यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे

पानी का ग्लास
=======================

एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक ग्लास पकड़ते हुए कक्षा शुरू की !! उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी छात्रों को दिखाया और पूछा - ”आपके हिसाब से ग्लास का वज़न कितना होगा ??”
’५० ग्राम, १०० ग्राम, १२५ ग्राम’!! छात्रों ने उत्तर दिया !!

”जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ, मैं इसका सही वज़न नहीं बता सकता” !! प्रोफ़ेसर ने कहा !! ” पर मेरा सवाल है -

यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ??”

‘कुछ नहीं’ !! छात्रों ने कहा !

‘अच्छा, अगर मैं इसे इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ??” प्रोफ़ेसर ने पूछा !!

‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा !!’ एक छात्र ने कहा !!

”तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा ??”

”आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके मांसपेसियों में भारी तनाव आ सकता है, लकवा मार सकता है और पक्का आपको अस्पताल जाना पड़ सकता है”!! किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े !!

“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान ग्लास का वज़न बदला ??” प्रोफ़ेसर ने पूछा !!

उत्तर आया - ”नहीं”

” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया ??”

छात्र अचरज में पड़ गए !!

फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा - ”अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ ??”

ग्लास को नीचे रख दीजिये !! एक छात्र ने कहा !!

”बिलकुल सही !!” प्रोफ़ेसर ने कहा !!

जीवन की समस्याएं भी कुछ इसी तरह होती हैं !! इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है !! उनके बारे में ज्यादा देर सोचिये और आपको तकलीफ होने लगेगी !! और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको लकवाग्रस्त करने लगेंगी !! और आप कुछ नहीं कर पायेंगे !!

अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना !! इस तरह से, आप तनाव में भी नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे !!

रूद्राक्ष को कैसे पहचाने ?

** रूद्राक्ष को कैसे पहचाने ***

1) प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है। लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

2) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले

को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उसपर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

3) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।

4) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

5) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

6) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।
7) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।

8) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।

9) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है।

10) कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है। प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।

11) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

12) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।

यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा। वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।

क्या आप जानते हैं कि कैसे विकसित हुआ जापान ??

क्या आप जानते हैं कि जापान दूसरे विश्व युद्ध में परमाणु हमले से बर्बाद हो गया था, फिर जापान कैसे वापस निकला ??

क्या जापान ने एफ़डीआई पर ज़ोर दिया था, अमेरिकी/ यूरोप कंपनियों को बुलाया था ?? कैसे विकसित हुआ जापान ??
====================================

जापान में 1950 से 1970 तक स्वदेशी आंदोलन चला। इस आंदोलन का एक ही नारा था: "BE JAPANESE, BUY JAPANESE." ताबूची नाम का एक बड़ा नेता था उसका जापान में उतना ही सम्मान है जितना भारत में गांधी जी का। ताबूची, अमेरीकन कंपनियों के समान को जापान के बाज़ार में कहीं भी देखता था तो भड़क जाता था और कहता था हम जापानियों को अमेरिकी समान खरीदने से तो मर जाना अच्छा है और जापान आज जो है वो उसी का परिणाम है।

जापान को खड़ा करने में न तो विदेशी पूंजी का योगदान है, न तो विदेशी तकनीक का, न ही विदेशी कंपनियों का योगदान है। जापान खड़ा हुआ है अपने संकल्प और आत्मशक्ति से। जापानी लोग कहते हैं की विदेशी पूंजी, विदेशी तकनीक और विदेशी कंपनियों को हम सबसे आखिरी स्तर पर रखते हैं।

स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ! जय हिन्द !!

साभार: ये है हिंदुस्तान मेरी जान

सोमवार, 12 नवंबर 2012

मुंह के छालों को चुटकियों में खत्म कर देगा यह नुस्खा!

मुंह के छालों को चुटकियों में खत्म कर देगा यह नुस्खा!

आंखें, कान, नाक और मुंह ये शरीर के ऐसे अंग हैं जो इंसान की कार्यक्षमता को गहराई से प्रभावित करते हैं। इन चारों में जरा सी भी गड़बड़ होते ही व्यक्ति का सारा काम ही रुक जाता है। मुंह सिर्फ बोलने और खाने के ही काम में नहीं आता बल्कि यह पूरे शरीर से बड़े गहराई से जुड़ा होता है।

मुंह में अगर छाले हो जाएं तो व्यक्ति बहुत परेशान हो जाता है। उसका किस
ी काम में मन नहीं लगता और वह खाने-पीने और बोलने में ही नहीं बल्कि दूसरे अन्य कार्यों में भी कठिनाई और असुविधा महसूस करता है।

यहां हम आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़े कुछ ऐसे सरल नुस्खे दे रहे हैं, जो मुंह के छालों में बड़े कारगर और तुरंत राहत पहुंचाने वाले हैं…

सरल प्रयोग:

1. चमेली के पत्ते चबाएं और मुंह में बनने वाली लार थूकते जाएं, छालों में तत्काल आराम मिलेगा।

2. छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर लगाने से तुरंत लाभ होता है। रात के खाने के बाद हरड़ चूसें।

3. दो ग्राम भुने सुहागे का चूर्ण 15 ग्राम ग्लिसरीन में मिलाएं। दिन में तीन बार छालों पर लगाएं। फायदा होगा।

4. मिश्री को बारीक पीस लें। इसमें कपूर मिलाकर जुबान पर बुरकें। इसमें मिश्री आठ भाग एवं कपूर एक भाग रखें।

5. फि टकरी का कुल्ला करें।

6. तुलसी के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक होते हैं।

यह भी ध्यान रखें:

टमाटर अधिक खाने से कभी छाले नहीं होते।

कब्ज को कतई न रहने दें, पेट को साफ रखें।

मसालेदार भोजन से दूर रहें।

विशेष: किसी भी आयुर्वेदिक क्रिया या औषधि को अपनाने से पहले स्वविवेक से काम लें, तथा किसी आयुर्वेद के जानकार चिकित्सक से सलाह लेना सदैव निरापद रहता है। किसी भी असुविधा के लिये वेबसाइट जिम्मेदार नहीं होगी।

इस चमत्कारी दवा से खत्म हो जाएगी भूलने की बीमारी

इस चमत्कारी दवा से खत्म हो जाएगी भूलने की बीमारी

आमतौर पर हम सभी के घरों में किचन में पाई जाने वाली हल्दी अपने आप में किसी डॉक्टर से कम नहीं है। तभी तो आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित ग्रंथों में घरेलू हल्दी को चमत्कारी औषधि का दर्जा दिया गया है। जिस बात को आयुर्वेद में हजारों साल पहले कह दिया था, उसकी सच्चाई और प्रामाणिकता पर आज विज्ञान जगत भी मुहर लगा रहा है।

हल्दी के औषधीय गुणों पर किये जा रहे शोध बताते हैं कि हल्दी में कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है। भारतीय लोग तो हल्दी के फायदों से परिचित हैं ही लेकिन अब वैज्ञानिकों ने भी साबित कर दिया है कि हल्दी में न केवल कैंसर कोशिकाओं को मारने की क्षमता होती है, बल्कि डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जिसमें रोगी को मतिभ्रम हो जाता है और वह जरूरी बातें भी भूल जाता है, को भी नियंत्रित करने की क्षमता होती है।

डिमेंशिया में भी अचूक:

हल्दी में पाए जाने वाले रसायन ‘करक्यूमिन’ में रोगहारी शक्ति होती है, जो गठिया और मनोभ्रंश या डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी जैसी बीमारियों के इलाज में प्रभावी सिद्ध हो चुकी है।

कैंसर की रोकथाम:

ब्रिटेन के कॉर्क कैंसर रिसर्च सेंटर में किए गए परीक्षण दिखाते हैं कि प्रयोगशाला में जब करक्यूमिन का प्रयोग किया गया तो उसने गले की कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया।

डॉ शैरन मैक्केना और उनके दल ने पाया कि करक्यूमिन ने 24 घंटों के भीतर कैंसर की कोशिकाओं को मारना शुरु कर दिया। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटिश जरनल ऑफ़ कैंसर में प्रकाशित यह खोज कैंसर के नए इलाज विकसित करने में सहायक हो सकती है।

function disabled

Old Post from Sanwariya