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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

दिल्ली का लाल किला ... शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथ्वीराज चौहान द्वारा बनवाया हुवा लाल कोट है !

अभी तक आपने सुना होगा की ताज महल  असली में राजपूतों का बनाया तेजो महालय शिव मंदिर है  पर क्या आप जानते है  की दिल्ली का लाल किला ... शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथ्वीराज  चौहान द्वारा बनवाया हुवा लाल कोट है !
क्या कभी किसी ने सोचा है की इतिहास के नाम  पर हम झूठ क्यों पढ़ रहे है ??
सारे प्रमाण होते हुए भी झूठ को सच क्यों बनाया जा रहा है ??

हम हिंदुओं की बुद्धि की आज ऐसी दशा हो गयी है की अगर एक  आदमी की पीठ मे खंजर मार कर हत्या कर दी गयी हो और उसको आत्महत्या घोषित कर दिया जाए तो कोई भी ये भी सोचने का प्रयास  नही करेगा की कोई आदमी खुद की पीठ मे खंजर कैसे मार सकता है....यही हाल है हम सबका की सच देख कर भी झूठ को सच माना फ़ितरत बना ली है हमने.....
**दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले प्रथवीराज चौहान द्वारा बनवाया हुवा लाल कोट है**
जिसको शाहजहाँ ने बहुत तोड़ -फोड़ करके कई  बदलाव किये है ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके..लेकिन सच सामने  आ ही जाता है.
* इसके पूरे साक्ष्या प्रथवीराज रासो से मिलते है
*शाहजहाँ से २५० वर्ष पहले १३९८ मे तैमूर लंग ने पुरानी दिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)
* सुवर (वराह) के मूह वेल चार नल अभी भी लाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हमारे
हिंदुत्व के प्रमाण ?? सब जानते हैं इस्लाम सूअर से बेपनाह नफरत करता है...
* किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है राजपूत राजा लोग
गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है)
* दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से कुंड बना है  जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावली है  जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रही है
* मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्वा नही है  दीवानेकहास और दीवाने आम मे.
* दीवानेकहास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है , अपनी प्रजा मे से ९९% भाग को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय  तुला की कल्पना भी नही कर सकता,ब्राह्मानो द्वारा उपदेषित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय  करना हमारे इतिहास मे प्रसीध है
* दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल (आमेर--पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बना हुवा है
* लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैर मुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत  राजाओं ने बनवाए हुए है.
* लाल किले का मुख्या बाजार चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से घिरा हुवा है, समस्त पुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के  ही है ..क्या शाहजहा जैसा मुस्लिम व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाय हम हिंदुओं के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???
* एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन नही है
* ""गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता,  हमीं अस्ता, हमीं अस्ता""--
अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है....इस अनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन  का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता .. और ना ही ये किसी के निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसे ही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके  हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दिया गया है, अगर हिंदू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे......ताकि हम हमेशा ही अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके...सही है ना???..
लेकिन कब तक अपने धर्म को ख़तम करने  वालो की पूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलाते
रहोगे..ऐसे ही....? जागो जागो और इतिहास की सच्चाई को जानो ...मुस्लिम शाशको ने ज्यादातर लुट - पाट,तोड़ फोड़ करके हमारे मंदिरों और महलों को परिवर्तित किया है ,बाबरी मस्जिद  ( जिसे देश भक्त हिन्दू वीरो ने गुलामी के प्रतीक को नेस्तनाबूद कर दिया) धार की भोजशाला जैसे कितने प्रमाण आज भी मौजूद है जो चिल्ला - चिल्ला कर हमसे कह रहे है की देखो इतिहास की सच्चाई . ..............
जय माँ भारती —

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

राज्यलक्ष्मी (महायोग लक्ष्मी) मांत्रोक्त साधना

राज्यलक्ष्मी (महायोग लक्ष्मी) मांत्रोक्त साधना……………….

यह साधना राज्य पक्ष को अपने अनुकूल करने की साधना है। राज्य का तात्पर्य व्यक्ति के जीवन में कर, मुकदमा इत्यादि से आने वाली बाधाओं से है
साधक के लिए आवश्यक है कि वे पूर्ण रूप से सिद्ध लक्ष्मी लघु शंख प्राप्त करें और उसे पूरी तरह से काजल में रंग दे तथा मूंगे की माला द्वारा निम्न मंत्र का पांच माला मंत्र जप करें।
यह प्रयोग मंगलवार के दिन ही किया जा सकता है। मंत्र जप की समाप्ति पर साधक मूंगे की माला को स्वयं धारण करें तथा शंख को काले कपड़े में लपेट कर जेब अथवा बैग में रखें जिस पर किसी कि नजर न पड़े।

मंत्र…………….
॥ ॐ श्रीं श्रीं राज्यलक्ष्म्यै नमः ॥


जब भी आवश्यकता हो, तब उपरोक्त शंख को वार्तालाप करते समय अपने साथ ले जाएं और आप पाएंगे कि स्थितियां आपके अनुकूल हो रही हैं। अनावश्यक रूप से लगने वाली बाधाएं और अड़चनें समाप्त हो रही हैं तथा आपके प्रति सहयोग का वातावरण बनने लगा है। सामान्य साधक भी ऐसे शंख को अपने साथ रखकर जिस दिन मुकदमों में पेशी हो या कहीं अन्य कोई महत्वपूर्ण कार्य हो तो इसका प्रभाव प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।
 

दक्षिणावर्ती शंख………………

दक्षिणावर्ती शंख………………


इस संसार में अनेकों वस्तुएं ऎसी होती है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। ऎसी चमत्कारी वस्तुओं में दक्षिणावर्ती शंख भी एक है। शंख की महिमा और महत्तव प्रत्येक अनुष्ठान में विशेष रूप से हैं। साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं और बाज़ार में आसानी से ये कहीं भी मिल जाते हैं लेकिन दक्षिणावर्ती शंख एक दुर्लभ वस्तु है।

शंख बहुत प्रकार के होतें हैं , लेकिन प्रचलन में मुख्य रूप से दो प्रकार के शंख है प्रथम वामवर्ती शंख......
दूसरा दक्षिणावर्ती शंख ...
वामवर्ती शंख का पेट बांयी ओर को खुला होता है |तंत्र शास्त्र में वामवर्ती शंख की अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्त्व दिया गया है | यह शंख वामवर्ती शंख के विपरीत इनका पेट दायीं ओर खुला होता है | इस प्रकार दायीं ओर की भंवर वाला शंख " दक्षिणावर्ती " कहलाता है |प्रायः सभी दक्षिणावर्ती शंख मुख बंद किये होते हैं | यह शंख बजाये नहीं जाते हैं , केवल पूजा रूप में ही काम में लिए जाते हैं | शास्त्रों में दक्षिणावर्ती शंख के कई लाभ बताये गए है :-

**राज सम्मान की प्राप्ति
**लक्ष्मी वृद्धि
**यश और कीर्ति वृद्धि
**संतान प्राप्ति
**बाँझपन से मुक्ति
**आयु की वृद्धि
**शत्रु भय से मुक्ति
**सर्प भय से मुक्ति
**दरिद्रता से मुक्ति
**दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उसे जिसके ऊपर छिड़क दिया जाये . वह व्यक्ति तथा वस्तु पवित्र हो जाता है |
**सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले शंख को यदि पूर्ण विधि-विधान के साथ लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर में अलग- अलग स्थान पर रखें तो हर तरह की परेशानियों का हल हो सकता है।
**दक्षिणावर्ती शंख को तिजोरी मे रखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।
**वास्तु-दोषों को दूर करता है
**दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती।
**दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। शयन कक्ष में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
** इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
** किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं।

# पूजन की विधि ……………………

तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को विधि-विधान पूर्वक जल में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और भाग्य का दरवाजा खुल जाता है। साथ ही धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। इसका शुद्धिकरण इस प्रकार करना चाहिए- लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें-

“ऊँ श्री लक्ष्मी सहोदरया नम:”

इस मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें और इसके बाद शंख को पूजा स्थान पर स्थापित कर दें।

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दरिद्रता निवारण एवं लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये दीपावली के दिन या फिर किसी शुक्रवार को अष्ट धातु में बने कुबेर एवं श्री यंत्र, लघु नारियल के अतिरिक्त एकाक्षी नारियल, कमलगट्टा का कुछ दाना, 11चित्ति कौडी, 11 गौमती चक्र, गणेश लक्ष्मी बना चांदी का सिक्का, काला लाल गुंजा के दानों को दक्षिणावर्ति शंख में अरवा चावल के साथ रख कर दीपावली के दिन कुमकुम आदि लगा कर दीपावली पूजन करें. पूजा करने के दूसरे दिन उसे लाल वस्त्र में लपेट कर लक्ष्मी की आराधना करते हुए तिजोरी अथवा धन रखने के स्थान में रखें तथा नित्य पूजा करें. ऐसा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है एवं दरिद्रता करा नाश होता है

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