडियन आदि ही दिखाया जाता है। ज्यादातर हिंदू किरदारों की जातीय पहचान पर अच्छा खासा जोर दिया जाता था। इनमें अक्सर बहुत चालाकी से हिंदू परंपराओं को दकियानूसी बताया जाता था। इस जोड़ी की लिखी तकरीबन हर फिल्म में एक मुसलमान किरदार जरूर होता था जो बेहद नेकदिल इंसान और अल्ला का बंदा होता था। इसी तरह ईसाई धर्म के लोग भी ज्यादातर अच्छे लोग होते थे।

सलीम-जावेद की फिल्मों में मंदिर और भगवान का मज़ाक आम बात थी। मंदिर का पुजारी ज्यादातर लालची, ठग और बलात्कारी किस्म का ही होता था। फिल्म “शोले” में धर्मेंद्र भगवान शिव की आड़ लेकर हेमा मालिनी को अपने प्रेमजाल में फँसाना चाहता है, जो यह साबित करता है कि मंदिर में लोग लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं। इसी फिल्म में एके हंगल इतना पक्का नमाजी है कि बेटे की लाश को छोड़कर, यह कहकर नमाज पढ़ने चल देता है कि उसने और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान होने के लिए।

“दीवार” फिल्म का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान का प्रसाद तक नहीं खाना चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो बिल्ला ही बार-बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है। फिल्म “जंजीर” में भी अमिताभ बच्चन नास्तिक हैं और जया, भगवान से नाराज होकर गाना गाती है, लेकिन शेरखान एक सच्चा मुसलमान है। फिल्म ‘शान” में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साधु के वेश में जनता को ठगते हैं, लेकिन इसी फिल्म में “अब्दुल” ऐसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे देता है। फिल्म “क्रान्ति” में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार) गद्दार है और करीम खान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी जान दे देता है।

“अमर-अकबर-एंथोनी” में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है लेकिन उनके बच्चों (अकबर और एंथोनी) को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई बेहद नेकदिल इंसान है। कुल मिलाकर आपको सलीम-जावेद की फिल्मों में हिंदू नास्तिक मिलेगा या फिर धर्म का उपहास करने वाला। जबकि मुसलमान शेर खान पठान, डीएसपी डिसूजा, अब्दुल, पादरी, माइकल, डेविड जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे।

हो सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो, लेकिन अबकी बार ज़रा गौर से देखिएगा केवल सलीम-जावेद की ही नहीं, बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट जैसे ढेरों कलाकारों की कहानियों का भी यही हाल है। सलीम-जावेद के दौर में फिल्म इंडस्ट्री पर दाऊद इब्राहिम का नियंत्रण काफी मजबूत हो चुका था। हम आपको बता दें कि सलीम खान सलमान खान के पिता हैं, जबकि जावेद अख्तर आजकल सबसे बड़े सेकुलर का चोला ओढ़े हुए हैं।

अब तीनों खान ने संभाली जिम्मेदारी?



मौजूदा समय में तीनों खान एक्टर फिल्मों में हिंदू किरदार करते हुए हिंदुओं के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। इनमें सबसे खतरनाक कोई है तो वो है आमिर खान। आमिर खान की पिछली कई फिल्मों को गौर से देखें तो आप पाएंगे कि सभी का मैसेज यही है कि भगवान की पूजा करने वाले धार्मिक लोग हास्यास्पद होते हैं। इन सभी में एक मुस्लिम कैरेक्टर जरूर होता है जो बहुत ही भला इंसान होता है। “पीके” में उन्होंने सभी हिंदू देवी-देवताओं को रॉन्ग नंबर बता दिया। लेकिन अल्लाह पर वो चुप रहे।

पहलवानों की जिंदगी पर बनी “दंगल” में हनुमान की तस्वीर तक नहीं मिलेगी। जबकि इसमें पहलवानों को मांस खाने और एक कसाई का दिया प्रसाद खाने पर ही जीतते दिखाया गया है। सलमान खान भी इसी मिशन पर हैं, उन्होंने “बजरंगी भाईजान” में हिंदुओं को दकियानूसी और पाकिस्तानियों को बड़े दिलवाला बताया। शाहरुख खान तो “माई नेम इज़ खान” जैसी फिल्मों से काफी समय से इस्लामी जिहाद का काम जारी रखे हुए हैं।


संस्कृति को नुकसान की कोशिश

हॉलीवुड की फिल्में पूरी दुनिया में अमेरिकी संस्कृति, हावभाव और लाइफस्टाइल को पहुंचा रही हैं। जबकि बॉलीवुड की फिल्में भारतीय संस्कृति से कोसों दूर हैं। इनमें संस्कृति की कुछ बातों जैसे कि त्यौहार वगैरह को लिया तो जाता है लेकिन उनका इस्तेमाल भी गानों में किया जाता है। लगान जैसी कुछ फिल्मों में भजन वगैरह भी डाले जाते हैं लेकिन उनके साथ ही धर्म का एक ऐसा मैसेज भी जोड़ दिया जाता है कि कुल मिलाकर नतीजा नकारात्मक ही होता है। फिल्मों के बहाने हिंदू धर्म और भारतीय परंपराओं को अपमानित करने का खेल बहुत पुराना है। सिनेमा के शुरुआती दौर में ये होता था लेकिन खुलकर नहीं। लेकिन 70 के दशक के दौरान ज्यादातर फिल्में यही बताने के लिए बनाई जाने लगीं कि मुसलमान रहमदिल और नेक इंसान होते हैं, जबकि हिंदुओं के पाखंडी और कट्टरपंथी होने की गुंजाइश अधिक होती है।

आईआईएम के प्रोफेसर धीरज शर्मा की इस स्टडी में होने वाले खुलासों ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है और साथ ही बीजेपी के कद्दावर नेता डॉक्टर सुब्रमणियम स्वामी के उस दावे को भी सही साबित कर दिया, जिसमे उन्होंने कहा है कि बॉलीवुड में दाऊद का कालाधन लगता है और दाऊद के इशारों पर ही बॉलीवुड का इस्लामीकरण किया जा रहा है.

स्वामी समेत कई हिन्दू संगठन भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि एक साजिश के तहत मोती कमाई का जरिया बन चुके बॉलीवुड में हिन्दू कलाकारों को किनारे किया जा रहा है और मुस्लिम हीरो, गायक आदि को ज्यादा से ज्यादा काम दिया जा रहा है. पाकिस्तानी कलाकारों को काम देने के लिए भी दाऊद गैंग बॉलीवुड पर दबाव बनाता है

बस यही सब बातें थी जो मैं बॉलीवुड में बहुत मिस करता हूँ #पुष्पा

 #पुष्पा
पुष्पा के खास दोस्त का नाम "केशव" था । पुष्पा की मां का नाम "पार्वती" था । उसके पिता का नाम "वेंकटरमण" था । उसकी प्रेमिका का नाम "श्रीवल्ली" था । उसके ससुर का नाम "मुनिरत्नम" था ।

पुष्पा के मालिक का नाम "कोंडा रेड्डी" था । जिस डीएसपी ने पुष्पा को पकड़ा था उसका नाम "गोविंदम" था ।
जिस थानेदार ने पुष्पा के साथ इंट्रोगेशन किया उसका नाम "कुप्पाराज" था ।

पुष्पा के सबसे बड़े दुश्मन का नाम "मंगलम श्रीनू" था । जो पुष्पा को मारना चाहता था , श्रीनू का साला उसका नाम "मोगलिस" था ।
डॉन कोंडा रेड्डी के विधायक दोस्त मंत्री जी का नाम "भूमिरेड्डी सिडप्पा नायडू" था ।
लाल चंदन का सबसे बड़ा खरीददार "मुरुगन" था ।

फ़िल्म मुझे इसलिए भी अच्छी लगी क्योंकि इसमें कैरेक्टर वाइज कोई न सलीम था न कोई जावेद था । न रहम दिल अब्दुल चचा थे । न पांच वक्त का नमाजी सुलेमान था ।
न अली-अली था न मौला-मौला था । न दरगाह थी , न मस्जिद थी , न अजान थी । न सूफियाना सियापा था ।
 
बस माथों पर लाल चंदन के तिलक थे । मंदिर थे । मंत्र थे । संस्कृत के श्लोक थे ।
काम शुरू करने से पूर्व देवी की पूजा थी । नए दूल्हा-दुल्हन के चेक पोस्ट से गुजरने पर उन्हें भेंट देने की प्रथा थी । पत्तल में खाना था । देशज वेशभूषा थी । अपनी प्रथाओं , परंपराओं का सम्मान था ।

बस यही सब बातें थी जो मैं बॉलीवुड में बहुत मिस करता हूँ और मेरी तरह बहुत से लोग करते होंगे । साउथ सिनेमा की ओर बॉलीवुड के दर्शकों का  झुकाव होने एक कारण यह भी है ।



ऐसी फिल्में देखने के बाद महसूस होता है कि हां हम अपने ही देश में है..............

सनातनी भारत भूमि पर ही हैं.......।
साभार🙏🏻😊

इन 6 वर्षों में विभिन्न माध्यमों से मुझे कुछ ऐसे सत्य पता चले जो हैरान करने वाले थे।

 मात्र 6-7 वर्ष पहले मैं भी एक सामान्य व्यक्ति था,  मुझे भी औरों की तरह नेहरू, गांधी, गांधी परिवार तथा हिन्दू मुस्लिम भाई भाई जैसे नारे अच्छे लगते थे।

मगर .....! मगर ...!!

इन 6 वर्षों में विभिन्न माध्यमों से मुझे कुछ ऐसे सत्य पता चले जो हैरान करने वाले थे।

1. सोशल मीडिया से मुझे यह पता चला कि "पत्रकार" निष्पक्ष नहीं होते। वे भी किसी मकसद/व्यक्तिगत स्वार्थ से जुड़े होते हैं।

2. लेखक, साहित्यकार भी निष्पक्ष नहीं होते। वे भी किसी खास विचारधारा से जुड़े होते हैं।

3. साहित्य अकादमी, बुकर, मैग्ससे पुरस्कार प्राप्त बुद्धिजीवी भी निष्पक्ष नहीं होते।

4. फिल्मों के नाम पर एक खास विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है। बालीबुड का सच पता चला।

5. हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहते हैं और देश का नाम हिंदुस्तान है, क्योंकि यह हिंदुओं का इकलौता देश है।

6. हिन्दू शब्द सिंधु से नहीं (ईरानियों द्वारा स को ह बोलने से) नहीं आया बल्कि "हिन्दू" शब्द "ऋग्वेद" में लाखों वर्ष पूर्व से ही वर्णित था।

7. जातिवाद, बाल विवाह, पर्दा प्रथा हजारों वर्ष पूर्व सनातनी नहीं बल्कि मुगलों के आगमन से उपजी कु-व्यवस्था थी, जिसे अंग्रेजों ने सनातन से जोड़कर हिन्दुओं को बांटा। उसे लिखित इतिहास बनाया।

8. किसी समय भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म पूरे विश्व में फैला था, पता चला।

9. वास्कोडिगामा का सच ये था कि वह एक लुटेरा, धोखेबाज था और किसी भारतीय जहाज का पीछा करते हुए, भारत पहुंचा।

10. बप्पा रावल का नाम, काम और अद्भुत पराक्रम सुना। उनसे डरकर 300 वर्ष तक मुस्लिम आक्रांता इधर झांके भी नहीं, पता चला।

11. बाबर, हुमायूँ, अकबर, औरंगजेब, टीपू सुलतान सहित सभी मुगल शासक क्रूर, हत्यारे, इस्लाम के प्रचारक, प्रसारक और हिंदुओं के नरसंहारक थे, यह सच पता चला।

12. ताज़महल, लालकिला, कुतुब मीनार हिन्दू भवन थे, इनकी सच्चाई कुछ और थी।

13. जिसे लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहकर मजाक उड़ाते हैं, उसी ने मुझे  हेडगेवार, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल व हिन्दू समाज के साथ कि गई गद्दारी की सच्चाई बताईं।

14. गाँधी जी की तुष्टिकरण और भारत विभाजन के बारे में ज्ञान हुआ। गांधी जी जब अहिंसा के पुजारी थे तो शांतिदूतो को अहिंसा का पाठ न पढाके सिर्फ़ हिन्दुओं को क्यों पढाया ? पता चला !

15. नेहरू की असलियत, उसके इरादे, उसकी हरकतें, पता चलीं।

16. POJKL के बारे में भी इन 6 वर्षों में जाना कि कैसे पाकिस्तान ने कब्जा किया। और किस नेता की छुपी करतूत थी, कौन लोग POJKL को भारत का हिस्सा नहीं मानते हैं, पता चला।

17. अनुच्छेद 370 और उससे बने नासूर का पता चला।

18. कश्मीर में दलितों को आरक्षण नहीं मिलता, यह भी अब पता चला।

19. AMU मे दलितों को आरक्षण नहीं मिलती, वह इसी संविधान के तहत संविधान से परे ब्यवहार के लिये स्वतंत्रत है, पता चला।

20. जेएनयू की असलियत, वहाँ के खेल और हमारे टैक्स से पलने वाली टुकड़े टुकड़े गैंग का पता चला।

21. वामपंथी-देशद्रोही विचारधारा के बारे में पता चला।

22. जय भीम समुदाय के बारे में पता चला। भीमराव के नाम पर उनके मत से सर्वथा भिन्न खेल का पता चला। मीम, भीम, दलित औऱ हिन्दू-दलित अलग-अलग होते हैं, पता चला !

23. मदर टेरेसा की असलियत अब जाकर ज्ञात हुई।

24. ईसाई मिशनरी और धर्मांतरण के बारे में पता चला।

25. समुदाय विशेष में तीन तलाक, हलाला, तहरुष, मयस्सर, मुताह जैसी कुरीतियों के नाम भी अब जाकर सुना। इनका मतलब जाना।

26. अब मुझे पता चला कि धिम्मी, काफिर, मुशरिक, शिर्क, जिहाद, क्रुसेड जैसे शब्द हिन्दुओं के लिए क्या संदेश रखते हैं।

27. सच बताऊं ! गजवा-ऐ-हिन्द के बारे मे पता भी नहीं था, कभी नाम भी नहीं सुना था। यह सब इन 6 वर्षों में पता चला। स्टॉकहोम सिंड्रोम और लवजिहाद का पता चला।

28. सेकुलरिज्म की असलियत अब पता चली। मानवाधिकार, बॉलीवुड, बड़ी बिंदी गैंग, लुटियंस जोन इन सबके लिए तो हिन्दू एक चारा था।

29. हिन्दू पर्सनल लॉ और मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं, यह भी सोशल मीडिया ने ही बताया। नेहरू ने हिन्दू पर्सनल लॉ को समाप्त कर दिया लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ को रहने दिया।

30. भारतीय इतिहास के नाम पर हमें झूठी कहानी पढ़ायी गयी, जिन मुगलों ने हमें लूटा, हम पर अत्याचार किया उन्हें महान बताया गया। यदि कोई बाहरी व्यक्ति आपके घर पर कब्जा करे, लूटे, अत्याचार करे, वह लुटेरा महान कैसे हो सकता है ?

31. इतना सब पता चलने के बाद भी और मोदीजी के महान नेतृत्व के बाद भी केवल तीस प्रतिशत हिन्दू ही असलियत समझ पाए हैं, बाकी वैसे ही हैं !

32. यहां तक कि न्यायमूर्ति कहे जाने वाले न्यायाधीश तक निष्पक्ष नहीं होते, कुछ विचारधारा से, कुछ डर के कारण, न्याय नहीं कर सकते!

33. अभिव्यक्ति की आजादी और सही इतिहास जिसे दफन कर दिया गया था वह अब धरती फाड़कर बाहर आ रहा हैै, पर पहले लिखा इतिहास सारा झूठ का पुलंदा था।

34. सभी राजनीतिक पार्टियों की वास्तविक हकीकत, और उनका एजेंडा पता चला !

🙏🏼 जय श्रीराम 🙏🏼

फ़िल्म में हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार हाजी बना हीरो, राष्ट्रवादी दिखाने की घोषणा

🚩 फ़िल्म में हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार हाजी बना हीरो, राष्ट्रवादी दिखाने की घोषणा

20 अगस्त 2020
azaadbharat.org

🚩 हिंदुस्तान में सदियों से हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचार हुए है फिर भी हिंदू प्रगाढ़ निद्रा में है इसके कारण आज भी सनातन धर्म विरोधी अपनी गतिविधियों द्वारा हिंदुओं पर हुए अत्याचार को मिटाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और हिंदुओं के खिलाफ़ धृणा पैदा करने वाली अनेक इतिहास लिखा जा चुका है और लिख रहे हैं और उसके ऊपर फिल्में बनाकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने व मिटाने की कोशिशें कर रहे हैं।

🚩 आपको बता दे कि साल 1921 में केरल में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji ) की जिंदगी पर आधारित फिल्म बनने वाली है। इस फिल्म को बनाने वाले का नाम आशिक अबु है। हाजी का किरदार निभाने वाले एक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन हैं। और, फिल्म का टाइटल वरियमकुन्नन (Vaariyamkunnan) हैं। ये सब सूचना स्वयं अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने अपने फेसबुक पर दी है।

🚩 उन्होंने अपनी नई फिल्म का ऐलान करते हुए हाजी को ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली शख्सियत बताया है। साथ ही हाजी को न केवल एक नेता के तौर पर दर्शाया, बल्कि उसे एक फौजी और राष्ट्रवादी भी कहा।

🚩 इसके अलावा मालाबार में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को पृथ्वीराज ने मालाबार क्रांति का पहला चेहरा लिखा और जानकारी दी कि इसकी फिल्मिंग हाजी की 100वीं बरसी पर शुरू करेंगे।

🚩 यहाँ बता दें, इस जानकारी के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर एक नया विवाद खड़ा हो गया। लोग पूछने लगे कि आखिर हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हीरो कैसे हो सकता है? या ये समझें कि ये फिल्म फिर से समुदाय विशेष के कुकर्मों को धोने का एक प्रयास है, जिसके जरिए सच्चाई को छिपाते हुए नया इतिहास समझाने की कोशिश हो रही है।

क्यों है विवाद?

🚩 दरअसल, साल 2021 में रिलीज होने वाली यह फिल्म मोपला समुदाय के उस मुस्लिम नेता की जिंदगी पर आधारित है, जिसे साल 1921 में मालाबार में हजारों हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार बताया जाता है।

कौन था वरियम कुन्नथु हाजी कुंजाहम्मद हाजी?

🚩 वरियमकुन्नथु या चक्कीपरांबन वरियामकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji), वही शख्स है जो खुद को ‘अरनद का सुल्तान’ कहता था। उसी क्षेत्र का सुल्तान जहाँ सैंकड़ों मोपला हिंदुओं का नरसंहार हुआ। जहाँ इस्लामिक ताकतों ने मिलकर लूटपाट की और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह की आड़ में हिंदुओं का रक्तपात किया। मगर, फिर भी, उन आतताइयों के उस चेहरे को छिपाने के लिए इतिहास के पन्नों में उन्हें मोपला के विद्रोहियों का नाम दिया गया।

🚩 बता दें, मोपला में हिंदुओं का नरसंहार वही घटना है, जब हिंदुओं पर मुस्लिम भीड़ ने न केवल हमला बोला। बल्कि आगे चलकर पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने के लिए उस बर्बरता को इतिहास के पन्नों से ही गुम कर दिया या फिर काट-छाँटकर इसपर जानकारी दी गई।

🚩 केरल के मालाबार में हिंदुओं पर अत्याचार के उन 4 महीनों ने सैंकड़ों हिंदुओं की जिंदगी तबाह की। बताया जाता है कि मालाबार में ये सब स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर शुरू हुआ। लेकिन जब खत्म होने को आया तो उसका उद्देश्य साफ पता चला कि वरियमकुन्नथु जैसे लोग केवल उत्तरी केरल से हिंदुओं की जनसंख्या कम करना चाहते थे।

🚩 खिलाफत आंदोलन का सक्रिय समर्थक वरियमकुन्नथु ने अपने दोस्त अली मुसलीयर के साथ मिलकर मोपला दंगों का नेतृत्व किया। जिसमें 10,000 हिंदुओं का केरल से सफाया हुआ। जबकि माना जाता है कि इसके बाद करीब 1 लाख हिंदुओं को केरल छोड़ने पर मजबूर किया गया। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

🚩 बाबा साहेब अंबेडकर अपनी किताब में इस नरसंहार का जिक्र करते हैं। वे पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया नाम की अपनी किताब में लिखते हैं कि हिन्दुओं के खिलाफ मालाबार में मोपलाओं द्वारा किए गए खून-खराबे के अत्याचार अवर्णनीय थे। दक्षिणी भारत में हर जगह हिंदुओं के ख़िलाफ़ लहर थी। जिसे खिलाफत नेताओं ने भड़काया था।

🚩 इसके अलावा एनी बेसेंट ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब में करते हुए बताया कि कैसे धर्म न त्यागने पर हिंदुओं पर अत्याचार हुए। उन्हें मारा-पीटा गया । उनके घरों में लूटपाट हुई। एनी बेंसेंट ने अपनी किताब में बताया कि करीब लाख से ज्यादा हिंदू लोगों को उस दौरान अपने घरों को तन पर बाकी एक जोड़ी कपड़े के साथ छोड़ना पड़ा था। उन्होंने लिखा, “मालाबार ने हमें सिखाया है कि इस्लामिक शासन का क्या मतलब है, और हम भारत में खिलाफत राज का एक और नमूना नहीं देखना चाहते हैं।”

🚩 आज मलयालम फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले अधिकतर लोग मालाबार मुसलमान हैं। जिन्हें लगता है शायद इस तरह के प्रयासों से वह हिंदुओं पर हुई बर्बरता को लोगों की नजरों में धुँधला कर देंगे और अपनी कोशिशों से एक नया इतिहास नई पीढ़ी के सामने पेश करेंगे।

🚩 लेकिन, आपको बता दें, ये पहली बार नहीं है जब हाजी के आतताई चेहरे को नायक में तब्दील करने की कोशिश हुई। इससे पहले भी जामिया प्रदर्शन के समय सुर्खियों में आई बरखा दत्त की शीरो लदीदा ने हाजी का महिमामंडन किया था।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1296309080953217026?s=19

🚩 मोपला मुसलमानों के एक अलीम ने यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं । जो आज के दिन, दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जाएगा । जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलाएगा । एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा । उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े । टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराए गए । अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया । हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई । उनकी सुन्नत कर दी गई । मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया । जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई । ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था । 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे।

🚩 हिंदुओं का नर संहार करने वाले लोगों को आज हीरो बनाया जा रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रोल करने वाला भी हिंदू ही हैं, और देखने वाले भी अधिकतर हिंदू ही है, आज बॉलीवुड में अधिकतर फिल्में भी हिन्दू विरोधी ही बन रही है अभी "आश्रम" नाम की फ़िल्म बनाकर हिंदू धर्म को बदनाम ही किया जा रहा है। हिंदुओं को अब जागरूक होना चाहिए ऐसी फिल्मों का पुरजोर से विरोध करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को ये लोग गुमराह करके हिंदू धर्म को खत्म न कर सकें।

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