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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

श्री राधा नाम की महिमा

एक व्यक्ति था एक बार एक संत उसके नगर में आये वह उनके दर्शन करने गया और संत से बोला- स्वामी जी! मेरा एक बेटा है, वो न तो भगवान को मानता है, न ही पूजा-पाठ करता है, जब उससे कहो तो कहता है मै किसी संत को नहीं मानता, अब आप ही उसे समझाइये.स्वामी
जी ने कहा-ठीक है मैं तुम्हारे घर आऊँगा.

एक दिन वे उसके घर गए और उसके बेटे से बोले - बेटा एक बार कहो राधा, बेटा बोला मै क्यों कहूँ, स्वामीजी ने बहुत बार कहा, अं

त में वह बोला मै ‘राधा’ क्यों कहूँ,स्वामी जी ने कहा- जब तुम मर जाओ तो मरने पर यमराज से पूँछना कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है इतना कहकर वे चले गए.

एक दिन वह मर गया यमराज के पास पहुँच गया तब उसने पूँछा आप मुझे बताये की एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है?

यमराज ने कहा- मुझे नहीं पता कि क्या महिमा है, शायद इन्द्र को पता होगा चलो उससे पूछते है जब उसने देखा की यमराज तो कुछ ढीले पड़ रहे है तो बोला- मै ऐसे नहीं जाऊँगा, पालकी मँगाओ तुरंत पालकी आ गयी कहार से बोला- आप हटो यमराज जी आप इसकी जगह लग जाओ, यमराज लग गए, इंद्र के पास गए,

इंद्र ने पूछा – ये कोई खास है क्या? यमराज जी ने कहा- ये पृथ्वीसे आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है पूँछ रहा है आप बताइये, इंद्र ने कहा -महिमा तो बहुत है पर क्या है ये नहीं पता,ये तो ब्रह्मा जी ही बता सकते है.

व्यक्ति बोला - तुम भी पालकी में लग जाओ,अब उसकी पालकी में एक ओर यमराज दूसरी ओर इंद्र लग गए, ब्रह्मा जी के पास पहुँचे ब्रह्मा जी ने कहा- ये कोई महान व्यक्ति लगता है जिसे ये पालकी में लेकर आ रहे है ब्रह्मा जी ने पूँछा ये कौन है? तो यमराज जी ने कहा- ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है पूँछ रहा है.आप को तो पता ही होगा.

ब्रह्मा जी ने कहा – महिमा तो अनंत है पर ठीक-ठीक तो मुझे भी नहीं पता, शंकर जी ही बता सकते है. व्यक्ति ने कहा-तीसरी जगह पालकी में आप लग जाइये ब्रह्मा जी भी लग गए पालकी लेकर शंकरजी के पास गए .शंकर जी ने कहा ये कोई खास लगता है जिसकी पालकी को यमराज, इंद्र, ब्रह्मा जी, लेकर आ रहे है, पूँछा तो ब्रह्मा जी ने कहा ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की महिमा पूँछ रहा है हमें तो पता नहीं आप को तो जरुर पता होगा आप तो समाधी में सदा उनका ही ध्यान करते है शंकर जी ने कहा- हाँ, पर ठीक प्रकार से तो मुझे भी नहीं पता, विष्णु जी ही बता सकते है.

व्यक्ति ने कहा –आप भी चौथी जगह लग जाइये अब शंकर जी भी पालकी में लग गए अब चारो विष्णु जी के पास गए और पूँछा कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है भगवान ने कहा राधा नाम की यही महिमा है कि इसकी पालकी आप जैसे देव उठा रहे है ये अब मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है.
“ जय जय श्री राधे
”परम प्रिय श्री राधा नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है-"जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’ अक्षर सुन लेता हूँ, उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदान कर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चल देता हूँ" ब्रज के रसिक संत श्री किशोरी अली जी ने इस भाव को प्रकट किया है.
"आधौ नाम तारिहै राधा
'र' के कहत रोग सब मिटिहैं, 'ध ' के कहत मिटै सब बाधा
राधा राधा नाम की महिमा, गावत वेद पुराण अगाधा
अलि किशोरी रटौ निरंतर, वेगहि लग जाय भाव समाधा"

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

दुर्वा की खास बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी:

दुर्वा की खास बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी:-------
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क्या आप जानते हैं श्रीगणेश को एक विशेष प्रकार की घास अर्पित की जाती है जिसे दुर्वा कहते हैं। दुर्वा के कई चमत्कारी प्रभाव हैं। यहां जानिए दुर्वा से जुड़ी खास बातें-
गणपति अथर्वशीर्ष में उल्लेख है-
यो दूर्वांकरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
अर्थात- जो दुर्वा की कोपलों से (गणपति की) उपासना करते हैं उन्हें कुबेर के समान धन की प्राप्ति होती है।

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं से भगवान की पूजा करने की परंपरा बहुत प्राचीन है। जल, फल, पुष्प यहां तक कि कुश और दुर्वा की घास द्वारा अपनी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचाने की सुविधा हमारे धर्मशास्त्रों में दी गई है। दुर्वा चढ़ाने से श्रीगणेश की कृपा भक्त को प्राप्त होती है और उसके सभी कष्ट-क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

हमारे जीवन में दुर्वा के कई उपयोग हैं। दुर्वा को शीतल और रेचक माना जाता है। दुर्वा के कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है। पशु आहार के रूप में यह पुष्टिïकारक एवं दुग्धवर्धक होती है। प्रात:काल सूर्योदय से पहले दूब पर जमी ओंस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

पंचदेव उपासना में दुर्वा का महत्वपूर्ण स्थान है। यह गणपति और दुर्गा दोनों को अतिप्रिय है। पुराणों में कथा है कि पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र भी उसे परास्त न कर सके। देवतागण शिव के पास गए। शिव ने कहा इसका नाश सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। जब उनके पेट में जलन होने लगी तब ऋषि कश्यप ने 21 दुर्वा की गांठ उन्हें खिलाई और इससे उनकी पेट की ज्वाला शांत हुई।

दुर्वा जिसे आम भाषा में दूब भी कहते हैं एक प्रकार ही घास है। इसकी विशेषता है कि इसकी जड़ें जमीन में बहुत गहरे (लगभग 6 फीट तक) उतर जाती हैं। विपरीत परिस्थिति में यह अपना अस्तित्व बखूबी से बचाए रखती है। दुर्वा गहनता और पवित्रता की प्रतीक है। इसे देखते ही मन में ताजगी और प्रफुल्लता का अनुभव होता है। शाक्तपूजा में भी भगवती को दुर्वा अर्पित की जाती है।

पांच दुर्वा के साथ भक्त अपने पंचभूत-पंचप्राण अस्तित्व को गुणातीत गणेश को अर्पित करते हैं। इस प्रकार तृण के माध्यम से मानव अपनी चेतना को परमतत्व में विलीन कर देता है।

श्रीगणेश पूजा में दो, तीन या पांच दुर्वा अर्पण करने का विधान तंत्र शास्त्र में मिलता है। इसके गूढ़ अर्थ हैं। संख्याशास्त्र के अनुसार दुर्वा का अर्थ जीव होता है जो सुख और दु:ख ये दो भोग भोगता है। जिस प्रकार जीव पाप-पुण्य के अनुरूप जन्म लेता है। उसी प्रकार दुर्वा अपने कई जड़ों से जन्म लेती है। दो दुर्वा के माध्यम से मनुष्य सुख-दु:ख के द्वंद्व को परमात्मा को समर्पित करता है। तीन दुर्वा का प्रयोग यज्ञ में होता है। ये आणव (भौतिक), कार्मण (कर्मजनित) और मायिक (माया से प्रभावित) रूपी अवगुणों का भस्म करने का प्रतीक है।

हाइब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए वरदान है पालक

ये फायदे जानेंगे तो आप भी रोज खाना चाहेंगे पालक
लोग कहते हैं कि पालक खाने वाला कभी बीमार नहीं पड़ता है। डॉक्टरों के मुताबिक पालक में शरीर के लिए आवश्यक अनेक अमीनो अम्ल, विटामिन ए, फोलिक अम्ल, प्रोटीन और लौह तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। पालक 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन 2 .0 त्न ,कार्बोहाइड्रेट 2 .9 ,नमी 92 वसा 0 .7 , रेशा 0 .6 त्न ,खनिज लवन 0 .7 और रेशा 0 .6 होता हैं .पालक में खनिज लवन जैसे कैल्सियम ,लौह, तथा विटामिन ए ,बी ,सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. इसी गुण के कारण इसे लाइफ प्रोटेक्टिव फ़ूड कहा जाता हैं

पालक में विटामिन ए,बी,सी,लोहा और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। कच्चा पालक गुणकारी होता है। पूरे पाचन-तंत्र की प्रणाली को ठीक करता है। खांसी या फेफड़ों में सूजन हो तो पालक के रस के कुल्ले करने से लाभ होता है। पालक का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ताजे पालक का रस रोज पीने से आपकी मैमोरी बढ़ सकती है। इसमें आयोडीन होने की वजह से यह दिमागी थकान से भी छुटकारा दिलाता है।

हरी पत्तेदार सब्जियों से हमें आयरन तब तक नहीं मिलता, जब तक कि हम इन्हें विटामिन सी के साथ नहीं लेते, मसलन टमाटर, नींबू आदि के साथ। इसलिए पालक जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों को आप टमाटर के साथ खाएं।लेकिन पालक को पनीर जैसे मिल्क प्रोडक्ट के साथ नहीं बनाना चाहिए। पालक आंतों को क्रियाशील बनाता है, यही वजह है कि लीवर से संबंधित रोगों में भी यह फायदेमंद है।
अगर आप अपनी रूखी त्वचा से परेशान हैं तो पालक खाएं क्योंकि इसमें पानी की मात्रा ज्यादा होती है, जो आपकी त्वचा को नर्म और मुलायम बनाने में मदद करता है।पालक हमारे शरीर में उन जरूरी तत्वों को संचित करता है। इसके माध्यम से न सिर्फ शरीर का विकास होता है बल्कि यह रक्त नलिकाओं को खोलता है। यही कारण है कि हाइब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए वरदान है।

भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ?

हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है. हर घर में आपको सुबह, या शाम को या फिर दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है. कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है. किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है.
प्रकाश ज्ञान का घोतक है और अँधेरा अज्ञान का. प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है. ज्ञान अज्ञान का नाश करता है और उजाला अंधेरे का. ज्ञान वो आंतरिक उजाला है जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है. अत दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है.

कुछ तार्किक लोग प्रश्न कर सकते है कि प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है फिर दीपक की क्या आवश्यकता ? तो भाई ऐसा है की दीपक का एक महत्त्व ये भी है कि दीपक के अन्दर जो घी या तेल जो होता है वो हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए. अंत में आइये दीप देव को नमस्कार करे :
शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।।
सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते.......

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज

मोतियाबिंद एक आम समस्या बनता जा रहा है, अब तो युवा भी इस रोग के शिकार होने लगे हैं। अगर इस रोग का समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी अंधेपन का शिकार हो जाता है।

कारण : मोतियाबिंद रोग कई कारणों से होता है। आंखों में लंबे समय तक सूजन बने रहना, जन्मजात सूजन होना, आंख की संरचना में कोई कमी होना, आंख में चोट लग जाना, चोट लगने पर लंबे समय तक घाव बना रहना, कनीनिका में जख्म
बन जाना, दूर की चीजें धूमिल नजर आना या सब्जमोतिया रोग होना, आंख के परदे का किसी कारणवश अलग हो जाना, कोई गम्भीर दृष्टि दोष होना, लंबे समय तक तेज रोशनी या तेज गर्मी में कार्य करना, डायबिटीज होना, गठिया होना, धमनी रोग होना, गुर्दे में जलन का होना, अत्याधिक कुनैन का सेवन, खूनी बवासीर का रक्त स्राव अचानक बंद हो जाना आदि समस्याएँ मोतियाति‍बिंद को जन्म दे सकती हैं।

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज
रक्त मोतियाबिंद में सभी चीजें लाल, हरी, काली, पीली और सफेद नजर आती हैं। परिम्लामिन मोतियाबिंद में सभी ओर पीला-पीला नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे कि पेड़-पौधों में आग लग गई हो।
सभी प्रकार के मोतियाबिंद में आंखों के आस-पास की स्थिति भी अलग-अलग होती है। वातज मोतियाबिंद में आंखों की पुतली लालिमायुक्त, चंचल और कठोर होती है। पित्तज मोतियाबिंद में आंख की पुतली कांसे के समान पीलापन लिए होती है। कफज मोतियाबिंद में आंख की पुतली सफेद और चिकनी होती है या शंख की तरह सफेद खूँटों से युक्त व चंचल होती है। सन्निपात के मोतियाबिंद में आंख की पुतली मूंगे या पद्म पत्र के समान तथा उक्त सभी के मिश्रित लक्षणों वाली होती है। परिम्लामिन में आंख की पुतली भद्दे रंग के कांच के समान, पीली व लाल सी, मैली, रूखी और नीलापन लिए होती है।

मोतियाबिंद का आयुर्वेदिक इलाज


आंखों में लगाने वाली औषधियाँ-

त्रिफला के जल से आंखें धोना::
आयुर्वेद में हरड़ की छाल (छिलका), बहेड़े की छाल और आमले की छाल - इन तीनों को त्रिफला कहते हैं । यह त्रिदोषनाशक है अर्थात् वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषों के कुपित होने से जो रोग उत्पन्न होते हैं उन सबको दूर करने वाला है । मस्तिष्क सम्बन्धी तथा उदर रोगों को दूर भगाता है तथा इन्हें शक्ति प्रदान करता है । सभी ज्ञानेन्द्रियों के लिये लाभदायक तथा शक्तिप्रद है । विशेषतया चक्षुरोग के लिये तो रामबाण है । कभी-कभी स्वस्थ मनुष्यों को भी त्रिफला के जल से अपने नेत्र धोते रहना चाहिये । नेत्रों के लिए अत्यन्त लाभदायक है । कभी-कभी त्रिफला की सब्जी खाना भी हितकर है ।
धोने की विधि - त्रिफला को जौ से समान (यवकुट) कूट लो और रात्रि के समय किसी मिट्टी, शीशे वा चीनी के पात्र में शुद्ध जल में भिगो दो । दो तोले वा एक छटांक त्रिफला को आधा सेर वा एक सेर शुद्ध जल में भिगोवो । प्रातःकाल पानी को ऊपर से नितारकर छान लो । उस जल से नेत्रों को खूब छींटे लगाकर धोवो । सारे जल का उपयोग एक बार के धोने में ही करो । इससे निरन्तर धोने से आंखों की उष्णता, रोहे, खुजली, लाली, जाला, मोतियाबिन्द आदि सभी रोगों का नाश होता है । आंखों की पीड़ा (दुखना) दूर होती है, आंखों की ज्योति बढ़ती है । शेष बचे हुए फोकट सिर पर रगड़ने से लाभ होता है ।
त्रिफला की टिकिया
(१) त्रिफला को जल के साथ पीसकर टिकिया बनायें और आंखों पर रखकर पट्टी बांध दें । इससे तीनों दोषों से दुखती हुई आंखें ठीक हो जाती हैं ।
(२) हरड़ की गिरी (बीज) को जल के साथ निरन्तर आठ दिन तक खरल करो । इसको नेत्रों में डालते रहने से मोतियाबिन्द रुक जाता है । यह रोग के आरम्भ में अच्छा लाभ करता है ।

* मोतियाबिंद की शुरुआती अवस्था में भीमसेनी कपूर स्त्री के दूध में घिसकर नित्य लगाने पर यह ठीक हो जाता है।

* हल्के बड़े मोती का चूरा 3 ग्राम और काला सुरमा 12 ग्राम लेकर खूब घोंटें। जब अच्छी तरह घुट जाए तो एक साफ शीशी में रख लें और रोज सोते वक्त अंजन की तरह आंखों में लगाएं। इससे मोतियाबिंद अवश्य ही दूर हो जाता है।

* छोटी पीपल, लाहौरी नमक, समुद्री फेन और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लें। इसे 200 ग्राम काले सुरमा के साथ 500 मिलीलीटर गुलाब अर्क या सौंफ अर्क में इस प्रकार घोटें कि सारा अर्क उसमें सोख लें। अब इसे रोजाना आंखों में लगाएं।

* 10 ग्राम गिलोय का रस, 1 ग्राम शहद, 1 ग्राम सेंधा नमक सभी को बारीक पीसकर रख लें। इसे रोजाना आंखों में अंजन की तरह प्रयोग करने से मोतियाबिंद दूर होता है।

* मोतियाबिंद में उक्त में से कोई भी एक औषधि आंख में लगाने से सभी प्रकार का मोतियाबिंद धीरे-धीरे दूर हो जाता है। सभी औषधियां परीक्षित हैं।
नेत्र रोगों में कुदरती पदार्थों से ईलाज करना फ़ायदेमंद रहता है। मोतियाबिंद बढती उम्र के साथ अपना तालमेल बिठा लेता है। अधिमंथ बहुत ही खतरनाक रोग है जो बहुधा आंख को नष्ट कर देता है। आंखों की कई बीमारियों में नीचे लिखे सरल उपाय करने हितकारी सिद्ध होंगे-

१) सौंफ़ नेत्रों के लिये हितकर है। मोतियाबिंद रोकने के लिये इसका पावडर बनालें। एक बडा चम्मच भर सुबह शाम पानी के साथ लेते रहें। नजर की कमजोरी वाले भी यह उपाय करें।

२) विटामिन ए नेत्रों के लिये अत्यंत फ़ायदेमंद होता है। इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण करना उत्तम रहता है। गाजर में भरपूर बेटा केरोटिन पाया जाता है जो विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। गाजर कच्ची खाएं और जिनके दांत न हों वे इसका रस पीयें। २०० मिलि.रस दिन में दो बार लेना हितकर माना गया है। इससे आंखों की रोशनी भी बढेगी। मोतियाबिंद वालों को गाजर का उपयोग अनुकूल परिणाम देता है।

३) आंखों की जलन,रक्तिमा और सूजन हो जाना नेत्र की अधिक प्रचलित व्याधि है। धनिया इसमें उपयोगी पाया गया है।सूखे धनिये के बीज १० ग्राम लेकर ३०० मिलि. पानी में उबालें। उतारकर ठंडा करें। फ़िर छानकर इससे आंखें धोएं। जलन,लाली,नेत्र शौथ में तुरंत असर मेहसूस होता है।

४) आंवला नेत्र की कई बीमारियों में लाभकारी माना गया है। ताजे आंवले का रस १० मिलि. ईतने ही शहद में मिलाकर रोज सुबह लेते रहने से आंखों की ज्योति में वृद्धि होती है। मोतियाबिंद रोकने के तत्व भी इस उपचार में मौजूद हैं।

५) भारतीय परिवारों में खाटी भाजी की सब्जी का चलन है। खाटी भाजी के पत्ते के रस की कुछ बूंदें आंख में सुबह शाम डालते रहने से कई नेत्र समस्याएं हल हो जाती हैं। मोतियाबिंद रोकने का भी यह एक बेहतरीन उपाय है।

६) अनुसंधान में साबित हुआ है कि कद्दू के फ़ूल का रस दिन में दो बार आंखों में लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। कम से कम दस मिनिट आंख में लगा रहने दें।

७) घरेलू चिकित्सा के जानकार विद्वानों का कहना है कि शहद आंखों में दो बार लगाने से मोतियाबिंद नियंत्रित होता है।

८) लहसुन की २-३ कुली रोज चबाकर खाना आंखों के लिये हितकर है। यह हमारे नेत्रों के लेंस को स्वच्छ करती है।

९) पालक का नियमित उपयोग करना मोतियाबिंद में लाभकारी पाया गया है। इसमें एंटीआक्सीडेंट तत्व होते हैं। पालक में पाया जाने वाला बेटा केरोटीन नेत्रों के लिये परम हितकारी सिद्ध होता है। ब्रिटीश मेडीकल रिसर्च में पालक का मोतियाबिंद नाशक गुण प्रमाणित हो चुका है।

१०) एक और सरल उपाय बताते हैं- अपनी दोनों हथेलियां आंखों पर ऐसे रखें कि ज्यादा दबाव मेहसूस न हो। हां, हल्का सा दवाब लगावे। दिन में चार-पांच बार और हर बार आधा मिनिट के लिये करें। मोतियाबिंद से लडाई का अच्छा तरीका है।

११) किशमिश ,अंजीर और खारक पानी में रात को भिगो दें और सुबह खाएं । मोतियाबिंद की अच्छी घरेलू दवा है।

१२) भोजन के साथ सलाद ज्यादा मात्रा में शामिल करें । सलाद पर थोडा सा जेतून का तेल भी डालें। इसमें प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के गुण हैं जो नेत्रों के लिये भी हितकर है।

मोतियाबिंद दो प्रकार का होता है।

1.nuclear cataract.

2.cortical cataract.

उक्त दोनो तरह के मोतियाबिंद बनने से रोकने के लिये विटामिन ए तथा बी काम्प्प्लेक्स का दीर्घावधि तक उपयोग करने की सलाह दी जाती है। अगर मोतियाबिंद प्रारंभिक हालत में है तो रोक लगेगी।


खाने वाली औषधियाँ-
आंखों में लगने वाली औषधि के साथ-साथ जड़ी-बूटियों का सेवन भी बेहद फायदेमन्द साबित होता है। एक योग इस प्रकार है, जो सभी तरह के मोतियाबिंद में फायदेमन्द है-

* 500 ग्राम सूखे आँवले गुठली रहित, 500 ग्राम भृंगराज का संपूर्ण पौधा, 100 ग्राम बाल हरीतकी, 200 ग्राम सूखे गोरखमुंडी पुष्प और 200 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ लेकर सभी औषधियों को खूब बारीक पीस लें। इस चूर्ण को अच्छे प्रकार के काले पत्थर के खरल में 250 मिलीलीटर अमरलता के रस और 100 मिलीलीटर मेहंदी के पत्रों के रस में अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद इसमें शुद्ध भल्लातक का कपड़छान चूर्ण 25 ग्राम मिलाकर कड़ाही में लगातार तब तक खरल करें, जब तक वह सूख न जाए। इसके बाद इसे छानकर कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें। इसे रोगी की शक्ति व अवस्था के अनुसार 2 से 4 ग्राम की मात्रा में ताजा गोमूत्र से खाली पेट सुबह-शाम सेवन करें।


फायदेमन्द व्यायाम व योगासन-

* औषधियाँ प्रयोग करने के साथ-साथ रोज सुबह नियमित रूप से सूर्योदय से दो घंटे पहले नित्य क्रियाओं से निपटकर शीर्षासन और आंख का व्यायाम अवश्य करें।

* आंख के व्यायाम के लिए पालथी मारकर पद्मासन में बैठें। सबसे पहले आंखों की पुतलियों को एक साथ दाएँ-बाएँ घुमा-घुमाकर देखें फिर ऊपर-नीचे देखें। इस प्रकार यह अभ्यास कम से कम 10-15 बार अवश्य करें। इसके बाद सिर को स्थिर रखते हुए दोनों आंखों की पुतलियों को एक गोलाई में पहले सीधे फिर उल्टे (पहले घड़ी की गति की दिशा में फिर विपरीत दिशा में) चारों ओर घुमाएँ। इस प्रकार कम से कम 10-15 बार करें। इसके बाद शीर्षासन करें।

कुछ खास हिदायतें

* मोतियाबिंद के रोगी को गेहूँ की ताजी रोटी खानी चाहिए। गाय का दूध बगैर चीनी का ही पीएँ। गाय के दूध से निकाला हुआ घी भी सेवन करें। आंवले के मौसम में आंवले के ताजा फलों का भी सेवन अवश्य करें। फलों में अंजीर व गूलर अवश्यक खाएं।

* सुबह-शाम आंखों में ताजे पानी के छींटे अवश्य मारें। मोतियाबिंद के रोगी को कम या बहुत तेज रोशनी में नहीं पढ़ना चाहिए और रोशनी में इस प्रकार न बैठें कि रोशनी सीधी आंखों पर पड़े। पढ़ते-लिखते समय रोशनी बार्ईं ओर से आने दें।

* वनस्पति घी, बाजार में मिलने वाले घटिया-मिलावटी तेल, मांस, मछली, अंडा आदि सेवन न करें। मिर्च-मसाला व खटाई का प्रयोग न करें। कब्ज न रहने दें। अधिक ठंडे व अधिक गर्म मौसम में बाहर न निकलें

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