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सोमवार, 18 दिसंबर 2023

इच्छापूर्ति

🌹🌹🌹 *इच्छापूर्ति*🌹🌹🌹

एक घने जंगल में एक इच्छा पूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर कोई भी इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी। यह बात बहुत कम लोग जानते थे क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था।

एक बार संयोग से एक थका हुआ व्यापारी उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गयी।

जागते ही उसे बहुत भूख लगी, उसने आस पास देखकर सोचा- 'काश कुछ खाने को मिल जाए!' तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई।

व्यापारी ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..

काश कुछ पीने को मिल जाए.. तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए अनेक शरबत आ गए। शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा-  कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ। हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा न ही सुना.. 

जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया।

इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे  वह आपको अवश्य मिलेगी।

अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं... क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं।

इंसान ज्यादातर समय सोचता है- कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ.. और वह बीमार हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है - मेरी किस्मत ही खराब है .. और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..!

इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है..! इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए।

विचार जादूगर की तरह होते है, जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..! इसलिये सदा सकारात्मक सोचिए.।

*बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है, जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। पूरा संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की।*

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*


*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*

रविवार, 17 दिसंबर 2023

पुराणों के अनुसार कौन सी ४ वनस्पति संजीवनी बूटी मानी जाती है?

 

शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या याद थी जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे। इस विद्या को सीखने के लिए गुरु बृहस्पति ने अपने एक शिष्य को शुक्राचार्य का शिष्य बनने के लिए भेजा। उसने यह विद्या सीख ली थी लेकिन शुक्राचार्य और उनके दैत्यों को इसका जब पता चला तो उन्होंने उसका वध कर दिया।

रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ आदि के भयंकर अस्त्र प्रयोग से समूची राम सेना मरणासन्न हो गई थी, तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर 4 वनस्पतियां लाएं : मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया।

इन 4 वनस्पतियों में से मृत संजीवनी (या सिर्फ संजीवनी कहें) सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है! इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर 2 पौधों को चिह्नित किया है।

उन्होंने सबसे पहले तो भारतभर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो। उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने ‘संजीवनी’ या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। नतीजा? खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए। जब विभिन्न भाषाओं में इन शब्दों के उपयोग की तुलना की गई, तो मात्र 6 प्रजातियां शेष रह गईं।

इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो ‘संजीवनी’ या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है।

अब शेष बची 2 वनस्पतियां : अब शोधकर्ताओं ने सोचा कि वे कौन-से मापदंड रहे होंगे जिनका उपयोग रामायण काल के चिकित्सक औषधीय तत्व के रूप में करते होंगे। प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सक इस सिद्धांत पर अमल करते थे कि जिस पौधे की बनावट प्रभावित अंग या शरीर के समान हो, वह उससे संबंधित रोग का उपचार कर सकता है।

सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या ‘मृत’ पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही ‘पुनर्जीवित’ हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?

सच्चे वैज्ञानिकों की भांति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी।

एक अन्य खोज : भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के ऊपरी इलाके में एक अनोखे पौधे की खोज की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है।

यह खोज सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रामायण की कहानी में लक्ष्मण की जान बचाने वाली जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया गया है, वह हमें मिल गई है? रोडिओला नाम की यह बूटी ठंडे और ऊंचे वातावरण में मिलती है। लद्दाख में स्थानीय लोग इसे सोलो के नाम से जानते हैं।

अब तक रोडिओला के उपयोगों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। स्थानीय लोग इसके पत्तों का उपयोग सब्जी के रूप में करते आए हैं। लेह स्थित डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई एल्टिट्यूड इस पौधे के चिकित्सकीय उपयोगों की खोज कर रहा है। यह सियाचिन जैसी कठिन परिस्थितियों में तैनात सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।

इसे सेव कर सुरक्षित कर लें, याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी

 इसे सेव कर सुरक्षित कर लें,

याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें : जो आपको हमेशा स्वस्थ और सेहतमंद रखेंगी :-

1. रोगी के रोग की चिकित्सा करने वाले निकृष्ट , रोग के कारणों की चिकित्सा करने वाले औसत और रोग-मुक्त रखने वाले श्रेष्ठ चिकित्सक होते हैं ।

2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।

3. हाई वी पी में - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।

4. लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।

5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।

6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं ।

7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।

8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।

9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।

10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।

11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी ।

12. जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।

13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।

14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।

15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।

16. अस्थमा , मधुमेह , कैसर* से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।

17. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।

18. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।

19. पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।

20. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।

21. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का *स्वर* चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।

22. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।

23. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।

24. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।

25. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।

26. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से *पित्त* बढ़ता है ।

27. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।

28. वात के असर में नींद कम आती है ।

29. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।

30. कफ के असर में पढाई कम होती है ।

31. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।

33. आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।

34. शाम को वात -नाशक चीजें खानी चाहिए ।

35. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए।

36. सोते समय* रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।

37. व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।

38. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।

39. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।

40. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।

41. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।

42. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,

43. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।

44. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।

45. छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।

46. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।

47. मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।

48. सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।

49. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।

50. भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।

धीरे धीरे अब लगने लगा है कि यह समाधान कम और समस्या ज्यादा है। social media

सोशल मीडिया को लेकर गाहे बगाहे मेरे मन में एक छवि बनती है जो गैंग्स ऑफ वासेपुर के एक डायलॉग की याद दिलाती है "ये क्या बवंडर बना दिए हो बे"। धीरे धीरे अब लगने लगा है कि यह समाधान कम और समस्या ज्यादा है। यह समस्या संतुलन के अभाव के कारण है। बहुत कुछ है जो बहुत अच्छा है। इसने एक सशक्त मंच दिया है जिससे कई सितारे बने हैं। लेकिन इसने चिंतन को कुंद भी किया है। 
अभी हाल में यूट्यूब के गुरुओं का दौर है। अनेक आचार्य हैं। अनेक सर हैं। मोटिवेशनल स्पीकरों का सैलाब आया हुआ है। बिजनेस मॉडल किलो के भाव बिक रहे हैं। हर दूसरा आदमी बिजनेस के ज्ञान की गंगा बहा रहा है। बिजनेस कोच सूट पहन कर टाई बांधे ऐसे घूम रहे हैं कि लगता है कि ये लोगों को पकड़ पकड़ कर करोड़पति बना देंगे। एक सज्जन तो अपनी बात ही यहां से शुरू करते हैं कि आप करोड़पति क्यों नहीं हो। एक हैं जो पूरे ब्रह्मांड को बाउंस बैक करवा रहे हैं वहीं एक ज्ञानी मोटिवेशन के इतने इंजेक्शन लगा रहे हैं कि आदमी परसाई की भाषा में कहूं तो बारूद सुखाने लगता है कि बस अब सुबह उठ कर चाय पीते ही क्रांति लानी है। MLM की एक अलग ही दुनिया है। MLM के बाद अब कोर्स बेचे जा रहे हैं। छोटे शहरों के बच्चे जो इंटरनेट पर सक्रिय हैं और जिनका पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठ गया है उनको यह सस्ता ग्लैमर खूब लुभाता है। एक आइकॉन है जो इनको अपनी सुरक्षा का बोध करवाता है। अपने हीन होने का भाव मन में भरता है और फिर अपने कोर्स को सभी समस्याओं के समाधान के तौर पर पेश करता है। मोटिवेशन एक छद्म प्रेरणा का भाव देता है। वो प्रेरणा जो दिशाहीन है। वो प्रेरणा जिसका उद्देश्य सिर्फ "फील गुड" है।  वो प्रेरणा जो उनको सेल्समैन बनने के लिए प्रेरित करती है। मोटिवेशन का अतिरेक हो गया है अभी। दिशाहीन मोटिवेशन आत्मावलोकन के द्वार को बंद करती है। 
मेरा प्रश्न यह है कि इतनी निराशा कहां से आती है कि इतने मोटिवेशनल स्पीकर ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। MLM अब एफिलिएट मार्केटिंग के रूप में प्रस्तुत होता है और मोटिवेशन में आकंठ डूबा युवा व्यवस्था, समाज को गरियाते हुए लग जाता है अपना फंसा हुआ पैसा निकालने में दूसरे को टोपी पहनाने में। मैं व्यक्तिगत रूप से हर प्रकार के व्यवसाय का प्रशंसक हूं। लेकिन अब MBA चाय वाले अपनी छवि के नाम पर घटिया व्यवसाय का मॉडल स्व-प्रेरित युवाओं को बेच कर उनके भविष्य को बर्बाद कर देते हैं तो प्रश्न पैदा होता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कहां खड़ी कि उसके प्रति इस कदर मोहभंग हो गया है। 

मुझे इस देश में शिक्षा की स्थिति पर चिंता है और यह लंबे समय से रही है। मेरा मानना है कि यह संपूर्ण व्यवस्था कचरा है। यह जीवन के उद्देश्य को पहचान करवाने में सर्वथा असफल रही है। इसका एक मात्र उद्देश्य आजीविका के लिए कौशल देना रहा है और उसमें भी यह नितांत असफल रही है। लिहाजा यह मोहभंग हो गया है। और इस क्षोभ से उपजते निर्वात को भरने के लिए दसियों लोग हैं जो आचार्य, कोच, गुरु के रूप में प्रकट हुए हैं। 

हमारी युवा पीढ़ी की हालत यह है कि वो XL शीट में पेज सेट अप करके प्रिंट नहीं निकाल पा रही है। उसे प्रेरणा की नहीं फीडबैक की जरूरत है। स्वयं में निवेश की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है कि किसमें निवेश किया जाना है। मोटिवेशन का हाई डोज यथार्थ को समझने में बाधक है। मेरे पेशेवर गुरु ने मुझे मोटिवेशन कभी नहीं दिया। चुभने वाले शॉट दिए। दोस्ती पक्की रही लेकिन एक कल्पना लोक का निर्माण कभी नहीं होने दिया। 
यूट्यूब के शॉर्ट्स पर जिंदा, दशकों से अद्यतन के अभाव से जूझती पाठ्य पुस्तक मंडल की पुस्तकों से शिक्षित यह पीढ़ी, जिसे शिक्षा ने न रोजगार दिया न दृष्टि को वैकल्पिक गुरु न तलाशे तो क्या करे। 

प्रश्न तो कई दिनों से है लेकिन उत्तर नहीं है। 
जय सियाराम।

ठाकुर जी किसी का उधार नहीं रखते { सत्य घटना }

*ठाकुर जी किसी का उधार नहीं रखते*
*{ सत्य घटना }*
एक बार की बात है, वृन्दावन में एक संत रहा करते थे. उनका नाम था कल्याण. बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे..
एक बार उनके पास एक सेठ आया. अब था तो सेठ, लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था. उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था..

अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये...
उन संत ने कहा, देखो अगर मैं कोई उपाय जानता तो तुम्हे अवश्य बता देता, मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही, जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकु. 
ये मेरे बस में नही है, हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी, इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया..

अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ, ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले..
*तुझे जो कुछ मांगना है जो कुछ कहना है इनसे कह दे ये सबकी कामनाओ को पूर्ण कर देते है..*
अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा... दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया....
कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया, फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा बिहारी जी का धन्यवाद करता..
फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया, वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही...
लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था, तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है..
तो उसने उसे कुछ पैसे दिए, 750 रुपये और कहा कि ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना..
अब बात तो बहुत पुरानी है ये, अब वो भक्त जब वृन्दावन आया तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया..
लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया, लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही, थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे बन गई कोई बात नही...
लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही, अब इधर मंदिर बंद हुआ तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए...
अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है...
उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा, तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है..

तुम उस भक्त को ये रुपया लौटा देना, ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए..
अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की....
अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया, तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आयेंगे....
जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया कि ये बात तो मैं ही जानता था, और तो मैने किसी को बताई भी नही..

सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा, मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है..
ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा, और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला.. 
*तो भक्तो ऐसे है हमारे बिहारी जी, ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते...*
जो एक बार इनकी शरण ले लेता है, फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

गाते समय बार-बार गला बैठ जाता है, क्या करें?

गाते समय बार-बार गला बैठ जाता है, क्या करें?



आपको अपनी गायन तकनीक बदलने की जरूरत है शायद। गला बार बार बैठना ये दर्शाता है कि आप गाते समय गले पर ज्यादा जोर दे रहे हैं जबकि आपको गाते समय नाभि पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए संगीत की भाषा में इसे कहते हैं पेट से गाना वास्तव में इसका अर्थ होता है गहरी सांस के साथ गाना ।शायद आपने अपने प्रारंभिक अभ्यास ठीक से नहीं किए या सीधे गाना गाना ही शुरू कर दिए हैं तो बेहतर होगा कि सबसे पहले किसी संगीत के गुरु से आधारभूत जो अभ्यास होते हैं उनको सीखिए और उनका नियमित अभ्यास करिए और इसके अलावा आपको अपनी जो गायन की रेंज है उसे भी समझना होगा। बहुत बार आप कोई गाना सुनते हैं जो कि ऊपर के स्वर में गाया गया है सुनकर अच्छा लगता है बहुत जल्दी उसे गाने का प्रयास करने लगते हैं जबकि आपको हमेशा अपनी जो आपकी सामान्य आपके गले का विस्तार है उसके अंतर्गत ही गाना चाहिए कम से कम शुरू में प्रारंभिक वर्षों में इसका बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है फिर धीरे-धीरे कुछ वर्षों में अभ्यास करते करते आप अलग-अलग स्केल पर भी गा सकेंगे और अभ्यास करते समय सबसे जरूरी है नियमित अभ्यास प्रतिदिन दूसरी चीज की अपने विश्राम का भी ध्यान दीजिए ।कई बार हल्का गुनगुना पानी पीने से समस्या कम हो जाती है लेकिन तकनीक बहुत महत्वपूर्ण है। ज्यादा जल्दी बाजी ना करें क्योंकि गले को सही से तैयार होने में थोड़ा समय लगता है आप ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकते हैं कि सुबह और शाम दोनो वक्त अभ्यास करिए लेकिन गले को बाकी समय पर विश्राम दीजिए।

नाभी से गाने पर ध्यान दीजिए।

थोड़ा आसन प्राणायाम करिए।

भोजन पर ध्यान दीजिए।

विश्राम पर ध्यान दीजिए।

अपना अभ्यास धीरे धीरे बढ़ायें।

गाते समय गाला बैठ जाने के शरीरिक और मानसिक दोनों तरह के कारण हो सकते हैं।

शारीरिक कारण-

•अपनी क्षमता से अधिक ऊंचे स्वर में गाना

• गला खराब होना

•टॉन्सिल्स की समस्या

•टी.बी. / गले में गिल्टी/अन्य कोई बीमारी

•कान के अंदर कोई समस्या

•गले की नसों का कमज़ोर होना

•अंदरूनी रूप से शारीरिक कमज़ोरी

•लंबी बीमारी

• खाना खाने के बाद तुरंत गाना

•ठंडी व खट्टी वस्तुओं का अत्यधिक सेवन

•काफी देर तक गाने के बाद तुरंत ठंडा पानी पी लेना।

मानसिक कारण—

•आत्मविश्वास कम होना

•भीड़ का भय

•खुद को नकार दिए जाने का डर

•ध्यान केंद्रित न कर पाना

• भूलने की समस्या

•तनाव

•चिंता

•जानकारी व रियाज़ की कमी

•खुद को कमतर समझना

•दब्बू प्रवृत्ति

•बेमन से गाना

• अपनी क्षमता से अधिक करने की कोशिश का असफल हो जाना

•आलोचना न सहन कर पाना

•मूड अच्छा न होना

ऐसे अन्य कई कारण हो सकते है। परंतु यदि आप ठान लें तो इन सब कारणों पर विजय पाई जा सकती है।धीरे धीरे स्तिथियां क़ाबू में आने लगती है तो आपका आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है और गाते समय आपका गला नहीं बैठता।

अकेले में गा कर अपनी आवाज़ को रिकॉर्ड करके उसका विश्लेषण करना ,कमियां ढूढ़ना, और उन्हें दुरुस्त कर के गाने की प्रक्रिया सुधार की ओर ले जाती है।

आलोचना को स्वस्थ रूप से ग्रहण करते हुए खुद में सुधार करने को अपनी आदत बनाएं।जहां कहीं भी मौका मिले उसे सीखें न कि कॉपी करें।

गाना गाने के लिए अपने गले को कैसे ठीक करें?
गीत गाने के लिए मन में दृढ़ता और धैर्य का होना जरूरी है | अपने स्वरों को मीठा बनाने के लिए हर रोज कम से कम 1 घंटा वक्त दें यानि बिना नागा रियाज़ करें | स्वरों की लोच पर ध्यान दें | गाना आपके दिल की गहराइयों से निकले और उसमें ऐसी कशिश हो कि सुनने वाला आपके गाने का लोहा मान ले |

आवाज को मीठा बनाने के लिए लौंग, मुलहठी, काली मिर्च, अदरक, मीठी सौंफ इनमें से कोई एक चीज मिश्री के साथ चूसें | इससे गले में रुकावट डालने वाला कफ साफ हो जाता है और गला भी मीठा हो जाता है | पंसारियों के पास एक जड़ मिलती है, जिसे वरा या वर्रे कहा जाता है | इसका नाम वचा भी है | १ रत्ती शहद के साथ दिन में सिर्फ एक बार चाटें | 40 दिन में आपकी आवाज कोयल की तरह मीठी हो जाएगी | तली चीजें, आचार आदि खट्टा, दही, लाल मिर्च न खाएं |

बैठा गला ठीक करने के घरेलू उपाय | 
Sore Throat Home Remedies 

नमक का पानी 
बैठे गले की दिक्कत को दूर करने में नमक का पानी (Salt Water) बेहद असरदार होता है. नमक के पानी से गरारा करने पर गला साफ होता है, इंफ्लेमेशन कम होती है और मुंह में जमा बैक्टीरिया निकल जाता है. गले में अगर बलगम जमी होती है तो उसे दूर करने में भी नमक का पानी फायदा दिखाता है. 

अदरक की चाय 
छोटे टुकड़ों में अदरक (Ginger) को काटिए और एक कप पानी में उबालकर पी लीजिए. इसमें स्वाद के लिए हल्का शहद भी डाला जा सकता है. इससे बैठा गला ठीक होने लगता है और सूजन से भी राहत मिल जाती है. 


अदरक और नींबू का रस 
अदरक और नींबू के रस के साथ सेवन से गले को आराम मिलता है. आपको 2 से 3 चम्मच अदरक का जूस और बराबर मात्रा में ही नींबू का रस साथ लेकर मिलाना है. इस मिश्रित रस को पीने पर गले की दिक्कतें दूर होती हैं. दिन में 2 बार इस नुस्खे को आजमाया जा सकता है. 

लहसुन और शहद 
लहसुन सूजन को कम करने में असर दिखाता है. गला सूज गया है या फिर गला बैठने (Gala Baithne) के साथ-साथ गले में दर्द है तो लहसुन को हल्का भूनकर शहद के साथ खाया जा सकता है. लहसुन को सादा भी भूनकर खा सकते हैं.  

मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है।

अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जिन लोगों की संविधान में रुचि है, उनके लिए यह खासतौर से महत्वपूर्ण है। इससे इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा कि क्या भविष्य में कोई सरकार जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को दोबारा ला सकती है?

पहले यह समझते हैं कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म कैसे किया। जो काम सत्तर वर्षों से नहीं हो सका और पहले की कोई सरकार नहीं कर सकी, वह कैसे हुआ?

इसी से गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति और संविधान की उनकी गहरी समझ का पता चलता है।

पांच अगस्त 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने CO 272 जारी किया। यह एक राष्ट्रपतीय आदेश जिसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 367 को संशोधित किया गया। इसमें यह कहा गया कि अनुच्छेद 370(3) में वर्णित संविधान सभा की जगह इसे विधानसभा कहा जाएगा। इससे अनुच्छेद 370 को ही हमेशा के लिए दफन करने का रास्ता खुल गया।

राष्ट्रपति के इस आदेश के कुछ ही घंटों के भीतर राज्य सभा ने सिफारिश की कि अनुच्छेद 370 अब अमल में नहीं रहेगा। राज्य सभा ऐसा इसलिए कर सकी क्योंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था इसलिए विधानसभा की शक्ति राज्यपाल में अंतर्निहित थी और संसद राज्यपाल की ओर से कानून बना सकती थी। अगले ही दिन राष्ट्रपति ने CO 273 जारी किया जिसके माध्यम से अनुच्छेद 370 पर अमल न करने की राज्य सभा की सिफारिश को लागू कर दिया गया। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हट गई।

आज सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के फैसले पर मुहर लगा दी।

क्या कोई सरकार इसे दोबारा लागू कर सकती है?

किसी भी सरकार के लिए इसे दोबारा अमल में लाना असंभव होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज CO 273 को वैध माना है। इसलिए अनुच्छेद 370(3) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जिससे 370 अमल में  आ सके।

अगर 370(3) होता तो भविष्य में कोई सरकार पांच अगस्त 2019 से पहले की स्थिति बहाल कर सकती थी। अब अगर कोई सरकार ऐसा करना चाहे तो उसे उसे अनुच्छेद 368 के रास्ते जाना होगा जिसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और पचास प्रतिशत विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए जो कि असंंभव लगता है।

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

नरसिंह कवच संरक्षण पाने के लिए बहुत शक्तिशाली कवच है। नरसिंह कवच एक सुरक्षा कवच या आध्यात्मिक कवच है।

*नरसिंह कवच ।*

नरसिंह कवच संरक्षण पाने के लिए बहुत शक्तिशाली कवच है। नरसिंह कवच एक सुरक्षा कवच या आध्यात्मिक कवच है।
भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार का यह कवच अत्यंत चमत्कारी प्रभाव देने वाला है।

नरसिंह कवच बुरी आत्माओं से सुरक्षा और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ भक्ति और शांति में वृद्धि के लिए मंत्र है।

भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार का यह कवच अत्यंत चमत्कारी प्रभाव देने वाला है।

नरसिंह कवच संरक्षण पाने के लिए बहुत शक्तिशाली कवच है। नरसिंह कवच एक सुरक्षा कवच या आध्यात्मिक कवच है। नरसिंह कवच बुरी आत्माओं से सुरक्षा और भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ भक्ति और शांति में वृद्धि के लिए मंत्र है।

नरसिंह कवच का जप एक व्यक्ति की व्यक्तिगत कुंडली के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा और कर्म संरचनाओं को शुद्ध करता है और सभी प्रकार की शुभता को प्रकट करता है।

नरसिंह कवच सबसे पवित्र हैं, सभी प्रकार की बाधाओं को खत्म कर देते हैं और सभी को सुरक्षा प्रदान करते हैं।

जो व्यक्ति इसका नियमित जप करता है, वह काले जादू, तंत्र, भूत, आत्माओं, नकारात्मक विचारों, व्यसनों और अन्य हानिकारक चीजों से छुटकारा पाता है।

नरसिंह कवच, ब्रह्मानंद पुराण का एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसे महाराजा प्रह्लाद महाराज द्वारा कृत किया गया था।

ऐसा कहा जाता है कि, जो इस मंत्र का जाप करता है, उसे सभी प्रकार के गुणों से युक्त किया जाता है और उसे स्वर्ग के ग्रहों से ऊपर का स्थान मिलता है !
नरसिंह कवच सभी मंत्रों (मंत्र-राज) का राजा है। इस कवच के उच्चारण से ही अति शुभ और अति शीग्र फल मिलता है !

श्री नरसिंह कवच !!

विनयोग-

ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीनृसिंह कवच महामंत्रस्य

ब्रह्माऋिषः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीनृसिंहोदेवता, ॐ

क्षौ बीजम्, ॐ रौं शक्तिः, ॐ ऐं क्लीं कीलकम्

मम सर्वरोग, शत्रु, चौर, पन्नग,

व्याघ्र, वृश्चिक, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-

शाकिनी, यन्त्र मंत्रादि, सर्व विघ्न निवाराणार्थे

श्री नृसिहं कवचमहामंत्र जपे विनयोगः।।

एक आचमन जल छोड़ दें।

अथ ऋष्यादिन्यास –

ॐ ब्रह्माऋषये नमः शिरसि।

ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।

ॐ श्रीलक्ष्मी नृसिंह देवताये नमो हृदये।

ॐ क्षौं बीजाय नमोनाभ्याम्।

ॐ शक्तये नमः कटिदेशे।

ॐ ऐं क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।

ॐ श्रीनृसिंह कवचमहामंत्र जपे विनयोगाय नमः सर्वाङ्गे॥

अथ करन्यास –

ॐ क्षौं अगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ प्रौं तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ ह्रौं मध्यमाभयां नमः।

ॐ रौं अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ ब्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

ॐ जौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।

अथ हृदयादिन्यास –

ॐ क्षौ हृदयाय नमः।

ॐ प्रौं शिरसे स्वाहा।

ॐ ह्रौं शिखायै वषट्।

ॐ रौं कवचाय हुम्।

ॐ ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

ॐ जौं अस्त्राय फट्।

नृसिंह ध्यान –

ॐ सत्यं ज्ञान सुखस्वरूप ममलं क्षीराब्धि मध्ये स्थित्।

योगारूढमति प्रसन्नवदनं भूषा सहस्रोज्वलम्।

तीक्ष्णं चक्र पीनाक शायकवरान् विभ्राणमर्कच्छवि।

छत्रि भूतफणिन्द्रमिन्दुधवलं लक्ष्मी नृसिंह भजे॥

कवच पाठ –

ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते।

ॐ नमः कालाय काल द्रष्ट्राय कराल वदनाय च।

ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!

ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रुं ह्रुं ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।

ॐ आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं ह्रुं फट्।

ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।

ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा।

ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्तम्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः।

ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट्।

ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान ममुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय।

ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा।

ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा।

अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम्।

ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।

ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम्।

नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्।
नरसिंह कवच मंत्र के फायदे

नरसिंह कवच दुनिया में बुराई और अत्याचार के खिलाफ अंतिम सुरक्षा है। इस नरसिंह कवच को स्मरण करने से भक्तों को किसी भी नुकसान से बचा जा सकता है और एक सुरक्षित,स्वस्थ और शांत और सामान्य जीवन प्रदान करता है।

नरसिंह कवच मंत्र भक्तों के कल्याण की रक्षा के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है।
यह एक सर्व अपारदर्शिता पर आधारित है और स्वर्गीय ग्रहों या मुक्ति के लिए या जीवन के उत्थान के लिए सहायक है । इसका जाप करते हुए ब्रह्मांड के भगवान नरसिंह का ध्यान करना चाहिए, जो एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठा है।

वह विजयी हो जाता है ,जो जीत की इच्छा रखता है, और वास्तव में एक विजेता बन जाता है। यह कवच सभी ग्रहों के उलटे प्रभाव को खत्म करता है और समाज में प्रतिष्ठा दिलवाता है !

यह नागों और बिच्छुओं के जहरीले प्रभाव के लिए सर्वोच्च उपाय है, इसके पाठ करने से भूत प्रेत और यमराज भी दूर चले जाते है।

जो नियमित रूप से इस प्रार्थना का जप करता है, चाहे एक या तीन बार (दैनिक), वह विजयी हो जाता है चाहे वह राक्षसों,दुश्मनों या मनुष्यों के बीच हो। हर प्रकार से रक्षा करता है !

वह व्यक्ति, जो इस मंत्र का पाठ करता है, भगवान नरसिंह देव का ध्यान करता है, उसके पेट के रोग सहित उसके सभी रोग समाप्त हो जाते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र‘ – भगवान शंकर की प्रसन्नता प्राप्ति का अमोघ साधन🔱

*🕉️🔱‘शिव तांडव स्तोत्र‘ – भगवान शंकर की प्रसन्नता प्राप्ति का अमोघ साधन🔱🕉️*


*मान्यता है कि शिवभक्त रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले चलने को उद्यत हुआ उस समय अपनी शक्ति पर पूर्ण अहंकार भाव में था। महादेव को उसका यह अहंकार पसंद नही आया तो भगवान् शिव ने अपने अंगूठे से तनिक सा जो दबाया तो कैलाश फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया। शिव के अनन्य भक्त रावण का हाथ दब गया और वह आर्त्तनाद कर उठा – “शंकर शंकर” – अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए, और स्तुति करने लग गया; जो कालांतर में शिव तांडव स्तोत्र कहलाया।*

*इस स्रोत की भाषा अनुपम और जटिल है, पर महाविद्वान रावण ने इसे कुछ पलो में ही बना दिया था। शिव स्तुति और प्रसन्नता में यह स्तोत्र राम बाण है।*

*शिवताण्डव स्तोत्र स्तोत्रकाव्य में अत्यन्त लोकप्रिय है। यह पञ्चचामर छन्द में आबद्ध है। इसकी अनुप्रास और समास बहुल भाषा संगीतमय ध्वनि और प्रवाह के कारण शिवभक्तों में प्रचलित है। सुन्दर भाषा एवं काव्य-शैली के कारण यह स्तोत्र विशेषकर शिवस्तोत्रों में विशिष्ट स्थान रखता है।*

*🕉 #शिवताण्डव_स्तोत्र🕉*

*🚩जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले*
*गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुंगमालिकां*
*डमडुमडुमडुमनिनादवड्डमर्वयं*
*चकार चण्डताण्डवं तनोतु* 
*नःशिवः शिवम्।🚩*

`शिवताण्डवस्तोत्रम्` के रचयिता दशानन रावण ने इक्कीस श्लोकों के इस ताण्डव-स्तोत्र का शुभारम्भ भगवान शिव के ताण्डव-रत रूप की अभ्यर्थना (प्रार्थना) करते हुए किया है। शिव की घनी रुक्ष (रूखी ) जटा को घने जंगल की उपमा देते हुए वह कहता है कि जटा रुपी सघन वन से निकलती हुई गंगा के प्रवाह से पवित्र किये हुए स्थल पर, गले में विशाल सर्पों की माला पहने हुए और डमरू से डम-डम डम-डम का महाघोष करते हुए शिव ने प्रचंड ताण्डव किया, वे शिव हमारा कल्याण करें, हमारे हितों की रक्षा करें।

रावण ताण्डव-नृत्य करते हुए अपने आराध्य पर मुग्ध है और भलीभांति जानता है कि विकराल सर्पमाल धारण करने से भयंकर दिखने वाले भगवान शिव वास्तव में शुभंकर हैं, शंकर (शुभ करने वाले) हैं।

*🚩जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी*
*विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि*
*धगद्धगद्धगज्वाललाटपटापावके*
*किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम।🚩*

इस श्लोक में रावण ने शिव के सौम्य और रौद्र रूप का वर्णन किया है। यहाँ शिव की जटा को एक कड़ाह (कड़ाही जैसा एक बड़ा पात्र) की उपमा देते हुए वह कहता है कि जटा में बड़ी द्रुत (तेज) गति से चक्कर लगाती हुई देवनदी गंगा की चंचल लहरें लता की तरह (लिपटी हुई बेल की भांति) लग रहीं हैं व उनके शीश (सिर) पर प्रदीप्त हो रही हैं।

दूसरी ओर उनके भाल-पट पर अर्थात् माथे पर धक धक करती हुई भीषण अग्नि प्रज्वलित हो रही है। अपने शीश (सिर) पर वे बाल-चन्द्रमाँ (अर्ध-चन्द्र) धारण किये हुए हैं। स्तुतिकार कहता है कि ऐसे भगवान शंकर में हर पल मेरी प्रीति बनी रहे। जिससे हमारी प्रीति होती है, हम सदा उसके बारे में सोचा करते हैं, उसी का चिंतन किया करते हैं।

शिवजी रावण के आराध्य हैं । इस श्लोक के द्वारा वह दो बातें विशेष रूप से कहना चाहता है, एक तो यह कि भगवान शिव के स्वरूप में सभी विरोधाभासी तत्वों का समन्वय और संतुलन पाया जाता है, जैसे अग्नि भाल पर, चन्द्रमाँ कपाल पर। और दूसरी बात यह कि वह हमेशा उनके चिंतन में रत रहने का इच्छुक है।

*🚩धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर*
*स्फ़ुरद्दिगन्तसंततिप्रमोदमानमानसे*
*कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि*
*क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।🚩*

इस श्लोक में रावण अपने आराध्य भगवान शिव की महिमा का गान करते हुए कहता है कि उनकी एक कृपा-दृष्टि भर से निरंतर आने वाली दुस्सह (जिसे सहन करना अति कठिन हो) विपत्तियों का सार्थवाह (कारवां) रुक जाता है। शिव तथा शक्ति दोनों एक ही हैं। वे पर्वतराज-पुत्री पार्वती के सुन्दर और सनातन लीला-सहचर है, उमाकांत हैं, देवी की विलास-लीला में उनके साथी हैं।

देवी उल्लसित हो रही है और सभी दिशाओं में दूर दूर तक उनके उल्लास की छटा विस्तार से फैली है जिसे देख कर शिव का मन प्रमुदित हो रहा हैं । रावण अभिलाषा करता है कि धराधरेन्द्रनन्दिनी यानि पर्वतेश-पुत्री पार्वती के चारु हास-विलास से दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है, जिनकी कृपादृष्टि मात्र से निरंतर आने वाली दुस्सह आपदाएं नष्ट हो जाती हैं, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में अर्थात् महादेव में मेरा मन विनोद प्राप्त करे l

*🚩जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणा मणिप्रभा*
*कदम्बकुमकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे*
*मदान्धसिन्धुस्फूर्त्त्वगुत्तरीयमेंदुरे*
*मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि |🚩*

अपने आराध्य भगवान शिव के लिए रावण के मन में इतनी निष्ठां है कि वह सदा उनके चिंतन में मग्न रहना चाहता है और भक्तों के मनरंजन एवं मनभावन भूतनाथ, जिनकी जटा में सर्प कुंडलित रहता है, के बारे में वह कहता है कि जटा से लिपटे मणिधारी सर्प की मणि के पीले प्रकाश से दिशाएं इस तरह परिव्याप्त हो गई हैं, मानो दिशा कोई सुंदरी स्त्री हो और उस दिशा रुपी सुंदरी के मुख पर केशर-चन्दन-हल्दी का अनुलेप मल दिया गया हो और वह पीली प्रभा से जगमगा उठी हो। भगवान शंकर के शरीर से लिपटा हुआ विशाल सर्प वासुकि मणिधारी महासर्प है।

एक ओऱ तो शिवजी का ऐसा अनुपम ऐश्वर्य है, और दूसरी ओर वे गजचर्म का उत्तरीय ओढ़े हुए हैं तथा उनकी मस्ती में वह उत्तरीय (उपरना या पटुका) लहरा रहा है, जो गजासुर की मेदुर (चर्बीयुक्त या वसायुक्त) त्वचा से बना हुआ है, जिसे शिवजी ने मार दिया था। रावण कहता है कि ऐसे महिमामय भूतनाथ में मेरा मन अद्भुत विनोद प्राप्त करता रहे। वह स्तुति करता है, हे भूतनाथ! मेरे मन को अपनी अद्भुत छवि के अनुपम आनन्द से भर दो!

*🚩सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर*
*प्रसूनधूलिधोरणीविधूसरांगघ्रिःपीठभूः*
*भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः*
*श्रीयै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः।🚩*

भगवान शिव इंद्र आदि समस्त देवताओं द्वारा पूजित एवं नमस्कृत हैं। इंद्र आदि सभी देवता जब शिवजी के चरण-स्पर्श के लिए उनके कदमों में झुकते हैं, तब देवताओं के मुकुटों पर सजे हुए पुष्पों से फूलों का पराग झड़ झड़ कर उनके चरणों को पुष्परज (पराग) से रंजित कर देता है। शिव के पदतल सदैव देव-मुकुट के पुष्पों की पराग से पिंगल रंग के हो जाते हैं । वे अपने केशों को ऊपर उठा कर उनकी जटा बनाते हैं और उस उठी हुई जटा को बांधने के लिये वे सर्पराज (वासुकि) को लपेट कर कस लेते हैं।

बड़ा मनोरम स्वरूप है शिवजी का। रावण स्तवन (स्तुति) करते हुए कहता है कि इस प्रकार पुष्परज से धूसरित पादपृष्ठ वाले तथा भुजंगराज से बंधी हुई जटा वाले भगवान चंद्रशेखर मेरी लक्ष्मी पर कृपा करें, जिससे वह चिर काल (दीर्घ काल) तक बनी रहे, अक्षुण्ण रहे। सप्तद्वीपाधिपति रावण की स्वर्ण लंका में अकूत सम्पत्ति थी, अथाह वैभव था, उसके पास पुष्पक विमान भी था। लक्ष्मी चंचल होती है, अतः वह अभ्यर्थना करता है कि वह वैभव चिर काल तक बना रहे।

*🚩ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा*
*निपीतपंचसायकम् नमन्निलिम्पनायकम्*
*सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरम्*
*महाकपालि संपदे शिरो जटालमस्तु नः।🚩*

शिवजी के भाल पर स्थित तीसरा नेत्र अग्नि का निवास-स्थान है। रावण का कहना है कि भाल के फलक पर जलती हुई अग्नि की लपटों में जिन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया तथा इंद्र (निलिम्पनायक) का गर्व से भरा हुआ शीश झुका दिया (क्योंकि देवराज इंद्र ने शिवजी को मोहित करने व उनके तपोभंग की योजना बनाई थी तथा इस आशय से कामदेव को उनके सम्मुख भेजा था), चन्द्रमाँ की अमृतवर्षी शीतल किरणों से जिनका शीश सुशोभित है , साथ ही जो महामुण्डमाली हैं, जटाजूटधारी हैं, ऐसे भगवान शिव से मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे हमारी श्री, हमारा विपुल वैभव सदा बनाये रखें।

*🚩करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्जवल*
*द्धनंजयाहुतीकृतप्रचंडपंचसायके*
*धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रक*
*प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।🚩*

विकराल भाल-पट की धग् धग् धधकती अग्नि में जिन्होंने प्रचंड पुष्पशर (पुष्प है धनुष जिसका अर्थात् कामदेव) को आहुति बना डाला, भस्मीकृत कर दिया, जो गिरिराजनन्दिनी (पर्वतराज-पुत्री पार्वती) के अंगों पर, उनके वक्ष-कक्ष पर सुगन्धित द्रव्यों तथा वन-धातुओं से श्रृंगारिक चित्र-रचना करने वाले चतुर चितेरे हैं, कुशल शिल्पी हैं, उन भगवान त्रिनयन में मेरा प्रेम, मेरी धारणा सदा बनी रहे।

एक ओर कामदेव को भस्मीभूत करना व दूसरी ओर `धराधरेंद्रनन्दिनी` अर्थात् पार्वती के साथ शृंगार-लीला करना, दोनों में यद्यपि विरोधाभास दिखाई देता है, किन्तु इससे अभिप्राय यह प्रकट करने से है कि शिव गृहस्थ होते हुए भी, श्रृंगारलीला में रत दिखते हुए भी इन सभी भावों से निर्लिप्त रहते हैं, वे मायापति हैं, माया को वश में रखते हैं, उसमें लिप्त नहीं होते। वे माया से अतीत हैं।

*🚩नवीनमेघमण्डली निरुद्ध स्फुरत्*
*कुहू निशीथिनीतमःप्रबंधबद्धकन्धरः*
*निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः*
*कलनिधानबन्धुरः श्रियं जगत् धुरन्धरः।🚩*

सागर-मंथन के समय सागर से निकले कालकूट विष का पान करने वाले भगवान नीलकण्ठ के गले की श्यामलता (कालिमा) की उपमा रावण ने मेघाच्छादित अमावस्या की अर्ध-रात्रि से दी है, जब आकाश में काली घटा के छा जाने से अँधियारा और भी घना हो जाता है।

रावण इस श्लोक में शिवजी के नीलकण्ठ का चित्रण करते हुए स्तुति करता है कि नवीन मेघमाला (बादल-समूह) से आच्छादित, अमावस्या के अर्धकालीन सघन अंधकार की सी कालिमा जिनके गठीले (सुपुष्ट) गले पर अंकित है (अर्थात् गले का रंग गहरा नीला है) और जिन्होंने देवसरिता गंगा को धारण किया है, जो गजचर्म से सुसज्जित हैं तथा चन्द्रकला के सुन्दर आगार (आश्रयस्थान) हैं व जगत के आधार हैं, वे शिव मेरी लक्ष्मी का विस्तार करें।

*🚩प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा*
*वलंबीकंठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्*
*स्मरच्छिदम् पुरच्छिदम् भवच्छिदम् मखच्छिदम्*
*गजच्छिदान्धकच्छिदम् तमन्तकच्छिदम्* 
*भजे |🚩*

यहाँ इस श्लोक में रावण ने भगवान शिव के नीले कण्ठ का एक अन्य चित्रण प्रस्तुत किया है। शिव के गले की श्यामलता की उपमा नीलकमल की सांवली प्रभा से दी है इसके अलावा शिवजी को विविध नामों से पुकारते उनका स्तवन किया है। इन नामों का आधार है भगवान शिव के द्वारा किये गए वे कार्य, जिनसे देवताओं तथा मनुष्यों की बाधाएं और भय दूर हुआ।

रावण का कथन है, जिनका कंठ-प्रदेश (गले का बाहरी भाग) पूर्ण विकसित नीलकमल की श्यामल आभा से दीप्त है तथा जो स्मर यानि कामदेव, त्रिपुर तथा भव (जन्म-मरण रुपी संसार), के भय व बंधन को समाप्त करने वाले हैं, जो दक्ष द्वारा अभिमान के साथ किये गए यज्ञ के नष्टकर्ता हैं, जो गजासुर, अंधकासुर का संहार करने वाले हैं, तथा यमराज अर्थात् मृत्यु को भी नष्ट करने वाले हैं, ऐसे भगवान शिव की मैं आराधना करता हु!

*🚩अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमन्जरी*
*रसप्रवाहमाधुरीविज्रिम्भणामधुव्रतम्*
*स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं*
*गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं* 
*भजे।🚩*

दसवें श्लोक में भगवान शिव के लोकरंजक, लोकमंगल रूप को वर्णित किया गया है । यहाँ समाज का मंगल करने वाली, भव्य कलाओं की उपमा मंजरी (अविकसित फूलों या पत्तों के गुच्छे) से की है। जैसे भ्रमर मंजरी के मकरंद का पान करने के लिए अपना मुंह खोले हुए तत्पर रहते हैं, कुछ इसी तरह भगवान शिव कला रुपी मंजरी का रसपान करने के लिए तत्पर रहते है। भाव यह है कि भव्य कलाएं, लोकहितकारी कलाएं उन्हें प्रसन्न करती हैं और उन्हें महादेव का वरद आशीष मिलता है।

वे विविध कलाओं के प्रवर्तक भी कहे जाते हैं। नाट्य-संगीत आदि कलाओं के वे आदि गुरु हैं। अतःउन्हें कला रुपी मंजरी के पराग की मिठास का रसपान करने वाला रसिक बताते हुए आगे उनके मंगलकर्ता को रूप प्रकाशित करते हुए रावण कहता है कि वे कामदेव, भवभय, त्रिपुर, दक्ष-यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर व यमराज के भी अंतक अर्थात् अंत करने वाले प्रभु हैं, मैं उनकी आराधना करता हूँ।

*🚩जयवदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस*
*द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्*
*धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदन्गतुङ्गमङ्गल*
*ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचंडताण्डवः शिवः |🚩*

इस श्लोक में ताण्डवनृत्य करते हुए भगवान शिव का चित्रण है, जो इस प्रकार है। जिनके मस्तक पर बड़े वेग से सर्प कुंडलाकार चक्कर लगा रहा है और उसके फुफकारने से, जिनके ललाट अर्थात् भाल की अग्नि और भी अधिक प्रचंडतर हो कर धधक उठती है, जो धिम धिम की ध्वनि से बजते हुए मृदंग के गंभीर घोष की ताल से ताल मिला कर प्रचंड ताण्डव कर रहे हैं, उन भगवान शिव की जय हो!

*🚩दृषद्विचित्र तलप्योर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो*
*र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुर्हृद्विपक्षपक्षयोः*
*तृणरविन्द्चक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः*
*संप्रवर्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् |🚩*

भगवान शिव की भक्ति में रत रावण जानता है कि वे सभी के प्रति समभाव रखते हैं, सबसे प्रेम करते हुए भी सबसे निलिप्त रहते हैं।

उसके मन में यह अभिलाषा जागृत होती है कि उन्हें पाने के लिए, उनका सानिध्य पाने के लिए मैं भी उनके जैसा समभाव सब के प्रति रख पाउँ तो कितना अच्छा हो! इसलिए वह सोचता है कि मैं कब पत्थर की शय्या और सुन्दर बिछौनों में, सर्पमाला और मोतियों की माला में अंतर न करते हुए उन दोनों के प्रति एक ही अनासक्त दृष्टि और निलिप्त भाव रखूंगा! कब मित्र एवं शत्रु को समतुल्य समझ कर उनसे अप्रभावित अंतःकरण वाला बनूँगा तथा कमलनयनी रमणियों को तृणवत् (घास की तरह) तुच्छ समझूंगा।

ह्रदय में उठती हुई कामनाओं से मैं कब ऊपर उठ पाउँगा! क्या मैं किसी साधारण प्रजाजन और पृथ्वी के किसी चक्रवर्ती सम्राट के प्रति एक-सी दृष्टि, एक सा भाव रख पाउँगा? मेरे आराध्य के लिए तो दोनों ही समतुल्य हैं, तो फिर मैं कब इन सभी में समान भावना रखते हुए अपने भगवान सदाशिव की आराधना करूंगा!

*🚩कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्*
*विमुक्तदुर्मतिः सदा* *शिरःस्थमञ्जलिं वहन्*
*विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः*
*शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी* 
*भवाम्यहम् |🚩*

रावण के भक्त-मन की यह साध है कि मैं भगवान शिव को निरंतर भजता रहूं। बस गंगाजी की गोद में, गंगा के कछारों में, किसी वन-उपवन में तृण-लताओं से आच्छादित छोटा सा कुटीर हो, जहाँ मैं सब कुछ बिसार कर केवल शिव-मन्त्र के जाप का सुख पाऊं!

अपने ह्रदय की इसी कामना को, अपनी आत्मा की इसी पुकार को रावण इस प्रकार इस श्लोक में ध्वनित करता है। वह कहता है कि कब निलिम्पनिर्झरी यानि सुरसरिता गंगा के तटवर्ती किसी कुंजबन में, पर्णकुटीर में निवास करता हुआ मैं अपने मन में उठने वाले दुर्विचारों को छोड़ पाउंगा तथा अपने माथे से अंजलि लगा कर शिव को भजूँगा!

इधर उधर घूमते नेत्रों वाला, चंचल नेत्रों वाला मैं कब अपने माथे पर पवित्र तिलक (त्रिपुण्ड्र तिलक) अंकित करूंगा, जो भाल पर भूषण- सा प्रतीत होगा । और फिर शिव का मंत्रोच्चार करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा ! अपने आराध्य शिव की निकटता उसे सुलभ हो, वही उसका सुख है।

*🚩निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका*
*निगुम्फनिर्भरक्षन्मधूष्णीकामनोहरः*
*तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीमहर्निशम्*
*परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चयः।🚩*

इस श्लोक में रावण ने बताया है कि भगवान शिव परम पद (मुक्ति) के देने वाले भी हैं तथा परम श्री के प्रदाता भी हैं। साथ ही शिव व शक्ति की एकता पर भी प्रकाश डाला है।

पार्वती को `निलिम्पनाथनागरी` कहा है, निलिम्पनाथ अर्थात् देवताओं के नाथ शिवजी हैं, क्योंकि देवता इन्हीं से सनाथ होते हैं, शिव ही देवों पर विपत्ति आने पर उनके हेतु राक्षसों का संहार करके उन सभी को भयमुक्त करते हैं। नागरी अर्थात् चतुर स्त्री। देवी पार्वती शिवजी की कुशल गृहिणी और उनकी लीलाओं में उनका साथ देने वाली पटु सहधर्मिणी हैं।

अतः उन्हें `निलिम्पनाथनागरी` कहा है। वर्णन इस प्रकार है कि साजसज्जा में निपुण देवी पार्वती के केशपाश में चमेली के फूलों की पुष्पमाला गुंथी है। इन फूलों से झरते हुए मधुकणों से, झरते उए परागकणों से भगवान निलिम्पनाथ (शिव) का स्वरूप मनोहारी लग रहा है, शिवप्रिया के फूलों की सौरभ से शिव का अंग अंग सुरभित हो उठा है।

इसके अलावा अपने अंगों से निकलते हुए तेजपुंज की आभा से वे देदीपमान हो रहे हैं। रावण प्रार्थना करता है कि दिनरात हमें मुदित रखने वाली, शोभाशालिनी परम श्री तथा परम पद के देने वाले, सौरभमय एवं कांतिमय शिव हमारी रक्षा करें।

*🚩प्रचंडवाडवानलप्रभाशुभप्रचारिणी*
*महाष्टसिद्धिकामिनीजनावहूत जल्पना*
*विमुक्तवामलोचनो विवाहकालिकध्वनिः*
*शिवेति मन्त्रभूषणो जगज्जजयाय* 
*जायताम् |🚩*

इस श्लोक में रावण पवित्र शिवमंत्र के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा व्यक्त करते हुए उसकी जयकार करता है। यहां वर्णन शिव-पार्वती के विवाह के समय का है। इस दिव्य विवाह में सभी दिव्य विभूतियां उपस्थित थीं । रावण का कथन है कि महा अष्टसिद्धियाँ साक्षात् स्त्री रूप धारण करके वहां आईं थीं।

इन महा अष्टसिद्धियों को रावण ने प्रचंड पापनाशिनी बताते हुए उन्हें बड़वानल की उपमा दी है। समुद्र के भीतर स्थित ज्वालामुखियों के विस्फोट से समुद्र में लगने वाली आग को बड़वानल कहते हैं, जो अतिशय विनाशकारी होती है, कई बार तो टापू के टापू उसके ज्वार में बह जाते हैं। यह सिद्धियां भी ठीक इसी तरह पापों को नष्ट कर देती हैं तथा उनके नष्ट हो जाने से सर्वत्र शुभ ही शुभ बच जाता है व शुभत्व का ही आगे प्रसार होता है।

यह `बड़वानल` जैसी पापनाशिनी सिद्धियां सिद्धिदात्री देवियों के रूप में साक्षात् विवाह में आईं और उन्होंने तथा अन्य चंचल नेत्रों वाली देवांगनाओं ने, विवाह-काल में दूल्हे बने हुए शिवजी का नाम ले लेकर, सस्वर मंगल गीत गाये व शिवमंत्र की पुण्य ध्वनि का घोष किया। उनके मंगल-गीतों में शिव नाम की गिरा गूंजी।

उस मंगल-निनाद में जिस शिवमंत्र की ध्वनि मुखरित हुई , स्तुतिकार उसे `मन्त्रभूषण` कह कर उसको नमन करता है, उस शिवमंत्र को सभी अन्य मन्त्रों का सिरमौर मानता है और कहता है कि यह मन्त्र जगत में दिग्विजय करें अर्थात् हम शिवमन्त्र का घोष करते हुए दिग्विजय करें। सर्वत्र निर्बाध गति से इसका प्रसार हो, जिससे लोक का मंगल हो । भगवान शिव की जय हो ! शिवमन्त्र की जय हो !

*🚩इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमस्तवम्*
*पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति सन्ततम्*
*हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं*
*विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य* 
*चिन्तनम्।🚩*

इस श्लोक में रावण ने शिव-चिंतन की गरिमा तथा महिमा पर प्रकाश डाला है। वह कहता है कि जो कोई भी व्यक्ति नियमित रूप से इस उत्तम स्तवन का पाठ अथवा स्मरण करता है, या इसे श्रवण करता है, वह सदैव परम शुद्ध व निर्मल रहता है। समस्त जगत के गुरु भगवान हर यानि शंकर की कृपा से अपनी निर्मल भक्ति में वह अविलम्ब (जल्दी) प्रगति करता है।

शम्भु उसे अपनी शरण में ले लेते हैं। शिवनिष्ठ व्यक्ति अथवा शिवभक्त की अन्य गति या दुर्गति नहीं होती। यह बात निश्चित है कि श्रीशंकर का चिंतन मनुष्य की मोहमाया को हर लेता है, देहधारी यानि मनुष्य का मोह दूर करता है एवं शिवभक्त इस प्रकार मायाजाल से मुक्त हो कर, निष्पाप हो कर, अंत में शिव-शरणागति पाता है।

*🚩पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं*
*यःशम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे*
*तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां*
*लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः।🚩*

शिवताण्डवस्तोत्रम्` के सत्रहवें और अंतिम श्लोक में रावण इस स्तोत्र या स्तवन की महत्ता बताते हुए कहता है कि प्रदोषकाल में अर्थात् संध्या के समय, पूजन के उपरांत (पूजा के बाद) इस शिवभक्तिमय स्तोत्र का पाठ जो कोई पूजापरायण व्यक्ति करता है, उस भक्त को शिवजी श्रेष्ठ हाथी-घोड़ों से युक्त रथ तथा सदैव अचल रहने वाली, सुमुखी और स्थिर लक्ष्मी प्रदान करते हैं, चंचला लक्ष्मी भी उसके पास अचंचल अर्थात् अचल बन कर स्थिर रहती है।

तात्पर्य यह है कि वह व्यक्ति विपुल वैभव दीर्घ काल तक भोगता है तथा लोक में सम्मानित होता है। लक्ष्मी को सुमुखी कहने से अभिप्राय है लक्ष्मी के सानुकूल रहने से। लक्ष्मी अनुकूल न रह कर यदि प्रतिकूल रहती है, तो व्यक्ति को धनवान तो बनाती है, किन्तु उसकी शुभ बुद्धि को हर लेती है तथा अंत में पीड़ादायिनी बनती है। इसलिए स्थिर और सुमुखी लक्ष्मी के प्रदान करने की महिमा गाई है।

*🚩।।इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।🚩*

*🚩।।रावण- रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् समाप्त🚩।।*

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