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रविवार, 27 फ़रवरी 2011

"global economic recession",

What if Management brings it to your notice that due to the current "global economic recession", 

"There will be no appraisal for the 

current year"


The following are the perceived reactions of some departments
.


Administration

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Customer Care 

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Marketing 

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Network 

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HR

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Top Executives 

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Security 

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I T 

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Call Centers 

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HEY, WHERE IS Sales GUY???
 
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Its Here::

Sales 
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WHO NEED INCREMENT THIS YEAR PLEASE COME... 

ONE BY ONE ............ ......... 
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Now send to all who are waiting for
INCREMENT

इकरार वो भी करते हैं अब महोब्बत का

अश्क  वो भी अब गिराने लगे हैं
पैगाम उनके भी अब आने लगे हैं
इकरार वो भी करते हैं अब महोब्बत का
जब दुनिया छोड़ के  हम जाने लगे हैं

सिर्फ पाने का मतलब प्यार नहीं होता !

हर ख़ामोशी का मतलब इंकार नहीं होता ,
हर नाकामयाबी का मतलब हार नहीं होता ,
क्या हुआ अगर हम उन्हें पा ना सके 
सिर्फ पाने का मतलब प्यार नहीं होता !

जो गलतियां को बार बार माफ़ करे वो हिंदुस्तान !!!!!!

this is awesome
जब  कोई एक गलती करे तो वो अनजान
जब वो दो गलती करे वो नादान
जब वो तीन गलती करे वो शैतान
जब वो गलतियां पे गलतियां करे  तो वो पाकिस्तान
और जो गलतियां को बार बार माफ़ करे वो हिंदुस्तान !!!!!!

हुस्न से नहीं हुस्नवालों से डर लगता है

हुस्न से नहीं हुस्नवालों से डर लगता है
हमें दिल से नहीं दिलवालों से डर लगता है
सब्र करने के लिए अहले मुक़द्दर ने हमें चुना है
सब्र करने से नहीं सब्र का बांध टूट जाने से डर लगता है
वो एहले इल्म क्या तनक़ीद करेंगे मेरे फसानो पर
उन्हें इल्म से नहीं मुझ दीवाने से डर लगता है
यूँ निभाते रहे दर्द से दर्द के रिश्ते यारों
अब तो दर्द को भी दर्द होने से डर लगता है
वक़्त-ए-नाज़ुक वो हमें सरेराह छोड़ गए
उनके छोड़ जाने पर नहीं उनके वापस लौटकर आने पर डर लगता है
कुछ इस तरह से कर ली है हमने कांटो से मोहब्बत
के चमन के सारे गुलाबों से डर लगता है
मेरे कलाम पर दानिश्वरों ने यूँ कहा
आज बता दो "अक्षय" तुझे किस से डर लगता है
संभल संभल कर जब जुबां जोश में आई थी
तब सब ने कहा बस कर दे
हमें तेरे दर्द के दर्द से डर लगता है
वहां खुशियोंभरा चमन उनका
यहाँ राह तकती अंगारें
वह उनकी सजी है महफ़िल
यहाँ बेबसी के नज़ारे
वहां उनके रोनकें वहां उनके मस्तियाँ
यहाँ अश्क भरे सिसकिया बेसबब बरबादिया
अब बचा ही लो "अक्षय" को यारों उसे इन सब से डर लगता है

मदद करने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठो से अच्छे होते हैं '

रोजाना जो खाना खाते हो वो पसंद नहीं आता ? उकता गये ? 
............ ... ........... .....थोड़ा पिज्जा कैसा रहेगा ? 
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नहीं ??? ओके ......... पास्ता ? 

नहीं ?? .. इसके बारे में क्या सोचते हैं ?

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आज ये खाने का भी मन नहीं ? ... ओके ..
क्या इस मेक्सिकन खाने को आजमायें ? 
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दुबारा नहीं ? कोई समस्या नहीं .... हमारे पास कुछ और भी विकल्प हैं........ 
    
ह्म्म्मम्म्म्म ... चाइनीज ????? ?? 

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बर्गर्सस्स्स्सस्स्स्स ? ??????? 

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ओके .. हमें भारतीय खाना देखना चाहिए ....... 
  ? दक्षिण भारतीय व्यंजन ना ??? उत्तर भारतीय ? 
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जंक फ़ूड का मन है ? 

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हमारे  पास अनगिनत विकल्प हैं ..... .. 
  टिफिन  ? 

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मांसाहार  ? 

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ज्यादा मात्रा ? 

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या केवल पके हुए मुर्गे के कुछ  टुकड़े ?
आप इनमें से कुछ भी ले सकते हैं ... या इन सब में से थोड़ा- थोड़ा  ले सकते हैं  ...



अब शेष  बची मेल के लिए  परेशान मत होओ....



मगर .. इन लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है ...
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इन्हें तो बस थोड़ा सा खाना चाहिए ताकि ये जिन्दा रह सकें ..........



इनके बारे में  अगली बार तब सोचना जब आप किसी केफेटेरिया या होटल में यह कह कर खाना फैंक रहे होंगे कि यह स्वाद नहीं है !! 

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इनके बारे में अगली बार सोचना जब आप यह कह रहे हों  ... यहाँ की रोटी इतनी सख्त है कि खायी ही नहीं जाती.........

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कृपया खाने के अपव्यय को रोकिये 
 
अगर आगे से कभी आपके घर में पार्टी / समारोह हो और खाना बच जाये या बेकार जा रहा हो तो बिना झिझके आप 
 1098 (केवल भारत में )पर फ़ोन करें  - यह एक मजाक नहीं है - यह चाइल्ड हेल्पलाइन है । वे आयेंगे और भोजन एकत्रित करके ले जायेंगे। 
कृप्या इस सन्देश को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें इससे उन बच्चों का पेट भर सकता है 
 
कृप्या इस श्रृंखला को तोड़े नहीं ..... 

हम चुटकुले और स्पाम मेल अपने दोस्तों और अपने नेटवर्क में करते हैं ,क्यों नहीं इस बार इस अच्छे सन्देश को आगे से आगे मेल करें ताकि हम भारत को रहने के लिए दुनिया की सबसे अच्छी जगह बनाने में सहयोग कर सकें - 
  
'मदद करने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठो से अच्छे होते हैं ' - हमें अपना मददगार हाथ देंवे ।

सभी मित्रों को आगे से आगे यह सन्देश भेजें …

मैं अपने दुखों को भी जीता हूँ नवाबों कि तरह

मुझे खैरात में मिली खुशियाँ अच्छी नहीं लगती,
 मैं अपने दुखों को भी जीता हूँ नवाबों कि तरह ........................

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

"काँच की बरनी और दो कप चाय "



जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है ,सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं
 उस समय ये बोध कथा  "काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है । 

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि
वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं .
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी समा गये  फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है ? 
छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ  कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? 
हाँ.अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया  
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार,बच्चे,मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी ,कार, बडा़ मकान आदि हैं ,और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें ,मनमुटाव ,झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , **या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये
तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ...
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो ,वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है...बाकी सब तो रेत है .छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ?  प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया .इसका उत्तर यह है कि ,जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
(अपने खास मित्रों और निकट के व्यक्तियों को यह विचार तत्काल बाँट दो ..मैंने अभी - अभी यही किया है

दोस्ती करें, फूलों से


दोस्ती करेंफूलों से ताकि हमारी जीवन-बगिया महकती रहे।

दोस्ती करेंपँछियों से ताकि जिन्दगी चहकती रहे।

दोस्ती करेंरंगों से ताकि हमारी दुनिया रंगीन हो जाए।

दोस्ती करेंकलम से ताकि सुन्दर वाक्यों का सृजन होता रहे।

दोस्ती करेंपुस्तकों से ताकि शब्द-संसार में वृद्धि होती रहे।

दोस्ती करें,ईश्वर से ताकि संकट की घड़ी में वह हमारे काम आए।

दोस्ती करेंअपने आप से ताकि जीवन में कोई विश्वासघात ना कर सके।

दोस्ती करेंअपने माता-पिता से क्योंकि दुनिया में उनसे बढ़कर कोई शुभचिंतक नहीं।

दोस्ती करेंअपने गुरु से ताकि उनका मार्गदर्शन आपको भटकने ना दें।

10 दोस्ती करेंअपने हुनर से ताकि आप आत्मनिर्भर बन सकें। .


आपकी तो सौ प्रतिशत जिंदगी डूब जायगी।"

एक रोचक कथा हैः
कोई सैलानी समुद्र में सैर करने गया। नाव पर सैलानी ने नाविक से पूछाः "तू इंग्लिश जानता है?"
नाविकः "भैया ! इंग्लिश क्या होता है?"
सैलानीः "इंग्लिश नहीं जानता? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी बरबाद हो गयी। अच्छा... यह तो बता कि अभी मुख्यमंत्री कौन है?"
नाविकः "नहीं, मैं नहीं जानता।"
सैलानीः "राजनीति की बात नहीं जानता? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी और भी बेकार हो गयी। अच्छा...... लाइट हाउस में कौन-सी फिल्म आयी है, यह बता दे।"
नाविकः "लाइट हाउस-वाइट हाउस वगैरह हम नहीं जानते। फिल्में देखकर चरित्र और जिंदगी बरबाद करने वालों में से हम नहीं हैं।"
सैलानीः "अरे ! इतना भी नहीं जानते? तेरी 25 प्रतिशत जिंदगी और बेकार हो गयी।"
इतने में आया आँधी तूफान। नाव डगमगाने लगी। तब नाविक ने पूछाः
"साहब ! आप तैरना जानते हो?"
सैलानीः "मैं और तो सब जानता हूँ, केवल तैरना नहीं जानता।"
नाविकः "मेरे पास तो 25 प्रतिशत जिंदगी बाकी है। मैं तैरना जानता हूँ अतः किनारे लग जाऊँगा लेकिन आपकी तो सौ प्रतिशत जिंदगी डूब जायगी।"
ऐसे ही जिसने बाकी सब तो जाना किन्तु संसार-सागर को तरना नहीं जाना उसका तो पूरा जीवन ही डूब गया।
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मन चाहे दुकान पर जाये या मकान पर, पुत्र पर जाये या पत्नी पर, मंदिर में जाये या होटल पर... मन चाहे कहीं भी जाये किन्तु आप यही सोचो कि 'मन गया तो मेरे प्रभु की सत्ता से न ! मेरी आत्मा की सत्ता से न !' – ऐसा करके भी उसे आत्मा में ले आओ। मन के भी साक्षी हो जाओ। इस प्रकार बार-बार मन को उठाकर आत्मा में ले आओ तो परमात्मा में प्रीति बढ़ने लगेगी।
अगर आप सड़क पर चल रहे हो तो आपकी नज़र बस, कार, साइकिल आदि पर पड़ती ही है। अब, बस दिखे तो सोचो कि 'बस को चलाने वाले ड्राइवर को सत्ता कहाँ से मिल रही हैं? परमात्मा से। अगर मेरे परमात्मा की चेतना न होती तो ड्राइवर ड्राइविंग नहीं कर सकता। अतः मेरे परमात्मा की चेतना से ही बस भागी जा रही है...' इस प्रकार दिखेगी तो बस लेकिन आपका मन यदि ईश्वर में आसक्त है तो आपको उस समय भी ईश्वर की स्मृति हो सकती है।
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जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही, वही मेरा परम धाम है॥-गीता अध्याय

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