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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

भोजन के बाद पानी ना पिए और पिने से पेट व छाती में जलन :-

भोजन के बाद पानी ना पिए और पिने से पेट व छाती में जलन :-

इसके उपाय ...... निम्नलिखित है.......

01. ठंडे पेयों (aerated drinks) व चाय, काफी के सेवन से बचें. इनके स्थान पर प्राकृतिक व हर्बल पेय का सेवन करें.
02. गर्म/कुनकुने पानी का नियमित रूप से सेवन करें.
03. मौसम के अनुसार छिटके वाले पके केले, ककड़ी/खीरा व तरबूज का सेवन करें. तरबूज का रस काफी लाभप्रद होता है.
04. 'नारियल-पानी-सेवन' काफी लाभप्रद होता है.
05. ठंडे दूध के सेवन से लाभ मिलता है.
06. रात का भोजन, रात्रिशयन के कम से कम 3-4 घंटे पहले कर लें.
07. हरएक भोजन की मात्रा कम-कम लिया करें व दिन में प्रत्येक दो भोजनों के बीच का अंतराल 3 घंटे से ज्यादा न रखें.
08. तीखे मिर्च, मसाले, अचार, चटनी, सिरका व तेल-घी युक्त गरिष्ठ आहार के सेवन से बचें.
09. भोजन करने के आधा/एक घंटे बाद पुदीना की कुछ पत्तियाँ डालकर उबला हुआ एक गिलास पानी पियें.
10. लौंग के एक दाने को चूसने से भी प्रभावी लाभ मिलता है.
11. शकर से बचें. गाँव के देशी गुड़, बादाम, नींबू, व दही आदि का अल्प मात्रा में सेवन करें.
12. धूम्रपान व अन्य सभी प्रकार के नशे, शरीर एवं रक्त में एसिडिटी को तेजी से बढ़ाते हैं अतः इनका सेवन न करें.
13. लोंग, अदरक, छोटी हर्र्ड़ आदि चूसने से मुँह में बनने वाला सेलाईवा (लार) जलन (heartburn) में काफी लाभप्रद होता है.
14. अदरक व शहद का सेवन जिस रूप में भी हो सके नियमित रूप से करना चाहिये.
15. अन्न, घी-तेल व बारीक पिसे हुये आहार की तुलना में हरी साग-भाजी, सलाद, फल व मोटे/दरदरे आहार को वरीयता देना चाहिये.
16. एसिडिटी की हालात में तुरंत लाभ लेने हेतु 4 से 6 गिलास गरम पानी पीकर उल्टी करें. यह क्रिया तब तक दोहराएँ जब तक कि उल्टी में खट्टा पानी आना बंद न हो जावे. ध्यान रखें! जिन्हें हृदयरोग, उच्चरक्तचाप व पेट में अल्सर की शिकायत हो उन्हें वमन-क्रिया (उल्टी) नहीं करना चाहिये.

आप मनुष्य धर्म का पालन करे जिससे ये ज्ञान को मिले... यही आयें की पहचान है , इस सुंदर सी 'बगिया' के आप स्वयं हमसफ़र बनें व साथियों को भी बनाएँ. जीवन के बहुआयामी पहेलुओं व अहसासों को गहराई तक महसूस करने हेतु आप सभी का तहेदिल से स्वागत है.)

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

कुंडलिनी जागरण मन्त्र

कुंडलिनी जागरण मन्त्र






विशेष तथ्य :-
1-कुन्डलिनी जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.
2-कुन्डलिनी जागरण साधना गुरु के सानिध्य मे करनी चाहिये.
3-यह शक्ति अत्यन्त प्रचन्ड होती है.
4-इसका नियन्त्रण केवल गुरु ही कर सकते हैं.
5-यदि आप गुरु दीक्षा ले चुके हैं तो अपने गुरु की अनुमति से ही यह साधना करें.
6-यदि आपने गुरु दीक्षा नही ली है तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इस साधना में प्रवृत्त हों.
कुंडलिनी जागरण मन्त्र ----
|| ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नम: ||
यह एक अद्भुत मंत्र है.इससे धीरे धीरे शरीर की आतंरिक शक्तियों का जागरण होता है और कालांतर में कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है.प्रतिदिन इसका १०८, १००८ की संख्या में जाप करें.जाप करते समय महसूस करें कि मंत्र आपके अन्दर गूंज रहा है.मन्त्र जाप के अन्त में कहें :-
ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम
शिव शासनतः,शिव शासनतः,शिव शासनतः

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