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बुधवार, 15 सितंबर 2021

तीसरी रोटी किस की होती है..


*रोटी*   

      *रामेश्वर ने पत्नी के स्वर्ग वास हो जाने के बाद अपने दोस्तों के साथ सुबह शाम पार्क में टहलना और गप्पें मारना, पास के मंदिर में दर्शन करने को अपनी दिनचर्या बना लिया था।*

       *हालांकि घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सभी उनका बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन आज सभी दोस्त चुपचाप बैठे थे।* 

*एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दु:खी थे" आप सब हमेशा मुझसे पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों माँगता हूँ? आज बतला देता हूँ। "*

      *कमल ने पूछा  "क्या बहू तुम्हें सिर्फ तीन रोटी ही देती है ?"*

       *बड़ी उत्सुकता से एक दोस्त ने पूछा? "नहीं यार! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है।* 

       *असल में  "रोटी, चार प्रकार की होती है।"*
 
      *पहली "सबसे स्वादिष्ट" रोटी "माँ की "ममता" और "वात्सल्य" से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।*

       *एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।" उन्होंने आगे कहा  "हाँ, वही तो बात है।*

        *दूसरी रोटी पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और "समर्पण" भाव होता है जिससे "पेट" और "मन" दोनों भर जाते हैं।", क्या बात कही है यार ?" ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।* 

      *फिर तीसरी रोटी किस की होती है....?" एक दोस्त ने सवाल किया।*

      *"तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ "कर्तव्य" का भाव होता है जो कुछ कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है", थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।*

     *"लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?" मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा-* 

        *"चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे ना तो इन्सान का "पेट" भरता है न ही "मन" तृप्त होता है और "स्वाद" की तो कोई गारँटी ही नहीं है", तो फिर हमें क्या करना चाहिये यार?*

      *माँ की हमेशा पूजा करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी मोटी ग़लतियाँ नज़रन्दाज़ कर दो बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।*

        *यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो भगवान का शुकर करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिये बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, बड़ी खामोशी से सब दोस्त सोच रहे थे कि वाकई, हम कितने खुशकिस्मत हैं।*
*।।जय जय श्री राम।।*

    *।।हर हर महादेव।।*

सोमवार, 13 सितंबर 2021

ऋषि पंचमी और श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन में एक खास फर्क है

*माहेश्वरीयों की विशिष्ट पहचान*
*"ऋषी पंचमी"* के दिन रक्षाबंधन

*जय महेश*

*सभी स्वजनों को माहेश्वरी रक्षाबंधन पर्व ऋषि पंचम की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं...*

आम तौर पर भारत में रक्षाबंधन का त्योंहार श्रावण पूर्णिमा (नारळी पूर्णिमा) को मनाया जाता है, लेकिन माहेश्वरी समाज (माहेश्वरी गुरुओं के वंशज जिन्हे वर्तमान में छः न्याति समाज के नाम से जाना जाता है अर्थात पारीक, दाधीच, सारस्वत, गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल आदि एवं डीडू माहेश्वरी, थारी माहेश्वरी, धाटी माहेश्वरी, खंडेलवाल माहेश्वरी आदि माहेश्वरी समाज) में रक्षा-बंधन का त्यौहार ऋषिपंचमी के दिन मनाने की परंपरा है. इस परंपरा का सम्बन्ध माहेश्वरी वंशोत्पत्ति से जुड़ा हुवा है.

विदित रहे की माहेश्वरी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार मनाने की परंपरा चली आई है. एक मान्यता यह है की जब माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई तब जो माहेश्वरी समाज के गुरु थे जिन्हें ऋषि कहा जाता था उनके द्वारा विशेष रूप से इसी दिन रक्षासूत्र बांधा जाता था इसलिए इसे 'ऋषि पंचमी' कहा जाता है. रक्षासूत्र मौली के पचरंगी धागे से बना होता था और उसमें सात गांठे होती थी. वर्तमान समय में इसी रक्षासूत्र ने राखी का रूप ले लिया है और इसे बहनों द्वारा बांधा जाता है.

प्राचीनकाल में शुभ प्रसंगों में, प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन तथा 'ऋषि पंचमी' के दिन गुरु अपने शिष्यों के हाथ पर, पुजारी और पुरोहित अपने यजमानों के हाथ पर एक सूत्र बांधते थे जिसे रक्षासूत्र कहा जाता था, इसे ही आगे चलकर राखी कहा जाने लगा. वर्तमान समय में भी रक्षासूत्र बांधने की इस परंपरा का पालन हो रहा है.

आम तौर पर यह रक्षा सूत्र बांधते हुए ब्राम्हण "येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।" यह मंत्र कहते है जिसका अर्थ है- "दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो" लेकिन तत्थ्य बताते है की माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र बांधते समय जो मंत्र कहा जाता था वह है-

*स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु,*
*विद्याविवेककृतिकौशलसिद्धिरस्तु।*

*ऐश्वर्यमस्तु विजयोऽस्तु गुरुभक्ति रस्तु,*
*वंशे सदैव भवतां हि सुदिव्यमस्तु।।*

(अर्थ- आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें. विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें. ऐश्वर्य व सफलता को प्राप्त करें तथा गुरु भक्ति बनी रहे. आपका वंश सदैव दिव्य गुणों को धारण करनेवाला बना रहे. इसका सन्दर्भ भी माहेश्वरी उत्पत्ति कथा से है. माहेश्वरी उत्पत्ति कथा में वर्णित कथानुसार, निष्प्राण पड़े हुए उमरावों में प्राण प्रवाहित करने और उन्हें उपदेश देने के बाद महेश-पार्वती अंतर्ध्यान हो गये. उसके पश्चात ऋषियों ने सभी को "स्वस्त्यस्तु ते कुशलमस्तु चिरायुरस्तु...." मंत्र कहते हुए सर्वप्रथम (पहली बार) रक्षासूत्र बांधा था. माना जाता है की यही से माहेश्वरी समाज में रक्षासूत्र (रक्षाबंधन या राखी) बांधने की शुरुवात हुई. उपरोक्त रक्षामंत्र भी मात्र माहेश्वरी समाज में ही प्रचलित था/है. गुरु परंपरा के ना रहने से तथा माहेश्वरी संस्कृति के प्रति समाज की अनास्था के कारन यह रक्षामंत्र लगभग विस्मृत हो चला है लेकिन माहेश्वरी संस्कृति और पुरातन परंपरा के अनुसार राखी को बांधते समय इसी मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए.

कुछ माहेश्वरी समाजबंधु रक्षाबंधन का पर्व माहेश्वरी परंपरा के अनुसार "ऋषि पंचमी" को मनाने के बजाय श्रावण पूर्णिमा को ही मना रहे है तो कुछ समाजबंधु यह पर्व मनाते तो ऋषि पंचमी के हिसाब से ही है लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार 2-4 दिन आगे-पीछे रक्षाबंधन कर लेते है जो की उचित नहीं है. शास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार कुछ विशेष दिनों का, कुछ विशेष स्थानों का अपना एक महत्व होता है. दीवाली 'दीवाली' के दिन ही मनाई जाती है, किसी दूसरे दिन नहीं. क्या अपनी सुविधा के अनुसार 'गुढी' गुढीपाडवा के बजाय 2-4 दिन आगे-पीछे लगाई (उभारी) जाती है? तो रक्षाबंधन ऋषिपंचमी के दिन के बजाय किसी और दिन कैसे मनाया जा सकता है? यदि माहेश्वरी हैं तो रक्षा बंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाकर गर्व महसूस करें. यदि माहेश्वरी हैं तो... रक्षाबंधन का त्योंहार "ऋषी पंचमी" के दिन ही मनाये.

*दूसरी एक बात...*

आम तौर पर रक्षाबंधन (राखी) का त्योंहार श्रावणी पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है लेकिन माहेश्वरी समाज में परंपरागत रूपसे रक्षाबंधन का त्योंहार ऋषि पंचमी के दिन मनाया जाता है. "ऋषि पंचमी के दिन रक्षाबंधन" यह बात दुनियाभर में माहेश्वरी संस्कृति (माहेश्वरीत्व) की, माहेश्वरी समाज की विशिष्ठ पहचान बनी है; यह हम माहेश्वरीयों की सांस्कृतिक धरोहर है, विरासत है. माहेश्वरी रक्षाबंधन के इस त्योंहार को भाई-बहन के गोल्डन रिलेशनशिप के पवित्र धार्मिक त्योंहार के रूपमें परंपरागत विधि-विधान और रीती-रिवाज के साथ मनाया जाता है, मनाया जाना चाहिए लेकिन विगत कुछ वर्षों से, कई बहने राखी बांधने के बाद भाई को श्रीफल (नारियल) के बजाय रुमाल या कोई दूसरी चीज दे रही है. क्या भगवान के मंदिर में नारियल फोड़कर चढाने के बजाय रुमाल फाड़ कर चढ़ाया जा सकता है...? हर चीज का अपनी जगह एक महत्व होता है इस बात के महत्व को समझते हुए श्रीफल की जगह 'श्रीफल' ही दिया जाना चाहिए (हाँ, इसे कुछ विशेष सजावट के साथ या ले जाने में सुविधा हो इस तरह से पैकिंग करके दिया जा सकता है). भाईयों को भी चाहिए की बहन की मंगलकामनाओं और दुवाओं के प्रतिक के रूपमें दिए जानेवाले श्रीफल को अपने साथ अपने घर पर ले जाएं और इसे घर के सभी परिवारजनों के साथ प्रसाद के रूपमें ग्रहण करें.

जिन्हे सगी बहन ना हो वे अपने चचेरी बहन से राखी बांधे लेकिन माहेश्वरी संस्कृति के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन केवल माँ-जाई (सगी) बहन से राखी बांधना पर्याप्त है. जीन भाईयोको माँ-जाई बहन और चचेरी बहन ना हो वह, मित्र की बहन से या अपने कुल के पुरोहित से अथवा मंदिर के पुजारी से राखी बंधाए, और यदि कोई बहन को भाई ना हो तो वह भगवान गणेशजी को राखी बांधे.

*ऋषि पंचमी और श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन में एक खास फर्क है :*

श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी बांधकर बहन अपने भाई से स्वयं की रक्षा करते रहने की प्रार्थना करती है ।
जबकि ऋषि पंचमी के दिन बहन उपवास कर भाई को राखी बांधकर भगवान से हमेशा अपने भाई की कुशल-मंगल की कामना करती है ।

आजकल राखी का त्यौहार हाईटेक हुआ जा रहा है जबकि यह विशुद्ध परंपरागत पर्व है और रक्षा के सम्बन्धित है।

*संकलन✍️*


*🙏राम राम सा🙏*

घर की छत का करे सदुपयोग, सब्जी उगाकर बढ़ाये धनयोग, सेहत,धन,संतुष्टि के मिलेगा सरकारी सहयोग


 घर की छत का करे सदुपयोग, सब्जी उगाकर बढ़ाये धनयोग, सेहत,धन,संतुष्टि के मिलेगा सरकारी सहयोग

खेती में आजकल नयी तकनीक के साथ ही अब यह आसान हो गया है. अब इसमें पहले की पारंपरिक खेती की तरह मिट्टी, ढेर सारा पानी और जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है. कृषि क्षेत्र में नयी तकनीकों के समावेश ने खेती को इतना आसान बना दिया है कि अब आप इसे घर की छत से लेकर अपने छोटे से आंगन में लगा सकते है, इसी तरह की एक तकनीक है हाइड्रोपोनिक्स फार्मिंग. इस खेती में मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है. इस तकनीक से खेती करके किसान मोटी कमाई कर सकते हैं.

हाइड्रोपोनिक या मिट्टी के बगैर खेती की ये तकनीक आज से नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से अपनाई जाती रही. ग्रीन एंड वाइब्रेट वेबसाइट के मुताबिक 600 ईसा पूर्व भी बेबीलोन में हैंगिंग गार्डन (Hanging Gardens of Babylon) मिलते थे, जिसमें मिट्टी के बिना ही पौधे लगाए जाते थे. 1200 सदी के अंत में मार्को पोलो ने चीन की यात्रा के दौरान वहां पानी में होने वाली खेती देखी, जो इसका बेस्ट उदाहरण हैं. बिना मिट्टी के थोड़ी सी जगह में तेजी से खेती करने का ये एक बढ़िया तरीका है, जिसमें पानी की जरूरत भी तकनीक की मदद लेने पर कम हो जाती है. हालांकि शुरुआत में इसपर खर्च करना पड़ता है ताकि सारे उपकरण लिए जा सकें और साथ ही इसकी ट्रेनिंग भी जरूरी है. एक मुश्किल ये भी है कि जहां पौधे उगाए जा रहे हों, वहां बिजली की कटौती नहीं होनी चाहिए, वरना पानी न मिलने और तापमान ऊपर-नीचे होने के कारण पौधे कुछ ही घंटों में खराब हो सकते हैं.

कैसे काम करती है तकनीक
इस तकनीक में सिर्फ पानी के जरिये ही सब्जियां उगायी जाती है. इसमें पाइप में पोषणयुक्त पानी बहती है, जिसके उपर पौधे लगाये जाते हैं. पौधों की जड़े उससे अपना न्यूट्रिशन लेती है. बाजार में हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के कई मॉडल उपलब्ध हैं. इस तकनीक से पानी बेहद कम खर्च होता है. इसमें पारालाइट और कोकपिट की जरूरत होती है.

कैसे करते हैं खेती
इस तकनीक में पारालाइट और कोकोपिट को मिलाकर एक छोटे से डिब्बे में रखा जाता है. एक बार डिब्बा में कोकोपिट और पारालाइट का मिश्रण भरने के बाद इसे चार से पांच सालं तक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस डिब्बे में पहले बीज की बुवाई की जाती है. फिर जब इसमें पौधे निकल जाते हैं तब इन डिब्बों को पाइप के उपर बने छेद में रख दिया जाता है, जिन पाइप में पोषणयुक्त पानी बहता है. मजेदार बात यह है कि इसमें काम करने में आपके हाथ गंदे नहीं होते हैं. इसमें डिब्बे के नीचे छेद किया जाता है. इस तकनीक में आप अपनी जगह की उपलब्धता है हिसाब से मॉडल तैयार कर सकते हैं.

अब बात करते हैं इस तकनीक के बारे में. इसके लिए एक आसान-सा उदाहरण हैं. आपने कभी अपने घर या कमरे में पानी से भरे ग्लास में या किसी बोतल में किसी पौधे की टहनी रख दी हो तो देखा होगा कि कुछ दिनों के बाद उसमें जड़ें निकल आती हैं और धीरे-धीरे वह पौधा बढ़ने लगता है.

अक्सर हम सोचते हैं कि पेड़-पौधे उगाने और उनके बड़े होने के लिये खाद, मिट्टी, पानी और सूर्य का प्रकाश जरूरी है. लेकिन असलियत यह है कि फसल उत्पादन के लिये सिर्फ तीन चीजों – पानी, पोषक तत्व और की जरूरत है.
देखा गया है कि इस तकनीक से पौधे मिट्टी में लगे पौधों की अपेक्षा 20-30% बेहतर तरीके से बढ़ते हैं. इसकी वजह ये है कि पानी से पौधों को सीधे-सीधे पोषण मिट्टी जाता है और उसे मिट्टी में इसके लिए संघर्ष नहीं करना होता. साथ ही मिट्टी में पैदा होने वाले खतपतवार से भी इसे नुकसान नहीं हो पाता है.

सब्जी की क्वालिटी बेहतर होती है
हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से खेती कर रहे किसान विशाल माने बताते हैं कि इस तकनीक से सब्जी उगाने से सब्जी की गुणवत्ता काफी अच्छी रहती है. साथ ही इनमें पोषण की कमी नहीं होती है क्योंकि इन्हें पोषणयुक्त आहार देकर उगाया जाता है. उनके फार्म में 11 प्रकार की सब्जियां उगायी जाती है. इनमें बैगन की चार वेराइटी है, साथ ही टमाटर भी लगे हुए हैं. इस तकनीक में मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है कि इसलिए इसमें कीट और बीमारी का प्रकोप ना के बराबर होता है. इसके साथ ही इसकी न्यूट्रिशन वैल्यू भी काफी अच्छी होती है. धनिया का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जमीन में खेती करने पर किसान साल भर में छह बार धनिया उगा सकते हैं. पर इस तकनीक से साल में 15 से 16 बार धनिया की फसल ले सकते हैं.

कितनी होगी कमाई
अगर कोई अपने घर से इस तकनीक को इस्तेमाल करते हैं औ्र सब्जी उत्पादन करते हैं तो महीने में 30-40 हजार रुपए कमाई होगी. अगर कोई एक एकड़ में इस तकनीक का इस्तेमाल करके खेती करते हैं तो चार से पांच लाख रुपए कमा सकते हैं. बंजर जमीन पर भी इसकी खेती की जा सकती है. इसके लिए न्यूनतम 25 हजार से लाख रुपए की लागत से इसकी शुरूआत की जा सकती है.

शुरू करें व्यापार , कमाए बेशुमार ,नही लगेगी पूंजी खास, जेम जैली का करें आगाज


 शुरू करें व्यापार , कमाए बेशुमार ,नही लगेगी पूंजी खास, जेम जैली का करें आगाज

जानिए इस खास प्रॉडक्ट के बारे में जिसकी Demand बहुत ही बढ़ती जा रही है। जैम और जेली एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसको बच्चे बहुत ही बड़े चाव से खाते हैं। साथ ही साथ जवान लोग अपने सुबह के नाश्ते के लिए इसका सेवन करते हैं। सभी मां बच्चों के स्कूल के लंच के लिए Jam and Jelly के साथ रोटी सब्जी पैक करती हैं और बच्चा भी बहुत ही खुशी के साथ अपने लंच को पूरा खत्म कर देता है। हर वर्ग के लोग इसको पसंद करते हैं इसलिए जैम और जेली की Demand Market में बढ़ती ही जा रही है।

इसीलिए भी जाने कि आप कैसे जैम और जेली का व्यापार शुरू कर सकते हैं और महीने के लाखों रुपए कमा सकते हैं।

इस व्यापार को महिलाएं और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। अथवा घर में इस व्यापार को चलाने के लिए दो से 3 सदस्य ही काफ़ी हैं और एक छोटे स्तर के लिए 5 से 8 लोग ही काफी है। अगर आप इसको बड़े लेवल पर करना चाहते हैं तो कम से कम आपको 25 से 30 लोगों की जरूरत पड़ेगी।

इन्वेस्टमेंट
अगर आप जैम और जेली व्यापार को घर पर ही शुरू करना चाहते हैं एक छोटे लेवल के लिए तो इसके लिए आपको कम से कम ₹40000 से लेकर ₹70000 तक का इन्वेस्टमेंट करना ही है और अगर आप इसे छोटे एरिया की डिमांड को पूरा करने के लिए छोटे स्तर पर इस बिजनेस को शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको कम से कम ₹200000 से लेकर ₹400000 तक का निवेश करना होगा।

और अगर आप जैम और जेली व्यापार को एक बड़े स्तर पर शुरू करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कम से कम ₹1000000 रुपए तक का इन्वेस्टमेंट करना होगा।

स्थान का चयन
व्यापार के रूप को देखते हुए इसे घर से किसी कमरे से या 200फीट के साफ बंद स्थान से शुरू किया जा सकता है

निर्माण कच्ची सामग्री
जैम और जेली को बनाने के लिए आपको कई प्रकार की सामग्रियों की जरूरत पड़ती है। जिससे आप कई प्रकार के fruits से जैम और जेली बना सकते हैं। साथ ही साथ आपको पेक्टिन पाउडर, साइट्रिक एसिड, शुगर इत्यादि।इन सभी सामग्रियों को आप अपने इलाके या फिर बाजार में जाकर परचून की दुकानों से खरीद सकते हैं और अगर आपको यह चीजें आपके इलाके में नहीं मिलती है, तो आप इन सब चीजों को ऑनलाइन भी मंगा सकते हैं।

मशीनरी
जेम जैली व्यवसाय के लिए  मिक्सर, जूस एक्सट्रैक्टर, स्लाइसर, पल्पर, कैप सीलिंग मशीन और बर्तन धोने वाली मशीन की आवश्यकता पड़ती है। जो नजदीकी बाजार से आसानी से खरीदी जा सकती है

कानूनी प्रकिया और लाइसेंस
दोस्तों आपको इस व्यापार को शुरू करने के लिए अपनी कंपनी का कोई नाम रखना है, ताकि आप उस नाम के द्वारा अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन करा सकें। इसके साथ ही साथ आपको अपने कंपनी का FSSAI लाइसेंस भी बनवाना है। जो की बहुत ही आसान है।

साथ में आपको gst पंजीकरण भी बनवाना है और यह पंजीकरण आप ऑनलाइन  बनवा सकते हैं। जो की बहुत ही आसान प्रक्रिया है।

गाँव कोई पिछड़े अज्ञानियों के दडबे नही अपितु लाखों करोड़ों वर्षों के शोध का परिणाम थे।


 समाज का शिल्पी:-किसान
छोटा सा सुखी संसार:-गाँव

समझ नही आता कि कहाँ से शुरू करूँ पर निश्चित ही सिद्ध कर दूंगा कि गाँव कोई पिछड़े अज्ञानियों के दडबे नही अपितु लाखों करोड़ों वर्षों के शोध का परिणाम थे।
जिन्हें अपने अपार ज्ञान प्रयोग व दूरदर्शिता के मेल से हमारे ऋषि मुनियों पूर्वजों ने आकार दिया था।

छोटी सी परिधि में न्यूनतम आवश्यकता की सभी वस्तुऐं। उनके उत्पादक। और उत्पादकों को संभालने, सुधारने व पुनर्निर्माण का ठोस सरल ज्ञान।

शायद ऐसी एक भी वस्तु आप न खोज पाओ जो फिर से काम न आ जाती हो। जो गाँव में न बन सकती हो। जिसके कारीगर वहाँ न हो। 36 बिरादरी अर्थात इतने कामों को करने वाले समाज के लोगों का समूह। एक आदर्श गाँव।

खेती बाड़ी, लुहार, चमार, जुलाहा, कुम्हार, नाई,धोबी, बढई, जोगी, पुरोहित, धींवर, भंगी, बनिया, दर्जी, भडभुज्जे, तेली, किसान, मजदूर, पहलवान, दाई, रंगरेज़, वैद्य आदि।

कोई भेद नही कोई ऊँच नीच नही। कोई काम छोटा बड़ा नही। सभी मिलकर, कंधे से कंधा मिलाकर जीवन जीते। एक दूसरे के सुख दुख का हिस्सा होते। न सरकार चाहिए न पुलिस न कानून। न मंदिर मस्जिद का झगड़ा।

बच्चा पैदा होता तो दाई होती। बूढ़ी काकी दादी सब जानती कि क्या खाना क्या परहेज। आठ दस बच्चों को सकुशल जन्म देती माँ। न दवा न काटपीट।

सभी वस्तुए घर की बनी, गाँव की बनी। शुद्ध स्वदेशी।
कपडा खाना घर फर्नीचर बर्तन कृषि यंत्र आदि।

सभी के पशु गाँव के जोहड़ में नहाते, लोग भी नहाते। इतना शुद्ध पानी कि पी भी सकते। बल्कि पीते थे। चमार की भैंस जहाँ नहाती उस पानी को जाट ब्राहमण भी पीता। जातिवाद ढूंढ़कर तो बताओ।

सब सीधे सच्चे पर मूल बात, शिक्षा, सिद्धांत अधिकांश जानते। बड़े बड़े फैसले वही हो जाते। पंचायत में ही। गाँव की बहन बेटी सबकी साझा होती। गाँव तो गाँव ग्वाहंड की भी।

अपार शक्तिशाली पशुओं को वश में करके खेती के काम लेते। सबकी सुध लेते। कुत्ते, कौवे, चिड़िया, गाय सब अपने से दिखते। परिवार का हिस्सा होते। बच्चे भैंसे की नाथ फूटते हुए भी देखता, खुरी ठुकते भी, बधिया होते भी, पैदा होते भी, मरकर गडते भी।

नंगे पाँव खेत में चलता तो केचुंए गिजाई पाँव तले भी आती। हल चलाते समय खरगोश के बच्चों को बचाता भी और  चूहों को फावड़े से फेंकता भी किसान। सर्दी गर्मी बरसात लू शीत लहर तूफान आँधी सब झेलता।

और झेल कर ऐसा हो जाता कि फौजी बेटे की लाश पर गर्व से कहता कि काश और बेटे भी होते तो उन्हें फौजी बनाता। सम्मान को शहीद यदि प्रिय पुत्री भी करती तो हँस कर बलि भी दे देता।

राष्ट्र धर्म की रक्षा का सवाल उठते ही कृषि के औजारों को हथियार तुरंत बना लेता। क्या नही करता था वो अनपढ़ गवाँर किसान मजदूर। पेड लगाता, पानी बचाता, प्रकृति से प्रेम करता। कहता नही करता। वैदिक सिद्धान्तों को जीता। उसके लहू में थी वो बातें जो आज पढे लिखे विकासशील कहे जाने वाले भी नही जानते।

शुद्ध खाता शुद्ध खिलाता, पाप से डरता, भगवान से डरता।
दूसरे के दुख से दुखी और सबके सुख की कामना करता था किसान। कर्ज से डरता था। सच का साथी। सम्मान को चरित्र को सर्वोच्च वरीयता देता। स्वस्थ था किसान।

जब कभी देश पर संकट आया तो अपने हृदय के टुकड़ों को युद्ध की समिधा बना डालता। लड मरता। साहसी सभ्य संस्कारी सादगी का सच्चा उदाहरण किसान।

इतनी खूबियों वाले इस जीव को आजादी के पहले अंग्रेजी हुकूमत ने व आजाद भारत की सरकारों ने सदा निशाना बनाया और आज भीख मांगने पर मजबूर कर दिया है। खेती जो वैदिक कर्म कहा जाता था आज घाटे का सौदा बनाकर खत्म किया जा रहा है। अपनी ही फसल के आधे तिहाई दाम भी समय पर नही मिल पाने के कारण वो शिल्पकार आज भिखारी हुआ जाता है। धन के अभाव में धर्म गौण होकर मृतप्राय हो चला है। फिजूल की सियासत ने मानसिक गुलाम बनाकर कमर तोड दी है। संगठन रहे नही। शक्ति बची नही। संस्कार दारू के ठेके पर झूलते हैं। संबंध कमजोर होकर टूट गये हैं। दर्जनों कर्मखंडो का केन्द्र बिन्दु किसान अधमरा होकर मौत की राह देख रहा है।

गाय जो धुरी थी धरती की। अनाथ होकर तडपती फिरती है। बैल जिसके कंधों पर समाज अर्थशास्त्र टिका था। विलुप्त होने की कगार पर है। सामाजिक ताने-बाने को सस्ती सियासत निगल चुकी है। न बेटियाँ सुरक्षित है न बहुए। टीवी मोबाइल की सहायता से विषबीज मानस पटल पर जहरीले जंगल बनकर भविष्य को निगलने को सज्ज हैं ।

वैदिक परिभाषाओं की हत्या करके धूर्तों ने पाखंडी वातावरण बनाकर असल ज्ञान को विलुप्त सा कर दिया है।

किसान व गाँव चौतरफा साज़िश व षडयंत्रों का शिकार होकर समाप्ति की सीमा पर खड़े हैं।

आओ कुछ विचार करें कुछ प्रयास करे कुछ योजना बनाये कुछ और दिन जीवित रहें ....या तो ये व्यवस्था बदलनी होगी... अब जो करो खुद ही करो...!!!

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