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कैसे पड़ा रिलायंस का नाम ?
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि रिलायंस से पहले उनकी कंपनी का नाम तीन बार बदला गया. कंपनी की नींव रखने वाले रिलायंस के फाउंडर धीरूभाई अंबानी ने तीन बार बदलने के बाद कंपनी का नाम रिलायंस रखा, लेकिन इसके पीछे की वजह आप जानते हैं? रिलायंस नाम के पीछे का किस्सा बहुत ही दिलचस्प है.
कैसे पड़ा रिलायंस का नाम ?
धीरूभाई अंबानी ने साल 1958 में रिलायंस ग्रुप की नींव रखी. अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ मिलकर उन्होंने कंपनी की शुरुआत की. इससे पहले 1950 के दशक में धीरूभाई अंबानी ने यमन में मसाले और पॉलिएस्टर यार्न लाने के लिए एक बिजनेस शुरु किया, जिसका नाम माजिन रखा. यहीं से रिलायंस की शुरुआत हुई. यही कंपनी आगे चलकर रिलायंस इंजस्ट्रीज बनी. कुछ साल वहां काम करने के बाद साल 1960 के दशक में धीरूभाई अंबानी और उनके भाई चंपकलाल दमानी भारत लौटे. उन्होंने भारत आकर रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन नाम से नए बिजनेस की शुरुआत की.
छोटे से बिजनेस को बनाया बड़ा कारोबार
धीरूभाई अंबानी ने एक छोटे व्यापारी के तौर पर अपना कारोबार शुरू किया. अपने मेहनत के दम पर उन्होंने कुछ ही सालों में बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया. लेकिन कारोबार बढ़ने के बाद दोनों पार्टनर के बीच मतभेद भी शुरू हुआ, जिसके बाद साल 1965 में अंबानी और दमानी का बिजनेस बंट गया. बिजनेस पार्टनरशिप टूट गई. बंटवारे के बाद धीरूभाई अंबानी ने कपड़ा कारोबार पर फोकस किया. बंटवारे के बाद साल 1966 में धीरूभाई अंबानी के कंपनी का नाम रिलायंस कमर्शियल कॉपोरेशन से बदलकर रिलायंस टेक्सटाइल्ट कर दिया.
फिर पड़ा रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम
कपड़ा कारोबार में छा जाने के बाद धीरूभाई अंबानी ने अलग-अलग सेक्टर्स में अपना कारोबार फैलाना शुरू किया. उन्होंने अब कंपनी का नाम रिलायंस कमर्शियल कॉपोरेशन से बदलकर रिलायंस इंजस्ट्रीज लिमिटेड रखा. रिलायंस इंडस्ट्रीज तक पहुंचने में कंपनी का नाम तीन
बार बदल गया. पिता के निधन के बाद कंपनी को मुकेस अंबानी और अनिल अंबानी के बीच बांट दिया गया.
'रिलायंस' नाम ही क्यों ?
धीरूभाई अंबानी ने कंपनी का नाम 'रिलायंस' ही चुना. इस नाम के पीछे उनकी सोच थी कि यह कंपनी उत्पादों और असाधारण सेवा के लिए भरोसे का प्रतीक बनेगी. वो कंपनी के नाम पर भरोसे और आत्मनिर्भरता को बनाए रखना चाहते थे. इन नाम के पीछे उनका मकसद आत्मविश्वास पैदा करना और हाई क्वालिटी प्रोडक्ट बनाने की मिसाल पैदा करना था. Reliance का मतलब ही आश्वस्त या भरोसेमंद निर्भरता है, इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी का नाम तीन बार बदलने के बाद भी रिलायंस शब्द को जारी रखा .
जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।
जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा। नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।
ब्रह्मा जी से वरदान मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।
शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।
अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वरदान मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-
1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।
2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है.....
जय जय श्री राम 🙏🚩
हिंदू लङकियाँ सतर्क रहें और सावधान रहें, वरना नई मुसीबत के लिए तैयार रहिएगा...
हिंदू लङकियाँ सतर्क रहें और सावधान रहें, वरना नई मुसीबत के लिए तैयार रहिएगा...
बहुतों को शायद ये पता न हो कि दरगाहो मे एक बेड़ी बाँधने और काटने की रस्म होती है। दरगाह मे जाकर मन्नत माँगने वाली लड़की के पैर मे काले रंग के धागे से बेड़ी बाँध दी जाती है।
ये बेड़ी कथित मन्नत के पूरा होने पर दरगाह मे जाकर खादिम से कटवाई जाती है, तब जाकर वो लड़की बेड़ी कटवाकर मुक्त होती है।
ये मजारों के खादिमों का नया टंटा है, जिसमे अधिकतर हिन्दू लड़कियां दरगाहों पर बेड़ी बँधवा रही हैं। इसकी शुरुआत कलियर शरीफ से हुई थी... यह भोली भाली हिन्दू लड़कियों को फ़साने का टोटका है जो बहुत हद तक कामयाब हो रहा है।
आजकल हर छोटी बडी दरगाह मे यही बाँधने काटने का धंधा चाल रहा है। पैर के पास जहां पायल या धागा पहनते है उस जगह पर मंगल ग्रह का निवास माना जाता है और मंगल ग्रह को काली चीज पसंद नही इसलिए काला धागा पैरों में नही पहनना चाहिए। इससे अशुभ हो सकता है।
कई लडकियों और लेडीज के पैर में ऐसा धागा देखा है पर तब पता नही था कि ये धागा किसलिए है। सोचा कि फैशन होगा। यदि आप ऐसा धागा पहने किसी लडकी को देखें तो उसे समझाएं। वर्ना वो भी अगली "श्रद्धा" बनने की राह पर है और फिर सूटकेस में पैक होगी।
परंतु फिर भी कुछ लोग पैरों में काला धागा बांधने के पीछे अपने अज्ञानता पूर्ण तर्क देते हैं..
आंख कान खुला रखें.
"रेंगता था हर नज़र का सांप उसके जिस्म पर, मैं ये कैसे मान लूं उसका बदन संदल न था"
हाईवे में जमीन जाने से एकदम से अमीर हुए लोगों और टेबल के नीचे से कमाई करने वाले बाबुओं की तो मैं नहीं कहता लेकिन मेरे जैसे जिन साधारण मनुष्यों के बच्चे स्कूल में, वह भी प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं; उनके लिए अप्रैल का महीना बड़ा कठिन गुजरता है।
दिल्ली जैसे बड़े शहर में वैसे तो किसी ठीक-ठाक स्कूल में बच्चों को एडमिशन जल्दी से मिलता नहीं है। लेकिन एक बार जब एडमिशन मिल जाता है तो चालाक स्कूल वाले मोटी फीस के लिए फिर हर साल अप्रैल में बच्चों का रि-एडमिशन करते हैं और मोटी फीस वसूलते हैं।
तो हुआ यूं कि एक नामी गिरामी प्राइवेट स्कूल में दोनों बच्चों की भारी- भरकम फीस जमा करने के बाद शर्मा जी स्कूटी से ऑफिस आ रहे थे । रास्ते मे शर्मा जी के आगे एक सुंदर महिला स्कूटी से जा रही थी । शर्मा जी उस सुंदरी को देखते हुए मोटी फीस भरने का बिल्कुल ताज़ा गम भुलाकर एक रूमानी सा शेर-
"रेंगता था हर नज़र का सांप उसके जिस्म पर,
मैं ये कैसे मान लूं उसका बदन संदल न था"
गुनगुनाते हुए ऑफिस चले आ रहे थे।
अचानक जेएनयू चौराहे के पास लाइट रेड हो गई । वह महिला तो
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की उल्टी गिनती पूरी होने तक स्टॉप लाइन से पीछे रुक गई लेकिन शर्मा जी का ध्यान चूंकि रेड लाइट की तरफ कम और उस महिला की तरफ ज्यादा था, अतः इमरजेंसी ब्रेक मारते-मारते भी शर्मा जी ज़ेबरा क्रॉसिंग पार कर गए।
ट्रैफिक पुलिस वाले होते तो शर्मा जी कोई गोली दे देते लेकिन नाश जाए चौराहों पर लगे इन सीसीटीवी कैमरों का , जिसने झट से शर्मा जी की स्कूटी सहित फोटो खींची और फट से 2000 का चालान बना दिया। एक तो अप्रैल की गरीबी , उस पर आटा भी गीला हो गया।
अच्छा यहां तक तो फिर भी ठीक था। विद्वानों ने कहा है कि पैसा हाथ का मैल होता है, इसके नुकसान पर ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए।
लेकिन असल शोक तब हुआ जब इन नासपीटे ट्रैफिक वालों ने फोटो सहित चालान शर्मा जी के घर भेज दिया । शर्मा जी का bad luck देखिये कि चालान शरमाईन भाभी ने रिसीव किया। भाभी जी को चालान की भाषा और पेनाल्टी की राशि तो समझ नहीं आई लेकिन चालान के साथ लगी हुई, हेलमेट लगाए महिला की तरफ घूरते हुए शर्मा जी की फ़ोटो उन्हें खूब समझ आई।
परिणाम यह हुआ कि शर्मा जी को आज टिफिन में सिर्फ दो संतरे और कुछ अंगूर मिले । वैसे तो शर्मा जी नवरात्र का व्रत कल से शुरू होना था लेकिन उस महिला की महिमा से इस बार उनका उपवास नवरात्रि से एक दिन पहले ही शुरू हो गया है।
हरि बोल
वैशाख की कहानियाँ (बृहस्पतिवार की कथा)
वैशाख की कहानियाँ (बृहस्पतिवार की कथा)
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दो भाई बहन थे। बहन बृहस्पतिवार के व्रत करती थी। बृहस्पति महाराज आते चार लड्डू चाँदी का कटोरा दे के चले जाते। बहन लड्डू खा लेती कटोरा कोठरी में धर देती।
एक दिन उसकी भाभी ने कोठरी खोल के देखा, कोठरी में जगमग हो रही है। उसने पड़ोसन से कहा, 'मेरी ननद चाँदी का कटोरा कहाँ से लाई, कोठरी जगमग हो रही है।' पड़ोसन बोली, 'अपने आदमी से पूछना।' भाभी बोली, 'मेरा आदमी तो मेरी बात ही नहीं सुनता।' पडोसन बोली, 'बोली दाल का चमचा भात में और भात का चमचा दाल में डाल देना।'
दूसरे दिन भाभी ने दाल का चमचा भात में और भात का चमचा दाल में डाल दिया। लड़की का भाई बोला, 'तू पागल हो गयी है।' भाभी बोली, 'पागल मैं नहीं हो रही, तुम्हारी बहन हो रही है। पता नहीं कहाँ से चाँदी के कटोरे ला-लाकर कोठरी भर रखी है। पूरी कोठरी जगमग कर रही है। इसे घर से निकाल दो।'
भाई जाकर अपनी बहन से बोला, 'जीजी मामा के घर चलें।' बहन जानती थी कैसे मामा के घर ले जा रहा है। बहन बोली, 'भाई जहाँ केले का पेड़ हो और पास में मन्दिर हो वहीं उतार देना।' भाई ने भी हाँ कर दी।
आगे जंगल में एक मन्दिर और केले के पेड़ के पास उसे उतार दिया। बृहस्पतिवार का दिन था लड़की ने केले के पेड़ की पूजा की बृहस्पति की कहानी कही। बृहस्पति महाराज आये चाँदी के कटोरे में चार लड्डू देकर जाने लगे। भाई छिपकर देख रहा था। उसने दौड़कर बृहस्पति के पैर पकड़ लिये। बृहस्पति बोले, 'छोड़ पापी मेरे पैर। यह तो सत् का व्रत करती है चाँदी का कटोरा मैं देकर जाता हूँ, तू इसे कलंक लगा रहा है।'
भाई बहन को लेकर बापस घर आ गया। भाभी दरवाजे पर खड़ी देख रही थी। बोली, 'इसको फिर लेकर आ गया।' भाई बोला, 'इसे कुछ मत कहना, ये बृहस्पति के व्रत करती है, वो ही इसे चाँदी का कटोरा देकर जाते हैं।'
भाभी ने सोचा, 'मैं भी देखूँगी ये कैसे बृहस्पति के व्रत करती है और वे इसे चाँदी का कटोरा देकर जाते हैं।' वो जाकर सारे पड़ोस में सबको बोल आयी, 'सब अपने-अपने बच्चे लेकर आ जाना, मेरी ननद बृहस्पति का व्रत करती है। सबको चार-चार लड्डू और चाँदी का कटोरा मिलेगा।'
बहन ने यह बात सुनी तो वो एक टाँग पर खड़ी होकर बोली, 'हे बृहस्पति महाराज, आज मेरी लाज रखना।' तीन बार ऐसा कहा। बृहस्पति महाराज आये, सबको चार-चार लड्डू और चाँदी का कटोरा देकर चले गये।
हे बृहस्पति महाराज, जैसे उस लड़की की लाज रखी, सबकी रखना।
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